हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ । मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।। जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण... Posted by Deepak Prakash on Wednesday, June 10, 2020अनुभूति में राम प्रसाद बिस्मिल की रचनाएँ- अंजुमन में- संकलन में- हे मातृभूमि तेरे चरणों में हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ। हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में सिर नवाऊँ । मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ । माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला; जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ । जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे ; उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ । माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर; करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ । सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर; वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ । तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊँ । मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ ।
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देशभक्ति गीत से अभिप्राय : देशभक्ति गीत किसी देश की अस्मिता होते हैं जिन के माध्यम से राष्ट्र को सर्वोपरि स्थान दिया जाता है। इन गीतों की प्रमुखता होती है की इनमे राष्ट्र रस और देशभक्ति की भावना जाग्रत करने के लिए रचा जाता है। राष्ट्रिय पर्व, राजनैतिक कारकर्मों, अन्यदेशों में देश का प्रतिनिधित्व जैसे ओलम्पिक गेम्स और अन्य खेल प्रतियोगिताओ में इसे बजाया जाता है ये राष्ट्र गान के बाद बजाया जाता है। कवी प्रदीप, सुमित्रानंदन पंत, गिरिजाकुमार माथुर के देशभक्ति गीत काफी प्रचलित हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के समय से ही देशभक्ति गीत और कविताओं ने लोगों में जोश भरा है।
हिंदी सिनेमा ने देशभक्ति फिल्मों के माध्यम से इस क्षेत्र में विशेष कार्य किया है। टीवी का भी इस क्षेत्र में अहम् योगदान दिया है। दूरदर्शन के समय देशभक्ति गीत, सांप्रदायिक एकता को प्रदर्शित करने के लिए चलाये जाते थे जो लोगों की जुबान पर रहते थे। जैसे सुन सुन मेरे मुन्ने सुन, प्यार की गंगा बहे, देश में एक रहे। इसके साथ ही "मिले सुर मेरा तुम्हारा", "बजे सरगम हर तरफ से", "हिन्द देश के निवासी सब जन एक हैं", "हम सब एक हैं ", "झंडा ऊँचा रहे हमारा" आदि गीतों ने एक अमित छाप छोड़ी है। सिनेमा ने देशभक्ति गीतों को एक नया आयाम दिया है। १९४८ में फिल्म शहीद ने लोगों में देशभक्ति की भावना को जाग्रत कर दिया था। फिल्म जगत से जुड़े कवी प्रदीप ने "ए मेरे वतन के लोगों " की रहना चीन युद्ध के बाद की गयी। कवी प्रदीप की इस रचना को सर्वप्रथम लता मगेशकर ने गाय जिसे सुन कर जवाहर लाल नेहरू के आखों में पानी आ गया था। आज भी स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर यदि यह गीत ना बजाया जाय तो कुछ अधूरा सा रहता है। १९६७ में प्रदर्शित उपकार फिल्म का एक गीत जो काफी प्रसिद्ध हुआ वो था " मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हिरे मोती " लोगों की जुबान पर चढ़ गया था और आज भी विशेष अवसरों पर इसे प्रदर्शित किया जाता है जिसने पुरे देश को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया। इसके अलावा "जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करे बसेरा ", "अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं ", "दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना धाल , मेरा रंग दे बसंती चोला आदि गीतों ने देशभक्ति की भावना को लोगों में प्रसारित करने में अहम् भूमिका निभाई है। Saroj Jangir : Lyrics Pandits |