हमारे पास मध्यकालीन भारतीय इतिहास की जानकारी प्राप्त करने के पर्याप्त स्रोत हैं। मध्यकालीन शासक अपने यहाँ इतिहासकारों को आश्रय दिया करते थे, जिन्होंने शासकों व उनके विजय अभियानों का वर्णन किया है। Show अन्य संबंधित लेख-
सल्तनत काल की अपेक्षा मुगलकालीन साहित्य ज्यादा उपलब्ध हैं। ये स्रोत ज्यादातर अरबी व फारसी भाषा में लिखें गए हैं। मुगलकाल के ज्यादातर स्रोत फारसी भाषा में लिखे गए हैं। ये इतिहासकार ज्यादातर सुल्तानों और बादशाहों की राजनैतिक और सैनिक गतिविधियों की ही जानकारी देते हैं और इनसे हमें जनता की सामाजिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी कम मिलती है, जिसके लिए हमें समकालीन साहित्य स्रोतों और भारत आये यात्रियों के विवरण का सहारा लेना पड़ता है। मध्ययुग में अनेक ऐतिहासिक ग्रंथ लिखे गये, जिनसे हमें इस युग की राजनीतिक घटनाओं के बारे में जानकारी मिलती है। मुसलमानों के सम्पर्क में आने के बाद भारतीय भी इस लोक की तरफ आकर्षित हुए। इस काल के ग्रंथों में सभ्यता एवं संस्कृति का उल्लेख बहुत कम हुआ है । इन साहित्यिक स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया गया है-
सल्तनतकालीन साहित्य –इन साहित्यों में तत्कालीन इतिहास की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक नीति की जानकारी मिलती है। सल्तनतकालीन साहित्य निम्नलिखित है- चचनामा / फतहनामा-चचनामा नामक पुस्तक अरबी भाषा में लिखी गई है।इसके लेखक अज्ञात हैं। इसका फारसी भाषा में भी अनुवाद किया गया है। इस पुस्तक में मुहम्मद-बिन-कासिम से पहले के इतिहास तथा कासिम के बाद के सिंध के इतिहास का वर्णन है। कानून – ए -मसौदी / जवाहिर उलजवाहिर –इसमें सिंध पर अरब आक्रमण की चर्चा की गई है। इसके लेखक अज्ञात हैं। अलबरूनी–अलबरूनी विदेशी था तथा भारत में यह महमूद गजनवी के साथ आया था। वह चिकित्साशास्त्र, धर्म, दर्शन तथा गणित में रूचि रखता था। वह हिन्दू धर्म तथा दर्शन का भी अच्छा ज्ञाता था। तहकिकात -ए-हिंद का रचयिता अलबरूनी था। यह ग्रंथ फारसी भाषा में लिखा गया है। अलबरूनी ने अपने सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ ‘तारीख-उल-हिन्द’ में महमूद के भारत आक्रमण तथा उनके प्रभावों का वर्णन किया है। उसने हिन्दी धर्म, साहित्य तथा विज्ञान का भी वर्णन किया है। इस प्रकार इस ग्रंथ से महमूद के आक्रमणों तथा तत्कालीन सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। सचाऊ ने इस ग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। उत्बी –उत्बी ने तारीख – ए – यामिनी / किताब – उल – यामिनी नामक पुस्तक की रचना की। यह पुस्तक अरबी भाषा में लिखी गई है। फिरदौसी –यह गजनवी का समकालीन था। फिरदौसी ने शाहनामा नामक पुस्तक की रचना की थी। हसन निजामी –हसन निजामी कुतुबुद्दीन ऐबक का दरबारी विद्वान था। इसने ताज उल मआसिर नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में 1192 से 1206 ई. तक का वर्णन है। यह ग्रंथ दिल्ली सल्तनत का प्रथम राजकीय संकलन है। फख्र-ए-मुदव्विर-फख्र-ए-मुदव्विर को ऐबक का संरक्षण प्राप्त था। इसने आदाब-उल-हर्ष-वा-शुजाआत की रचना की। इस पुस्तक में तुर्कों की युद्ध प्रणाली की जानकारी प्राप्त होती है। मिनहाज-उस-सिराज-इसको इल्तुतमिश का संरक्षण प्राप्त था। मिनहाज-उस-सिराज ने तबकात-ए-नासिरी की रचना की थी। तबकात-ए-नासिरी में पैगंबर मुहम्मद से लेकर इल्तुतमिश के उत्तरीधिकारी नासीरूद्दीन महमूद के समय तक अर्थात् 1260 तक का वर्णन है। अलाउद्दीन अनामलिक जुबैनी-इस लेखक की पुस्तक का नाम तारीख-ए-जहाँगुशा है जिसमें चंगेज खाँ द्वारा ख्वारिज्म राजकुमार जलालुद्दीन मांगबर्नी का भारत तक पीछा करने का विवरण है। अमीर खुसरो-अमीर खुसरो ने कई पुस्तकों की रचना की है जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख हैं, जो प्रतीयोगीता परीक्षाओं में ज्यातर पुछे जाते हैं-
इस ग्रंथ में दिल्ली को हजरत दिल्ली कहा गया है। इनके द्वारा लिखा गया यह ग्रंथ पद्य में है। इस ग्रंथ में बलबन के पुत्र बुगराखाँ तथा कैकुबाद का वर्णन है।
इस ग्रंथ में जलालुद्दीन के विजय अभियानों का वर्णन है। यह ग्रंथ भी पद्य में लिखा गया है।
इस ग्रंथ में अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण अभियान और उसके समय मंगोल आक्रमण का वर्णन मिलता है। इसी ग्रंथ में अमीर खुसरो कहता है कि सतरंज का आविष्कार भारत में हुआ।
इसमें देवलदेवी एवं पुत्र खिज्रखाँ का वर्णन मिलता है।
इस ग्रंथ में उसने हिन्दुस्तान की दो कारणों से प्रशंसा की है-
यह ग्रंथ मुबारकशाह खिलजी के समय की घटनाओं की जानकारी प्रदान करता है।
इसमें ग्यासुद्दीन के समय की घटनाओं का वर्णन मिलता है।
इसमें राजकीय पत्रों का संकलन मिलता है।
अमीर खसरो ने उपर्युक्त ग्रंथों के अलावा कई और ग्रंथों की भी रचना की है जो इस प्रकार हैं-
निजाम-उल-मुल्क-तुसी-इन्होंने सियासतनामा नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में तुर्की शासकों में प्रचलित दास -व्यापार, दास-व्यवस्था, प्रशिक्षण कार्यों की जानकारी मिलती है। जियाउद्दीन बरनी-बरनी एक कट्टर इस्लामी इतिहासकार था इसने मुहम्मद बिन तुगलक व अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति उदार नीति की आलोचना की है। इनके द्वारा लिखे गये ग्रंथ निम्नलिखित हैं-
फतवा-ए-जहाँदरी- इस ग्रंथ में बलबन, अलाउद्दीन खिलजी तथा मुहम्मद तुगलक के काल की जानकारी मिलती है। तारीख ए फिरोजशाही – यह ग्रंथ फिरोजशाह के काल की जानकारी प्रदान करता है। बद्र-ए-चाच-इनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ
दीवाने – चाच – इसमें मुहम्मद बिन तुगलक की प्रशंसा की गई है तथा उसकी शान में कशीदे पढे गऐ हैं। मुहम्मद – बिहामद – खानी-इनके द्वारा लिखा गया ग्रंथ तारीख – मुहम्मदी । ईसामी –इसामी मुहम्मद बिन तुगलक का समकालीन था, लेकिन उसका ग्रंथ फुतुह-उस-सलातीन मुहम्मद बिन तुगलक की बजाय बहमनी वंश(1347 ई.) का संस्थापक अलाउद्दीन बहमनशाह (हसन गांगू) को समर्पित है। इस ग्रंथ में 999 – 1350 ई.तक का वर्णन मिलता है। इब्नबतूता-इब्नबतूता ने रेहला नामक पुस्तक की रचना की।यह मोरको का निवासी था तथा मुहम्मद बिन तुगलक का समकालीन था। 1333 ई. में भारत आया था। इब्नबतूता मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार में काजी के पद पर रहा था लेकिन भ्रष्टाचार का दोषी पाये जाने के कारण मुहम्मद बिन तुगलक इसे काजी के पद से हटाकर अपना दूत बनाकर चीन भेजता है। तथा वहीं से वापिस मोरको चला जाता है। अल- उमरी-इनके द्वारा लिखित ग्रंथ मलिक-उल-अलवसार है जिसमें मुहम्मद बिन तुगलक की आर्थिक नीतियों एवं विभिन्न योजनाओं का वर्णन मिलता है। शम्स-ए-सिराज-अफीफ-तारिख-ए-फिरोजशाही की रचना इन्होंने की थी। इस ग्रंथ में फिरोजशाह तुगलक की उपलब्धियों का वर्णन है। यह फिरोजशाह तुगलक को समर्पित ग्रंथ है। माना जाता है कि अफीफ ने ग्यासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक व फिरोजशाह तुगलक । इन तीनों के संबंध में तीन अलग-2 ग्रंथ लिखे थे, जिनमें से एकमात्र तारीख-ए-फिरोजशाही ही प्राप्त हुआ है।
फिरोज तुगलक-फुतुहात ए फिरोजशाही नामक ग्रंथ की रचना की। यह ग्रथ फिरोजशाह तुगलक की आत्मकथा है। याहिया-बिन-अहमद सरहिंदी-सरहिंदी ने तारीख-ए-मुबारकशाही की रचना की थी। यह ग्रंथ सैयद वंश के शासक मुबारकशाह को समर्पित है। यह ग्रंथ सैयद वंश के इतिहास का यह एकमात्र समकालीन स्रोत है।
सूफी साहित्य-इस साहित्य को मलफुजात भी कहा जाता है,जो सूफी धर्म से संबंधित है। सूफी साहित्य में निम्नलिखित ग्रंथ आते हैं-
इस लेखक द्वारा लिखित ग्रंथ फवाद-उस-कुआद है। इस ग्रंथ में निजामुद्दीन औलिया के उपदेशों व वार्तालाप का वर्णन किया गया है।
हमीद-कलंदर ने खैर-उल-मजलिस की रचना की थी। इस ग्रंथ में सूफी संत नासीरुद्दीन -चिराग-ए-देहलवी के वार्तीलाप का संकलन है। बुरूंजी साहित्य-असम शासकों का अहोम भाषा में लिखित साहित्य। अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण लेख-
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मध्यकालीन इतिहास को कितने भागों में बांटा गया है?इसे दो अवधियों में विभाजित किया जा सकता है: 'प्रारंभिक मध्ययुगीन काल' 6वीं से लेकर 13वीं शताब्दी तक और 'गत मध्यकालीन काल' जो 13वीं से 16वीं शताब्दी तक चली, और 1526 में मुगल साम्राज्य की शुरुआत के साथ समाप्त हो गई।
मध्यकालीन इतिहास के जनक कौन है?हेरोडोटस ( इतिहास का जनक). मध्यकाल में नाम क्या था?Detailed Solution. मध्यकालीन भारत में, "फणम" शब्द सिक्कों को संदर्भित करता है।
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