NCERT Solutions for Class 8 Social Science History: Our Pasts – III (इकाई 1: इतिहास – हमारे अतीत – III) Chapter 6. उपनिवेशवाद और शहरClass 8 History questions with answers for all excercise of History ncert books in hindi medium chater wise solutions quick revision keypoints and additional question with solutions also categorised into short answered question with answer also long answered questions with answers. History 6. उपनिवेशवाद और शहर Class-8 अभ्यास-प्रश्नोत्तर- Apurva NCERT Solutions for Class 8 History in hindi medium chapter 6. उपनिवेशवाद और शहर . Well illustrated example and easy solution for ncert book. NCERT Class 8 chapter 6. maths exercise -If you are preparing for your upcoming exams you should prepare by CBSE and NCERT study materials: NCERT Solution:
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NCERT Solutions For Class 8 इतिहास (हमारे अतीत – III) Chapter 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक अध्याय के सभी प्रश्नों के उत्तरप्रश्न 1. यूरोप में किस तरह के कपड़ों की भारी माँग थी? उत्तर- यूरोप में छापेदार भारतीय सूती कपड़ों की भारी माँग थी। आकर्षक फूल-पत्तियों, बारीक रेशे और सस्ती कीमत की वजह से भारतीय कपड़े का एक अलग ही रुतबा था। इंग्लैंड के अमीर लोग ही नहीं बल्कि स्वयं महारानी भी भारतीय कपड़ों से बने परिधान पहनती थी। प्रश्न 2. जामदानी क्या है ? उत्तर- जामदानी एक प्रकार का बारीक मलमल होता है जिस पर करघे में सजावटी चिह्न बुने जाते हैं। इनका रंग प्रायः सलेटी और सफेद होता है। आमतौर पर सूती और सोने के धागों का प्रयोग किया जाता था। ढाका और लखनऊ जामदानी बुनने के दो प्रसिद्ध केंद्र थे। प्रश्न 3. बंडाना क्या है? उत्तर- बंडाना शब्द का प्रयोग गले या सिर पर पहनने वाले चटक रंग के छापेदार गुलूबन्द के लिए किया जाता है। यह शब्द हिंदी के ‘बाँधना’ शब्द से निकला है। इस श्रेणी में चटक रंगों वाले ऐसी बहुत सारी किस्म के कपड़े आते थे जिन्हें बाँधने और रँगसाज़ी की विधियों से ही बनाया जाता था। प्रश्न 4. अगरिया कौन होते हैं? उत्तर- अगरिया उन लोगों का समुदाय है जो बिहार तथा मध्य भारत के गाँवों में रहते हैं। ये लोग लोहे को पिघलाने की शिल्प कला में बहुत माहिर हैं। 19वीं सदी के अंत तक बिहार और मध्य भारत में लौह-प्रगलन का कार्य काफी प्रगति पर था और अगरिया लोग इस कार्य में लगे हुए थे। भारत में लौह-इस्पात उद्योगों की स्थापना के बाद अगरिया समुदाय लौह प्रगलन का कार्य छोड़कर औद्योगिक मजदूर बन गया। प्रश्न 5. रिक्त स्थान भरें : (क) अंग्रेज़ी का शिंट्रज शब्द हिंदी के ……………. शब्द से निकला है। उत्तर- (क) छींट, (ख) वुट्ज़, (ग) उन्नीसवीं। प्रश्न 6. विभिन्न कपड़ों के नामों से उनके इतिहासों के बारे में क्या पता चलता है? उत्तर- विभिन्न कपड़ों के नाम निम्नलिखित प्रकार से उनके इतिहास के बारे में बताते हैं (1) मलमल-यह भारत से आया बारीक सूती कपड़ा था, जिसे यूरोप के व्यापारियों ने सबसे पहले ईराक के मोसूल शहर में अरब व्यापारियों के पास देखा। इसी आधार पर वे इसे मस्लिन कहने लगे। (2) कैलिको अंग्रेज़ कालीकट से मसालों के साथ-साथ कपड़ा भी लेते थे। अतः कालीकट से निकले कपड़े को वे “कैलिको” कहने लगे। बाद में हर तरह के सूती कपड़े को कैलिको ही कहा जाने लगा। (3) शिंट्ज-यह शब्द हिंदी के छींट शब्द से निकला है। यह रंगीन फूल-पत्तियों वाला छोटे-छापे का कपड़ा होता था। (4) बंडाना यह शब्द हिंदी के बाँधना शब्द से निकला है। इसका प्रयोग गले या सिर पर पहनने वाले चटक रंग के छापेदार गुलूबन्द के लिए किया जाता था। (5) दूसरी तरह के कपड़ों का भी जिक्र है जिनका नाम उनके जन्म स्थान के अनुसार लिखा गया है : कासिमबाज़ार, पटना, कलकत्ता, उड़ीसा, चारपूर आदि। इन शब्दों के प्रयोग से पता चलता है कि विश्व के विभिन्न भागों में भारतीय कपड़े कितने प्रसिद्ध हो चुके थे। प्रश्न 7. इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध क्यों किया था ? उत्तर- अठारहवीं सदी के आरंभ तक आते-आते भारतीय कपड़े की लोकप्रियता से बेचैन इंग्लैंड के रेशम व ऊन निर्माता भारतीय कपड़ों के आयात का विरोध करने लगे थे। इसी दबाव के कारण 1720 में ब्रिटिश सरकार ने इंग्लैंड में छापेदार सूती कपड़ेछींट के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए एक कानून पारित कर दिया। प्रश्न 8. ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर किस तरह के प्रभाव पड़े? उत्तर- ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े (2) भारत से इंग्लैंड को कपड़े का निर्यात मुश्किल होता जा रहा था क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने भारत से आने वाले कपड़े पर भारी सीमा शुल्क थोप दिए थे। (3) इंग्लैंड में बने सूती कपड़े ने उन्नीसवीं सदी के आरंभ तक भारतीय कपड़े को अफ्रीका, अमेरिका और यूरोप के परंपरागत बाज़ारों से बाहर कर दिया था। इसकी वजह से हमारे यहाँ के हज़ारों बुनकर बेरोज़गार हो गए। (4) ब्रिटिश तथा यूरोपीय कंपनियों ने भारतीय माल खरीदने बंद कर दिए और उनके एजेंटों ने तयशुदा आपूर्ति के लिए बुनकरों को पेशगी देना बंद कर दिया था। परेशान बुनकरों ने सहायता के लिए बार-बार सरकार से पुकार की। प्रश्न 9. उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ? उत्तर- उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग के पतन के कारण निम्नलिखित थे (2) करों में वृद्धि कुछ क्षेत्रों में सरकार ने जंगलों में आने-जाने की आज्ञा दे दी थी। लेकिन प्रगालकों को अपनी प्रत्येक भट्ठी के लिए वन विभाग को भारी कर चुकाने पड़ते थे जिससे उनकी आय कम हो जाती थी। (3) इंग्लैंड से लोहे का आयात-उन्नीसवीं सदी के अंत तक ब्रिटेन से लोहे तथा इस्पात का आयात भी होने लगा था। भारतीय लुहार भी घरेलू बर्तन और औज़ार आदि बनाने के लिए आयातित लोहे का प्रयोग करने लगे थे। इसी कारण से स्थानीय प्रगालकों द्वारा बनाए जा रहे लोहे की माँग कम होने लगी। (4) उद्योगों की स्थापना-बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में भारत में भी नए लौह-इस्पात उद्योगों की स्थापना हो गई थी जिनमें मशीनों की सहायता से लोहे का प्रगलन किया जाता था। प्रश्न 10. भारतीय वस्त्रोद्योग को अपने शुरुआती सालों में किन समस्याओं से जूझना पड़ा? उत्तर- भारतीय वस्त्रोद्योग को अपने शुरुआती सालों में निम्नलिखित समस्याओं से जूझना पड़ा (1) ब्रिटिश कपड़े के साथ प्रतियोगिता अपने आरंभिक सालों में भारतीय वस्त्रोद्योग के सामने एक प्रमुख समस्या यह थी कि इसे इंग्लैंड से आए कम कीमत के साथ प्रतियोगिता करनी पड़ी जो कि इसके लिए बहुत घाटे वाली रही। (2) ब्रिटिश नीतियाँ अधिकतर देशों की सरकारें अपने देश में आयातित वस्तुओं पर सीमा-शुल्क लगाकर अपने देश के उद्योगों को संरक्षण प्रदान करती थी लेकिन भारत में सत्तासीन ब्रिटिश सरकार ने आयातित माल पर कोई सीमा-शुल्क नहीं लगाया इससे भारतीय वस्त्रोद्योग को बहुत क्षति हुई। (3) लेकिन प्रथम विश्व युद्ध (1914) के समय में जब ब्रिटेन से भारत में कपड़े के आयात में कमी आई तो भारतीय वस्त्रोद्योग को अधिक उत्पादन करने का प्रोत्साहन मिला। प्रश्न 11. पहले महायुद्ध के दौरान अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में टिस्को को किस बात से मदद मिली? उत्तर- टिस्को कारखाने की स्थापना 1912 में जमशेदपुर में हुई थी। टिस्को कारखाने की स्थापना बहुत सही समय पर हुई थी। जब तक टिस्को की स्थापना हुई, हालात बदलने लगे थे। 1914 में पहला विश्व युद्ध आरंभ हुआ। ब्रिटेन में बनने वाले इस्पात को यूरोप में युद्ध संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए झोंक दिया गया। इस प्रकार भारत आने वाले ब्रिटिश स्टील की मात्रा में भारी गिरावट आई और रेल की पटरियों के लिए भारतीय रेलवे टिस्को पर निर्भर हो गया। जब युद्ध लंबा खिंच गया तो टिस्को को युद्ध के लिए गोलों के खोल और रेलगाड़ियों के पहिये बनाने का काम भी दे दिया गया। 1919 तक स्थिति यह हो गई थी कि टिस्को में बनने वाले 90 प्रतिशत इस्पात को औपनिवेशिक सरकार ही खरीद लेती थी। जैसे-जैसे समय बीता टिस्को पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में इस्पात का सबसे बड़ा कारखाना बन चुका था। प्रश्न 12. जहाँ आप रहते हैं उसके आस-पास प्रचलित किसी हस्तकला का इतिहास पता लगाएँ। इसके लिए आप दस्तकारों के समुदाय, उनकी तकनीक में आए बदलावों और उनके बाज़ारों के बारे में जानकारियाँ इकट्ठा कर सकते हैं। देखें कि पिछले 50 साल के दौरान इन चीजों में किस तरह बदलाव आए हैं ? उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करें। Pages: 1 2 |