राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – तुलसीदासयहाँ हम पढ़ने वले हैं Show
1.तुलसीदास का जीवन परिचय- Tulsidas Ka Jeevan Parichay: गोस्वामी तुलसीदास के जन्म एवं स्थान के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। परन्तु अधिकांश विद्वान इनका जन्म 1532 में सोरों में मानते हैं। इनके पिता एवं माता का नाम आत्मा राम दुबे एवं हुलसी था। इनका बचपन काफी कष्टपूर्ण था। बचपन में ही ये अपने माता-पिता से बिछड़ गए थे। इनके गुरु नरहरि दास थे। इनका विवाह रत्नावली से हुआ, जिन्होंने इनका जीवन राम-भक्ति की ओर मोड़ने का सफल प्रयास किया। इनके ग्रन्थ रामचरित मानस में इन्होंने समस्त पारिवारिक संबंधों, राजनीति, धर्म, सामाजिक व्यवस्था का बड़ा ही सुन्दर उल्लेख किया। रामचरित मानस के अतिरिक्त इनके अन्य ग्रन्थ विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, गीतावली इत्यादि हैं। तुलसी दास जी की काव्य भाषा अवधी है। अवधी के अतिरिक्त ब्रज भाषा का प्रयोग भी इनके साहित्य में प्रचुरता में मिलता है। ये प्रभु श्री राम के परम उपासक थे। सन 1623 में इन्होंने काशी में देह त्याग किया। 2.राम लक्ष्मण परशुराम संवाद का भावार्थ- Ram Lakshman Parshuram Samvad Bhavarth: राम लक्ष्मण परशुराम संवाद रामचरित मानस से लिया गया है। जो कि सीता जी के स्वयंवर के समय का है। श्री राम, शिव जी का धनुष उठाकर उसे तोड़ देते हैं, तो सारे संसार में इस बात की चर्चा आग की तरह फैल जाती है। जब यह बात परशुराम जी के कानों तक जाती है और उन्हें पता चलता है कि उनके गुरुदेव शिव जी का धनुष किसी ने तोड़ दिया है, वो अपने आपे से बाहर हो जाते हैं। वो धनुष तोडने वाले व्यक्ति का वध करने के लिए सीता जी के स्वयंवर वाली सभा में आ जाते हैं। उसके बाद राम – लक्ष्मण – परशुराम जी के बीच जो बात होती है, उसका वर्णन यहाँ दिया हुआ है। 3.राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – तुलसीदासनाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥ सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥ रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार्। लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥ बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न
मोरा॥ मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥ कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥ लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥ सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु। तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥ कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥ गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ। कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥ सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥ लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु
कृसानु। 4.Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 Summary- Ram Lakshman Parshuram Samvad Summary in Hindiनाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥ सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥ रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार्। लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥ बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥ मैं बचपन से ही ब्रह्मचारी हूँ। सारा संसार मेरे क्रोध को अच्छी तरह से पहचानता है। मैं क्षत्रियों का सबसे बड़ा शत्रु हूँ। अपने बाजुओं के बल पर मैंने कई बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का सर्वनाश किया है और इस पृथ्वी को जीतकर ब्राह्मणों को दान में दिया है। इसलिए हे राजकुमार लक्ष्मण! मेरे फरसे को तुम ध्यान से देख लो, यही वह फरसा है, जिससे मैंने सहस्त्रबाहु का संहार किया था। मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥ वैसे भी हमारे कुल की यह परंपरा है कि हम देवता, ब्राह्मण, भक्त एवं गाय के ऊपर अपनी वीरता नहीं आजमाते। आप तो ब्राह्मण हैं और मैं आपका वध करूँ, तो पाप मुझे ही लगेगा। आप अगर मेरा वध भी कर देते हैं, तो मुझे आपके चरणों में झुकना पड़ेगा। यही हमारे कुल की मर्यादा है। फिर आगे लक्ष्मण कहते हैं कि आपके वचन ही किसी व्रज की भाँति कठोर हैं, तो फिर आप को इस कुल्हाड़े और धनुष की क्या ज़रूरत है जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥ लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥ सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु। तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥ कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥ मुझमें क्रोध कितना भरा हुआ है। मेरे सामने यह मेरे गुरु का अपमान किये जा रहा है और मेरे हाथों में फरसा होने के बावजूद भी मैंने अभी तक इसका वध नहीं किया है। अगर यह जीवित खड़ा है, तो सिर्फ तुम्हारे प्रेम और सदभाव के लिए। नहीं तो अभी तक मैं अपने फरसे से बिना किसी परिश्रम के इसे काटकर इसका वध कर देता और अपनी गुरु-दक्षिणा चुका देता। गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ। कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥ यह ठीक भी है, क्योंकि बहुत दिन हो चुके हैं, अब तक तो आपके ऊपर गुरु-ऋण का बहुत ब्याज चढ़ चुका होगा। तो फिर देर करने की ज़रूरत नहीं है, किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए। मैं देर किए बिना अपनी थैली खोल कर सारी धन राशि चुका दूँगा। सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥ ऐसा प्रतीत होता है, मानो आपका अभी तक युद्ध भूमि में किसी पराक्रमी से पाला नहीं पड़ा। इसलिए आप अपने आप को बहुत शूरवीर समझ रहे हैं। यह बात सुनकर दरबार में उपस्थित सारे लोग अनुचित-अनुचित कह कर पुकारने लगते हैं और श्री राम अपनी आँखों के इशारे से लक्ष्मण जी को चुप होने का इशारा करते हैं। लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु। 5. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad 6. Hindi Kshitij Class 10 Poems
Summary 7. Ncert Solutions Class 10 Hindi Kshitij Question Answer Tags : लक्ष्मण परशुराम संवाद कौन सा रस है?⏩ लक्ष्मण-परशुराम संवाद में वीर रस है।
इसी कारण लक्ष्मण परशुराम संवाद में वीर रस की प्रधानता है।
लक्ष्मण परशुराम संवाद में मुख्य क्या है?लक्ष्मण और परशुराम संवाद : जब प्रभु श्रीराम भगवान शिव का धनुष तोड़ देते हैं तो इसकी सूचना परशुरामजी को मिलती है और वे क्रोधित होते हुए जनक की सभा में आ धमकते हैं। वहां जब वे राम को भला बुरा कहने लगते हैं तब लक्ष्मण से रहा नहीं जाता और फिर वे परशुराम का मजाक उड़ाते हुए उन्हें कटु वचनों में शिक्षा देने लगते हैं।
परशुराम जी के कथनों में कौन सा रस परिलक्षित होता है?वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम जी कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ।
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