कार्बन मोनोऑक्साइड को प्रदूषक माना जाता है क्योंकि वह - kaarban monooksaid ko pradooshak maana jaata hai kyonki vah

कार्बन-मोनोऑक्साइड (सीओ) को एथिलीन में बदलने से वातावरण में प्रदूषण फैलने से रोका जा सकता है। इस तकनीक से सीओ को एथिलीन में बदलने के लिए बहुत कम ऊर्जा लगती है

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By Dayanidhi

On: Monday 16 December 2019

 

कार्बन मोनोऑक्साइड को प्रदूषक माना जाता है क्योंकि वह - kaarban monooksaid ko pradooshak maana jaata hai kyonki vah

 

कार्बन मोनोऑक्साइड को प्रदूषक माना जाता है क्योंकि वह - kaarban monooksaid ko pradooshak maana jaata hai kyonki vah

कार्बन मोनोऑक्साइड को प्रदूषक माना जाता है क्योंकि वह - kaarban monooksaid ko pradooshak maana jaata hai kyonki vah

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कार्बन मोनोऑक्साइड को प्रदूषक माना जाता है क्योंकि वह - kaarban monooksaid ko pradooshak maana jaata hai kyonki vah

कार्बन मोनोऑक्साइड को प्रदूषक माना जाता है क्योंकि वह - kaarban monooksaid ko pradooshak maana jaata hai kyonki vah
Photo credit: Pixabay

एथिलीन या एथीन रासायनिक उद्योग के लिए पहला कच्चा माल है। इससे प्लास्टिक के विभिन्न प्रकार की सामग्री तैयार की जा सकती है। वैज्ञानिकों ने कार्बन मोनोऑक्साइड को एथिलीन में बदलने की एक नई तकनीक बनाई है। इस तकनीक से एथिलीन को कम ऊर्जा का उपयोग कर प्राप्त किया जा सकता है। कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) एक जहरीली गैस है। यह गैसोलीन, केरोसिन, तेल, प्रोपेन, कोयला, या लकड़ी के जलने से उत्पन्न होती है।

कार्बन मोनोऑक्साइड लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है। कार्बन मोनोऑक्साइड की अधिकता वाले वातावरण में सांस लेने से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती हैं। इसके कारण महत्वपूर्ण अंग, जैसे कि मस्तिष्क, तंत्रिका ऊतक और हृदय, को ठीक से काम करने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। इसके सबसे आम लक्षण सिरदर्द, चक्कर आना, कमजोरी, पेट खराब होना, उल्टी, सीने में दर्द और भ्रम होना है।  

कार्बन-मोनोऑक्साइड (सीओ) को एथिलीन में बदलने से वातावरण में प्रदूषण फैलने से रोका जा सकता है। इस तकनीक से सीओ को एथिलीन में बदलने के लिए बहुत कम ऊर्जा लगती है। एथिलीन आमतौर पर पेट्रोलियम रिफाइनरियों से प्राप्त नेफ्था की भाप के द्वारा निर्मित होता है। इस प्रक्रिया मे अधिक समय लग जाता है, जिसमें हाइड्रोकार्बन को 800 से 900 डिग्री सेल्सियस के ताप पर छोटी श्रृंखलाओं में विभाजित किया जाता है। इस शोध को जर्मन केमिकल सोसायटी के जर्नल अंगवंदते कैमी में प्रकाशित किया गया है।

फिशर-ट्रोप्स प्रक्रिया का उपयोग एथिलीन सहित हाइड्रोकार्बन के मिश्रण में गैस को परिवर्तित करने के लिए किया जा सकता है। इस विधि में बहुत अधिक ऊर्जा लगती है, इसे 200 से 250 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है, 5 से 50 बार गैस पर दबाव बढ़ाया जाता है। इस प्रक्रिया में बहुमूल्य हाइड्रोजन की खपत बहुत अधिक होती है। इस विधि में एथिलीन को अलग करने की प्रक्रिया जटिल है, और इससे 30-50 फीसदी सीओ2 का उत्पादन भी हो जाता है, जो एक अनचाहा उत्सर्जन है।

चाइनीज़ एकेडमी ऑफ़ साइंसेज, डालियान इंस्टीट्यूट ऑफ़ केमिकल फ़िज़िक्स के शोधकर्ताओं ने अब एथिलीन के उत्पादन के लिए इलेक्ट्रोकैटलिटिक प्रक्रिया के तहत नई तकनीक इजाद की है। इस विधि में, कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) को उत्प्रेरक पर डाला जाता है, साथ ही इस पर विद्युत प्रवाह का उपयोग किया जाता है।

सीओ को एथिलीन में बदलने के लिए, शोधकर्ताओं द्वारा इलेक्ट्रोड पर गैस डाली गई। इसमें उत्प्रेरक सक्रिय रूप में कार्य करता है। यह इलेक्ट्रोड में सीओ के मिश्रण को बढ़ाता है और कार्बन परमाणुओं के बीच इक युग्मन (कपलिंग) बढ़ाता है। इस प्रतिक्रिया के उत्पाद, इथेनॉल, एन-प्रोपेनोल और एसिटिक एसिड, जैसे तरल पदार्थ होते हैं, जिसमें से गैसीय एथिलीन को आसानी से अलग किया जा सकता है।

इस तरह शोधकर्ताओं ने बिना सीओ2 उत्सर्जन के, बहुत कम ऊर्जा के उपयोग से कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) को एथिलीन में बदल दिया।

प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिये एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 20 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की सूची जारी की थी, इन 20 शहरों में से 14 भारतीय शहरों का नाम शामिल है। दिल्ली तो प्रदूषण के मामले में एक दशक से भी अधिक समय से चर्चा का विषय बनी हुई है,  इसकी हवा में निलंबित कणों का स्तर इतना अधिक है कि समय-समय पर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनियाँ भी जारी करनी पड़ती हैं। लेकिन वर्तमान समय में केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि सभी बड़े भारतीय शहरों में प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। 

क्या है प्रदूषण?

प्रदूषण का तात्पर्य है प्राकृतिक संतुलन में दोष उत्पन्न हो जाना, इस प्राकृतिक असंतुलन के कारण न तो शुद्ध वायु मिलती है, न शुद्ध जल और न ही न शुद्ध खाद्य पदार्थ मिलते हैं, कुल मिलाकर हम कह सकते हैं की हमारा वातावरण पूर्ण रूप से अशुद्ध हो जाता है।

वायु प्रदूषण

विभिन्न रसायनों, सूक्ष्म पदार्थों या जैविक पदार्थों का वायु में शामिल हो जाना ही वायु प्रदूषण है प्रदूषण है। यह न केवल मानव अपितु जंतुओं तथा वृक्षों के लिये भी हानिकारक होता है।

वायु प्रदूषण की बुनियाद

कार्बन मोनोऑक्साइड- यह एक अधजला कार्बन है जो कि पेट्रोल, डीज़ल, ईंधन और लकड़ी के जलने से उत्पन्न होता है। यह सिगरेट से भी उत्पन्न होता है। इसके कारण ऑक्सीजन में कमी होती है । 

कार्बन डाइऑक्साइड- यह एक ग्रीन हाउस गैस है। जब मानव कोयला, तेल और प्राकृतिक गैसों का दहन करता है तो इनके जलने से कार्बन डाइ ऑक्साइडगैस पैदा होती है। 

क्लोरो-फ्लोरो कार्बन- यह ओज़ोन को नष्ट करने वाला एक रसायन है। इसका उपयोग  एयर-कन्डीशनिंग और रेफ्रीजरेटर के लिये किया जाता है। इसके कण हवा से मिलकर हमारे वायुमंडल के समताप मंडल (stratosphere) तक पहुँच जाते हैं और अन्य गैसों के साथ मिलकर ओज़ोन परत को हानि पहुँचाते हैं। 

सीसा (Lead)- सीसा, डीज़ल, पेट्रोल, बैटरी, पेंट और हेयर डाई आदि में पाया जाता है। लेड खासतौर से बच्चों को प्रभावित करता है। इससे दिमाग और पेट की क्रिया खराब हो जाती है। इससे कैंसर भी हो सकता है। 

ओज़ोन (Ozone) : ओज़ोन लेयर वायुमंडल में समताप मंडल (stratosphere) की सबसे ऊपरी परत है। इसका कार्य सूरज की पराबैंगनी किरणों को भूमि की सतह पर आने से रोकना है। फिर भी यह जमीनी स्तर पर बहुत ज्यादा दूषित है और विषैली भी है। कल-कारखानों से ओज़ोन काफी तादाद में निकलती है। ओज़ोन से आँखों में पानी आता है और जलन होती है। नाइट्रोजन ऑक्साइड - इसकी वज़ह से धुंध की स्थिति और अम्लीय वर्षा होती है। यह गैस पेट्रोल, डीज़ल और कोयले के जलने से उत्पन्न होती है। 

निलंबित अभिकणीय पदार्थ (Suspended Particulate Matter : SPM) -  ये वायु में ठोस, धुएँ, धूल के कण के रूप में होते हैं जो एक खास समय तक वायु में उपस्थित रहते हैं। यह फेफड़ों को हानि पहुँचाता है जिसके कारण साँस लेने में परेशानी होती है। 

सल्फर डाइऑक्साइड - जब कोयले को थर्मल पावर प्लांट में जलाया जाता है तो उससे 'सल्फर डाइऑक्साइड' गैस मुक्त होती है। धातु को गलाने और कागज़ को तैयार करने में निकलने वाली गैसों में भी 'सल्फर डाइऑक्साइड' होती है। यह गैस धुंध पैदा करने और अम्लीय वर्षा में बहुत ज्यादा सहायक है। सल्फर डाइऑक्साइड की वज़ह से फेफड़ों से संबंधित बीमारियाँ हो जाती हैं।

वायु प्रदूषण के बारे में क्या कहते हैं आँकड़े?

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट (सन् 2016) के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ 20 लाख मौतें पर्यावरण प्रदूषण के कारण होती हैं।
  • दुनिया में प्रत्येक 10 व्यक्तियों में से 9 प्रदूषित हवा में साँस लेते हैं।
  • लगभग 42 लाख लोग  वायु प्रदूषण  की वज़ह से मौत के शिकार हुए और 38 लाख लोगों की मौत कुकिंग और प्रदूषित ईंधन के कारण हुई।
  • भारत में वायु प्रदूषण के कारण हर साल लगभग 12 लाख मौतें होती हैं। यदि व्यापक स्तर पर रोकथाम न हुई तो यह सन् 2050 तक 36 लाख मौतों के आँकड़े को पार कर जाएगा।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन  की रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न बीमारियों में 8 लाख मौतें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (COPD) के कारण, लगभग 8 लाख मौतें स्ट्रोक के कारण, लगभग 7 लाख 20 हज़ार इस्केमिक हार्ट डिज़ीज़ (IHD) के कारण, लगभग साढ़े चार लाख मौतें फेफड़ों में संक्रमण के कारण और 1.5 लाख मौतें विभिन्न प्रकार के कैंसर के कारण हुई हैं।

वायु प्रदूषण को रोकने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • वर्ष 1981 में भारत सरकार द्वारा वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 अधिनियमित किया गया।
  • इस अधिनियम के अनुसार केंद्र व राज्य सरकार दोनों को वायु प्रदूषण से हाने वाले प्रभावों का सामना करने के लिये निम्नलिखित शक्तिययाँ प्रदान की गई हैं –
    ♦ राज्य के किसी भी क्षेत्र को वायु प्रदूषित क्षेत्र घोषित करना और प्रदूषण नियंत्रित क्षेत्रों में औद्योगिक क्रियाओं को रोकना। 
    ♦ औद्योगिक इकाई स्थापित करने से पहले बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेना।
    ♦ वायु प्रदूषकों के सैंपल इकट्ठा करना। 
    ♦ अधिनियम में दिये गए प्रावधानों के अनुपालन की जाँच के लिये किसी भी औद्योगिक इकाई में प्रवेश का अधिकार। 
    ♦ अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध मुकदमा चलाने का अधिकार। 
    ♦ प्रदूषित इकाइयों को बंद करने का अधिकार।

वायु प्रदूषण के लिये किये गए उपायों का प्रभाव

  • प्रदूषण से निपटने के लिये कुछ मौसमी उपाय पेश किये गए हैं, जिनमें से ज़्यादातर अदालत के फैसलों के बाद शुरू किये गए हैं। 
  • विभिन्न प्रकोष्ठों द्वारा यह सुनिश्चित होता है कि वायु प्रदूषण को रोकने के सभी उपाय अप्रभावी सिद्ध हुए हैं।
  • इस बीच, वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

वायु प्रदूषण के समाधान के लिये प्राकृतिक विकल्प

उपर्युक्त सभी उपायों के सफल न होने के कारण अब केवल एक ही उपाय बचा है और वह है प्रकृति की सहायता लेना। 

  • सड़कों और राजमार्गों के साथ विभाजक के साथ उपयुक्त पेड़ लगाकर पर्यावरण को हरित करना एक संभावित समाधान है क्योंकि पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं  और ऑक्सीजन जारी करते समय कार्बन को स्टोर करते हैं। 
  • परिपक्व वृक्षों का एक एकड़ एक वर्ष में अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा मध्यम आकार की कार के रूप में 40,000 किमी चलती है। 
  • पेड़ गंध और प्रदूषक गैसों - नाइट्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के ऑक्साइड को अवशोषित करके हवा को साफ करते हैं । 

बढ़ते तापमान को कम करने के लिये वृक्षों का प्रयोग

  • वनों के क्षेत्रफल में कमी, गर्मी को अवशोषित करने वाली सड़कों तथा इमारतों की संख्या में वृद्धि के कारण शहरों का औसत तापमान बढ़ता है। 
  • वृक्ष शहरों के तापमान को कम करने में मदद करते है, ध्वनि प्रदूषण को कम करते हैं और हरे रंग के एक सुखद आवरण का निर्माण करते हैं।

क्या वृक्षारोपण वायु प्रदूषण का उचित समाधान है?

  • वृक्षारोपण एक उचित समाधान है लेकिन इसकी प्रक्रिया बहुत धीमी होती है।
  • पेड़ों को पर्याप्त स्थानिक घनत्व और कैनोपी विकसित करने में कई वर्षों का समय लगता है।
  • साथ ही, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 'विकास' के लिये आंतरिक शहर और राजमार्ग सड़कों को चौड़ा करने के नाम पर 50 वर्षों से अधिक पुराने परिपक्व वृक्षों की बलि दे दी गई है।
  • हालाँकि, परिपक्व वृक्षों की कमी को पूरा करने के कई तरीके हैं। 

मेक्सिको से सीख लेने की आवश्यकता

कई भारतीय शहरों की ही तरह वायु प्रदूषण से प्रभावित एक मध्य अमेरिकी शहर मेक्सिको ने वायु प्रदूषण की समस्या का हल निकालने के लिये एक सफल तरीका लागू किया है।

  • पिछले दो दशकों के दौरान, मेक्सिको शहर वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हुआ था।
  • लेकिन सार्वजनिक दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्धता के साथ ‘वाया वर्दे’ या 'ग्रीन वे' नामक एक परियोजना के माध्यम से इसे प्रदूषित हवा को साफ करने का एक बेहतर तरीका मिला।

क्या है मेक्सिको की परियोजना?

  • इस परियोजना के माध्यम से मेक्सिको सिटी की वायु गुणवत्ता में सुधार लाने तथा इसकी सुन्दरता को बढ़ाने के लिये 1000 से अधिक ऊँचे स्तंभों को उर्ध्वाधर बागीचों में बदल दिया गया है।
  • उपयोग किये गए खंभों का कुल क्षेत्रफल 600,000 वर्ग फीट से अधिक है। 
  • ऊर्ध्वाधर उद्यान मिट्टी के समान गुणों और घनत्व के लिये पुनर्नवीनीकरण किये जा सकने वाले प्लास्टिक से बने विशेष प्रकार की बोतलों में पौधों को विकसित करने के लिये एक स्वच्छ तकनीक का उपयोग करते हैं।

मेक्सिको को उर्ध्वाधर वनों से लाभ

  • ये ऊर्ध्वाधर बगीचे हरे रंग के 500,000 पौधों को जीवित रखने रखने के लिये वर्षा जल का उपयोग करते हैं।
  • ये पर्यावरण से सालाना 27,000 टन प्रदूषण फ़ैलाने वाले गैसों को सोख लेते हैं। 
  • ये 25,000 लोगों के लिये सालाना तौर पर पर्याप्त ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं। 
  • ये 11,000 टन से अधिक धूल कणों को भी आकर्षित करते हैं। 
  • इस हरियाली के कारण यात्रियों का तनाव भी कम होता है।

और किन देशों में प्रचलित है ये तकनीक?

  • वायु प्रदूषण से लड़ने के लिये बढ़ते उर्ध्वाधर उद्यानों की यह अभिनव तकनीक अब चीन, जर्मनी, जापान, यू.एस. और फ्राँस में प्रचलित है। 
  • चीन के जियांग्सु प्रांत के  नानजिंग में एक "ऊर्ध्वाधर जंगल" (vertical forest) का विकास किया जा रहा है, जिसमें हर दिन लगभग 60 किलोग्राम ऑक्सीजन उत्पन्न करने की क्षमता है और यह 25 टन कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करने की क्षमता रखता है। 
  • चीन में लोग साँस लेने के लिये औसत स्तर की तुलना में 3,000 गुना शुद्ध ऑक्सीजन का उपयोग कर सकेंगे।

चीन के उर्ध्वाधर जंगल की विशेषता

  • वास्तुकार स्टेफानो बोएरी द्वारा डिज़ाइन किया गया, "वन" टावरों की एक जोड़ी होगा।
  • जुड़वां टावरों में 2,500 अन्य पौधों और झाड़ियों के साथ, 1,100 बड़े और मध्यम आकार के वृक्ष होंगे। 
  • 35 मंजिलों के साथ टावरों में से एक की ऊँचाई 200 मीटर होगी। 
  • इसमें एक संग्रहालय, इसकी छत पर एक निजी क्लब और हरित इमारतों में विशेषज्ञता वाला वास्तुकला का एक स्कूल होगा।
  • छोटा टावर सिर्फ 100 मीटर लंबा होगा, लेकिन यह एक महँगी परियोजना है।

कैसे लागू हो सकती है भारत में यह योजना?

  • मेक्सिको का वाया वर्दे मॉडल उच्च लागत वाला नहीं है क्योंकि इसमें किसी चीज़ के निर्माण करने की आवश्यकता नहीं है। 
  • ऊँचे राजमार्गों को सहारा देने वाले खंभों पर छोटे पौधों तथा लताओं को उगाया जा सकता है;  सौन्दर्यीकरण के लिये, फूलों वाली लताओं को भी जा सकता है। 
  • ऐसे पौधों को सड़क के सामान्य फ्लाईओवर पर भी उपयुक्त समर्थन देने वाले स्तंभों  के साथ उगाया जा सकता है जिनके चारों और दीवारों का क्षेत्रफल अधिक होता है।

निष्कर्ष

यदि ऐसी परियोजनाओं को लागू किया जाता है तो ये परियोजनाएँ वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के साथ-साथ शहरों की सुंदरता बढ़ाने और रोज़गार निर्माता बन सकती हैं क्योंकि इन बागानों की देखभाल करने के लिये अनुभवी लोगों की आवश्यकता होगी। इसे भारत के ठोस जंगलों (शहर के भीतर ऐसा क्षेत्र जहाँ बड़ी संख्या में आधुनिक इमारतें हो और जिन्हें खतरनाक तथा अप्रिय माना जाता है) के लिये बेहतर भविष्य के रूप में देखा जाना चाहिये।

कार्बन मोनोऑक्साइड को प्रदूषण माना जाता है क्योंकि वह?

कार्बन मोनोऑक्साइड लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है। कार्बन मोनोऑक्साइड की अधिकता वाले वातावरण में सांस लेने से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती हैं। इसके कारण महत्वपूर्ण अंग, जैसे कि मस्तिष्क, तंत्रिका ऊतक और हृदय, को ठीक से काम करने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है।

3 CO प्रदूषक है क्योंकि यह?

Solution : `CO_(2)` मुख्य रूप से वायु प्रदूषक है। यह हीमोग्लोबिन की `O_(2)` , वहन क्षमता कम करता है जिसे . एसफिक्शियेशन. कहते हैं।

कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन का मिश्रण क्या कहलाता है?

सही उत्तर जल गैस है। जल-गैस कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन गैस का मिश्रण है।

कार्बन मोनोऑक्साइड की क्या विशेषता है यह हमारे रक्त संचार पर क्या प्रभाव डालती है?

कार्बन मोनोक्साइड (CO) (अंग्रेजी:Carbon monoxide) एक रंगहीन गैस है। यह गैस हवा से थोड़ी हल्की होती है। ऊँची सांद्रता में यह मनुष्यों और जानवरों के लिए विषाक्त होती है, हालाँकि कम मात्रा में यह कुछ सामान्य जैविक कार्यों के लिए उपयोगी साबित होती है।