नाम पंचानन नादे पलावत इस पंक्ति में नाम की तुलना पंचानन से क्यों की गई है - naam panchaanan naade palaavat is pankti mein naam kee tulana panchaanan se kyon kee gaee hai

Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter-13 बरगीत . These Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) all Chapter  Solutions are updated as per the SEBA latest pattern of 2020-21 syllabus. Reading can be really helpful if anyone want to understand the detailed solutions and minimize the errors wherever possible. For better understanding and application of concepts, one should first need to focus on theClass 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter-13 बरगीत as it will tell you about the difficulty of questions. You can be able to solve more questions related to chapter after practicing more questions and thus fetching more marks.

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बरगीत

कवि-परिचय श्रीमंत शंकरदेव

भारतीय भक्ति-साहित्य में श्रीमंत शंकरदेव का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने असम की तत्कालीन समाज-व्यवस्था के अनुकूल नववैष्णव धर्म का प्रचार व प्रसार किया। शंकरदेव नववैष्णव धर्म के प्रवर्तक और असमीया साहित्य के निर्माता कहलाते हैं। असाधारण व्यक्तित्व के अधिकारी होने के कारण शंकरदेव के नाम के पहले सदैव श्रीमंत, महापुरुष, गुरु आदि शब्द जोड़ते हैं।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्रीमंत शंकरदेव का जन्म सन् 1449 में असम के नगाँव के आलीपुखुरी नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘कुसुम्बर भुयाँ’ और माता का नाम ‘सत्यसंध्या’ था। बचपन में ही उनके माता-पिता की मृत्यु होने के कारण बालक शंकरदेव का पालन-पोषण उनकी दादी खेरसूती ने किया। शंकरदेव के अंदर बचपन में ही होनहार बालक के सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने गुरु महेंद्र कंदली से औपचारिक शिक्षा पाई। शंकरदेव केवल धर्मगुरु ही नहीं, बल्कि एक महान युगद्रष्टा, कवि, साहित्यकार, नाटककार, टीकाकार, अनुवादक, गीतकार, अभिनेता तथा समाज-सुधारक के साथ ही संगठक भी थे। इन्होंने संपूर्ण असमीया जाति को एक सूत्र में पिरोकर एकता, मैत्री और संस्कार की भावना को सुदृढ़ किया।

धर्म के अतिरिक्त साहित्य-संस्कृति के प्रचार व प्रसार के लिए उन्होंने संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन कर उनसे सारतत्व ग्रहण किए और उन्होंने गीत, पद, नाटक, उपाख्यान आदि की रचना की। शंकरदेव के जीवन का कीर्तिस्तंभ है ” कीर्तन घोषा”। इसके अतिरिक्त भागवत के कई स्कंध, उत्तरकांड रामायण का उन्होंने असमीया में अनुवाद भी किया। उन्होंने ‘रुक्मिणीहरण’, ‘हरिश्चंद्र उपाख्यान’ आदि काव्यों के साथ-साथ बरगीतों की भी रचना की। उन्होंने ‘चिह्नयात्रा’, ‘रुक्मिणीहरण’, ‘पारिजात-हरण’, ‘केलिगोपाल’, ‘कालिया-दमन’ और ‘राम-विजय’ नामक छ: अंकिया नाटकों की रचना की। शंकरदेव द्वारा रचित ‘ भक्ति रत्नाकर’ एक अनमोल ग्रंथ है। उन्होंने संवादविहीन नाटक ‘चिह्नयात्रा’ के जरिए असमीया नाटक के इतिहास का श्रीगणेश किया।

शंकरदेव का निधन सन् 1568 में कोचबिहार के मधुपुर सत्र में लगभग 120 वर्ष की आयु में हुआ। भारतीय भक्ति-साहित्य को श्रीमंत शंकरदेव का अवदान अविस्मरणीय है। उनके साहित्य व जीवन-दर्शन नई पीढ़ी के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।

Class 10 Hindi (Ambar Bhag 2) Chapter-13 बरगीत

सारांश

प्रथम बरगीत में भगवान की नाम-महिमा का सुंदर वर्णन किया गया है। शंकरदेव के अनुसार भगवान का नाम ही मुक्ति यानी मोक्ष का रास्ता प्रशस्त करता है। इसलिए मनुष्य को सदा राम का नाम लेना चाहिए। यह संसार दुखदायी है। वैतरणी नदी में पापियों को जो कष्ट भोगना पड़ता है, उसी प्रकार यह संसार भी कष्टपूर्ण है। इससे उद्धार पाने के लिए भगवान के नामोच्चारण के सिवा दूसरा सुलभ साधन कुछ भी नहीं है। जिस प्रकार सिंह का गर्जन सुनकर हाथी भय से भाग जाता है, उसी प्रकार भगवान का नाम सुनकर मानसिक दुर्भावना रूपी पाप भी भय से भाग जाता है। श्रीमंत

करदेव कहते हैं कि ईश्वरीय नाम का लक्षण विस्मयकर है। एक व्यक्ति यदि ईश्वर के नाम का उच्चारण करे तो उसे सुनकर सौ व्यक्ति पीड़ामुक्त हो जाते हैं। अर्थात् राम क नामोच्चारण से हो धर्म, अर्थ, काम और मुक्ति का सुख सहज भाव से प्राप्त किया जा सकता है। नाम के इन गुणों की प्रशंसा नारद और शुकमणि जैसे श्रेष्ठ साधक भक्तों ने भी की है। हरि का नाम ही सबके लिए हितसाधक है। अर्थात् हरि-नाम ही मुक्ति का पथ प्रशस्त करता । शंकरदेव कहते हैं कि मायामय इस संसार का मोह छोड़ो, क्योंकि मृत्यु के बाद यह संसार असार बन जाता है। परम सारतत्व राम ही है। उन्हीं की सेवा व भक्ति करनी चाहिए।

श्रीमंत शंकरदेव द्वितीय बरगीत में भगवान श्रीकृष्ण को सर्वगुणसंपन्न बताते हुए कहते हैं कि वे ही मेरे स्वामी व पूज्य हैं। मैं उनका दास हूँ। फिर कहते हैं कि पंडित केवल शास्त्रों का पाठ करते हैं, परंतु उनके सारतत्वों को भक्त ही ग्रहण करते हैं। शंकरदेव कहते हैं कि भक्ति के बिना शास्त्रों का सारतत्व समझ में नहीं आता। जिस प्रकार कमल के फूल अपने अंतर में स्थित मधुरस निकाल देते हैं, परंतु उसका पान कर आनंद लूटनेवाले मधुकर (भरि) होते हैं। अर्थात् भक्ति में ही मुक्ति है, इस सारतत्व को भक्त ही जानते हैं। भक्तगण भगवान की महिमा से भलीभाँति परिचित होकर उनका गुणगान करते हैं। शंकरदेव हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें हरि गुण गाते रहना चाहिए और उनकी भक्ति करते रहना चाहिए। भक्त ही असली पंडित, ज्ञानी एवं यशस्वी होते हैं।

पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर

■ बोध एवं विचार

1. सही विकल्प का चयन कीजिए:

(क) पठित बरगीतों में किसकी प्रधानता है ?

(i) धर्म

(ii) भक्ति

(iii) शौर्य

(iv) वात्सल्य

उत्तर: (ii) भक्ति

(ख) शंकरदेव के अनुसार यह संसार कैसा है ? के

(i) सुखदायक

(ii) आनंददायक

(iii) ज्ञानदायक

(iv) कष्टदायक

उत्तर: (iv) कष्टदायक

(ग) मनुष्य को मुक्ति किससे प्राप्त होती है ?

(i) नाम-कीर्तन

(ii) पूजा-पाठ

(iii) जप-तप

(iv) धर्म-कर्म

उत्तर: (i) नाम-कीर्तन

(घ) बरगीत में ठाकुर किसे कहा गया है ?

(i) हरि

(ii) पंडित

(iii) भक्त

(iv) शंकरदेव

उत्तर: (i) हरि

(ङ) शंकरदेव के अनुसार वास्तविक भक्ति का पता किसे होता है ?

(i) पुजारी

(ii) भगवान

(iii) ब्राह्मण

(iv) भक्त

उत्तर: (iv) भक्त

2. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) शंकरदेव ने प्रथम बरगीत में किस बात का वर्णन किया है ? 

उत्तर: शंकरदेव ने प्रथम बरगीत में भगवान की नाम-महिमा का वर्णन किया है। उनके अनुसार भगवान के नाम-कीर्तन से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

(ख) शंकरदेव के अनुसार सारतत्व’ क्या है ?

उत्तर: शंकरदेव के अनुसार ईश्वर यानी परमात्मा ही सारतत्व हैं, जिनकी कृपा से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिलती है।

(ग) दूसरे बरगीत में शंकरदेव ने स्वयं को किसका दास बताया है ? 

उत्तर: दूसरे बरगीत में शंकरदेव ने स्वयं को प्रभु श्रीकृष्ण का दास बताया है। सर्वगुणसंपन्न प्रभु श्रीकृष्ण ही उनके परम पूज्य व स्वामी हैं।

(घ) भक्तों के लिए सबसे मूल्यवान वस्तु क्या है ? 

उत्तर: भक्तों के लिए सबसे मूल्यवान वस्तु भक्ति है। ईश्वर का नाम-भक्ति ही भक्तों के लिए मुक्ति का कारण है।

(ङ) “अंतर जल छुटय कमल मधु मधुकर पीयै”- यहाँ’मधुकर’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?

उत्तर  ‘अंतर जल छुटय कमल मधु मधुकर पीयै” यहाँ’मधुकर’ शब्द भ्रमर रूपी भक्तों के लिए प्रयुक्त हुआ है।

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3. निम्नलिखित प्रश्नों के सम्यक् उत्तर दीजिए:

(क) शंकरदेव ने ‘राम’ नाम बोलने के लिए क्यों कहा है ? 

उत्तर: शंकरदेव के अनुसार राम नाम यानी ईश्वर-भक्ति ही सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिला सकता है। भगवान का नाम ही मुक्ति का कारण बनता है। यह संसार वैतरणी नदी के समान कष्टदायक है। जिस प्रकार वैतरणी नदी में पापियों को कष्ट भोगना पड़ता है, उसी प्रकार इस संसार में भी मनुष्य को कष्ट सहने पड़ते हैं। इस कष्टपूर्ण संसार से उद्धार या मुक्ति पाने के लिए ईश्वर भक्ति के समान दूसरा कुछ भी उपाय सही नहीं है। राम नाम बड़ा ही शक्तिशाली और सहज है। राम का नाम लेने वाले और सुननेवाले दोनों लाभान्वित होते हैं। जिस प्रकार सिंह का गर्जन सुनकर हाथी भय से भाग जाता है, उसी प्रकार भगवान का नाम सुनकर ही मन का कुसंस्कार भय से भाग जाता है।

ईश्वरीय नाम का लक्षण अद्भुत है, क्योंकि एक व्यक्ति यदि ईश्वर के नाम का उच्चारण करे तो उसे सुनकर सौ व्यक्ति इस संसार के क्लेश से मुक्त हो जाते हैं। अतः श्रीमंत शंकरदेव ने मनुष्य को राम का नाम बोलने के लिए उपदेश दिया है।

(ख) शंकरदेव ने संसार को दुखमय क्यों कहा है ?

उत्तरः शंकरदेव ने संसार को दुखमय कहा है, क्योंकि संसार मायामय है। मायामय इस संसार में चारों तरफ लोभ, मोह, काम, क्रोध आदि फैले हुए हैं। कुसंस्कारों के कारण मनुष्य का चित्त अशुद्ध हो जाता है। ऐसे सांसारिक मायाजाल में आबद्ध लोगों को अंतकाल यानी मृत्यु के समय पश्चाताप करना पड़ता है। और उन्हें सहजता से मुक्ति प्राप्त नहीं होती है। शंकरदेव कहते हैं कि यह संसार वैतरणी नदी के समान कष्टदायक है। इनसे उद्धार या मुक्ति पाने के लिए भगवान का नाम ही एकमात्र सहज उपाय है।

(ग) ‘ नाम पंचानन नादे पलावत’- इस पंक्ति में ‘नाम’ की तुलना ‘पंचानन’ से क्यों की गई है ?

उत्तर: ‘नाम पंचानन नादे पलावत’- इस पंक्ति में ‘नाम’ की तुलना ‘पंचानन’ से की गई है क्योंकि नाम (ईश्वर का नामोच्चारण) और सिंह (सिंह का गर्जन) के गुणों में समानता है। जिस प्रकार सिंह का गर्जन सुनकर हाथी डर के मारे भाग जाता है, उसी प्रकार भगवान का नाम सुनकर पाप यानी मन का कुसंस्कार भी डर के मारे भाग जाता है। इस पंक्ति के माध्यम से शंकरदेव ईश्वरीय नाम शक्ति और सामर्थ्य का बोध करा रहे हैं। उनका कहना है कि नाम की महिमा अद्भुत और विस्मयकर है। एक व्यक्ति यदि ईश्वर के नाम का उच्चारण करता है तो उसे सुननेवाले सौ व्यक्तियों की सांसारिक पीड़ा हो जाती है। इसलिए शंकरदेव ने नाम की शक्ति का सास कराने के लिए पंचानन यानी सिंह से इसकी तुलना की है।

(घ) ‘याहे भकति ताहे मुकुति’- शंकरदेव ने ऐसा क्यों कहा है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: ‘याहे भकति ताहे मुकुति’-शंकरदेव ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि ईश्वर की भक्ति करने वालों को मुक्ति की प्राप्ति होती है। श्रीशंकरदेव यह भलीभाँति जानते थे कि भक्ति के बिना शास्त्रों का सारतत्व समझ में नहीं आता। वे कहते हैं कि कमल के फूल अपने हृदय में स्थित मधुरस को निकाल देते हैं, परंतु उसका रसपान मधुकर ही करता है। भक्तगण यह तत्वसार जानते हैं कि ‘याहे भकति ताहे मुकुंति’ अर्थात् भक्ति जिसकी है, मुक्ति भी उसकी ही है।

(ङ) शंकरदेव के अनुसार असली पंडित कौन है ? उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तरः शंकरदेव के अनुसार असली पंडित वही है जो शास्त्रों के सारतत्व को ग्रहण करते हैं। अर्थात् भक्तगण ही असली पंडित हैं क्योंकि इन्होंने शास्त्रों और नाम धर्म के सारतत्व को आत्मसात किया है। इनकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(क) वे ईश्वर का नाम-कीर्तन गाते हैं।

(ख) राम नाम के सारतत्व से वे भलीभाँति परिचित हैं।

(ग) वे भगवान की महिमा से परिचित होकर उनके गुणों का गान करते हैं।

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4. निम्नलिखित पद्यांशों के भावार्थ लिखिए :

(क) बुलिते एक शुनिते शात नितरे।

उत्तर: इस पंक्ति का भावार्थ यह है कि एक व्यक्ति यदि ईश्वर के नाम का उच्चारण करे तो उसे सुनकर सौ व्यक्ति संसार के क्लेश से मुक्त हो जाते हैं।

(ख) सबकहु परम सुहृद हरिनाम

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति का भावार्थ यह है कि हरि का नाम ही सबके लिए सुहृद की भाँति हितसाधक है।

(ग) याहे भकति ताहे मुकुति भकते ए तत्व जाना

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति का भावार्थ यह है कि भक्ति जिसकी है, मुक्ति भी उसकी है – भक्तों ने यह तत्वसार जान लिया है।

(घ) सोहि पण्डित सोहि मण्डित यो हरि गुण गावै

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति का भावार्थ यह है कि जो हरि के गुण गाते हैं, वे ही असली पंडित, ज्ञानी और यशस्वी कहलाते हैं।

भाषा एवं व्याकरण

1. निम्नलिखित सामासिक शब्दों का समास-विग्रह करते हुए उसके भेद भी लिखिए : 

दशानन, भयभीत, चौराहा, नीलकमल, पीतांबर, आजीवन, दिन-रात, सुहृद

उत्तरः दशानन दश हैं आनन (मुख) जिसके, अर्थात् रावण-बहुव्रीहि समास

भयभीत : भय से भीत- तत्पुरुष समास’ 

चौराहा: चार राहों का समूह द्विगु समास

नीलकमल: नीला है जो कमल- कर्मधारय समास

पीतांबर: पीत (पीला) है अंबर (वस्त्र) जिसके अर्थात् विष्णु – बहुब्रीहि समास ।

आजीवन : जीवन पर्यंत अव्ययीभाव समास

दिन-रात: दिन और रात द्वंद्व समास

सुहृद : सुंदर है जो हृदय – कर्मधारण समास 

2 .निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए :

भव, तरणी, सार, पंडित, कमल, जल

उत्तरः भव -संसार, जगत

तरणी- नाव, नौका

सार -मूलवस्तु, रस

पंडित- जानकार, ज्ञानी

कमल – पंकज, नीरज

जल- पानी, नीर

3 निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए :

प्रकाश, मुक्ति, एक, सुख, पाप, भयभीत

उत्तर: प्रकाश- अंधकार

मुक्ति- बंधन

एक -अनेक

सुख -दुःख

पाप- पुण्य 

भयभीत-निर्भय