मनीष कुमार जैन Published Sep 7, 2016 किताबें झाँकती है बंद अलमारी के शीशों से जो ग़ज़लें वो सुनाती थी कि जिनके शल कभी गिरते नही थे जबाँ पर ज़ायका आता था सफ़्हे पलटने का कभी सीनें पर रखकर लेट जाते थे वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइन्दा भी ====================== मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता वो कमरे बंद हैं कबसे मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता वहाँ एक बालकनी भी थी, जहां एक बेंत का झूला लटकता
था. उसी के सामने एक छत थी, जहाँ पर मेरे बच्चों ने वो देखा नहीं, उसी मंज़िल पे एक पुश्तैनी बैठक थी बहू को मूछों वाले सारे पुरखे क्लीशे [Cliche] लगते थे मेरी मंज़िल पे मेरे सामने वो एक कमरा जो
पीछे की तरफ बंद और उसके बाद एक दो सीढिया हैं, मकान की ऊपरी मंज़िल पर कोई नहीं रहता... =========================== वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा शायद आया था वो ख़्वाब से दबे पांव ही चंद तुतलाते हुए बोलों में आहट सुनी चूड़ियाँ चढ़ती-उतरती थीं कलाई पे मुसलसल वक़्त को आते न जाते न गुज़रते देखा ================== वो जो शायर था चुप-सा रहता
था जमा करता था चाँद के साए वक़्त के इस घनेरे जंगल में चाँद से गिर के मर गया है वो ======================= खुशबू जैसे लोग
मिले अफ़साने में जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
Explore topicsकिताबे झाँकती है बंद आलमारी के शीशों से किसकी रचना है?किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से / गुलज़ार
किताबें कविता के लेखक कौन है?रचनाकार : सपना भट्ट प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
गुलजार के अनुसार अब नींद में चलने की आदत कैसे हो गई है?उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है जो कदरें वो सुनाती थी कि जिनके 'सेल' कभी मरते नहीं थे, . वो कदरें अब नजर आती नहीं घर में, जो रिश्ते वो सुनाती थीं । ( वह सारे उधड़े - उधड़े हैं ।)
बंद अलमारी के शीशों से कौन बड़ी हसरत से तकती है?प्रस्तुत कविता में गुलजार ने किताबों के कम हो रहे चलन के बारे में बताया है। उनके अनुसार किताबें अब सिर्फ अलमारी में बंद रहती हैं और उससे बाहर निकलने की हसरत लिए वे अलमारी के शीशे से ताकती रहती हैं। महीने बीत जाते हैं, लेकिन किताबों से मुलाकात नहीं होती है।
|