उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सोहागपुर, होशंगाबाद , नरसिंहपुर एवं जबलपुर में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने हिन्दी, अँग्रेजी एवं संस्कृत चुना और बी.ए. की पढ़ाई पूरी की । बाद में उन्होंने एक स्कूल खोल लिया।
वो एक गांधीवादी विचारक थे इसलिए उनके संस्कार, विचार, कार्य सब गांधीवादी थे। उनके गांधीवाद की झलक उनकी कविताओं में स्वच्छंदता और नैतिकता के रूप में देखी जा सकती है।
1942 में उनको गिरफ्तार कर लिया गया उन्होंने सात वर्ष जेल में बिताए और 1949 में जेल से बाहर आए। उसके बाद चार-पाँच साल उन्होंने महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक के तौर पर बिताए।
नियमित रूप से उन्होंने कविताएं लिखना लगभग 1930 ई से प्रारम्भ किया। ‘कर्मवीर’ , ‘हंस’, ‘दूसरा सप्तक ‘ में उनकी कवितायें प्रकाशित होने लगीं। उनका प्रथम संग्रह था ‘ गीत फ़रोश ‘ जो कि अत्यन्त लोकप्रिय रहा और उस लोकप्रियता का कारण रहा उसकी नयी शैली और नया पाठ-प्रवाह।
‘चकित है दुःख’ ‘गांधी पंचशती’ ‘बुनी हुई रस्सी’ ‘तुम आते हो’ ‘त्रिकाल संध्या’ आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ थीं। 1972 में उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ दिया गया। 1981 में उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘साहित्यकार सम्मान’ दिया गया।
1983 में उन्हें ‘शिखर सम्मान’ दिया गया। उन्होंने चित्रपट के लिए संवाद लेखन एवं संवाद निर्देशन का काम भी किया। वे आकाशवाणी के प्रोड्यूसर भी हुए। बाद में वे दिल्ली भी गए और उन्होंने आकाशवाणी में काम किया । 1985 ई में परिवारजनों के बीच मध्य प्रदेश में उनकी मृत्यु हो गयी।
‘घर की याद’ कविता का सारांश– Ghar Ki Yaad Poem Summary
प्रस्तुत कविता कवि भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा लिखी गयी है। यह कविता उन्होंने अपने जेल प्रवास के दौरान लिखी थी। सन 1942 में जब वो ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल हुए थे तब उन्हें गिरफ्तार कर के तीन साल के लिए जेल में डाल दिया गया था।
इसी दौरान सावन के मौसम में एक रात बहुत तेज़ बारिश होती है और कवि को अपने घर और परिवार की बहुत याद आती है। वो अपने घर से दूर हैं और उसे याद कर रहे हैं।
उन्हें अपनी माता-पिता की चिंता सता रही है कि वो पुत्र वियोग में तड़प रहे होंगे और किसी अनहोनी की आशंका से दुःखी हो रहे होंगे। भवानी जी उनको सांत्वना देने के लिए बारिश के माध्यम से उनको झूठा संदेश भेजते हैं।
वे कहते हैं कि वे कुशल हैं ताकि यह सुनकर उनके माता-पिता को सांत्वना मिल सके। कवि अपनी बहन को याद करता है कि वो मायके आयी होगी। अपनी अनपढ़ माँ को याद कर के सोचता है कि वो तो पत्र भी नहीं लिख सकती।
कवि अपने पिता को याद करता है कि वो बुढ़ापे से बिलकुल दूर हैं। न शेर से डरते हैं न मौत से। दौड़ते हैं खिलखिलाते हैं और उनकी आवाज़ आज भी बहुत ही रौबदार है।
कवि बारिश से कहता है कि तुम खूब बरसो और बरस बरस के मेरे माता-पिता को मेरी कुशलता का संदेश दो , उनसे कहो कि मैं स्वस्थ हूँ खुश हूँ। उन्हें मेरे दुःख और निराशा का आभास न होने देना। इस प्रकार इस कविता में घर से जुड़ी यादों और भावनाओं का वर्णन किया गया है।
घर की याद कविता- Ghar Ki Yaad Poem
आज पानी गिर रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है,
रात भर गिरता रहा है,
प्राण मन घिरता रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है,
घर नज़र में तिर रहा है,
घर कि मुझसे दूर है जो,
घर खुशी का पूर है जो,
घर कि घर में चार भाई,
मायके में बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर,
हाय रे परिताप के घर!
घर कि घर में सब जुड़े है,
सब कि इतने कब जुड़े हैं,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
और माँ बिन-पढ़ी मेरी,
दुःख में वह गढ़ी मेरी
माँ कि जिसकी गोद में सिर,
रख लिया तो दुख नहीं फिर,
माँ कि जिसकी स्नेह-धारा,
का यहाँ तक भी पसारा,
उसे लिखना नहीं आता,
जो कि उसका पत्र पाता।
पिताजी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ,
मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता,
काम में झंझा लरजता,
आज गीता पाठ करके,
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर,
मूठ उनकी मिला लेकर,
जब कि नीचे आए होंगे,
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है,
घर नज़र में तिर रहा है,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिने,
खेलते या खड़े होंगे,
नज़र उनको पड़े होंगे।
पिताजी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवे का नाम लेकर,
पाँचवाँ हूँ मैं अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा,
पिता जी कहते रहें है,
प्यार में बहते रहे हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे,
क्योंकि मैं उन पर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा,
और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किसलिए पानी,
वहाँ अच्छा है भवानी,
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,
पिताजी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता, कहाँ हूँ,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवे को वे न तरसें,
मैं मज़े में हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किन्तु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से सब विरस है,
किन्तु उनसे यह न कहना,
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ,
काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते है लोग, कहना,
मत करो कुछ शोक कहना,
और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वज़न सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दुख डट कर झेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,
कह न देना मौन हूँ मैं,
ख़ुद न समझूँ कौन हूँ मैं,
देखना कुछ बक न देना,
उन्हें कोई शक न देना,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसे,
पाँचवें को वे न तरसें ।
‘घर की याद’ कविता की व्याख्या– Ghar Ki Yaad Poem Line by Line Explanation
आज पानी गिर रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है,
रात भर गिरता रहा है,
प्राण मन घिरता रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है,
घर नज़र में तिर रहा है,
घर कि मुझसे दूर है जो,
घर खुशी का पूर है जो,
घर कि घर में चार भाई,
मायके में बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर,
हाय रे परिताप के घर!
घर कि घर में सब जुड़े है,
सब कि इतने कब जुड़े हैं,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
घर की याद व्याख्या: प्रस्तुत काव्यान्श हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-1’ में संकलित कविता ‘घर की याद’ से उद्धृत है। इसके रचयिता हैं भवानी प्रसाद मिश्र । यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गयी। सावन की एक रात तेज़ बारिश हो रही है और कवि को अपने परिजनों की बहुत याद आ रही है।
कवि कहता है कि आज बहुत बारिश हो रही है। रात भर बहुत बारिश हुई है। और उसे देख कर मेरा मन घर की यादों से घिर गया है। मेरी नज़रों के सामने घर की यादें तैर रही हैं। घर मुझसे बहुत दूर है पर वह घर खुशियों से भरा हुआ है।
घर में चार भाई हैं , बहन भी मायके आयी होगी और आकर दुखी हुई होगी क्योंकि उसका एक भाई जेल में कैद है। घर में सब कितने प्यार से जुड़े होंगे। चार भाई और चार बहनें कितने प्यार से होंगे। चार भाई बालिष्ट भुजाओं के समान हैं और चारों बहनें प्यार का प्रतीक हैं।
और माँ बिन-पढ़ी मेरी,
दुःख में वह गढ़ी मेरी
माँ कि जिसकी गोद में सिर,
रख लिया तो दुख नहीं फिर,
माँ कि जिसकी स्नेह-धारा,
का यहाँ तक भी पसारा,
उसे लिखना नहीं आता,
जो कि उसका पत्र पाता।
पिताजी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ,
मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता,
काम में झंझा लरजता,
घर की याद व्याख्या: कवि अपनी माँ को याद कर रहा है । वो कहता है कि मेरी माँ अनपढ़ है, दुःखों में ही उसका जीवन बीता है। उस माँ के गोद में सर रख के संसार के सारे दुःख समाप्त हो जाते हैं।
उसकी माँ का स्नेह इतना व्यापक है कि इतना दूर होते हुए भी वह माँ की ममता को महसूस कर सकता है। अगर उसे लिखना आता तो वह अपने पुत्र के लिए पत्र अवश्य लिखती । पर उसे लिखना पढ़ना नहीं आता इसलिए कवि माँ के पत्र से वंचित रहता है।
कवि अपने पिता को याद कर रहा है । वो कहता है कि उसके पिता बुढ़ापे से बिलकुल दूर हैं। उनको एक पल को बुढ़ापा नहीं आया। वो अभी भी बिलकुल स्वस्थ हैं और दौड़ लगाने में सक्षम हैं और खिलखिलाते रहते हैं।
कवि के पिता बहुत साहसी हैं, वो न तो मौत से डरते हैं न ही शेर से , उनके स्वर में बादलों जैसी गर्जना है और उनके काम तूफान से भी तेज़ हैं।
आज गीता पाठ करके,
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर,
मूठ उनकी मिला लेकर,
जब कि नीचे आए होंगे,
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है,
घर नज़र में तिर रहा है,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिने,
खेलते या खड़े होंगे,
नज़र उनको पड़े होंगे।
पिताजी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवे का नाम लेकर,
घर की याद व्याख्या: प्रस्तुत काव्यान्श में कवि अपने पिता को याद करके कहता है कि आज जब उसके पिता गीता पाठ करके और दो सौ साठ दंडबैठक लगा के, फिर मुगदर को हाथों से हिला कर और मूठों को मिला कर नीचे आए होंगे तब उसे याद कर के उनके आँखों में आँसू आ गए होंगे।
चारों भाई और चारों बहनों को साथ देखा होगा उन्होंने , जिस पिताजी को एक पल भी बुढ़ापा नहीं आया वो अपने पांचवे पुत्र को याद कर के रो पड़े होंगे।
पाँचवाँ हूँ मैं अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा,
पिता जी कहते रहें है,
प्यार में बहते रहे हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे,
क्योंकि मैं उन पर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा,
घर की याद व्याख्या: सावन की तेज़ बारिश में कवि अपने परिजनों को याद कर रहा है। कवि अपने पिता के प्रेम को याद कर रहा है । वह कहता है कि मैं तो अभागा हूँ , मुझे पिताजी सोने पे सुहागा कहते हैं, कितना ज्यादा प्रेम करते हैं, आज उन्हें अपने सोने जैसे बेटे तुच्छ लग रहे होंगे क्योंकि मैं उनका सोने पे सुहागा बेटा तो यहाँ इतनी दूर जेल में बंधा बैठा हूँ।
और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किसलिए पानी,
वहाँ अच्छा है भवानी,
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,
घर की याद व्याख्या: कवि इन पंक्तियों में कह रहा है कि जब पिताजी पुत्र वियोग में भावुक होकर रोये होंगे तब माँ ने उन्हें संभाला होगा और रोते हुए समझाया होगा कि भवानी तो बिलकुल ठीक है वहाँ , आँसू क्यों बहाते हो।
तुम्हारा ही तो बेटा है तुमपर ही गया है। तुम्हारी ईक्षाओं का सम्मान करता है , तुम्हारे ही तो संस्कार हैं उसमें। गया है तो अच्छा ही है , अगर पीछे मुड़ जाता तो मेरी कोख का अपमान करता । ऐसे आँसू मत बहाओ , अगर तुम ऐसे कमजोर पड़ जाओगे तो बच्चों को कौन संभालेगा , वे भी रो पड़ेंगे।
पिताजी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता, कहाँ हूँ,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवे को वे न तरसें,
मैं मज़े में हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किन्तु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से सब विरस है
घर की याद व्याख्या: इन पंक्तियों में कवि कहता है कि पिताजी ने सारे आंसुओं में समेट कर कहा होगा कि मैं कहाँ रो रहा हूँ मैं तो बिलकुल ठीक हूँ ।
कवि सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम स्वयं चाहे जितना बरस लो पर उनकी आँखों में आँसू न आने देना और ध्यान रखना कि वो अपने पांचवे पुत्र को याद कर के दुःखी न हों ।
उनको बताना कि मैं घर से दूर हूँ पर सुख से हूँ मजे में हूँ। वैसे यह दुःख छोटा दिखता है पर असल में ये तो बहुत ही बड़ा दुख है इसके कारण सब नीरस लगता है।
किन्तु उनसे यह न कहना,
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ,
काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते है लोग, कहना,
मत करो कुछ शोक कहना,
घर की याद व्याख्या: प्रस्तुत काव्यान्श हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-1’ में संकलित कविता ‘घर की याद’ से उद्धृत है। इसके रचयिता हैं भवानी प्रसाद मिश्र । यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गयी। सावन की एक रात तेज़ बारिश हो रही है और कवि को अपने परिजनों की बहुत याद आ रही है।
इन पंक्तियों में कवि सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम उनको मेरे दुःख के बारे मे कुछ मत बताना । सच तो यह है कि मैं यहाँ अत्यंत दुःखी हूँ पर तुम उनसे यह बात मत कहना बल्कि उनको धीरज धराते रहना।
उनसे कहना कि मैं यहाँ लिखता हूँ , पढ़ता हूँ , काम भी करता हूँ और यहाँ तो मेरा बहुत नाम है लोग मुझे यहाँ बहुत चाहते हैं। उनसे कहना कि वो खुश रहें और मुझे याद कर के दुःखी न हो।
और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वज़न सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दुख डट कर झेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,
घर की याद व्याख्या: कवि इन पंक्तियों में सावन को संबोधित करते हुए अपने माता – पिता को संदेश देने के लिए कह रहा है। वो कहता है कि तुम उनसे कहना कि मैं यहाँ बिलकुल मजे में हूँ।
यहाँ मैं सूत कातने का काम करता हूँ। मैं पेट भर के खूब सारा खाना खाता हूँ और मेरा वजन भी बढ़ के सत्तर किलो हो गया है। खेलता कूदता रहता हूँ और दुःखों का सामना डट कर करता हूँ।
उनसे कहना कि मैं बिलकुल मस्त हूँ और मेरे निराशा के बारे में उनको कुछ भी न बताना।
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,
कह न देना मौन हूँ मैं,
ख़ुद न समझूँ कौन हूँ मैं,
देखना कुछ बक न देना,
उन्हें कोई शक न देना,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसे,
पाँचवें को वे न तरसें।
घर की याद व्याख्या: कवि ने इन पंक्तियों में सावन को संबोधित करते हुए अपने माता पिता को संदेश पहुंचाने की बात कही है। कवि सावन से कहता है कि जो मैंने तुझे उनसे कहने के लिए कहा है तुम उनसे बस वही कहना, उनको सच्चाई नहीं बता देना।
उनसे मेरे रातभर जागने की बातें मत बताना। अकेला रहता हूँ लोगों से दूर भागता हूँ यह भी मत बताना। उनसे यह मत कह देना कि अब मैं पहले की तरह बातूनी नहीं रहा चुप सा हो गया हूँ और अब खुद को भी पहचान नहीं पाता हूँ।
देखो सावन तुम यह सब मत बोल बैठना उनके पास वरना उनको शक हो जाएगा और वो दुःखी होते रहेंगे। हे सावन तुम चाहे जितना भी बरस लो पर उनकी आँखों से आँसू न बहने देना और उन्हें अपने पांचवे लाडले के लिए तरसने न देना।
घर की याद में कविता में कवि क्या कहना चाहता है?
घर की याद कविता से क्या प्रेरणा मिलती है?
घर की याद कविता में कौन किसे याद कर रहा है?
घर की याद कविता के कवि का क्या नाम है?