प्रश्न 134 बालक में सामाजीकरण का प्राथमिक स्तर (या घटक) है - Show
प्रश्न 135 अधिगम का सूचना प्रसाधन सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया है - प्रश्न 136 मनोविज्ञान अध्ययन की निम्न विधियों में सर्वाधिक प्राचीन एवं मौलिक विधि है - प्रश्न 137 मनोविज्ञान का कौनसा सम्प्रदाय ‘मनोविज्ञान को चेतना का विज्ञान’ मानता है - प्रश्न 138 मनोविज्ञान को ‘चेतना का विज्ञान’ बताया है - प्रश्न 139 पाठयक्रम के जिस सिद्धांत में ‘करके सीखने’ पर बल दिया जाता है, वह है प्रश्न 140 अध्यापन कक्ष में पृथ्वी की आकृति को समझान े का सर्वश्रेष्ठ साधन क्या है - प्रश्न 141 निम्न में से कौन-सा ‘ज्ञान उद्देश्य’ का उदाहरण है - प्रश्न 142 एडवर्ड थाॅर्न डायक (1898) को शिक्षा मनोविज्ञान में किस सिद्धान्त के लिए जाना जाता है - प्रश्न 143 अभिवृत्ति के निर्माण में उत्तरदायी होते हैं - page no.(15/34) Take a QuizTest Your Knowledge on this topics. Learn More Test SeriesHere You can find previous year question paper and mock test for practice. Test Series TricksFind Tricks That helps You in Remember complicated things on finger Tips. Learn More ShareJoinJoin a family of Rajasthangyan on 'ब्लूम' द्वारा प्रतिपादित ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक (मनोपेशीय) पक्षों में प्रतिपादित शैक्षिक उद्देश्यbloom taxonomy"Uddeshyon" के निर्धारण के बाद उनका सुव्यवस्थित रूप से लेखक भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है। "Uddeshyon" के लेखन में जितनी स्पष्टता, क्रमबद्धता, व्यापकता तथा निश्चितता होगी उतना ही "Uddeshyon" को प्राप्त करना सहज एवं सरल होगा। इसके लिए शिक्षक को "Shikshan Uddeshyon" के विषय में सरल भाषा में यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उन "Uddeshyon" को प्राप्त करने के लिए विकास सम्बन्धी कौन-कौन से क्षेत्रों में विद्यार्थियों के अन्दर कौन-कौन से परिवर्तन करने हैं, जिससे सभी प्रकार की अनिश्चिततायें तथा अस्पष्टतायें दूर हो जायें तथा निष्पत्ति का मापन सम्भव हो सकें। सीखने के "Uddeshyon" के लेखन के समय निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए (1) उद्देश्य व्यापक तथा विश्लेषणात्मक होने चाहिए। (2) उद्देश्य इतने स्पष्ट होने चाहिए, जिससे उनका मूल्यांकन सुविधापूर्वक सम्भव हो सके। (3) उद्देश्य लेखन में सम्बन्धित उद्देश्य के विशिष्टिकरण भी दिये जाने चाहिए। (4) उद्देश्य निर्धारण में ज्ञान की अपेक्षा व्यवहारगत परिवर्तन को महत्त्व दिया जाना चाहिए। (5) उद्देश्य सामान्य तथा विशिष्ट दोनों रूपों में स्पष्ट रूप से अलग-अलग लिखे जाने चाहिए। (6) सीखने के "Uddeshyon" को व्यवहारगत परिवर्तन के संदर्भ में लिखा जाना चाहिए। (7) "Uddeshyon" को अधिगम से सम्बन्धित करके लिखा जाना चाहिए। (8) उद्देश्य परिवर्तनशील होने चाहिए। (9) उद्देश्य छात्र के स्तर से जुड़े होने चाहिए। (10) उद्देश्य प्राप्त करने के लिए विषय पर अधिकार होना चाहिए। (11) प्रत्येक उद्देश्य से केवल एक ही सीखने के अनुभव की उपलब्धि सम्भव होनी चाहिए। "Uddeshyon" को व्यावहारिक शब्दावली में लिखने की आवश्यकता (Need for Writing Objectives in Behavioural Terms ) -(1) इनसे शिक्षण क्रियायें सुनिश्चित तथा सीमित करने में सहायता मिलती है। (2) इन "Uddeshyon" की सहायता से अधिगम के अनुभवों को विशेषताओं को निर्धारित किया जा सकता है तथा इनसे उनका मापन भी सम्भव होता है। (3) छात्र व शिक्षक दोनों ही विभिन्न प्रकार के व्यवहारो में अन्तर कर लेते हैं जिससे शिक्षक को शिक्षण व्यूहरचना के चयन में सहायता मिलती है। (4) सामान्य तथा विशिष्ट रूप में "Uddeshyon" के द्वारा सारांश प्रस्तुत किया जा सकता है, जो शिक्षण तथा अधिगम का आधार बनता है। (5) स्केफोर्ड ने "Uddeshyon" को व्यावहारिक रूप में लिखने से शिक्षक को मिलने वाली सहायता इस प्रकार बतायी गयी है :
"Shikshan Uddeshyon" को व्यावहारिक रूप में लिखने की विधियाँव्यवहार परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं। (1) ज्ञानात्मक, (2) भावात्मक, (3) क्रियात्मक । ब्लूम के अनुसार सीखने के उद्देश्य भी तीन प्रकार के होते हैं (1) ज्ञानात्मक उद्देश्य (Cognitive objectives), (2) भावात्मक उद्देश्य (Affective Objectives), (3) क्रियात्मक उद्देश्य (Psychomotor Objectives) (1) ज्ञानात्मक "Uddeshyon" का सम्बन्ध सूचनाओं का ज्ञान तथा तथ्यों की जानकारी से होता है। अधिकांश शैक्षिक क्रियाओं द्वारा इसी उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। (2) भावात्मक "Uddeshyon" का सम्बन्ध रुचियों, अभिवृत्तियों तथा मूल्यों के विकास से होता है। यह शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्या माना जाता है। . (3) क्रियात्मक "Uddeshyon" का सम्बन्ध शारीरिक क्रियाओं के प्रशिक्षण तथा कौशल के विकास से होता है। इस उद्देश्य का सम्बन्ध औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण से होता है। ब्लूम तथा उसके सहयोगियों ने शिकागो विश्वविद्यालय में इन तीनों पक्षों क वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। ज्ञानात्मक पक्ष का ब्लूम ने 1956 भावात्मक पक्ष का ब्लूम करथवाल तथ मसीआने 1964 में तथा क्रियात्मक पक्ष का सिम्पसन ने 1969 में वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। 'ब्लूम' द्वारा प्रस्तावित "Shikshan Uddeshyon" के वर्गीकरण को निम्नांकित तालिका वे रूप में प्रस्तुत किया गया है
छात्र अध्यापक अपने शिक्षण के नियोजन में ज्ञानात्मक पक्ष के "Uddeshyon" को अधिकांश रूप में प्रस्तुत करता है। अत: ज्ञानात्मक पक्ष के "Uddeshyon", पाठ्यवस्तु, सीखने की उपलब्धियों का उल्लेख विस्तार से किया गया है क्योंकि ज्ञानात्मक पक्ष का विस्तृत वर्णन छात्र.अध्यापकों के लिए अधिक उपयोगी होता है। (अ) ज्ञानात्मक उद्देश्य (Congnitive Objectives)(1) ज्ञान-ज्ञान में छात्रों के प्रत्यास्मरण तथा अभिज्ञान की क्रियाओं को तथ्यों, शब्दों, नियमों तथा सिद्धान्तों की सहायता से विकसित किया जाता है। छात्र हेतु परम्पराओं, वर्गीकरण मानदण्डों से नियमों तथा सिद्धान्तों के प्रत्यास्मरण तथा अभिज्ञान के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं। ज्ञान वर्ग के भी पाठ्यवस्त की दृष्टि से तीन स्तर होते (i) विशिष्ट बातों का ज्ञान देना (तथ्य, शब्द आदि) (ii) उपायों तथा साधनों का ज्ञान देना। (iii) सामान्यीकरण, नियमों तथा सिद्धान्तों का ज्ञान देना। (2) बोध-बोध के लिए ज्ञान का होना आवश्यक होता है, जिस पाठ्यवस्तु (तथ्य, शब्द, उपाय, साधन, नियम तथा सिद्धान्तों) का ज्ञान प्राप्त किया है अर्थात् प्रत्यास्मरण और अभिज्ञान की क्षमताओं का विकास हो चुका है। उन्हीं का अपने शब्दों में अनुवाद करना, व्याख्या करना तथा उल्लेख करना आदि क्रियायें बोध उद्देश्य के स्तर पर की जाती हैं। बोध उद्देश्य की क्रियाओं के भी तीन स्तर होते हैं (i) तथ्यों, शब्दों, नियमों, साधनों तथा सिद्धान्तों को अनुवाद करके अपने शब्दों में व्यक्त करना। (ii) इसी पाठ्यवस्तु की व्याख्या करना। (iii) इसी पाठ्यवस्तु की बाह्य गणना तथा उल्लेख करना। (3) प्रयोग-प्रयोग के लिए ज्ञान तथा बोध का होना आवश्यक होता है, तभी छात्र प्रयोग स्तर की क्रियाओं में समर्थ हो सकता है। पाठ्यवस्तु का प्रयोग "Uddeshyon" में भी तीन स्तरों पर प्रस्तुत करते हैं (i) नियमों, साधनों, सिद्धान्तों में सामान्यीकरण करना (यह ब्रह्म गणना के निकट की क्रिया है।) (ii) उनकी कमजोरियों को जानने के लिए निदान करना। (ii) छात्र द्वारा पाठ्यवस्तु का प्रयोग करना अर्थात् छात्र इन शब्दों तथा नियमों को अपने कथनों में प्रयोग कर लेता है। (4) विश्लेषण-इसके लिए तीनों ही "Uddeshyon" की प्राप्ति आवश्यक होती है। इसमें पाठ्यवस्तु के नियमों, सिद्धान्तों, तथ्यों तथा प्रत्ययों को तीन स्तरों पर प्रस्तुत किया जाता है (i) उनके तत्वों का विश्लेषण करना। (ii) उनके सम्बन्धों का विश्लेषण करना। (ii) उनका व्यवस्थित सिद्धान्त केरूप में विश्लेषण करना। बोध तथा प्रयोग "Uddeshyon" की अपेक्षा विश्लेषण उच्च स्तर का उद्देश्य होता है। इसमें पाठ्यवस्तु के बोध तथा प्रयोग के बजाय उनके तत्वों को अलग-अलग करना होता है तथा उनमें सम्बन्ध भी स्थापित करना होता है। (5) संश्लेषण-इसको सृजनात्मक (Creative) उद्देश्य भी कहा जाता है, इसमें विभिन्न तत्वों को एक नवीन रूप में व्यवस्थित किया जाता है। संश्लेषण के भी तीन स्तर होते हैं (i) विभिन्न तत्वों के संश्लेषण में अनोखा सम्प्रेषण करना। (ii) तत्त्वों के संश्लेषण से नवीन योजना प्रस्तावित करना। (iii) तत्त्वों के अमूर्त सम्बन्धों का अवलोकन करना। संश्लेषण में छात्रों को अनेक स्रोतों से तत्त्वों को निकालना होता है। विभिन्न तत्त्वों को मिलाकर नया ढाँचा तैयार करना होता है। इससे सृजनात्मक क्षमताओं का विकास होता है। (6) मूल्यांकन-यह ज्ञानात्मक पक्ष का अन्तिम तथा सबसे उच्च उद्देश्य माना जाता है। इसमें पाठ्यवस्तु के नियमों, सिद्धान्तों तथा तथ्यों के सम्बन्ध में आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाता है। उनके सम्बन्ध में निर्णय लेने में आन्तरिक तथा बाह्य मानदण्डों को प्रस्तुत किया जाता है। वास्तव में मूल्यांकन को नियमों, तथ्यों, प्रत्ययों तथा सिद्धान्तों की कसौटी का स्तर माना जाता है। विद्यालयों के शिक्षण विषयों की पाठ्यवस्तु में शब्दावली, तथ्य, नियम, उपाय, साधन, विधियाँ, प्रत्यय, सिद्धान्त तथा सामान्यीकरण ही होते हैं। इतिहास की पाठ्यवस्तु के तथ्य (Facts) होते हैं। विज्ञान की पाठ्यवस्तु में नियम, विधियाँ तथा सिद्धान्त होते हैं। भाषा की पाठ्यवस्तु में शब्दावली, साधन, प्रत्यय नियम होते हैं। इस प्रकार शिक्षण विषयों की सहायता से ज्ञान उद्देश्य से मूल्यांकन "Uddeshyon" तक की प्राप्ति की जाती है और इस प्रकार ज्ञानात्मक पक्ष का विकास होता है। ज्ञानात्मक पक्ष
भावात्मक उद्देश्य (Affective Objectives)
क्रियात्मक पक्ष (Psychomotor Domain)इस पक्ष का सम्बन्ध भिन्न प्रकार के मनोगत्यात्मक कौशल के विकास से है। गत्यात्मक कौशल का तात्पर्य मांसपेशीय एवं अंगिक गतियों को किसी प्रयोजन के त्ति नए प्रतिमान में संगठित करने से है। इस उद्देश्यकी संप्राप्ति पर शिक्षार्थी मानचित्र ता है, रेखाचित्र बनाता है, उपकरणों का प्रयोग करता है, मॉडल बनाता है। आदि तात्पर्य मनोगत्यात्मक कौशल के अन्तर्गत सीखी हुई गतियों को नवीन परिस्थितियों संगठन में संगठित करने से है। इसका वर्गीकरण निम्नानुसार है-(1) प्रत्यक्ष, (2) विन्यास , (3) निर्देशित अनुक्रिया, (4) कार्यविधि, (5) जटिल बाह्य अनुक्रिया।
ज्ञान उद्देश्य का उदाहरण कौन सा है?यह सही है कि बहुत सा ज्ञान ऐसा है जिसे प्राप्त करने में आदमी को मेहनत करनी पड़ती है और बहुत समय लगता है। लेकिन हम आम जीवन में भी तो ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
ज्ञान का प्रमुख उद्देश्य क्या है?ज्ञान में मनुष्य की सामाजिक शक्ति संचित होती है, निश्चित रूप धारण करती है तथा विषयीकृत होती है।
अनुप्रयोग उद्देश्य का सही उदाहरण क्या है?ब्लूम एवं उनके साथियों द्वारा ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक पक्षों के व्यवहारगत उद्देश्य का विस्तृत वर्गीकरण की चर्चा भी इस इकाई में की गई है। ईकाई के प्रत्येक खण्ड के अंत में कुछ अभ्यास कार्य दिये गये है जिसकी मदद से आप पाठ की पुनरावृत्ति कर सकेंगे । इकाई के अन्त में प्रत्येक भाग का सारांश दिया गया है।
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