लेखक के मित्र ने इस पाठ में मानसिक रोग के अनेक कारण बताए हैं। लेखक ने जापानी लोगों के मानसिक रोग के यह कारण बताए हैं कि जापानी लोग बहुत तेज गति से कार्य करना पसंद करते हैं। उनके अंदर हर समय अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करने की भावना बनी रहती है। वे हर हालत में अमेरिका से आगे निकलना चाहते हैं। जापानी लोगों की मनोवृति ऐसी है कि वह 1 महीने का काम 1 दिन में ही कर देना चाहते हैं जो कि व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं है।
जापानी लोगों ने स्वयं के ऊपर काम का अत्याधिक बोझ ग्रहण कर लिया है जापानी लोग यह नहीं समझते कि वह एक मानव है, मशीन नहीं। क्षमता से अधिक कार्य करने और जिम्मेदारी लेने से उनके शारीरिक और मानसिक स्तर पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है और अनेक तरह के मानसिक रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं।
मनुष्य की तरह ही काम कर सकता है। वह मशीन की तरह काम नहीं कर सकता। इसलिए जापानी लोगों ने जिस तरह की मशीन की तरह काम करने की प्रवृत्ति अपनाई, वही उनके मानसिक रोगों का कारण बनी। लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के जो कारण बताए हम सभी कारणों से पूरी तरह सहमत हैं।
पाठ के बारे में…
प्रस्तुत पाठ पतझड़ में टूटी पत्तियां रविंद्र केलेकर द्वारा रचित एक निबंध है, उसमें उन्होंने दो प्रसंगों का वर्णन किया है। पहला प्रसंग उन लोगों से परिचित कराता है, जो अपने लिए जीवन में सुख सुविधा नहीं जुटाते बल्कि इस जगत को जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं।
दूसरा प्रसंग जापान के लोगों के बारे में बताता है, जो अपने व्यस्ततम दिनचर्या के बीच टी-सेरेमनी जैसे कुछ आयोजनों द्वारा अपने जीवन में कुछ चैन भरे पल जुटा लेते हैं।
पाठ में दोनों प्रसंगों के माध्यम से लेखक ने थोड़े शब्दों में ही बहुत बड़ी और गूढ़ बातें कह दी हैं।रविंद्र केलेकर हिंदी मराठी और कोकणी भाषा के लेखक और पत्रकार रहे हैं। उनका जन्म 7 मार्च 1925 को महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में हुआ था। वह गोवा मुक्ति आंदोलन के सेनानी भी थे। वह गांधीवादी चिंतक विचारक के रूप में प्रसिद्ध रहे । उन्होंने कोंकणी भाषा में 25, मराठी भाषा में 3 तथा हिंदी और गुजराती भाषा में भी कुछ पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें गोवा कला अकादमी का साहित्य पुरस्कार भी मिल चुका है।
उनकी प्रमुख कृतियों में हिंदी भाषा में ‘पतझर में टूटी पत्तियां’ प्रसिद्ध है, जबकि कोंकणी भाषा में उजबाढ़ाचे सूर, समिधा, सांगली, ओथांबे तथा मराठी भाषा में कोंकणीचे राजकरण, जापान जैसा दिसला आदि के नाम प्रमुख हैं। उनका निधन 2010 में हुआ।
संदर्भ पाठ :
“पतझर में टूटी पत्तियाँ”, लेखक : रवींद्र केलेकर (कक्षा – 10, पाठ – 16, हिंदी, स्पर्श भाग 2)
पाठ के अन्य प्रश्न
‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ का संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यवहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्व है?
‘शुद्ध सोने में ताबे की मिलावट या ताँबें में सोना’, गाँधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
Book: स्पर्श भाग 2
Chapter: 16. Ravindra Kelekar - Patjhar Ki Tooti Pattiyan
Subject: Hindi - Class 10th
Q. No. 1 of LikhitListen NCERT Audio Books to boost your productivity and retention power by 2X.
Solution : लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के निम्नालिखित कारण बताएँ हैं जैसा कि मनुष्य का
दिमाग बहुत तीव्रता से चलाता नही बल्कि तीव्रता से दौड़ता है। वह एक महीने का काम एक
दिन में करना चाहता है, वह मन ही मन बड़बडाता है। अधिक सोचने के कारण उसके दिमाग
का तनाव बढ़ जाता है।मानसिक रोगों का प्रमुख कारण प्रतिस्पर्धा के कारण दिमाग का
अनियंत्रित गति से कार्य करना है।
Solution : लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताए हैं कि मनुष्य चलता नहीं दौड़ता है, बोलता नहीं बकता है, एक महीने का काम एक दिन में करना चाहता है। दिमाग हजार गुना अधिक गति से दौड़ता है। अत्यधिक तनाव बढ़ जाता है। मानसिक रोगों का प्रमुख कारण प्रतिस्पर्धा के कारण दिमाग का अनियंत्रित गति से कार्य करना है।
उत्तर 16-15. लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताएँ हैं कि मनुष्य चलता नहीं दौड़ता है, बोलता नहीं बकता है, एक महीने का काम एक दिन में करना चाहता है, दिमाग हज़ार गुना अधिक गति से दौड़ता है। अतरू तनाव बढ़ जाता है। मानसिक रोगों का प्रमुख कारण प्रतिस्पर्धा के कारण दिमाग का अनियंत्रित गति से कार्य करना है।
प्रश्न 16-16. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 16-16. लेखक के अनुसार सत्य वर्तमान है। उसी में जीना चाहिए। हम अक्सर या तो गुजरे हुए दिनों की बातों में उलझे रहते हैं या भविष्य के सपने देखते हैं। इस तरह भूत या भविष्य काल में जीते हैं। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। वर्तमान ही सत्य है उसी में जीना चाहिए।
प्रश्न 16-17. समाज के पास अगर शाश्वत मुल्यों जैसा कुछ है तो वह आर्दशवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
उत्तर 16-17. आदर्शवादी लोग समाज को आदर्श रूप में रखने वाली राह बताते हैं। व्यवहारिक आदर्शवाद वास्तव में व्यवहारिकता ही है। उसमें आदर्शवाद कहीं नहीं होता है।
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताएँ हैं कि मनुष्य चलता नहीं दौड़ता है, बोलता नहीं बकता है, एक महीने का काम एक दिन में करना चाहता है, दिमाग हज़ार गुना अधिक गति से दौड़ता है। अतरू तनाव बढ़ जाता है। मानसिक रोगों का प्रमुख कारण प्रतिस्पर्धा के कारण दिमाग का अनियंत्रित गति से कार्य करना है। लेखक के ये विचार सत्य हैं क्योंकि शरीर और मन मशीन की तरह कार्य नहीं कर सकते और यदि उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया तो मानसिक संतुलन बिगड़ जाना स्वाभाविक है।