स्टोरी हाइलाइट्स
- 1949 से हिंदी है भारत की राजभाषा
- हर साल 14 सितंबर को होता है हिंदी दिवस
Is Hindi our National Language: सोशल मीडिया आजकल देशवासियों का पसंदीदा जंग का मैदान बना हुआ है. साउथ फिल्मों के एक्टर किच्चा सुदीप ने हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा न होने की बात कही तो बॉलिवुड के हीरो अजय देवगन ने ट्विटर पर ही उनकी क्लास लगा दी. हालांकि, दोनो सितारों के बीच कोई भी विवाद बढ़ने से पहले ही आपस में सुलह हो गई मगर सोशल मीडिया पर यह डिबेट शुरू हो गई कि क्या हिंदी हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा है या नहीं? इसे लेकर देश का संविधान क्या कहता है और किस भाषा को राष्ट्रभाषा होने की आधिकारिक मान्यता है? आइये जानते हैं क्या है देश की आधिकारिक राष्ट्रभाषा.
हिंदी नहीं है राष्ट्रभाषा
भारत एक विविधताओं का देश है और यही इसकी सबसे बड़ी पहचान है. यहां अनेक भाषाएं और बोलियां बोली, लिखी और पढ़ी जाती हैं. ऐसे में किसी भी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है. भारत की एक बड़ी
आबादी हिंदी भाषी है मगर बड़ी संख्या में लोग हिंदी न बोलते हैं न समझते हैं. न ही सभी को एक राष्ट्रभाषा सीखने और बोलने की कोई बाध्यता है.
फिर 14 सितंबर को क्यों होता है हिंदी दिवस?
अपनी विभिन्नताओं के चलते भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है मगर सरकारी दफ्तरों में कामकाज के लिए एक भाषाई आधार बनाने के लिए हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है. संविधान के भाग 17 में इससे संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान भी किए गए हैं.
हिंदी कब बनी
राजभाषा?
हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को मिला. इसके बाद 1953 से राजभाषा प्रचार समिति द्वारा हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस का आयोजन किया जाने लगा.
राजभाषा पर क्या कहता है देश का संविधान?
भारत के संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343(1) में कहा गया है कि राष्ट्र की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागिरी होगी.
किसे कहते हैं मातृभाषा?
मातृभाषा वह भाषा है जो हम जन्म के साथ सीखते हैं. जहां हम पैदा होते है, वहां बोली जाने
वाली भाषा खुद ही सीख जाते हैं. आसान भाषा में समझें तो जो भाषा हम जन्म के बाद सबसे पहले सीखते हैं, उसे ही अपनी मातृभाषा मानते हैं.
अभी तक देश में किसी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल नहीं है सभी भाषाओं और एक समान सम्मान और आदर मिला हुआ है. देशवासी पूरे देश में अपनी मातृभाषा बोलने, लिखने और पढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं. इस मौके पर भारतेंदु हरिशचंद्र की प्रसिद्द कविता हमें जरूरी याद करनी चाहिए-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को
सूल
ये भी पढ़ें
- CBSE Term 2 एग्जाम रिपोर्टिंग टाइम के संबंध में वायरल हुआ नोटिस, बोर्ड ने बताया फेक
- KVS एडमिशन के लिए नई गाइडलाइंस जारी, खत्म किया गया सांसद कोटा
संविधान सभा ने लम्बी चर्चा के बाद 14 सितम्बर सन् 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा स्वीकारा गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये 14 सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यातव्य है कि भारतीय संविधान में राष्ट्रभाषा का उल्लेख नहीं है।
14 सितम्बर की शाम को संविधान सभा में हुई बहस के समापन के बाद जब संविधान का भाषा सम्बन्धी तत्कालीन भाग 14 क और वर्तमान भाग 17, संविधान का भाग बन गया तब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने भाषण में बधाई के कुछ शब्द कहे। उन्होंने कहा, "आज पहली ही बार ऐसा संविधान बना है जब कि हमने अपने संविधान में एक भाषा रखी है, जो संघ के प्रशासन की भाषा होगी। इस अपूर्व अध्याय का देश के निर्माण पर बहुत प्रभाव पड़ेगा"। उन्होंने इस बात पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की कि संविधान सभा ने अत्यधिक बहुमत से भाषा-विषयक प्रावधानों को स्वीकार किया। अपने वक्तव्य के उपसंहार में उन्होंने जो कहा वह अविस्मरणीय है। उन्होंने कहा, यह मानसिक दशा का भी प्रश्न है जिसका हमारे समस्त जीवन पर प्रभाव पड़ेगा। हम केन्द्र में जिस भाषा का प्रयोग करेंगे उससे हम एक-दूसरे के निकटतर आते जाएँगे। आख़िर अंग्रेज़ी से हम निकटतर आए हैं, क्योंकि वह एक भाषा थी। अब उस अंग्रेज़ी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है। इससे अवश्यमेव हमारे संबंध घनिष्ठतर होंगे, विशेषतः इसलिए कि हमारी परम्पराएँ एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि या तो इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासम्भव बुद्धिमानी का कार्य किया है और मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी संतति इसके लिए हमारी सराहना करेगी।[1]
संविधान की धारा 343(1) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी है। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है। किन्तु इसके साथ संविधान में यह भी व्यवस्था की गई कि संघ के कार्यकारी, न्यायिक और वैधानिक प्रयोजनों के लिए 1965 तक अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहे। तथापि यह प्रावधान किया गया था कि उक्त अवधि के दौरान भी राष्ट्रपति कतिपय विशिष्ट प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग का प्राधिकार दे सकते हैं।
संसद का कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति या लोकसभा के अध्यक्ष विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकते हैं (संविधान का अनुच्छेद 120)। किन प्रयोजनों के लिए केवल हिन्दी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है, और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अन्तर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मन्त्रालय की ओर से जारी किए गए निर्देशों द्वारा निर्धारित किया गया है।
हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य[संपादित करें]
यद्यपि भारत एक बहुभाषायी देश था किन्तु बहुत लम्बे काल से हिन्दी या उसका कोई स्वरूप इसके बहुत बड़े भाग पर सम्पर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त होता था। भक्तिकाल में उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक अनेक सन्तों ने हिन्दी में अपनी रचनाएँ कीं। स्वतंत्रता आन्दोलन में हिन्दी पत्रकारिता ने महान भूमिका अदा की। राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, सुब्रह्मण्य भारती आदि अनेकानेक लोगों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने का सपना देखा था।
महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूंप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ‘राजभाषा’ के निम्नलिखित लक्षण बताए थे-
- (१) प्रयोग करने वालों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।
- (२) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए।
- (३) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।
- (४) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।
- (५) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।
भारत के सन्दर्भ में, इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है।
अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा[संपादित करें]
- (१) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
- (२) खण्ड (१) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारम्भ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था, परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
- (३) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्, विधि द्वारा
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं।
अनुच्छेद 351 हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश[संपादित करें]
संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।
राजभाषा अधिनियम[संपादित करें]
1963 में राजभाषा अधिनियम अधिनियमित किया गया। अधिनियम में यह व्यवस्था भी थी कि केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्यों से पत्राचार में अंग्रेजी के प्रयोग को उसी स्थिति में समाप्त किया जाएगा जबकि सभी अहिंदी भाषी राज्यों के विधान मण्डल इसकी समाप्ति के लिए संकल्प पारित कर दें और उन संकल्पों पर विचार करके संसद के दोनों सदन उसी प्रकार के संकल्प पारित करें। अधिनियम में यह भी व्यवस्था थी कि अन्तराल की अवधि में कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाए और कुछ अन्य प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी दोनों का प्रयोग किया जाए। [2]
सन् 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। इसमें भी १९८७, २००७ तथा २०११ में कुछ संशोधन किए गए।[3]
राजभाषा संकल्प, 1968[संपादित करें]
भारतीय संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) ने १९६८ में 'राजभाषा संकल्प' के नाम से निम्नलिखित संकल्प लिया-[4]
- 1. जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी भाषा का प्रसार, वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है :
- 2. जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 22 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है , और देश की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाए किए जाने चाहिए :
- 3. जबकि एकता की भावना के संवर्धन तथा देश के विभिन्न भागों में जनता में संचार की सुविधा हेतु यह आवश्यक है कि भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से तैयार किए गए त्रि-भाषा सूत्र को सभी राज्यों में पूर्णत कार्यान्वित करने के लिए प्रभावी किया जाना चाहिए :
- 4. और जबकि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों के लोगों के न्यायोचित दावों और हितों का पूर्ण परित्राण किया जाए
राजभाषा/हिन्दी समितियाँ[संपादित करें]
केन्द्रीय हिन्दी समिति[संपादित करें]
हिन्दी सलाहकार समिति[संपादित करें]
केन्द्रीय सरकार के एक निर्णय के अनुसार राजभाषा नीति का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने और इस सम्बन्ध में आवश्यक सलाह देने के लिए जनता के साथ अधिक सम्पर्क में आने वाले मंत्रालयों/ विभागों में हिन्दी सलाहकार समितियाँ गठित करने का सुधाव दिया गया था। इस निर्णय के अनुसार अब तक 27 मंत्रालयों में हिन्दी सलाहकार समितियों का गठन किया गया है। इन समितियों में संसद सदस्यों तथा हिन्दी विद्वानों के अतिरिक्त मंत्रालय विशेष के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होते हैं। सम्बन्धित मन्त्री इसके अध्यक्ष होते हैं।
इन समितियों का गठन केन्द्रीय हिन्दी समिति (जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं) की सिफारिश के आधार पर बनाए गए मार्गदर्शी सिद्धान्तों के अनुसार किया जाना अपेक्षित होता है। ये समितियाँ अपने-अपने मंत्रालयों/विभागों/उपक्रमों में हिन्दी की प्रगति की समीक्षा करती हैं, विभाग में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने के तरीके सोचती हैं और राजभाषा नीति के अनुपालन के लिए ठोस कदम उठाती हैं। नियमानुसार इनकी बैठकें 3 महीने में एक बार अवश्य होनी चाहिए।
संसदीय राजभाषा समिति[संपादित करें]
केन्द्रीय राजभाषा कार्यान्यवन समिति[संपादित करें]
यह समिति सभी मंत्रालयों/विभागों की कार्यान्वयन समितियों में समन्वय का कार्य करती है। राजभाषा विभाग के सचिव तथा भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार इसके अध्यक्ष होते हैं। मंत्रालयों/विभागों में राजभाषा हिंदी का कार्य देख रहे प्रभारी अधिकारी (संयुक्त सचिव पद के समान) तथा मंत्रालयों में राजभाषा का कार्य सम्पादन करने वाले निदेशक तथा उपसचिव इसके पदेन सदस्य होते हैं। यह समिति, राजभाषा अधिनियमों के उपबंधों तथा गृह मंत्रालय द्वारा समय-समय पर जारी किये गये अनुदेशों के कार्यान्वयन में हुई प्रगति का पुनरीक्षण करती है और उनके अनुपालन में आयी कठिनाइयों के निराकरण के उपायों पर विचार करती है। इस समिति की बैठक का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है।
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति[संपादित करें]
यह राजभाषा विभाग द्वारा निर्मित समिति होती है जो नगर स्तर पर राजभाषा कार्यान्वय सम्बन्धी कार्य देखती है। सन् 1976 के एक आदेश के अनुसार इनका गठन किया गया। बड़े-बड़े नगरों में जहाँ केन्द्रीय सरकार के दस या उससे अधिक कार्यालय हैं, वहाँ नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों (नराकास) का गठन किया गया। समिति का गठन राजभाषा विभाग के क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर भारत सरकार के राजभाषा सचिव द्वारा किया जाता है।
इसकी बैठकें वर्ष में दो बार होती हैं। इनकी अध्यक्षता नगर के वरिष्ठतम अधिकारी करते हैं। इन समितियों में नगर में स्थित सभी केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों, उपक्रमों तथा बैंकों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं। वे अपने-अपने कार्यालयों की तिमाही प्रगति रिपोर्ट की समीक्षा करते हैं और हिन्दी के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए सुझाव देते हैं। प्रारम्भ में ऐसे नगरों की संख्या सीमित थी, अब बढ़ती जा रही है। हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने में इन बैठकों से विशेष लाभ हुआ है। इस समय (सन २०२० में) पूरे भारत में ५०० से अधिक नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ कार्य कर रहीं हैं।[5]
सन् 1979 के आदेश द्वारा इसके कार्यों में विस्तार कर निम्नलिखित कर्त्तव्य निश्चित किये गये थे:
- राजभाषा अधिनियम/नियम और सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के सम्बन्ध में भारत सरकार द्वारा जारी किए गये आदेशों और हिन्दी के प्रयोग से सम्बन्धित वार्षिक कार्यक्रम के कार्यान्वयन की स्थिति की समीक्षा,
- नगर के केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के सम्बन्ध में किये जाने वाले उपायों पर विचार,
- हिन्दी के सन्दर्भ सहित्य, टाइपराइटरों, टाइपिस्टों, आशुलिपिकों आदि की उपलब्धि की समीक्षा,
- हिन्दी, हिन्दी टाइपिंग तथा हिन्दी आशुलिपि के प्रशिक्षण से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार।
राजभाषा हिन्दी की विकास-यात्रा[संपादित करें]
हिन्दी दीर्घकाल से अखण्ड भारत में जन–जन के पारस्परिक सम्पर्क की भाषा रही है। भक्तिकाल में अनेक सन्त कवियों ने हिन्दी में साहित्य रचना की और लोगों का मार्गदर्शन किया। केवल उत्तरी भारत की नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के आचार्यों वल्लभाचार्य, रामानुज, रामानन्द आदि ने भी इसी भाषा के माध्यम से अपने मतों का प्रचार किया था। अहिन्दी भाषी राज्यों के भक्त–सन्त कवियों (जैसे—असम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के ज्ञानेश्वर व नामदेव (13वीं शताब्दी), गुजरात के नरसी मेहता, बंगाल के चैतन्य आदि) ने हिन्दी को ही अपने धर्म-प्रचार और साहित्य का माध्यम बनाया था। [6] सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब में अनेक सन्त कवियों के हिन्दी काव्य संगृहीत हैं। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि भूषण, छत्रपति शिवाजी के राजकवि थे। 1816 ई0 में विलियम केरी ने लिखा कि हिन्दी किसी एक प्रदेश की भाषा नहीं, बल्कि देश में सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा है। [7]
स्वतन्त्रता पूर्व[संपादित करें]
18वीं शताब्दी : भरतपुर राज्य तथा पूर्वी राजस्थान के कई राजवाड़े हिन्दी (ब्रजभाषा) में कार्य कर रहे थे।[8]
1826 : हिन्दी के पहले समाचारपत्र उदन्त मार्तण्ड का कलकत्ता से प्रकाशन, पण्डित युगलकिशोर शुक्ल द्वारा
1829 : राजा राममोहन राय द्वारा 'बंगदूत' का प्रकाशन ; यह हिन्दी सहित बांग्ला, फ़ारसी और अंग्रेजी में छपता था।
1835 : बिहार में हिन्दी आन्दोलन शुरू हुआ था। इस अनवरत प्रयास के फलस्वरूप सन् 1875 में बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिन्दी प्रतिष्ठित हुई।
1872 : आर्य समाज के संस्थापक महार्षि दयानंद सरस्वती जी कलकत्ता में केशवचन्द्र सेन से मिले तो उन्होने स्वामी जी को यह सलाह दे डाली कि आप संस्कृत छोड़कर हिन्दी बोलना आरम्भ कर दें तो भारत का असीम कल्याण हो। तभी से स्वामी जी के व्याख्यानों की भाषा हिन्दी हो गयी और शायद इसी कारण स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश की भाषा भी हिन्दी ही रखी। (देखें, आर्यसमाज की हिन्दी-सेवा)
1873 : महेन्द्र भट्टाचार्य द्वारा हिन्दी में पदार्थ विज्ञान (material science) की रचना।
1875 : बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिन्दी प्रतिष्ठित हुई।
1875 : सत्यार्थ प्रकाश की रचना। यह आर्यसमाज का आधार ग्रन्थ है और इसकी भाषा हिन्दी है।
1877 : श्रद्धाराम फिल्लौरी ने भाग्यवती नामक हिन्दी उपन्यास की रचना की।
1878 : भारतमित्र नामक हिन्दी समाचार पत्र का कलकता से प्रकाशन। इसे कचहरियों में हिन्दी प्रवेश आन्दोलन का मुखपत्र कहा जाता है।
1882 : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने शिक्षा आयोग (हन्टर कमीशन) के समक्ष अपनी गवाही दी जिसमें हिन्दी को न्यायालयों की भाषा बनाने की महत्ता पर बल दिया।
1880 का दशक : गुजराती के महान कवि श्री नर्मद (1833-86) ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा।
1893 : काशी नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना।
1898 : मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में 17 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ने पश्चिमोत्तर प्रदेश व अवध के गवर्नर सर एंटोनी मैकडोनेल को 'कोर्ट कैरेक्टर एण्ड प्राइमरी एजुकेशन इन नार्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज' नामक ज्ञापन सौंपा।
जनवरी, 1900 : सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ। (इण्डियन प्रेस, प्रयाग से)
18 अप्रैल 1900 : पश्चिमोत्तर प्रान्त और अवध के लेफ्टीनेण्ट गर्वनर एण्टोनी मैकडानेल ‘बोर्ड ऑफ़ रिवेन्यु’ और हाई कोर्ट तथा ‘जुडिशियल कमिशनर अवध’ से सम्मति लेकर आज्ञापत्र जारी कर दिया। नागरी प्रचारिणी सभा और महामना के नेतृत्व में चले इस आन्दोलन ने पश्चिमोत्तर प्रान्त में कचहरियों और प्राइमरी स्कूलों में हिन्दी भाषा के लिए द्वार खोल दिया।
1907 : गुरुकुल कांगड़ी का महाविद्यालय विभाग खुला और हिन्दी को ही विज्ञान, गणित, पाश्चात्य दर्शन आदि सभी विषयों की शिक्षा का माध्यम रखा गया। उस समय हिन्दी में उच्च शिक्षा देना एक असम्भव बात समझी जाती थी। गुरुकुल ने इसे कार्यरूप में परिणत करके दिखा दिया। उस समय आधुनिक विद्वानों की पुस्तकें हिन्दी में नहीं थी। गुरुकुल के उपाध्यायों ने पहले-पहल इस क्षेत्र में काम किया और गुरुकुल के अनेक उच्चकोटि के ग्रन्थ प्रकाशित हुए।[9]
1907 : न्यायमूर्ति शारदाचरण मित्र द्वारा 'एक लिपि विस्तार परिषद' की स्थापना एवं देवनागरी लिपि में 'देवनागर' नामक मासिक पत्र का प्रकाशन।
1917 : महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है।
1918 : मराठी भाषी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से घोषित किया कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी।
1918 : इंदौर में सम्पन्न आठवें हिन्दी सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था - मेरा यह मत है कि हिन्दी को ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा बनने का गौरव प्रदान करें। हिन्दी सब समझते हैं। इसे राष्ट्रभाषा बनाकर हमें अपना कर्त्तव्यपालन करना चाहिए।[10]
1918 : महात्मा गांधी द्वारा दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना
1929 : हिन्दी शब्दसागर का प्रकाशन
1930 : इस वर्ष कांग्रेस अधिवेशन में आयोजित राष्ट्रभाषा सम्मेलन में स्वीकार किया गया कि देश का अन्तरप्रारान्तीय कार्य राष्ट्रभाषा हिन्दी में ही होना उचित एवं हितकारी है।
1930 का दशक : हिन्दी टाइपराइटर का विकास (शैलेन्द्र मेहता)
1935 : मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री रूप में सी० राजगोपालाचारी ने हिन्दी शिक्षा को अनिवार्य कर दिया।
1937 : हरि गोविन्द गोविल (1899 -1956) द्वारा देवनागरी के लिए एक नए टाइपफेस का आविष्कार
स्वतन्त्रता के बाद[संपादित करें]
14.9.1949संविधान सभा ने हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। इस दिन को अब हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
26.1.1950संविधान लागू हुआ। तदनुसार उसमें किए गए भाषायी
प्रावधान (अनुच्छेद 120, 210 तथा 343 से 351) लागू हुए।
वैज्ञानिक-तकनीकी शब्दावली के लिए शिक्षा मंत्रालय ने सन् 1950 में बोर्ड की स्थापना की। सन् 1952 में बोर्ड के तत्त्वावधान में शब्दावली निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ।
शिक्षा मन्त्रालय द्वारा हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण ऐच्छिक तौर पर प्रारम्भ किया गया।
मोटूरि सत्यनारायण तथा अन्य हिन्दीसेवियों के प्रयत्न से सन् 1952 में 'अखिल भारतीय हिन्दी परिषद्' की स्थापना आगरा में की गयी। इसी परिषद के प्रयत्न से 1962 में आगरा में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय बना।
27.5.1952राज्यपालों, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों में अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा व भारतीय अंकों के अन्तरराष्ट्रीय स्वरूप के अतिरिक्त अंकों के देवनागरी स्वरूप का प्रयोग प्राधिकृत किया गया।
14 सितम्बर 1953राष्ट्रभाषा समिति वर्धा के आग्रह पर 14 सितम्बर 1953 को पहली बार अखिल भारतीय स्तर पर हिन्दी दिवस मनाया गया। [11]
जुलाई, 1955हिन्दी शिक्षण योजना की स्थापना। केन्द्र सरकार के मन्त्रालयों, विभागों, संबद्ध व अधीनस्थ कर्मचारियों को सेवाकालीन प्रशिक्षण।
7.6.1955बी.जी. खेर की अध्यक्षता में राजभाषा आयोग का गठन (संविधान के अनुच्छेद 344 (1) के अन्तर्गत)
गृह मन्त्रालय के अन्तर्गत हिन्दी शिक्षण योजना प्रारम्भ की गई।
3.12.1955संविधान के अनुच्छेद 343 (2) के परन्तुक द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए संघ के कुछ कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा का प्रयोग किए जाने के आदेश जारी किए गए।
31.7.1956खेर आयोग की रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत की गई।
1957खेर आयोग की रिपोर्ट पर विचार हेतु तत्कालीन गृहमन्त्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत की अध्यक्षता में संसदीय समिति का गठन।
8.2.1959संविधान के अनुच्छेद 344 (4) के अन्तर्गत संसदीय समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत की गई।
सितम्बर, 1959संसदीय समिति की रिपोर्ट पर संसद में बहस। तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा आश्वावासन दिया गया कि अंग्रेजी को सह-भाषा के रूप में प्रयोग में लाए जाने हेतु कोई व्यावधान उत्पन्न नहीं किया जाएगा और न ही इसके लिए कोई समय-सीमा ही निर्धारित की जाएगी। भारत की सभी भाषाएँ समान रूप से आदरणीय हैं और ये हमारी राष्ट्रभाषाएँ हैं।[12]
1960नवगठित गुजरात की सरकार ने केन्द्र सरकार से माँग की कि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली सभी परीक्षाएँ अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी में करायी जाँय।
1960हिन्दी टंकण, हिन्दी आशुलिपि का अनिवार्य प्रशिक्षण आरम्भ किया गया।
19 मार्च, 1960 को शिक्षा मन्त्रालय, भारत सरकार ने 'केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण महाविद्यालय' की स्थापना की और उसके संचालन के लिए 'केन्द्रीय शिक्षण मण्डल' नाम से एक स्वायत्त संस्था का गठन किया। 1963 में केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण महाविद्यालय का नाम बदलकर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय किया गया।
27.4.1960संसदीय समिति की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति के आदेश जारी किए गए जिनमें हिन्दी शब्दावलियों का निर्माण, संहिताओं व कार्यविधिक साहित्य का हिन्दी अनुवाद, कर्मचारियों को हिन्दी का प्रशिक्षण, हिन्दी प्रचार, विधेयकों की भाषा, उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों की भाषा आदि मुद्दे हैं।
19611961 में स्थायी राजभाषा आयोग का गठन किया गया। ( लेकिन 1976 में स्थायी राजभाषा आयोग को समाप्त कर दिया गया।)
196230 मार्च 1962 - केन्द्र सरकार द्वारा हिन्दी साहित्य सम्मेलन अधिनियम, 1962 पारित ; हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग को 'राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान' घोषित[13]
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना हुई।
10.5.1963अनुच्छेद 343(3) के प्रावधान व जवाहर लाल नेहरू के आश्वासन को ध्यान में रखते हुए राजभाषा अधिनियम बनाया गया। इसके अनुसार हिन्दी संघ की राजभाषा व अंग्रेजी सह-राजभाषा के रूप में प्रयोग में लाई गई।
1064भारत की केन्द्रीय सरकार ने डॉ दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार व नयी दिशा देने के उद्देश्य से एक आयोग का गठन किया। आयोग ने अन्य बातों के अलावा यह सिफारिस की कि सभी बच्चों को प्राइमरी कक्षाओं में मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाय। माध्यमिक स्तर (सेकेण्डरी लेवेल) पर स्थानीय भाषाओं में शिक्षण को प्रोत्साहन दिया जाय। आयोग ने कॉमन स्कूल सिस्टम लागू करने और स्नातकोत्तर तक की शिक्षा मातृभाषा में दिये जाने की भी संस्तुति दी।
20 जून, 1965लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमण्डल के के. कामराज ने कोयम्बटूर में विचार रखा कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं का माध्यम भारतीय भाषाएँ भी होनी चाहिये। इसी वर्ष गुलजरी लाल नन्दा ने संसद को सम्बोधित करते हुए यूपीएससी में भारतीय भाषाओं के उपयोग के सुझाव को सही ठहराया।
5.9.1967प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय हिन्दी समिति का गठन किया गया। यह समिति सरकार की राजभाषा नीति के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण दिशा-निदेश देने वाली सर्वोच्च समिति है। इस समिति में प्रधानमन्त्री जी के अलावा नामित केन्द्रीय मंत्री, कुछ राज्यों के मुख्यमन्त्री, सांसद तथा हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के विद्वान सदस्य के रूप में शामिल किए जाते हैं।
16.12.1967संसद के दोनों सदनों द्वारा राजभाषा संकल्प पारित किया गया जिसमें हिन्दी के राजकीय प्रयोजनों हेतु उत्तरोत्तर प्रयोग के लिए अधिक गहन और व्यापक कार्यक्रम तैयार करने, प्रगति की समीक्षा के लिए वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करने, हिन्दी के साथ-साथ 8वीं अनुसूची की अन्य भाषाओं के समन्वित विकास के लिए कार्यक्रम तैयार करने, त्रिभाषा सूत्र का अपनाये जाने, संघ सेवाओं के लिए भर्ती के समय हिन्दी व अंग्रेजी में से किसी एक के ज्ञान की आवश्यकता अपेक्षित होने तथा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उचित समय पर परीक्षा के लिए संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की बात कही गई है। (संकल्प 18.8,1968 को प्रकाशित हुआ)
1967सिंधी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित की गई।
8.1.1968राजभाषा अधिनियम, 1963 में संशोधन किए गए। तदनुसार धारा 3 (4) में यह प्रावधान किया गया कि हिन्दी में या अंग्रेजी भाषा में प्रवीण संघ सरकार के कर्मचारी प्रभावी रूप से अपना काम कर सकें तथा केवल इस आधार पर कि वे दोनों ही भाषाओं में प्रवीण नहीं हैं, उनका कोई अहित न हो। धारा 3 (5) के अनुसार संघ के राजकीय प्रयोजनों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त कर देने के लिए आवश्यक है कि सभी राज्यों के विधान मण्डलों द्वारा (जिनकी राजभाषा हिन्दी नहीं है) ऐसे संकल्प पारित किए जाएँ तथा उन संकल्पों पर विचार करने के पश्चात अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त करने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा संकल्प पारित किया जाए।
1968राजभाषा संकल्प 1968 में किए गए प्रावधान के अनुसार वर्ष 1968-69 से राजभाषा हिन्दी में कार्य करने के लिए विभिन्न मदों के लक्ष्य निर्धारित किए गए तथा इसके लिए वार्षिक कार्यक्रम तैयार किया गया।
- 1969
कांग्रेस कार्यकारी समिति ने त्रिभाषा फॉर्मूला पेश किया जिसका अटल बिहारी वाजपेयी और बलराज मधोक जैसे जनसंघ के नेताओं ने विरोध किया।
1.3.1971केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो का गठन।
1973केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के दिल्ली स्थिति मुख्यालय में एक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना।
1974तीसरी श्रेणी के नीचे के कर्मचारियों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों तथा कार्य प्रभारित कर्मचारियों को छोड़कर केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के साथ-साथ केन्द्र सरकार के स्वामित्व एवं नियंत्रणाधीन निगमों, उपक्रमों, बैंकों आदि के कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए हिन्दी भाषा, टंकण एवं आशुलिपि का अनिवार्य प्रशिक्षण।
1975नागपुर में 18 से 14 जनवरी तक प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया।
जून, 1975राजभाषा से सम्बन्धित संवैधानिक, विधिक उपबंधों के कार्यान्वयन हेतु राजभाषा विभाग का गठन किया गया।
1976राजभाषा नियम बनाए गए।
1976संसदीय राजभाषा समिति का गठन।
1977श्री अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन विदेश मन्त्री ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को हिन्दी में संबोधित किया।
1979आपातकाल के बाद बनी मोरारजी देसाई की सरकार ने कोठारी आयोग की संस्तुतियों को स्वीकार कर लिया। पहली बार सिविल सेवा की प्रारम्भिक परीक्षा के लिये उम्मीदवारों को अंग्रेजी के अलावा हिन्दी व अन्य भाषाओं को भी अपने माध्यम के रूप में चुनने का विकल्प दिया गया।
1981केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग का गठन किया गया।
25.10.1983केन्द्रीय सरकार के मन्त्रालयों, विभागों, सरकारी उपक्रमों, राष्ट्रीयकृत बैंकों में यान्त्रिक और इलेक्ट्रानिक उपकरणों द्वारा हिन्दी में कार्य को बढ़ावा देने तथा उपलब्ध द्विभाषी उपकरणों के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से राजभाषा विभाग में तकनीकी कक्ष की स्थापना की गई।
21.8.1985केन्द्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान का गठन कर्मचारियों/अधिकारियों को हिन्दी भाषा, हिन्दी टंकण और हिन्दी आशुलिपि के पूर्णकालिक गहन प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराने के लिए किया गया।
1986कोठारी शिक्षा आयोग की रिपोर्ट। 1968 में पहले ही यह सिफारिश की जा चुकी थी कि भारत में शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएँ होनी चाहिए। उच्च शिक्षा के माध्यम के सम्बन्ध में नई शिक्षा नीति (1986) के कार्यान्वयन - कार्यक्रम में कहा गया -
इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार प्रारम्भ किए गए।
9.10.1987राजभाषा नियम, 1976 में संशोधन किए गए।
1988विदेश मन्त्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली में तत्कालीन विदेश मन्त्री श्री नरसिंह राव जी हिन्दी में बोले।
1996महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की वर्धा में स्थापना।
अगस्त 1999विश्व हिन्दी सचिवालय की संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए भारत और मॉरीशस की सरकारों के बीच 20 अगस्त 1999 को एक समझौता ज्ञापन सम्पन्न किया गया। 12 नवम्बर 2002 को मॉरीशस के मन्त्रिमण्डल द्वारा विश्व हिन्दी सचिवालय अधिनियम पारित किया गया और भारत सरकार तथा मॉरीशस की सरकार के बीच 21 नवम्बर 2001 को एक द्विपक्षीय करार सम्पन्न किया गया। विश्व हिन्दी सचिवालय ने 11 फरवरी 2008 से औपचारिक रूप से कार्य करना आरम्भ कर दिया।
14.9.1999संघ की राजभाषा हिन्दी की स्वर्ण जयन्ती मनाई गई।
20.10.2000राष्ट्रीय ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार वर्ष 2001-02 से आरम्भ करने की घोषणा की गई जिसमें निम्न पुरस्कार राशियां हैं :-
(1) प्रथम प्ररस्कार - 100000 रुपये(2) द्वितीय प्ररस्कार - 75000 रुपये(3) तृतीय पुरस्कार - 50000 रुपये(4) सांत्वना पुरस्कार (दस) - 100000 रुपये200117 सितंबर, 2001 को भारत सरकार द्वारा मॉरिशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना।
2.9.2003डॉ॰ सीताकान्त महापात्र की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जो संविधान की आठवीं अनुसूची में अन्य भाषाओं को सम्मिलित किए जाने तथा आठवीं अनुसूची में सभी भाषाओं को संघ की राजभाषा घोषित किए जाने की साध्यता परखने पर विचार करेगी। समिति ने 14.6.2004 को अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की।
11.9.2003मंत्रिमंडल ने एन.डी.ए. तथा सी.डी.एस. की परीक्षाओं में प्रश्नपत्रों को हिन्दी में भी तैयार करने का निर्णय लिया।
14.9.2003कंप्यूटर की सहायता से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिन्दी स्वयं सीखने के लिए राजभाषा विभाग ने कम्प्यूटर प्रोग्राम (लीला हिन्दी प्रबोध, लीला हिन्दी प्रवीण, लीला हिन्दी प्राज्ञ) तैयार करवा कर सर्वसाधारण द्वारा उसका निशुल्क प्रयोग के लिए उसे राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया है।
8.1.2004बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में रखा गया।
22.7.2004केन्द्रीय सरकार की राजभाषा नीति के अनुपालन/कार्यान्वयन के लिए न्यूनतम हिन्दी पदों के मानक पुनः निर्धारित।
6.9.2004मातृभाषा विकास परिषद द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायलय ने यह पाया कि वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के गठन का उद्देश्य हिन्दी एवं अन्य आधुनिक भाषाओं के लिए तकनीकी शब्दावली में एकरूपता अपनाया जाना है। यह एकरूपता तकनीकी शब्दावली के प्रयोग के लिए आवश्यक है। उच्चतम न्यायालय ने निदेश दिया कि आयोग द्वारा बनाई गई तकनीकी शब्दावली भारत सरकार के अन्तर्गत एन.सी.ई.आर.टी तथा इसी प्रकार की अन्य संस्थाओं द्वारा तैयार की जा रही पाठय पुस्तकों में प्रयोग में लाई जाए।
14.9.2004कम्प्यूटर की सहायता से तमिल, तेलुगु, मलयालम तथा कन्नड़ भाषाओं के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिन्दी स्वयं सीखने के लिए कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार करवा कर उसके निशुल्क प्रयोग के लिए उसे राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया।
20.6.2005525 हिन्दी फोण्ट, फोण्ट कोड कनवर्टर, अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश, हिन्दी स्पेल चेकर को निशुल्क प्रयोग के लिए वेब साइट पर उपलब्ध कराया गया।
8.8.2005'राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तकलेखन पुरस्कार' का नाम बदल कर 'राजीव गांधी राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तकलेखन पुरस्कार' कर दिया गया तथा पुरस्कार राशि बढ़ा कर निम्न प्रकार कर दी गई :-
प्रथम पुरस्कार - रू० 2 लाख द्वितीय पुरस्कार - रू० 1.25 लाखतृतीय पुरस्कार - रू० 0.75 लाखसांत्वना पुरस्कार (10) - प्रत्येक को 10 हजार रूपए14.9.2005कंप्यूटर की सहायता से बांगला भाषा के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिन्दी स्वयं सीखने के लिए प्रोग्राम तैयार करवा कर राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया गया।
मंत्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद सॉफ़्टवेयर प्रशासनिक एवं वित्तिय क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
14.9.2006कंप्यूटर की सहायता से उड़िया, असमी, मणिपुरी तथा मराठी भाषा के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिन्दी स्वयं सीखने के लिए प्रोग्राम तैयार करवा कर राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया।
मन्त्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद सॉफ़्टवेयर लघु उद्योग एवं कृषि क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
14.9.2007कंप्यूटर की सहायता से नेपाली, पंजाबी, कश्मीरी तथा गुजराती भाषा के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिन्दी स्वयं सीखने के लिए प्रोग्राम तैयार करवा कर राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
मंत्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद सॉफ्टवेयर सूचना-प्रौद्योगिकी एवं स्वास्थ्य सुरक्षा क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।
श्रुतलेखन-राजभाषा (हिन्दी स्पीच से हिन्दी टेक्सट) अन्तिम वर्जन जन-प्रयोग के लिए मार्किट में बिक्री के लिए उपलब्ध है।
अप्रैल, 2017राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 'संसदीय राजभाषा समिति' की इस सिफारिश को 'स्वीकार' कर लिया कि राष्ट्रपति और ऐसे सभी मन्त्रियों और अधिकारियों को हिन्दी में ही भाषण देना चाहिए और बयान जारी करने चाहिए, जो हिन्दी पढ़ और बोल सकते हों। इस समिति ने हिन्दी को और लोकप्रिय बनाने के तरीकों पर 6 वर्ष पहले 117 सिफारिशें दी थीं।[14][15]
मई, 2018अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने हिन्दी माध्यम से इंजीनियरिंग की शिक्षा की अनुमति दी।[16]
2018‘संयुक्त राष्ट्र में हिंदी’ परियोजना शुरू की गयी। इसका उद्देश्य हिंदी भाषा में संयुक्त राष्ट्र की लोगों तक पहुंच को बढ़ाना तथा दुनियाभर में लाखों हिंदीभाषियों के बीच वैश्विक विषयों के बारे में वृहद जागरुकता फैलाना था।
17 जुलाई, 2019सर्वोच्च न्यायालय ने अपने सभी निर्णयों का हिन्दी या अन्य पाँच भारतीय भाषाओं (असमिया, कन्नड, मराठी, ओडिया एवं तेलुगु ) में अनुवाद प्रदान करना आरम्भ किया।
जुलाई, 2020भारत की नयी शिक्षा नीति, २०२० में मातृभाषाओं और हिन्दी को विशेष महत्त्व देने की अनुसंशा। इससे प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में अंग्रेजी के मनमाने प्रयोग पर अंकुश लगने की सम्भावना।[17]
सितम्बर, 2020केन्द्र-शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की आधिकारिक भाषाओं में उर्दू और अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी, डोगरी और कश्मीरी को भी सम्मिलित किया गया।[18]
2022२०२२-२३ सत्र से हिन्दी में इंजीनियरी की शिक्षा का आरम्भ। [19] मेडिकल और नर्सिंग की शिक्षा भी हिन्दी में होगी। [20][21]
जून 2022संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार हिंदी भाषा से जुड़े भारत के प्रस्ताव को मंजूरी दी जिसमें कहा गया कि संयुक्त राष्ट्र के सभी जरूरी कामकाज और सूचनाओं को इसकी आधिकारिक भाषाओं के अलावा हिंदी में भी जारी किया जाए।[22]
16 अक्टूबर, 2022भारत के गृह एवं सहकारिता मन्त्री अमित शाह ने भोपाल में हिन्दी में मेडिकल की शिक्षा का शुभारम्भ किया और कहा कि स्वभाषा में शिक्षा से भारत अनुसंधान में आगे बढ़ेगा।[23][24]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ संविधान में हिंदी — (डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी)
- ↑ //legislative.gov.in/sites/default/files/H196319.pdf राजभाषा अधिनियम १९६३
- ↑ //rajbhasha.gov.in/hi/ol_rules_1976 Archived 2019-10-16 at the Wayback Machine राजभाषा नियम, १९७६
- ↑ "राजभाषा संकल्प, 1968". मूल से 25 अगस्त 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2015.
- ↑ "नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों की सूची". मूल से 14 अगस्त 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 अप्रैल 2020.
- ↑ राष्ट्रीय संत नामदेव
- ↑ स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का विकास
- ↑ Empire and Information: Intelligence Gathering and Social Communication in India 1780-1870, पृष्ठ २९९ Archived 2012-11-12 at the Wayback Machine By Christopher Alan Bayly, C. A. Bayly
- ↑ बिजनौर के अक्षरों से समृद्ध हुई हिन्दी भाषा
- ↑ "महात्मा गांधी ने इन्दौर में देखा था हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का सपना". मूल से 18 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 सितंबर 2017.
- ↑ प्रचार समिति वर्धा : एक विहंगावलोकन
- ↑ सरकारी काम से हिन्दी को मिटाने में थी नेहरू की सबसे अग्रणी भूमिका Archived 2016-03-04 at the Wayback Machine (हिन्दी मिडिया डॉट इन)
- ↑ हिन्दी साहित्य सम्मेलन अधिनियम, 1962
- ↑ "आधिकारिक भाषाओं पर संसदीय समिति की सिफारिश राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्वीकार की". मूल से 14 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 सितंबर 2017.
- ↑ "Why Ramachandra Guha's Claims About 'Hindi Revivalism' Are Logically Bankrupt". मूल से 11 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 मार्च 2020.
- ↑ "अब हिन्दी में भी होगी इंजीनियरिंग की पढ़ाई, एआईसीटीई की पहल पर सरकार ने दी हरी झंडी". मूल से 21 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 मई 2018.
- ↑ नई शिक्षा नीति और हिन्दी भाषा की उपयोगिता
- ↑ डोगरी, कश्मीरी और हिंदी भी बनेगी जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा
- ↑ हिंदी में होगी अब इंजीनियरिंग की पढ़ाई
- ↑ एमपी देश का पहला राज्य जहां हिन्दी में होगी इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई, सीएम शिवराज की पहल
- ↑ Bhopal: Amit Shah to launch medical education syllabus in Hindi on Oct 16
- ↑ [//panchjanya.com/2022/06/30/240943/world/hindi-to-become-world-language/ विश्वभाषा बनती हिन्दी...... Read more at: //panchjanya.com/2022/06/30/240943/world/hindi-to-become-world-language/
- ↑ अमित शाह ने मध्यप्रदेश में हिन्दी में मेडिकल की शिक्षा की शुरूआत की, कहा- स्वभाषा में भारत अनुसंधान में आगे बढ़ेगा
- ↑ मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा की बेहतर पहल, हिंदी समेत स्थानीय भाषाओं के प्रति नया नजरिया
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- राजभाषा
- हिन्दी
- विश्व हिन्दी दिवस
- हिन्दी दिवस
- राजभाषा अधिकारी
- केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय
- केन्द्रीय हिन्दी समिति
- राजभाषा आयोग, १९५५
- वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग
- हिन्दी साहित्य का इतिहास
- प्रयोजनमूलक हिन्दी
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- भारत सरकार का राजभाषा विभाग
- राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधान
- हिन्दी राजभाषा सम्बन्धी प्रमुख बातें
- राजभाषा सम्बन्धी संवैधानिक उपबंध
- राष्ट्रभाषा से राजभाषा की यात्रा में हिंदी
- राजभाषा हिन्दी: दशा एवं दिशा (प्रोफेसर महावीर सरन जैन)
- राजभाषा हिन्दी (गूगल पुस्तक ; लेखक - भोलानाथ तिवारी)
- राजभाषा हिन्दी : विवेचना और प्रयुक्ति (गूगल पुस्तक ; लेखक - डॉ किशोर वासवानी)
- राजभाषा सहायिका (गूगल पुस्तक ; लेखक - अवधेश मोहन गुप्त)
- हिन्दी की भूमिकाएँ (गूगल पुस्तक)
- राजभाषा हिन्दी और उसका विकास (गूगल पुस्तक ; डॉ हीरालाल बछोतिया)
- राजभाषा (प्रशासनिक) हिन्दी : प्रयुक्तिपरक अध्ययन