कलौंजी के बीज कैसे होते हैं? - kalaunjee ke beej kaise hote hain?

कलौंजी की खेती व्यापारिक फसल के तौर पर की जाती है. इसकी बीज बहुत ही ज्यादा लाभकारी होते हैं. विभिन्न जगहों पर इसे कई नामों से जाना जाता है. इसका बीज अत्यंत छोटा होता है. जिसका रंग कला दिखाई देता है. इसके बीज का स्वाद हल्की कड़वाहट लिए तीखा होता है. जिसका इस्तेमाल नान, ब्रैड, केक और आचारों को खुशबूदार बनाने और खट्टापन बढ़ाने के लिए किया जाता है.

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • उन्नत किस्में
    • एन. आर. सी. एस. एस. ए. एन. – 1
    • आजाद कलौंजी
    • पंत कृष्णा
    • एन. एस.-32
  • खेत की तैयारी
  • बीज रोपाई का तरीका और टाइम
  • पौधों की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • कटवा इल्ली
    • जड़ गलन
  • पौधों की कटाई
  • पैदावार और लाभ

कलौंजी के बीज कैसे होते हैं? - kalaunjee ke beej kaise hote hain?
कलौंजी की खेती

इसके बीज में इसमें 35 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 21 प्रतिशत प्रोटीन और 35-38 प्रतिशत वसा पाई जाती है. खाने के अलावा कलौंजी का इस्तेमाल चिकित्सा के रूप में भी होता है. इसके बीजों से निकलने वाले तेल से हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह, कमर दर्द और पथरी जैसे रोगों में फायदा देखने को मिलता है. इसके अलावा इसके तेल का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन की चीजों को बनाने में भी किया जाता है.

कलौंजी का पौधा शुष्क और आद्र जलवायु के लिए उपयुक्त होता है. इसके पौधे को विकास करने के लिए ठंड की ज्यादा जरूरत होती है. जबकि पौधे के पकने के दौरान उसे अधिक तापमान की जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त होती है.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

कलौंजी की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थ से युक्त बलुई दोमट सबसे उपयुक्त होती है. कलौंजी की खेती के लिए भूमि में जल निकासी अच्छे से होनी चाहिए. इसकी खेती पथरीली भूमि में नही की जा सकती. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

इसकी खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए सर्दी और गर्मी दोनों की जरूरत होती है. इसके पौधे को विकास करने के लिए ठंड की जरूरत होती है. और पकने के दौरान तेज़ गर्मी की जरूरत होती है. इस कारण भारत में इसकी खेती ज्यादातर रबी की फसल के साथ की जाती है. इसके पौधों को ज्यादा बारिश की जरूरत नही होती.

इसके पौधों को अलग अलग समय में अलग अलग तापमान की जरूरत होती है. अंकुरण के वक्त इसके बीजों को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद विकास करने के लिए 18 डिग्री के आसपास का तापमान उपयुक्त होता है. और फसल के पकने के दौरान तापमान 30 डिग्री के आसपास अच्छा होता है.

उन्नत किस्में

कलौंजी की कई उन्नत किस्में हैं जिन्हें उनकी पैदावार के आधार पर तैयार किया गया है.

एन. आर. सी. एस. एस. ए. एन. – 1

कलौंजी की ये एक उन्नत किस्म है. इस किस्म के पौधे की लम्बाई दो फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 135 से 140 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

आजाद कलौंजी

कलौंजी की इस किस्म को उत्तर प्रदेश में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के होते है. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 10 से 12 क्विंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 140 से 150 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं.

पंत कृष्णा

कलौंजी की इस किस्म के पौधे की लम्बाई दो से ढाई फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8 से 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

एन. एस.-32

कलौंजी के बीज कैसे होते हैं? - kalaunjee ke beej kaise hote hain?
उन्नत किस्म का पौधा

कलोंजी की ये एक नई उन्नत किस्म है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के होते है. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 10 से 15 क्विंटल तक पाया जाता है. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 140 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं.

खेत की तैयारी

कलौंजी की खेती के लिए शुरुआत में खेत की अच्छे से सफाई कर उसकी दो से तीन तिरछी जुताई कर दें. उसके बाद खेत में उचित मात्रा में पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत का पलेव कर दे. पलेव करने के बाद जब खेत की मिट्टी सूखने लगे तब उसकी फिर से रोटावेटर की सहायता से जुताई कर दे. इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है. खेत की जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी को समतल बना लें.

बीज रोपाई का तरीका और टाइम

कलौंजी की बुवाई बीज के माध्यम से की जाती है. इसके लिए समतल बनाए गए खेत में उचित आकार वाली क्यारी तैयार कर लें. इन क्यारियों में इसके बीज की रोपाई की जाती है. इसके बीजों की रोपाई खेत में छिडकाव विधि से की जाती है. एक हेक्टेयर में इसकी रोपाई के लिए लगभग 7 किलो बीज की जरूरत होती है. इसके बीज को खेत में लगाने से पहले उसे उपचारित कर लेना चाहिए. बीज को उपचारित करने के लिए थिरम की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए.

कलौंजी की खेती रबी की फसलों के साथ ही जाती है. इस दौरान इसके बीजों की रोपाई का टाइम मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक का होता है. इस दौरान इसकी रोपाई कर देनी चाहिए. लेकिन अक्टूबर ले लास्ट तक भी इसकी बुवाई की जा सकती है.

पौधों की सिंचाई

कलौंजी के पौधों को पानी की सामान्य जरूरत होती है. इसके बीजों को खेत में लगाने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए. उसके बाद बीजों के अंकुरित होने तक नमी बनाये रखने के लिए खेत की हल्की सिंचाई उचित टाइम पर कर देनी चाहिए. पौधे के विकास के दौरान 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

कलौंजी के पौधे को उर्वरक की जरूरत बाकी फसलों की तरह ही होती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की जुताई के वक्त लगभग 10 से 12 गाडी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद को खेत में जुताई के साथ दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में दो से तीन बोर एन.पी.के. की मात्रा को खेत में आखिरी जुताई के वक्त देनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

कलौंजी की खेती में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से किया जाता है. इसके लिए शुरुआत में बीज रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद पौधों की हल्की नीलाई कर देनी चाहिए. कलौंजी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की दो से तीन गुड़ाई काफी होती है. पहली गुड़ाई के बाद बाकी की गुड़ाई 15 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

कलौंजी के पौधों में काफी कम ही रोग देखने को मिलते हैं. लेकिन कुछ ऐसे रोग हैं जो इसके पौधों को नुक्सान पहुँचाकर पैदावार पर असर डालते हैं. जिनकी समय रहते उचित देखभाल कर पैदावार में होने वाले नुक्सान से बचा जा सकता हैं.

कटवा इल्ली

कटवा इल्ली का रोग पौधे के अंकुरित होने के बाद किसी भी अवस्था में लग सकता है. इस रोग के लगने पर पौधा बहुत जल्द खराब हो जाता है. क्योंकि इस रोग के कीट पौधे को जमीन की सतह के पास से काटकर नष्ट कर देते हैं. खेत में जब इस रोग का प्रकोप दिखाई देने लगे तब क्लोरोपाइरीफास की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों की जड़ों में कर देना चाहिए.

जड़ गलन

जड़ गलन का रोग पौधों पर बारिश के मौसम में जलभराव होने पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधा मुरझाने लगता है. उसके बाद पत्तियां पीली होकर सूखने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों में जलभराव की स्थिति ना होने दे. इसके अलावा प्रमाणित बीज को ही खेत में उगाना चाहिए.

पौधों की कटाई

कलौंजी के बीज कैसे होते हैं? - kalaunjee ke beej kaise hote hain?
कटाई के लिए तैयार फसल

इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. पौधों के पकने के बाद उन्हें जड़ सहित उखाड़ लिया जाता है. पौधे को उखाड़ने के बाद उसे कुछ दिन तेज़ धूप में सूखाने के लिए खेत में ही एकत्रित कर छोड़ देते हैं. उसके बाद जब पौधा पूरी तरह सुख जाता है. तब लकड़ियों से पीटकर दानो को निकाल लिया जाता है.

पैदावार और लाभ

कलौंजी के पौधों की विभिन्न किस्मों को औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पाई जाती है. जिसका बाज़ार भाव 20 हज़ार प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जिस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से दो लाख के आसपास कमाई कर लेता है.

कलौंजी प्याज का बीज होता है क्या?

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कलौंजी के बीज को हिंदी में क्या कहते हैं?

कलौंजी एक तरह का बीज है. इसे अंग्रेजी में Nigella Sativa कहते हैं. भारत के लगभग हर किचन में मिलने वाले कलौंजी में मौजूद शरीर की हर समस्या के समाधान में कारगर हैं. खासतौर से बाल से संबंध‍ित परेशानियों से निजात दिलाने में यह बेहद कारगर है...

कलौंजी को देसी भाषा में क्या कहते हैं?

कलौंजी को पानी में उबालकर पीने से दमा में राहत मिलती है.

कलौंजी कौन सा बीज है?

काले बीज या कलौंजी को "आशीष के बीज" भी कहते हैं, क्योंकि इन्हें सबसे महत्वपुर्ण चिकित्सक हर्ब माना जाता है। यह काले बीज कलौंजी के झाड़ीयों में मिलते हैं, जिन्हें संपूर्ण भारत में उगाया जाता है। यह बीज लगभग तिल जितने बड़े होते हैं, हालांकि इनका आकार अंडाकार की तुलना में त्रिकोन होता है