पारे को शुद्ध कैसे किया जाता है? - paare ko shuddh kaise kiya jaata hai?

पारे का शोधन और संस्कार

इन दो शब्दों शोधन और संस्कार ने सभी पारे पर कार्य करने वालों को उलझा कर रख दिया । मेरा जहां तक मानना है, वर्तमान समय में इन दो शब्दों की शायद ही किसी को इनकी सही समझ होगी । इन दो शब्द शोधन और संस्कार को समझें, उससे पहिले जरूरी है, ये समझना कि पारा होता क्या है ? पारा क्या है, इसे समझते ही शोधन और संस्कार अपने आप ही समझ में आ जायेगा ।

कुछ और भी शब्द जो शायद पढ़ने में कई जगह आये होंगे, पर लोग इस पर ध्यान नहीं देते हैं ।

१. रस विज्ञानी

२. रसाचार्य

३. रस योगी

४. रस सिद्ध । इन चार शब्दों को समझना इसलिये भी जरूरी है, पुरातन जितने भी रस ग्रंथ होंगे वो इन्हीं चार में से किसी ने लिखे होंगे । वर्तमान समय में इन चार श्रेणी के अलावा जिन लोगों ने भी ग्रंथ लिखे होंगे वो सब इन्हीं की कॉपी होंगे । आधुनिक काल में ऐक भी इन चार में कोई हुआ नहीं है । इन चार श्रेणिंयों में जो भी आते हैं, उनमें से ऐक भी व्यक्ति सोना बनाने वाला नहीं होगा ! क्योंकि इन चार श्रेणियों में जो भी आते हैं , वो सभी महात्मा होंगे । महात्माओं को सोने, चाँदी से लेना देना क्या ?

रसायन शास्त्र : वर्तमान में यही प्रचलित विज्ञान है । इस विज्ञान पर कार्य करने वालों को रसायन शास्त्री कहते है । इस विज्ञान में सब प्रकार की धातु , उप धातु, गैसें आदि आ जाती हैं । इन सबसे जुड़ी जानकारियां, क्रियायें आदि सब इसी विज्ञान में संकलित हैं । जो लोग इस पर कार्य करते हैं, उन्हें रसायन शास्त्री कहा जाता है । इस विज्ञान में जिन ११२ तत्वों पार कार्य होता है, उनमें से पारा भी ऐक तत्व है, जिससे यहां काम होता है । पारे को लेकर समग्र खोज यहां पूरी हो चुकी है । पारा ऐक विष है, पारा ऐक खनिज है, पारा ऐक धातु है । इस धातु का उपयोग थर्मामीटर में भरने में, पानी के जहाजों पर इसका ऑक्साईड पोतने मे, ऐसा बहुत कुछ उपयोग होता है । रसायन शास्त्र में पारे, ताम्र, लोह आदि धातुओं को काम में लिया जाता है । जब भी पारे या अन्य धातुओं पर काम होता है, तो रसायन विज्ञान न्यूट्रान, प्रोटान, इलेक्ट्रान आदि की बात करता है । इसके आगे कुछ भी नहीं । और यदि बात करेगा भी तो वो परिकल्पनायें होंगी ।

रस विज्ञान : रस का मतलब है, पारे का विज्ञान । इस विज्ञान के अंदर सिर्फ पारे का ही विज्ञान आता है । पारे से काम करें या फिर पारे पर काम कर रहे हों, समग्र विज्ञान इसी बिषय के अंतरगत आता है । इस वाक्य पर गौर करें यहां पारे को जैविक नहीं माना जाता है, बल्कि जो पारा प्रयोग में आता है, वो जैविक पारा ही होता है । खनिज पारा का अर्थ है, धातु पारा जो रसायन शास्त्र का पारा है । जैविक पारा का अर्थ है, जीव के गुणों से संपन्न । यानि दोनों अलग पारा । दोनों में कोई समानता नहीं ।

जब दोनों में कोई समानता ही नहीं है, तो कैसे कोई रसायन शास्त्री जैविक पारे के गुणों पर कोई दावेदारी कर सकता है । किसी भी रसायन शास्त्री को रस विज्ञान की १% जानकारी भी नहीं होती है । रसायन विज्ञानी किसी जीव विज्ञान पर कैसे बोल सकता है ? ये अलग बात है, जीवों की रसायनिक संरचना का निर्माण भी रसायनिक तत्वों से ही होती है । जो तत्व जिंदा जीवों के शरीर का संचालन करते हैं, वो सभी जैविक तत्व होते हैं, न कि खनिज तत्व होते है । हां जैविक तत्व, खनिज तत्वों का रूपांतरण हो सकते है । लेकिन वो खनिज तत्व नहीं हो सकते हैं । चाहे मनुष्य हो या फिर जीव उनकी शारीरिक संरचना में लोह, ताम्र, स्वर्ण आदि तत्वों का समन्वय होता है । लेकिन लोहा या ताम्र की कमी शरीर में होने पर सीधा लोहा खाया नहीं जा सकता है । लेकिन यही खनिज तत्व रूपांतरित होकर पेढ़ पौधों के माध्यम से उपयोगी हो जाते हैं । भूमि से तत्व अनाज, फलो आदि में संचित होते हैं । वहां से मनुष्य के शरीर में पहुंचते हैं । जो तत्व मनुष्य, पेढ़ पौधों आदि में संचित हैं वो लोह ही है । लेकिन रूपांतरण की ऐक प्रक्रिया घटित हुई है । जैविक ताम्र, लोहा, सोना, और खनिज ताम्र, लोहा, सोना दोनों ऐक होते हुये भी ऐक नहीं हैं । उसी प्रकार से पारा भी है । आयुर्वेद का ताम्र, लोह, पारा आदि को यदि रसायन शास्त्र ने जांच किया तो वो यही कहेंगे कि यह ताम्र, लोहा या पारा है ही नहीं ।

यही बात किसी की समझ में नहीं आ रही है । आयुर्वेद के लोग जितनी भी औषधियां बना रहे हैं, वो सभी खनिज धातुओं से ही बना रहे हैं । ये बहुत ही बड़ी धोखा धड़ी है । इसी लिये सारी दुनियां में ववाल खड़ा हो गया है । कि धात्विक औषधियां जानलेवा हैं । कई देशों ने पारे से बनी औषधियां वेन तक कर दी हैं । किसी के पास इसका कोई जवाब नहीं है । आयुर्वेद अष्ट धातुओं से औषधि निर्माण करता है । इसमें पारे से सबसे ज्यादा औषधि निर्माण किया जाता है । हमें सबसे पहिले खनिज धातुओं को पहिले जैविक धातुओं में बदलना चाहिये । तभी वो मनुष्य के शरीर में उपयोगी हो सकती हैं । आप सीधा गेंहू भी नहीं खा सकते है, पहिले उससे आटा बनाया जाता है, फिर चपाती बनती है । ऐक प्रक्रिया है । बस यही यहां भी ध्यान रखना होगा । सर्वप्रथम खनिज पारे को जैविक पारे में बदलना होगा उसके बाद ही ये उपयोगी होगा । ट्नों से खनिज पारा हर साल औषधि निर्माण में उपयोग हो रहा है । खाने वालों को पता ही नहीं चलता है । लेकिन जब इसी खनिज पारे से कींमिया कर रहे होते है, तो परीणाम शून्य होते हैं । तत्काल ही पता चल जाता है, कुछ गड़बड़ हुई है । लोगों को लगता है, कि क्रिया में कुछ कमी रह गई है । पर सत्य ये है, कि आप जो सामग्री ले रहे है, वही ऐकदम क्रूड फॉर्म में है । इस खनिज पारे से कुछ भी होने वाला नहीं है । लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या पारा ग्रास ले लेता है, कितना % तक स्वर्ण या अभ्रक सत्व का ग्रास लेता है । मुझे तो बहुत ही आश्चर्य होता है । लेकिन देशाहटन के दौरान मैंने देखा कि लोग खनिज पारे को ग्रास देने की कोशिश करते है, फिर उसे हजम कराने की कोशिश करते है । धातु धातु का ग्रास कैसे लेगी ? समझ से परे है । जैविक पारा ग्रास भी लेता है, और उसे हजम भी करता है । जैविक पारा का अर्थ है, सभी जीवत गुणों से सपंन्न । अब बात करते है, उन चार शब्दों की जिनकी समझ होने से आपको बहुत कुच डीकोड हो जायेगा ।

रस विज्ञानी : पारद के विज्ञानों पर काम करने वाले लोग इस श्रेणी में आते हैं । पारा यानि कि खनिज और पारद का अर्थ जैविक । ध्यान रहे पारे से काम करना और पारे पर काम करना दोनों में फर्क है । यहां दो शब्द और ध्यान दें । गोचर , जो दृष्टि में दिखाई दे । पारे से काम करने का अर्थ है, गोचर संसार में काम करना । अगोचर : जो दृष्टि से परे यानि कि अदृश्य में काम करना । पारे पर काम करने का अर्थ है, अदृश्य में काम करना । इसे परमात्मा के क्षेत्र में हस्तक्षेप भी कहा जाता है । चाहे सोना बनायें या फिर चाँदी बनाये, आप कुछ क्रियेट करने जा रहे हैं । यानि परमात्मा के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं । यहां दृश्यवत संसार के नियम लागू नहीं होते हैं । इसी लिये रस ग्रंथों में दुनिया भर के नियम पारद पर कार्य करने वालों के लिये लिखे गये हैं । शुद्धतायें, सावधानियां, पूजन आदि आदि । जो लोग संन्यास मार्गीय होते है, उनका जीवन अनुशासित ही होता है । उन्हें अलग से कुछ पालन की आवश्यकता नहीं होती है । गारहस्थी घर के अनुशासन में रहते हुये, कार्य को परिणाम में बदल नहीं पाते है । गृहस्थी कई प्रकार के काम करते हैं पर परिणाम से हमेशा ही कुछ चूक हो ही जाती है । उसकी वजह है, अपने विजन को न बदल पाना । आपको संन्यासी नहीं होना है, बल्कि संन्यासी का दृष्टि कोण पैदा करना होता है । जो लोग भी पारे पर इतना गहन काम कर रहे हैं और सफल नहीं हो पाते है ।१. सही पदार्थों का उपयोग न करना । २. वर्तमान दृष्टि कोण से पारे पर काम करना । जो लोग भी मुझसे जुड़ते है, उनसे मैं हमेशा कहता हूं , थाली सोने की हो सकती है, रोटी नहीं और खाई रोटी ही जाती है । त्याग वृत्ति जितनी ज्यादा आती है, कार्य आसान होता जाता है ।

ऐक व्यक्ति ने घर छोड़ दिया, कि इतना पैसा हो कि जिंदगी भर बैठकर खाये । घर छोड़ा तब २२ साल के थे । गुजरात में मेरे से मुलाकात हुई तब ६५ साल के थे । जब पहिला रिजल्ट देखा । मैंने उनसे पूछा कि अब क्या करेंगे शादी करोगे ? अब सब त्याग कर सन्यास ले लिया ।

रसाचार्य : इनमें शिक्षकों वाली गुणवत्ता होती है । पढ़ा है, सुना है, देखा है, पर कभी भी प्रयोग से नहीं गुजरे है । ये लोग आपको पढ़ा सकते है, पर करके नहीं दिखा सकते हैं । करके दिखायेंगे भी तो सीमायें हैं । वर्तमान समय में आयुर्वेद की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण यही है । किताबों से पढ़ लो, डिग्री लो । बाजार की औषधि लोगों को खिलाओ । मुझे बहुत ही दुख होता है, जब यही लोग ये कहते है, कि आयुर्वेदिक औषधियां देर से असर करती है । सत्य तो ये है कि इन्हें खुद भी भरोसा नहीं है । बाजार की दबाईयां कब भरोसे के काबिल होती है । आज गलियों में पारे से दबाई बनाई जा रही है । किसी को गुणवत्ता से कुछ लेना देना नहीं है । पुरातन काल में रस वैद्द्य हुआ करते थे । जो खुद रस औषधियां निर्माण करते थे । यही लोग आचार्य भी होते थे । ये विद्द्या परंपरा से चलती थी । ये रस वैद्य अच्छे कीमिया के भी जानकार होते थे, और शरीर विज्ञान के भी । स्वर्ण निर्माण और शरीर निर्माण ये दो अलग परिस्थितियों में किया जाने वाला ऐक ही काम है । शरीर पर जब कार्य करते हैं, तो इसे ही कल्प कहा जाता है, जब धातु पर काम करते है, तो उसे कीमिया कहा जाता है । ऐक ही पारा दोनों जगह काम करता है । आज रस वैद्य और आयुर्वेदाचार्य ऐक ही होते हैं ।

रस योगी : वो लोग जो योग को रस से साधते हैं । चूंकि ये लोग स्वंय योग को साधते हैं, इसलिए शरीर विज्ञान में महारथ तो होती ही है । साथ ही योग साधने में सहायक बने वो पारा भी बनाते हैं । पारा और शरीर का सही तालमेल बन सके वो परिस्थितिया भी निर्मित की जाती हैं । पारा, शरीर, वातावरण सभी अनुकूलित किया जाता है ।

योग की कई विधायें है,

१. मस्तिष्क को मजबूत करने वाला पारा , ज्ञानयोगी बनाते हैं |

२. हृदय को मजबूत करने वाला पारा भक्ति योगी बनाते है ।

३. काम केंन्द्र को मजबूत करने वाला पारा तंत्र योग में प्रयुक्त होता है ।

जो भी जिस पंथ का है, उसी के अनुकूल पारा बनाता है । नाथ, अघोर बहुत से योग के मार्ग हैं । सबका पारा अलग पद्धाति से सिद्ध (बनता) होता है । जब भी पूंछा जाता है कि पारा कौन बना रहा है, कि किस पंथ का व्यक्ति । यहां ये भी ध्यान रखने के योग्य है, रस योगी सोना नहीं बनाते हैं । हां ऐसा पारा जरूर बनाया जाता है, जिससे स्वर्ण बनाया जा सकता है । लेकिन जैसे शरीर तैयार किया जाता है, उसी प्रकार से ताम्र या चांदी भी तैयार करनी होगी जो इस पारे को आत्मसात कर सके । सिद्ध पारा शब्द का कहीं प्रयोग आये तो धोखे में न पड़े । ऐक का बनाया पारा दूसरे के पंथ में नहीं चलता है । पारा किसने बनाया , किस उद्देश्य से बनाया गया है , ये सब मालूम हुये बिना ये पारा आपके किसी काम नहीं है । इसके और विस्तार में नहीं जाते हैं ।

रस सिद्ध : ऐसे लोग जिन्हें पारा सिद्ध होता है, ये लोग कर तो बहुत कुछ सकते है, पर सिखा कुछ भी नहीं सकते है । इनके पास कोई फोर्मूला होता ही नहीं है । यदि किसी को कोई देवी देवता सिद्ध हो जाये तो वो जो कहेगा सो हो जायेगा । आप कहें कि ये सब मुझे भी सिखा दीजिये तो कैसे संभव है ?

ऐक बार उत्तर प्रदेश  में ऐक ऐसे ही व्यक्ति से मैं मिला । बड़ी ख्याति थी, मैंने उनसे पूछा १. आपको शिव सिद्ध हो गये हैं । २. शिव की कृपा है । ३. शिव से मैत्री है । ४. शिव वश में हैं । उसने साफ कहा बस ऐक अनुभूति हुई है । जो भी कह देता हूं वो अक्सर हो जाता है । बस यही रस सिदधी है । इसके और विस्तार की आवश्यकता नहीं है ।

ये चारों ही श्रेणी के लोगों का अपनी जगह पर महत्वपूर्ण है । लेकिन इनमें से स्वर्ण निर्माण कोई भी नहीं करता हैं । ये बात इसलिये कही गई है कि इस समय में जितने भी रस ग्रंथ वर्तमान समय में उपलब्ध हैं, वो इन्हीं मे से किसी के लिखे हुये होंगे । इसके अलावा जितने भी ग्रंथ होंगे वो इन्हीं की कॉपी ही होंगे । मूल ग्रंथ इतने जटिल हैं कि उन्हें समझ पाना मुस्किल है । जिन लोगों ने इनका टीकाकरण किया है, वो या कवि थे, या फिर संस्कृत के अच्छे जानकार । कईयों जगत अतिशयोक्ति कर दी है । जो कवियों का स्वभाव होता है । संस्कृत के जानकार भाषानुबाद ठीक कर सकते हैं, पर भावानुवाद ठीक नहीं कर सकते है । ये लोग विषय वस्तु के जानकार नहीं होते हैं । मैंने २००८ के बाद रस ग्रंथ पढ़े तरस आता है ।

कुछ वर्षों पहिले मैं ऐक पीएचडीपरैड. के कांनफ्रेंस में शामिल हुआ । पारद संस्कार के लिये स्त्री का रेतस और पुरुष का वीर्य, मैंने उससे पूंछा कि ये आपको कहां मिला ? उस लड़्की के गाईड से भी प्रश्न किये । मैंने उनसे पूछा आपको पुरुष ही कहां मिला ? पुरुष शब्द का अर्थ है, निर्दोष, उसका वीर्य । पुरुष परमात्मा को कहा जाता है, उन्होंने माना ग्रंथों में लिखा है, मैंने कहा कम से कम सही अर्थ तो कीजिये ! नारी क्षीरेण ,,, स्त्री का दूध । स्त्री नाम की वनस्पति होती है जो तालबों में मिलती है । उप में किसी बच्चे से पूचे वो भी बता देगा । सिद्ध रस को सिद्धों का रस लिखा हुआ है । इसके विस्तार में जायें तो ऐक नया ही ग्रंथ तैयार हो जाये । मैंने आयुर्वेद के लोगों से कहा है कि यदि आपको पारा समझ में आ जाये तो आप ऐक अच्छे रस वैद्द्य होंगे जिसे स्वर्ण बनाना आता होगा ।

जो भी रस ग्रंथ उपलब्ध है, नागार्जुन, गोरखनाथ, गोविंदपादाचार्य जैसे लोगों ने लिखे हैं । ये सभी उच्च अवस्था को पहुंचे हुए लोग थे । जरा विचार करिये क्या ये लोग सोना बनाने की बात लिख सकते है ? थोड़ा और भी दिमाग पर जोर डालिये जब ये लोग थे तब पारा क्या खदानों से निकल कर आता था ? रस सिद्ध जब हुए है तब पारा कहां से आता था क्या ये विचारणीय़ नहीं है ? शून्य सिद्धी, हादी विद्द्या, कादी विद्द्या की इन सबको जानकारियां होती थी । हादी पत्थरों की भाषा का ज्ञान, कादी वनस्पतियों की भाषा का ज्ञान । ये लोग पारा दुकानों से नहीं खरीदते होंगे । न ही जंगलों में वनस्पति या चीजों के लिये भटकते होंगे । तो इनके लिखे ग्रंथ हमारे लिये कितने उपयोगी होंगे ?

कुछ लोगों का कहना है, कि तंत्र के ग्रंथ या नाथ संप्रदाय के ग्रंथ से अमुक फार्मूला ले लिया । या जो अच्छा लगा ले लिया । ध्यान रखिये नाथ संप्रदाय, अघोर पंथ, वाम मार्ग या फिर तंत्र मार्ग या अन्य जितने भी मार्ग है, उनमें जो भी बाते लिखीं गई हैं वो सभी अच्छी है, लेकिन सिर्फ उसे मार्ग के लोगों के लिये ही सिर्फ । जैसे नाथ संप्रदाय में विष्टा आदि का प्रयोग, वामाचार में बलि आदि, अघोर पंथ में अघोर, तंत्र मार्गीय स्त्री पुरुष संबध पर आधारित है । आप गारहस्त मार्गीय हैं । इनमें से कोई रास्ता आपको अनुकूल नहीं होने वाला है । यदि किसी पंथ का आप थोड़ा कुछ लेना चाहेंगे तो थोड़ा नहीं आयेगा, बल्कि पूरा ही आयेगा । आपको पहिले से इन चीजों का अंदाजा होना चाहिये । जहां विष्टा शब्द का प्रयोग लिखा है, वो विधि नाथ संप्रदाय से ली गई है, जहां रक्त , वीर्य आदि का वर्णन है, वो सभी तंत्र मार्ग से ली गई हैं । इसी प्रकार से अन्य भी । इन्हें त्यागिये । ये गलत पद्धतियां नहीं हैं, किंतु गारहस्त मार्गियों के लिये नहीं है ।

मैं कुछ माह पहिले राजकोट ऐक महात्मा के पास गया था । वो पिछले १० साल से ऐक फॉर्मूले पर काम कर रहे थे । लेकिन सफलता नहीं मिली थी । उन्होंने मेरे से चर्चा किया । चूंकि मेरा मौलिक मार्ग तंत्र ही रहा है, मुझे ऐक मिनट भी नहीं लगा कि उन्होंने कहां गलती की होगी । वापस लौटकर आया, अपनी प्रयोग शाला में उसी कार्य को शुरु किया । ८ वें दिन २२ कैरेट गोल्ड का फोटो मैंने भेज दिया । मैंने बहुत से काम करने वालों को देखा है, दुनिया भर का काम कर लेते है, लेकिन हर बार परिणाम से दूर रह जाते हैं ।

हिमाचल में ऐक महात्मा के यहां रात्रि विश्राम किया । भोजन के बाद चर्चा में उन्होंने बताया कि वो किसी भी वनस्पति से पारे का बंधन कर देते हैं । मैंने आग्रह किया मैं देखना चाहूंगा । अगले दिन वही से ऐक वनस्पति से रस निकाला डेढ़ घंटे की घुटाई से पारा गाढ़ा हो गया । मैंने उनसे पारा देखकर पूछा कि ये आपको कहां से मिला ? उन्होंने वही से कुछ पौधे दिखाये कि उनसे निकालते हैं । मैंने उनसे कहा कि आपने क्यों डेढ़ घंटे वरबाद किया । इस पारे से आप कुछ भी करेंगे हो जायेगा । क्योंकि ये जैविक पारा है । लेकिन यही काम वाजार के पारे से नहीं होगा । नहीं माने, आखिर शिमला से पारा बुलाया । ४ घंटे की घुटाई के बाद भी कुछ नहीं हुआ । और कुछ होना भी नहीं था ।

वनस्पतियों से जो पारा निकलता है, वो जैविक पारा होता है, इसे वानस्पतिक पारा भी कहते है । ये वनस्पति रसों से बहुत ही जल्दी तालमेल बैठा लेता है । लेकिन खनिज धातुओं से क्रिया जल्दी नहीं करता है । यदि ये पारा किसी रसायन शास्त्री को दे दें तो वो साफ कह देगा, कि ये पारा ही नहीं है ।

खदानों से जो निकलता है, वो खनिज पारा होता है । ये पारा खनिज धातुओं के साथ आसानी से मेल कर लेगा लेकिन जैविक धातुओं के साथ आसानी से तालमेल नहीं करेगा । जैविक जैविक के साथ और खनिज खनिज के साथ मिल सकता है । दोनों ही बिल्कुल ही अलग चीजे हैं । यहां खनिज पारे को जैविक पारा यानि कि सक्रिय पारा बनाना है । उसके बाद ही किसी अन्य काम की सोचा जानी चाहिये । पारे के बारे में हम कोई भी बात करें उससे पहिले ये जानना जरूरी है कि पारा होता क्या है ?

पारा को शुद्ध कैसे करें?

दुनिया भर में लाखों लोग जो सोने के खनन के काम में लगे हुए हैं वे पारे का इस्तेमाल कर इस शुद्ध धातु का उसके अयस्क से अलग करते हैं और समस्या तब पैदा होती है जब पारे से शुद्ध धातु को अलग करने की कवायद शुरू की जाती है.

पारे की कीमत क्या है?

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पारे से होने वाला रोग कौन सा है?

पारा (mercury) मानव के लिये ज़हरीले पदार्थों में से एक है। इसके उपभोग के कारण कई प्रकार की दिमागी, त्वचा संबंधी तथा हृदय रोग हो सकते हैं जो घातक भी हो सकते हैं।

कितना पारा एक मानव को मारता है?

पारा (संकेत-एचजी) प्राकृतिक रूप से चांदी के समान एक सफेद चमकदार धातु है। यह हवा, पानी और मिट्टी में उपस्थित है। इसका उपयोग सदियों से औषधीय और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है, लेकिन पारे का संपर्क मनुष्य विशेषकर भ्रूण (गर्भस्थ शिशु) और शिशुओं के साथ-साथ पर्यावरण के लिए विषाक्त (घातक/जहरीला) है।

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