कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं? - kabahun palak hari moondi let hain?

अ+ अ-

कविता

जसोदा हरि पालनैं झुलावै
सूरदास

जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै।
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै।
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै।
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै।।


कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं? - kabahun palak hari moondi let hain?
  
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हिंदी समय में सूरदास की रचनाएँ

    कविताएँ
  • अँखियाँ हरि-दरसन की प्यासी
  • अँखियाँ हरि-दरसन की भूखीं
  • अद्भुत एक अनूपम बाग
  • अधर-रस मुरली लूटन लागी
  • अविगत गति कछु कहत न आवै
  • आए जोग सिखावन पाँड़े
  • आजु हौं एक एक करि टरिहौं
  • आयौ घोष बड़ौ ब्यौपारी
  • ऊधौ बिनति सुनौ इक मेरी
  • ऊधौ मन न भए दस बीस
  • ऊधौ मन नहिं हाथ हमारैं
  • ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं
  • ऊधौ होउ आगे तैं न्यारे
  • कहाँ लौं बरनौं सुंदरताई
  • चरन कमल बंदौ हरि राई
  • चोरी करत कान्ह धरि पाए
  • जब हरि मुरली अधर धरत
  • जुवति अंग छवि निरखत स्याम
  • जसुमति मन अभिलाष करै
  • जसोदा हरि पालनैं झुलावै
  • जा दिन मन पंछी उड़ि जैहैं
  • जागिए ब्रजराज कुँवर कमल-कुसुम फूले
  • तजौ मन, हरि-बिमुखनि को सँग
  • देखे सात कमल इक ठौर
  • नैन न मेरे हाथ रहे
  • नैन भए बोहित के काग
  • नाथ अनाथन की सुधि लीजै
  • निरगुन कौन देस कौ बासी
  • निसि दिन बरसत नैन हमारे
  • प्रीति करि काहू सुख न लह्यो
  • बूझत स्याम कौन तू गोरी
  • बिनु गोपाल बैरिन भईं कुंजैं
  • बिलग हम मानैं ऊधौ काकौ
  • मधुकर यह जानी तुम साँची
  • मन मैं रह्यौ नाहिंन ठौर
  • मनहीं मन रीझति महतारी
  • मैया कबहि बढ़ैगी चोटी
  • मैया मैं नहिं माखन खायौ
  • मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायौ
  • मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं
  • मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावै
  • मो सम कौन कुटिल खल कामी
  • मोहिं कहतिं जुबती सब चोर
  • मोहिं छुवौ जनि दूर रहौ जू
  • संदेसौ दैवकी सौं कहियौ
  • सोइ रसना जो हरिगुन गावै
  • सोभित कर नवनीत लिए
  • हम भक्तनि के भक्त हमारे
  • हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ
  • हमारैं हरि हारिल की लकरी

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
कौन किसको सुलाने का प्रयास कर रहा है?

उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने माता यशोदा का कृष्ण के प्रति प्यार को प्रदर्शित किया है। यहाँ पर माता यशोदा कृष्ण को सुलाने का प्रयास कर रही है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
यशोदा बालक कृष्ण को सुलाने के लिए क्या-क्या यत्न कर रही है?

उत्तर :
यशोदा जी बालक कृष्ण को सुलाने के लिए पलने में झुला रही हैं। कभी प्यार करके पुचकारती हैं और लोरी गाती रहती है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
कृष्ण को सोता हुआ जानकर यशोदा क्या करती हैं?

उत्तर:
कृष्ण को सोते समझकर यशोदा माता चुप हो जाती हैं और दूसरी गोपियों को भी संकेत करके समझाती हैं कि वे सब भी चुप रहे।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
सूरदास के अनुसार यशोदा कौन-सा सुख पा रही हैं?

उत्तर:
सूरदास जी कहते हैं कि जो सुख देवताओं तथा मुनियों के लिये भी दुर्लभ है, वही श्याम को बालरूप में पाकर लालन-पालन तथा प्यार करने का सुख यशोदा प्राप्त कर रही हैं।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
खीजत जात माखन खात।
अरुन लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात॥
कबहुँ रुनझुन चलत घुटुरुनि, धूरि धूसर गात।
कबहुँ झुक कै अलक खैँचत, नैन जल भरि जात॥
कबहुँ तोतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा, निमिष तजत न मात॥
इस दोहे में सूरदास जी ने क्या वर्णन किया है?

उत्तर:
इस दोहे में सूरदास जी ने श्रीकृष्ण के अनुपम बाल सौन्दर्य का वर्णन किया है।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
खीजत जात माखन खात।
अरुन लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात॥
कबहुँ रुनझुन चलत घुटुरुनि, धूरि धूसर गात।
कबहुँ झुक कै अलक खैँचत, नैन जल भरि जात॥
कबहुँ तोतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा, निमिष तजत न मात॥
बाल कृष्ण कैसे चलते हैं?

उत्तर:
बाल कृष्ण घुटनों के बल चलते हैं। उनके पैरों में घुंघरुओं की आवाज़ आती है।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
खीजत जात माखन खात।
अरुन लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात॥
कबहुँ रुनझुन चलत घुटुरुनि, धूरि धूसर गात।
कबहुँ झुक कै अलक खैँचत, नैन जल भरि जात॥
कबहुँ तोतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा, निमिष तजत न मात॥
बाल कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन कीजिए।

उत्तर:
बाल कृष्ण बहुत सुंदर हैं। उनके नेत्र सुंदर हैं, भौंहें टेढ़ी हैं तथा वे बार-बार जम्हाई ले रहे हैं। उनका शरीर धूल में सना है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
खीजत जात माखन खात।
अरुन लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात॥
कबहुँ रुनझुन चलत घुटुरुनि, धूरि धूसर गात।
कबहुँ झुक कै अलक खैँचत, नैन जल भरि जात॥
कबहुँ तोतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा, निमिष तजत न मात॥
बाल कृष्ण कैसी जबान में बोलते हैं?

उत्तर:
बाल कृष्ण तोतली जबान में बोलते हैं।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को, तेरौ सुत न कहैहौं॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
उपर्युक्त पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
उपर्युक्त पद महाकवि सूरदास द्वारा रचित है। इस पद में बाल कृष्ण अपनी यशोदा माता से चंद्रमा रूपी खिलौना लेने की हठ कर रहे हैं उसका वर्णन किया गया है।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को, तेरौ सुत न कहैहौं॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
अपनी हठ पूरी न होने पर बाल कृष्ण अपनी माता को क्या-क्या कह रहे हैं?

उत्तर:
अपनी हठ पूरी न होने पर बाल कृष्ण अपनी माता को कहते हैं कि जब तक उन्हें चाँद रूपी खिलौना नहीं मिल जाता तब तक वह न तो भोजन ग्रहण करेंगे, न चोटी गुँथवाएगे, न मोतियों की माला पहनेंगे, न उनकी गोद में आएँगे, न ही नंद बाबा और यशोदा माता के बेटे कहलाएँगे।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को, तेरौ सुत न कहैहौं॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
यशोदा माता श्रीकृष्ण को मनाने के लिए क्या कहती है?

उत्तर:
यशोदा माता श्रीकृष्ण को मनाने के लिए उनके कान में कहती है, तुम ध्यान से सुनो। कहीं बलराम न सुन ले। तुम तो मेरे चंदा हो और में तुम्हारे लिए सुंदर दुल्हन लाऊँगी।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को, तेरौ सुत न कहैहौं॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
माँ यशोदा की बात सुनकर श्रीकृष्ण की क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर:
माँ यशोदा की बात सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं माता तुझको मेरी सौगन्ध। तुम मुझे अभी ब्याहने चलो।

कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं कबहुँ अधर फरकावै?

कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै। सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥ इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै। जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नंद-भामिनि पावै॥

जसोदा हरि पालने झुलावै हलरावै दुलराय मल्हावै जोइ कछु गावै इन पंक्तियों में कौन सा रस है?

Explanation: जसोदा हरि पालनैं झुलावै में वात्सल्य रस है। वात्सल्य रस की परिभाषा अनुसार — माता—पिता का संतान के प्रति जो स्नेह होता है, उसे 'वात्सल्य' कहते हैं, यही 'वात्सल्य' स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में संयुक्त होकर रस रूप में परिणत हो जाता है, तब 'वात्सल्य रस' कहलाता है।