हमारे राज्य में औद्योगिक मजदूरों के हित में क्या कानून हैं पता कीजिये और उनके बारे में एक प्रदर्शनी तैयार कीजिए? - hamaare raajy mein audyogik majadooron ke hit mein kya kaanoon hain pata keejiye aur unake baare mein ek pradarshanee taiyaar keejie?

श्रम सन्नियमन या श्रम कानून (Labour law या employment law) किसी राज्य द्वारा निर्मित उन कानूनों को कहते हैं जो श्रमिक (कार्मिकों), रोजगारप्रदाताओं, ट्रेड यूनियनों तथा सरकार के बीच सम्बन्धों को पारिभाषित करतीं हैं।

औद्योगिक सन्नियम का आशय उस विधान से है जो औद्योगिक संस्थानों, उनमें कार्यरत श्रमिकों एवं उद्योगपतियों पर लागू होता है। इसे हम दो भागों में बांट सकते हैं अखिलेश पाण्डेय केंद्रीय इलाहाबाद विश्वविद्यालय

  • उद्योग एवं श्रम सम्बन्धी विधान (Legislation pertaining to Factory and Labour), तथा
  • सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान (Legislation pertaining to Social Security)

उद्योग तथा श्रम सम्बन्धी विधान में से वे सब अधिनियम आते हैं जो कारखाने तथा श्रमिकों के काम की दशाओं का नियमन (रेगुलेशन) करते हैं तथा कारखानों के मालिकों और श्रमिकों के दायित्व का उल्लेख करते हैं। कारखाना अधिनियम, 1948, औद्योगिक संघर्ष अधिनियम, 1947, भारतीय श्रम संघ अधिनियम, 1926, भृति-भुगतान अधिनियम, 1936, श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 इत्यादि उद्योग तथा श्रम सम्बन्धी विधान की श्रेणी में आते हैं।

सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान के अन्तर्गत वे समस्त अधिनियम आते हैं जो श्रमिकों के लिए विभिन्न सामाजिक लाभों- बीमारी, प्रसूति, रोजगार सम्बन्धी आघात, प्रॉविडेण्ट फण्ड, न्यूनतम मजदूरी इत्यादि-की व्यवस्था करते हैं। इस श्रेणी में कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948, कर्मचारी प्रॉविडेण्ट फण्ड अधिनियम, 1952, न्यूनतम भृत्ति अधिनियम, 1948, कोयला, खान श्रमिक कल्याण कोष अधिनियम, 1947, भारतीय गोदी श्रमिक अधिनियम, 1934, खदान अधिनियम, 1952 तथा मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 इत्यादि प्रमुख हैं। भारत में वर्तमान में 128 श्रम तथा औद्योगिक विधान लागू हैं।

वास्तव में श्रम विधान सामाजिक विधान का ही एक अंग है। श्रमिक समाज के विशिष्ट समूह होते हैं। इस कारण श्रमिकों के लिये बनाये गये विधान, सामाजिक विधान की एक अलग श्रेणी में आते हैं। औद्योगगीकरण के प्रसार, मजदूरी अर्जकों के स्थायी वर्ग में वृद्धि, विभिन्न देशों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में श्रमिकों के बढ़ते हुये महत्व तथा उनकी प्रस्थिति में सुधार, श्रम संघों के विकास, श्रमिकों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता, संघों श्रमिकों के बीच शिक्षा के प्रसार, प्रबन्धकों और नियोजकों के परमाधिकारों में ह्रास तथा कई अन्य कारणों से श्रम विधान की व्यापकता बढ़ती गई है। श्रम विधानों की व्यापकता और उनके बढ़ते हुये महत्व को ध्यान में रखते हुये उन्हें एक अलग श्रेणी में रखना उपयुक्त समझा जाता है।

सिद्धान्तः श्रम विधान में व्यक्तियों या उनके समूहों को श्रमिक या उनके समूह के रूप में देखा जाता है।आधुनिक श्रम विधान के कुछ महत्वपूर्ण विषय है - मजदूरी की मात्रा, मजदूरी का भुगतान, मजदूरी से कटौतियां, कार्य के घंटे, विश्राम अंतराल, साप्ताहिक अवकाश, सवेतन छुट्टी, कार्य की भौतिक दशायें, श्रम संघ, सामूहिक सौदेबाजी, हड़ताल, स्थायी आदेश, नियोजन की शर्ते, बोनस, कर्मकार क्षतिपूर्ति, प्रसूति हितलाभ एवं कल्याण निधि आदि है। अखिलेश पाण्डेय केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद।

श्रम कानून के उद्देश्य[संपादित करें]

श्रम विधान के अग्रलिखित उद्देश्य है -

  • 1. औद्योगिक के प्रसार को बढ़ावा देना,
  • 2. मजदूरी अर्जकों के स्थायी वर्ग में उपयुक्त वृद्धि करना,
  • 3. विभिन्न देशों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में श्रमिकों के बढ़ते हुये महत्व तथा उनकी प्रस्थिति में सुधार को देखते हुये स्थानीय परिदृश्य में लागू कराना,
  • 4. श्रम संघों का विकास करना,
  • 5. श्रमिकों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना,
  • 6. संघों श्रमिकों के बीच शिक्षा के प्रसार को बढ़ावा देना,

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भारतीय श्रम कानून

छत्तीसगढ़ राज्य में औद्योगिक मजदूरों के हित में क्या कानून है?

छत्तीसगढ़ औद्योगिक संबंध अधिनियम 1960 की धारा 31 के अंतर्गत कोई भी नियोजक, अथवा कर्मचारियों का कोई भी प्रतिनिधि किसी औद्योगिक विषय में परिवर्तन के संबंध में कोई सूचना/विवाद सुलह अधिकारी को दे सकता है। ऐसी सूचना प्राप्त होने पर क्षेत्रीय सुलह अधिकारी विवाद को हस्तगत कर सुलह की कार्यवाही सम्पादित करता है।

श्रम की परिभाषा क्या है?

श्रम विधानों की व्यापकता और उनके बढ़ते हुये महत्व को ध्यान में रखते हुये उन्हें एक अलग श्रेणी में रखना उपयुक्त समझा जाता है। सिद्धान्तः श्रम विधान में व्यक्तियों या उनके समूहों को श्रमिक या उनके समूह के रूप में देखा जाता है।

भारत सरकार द्वारा श्रम अधिनियम कब बनाया गया था?

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 (Minimum Wages Act, 1948) भारत की संसद द्वारा पारित एक श्रम कानून है जो कुशल तथा अकुशल श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी का निर्धारण करता है।

भारत में कुल कितने श्रम अधिनियम है?

श्रम (Labour) सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में एक विषय है, इसलिये केंद्र और राज्य दोनों को श्रम संबंधी मुद्दों पर कानून बनाने की अनुमति मिलती है। वर्तमान में, केंद्र सरकार के दायरे में 44 और राज्य सरकार के तहत 100 से अधिक श्रम कानून हैं, जो कई श्रम मुद्दों का समाधान करते हैं।