शिहाबुद्दीन उर्फ़ मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी 11वीं शताब्दी का अफ़ग़ान सेनापति था जो ११९२ ई. में ग़ौरी साम्राज्य का सुल्तान बना। सेनापति की क्षमता में उसने अपने भाई ग़ियासुद्दीन ग़ौरी (जो उस समय सुल्तान था) के लिए भारतीय उपमहाद्वीप पर ग़ौरी साम्राज्य का बहुत विस्तार किया और उसका पहला आक्रमण मुल्तान (११७५ ई.) पर था। पाटन (गुजरात) के शासक भीम द्वितीय पर मुहम्मद ग़ौरी ने ११७८ ई. में आक्रमण किया किन्तु मुहम्मद ग़ौरी बुरी तरह पराजित हुआ। मुहम्मद ग़ौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच तराइन के मैदान में २ युद्ध हुए। ११९१ ई. में हुए तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई। मोहम्मद गौरी भारत पर कब्जा करना चाहता था। परन्तु उस समय के भारत के सबसे शक्तिशाली राजा सम्राट पृथ्वीराज चौहान उसके रास्ते का रोढ़ा थे। वह हर बार सम्राट से हार जाता था और उनके पैरों में गिरकर माफ़ी मांग लेता, क्योंकि राजपूतों का सिध्दांत था कि वे निहत्थे या शरणागत पर वार नहीं करते थे। सम्राट ने उसे बार बार माफ किया। वह जब भी आक्रमण करता महाराज की सेना उसकी सेना को गाजर मूली की तरह काट देती थी। तराइन कि अन्तिम लड़ाई (तराई का द्वितीय युद्ध ११९२) में गौरी को विश्वासघाती जयचंद का साथ मिल गया जिसने सम्राट के साथ दिल्ली की सत्ता की लालच में धोखा किया (हालाकिं बाद में गौरी ने उसे भी यह कहते हुए मार दिया कि जो अपने वतन का न हो सका वो मेरा क्या होगा)। इस युध्द में ग़ौरी ने जयचन्द से मिलकर रात में सोते हूए महाराज के सैनिकों पर आक्रमण कर दिया। उसके साथ जयचंद की सेना भी थी। परिणामस्वरूप सम्राट को वह बंदी बनाकर अफगानिस्तान ले गया। उनके साथ उनके मित्र एवं महान कवि चंद्रबरदाई को भी बंदी बनाकर रखा गया था। वहां वह रोज सम्राट पर अत्याचार करता। सम्राट की आँखे बहुत तेज थी जिससे गौरी को देखने में बहुत डर लगता था। इसलिए उसने सम्राट की आँखों को लोहे के सरिये से फूड़वा डाला। एक दिन गौरी ने एक तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन करवाया। महाराज ने भी उसमें भाग लेने की इच्छा जताई। ग़ौरी ने उनसे कहा बिना आँखो के कैसे तीर चलाओगे। तब चंद्रबरदाई ने ग़ौरी से कहा की सम्राट को शब्दभेदी बाण (केवल आवाज़ सुनकर तीर चलाने की कला) चलाना आता है। ग़ौरी चौक गया क्योंकि उसने इस तरह की विद्या के बारे में पहली बार सुना। उसे यह कला देखने की इच्छा हुई। उसने महाराज से कला प्रदर्शन करने के लिए कहा। सम्राट को उसे मारने का मौका मिल गया। तीर चलाते- चलाते महाराज से चंद्रबरदाई ने निम्न पंक्तियाँ ग़ौरी की स्थिति बताते हुए कही- "चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुलतान है, मत चुके चौहान।।" (मतलब ग़ौरी चार बाँस और 24 गज और 8 अंगुल की ऊँचाई पर तख़्त पर बैठा है ऐसा मेरा परिमाण (नाप) है उसे मारने में चूक मत न करो महाराज) चंद्रबरदाई के इतना कहते ही सम्राट पृथ्वीराज ने ग़ौरी की तरफ तीर चलाया परन्तु गोरी अपनी चलाकी की वजह से से बच गया। फिर चंद्रबरदाई ने उनका सिर काट दिया और उनहोंने भी सर धड़ से अलग होते हुए भी चंद्रबरदाई का सर काट दिया। ऐसा उनहोंने इसलिए किया क्योंकि वे शत्रु के हाथों नहीं मरना चाहते थे बाद मैं दिल्ली के आस पास खोखर योद्धाओं ने अपने राजा पृथ्वीराज चौहान का बदला लेने के लिए गौरी का सिर काट दिया । मोहम्मद ग़ौरी ने चंदावर के युद्ध (११९२ ई.) में दिल्ली के गहड़वाल वंश के शासक जयचंद को पराजित किया। मुहम्मद ग़ौरी ने भारत में विजित साम्राज्य का अपने सेनापतियों को सौंप दिया और वह ग़ज़नी चला गया। बाद में ग़ौरी के ग़ुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग़ुलाम राजवंश जीवनी[संपादित करें]ग़ोरी राजवंश की नीव अला-उद-दीन जहानसोज़ ने रखी और सन् ११६१ में उसके देहांत के बाद उसका पुत्र सैफ़-उद-दीन ग़ोरी सिंहासन पर बैठा। अपने मरने से पहले अला-उद-दीन जहानसोज़ ने अपने दो भतीजों - शहाबुद्दीन (जो आमतौर पर मुहम्मद ग़ोरी कहलाता है) और ग़ियास-उद-दीन - को क़ैद कर रखा था लेकिन सैफ़-उद-दीन ने उन्हें रिहा कर दिया।[1] उस समय ग़ोरी वंश ग़ज़नवियों और सलजूक़ों की अधीनता से निकलने के प्रयास में था। उन्होंने ग़ज़नवियों को तो ११४८-११४९ में ही ख़त्म कर दिया था लेकिन सलजूक़ों का तब भी ज़ोर था और उन्होंने कुछ काल के लिए ग़ोर प्रान्त पर सीधा क़ब्ज़ा कर लिए था, हालांकि उसके बाद उसे ग़ोरियों को वापस कर दिया था। सलजूक़ों ने जब इस क्षेत्र पर नियंत्रण किया था जो उन्होंने सैफ़-उद-दीन की पत्नी के ज़ेवर भी ले लिए थे। गद्दी ग्रहण करने के बाद एक दिन सैफ़-उद-दीन ने किसी स्थानीय सरदार को यह ज़ेवर पहने देख लिया और तैश में आकर उसे मार डाला। जब मृतक के भाई को कुछ महीनो बाद मौक़ा मिला तो उसने सैफ़-उद-दीन को बदले में भाला मरकर मार डाला। इस तरह सैफ़-उद-दीन का शासनकाल केवल एक वर्ष के आसपास ही रहा।[1] ग़ियास-उद-दीन नया शासक बना और उसके छोटे भाई शहाबुद्दीन ने उसका राज्य विस्तार करने में उसकी बहुत वफ़ादारी से मदद करी। शहाबुद्दीन (उर्फ़ मुहम्मद ग़ोरी) ने पहले ग़ज़ना पर क़ब्ज़ा किया, फिर ११७५ में मुल्तान और ऊच पर और फिर ११८६ में लाहौर पर। जब उसका भाई १२०२ में मरा तो शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी सुलतान बन गया। मृत्यु और देहान्तोपरांत[संपादित करें]सोहावा झेलम, पाकिस्तान में मुहम्मद ग़ौरी का मक़बरा मोहम्मद गौरी भारत पर कब्जा करना चाहता था। परन्तु उस समय के भारत के सबसे शक्तिशाली राजा सम्राट पृथ्वीराज चौहान उसके रास्ते का रोढ़ा थे। वह हर बार सम्राट से हार जाता था और उनके पैरों में गिरकर माफ़ी मांग लेता, क्योंकि राजपूतों का सिध्दांत था कि वे निहत्थे या शरणागत पर वार नहीं करते थे। सम्राट ने उसे बार बार माफ किया। वह जब भी आक्रमण करता महाराज की सेना उसकी सेना को गाजर मूली की तरह काट देती थी। तराइन कि अन्तिम लड़ाई में गौरी को विश्वासघाती जयचंद का साथ मिल गया जिसने सम्राट के साथ दिल्ली की सत्ता की लालच में धोखा किया (हालाकिं बाद में गौरी ने उसे भी यह कहते हुए मार दिया कि जो अपने वतन का न हो सका वो मेरा क्या होगा)। इस युध्द में ग़ौरी ने जयचन्द से मिलकर रात में सोते हूए महाराज के सैनिकों पर आक्रमण कर दिया। उसके साथ जयचंद की सेना भी थी। परिणामस्वरूप सम्राट को वह बंदी बनाकर अफगानिस्तान ले गया। उनके साथ उनके मित्र एवं महान कवि चंद्रबरदाई को भी बंदी बनाकर रखा गया था। वहां वह रोज सम्राट पर अत्याचार करता। सम्राट की आँखे बहुत तेज थी जिससे गौरी को देखने में बहुत डर लगता था। इसलिए उसने सम्राट की आँखों को लोहे के सरिये से फूड़वा डाला। एक दिन गौरी ने एक तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन करवाया। महाराज ने भी उसमें भाग लेने की इच्छा जताई। ग़ौरी ने उनसे कहा बिना आँखो के कैसे तीर चलाओगे। तब चंद्रबरदाई ने ग़ौरी से कहा की सम्राट को शब्दभेदी बाण (केवल आवाज़ सुनकर तीर चलाने की कला) चलाना आता है। ग़ौरी चौक गया क्योंकि उसने इस तरह की विद्या के बारे में पहली बार सुना। उसे यह कला देखने की इच्छा हुई। उसने महाराज से कला प्रदर्शन करने के लिए कहा। सम्राट को उसे मारने का मौका मिल गया। तीर चलाते- चलाते महाराज से चंद्रबरदाई ने निम्न पंक्तियाँ ग़ौरी की स्थिति बताते हुए कही- "चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुलतान है, मत चुके चौहान।।" (मतलब ग़ौरी चार बाँस और 24 गज और 8 अंगुल की ऊँचाई पर तख़्त पर बैठा है ऐसा मेरा परिमाण (नाप) है उसे मारने में चूक मत न करो महाराज) चंद्रबरदाई के इतना कहते ही सम्राट पृथ्वीराज ने ग़ौरी के सीने में तीर मार दिया। [2] मुहम्मद ग़ोरी का कोई बेटा नहीं था और उसकी मौत के बाद उसके साम्राज्य के भारतीय क्षेत्र पर उसके प्रिय ग़ुलाम क़ुतुब-उद-दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत स्थापित करके उसका विस्तार करना शुरू कर दिया। उसके अफ़ग़ानिस्तान व अन्य इलाक़ों पर ग़ोरियों का नियंत्रण न बच सका और ख़्वारेज़्मी साम्राज्य ने उन पर क़ब्ज़ा कर लिया। ग़ज़ना और ग़ोर कम महत्वपूर्ण हो गए और दिल्ली अब क्षेत्रीय इस्लामी साम्राज्य का केंद्र बन गया। इतिहासकार सन् १२१५ के बाद ग़ोरी साम्राज्य को पूरी तरह विस्थापित मानते हैं। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
मुहम्मद गौरी ने भारत पर पहला आक्रमण कब किया?मुहम्मद गौरी ने गजनी साम्राज्य का शासन संभालने के बाद उसकी सुदृढ़ता के लिए कार्य शुरू कर दिया। मुहम्मद गौरी ने 1175 ई0 में भारत पर आक्रमण करने की शुरूआत की और मुल्तान पर आक्रमण किया। मुल्तान के मुसलमानों को परास्त कर उसने वहां अधिकार कर लिया।
मुहम्मद गौरी ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया था?वर्ष 1175 में, वह खैबर दर्रे से भारत आया और पंजाब क्षेत्र, मुल्तान पर हमला करना शुरू कर दिया। वर्ष 1176 में, उसने ऊपरी सिंध में उच पर अधिकार कर लिया। वर्ष 1178 में, उसने गुजरात पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन मुहम्मद वह कायदरा की लड़ाई में चालुक्य (सोलंकी) के मूलराज द्वितीय से हार गया, मुहम्मद ने हार से सबक लिया।
मोहम्मद गौरी ने भारत पर अंतिम आक्रमण कब किया?मोहम्मद गौरी ने 1185-86 मे पुनः पंजाब पर आक्रमण किया और अंतिम रूप से जीत हासिल की।
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