इस दिल ने निजी क्षेत्र को खुली छूट देने की तरफदारी की - is dil ne nijee kshetr ko khulee chhoot dene kee taraphadaaree kee

विकास के दो जाने-माने मॉडल निजी क्षेत्र एवं सावर्जनिक क्षेत्र योजनाकारों के समक्ष थे। पूँजीवादी मॉडल में विकास का काम पूर्णतया निजी क्षेत्र के भरोसे होता है। भारत ने यह रास्ता नहीं अपनाया। भारत ने विकास का समाजवादी मॉडल भी नहीं अपनाया जिसमें निजी संपत्ति को खत्म कर दिया जाता है और हर तरह केउत्पादन पर राज्य का नियंत्रण होता है। इन दोनों ही मॉडल की कुछ एक बातों को ले लिया गया और अपने देश में इन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया गया। अर्थात् भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया। 

यहाँ पर उपरोक्त प्रश्न में यह मुद्दा उठाया गया है कि प्रारंभ में अर्थव्यवस्था में राज्य की क्या भूमिका रही और यह कहा गया है कि प्रारंभ में भारतीय नीति-निर्माताओं ने राज्य की भूमिका को महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया। अगर शुरुआत में ही निजी क्षेत्र का पक्ष लिया जाता अर्थात् निजी क्षेत्र के मॉडल को अपनाया जाता तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर होता। इस विचार के पक्ष व विपक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं:

पक्ष- यदि भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र को छूट दी जाती तो भारत में औद्योगिक विकास अधिक होता,,जिससे देश के विकास में भी वृद्धि होती। देश में गरीबी पर भी कुछ हद तक नियंत्रण किया जा सकता था। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी भारत और भी आगे निकल सकता था तथा लोगों को रोजगार के अधिक अवसर भी मिलते।

विपक्ष- लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी के हितों का ध्यान रखने के बारे में विचार विमर्श होता हैं। निजी क्षेत्र में छूट देने से समाज में प्रतिस्पर्धा और प्रतियोगिता का वातावरण बना रहता हैं जिससे समाज के आर्थिक वर्गों के बीच असमानता एंव विषमताएँ बढ़ जाती हैं। निजी क्षेत्रों के अधिक आगमन से पूंजीपतियों का विकास होता हैं तथा सामाजिक न्याय की अवहेलना भी होती हैं। इतना ही नहीं निजी क्षेत्रों के हस्तक्षेप से कृषि की भी अवहेलना होती हैं।