कवयित्री के अनुसार भवसागर पार कराने वाले नाविक कौन है? - kavayitree ke anusaar bhavasaagar paar karaane vaale naavik kaun hai?

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(क) संपूर्ण पघांशों की व्याख्या

(1) मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसे उड़ी जहाज कौ पंछी, फिरी जहाज पर आवै।
कमल-नैन को छाँड़ी महातम और देव को ध्यावै?
परम गंग को छाँड़ी पियासौ, दुरमति कूप खनावै।
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील फल भावै।
सूरदास, प्रभु, कामधेनु, तजि, छोरी कौन दुहावै ?

संदर्भ– प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा-भारती' के पाठ 'भक्ति के पद' से अवतरित है। इसके रचियता 'सूरदास' है।
प्रसंग– प्रस्तुत पद में सूरदास ने अपनी दीनता भरी विनती को स्पष्ट किया है। वे आशा करते हैं कि हे भगवान श्री कृष्ण जी ! आपके ही चरणों में मुझे शरण प्राप्त होगी।
व्याख्या– मेरा मन दूसरे स्थान पर किस तरह सुख प्राप्त कर सकता है। जिस तरह समुद्री जहाज से जमीन के होने की जानकारी के लिए छोड़ा गया पक्षी लौटकर फिर से जहाज पर ही आ जाता है, क्योंकि स्थल पास में नहीं होता है। उसे उसी जहाज पर शरण प्राप्त होती है। उसी पक्षी की तरह यह मेरा मूर्ख बना मन श्रीकृष्ण को छोड़कर किसी दूसरे देव का ध्यान क्यों धरता है। महान् पुण्यशाली पवित्र गंगा को छोड़कर मूर्ख और कुबुद्धि मनुष्य ही कुआँ खोदने की बात सोचता है। जिस भौरे ने कमल के पराग का ही पान किया हो, वह भौरा करील के फल (टेंटी) क्यों खायेगा ? सूरदास वर्णन करते हैं कि कामधेनु को छोड़कर बकरी दुधने का विचार कौन करता है ? तात्पर्य यह है कि भगवान श्री कृष्ण को छोड़कर, हे मेरे मन ! तू किस दूसरे देव की आराधना करने का विचार करता है ? यदि तू ऐसा करता है तो निश्चय ही तू बड़ा मूर्ख है, उचित और अनुचित के भेद को तू नहीं जानता है।

(2) जाऊँ कहाँ तजि चरन तिहारे ?
काको नाम पतित पावन ? जग केही अति दीन पियारे ?
कौन देव बराय बिरद-हित,हठि-हठि अधम उधारे ?
खग, मृग, ब्याघ, पषान, बिटप, जड़, जवन कवन सुर तारे ?
देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब, माया–बिबस बिचारे ।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु कहा 'अपनपौ हारे'।।

संदर्भ– प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा भारती' के पाठ 'भक्ति के पद' से अवतरित है इसके रचियता 'गोस्वामी तुलसीदास' है।
प्रसंग– तुलसीदास भगवान राम के प्रति अपनी अटूट भक्ति और विश्वास को प्रकट करते हैं वे अपने इष्ट राम के चरणों में ही शरण प्राप्त करते हैं।
व्याख्या– तुलसीदास जी कहते हैं कि भगवान राम ! मैं आपके चरणों की भक्ति को छोड़कर कहाँ जाऊँ? आपके अतिरिक्त किसका नाम पतितपावन है? दीनों के प्रति किसे अति प्रेम है? अन्य कौन सा देवता है जिसने हठपूर्वक अपने यश के लिए पापियों का उद्धार किया हो? पक्षी (जटायु), मृग (मारीच), व्याध (वाल्मीकि), पाषान (अहिल्या), वृक्ष (यमलार्जुन), जड़ (भरतमुनि) आदि का किस देवता ने संसार-सागर से उद्धार किया है? देव, राक्षस, मुनि, नाग और मनुष्य आदि सभी माया के वशीभूत होकर दयनीय बने हुए हैं। इसलिए, तुलसीदास अपने आपको समझाते हुए कहते हैं कि इनके समक्ष तू (तुलसी) अपनी दीनता का बखान क्यों करता है?

(3) अब कैसे छूटै नाम रट लागी ?
प्रभुजी तुम चंदन हम पानी, जा की अँग-अँग बास समानी।।
प्रभुजी तुम धनवन हम मोरा, जैसे चितवन चंद चकोरा।
प्रभुजी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरे दिन राती।।
प्रभुजी तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करे रैदासा।।

संदर्भ– प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा-भारती' के पाठ 'भक्ति के पद' से अवतरित है। इसके रचयिता भक्त कवि 'रैदास' है
प्रसंग– भक्त कवि रैदास ने इस पद में बताया है कि वह 'दास' भाव की भक्ति करते हैं।
व्याख्या– हे प्रभु ! तुम्हारे नाम की लगी हुई रट किसी भी तरह नहीं छूट सकती। तुम सुगंधित चंदन हो, हम (मैं) पानी के समान हैं। चंदन की सुगंध जल के साथ मिलकर उसमें समा जाती है। उसी तरह, हे प्रभु! तुम्हारी भक्ति में मेरा अंग-अंग डूबा हुआ है! हे प्रभु! तुम बादल के समान हो, और हम (भक्तगण) मोर के समान है। हम आपकी तरह ठीक उसी तरह एकटक होकर देखते रहते हैं, जिस तरह चकोर पक्षी चंद्रमा की और देखता है। आगे फिर कभी कहता है कि हे ईश्वर! तुम दीपक हो और हम उस दीपक की बाती के समान है, जिसकी लौ की ज्योति रात-दिन जलती रहती है अर्थात् तुम्हारा ही तेज सर्वत्र बिखरा हुआ है। कवि फिर कहता है कि हे ईश्वर! तुम मोती के समान हो और मोती पिरोए गए धागे के समान हम (भक्त) लोग हैं अर्थात् भक्तों ईश्वर से मिलकर अपनी बात बना ले जाता है रैदास कभी कहते हैं कि हे प्रभो ! मैं आपका दास हूँ। और तुम मेरे स्वामी हो। इस तरह मैं दास भाव की भक्ति करता हूँ।

(4) पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सबायो।।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस गायो।।

संदर्भ– प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा-भारती' के पाठ 'भक्ति के पद' से अवतरित है। इस पद की रचयिता भक्त कवयित्री 'मीराबाई' हैं।
प्रसंग– मीरा भगवान कृष्ण की भक्ति करती हैं। वह उनके यश का गान बहुत ही हर्षपूर्वक करती हैं।
व्याख्या– मीराबाई कहती है कि मैंने राम रूपी रतन को धन के रूप में प्राप्त कर लिया है। मेरे श्रेष्ठ गुरु ने मुझे एक पेशकीमती वस्तु प्रदान की है। मेरे गुरु ने बड़ी की कृपा करते हुए मुझे अपना लिया है। इस तरह मैंने प्रत्येक जन्म की पूँजी प्राप्त कर ली है। संसार संबंधित सब कुछ (धन इत्यादि) खो दिया। यह भक्ति रूपी संपत्ति बहुत ही अजब है जिसे किसी भी तरह खर्च नहीं किया जा सकता। कोई चोर भी इसे चुरा नहीं सकता या भक्ति रूपी धन प्रतिदिन ही सवाया होकर बड़ता जा रहा है। सत्य की नाव को खेने वाला यदि सतगुरु है, तो आसानी से ही संसार रूपी सागर को सहज ही पार किया जा सकता है। मीरा वर्णन करती है कि मेरे प्रभु को गोवर्धन पर्वत की धारण करने वाले हैं, वह अति चतुर है। मैंने तो उनके यश का गान हर्षित होकर किया है।

कक्षा 8 हिन्दी के इन 👇 पाठों के बारे में भी जानें।
1. पाठ 1 वर दे! कविता का भावार्थ
2. पाठ 1 वर दे! अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
3. उपमा अलंकार एवं उसके अंग
4. पाठ 2 'आत्मविश्वास' अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
5. मध्य प्रदेश की संगीत विरासत पाठ के प्रश्नोत्तर एवं भाषा अध्ययन
6. पाठ 8 अपराजिता हिन्दी (भाषा भारती) प्रश्नोत्तर एवं भाषाअध्ययन
7. पाठ–5 'श्री मुफ़्तानन्द जी से मिलिए' अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं भाषा अध्ययन)

शब्दार्थ–
मेरौ = मेरा
अनत = अन्यत्र , दूसरी जगह
पावै = प्राप्त कर सकता है
पंछी = पक्षी
फिरी = लौटकर
आवै = आ-जाता है
कमल-नयन = कमल के समान नेत्र वाले भगवान कृष्ण
छाँड़ी = छोड़कर या अतिरिक्त
महातम = महान् मूर्ख
और देव= अन्य देवता को
ध्यावै = ध्यान करता है
परम = महान् पियासौ = प्यासा व्यक्ति
दुरमति = दुर्बुद्धि
कूप = कुआँ
खानावै = खुदवाता है
जिहिं = जिस
मधुकर = भौरे ने
अंबुज-रस = कमल के पराग का
चाख्यौ = आस्वादन किया है
करील फल = टेंटी
भावै = अच्छी लगे
छेरी = बकरी
दुहावै =दुहेगा
तजि = छोड़कर
तिहारे = तुम्हारे
काको = किसका
पतित-पावन = नीच व्यक्ति का उद्धार करने वाला
जग = संसार में
केहि = किसको
अति = बहुत अधिक
दीन = गरीब
पियारे = प्रिय हैं
बराय = दूसरा
बिरद-हित = यश के लिए
हठि-हठि = हटपूर्वक
अधम = पापियों का
उधारे = उद्धार किया है
खग = जटायु
मृग = मारीच
ब्याघ = वाल्मीकि जो पहले डाकू थे
पषान = अहिल्या
बिटप = यमलार्जुन
जड़ = भरतमुनि
मनुज = मनुष्य
माया-बिबस = माया से भ्रमित होकर
बिचारे = दीन बने हुए है
अपनपौ = अपनेपन अर्थात् अपने दीनता
हारे = हार मान जाये
छूटै = समाप्त हो
नाम रट = भगवान के नाम की रट
अँग-अँग = शरीर के प्रत्येक अंग में
बास = सुगंध
समानी = व्याप्त हो गई है
घन = बादल
वन = जंगल (संसार)
हम = प्राणी
मोरा = मोर है
जैसे = जिस तरह
चितवन = एक टक होकर देखता रहता है
चंद = चंद्रमा को
चकोरा = चकोर पक्षी
बाती = बत्ती
ज्योति = प्रकाश, उजाला
बरे = जलती है
दिन राती = रात और दिन
सोनहि = सोने में
पायो = प्राप्त कर लिया है
अमोलक = अमूल्य बेशकीमती
किरपा = कृपा, दया
अपनायो = अपना लिया है, स्वीकार कर लिया है।
पूँजी = संपत्ति
खोवायो = खो दिया है
दिन-दिन = प्रतिदिन,रोजाना
बढ़त = वृद्धि हो रही है
सबायो = सवा गुना
सत = सत्य
खेवटिया = खेने वाला
तर आयो = उध्दार प्राप्त कर लिया
नागर = चतुर
हरख-हरख = हर्षित होकर, प्रसन्न होकर
जस = यश, कीर्ति
गायो = गाया है।

कक्षा 5 हिन्दी के इन 👇 पाठों को भी पढ़ें।
1. पाठ 1 'पुष्प की अभिलाषा' कविता का भावार्थ
2. पाठ 1 'पुष्प की अभिलाषा' अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण
3. पाठ 2 'बुद्धि का फल' कक्षा पाँचवी
4. पाठ 3 पं. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर अभ्यास कार्य (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण
5. पाठ 4 'हम भी सीखें' कविता का भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
6. पाठ 5 ईदगाह अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1 निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए–
उत्तर–पंछी = पक्षी
कूप = कुआँ
मधुकर = भौरा
ताजि = छोड़कर
अधम = नीच
दनुज = राक्षस, दानव
धन = बादल
चकोरा = चकोर, चकवा-चकवी
पूँजी = धन
छाँड़ि = छोड़कर
छेरी = बकरी
अम्बुज = कमल
उधारे = उध्दार किया
बास = सुगन्ध।

प्रश्न 2 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए–
(क) सूर के मन को सुख कहाँ प्राप्त होता है ?
उत्तर– सूरदास के मन को सुख भगवान श्री कृष्ण के चरणों की भक्ति में प्राप्त होता है।
(ख) अधम का उध्दारक कौन है ?
उत्तर– अधम का उध्दारक भगवान राम है।
(ग) रैदास किसके आराधक थे ?
उत्तर– रैदास ईश्वर के नाम के आराधक थे ।
(घ) मीराबाई को कौन-सा रत्न प्राप्त हो गया ?
उत्तर– मीराबाई को राम रत्न प्राप्त हो गया।

प्रश्न 3निम्नलिखित विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए–
(क) "प्रभुजी तुम चंदन हम पानी......." पंक्ति किस कवि की है ?
(अ) सूर
(आ) तुलसी
(इ) रैदास
(ई)मीराबाई ।
उत्तर–(इ) रैदास।
(ख) तुलसीदास की भक्ति निम्नलिखित में से किस भाव की है ?
(अ) सखाभाव
(आ) दासभाव
(इ) मित्रभाव
(ई) गुरुभाव।
उत्तर–(आ) दासभाव।
(ग) ब्रज भूमि में किसकी झाड़ियाँ (कुंज) अधिक मिलती हैं?
(अ) आम
(आ) जामुन
(इ) नीम
(ई) करील।
उत्तर–(ई) करील।
(घ) निम्नलिखित रचनाकारों में से किसका संबंध राजस्थान से था ?
(अ) सूर
(आ) तुलसी
(इ) मीरा
(ई) बिहारी ।
उत्तर– (इ) मीरा।

प्रश्न 4 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए–
(क) 'जहाज का पक्षी' किस बात का प्रतीक है ? आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– 'जहाज का पक्षी' भगवान कृष्ण रूपी जहाज पर स्थल के दूर क्या समीप होने की जानकारी देने वाला पक्षी रूप भक्त है। जिस तरह समुद्र से यात्रा करने वाले जहाज से जमीन किधर है और कितनी दूर है इसकी जानकारी लेने के लिए पक्षियों को छोड़ा जाता है। जब जमीन कहीं नहीं दिखती और जमीन पक्षियों की पहुंच से बाहर होती थी, तो पक्षी लौटकर जहाज पर ही आ जाते थे। यदि जमीन दूर या समीप होती, तो पक्षी उसी दिशा में उड़ते हुए चले जाते थे और वह जमीन ही उनकी शरण स्थल बन जाती थी। नाविक भी जहाज को उसी दिशा में खेने लग जाते थे। उस जमीन पर जाकर जहाज अपना लंगर डाल देता था। यह उस समय होता था जब कुतुबनुमा आदि दिशासूचक यान्त्रों का अविष्कार नहीं हुआ था। इस पद में कवि ने अपने आपको जहाज के पक्षी के (भक्त) रूप में चित्रित किया है जो बार-बार सभी और से निराश होकर श्री कृष्ण के चरणों रूपी जहाज पर शरण प्राप्त करता है।

(ख) तुलसी ने किस-किसके उद्धार का उल्लेख किया है?
उत्तर– तुलसी ने वर्णन किया है कि खग (जटायु), मृग (मारीच), व्याघ (वाल्मीकि), पषाण (शाप से पत्थर बनकर पड़ी हुई गौतम पत्नी अहिल्या), बिटप (यमलार्जुन नामक वृक्ष), जड़ (भरत मुनि), आदि का उद्धार भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में और भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में किया था । जटायु पक्षी सीता हरण के समय, सीता को बचाने के लिए रावण से संघर्ष करते हुए घायल हो गया था। श्रीराम ने उसका उद्धार किया था। मृग (मारीच) रावण का संबंधी था जो रावण की सहायता के लिए कपट-मृग (स्वर्ण मृग) बना था, जिसका राम ने उद्धार किया था। व्याध (वाल्मीकि) पहले डाकू थे। राम शब्द का उल्टा जाप करने से उनका कल्याण हो गया। पषान (अहिल्या) गौतम ऋषि की पत्नी थीं। वे अपने ऋषि पति के द्वारा दिए गए शाप के कारण पत्थर (पाषाण) बन गई थी।भगवान राम ने अपने चरणों की धूल के प्रताप से उनका उद्धार किया था। यमलार्जुन को श्राप लगा और वे वृक्ष बन गए थे। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने उनका उद्धार किया। इस तरह विभिन्न रूप में पतित हुए प्राणियों का भगवान ने उचित समय पर उद्धार किया था।

(ग) रैदास ने भगवान से अपना संबंध स्थापित करते हुए किस-किससे अपने को जोड़ा है ?
उत्तर– रैदास ने भगवान से अपने आपको कई तरह से जोड़ा है। उन्होंने भगवान को चंदन, घन (बादल), चंद्रमा, दीपक, मोती, के रूप में है और अपने आपको क्रमशः पानी, मोर, चकोर, बत्ती, धागे के रूप में चित्रित किया है। चंदन पानी के संयोग से घिस जाता है और उसकी गंध फैलने लगती है। बादल की गरजना के साथ ही मोर कूकता है। चंद्रमा को चकोर एकटक ही देखता है। दीपक में बत्ती होती है, वह दीपक ही ज्योति भी बिखेरती है। मोतियों में धागा पिरोया जाता है, फिर हार (माला) बन जाता है। सोने को सुहागे से चमक प्राप्त होती है। इस तरह ईश्वर से इन जीवों का विभिन्न प्रकार का संबंध है।

(घ) मीरा की भक्ति भावना पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर– मीरा की भक्ति दास भावना से ओत-प्रोत है। वे भगवान कृष्ण की भक्त दासी हैं। ईश्वर की भक्ति उनके लिए वह रत्न है जिसे कोई चोर चुरा नहीं सकता, खर्च करने पर भी खर्च नहीं होता। भगवान को भक्ति का रत्न तो प्रतिदिन सवाया ही होता जाता है इस प्रकार ईश-भक्ति से मनुष्य सतगुरु की कृपा प्राप्त कर लेता है और सत पर आधारित मनुष्य की जीवन नौका बड़ी सरलता से संसार सागर को पार कर जाती है। ईश्वर की भक्ति ही मनुष्य को उध्दार प्राप्त कराने का एकमात्र साधन है। ईश्वर की भक्ति तो संसार की विविध वस्तुओं के प्रति मोह त्यागने पर ही प्राप्त होती है।

प्रश्न 5 निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए–
(क) कौन देव बराय बिरद-हित, हठि- हठि अधम उधारे ?
उत्तर– 'संपूर्ण पघांशों की व्याख्या' शीर्षक के पघांश–2 की व्याख्या देखिए।
(ख) सूरदास प्रभु काम धेनु ताजि, छेरी कौन दुहावै ?
उत्तर– 'संपूर्ण पद्यांशों की व्याख्या' शीर्षक के पद्यांश–1 की व्याख्या देखिए।

प्रश्न 6 निम्नलिखित पंक्तियों का संदर्भ सहित भाव स्पष्ट कीजिए–
(क) प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।
उत्तर– इस पंक्ति के संदर्भ सहित भाव के लिए 'संपूर्ण पद्यांशो की व्याख्या' शीर्षक के पद्यांश–03 की व्याख्या संदर्भ-प्रसंग सहित देखिए।
(ख) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनयो।।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिंकोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सवायो।।
उत्तर– इन पंक्तियों के संदर्भ सहित भाव के लिए 'संपूर्ण पद्यांशों की व्याख्या' शीर्षक के पद्यांश–04 की व्याख्या संदर्भ-सहित देखिए।

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भाषा–अध्ययन

प्रश्न 1 दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प छाँटकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए–
(क) पंछी तद्भव शब्द है। इसका तत्सम रूप...... है।
(पक्षी, पक्षि, पंच्छी)
(ख) चरन तद्भव शब्द है। इसका तत्सम रूप..... है।
(पैर, चारन, चरण)
(ग) कमल का पर्यायवाची........शब्द है।
(नीरद, जलद, नीरज)
(घ) रात का पर्यायवाची......... है।
(दिननाथ, रजनीपति, रजनी)
उत्तर– (क) पक्षी
(ख) चरण
(ग) नीरज
(घ) रजनी ।

प्रश्न 2 निम्नलिखित वर्ग पहेली मे रात, पानी, कमल के दो-दो पर्यायवाची शब्द दिए हैं। उन्हें ढूँढिए तथा लिखिए।
उत्तर– शब्द - पर्यायवाची
रात = रात्रि, रजनी।
पानी = तोय, जल ।
कमल = नीरज, तोयज।

प्रश्न 3 तालिका में दिए गए शब्दों की सही जोड़ी बनाइए।
उत्तर– तद्भव शब्द................ तत्सम शब्द
(क) महातम......................(1) दुर्मति
(ख) दुरमति.......................(2) स्वर्ण
(ग) मानुस.........................(3) माहात्म्य
(घ) सोना...........................(4) मनुष्य
उत्तर– (क) माहात्म्य
(ख) दुर्मति
(ग) मनुष्य
(घ) स्वर्ण ।

प्रश्न 4. निम्नलिखित छंदों में प्रयुक्त मात्राएँ गिनकर लक्षण के अनुसार छंद का नाम लिखिए-
(क) वृक्ष कबहु नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर।।
उत्तर– यह छंद दोहा है। यह मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके विषय चरणों में 13 13 मात्राएँ तथा सम चरणों में 11 11 मात्राएँ हैं।
।। ।।। । s । । । s । s । s s s । = ( 13-11 मात्राएँ)
वृक्ष कबहु नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।
।। s ।। s s। s s ।। । s । s । s । = ( 13-11 मात्राएँ )
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर।।
अतः यह दोहा छंद है।
(ख) कुन्द इन्दु सम देह, उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन मयन।।
उत्तर– । s । s ।। s । । s ।।। ।। s ।।।
कुन्द इन्दु सम देह, उमा रमन करुना अयन। ( 13-11 मात्राएं )
s । s ।।। s । ।।। s s ।।। ।।।
जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन मयन।( 13-11 मात्राएं )
अतः यह सोरठा छन्द है। (ग) जेहि सुमिरत सिधि होय, गन नायक करिवन वदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।
उत्तर– s । ।।।। । । । । ।। s । । ।।।। ।।।
जेहि सुमिरत सिधि होय, गन नायक करिवन। वदन।( 13-11 मात्राएँ )
।।। ।।।। s । । s s। । । ।। ।।।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।( 13-11 मात्राएँ )
अतः यह सोरठा छंद है।
खंड– ख और ग सोरठा छंद के उदाहरण है। सोरठ छंद मात्रिक छंद होता है। यह दोहे का उल्टा होता है। इसके विषम चरणों में 11 11 मात्राएं तथा सम चरणों में 13 13 मात्राएं होती हैं।

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आशा है, उपरोक्त पाठ विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगा।
धन्यवाद।
RF Temre
infosrf.com

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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घोसी (मऊ) : इस लोक में मोक्ष प्राप्त करने और भवसागर से पार उतरने को प्रभु के नाम का स्मरण ही पर्याप्त है।

कवयित्री ललद्यद के अनुसार उतराई देने का क्या आशय है?

कवयित्री ललद्यद के अनुसार 'उत्तरराई' देने का आशय ईश्वर द्वारा संसार रूपी भवसागर को पार करा देने के बाद बदले में दिया जाने वाला शुल्क है।

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