हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?

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हिन्दू धर्म
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हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
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प्रवेशद्वार: हिन्दू धर्म

हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?

हिन्दू मापन प्रणाली

हिन्दू धर्म (संस्कृत: हिन्दू धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत, नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसके अलावा सूरीनाम, फिजी इत्यादि। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म माना जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।[1] विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।

यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं।[2] अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।[3][4][5]

इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है।[6]

इतिहास

सनातन धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है; हालाँकि इसके इतिहास के बारे में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं। आधुनिक इतिहासकार हड़प्पा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास कुछ हज़ार वर्ष पुराना मानते हैं। जहाँ भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, भगवान शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, शिवलिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे।

आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग १७०० ईसा पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग (उनके विद्वान ऋषि) अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृपा से अलग-अलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया। बौद्ध और धर्मों के अलग हो जाने के बाद वैदिक धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ।

दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिन्धु सरस्वती परम्परा (जिसका स्रोत मेहरगढ़ की ६५०० ईपू संस्कृति में मिलता है) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है। हालांकि भारत विरोधी विद्वानों ने कई प्रयासों के बावजूद यहां तक कि भ्रामक प्रमाणो के आधार पर भी अपने विचार को सिद्ध नहीं कर पाए।

निरुक्त

भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है। "बृहस्पति आगम" के अनुसार:

हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥अर्थात् हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।

"हिन्दू" शब्द "सिन्धु" से बना माना जाता है। संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं - पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र में मिलती है, दूसरा - कोई समुद्र या जलराशि। ऋग्वेद की नदीस्तुति के अनुसार वे सात नदियाँ थीं : सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता (झेलम), शुतुद्रि (सतलुज), विपाशा (व्यास), परुषिणी (रावी) और अस्किनी (चेनाब)। एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर "हि" एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर "न्दु", इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना "हिन्दु" और यह भू-भाग हिन्दुस्थान कहलाया। हिन्दू शब्द उस समय धर्म के बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था। चूँकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिए "हिन्दू" शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों (हिन्दुओं) के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया।

आम तौर पर हिन्दू शब्द को अनेक विश्लेषकों ने विदेशियों द्वारा दिया गया शब्द माना है। इस धारणा के अनुसार हिन्दू एक फ़ारसी शब्द है। हिन्दू धर्म को सनातन धर्म या वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म भी कहा जाता है। ऋग्वेद में सप्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है - वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे। भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्य भाषाओं की "स्" ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन "स्") ईरानी भाषाओं की "ह्" ध्वनि में बदल जाती है। इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर हफ्त हिन्दु में परिवर्तित हो गया (अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18)। इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। चारों वेदों में, पुराणों में, महाभारत में, स्मृतियों में इस धर्म को हिन्दु धर्म नहीं कहा है, वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म कहा है।

मुख्य सिद्धान्त

हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई "पोप"। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानता है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)। लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं। प्राचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे। जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया।

संक्षेप में, हिन्‍दुत्‍व के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-हिन्दू-धर्म हिन्दू-कौन?-- गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स हिन्दु ' अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित वर्णाश्रम रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नहीं है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय (हिन्दू) कैसे हो सकती है।

हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु
  • 1. ईश्वर एक नाम अनेक.
  • 2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
  • 3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
  • 4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
  • 5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है।
  • 6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं।
  • 7. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
  • 8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।
  • 9. स्त्री आदरणीय है।
  • 10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।
  • 11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
  • 12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
  • 13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
  • 14. आत्मा अजर-अमर है।
  • 15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
  • 16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
  • 17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है।
  • 18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।

ब्रह्म

हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है (इसे त्रिमूर्ति के देवता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)। वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है। उसी से विश्व की उत्पत्ति होती है और विश्व नष्ट होने पर उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म एक और सिर्फ़ एक ही है। वो विश्वातीत भी है और विश्व के परे भी। वही परम सत्य, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है। वो कालातीत, नित्य और शाश्वत है। वही परम ज्ञान है। ब्रह्म के दो रूप हैं : परब्रह्म और अपरब्रह्म। परब्रह्म असीम, अनन्त और रूप-शरीर विहीन है। वो सभी गुणों से भी परे है, पर उसमें अनन्त सत्य, अनन्त चित् और अनन्त आनन्द है। ब्रह्म की पूजा नहीं की जाती है, क्योंकि वो पूजा से परे और अनिर्वचनीय है। उसका ध्यान किया जाता है। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते हैं। हिन्दू यह मानते हैं कि ओम् की ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देता है। ब्रह्म की परिकल्पना वेदान्त दर्शन का केन्द्रीय स्तम्भ है और हिन्दू धर्म की विश्व को अनुपम देन है।

ईश्वर

ब्रह्म और ईश्वर में क्या सम्बन्ध है, इसमें हिन्दू दर्शनों की सोच अलग अलग है। अद्वैत वेदान्त के अनुसार जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब ब्रह्म ईश्वर हो जाता है, क्योंकि मानव माया नाम की एक जादुई शक्ति के वश में रहता है। अर्थात जब माया के आइने में ब्रह्म की छाया पड़ती है, तो ब्रह्म का प्रतिबिम्ब हमें ईश्वर के रूप में दिखायी पड़ता है। ईश्वर अपनी इसी जादुई शक्ति "माया" से विश्व की सृष्टि करता है और उस पर शासन करता है। इस स्थिति में हालाँकि ईश्वर एक नकारात्मक शक्ति के साथ है, लेकिन माया उसपर अपना कुप्रभाव नहीं डाल पाती है, जैसे एक जादूगर अपने ही जादू से अचंम्भित नहीं होता है। माया ईश्वर की दासी है, परन्तु हम जीवों की स्वामिनी है। वैसे तो ईश्वर रूपहीन है, पर माया की वजह से वो हमें कई देवताओं के रूप में प्रतीत हो सकता है। इसके विपरीत वैष्णव मतों और दर्शनों में माना जाता है कि ईश्वर और ब्रह्म में कोई फ़र्क नहीं है--और विष्णु (या कृष्ण) ही ईश्वर हैं। न्याय, वैषेशिक और योग दर्शनों के अनुसार ईश्वर एक परम और सर्वोच्च आत्मा है, जो चैतन्य से युक्त है और विश्व का सृष्टा और शासक है।

जो भी हो, बाकी बातें सभी हिन्दू मानते हैं : ईश्वर एक और केवल एक है। वो विश्वव्यापी और विश्वातीत दोनो है। बेशक, ईश्वर सगुण है। वो स्वयंभू और विश्व का कारण (सृष्टा) है। वो पूजा और उपासना का विषय है। वो पूर्ण, अनन्त, सनातन, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है। वो राग-द्वेष से परे है, पर अपने भक्तों से प्रेम करता है और उनपर कृपा करता है। उसकी इच्छा के बिना इस दुनिया में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। वो विश्व की नैतिक व्यवस्था को कायम रखता है और जीवों को उनके कर्मों के अनुसार सुख-दुख प्रदान करता है। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार विश्व में नैतिक पतन होने पर वो समय-समय पर धरती पर अवतार (जैसे कृष्ण) रूप ले कर आता है। ईश्वर के अन्य नाम हैं : परमेश्वर, परमात्मा, विधाता, भगवान (जो हिन्दी में सबसे ज़्यादा प्रचलित है)। इसी ईश्वर को मुसल्मान (अरबी में) अल्लाह, (फ़ारसी में) ख़ुदा, ईसाई (अंग्रेज़ी में) गॉड और यहूदी (इब्रानी में) याह्वेह कहते हैं।

देवी और देवता

हिन्दू धर्म में कई देवता हैं, जिनको अंग्रेज़ी में ग़लत रूप से "Gods" कहा जाता है। ये देवता कौन हैं, इस बारे में तीन मत हो सकते हैं :

  • अद्वैत वेदान्त, भगवद गीता, वेद, उपनिषद्, आदि के मुताबिक सभी देवी-देवता एक ही परमेश्वर के विभिन्न रूप हैं (ईश्वर स्वयं ही ब्रह्म का रूप है)। निराकार परमेश्वर की भक्ति करने के लिये भक्त अपने मन में भगवान को किसी प्रिय रूप में देखता है। ऋग्वेद के अनुसार, "एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति", अर्थात एक ही परमसत्य को विद्वान कई नामों से बुलाते हैं।[7]
  • योग, न्याय, वैशेषिक, अधिकांश शैव और वैष्णव मतों के अनुसार देवगण वो परालौकिक शक्तियां हैं जो ईश्वर के अधीन हैं मगर मानवों के भीतर मन पर शासन करती हैं।[8] योग दर्शन के अनुसार ईश्वर ही प्रजापति औत इन्द्र जैसे देवताओं और अंगीरा जैसे ऋषियों के पिता और गुरु हैं।
  • मीमांसा के अनुसार सभी देवी-देवता स्वतन्त्र सत्ता रखते हैं और उनके ऊपर कोई एक ईश्वर नहीं है। इच्छित कर्म करने के लिये इनमें से एक या कई देवताओं को कर्मकाण्ड और पूजा द्वारा प्रसन्न करना ज़रूरी है। इस प्रकार का मत शुद्ध रूप से बहु-ईश्वरवादी कहा जा सकता है।

एक बात और कही जा सकती है कि ज़्यादातर वैष्णव और शैव दर्शन पहले दो विचारों को सम्मिलित रूप से मानते हैं। जैसे, कृष्ण को परमेश्वर माना जाता है जिनके अधीन बाकी सभी देवी-देवता हैं और साथ ही साथ, सभी देवी-देवताओं को कृष्ण का ही रूप माना जाता है। तीसरे मत को धर्मग्रन्थ मान्यता नहीं देते।

जो भी सोच हो, ये देवता रंग-बिरंगी हिन्दू संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। वैदिक काल के मुख्य देव थे-- इन्द्र, अग्नि, सोम, वरुण, रूद्र, विष्णु, प्रजापति, सविता (पुरुष देव) और देवियाँ-- सरस्वती, ऊषा, पृथ्वी, इत्यादि (कुल 33)। बाद के हिन्दू धर्म में नये देवी देवता आये (कई अवतार के रूप में)-- गणेश, राम, कृष्ण, हनुमान, कार्तिकेय, सूर्य-चन्द्र और ग्रह और देवियाँ (जिनको माता की उपाधि दी जाती है) जैसे-- दुर्गा, पार्वती, लक्ष्मी, शीतला, सीता, काली, इत्यादि। ये सभी देवता पुराणों में उल्लिखित हैं और उनकी कुल संख्या 33 कोटी बतायी जाती है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव साधारण देव नहीं, बल्कि महादेव हैं और त्रिमूर्ति के सदस्य हैं। इन सबके अलावा हिन्दू धर्म में गाय को भी माता के रूप में पूजा जाता है। यह माना जाता है कि गाय में सम्पूर्ण 33 कोटि देवी देवता वास करते हैं। उल्लेखनीय है कि कोटि का यहाँ अर्थ प्रकार से है ना कि करोड़(संख्या) से हैं।

हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवता

हिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियाँ हैं।

  • सूर्य - स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता।
  • विष्णु - शांति व वैभव।
  • शिव - ज्ञान व विद्या।
  • शक्ति - शक्ति व सुरक्षा।
  • गणेश - बुद्धि व विवेक।[9]

देवताओं के गुरु

देवताओं के गुरु बृहस्पति माने गए हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वे महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। भगवान शिव के कठिन तप से उन्होंने देवगुरु का पद पाया। उन्होंने अपने ज्ञान बल व मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की। शिव कृपा से ये गुरु ग्रह के रूप में भी पूजनीय हैं। गुरुवार, गुरु बृहस्पतिदेव की उपासना का विशेष दिन है।[9][10]

दानवों के गुरु

दानवों के गुरु शुक्राचार्य माने जाते हैं। ब्रह्मदेव के पुत्र महर्षि भृगु इनके पिता थे। शुक्राचार्य ने ही शिव की कठोर तपस्या कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की, जिससे वह मृत शरीर में फिर से प्राण फूंक देते थे। ब्रह्मदेव की कृपा से यह शुक्र ग्रह के रूप में पूजनीय हैं। शुक्रवार शुक्र देव की उपासना का ही विशेष दिन है।[9]

आत्मा

हिन्दू धर्म के अनुसार हर चेतन प्राणी में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन, अव्यक्त, अप्रमेय और विकार रहित है। हिन्दू धर्म के मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़-पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आत्मा के लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं:

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूय:।अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ २-२०॥

(यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न तो मरता ही है तथा न ही यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य सनातन, पुरातन है; शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।)

किसी भी जन्म में अपनी आज़ादी से किये गये कर्मों के मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। जन्म-मरण के चक्र में आत्मा स्वयं निर्लिप्त रह्ते हुए अगला शरीर धारण करती है। अच्छे कर्मफल के प्रभाव से मनुष्य कुलीन घर अथवा योनि में जन्म ले सकता है जबकि बुरे कर्म करने पर निकृष्ट योनि में जन्म लेना पड़ता है। जन्म मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के लिये पा लेती है। मानव योनि ही अकेला ऐसा जन्म है जिसमें मनुष्य के कर्म, पाप और पुण्यमय फल देते हैं और सुकर्म के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति मुम्किन है। आत्मा और पुनर्जन्म के प्रति यही धारणाएँ बौद्ध धर्म और सिख धर्म का भी आधार है।

धर्मग्रन्थ

हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों को दो भागों में बाँटा गया है- श्रुति और स्मृति। श्रुति हिन्दू धर्म के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं, जो पूर्णत: अपरिवर्तनीय हैं, अर्थात् किसी भी युग में इनमे कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। स्मृति ग्रन्थों में देश-कालानुसार बदलाव हो सकता है। श्रुति के अन्तर्गत वेद : ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म सूत्र व उपनिषद् आते हैं। वेद श्रुति इसलिये कहे जाते हैं क्योंकि हिन्दुओं का मानना है कि इन वेदों को परमात्मा ने ऋषियों को सुनाया था, जब वे गहरे ध्यान में थे। वेदों को श्रवण परम्परा के अनुसार गुरू द्वारा शिष्यों को दिया जाता था। हर वेद में चार भाग हैं- संहिता—मन्त्र भाग, ब्राह्मण-ग्रन्थ—गद्य भाग, जिसमें कर्मकाण्ड समझाये गये हैं, आरण्यक—इनमें अन्य गूढ बातें समझायी गयी हैं, उपनिषद्—इनमें ब्रह्म, आत्मा और इनके सम्बन्ध के बारे में विवेचना की गयी है। अगर श्रुति और स्मृति में कोई विवाद होता है तो श्रुति ही मान्य होगी। श्रुति को छोड़कर अन्य सभी हिन्दू धर्मग्रन्थ स्मृति कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें वो कहानियाँ हैं जिनको लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया और बाद में लिखा। सभी स्मृति ग्रन्थ वेदों की प्रशंसा करते हैं। इनको वेदों से निचला स्तर प्राप्त है, पर ये ज़्यादा आसान हैं और अधिकांश हिन्दुओं द्वारा पढ़े जाते हैं (बहुत ही कम हिन्दू वेद पढ़े होते हैं)। प्रमुख स्मृति ग्रन्थ हैं:- इतिहास--रामायण और महाभारत, भगवद गीता, पुराण--(18), मनुस्मृति, धर्मशास्त्र और धर्मसूत्र, आगम शास्त्र। भारतीय दर्शन के ६ प्रमुख अंग हैं- सांख्य दर्शन, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त।

देव और दानवों के माता-पिता का नाम

हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक देवता धर्म के तो दानव अधर्म के प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक मान्यताओं में देव-दानवों को एक ही पिता, किंतु अलग-अलग माताओं की संतान बताया गया है। इसके मुताबिक देव-दानवों के पिता ऋषि कश्यप हैं। वहीं, देवताओं की माता का नाम अदिति और दानवों की माता का नाम दिति है।[11]

२००८ की गणना के अनुसार

हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?

विश्व के विभिन्न भागों में हिन्दुओं की प्रतिशत संख्या

विश्व में अधिकतम हिन्दू जनसँख्या वाले २० राष्ट्र

  1. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    नेपाल 86.5%[12]
  2. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    भारत 80.5%
  3. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    मॉरिशस 54%[13]
  4. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    गुयाना 28%[14]
  5. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    फ़िजी 27.9%[15]
  6. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    भूटान 25%[16]
  7. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    त्रिनिदाद और टोबैगो 22.5%
  8. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    सूरीनाम 20%[17]
  9. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    श्रीलंका 15%[18]
  10. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    बांग्लादेश 9%[19]
  11. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    कतर 7.2%
  12. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    रेयूनियों 6.7%
  13. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    मलेशिया 6.3%[20]
  14. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    बहरीन 6.25%
  15. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    कुवैत 6%
  16. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    संयुक्त अरब अमीरात 5%
  17. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    सिंगापुर 4%
  18. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    ओमान 3%
  19. हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?
     
    बेलीज़ 2.3%
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    सेशेल्स 2.1%[21]

हिन्दू संस्कृति

वैदिक काल और यज्ञ

प्राचीन काल में लोग वैदिक मंत्रों और अग्नि-यज्ञ से कई देवताओं की पूजा करते थे। आर्य देवताओं की कोई मूर्ति या मन्दिर नहीं बनाते थे। प्रमुख देवता थे : देवराज इन्द्र, अग्नि, सोम और वरुण। उनके लिये वैदिक मन्त्र पढ़े जाते थे और अग्नि में घी, दूध, दही, जौ, इत्यागि की आहुति दी जाती थी।

तीर्थ एवं तीर्थ यात्रा

भारत एक विशाल देश है, लेकिन उसकी विशालता और महानता को हम तब तक नहीं जान सकते, जब तक कि उसे देखें नहीं। इस ओर वैसे अनेक महापुरूषों का ध्यान गया, लेकिन आज से बारह सौ वर्ष पहले आदिगुरू शंकराचार्य ने इसके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होनें चारों दिशाओं में भारत के छोरों पर, चार पीठ (मठ) स्थापित उत्तर में बदरीनाथ के निकट ज्योतिपीठ, दक्षिण में रामेश्वरम् के निकट श्रृंगेरी पीठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ और पश्चिम में द्वारिकापीठ। तीर्थों के प्रति हमारे देशवासियों में बड़ी भक्ति भावना है। इसलिए शंकराचार्य ने इन पीठो की स्थापना करके देशवासियों को पूरे भारत के दर्शन करने का सहज अवसर दे दिया। ये चारों तीर्थ चार धाम कहलाते है। लोगों की मान्यता है कि जो इन चारों धाम की यात्रा कर लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है।

मूर्तिपूजा

ज्यादातर हिन्दू भगवान की मूर्तियों द्वारा पूजा करते हैं। उनके लिये मूर्ति एक आसान सा साधन है, जिसमें कि एक ही निराकार ईश्वर को किसी भी मनचाहे सुन्दर रूप में देखा जा सकता है। हिन्दू लोग वास्तव में पत्थर और लोहे की पूजा नहीं करते, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं। मूर्तियाँ हिन्दुओं के लिये ईश्वर की भक्ति करने के लिये एक साधन मात्र हैं।

मंदिर

हिन्दुओं के उपासना स्थलों को मन्दिर कहते हैं। प्राचीन वैदिक काल में मन्दिर नहीं होते थे। तब उपासना अग्नि के स्थान पर होती थी जिसमें एक सोने की मूर्ति ईश्वर के प्रतीक के रूप में स्थापित की जाती थी। एक नज़रिये के मुताबिक बौद्ध और जैन धर्मों द्वारा बुद्ध और महावीर की मूर्तियों और मन्दिरों द्वारा पूजा करने की वजह से हिन्दू भी उनसे प्रभावित होकर मन्दिर बनाने लगे। हर मन्दिर में एक या अधिक देवताओं की उपासना होती है। गर्भगृह में इष्टदेव की मूर्ति प्रतिष्ठित होती है। मन्दिर प्राचीन और मध्ययुगीन भारतीय कला के श्रेष्ठतम प्रतीक हैं। कई मन्दिरों में हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं।

अधिकाँश हिन्दू चार शंकराचार्यों को (जो ज्योतिर्मठ, द्वारिका, शृंगेरी और पुरी के मठों के मठाधीश होते हैं) हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं।

त्यौहार

हिंदू धर्म की पहचान क्या है? - hindoo dharm kee pahachaan kya hai?

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नवरात्रि में अम्मन के अवतारों का प्रदर्शन

नववर्ष - द्वादशमासै: संवत्सर:।' ऐसा वेद वचन है, इसलिए यह जगत्मान्य हुआ। सर्व वर्षारंभों में अधिक योग्य प्रारंभदिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है। इसे पूरे भारत में अलग-अलग नाम से सभी हिन्दू धूम-धाम से मनाते हैं। यद्यपि प्राचीनकालमे माघशुक्ल प्रतिपदासे शिशिर ऋत्वारम्भ उत्तरायणारम्भ और नववर्षाम्भ तिनौं एक साथ माना जाता था।

हिन्दू धर्म में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है, किन्तु काल क्रम में अब यह बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश वासियों तक ही सीमित रह गया है।

आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रोत्सव आरंभ होता है। नवरात्रोत्सव में घटस्थापना करते हैं। अखंड दीप के माध्यम से नौ दिन श्री दुर्गादेवी की पूजा अर्थात् नवरात्रोत्सव मनाया जाता है।

श्रावण कृष्ण अष्टमी पर जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। इस तिथि में दिन भर उपवास कर रात्रि बारह बजे पालने में बालक श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है, उसके उपरांत प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं, अथवा अगले दिन प्रात: दही-कलाकन्द का प्रसाद लेकर उपवास खोलते हैं।

आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। दशहरे के पहले नौ दिनों (नवरात्रि) में दसों दिशाएं देवी की शक्ति से प्रभासित होती हैं, व उन पर नियंत्रण प्राप्त होता है, दसों दिशाओंपर विजय प्राप्त हुई होती है। इसी दिन राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी।

शाकाहार

किसी भी हिन्दू का शाकाहारी होना आवश्यक नहीं है हालांकि शाकाहार को सात्विक आहार माना जाता है। आवश्यकता से अधिक तला भुना शाकाहार ग्रहण करना भी राजसिक माना गया है। मांसाहार को इसलिये अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि मांस पशुओं की हत्या से मिलता है, अत: तामसिक पदार्थ है। वैदिक काल में पशुओं का मांस खाने की अनुमति नहीं थी, एक सर्वेक्षण के अनुसार आजकल लगभग 70% हिन्दू, अधिकतर ब्राह्मण व गुजराती और मारवाड़ी हिन्दू पारम्परिक रूप से शाकाहारी हैं। वे गोमांस भी कभी नहीं खाते, क्योंकि गाय को हिन्दू धर्म में माता समान माना गया है। कुछ हिन्दू मन्दिरों में पशुबलि चढ़ती है, पर आजकल यह प्रथा हिन्दुओं द्वारा ही निन्दित किये जाने से समाप्तप्राय: है।

वर्ण व्यवस्था

प्राचीन हिंदू व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था और जाति का विशेष महत्व था। चार प्रमुख वर्ण थे - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। पहले यह व्यवस्था कर्म प्रधान थी। अगर कोई सेना में काम करता था तो वह क्षत्रिय हो जाता था चाहे उसका जन्म किसी भी जाति में हुआ हो। लेकिन मध्य काल में वर्ण व्यवस्था का स्वरुप विदेशी आचार - व्यवहार एवं राज्य नियमों के तहत जाति व्यवस्था में बदल गया। विदेशी आक्रमणकारियों का शासन स्थापित होने से भारतीय जनमानस में भी उन्हीं प्रभाव हुआ। इन विदेशियों नें कुछ निर्बल भारतीयों को अपनी विस्ठा और मैला ढोने मे लगाया तथा इन्हें स्वरोजगार करने वाले लोगों (चर्मकार, धोबी, डोम {बांस से दैनिक उपयोग की वस्तुओं के निर्माता} इत्यादि) से जोड़ दिया। अंग्रेजो नें इस व्यवस्था को और अधिक विकृत किया एवं जनजातियों को भी शामिल कर दिया।।

अवतार

सनातनी हिंदू भगवान विष्णु के १० अवतार मानते हैं:- मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन, नरसिंह, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि।

हनुमान भी भगवान शिव के अवतार हैं।

भक्त

  • भक्त
  • भक्त कवि

इन्हें भी देखें

  • हिन्दू धर्म का इतिहास
  • नास्तिकता
  • अज्ञेयवाद
  • हिन्दू राष्ट्रवाद
  • बौद्ध धर्म
  • सनातन धर्म

सन्दर्भ

  1. "Knott 1998, p. 5". मूल से 23 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 अक्तूबर 2016.
  2. "Heterodox Hinduism: Supreme Court does well to uphold plural, eclectic character of the faith". मूल से 4 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2017.
  3. "श्रीमद्भगवद् गीता". मूल से १३ अगस्त २००९ को पुरालेखित. श्रीमद्भगवद्‌ गीता हिन्दू धर्म के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का सन्देश पाण्डव राजकुमार अर्जुन को सुनाया था। यह एक स्मृति ग्रन्थ है। इसमें एकेश्वरवाद की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है।
  4. "श्रीमद्भगवद्गीता सातवाँ अध्याय" (PDF). मूल (PDF) से 24 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 सितंबर 2009. यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति। तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्॥७- २१॥
  5. "श्रीमद्भगवद् गीता सातवाँ अध्याय" (PDF). मूल (PDF) से 24 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 सितंबर 2009. स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते। लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान्॥७- २२॥
  6. "हिन्दुत्व शब्द की दोबारा व्याख्या से सुप्रीम कोर्ट का इंकार". मूल से 28 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 अक्तूबर 2016.
  7. श्री अरविन्द, लाइफ डिवैन.
  8. सुभाष काक, दि गाड्स विदिन। मुंशीराम मनोहरलाल, नई दिल्ली, २००२.
  9. ↑ अ आ इ "संग्रहीत प्रति". मूल से 3 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अप्रैल 2013.
  10. "इस व्रत को करने से मन को शांति और घर में सुख आता है". दैनिक जागरण. 6 अप्रैल 2016. अभिगमन तिथि 6 अप्रैल 2016.
  11. "संग्रहीत प्रति". मूल से 3 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अप्रैल 2013.
  12. "Nepal". State.gov. मूल से 28 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-18.
  13. Dostert, Pierre Etienne. Africa 1997 (The World Today Series). Harpers Ferry, West Virginia: Stryker-Post Publications (1997), pg. 162.
  14. "CIA - The World Factbook". Cia.gov. मूल से 28 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-18.
  15. "CIA - The World Factbook". Cia.gov. मूल से 2 जनवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-18.
  16. "Bhutan". State.gov. मूल से 19 जनवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-18.
  17. "Suriname". State.gov. 2009-10-26. मूल से 19 जनवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-18.
  18. www.srilankantourism.com. "Hinduism in Sri Lanka,Sri Lanka Hindu Religious Tour,Sri Lanka Hindu Pilgrimage Tour Packages,Hindu Pilgrimage Tour to Sri Lanka,Hindu Pilgrimage Travel to Sri Lanka". Srilankantourism.com. मूल से 16 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-18.
  19. "Bangladesh". State.gov. मूल से 28 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-18.
  20. "CIA - The World Factbook". Cia.gov. मूल से 28 दिसंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-18.
  21. "CIA - The World Factbook". Cia.gov. मूल से 13 फ़रवरी 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-06-18.

बाहरी कड़ियाँ

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ज्ञान साधन
  • हिन्दू धर्म के अद्वितीय सिद्धान्त
  • हिन्दू धर्म कोश (रचनाकार : महेश शर्मा)

हिंदुओं की पहचान क्या होती है?

हिंदू अस्तित्व की पहचान है कि आप अपनी आस्था से, जन्म से, मन से हिंदू हैं. लेकिन अपनी पहचान के प्रति सजग होना और उसके प्रति चेतना का विकास होना हिंदुत्व है. अर्थात पहचान से हिंदू होने का तात्पर्य है कि क्षमाभाव, प्रेमभाव और आचरण की शुद्धता होना, अहिंसा के रास्ते पर चलना और विविधता को महत्व देना. हिंदू शब्द भाववाचक है.

हिंदुओं का असली धर्म क्या है?

हिन्दू धर्म (संस्कृत: हिन्दू धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत, नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसके अलावा सूरीनाम, फिजी इत्यादि। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म माना जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।

हिंदू धर्म के नियम क्या है?

मंदिर और पूजा में इस नियम का करें पालन इसे मानसिक जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता है। जप करते समय माला को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए। जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

हिंदू धर्म का निशान क्या है?

इन संस्कारों के नाम हैं- गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेधन, विद्यारंभ, उपनयन, वेदारंभ, केशांत, सम्वर्तन, विवाह और अंत्येष्टि। प्रत्येक हिन्दू को उक्त संस्कार को अच्छे से नियमपूर्वक करना चाहिए। यह हमारे सभ्य और हिन्दू होने की निशानी है।