कुटीर उद्योग सामूहिक रूप से उन उद्योगों को कहते हैं जिनमें उत्पाद एवं सेवाओं का सृजन अपने घर में ही किया जाता है न कि किसी कारखाने में। कुटीर उद्योगों में कुशल कारीगरों द्वारा कम पूंजी एवं अधिक कुशलता से अपने हाथों के माध्यम से अपने घरों में वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।
भारत में प्राचीन काल से ही कुटीर उद्योगों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अंग्रेजों के भारत आगमन के पश्चात् देश में कुटीर उद्योगों तेजी से नष्ट हुए एवं परम्परागत कारीगरों ने अन्य व्यवसाय अपना लिया। किन्तु स्वदेशी आन्दोलन के प्रभाव से पुनः कुटीर उद्योगों को बल मिला और वर्तमान में तो कुटीर उद्योग आधुनिक तकनीकी के समानान्तर भूमिका निभा रहे हैं। अब इनमें कुशलता एवं परिश्रम के अतिरिक्त छोटे पैमाने पर मशीनों का भी उपयोग किया जाने लगा है।
परिभाषा[संपादित करें]
एशिया एवं सुदूर पूर्व के आर्थिक आयोग द्वारा कुटीर उद्योगों को इस प्रकार परिभाषित किया गया हैं -
कुटीर उद्योग वे उद्योग हैं, जिनका एक ही परिवार के सदस्यों द्वारा पूर्णरूप से अथवा आंशिक रूप से संचालन किया जाता है।भारत के द्वितीय योजना आयोग द्वारा इसी परिभाषा को मान्यता प्रदान की गयी है। इसके अतिरिक्त 'प्रो. काले' ने कुटीर उद्योगों को परिभाषित करते हुए कहा है-
कुटीर उद्योग इस प्रकार के संगठन को कहते हैं जिसके अन्तर्गत स्वतन्त्र उत्पादनकर्ता अपनी पूंजी लगाता है और अपने श्रम के कुल उत्पादन का स्वयं अधिकारी होता है।प्रकार[संपादित करें]
कुटीर उद्योगों को निम्नलिखित वर्गों में रखा जाता है-
- (१) ग्रामीण कुटीर उद्योग
- (२) नगरीय कुटीर उद्योग
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग
कुटीर शब्द का वास्तविक अर्थ झोपड़ी से है लेकिन झोपड़ी में किये जाने वाले कार्य अथवा व्यवसाय से नहीं बल्कि ऐसे उद्योग से है जहां किसी दुकान अथवा घर 1-2 कमरों में कुछ उपकरण व सीमित तथा सामान्य मशीनें लगाकर किसी वस्तु का उत्पादन किया जाये उसे कुटीर उद्योग कहते है ग्रामीण क्षेत्रों में तो वंश परंपरा एवं अनेक परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस स्तर पर कार्य करते आ रहे हैं प्रायः पूरा ही परिवार कुटीर उद्योग में उत्पादित होने वाली वस्तुओं के निर्माण में लगा रहता है इस प्रकार के उद्योग को चलाने वाला व्यक्ति स्वयं व्यवसाय का स्वामी होता है और वही कर्मचारी है जिन व्यक्तियों के पास पूंजी का पूर्ण अभाव है और कोई विशेष तकनीकी अनुभव व दक्षता नहीं है तो वह भी इस स्तर पर अनेक आधुनिक उद्योग प्रारंभ कर सकते हैं कुटीर उद्योग वे उद्योग हैं जिनका ग्रामीण अथवा शहरी क्षेत्रों में एक ही परिवार के सभी अथवा कुछ सदस्यों द्वारा पूर्ण रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी संचालन किया जाता है आदि इसकी विशेषताएं हैं उपरोक्त समस्याओं के चलते 20 सूत्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत सरकार कुटीर एवं लघु उद्योगों को सहायता प्रदान कर रही है इन पर उत्पादन बिक्री या आयकर जैसे टैक्स भी नहीं लगाए गए हैं बल्कि इन्हें कम ब्याज दर पर बिना जमानत बैंकों से आसानी से ऋण प्राप्त
हो जाता है साथ ही मशीनों की खरीद पर विशेष अनुदान व वित्तीय सहायता भी दी जाती है कुटीर उद्योग का परिचय | Cottage Industry
कुटीर उद्योग क्या है?
कुटीर उद्योग की
परिभाषा
कुटीर उद्योगों की विशेषताएं एवं लाभ
कुटीर
उद्योगों की समस्याएं
सरकार द्वारा कुटीर उद्योगों को दी जाने वाली सुविधाएं
कुटीर उद्योगों के प्रकार
- ग्रामीण (Rural Cottage Industries)
- नगरीय (Urban Cottage Industry)
ग्रामीण कुटीर उद्योग को दो प्रकार में बांटा गया है
- कृषि सहायक कुटीर उद्योग
- अन्य कुटीर उद्योग
1. कृषि सहायक कुटीर उद्योग
इसके अंतर्गत कृषि संबंधित उत्पादन किया जाता है जो कि प्रायः कच्चे माल की भूमिका निभाते हैं इसमें विशेषकर टोकरी बनाना, सूत काटना, चावल एवं दालों को तैयार करना, बीड़ी बनाना, अचार, पापड़ आलू चिप्स आदि उद्योग शामिल है
कृषि सहायक उद्योग का प्रारंभ व संचालन आसान है क्योंकि इसमें प्रयुक्त होने वाले जितने भी कच्चे माल होते हैं वह सभी आप के खेतों में या ग्रामीण क्षेत्रों के निकट आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं कृषि द्वारा निर्मित कच्चे माल से सम्बंधित व्यवसाय शुरू कर के अच्छे पैसे कमाए जा सकते हैं
2. अन्य कुटीर उद्योग
अन्य कुटीर उद्योगों में वे रोजगार आते हैं जिन पर कारीगरों की जीविका निर्भर करती है इसमें विशेष रूप से चटाई निर्माण, मिट्टी के बर्तन बनाना, लोहारी का काम और हस्त शिल्प का काम शामिल है
इसी प्रकार के अन्य किसी भी व्यवसाय को अपनी रूचि के अनुसार शुरू करना लाभदाई हो सकता है क्योंकि इसमें जितने भी कच्चे माल का उपयोग होता है वह आसानी से गांव में उपलब्ध रहता है और इन्वेस्टमेंट भी कम होता है
नगरीय कुटीर उद्योग को दो प्रकार में बांटा गया है
- किंचित नगरीय कुटीर उद्योग
- शहरी कुटीर उद्योग
1. किंचित नगरी कुटीर उद्योग
किंचित नगरिया कुटीर उद्योग में परंपरागत, कुशलता, दक्षता, अनुभव व कारीगरी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जैसे वाराणसी का जरी, लखनऊ का चिकन, जयपुर की रजाई, या महेश्वरी साड़ियां आदि निर्माण इसके उदाहरण के तौर पर लिए जा सकते हैं
2. शहरी कुटीर उद्योग
शहरी कुटीर उद्योग में अधिक मात्रा में आधुनिक तकनीकी व उपकरण तथा इसमें उपयोग आने वाली मशीनों का समावेश होता है इसमें विशेष रूप से हथकरघा सूती कपड़े, साड़ी, दरी आदि बनाई जाती है
कुटीर उद्योग में कौन-कौन से प्रकार के व्यापार आते हैं?
[2021] कुटीर उद्योग के कुछ उदाहरण
- हथकरघा की वस्तुएं
- कपड़ों की सिलाई व एंब्रॉयडरी
- बॉल पेन, पेन रिफिल का निर्माण
- चौक, पेम व स्लट बनाना
- इत्र, सेंट और अगरबत्ती बनाना
- मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाना
- लकड़ी के खिलौने बनाना
- चमड़े के जूते-चप्पल का निर्माण
- हथकरघा पर दरी, खेस और अन्य कपड़े बनाना
- कपड़ों की रंगाई छपाई
- धातु के बर्तन
- हस्त शिल्प
- लोहे और लकड़ी की विभिन्न वस्तुओं का निर्माण
- दोने पत्तल का निर्माण
- केंचुआ खाद बनाना
- पापड़, बड़ी, मंगोड़ी, अचार व मसाला आदि
बेरोजगारी दूर करने में कैसे सहायक?
जिन व्यक्तियों के पास पूंजी का पूर्ण रूप से आभाव है और किसी विशेष योग्यता अथवा तकनीकी क्षमता से भी रहित है वह इस स्तर पर आधुनिक उद्योग प्रारंभ कर सकते हैं इस हेतु सरकार MINISTRY OF MICRO, SMALL & MEDIUM ENTERPRISES (MSME) के तहत विभिन्न योजनाओं के माध्यम से ऋण सुविधा, मशीनें, उपकरणों व कच्चे माल की प्राप्ति भी सरकार द्वारा रियायती दरों पर की जाती है
बेरोजगार युवा दर्जनों ऐसे उद्योगो में से इस स्तर पर अपनी रूचि के अनुसर प्रारंभ कर प्रथम दिवस से ही कुछ रोजी-रोटी अर्जित कर सकते हैं उदाहरण के तोर पर अधिकांश विद्युत उपकरणों का निर्माण तथा स्क्रीन प्रिंटिंग एवं फ्लेक्स होल्डिंग, बैनर, इनविटेशन कार्ड का निर्माण करने पर कुछ ही रुपए की सहायता से किसी भी शहर में कोई भी व्यक्ति आसानी से 8-10 हजार रुपय हर माह कमा सकता है
सैकड़ों इस प्रकार की वस्तुएं हैं जिन्हें बहुत ही छोटे स्तर पर आसानी से तैयार किया जा सकता है और कम प्रयास से ही बेहतर लाभ अर्जित किया जा सकता है