प्रारंभिक बाल शिक्षा की क्या भूमिका है? - praarambhik baal shiksha kee kya bhoomika hai?

भूमिका

प्रत्येक बच्चे के पास उत्प्रेरणा, शिक्षा, खेल – कूद मनोरंजन और संस्कृतिक क्रियाकलापों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक और संवेदनात्मक विकास का अधिकार है ताकि वह अपने व्यक्तित्व का विकास अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुरूप कर सके।

जैसे – जैसे बच्चों की आयु महीनों और वर्षों में बढ़ती जाती है, उनका विकास शारीरिक, मानसिक, सामाजिक

और भावनात्मक रूप से होता है, उनमें समझने और सीखने की क्षमता (संज्ञात्मक कौशल) का विकास होने लगता है। हमारे बच्चों के विकास और उनकी संवृद्धि में विशेष रूप से विद्यालय पूरे की आयु से उपलब्ध कराए गए संपोषणीय परिवेश, बेहतर पोषण और उनके ज्ञान की पर्याप्त उत्प्रेरणा के माध्यम से और भी सुधार किया जा सकता है। इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण विद्यमान हैं कि विद्यालय में प्राप्त की गई अधिकांश प्रगति तीन वर्ष की आयु तक के बच्चों के संज्ञानात्मक और सामाजिक – भावनात्मक विकास पर निर्भर करती है।

हम बच्चों के पोषण स्वास्थय और शिक्षा पर जितना अधिक ध्यान देंगे उनका उतना ही अच्छा शारीरिक और मानसिक विकास होगा। आइए, बच्चों के विकास के प्रमुख पहलुओं और उनमें ग्राम पंचायत की भूमिका के बारे में जानें।

स्वास्थय और पोषण

पोषण का अर्थ है ऐसा आहार जिसे शरीर की भोजन संबंधी आवश्यकताओं के संदर्भ में उपयुक्त समझा जाता है। बेहतर पोषण तथा सन्तुलित आहार तथा साथ ही नियमित शारीरिक क्रियाकलाप बच्चे के स्वास्थय में विकास के प्रति योगदान करते हैं। ख़राब पोषण बच्चों में बीमारियों और उनकी मृत्यु होने की बढ़ती घटनाओं का एक प्रमुख कारण है। बच्चों की पोषण – संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और कैलोरी आवश्यक है। प्रोटीन भोजन में विद्यमान और शरीर – निर्माण के अवयव हैं। जो विभिन्न अहारों में पाये जाते हैं, जैसे दालें, दूध अंडा, मछली और मांस। हमारे शरीर की मांस – पेशियाँ और अंग तथा हमारी प्रतिरक्षण प्रणाली अधिकांशत: प्रोटीन के द्वारा ही बनती है।

कैलोरी हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है तथा यह अनाज, चीनी, वसा और तैलीय आहारों में उपलब्ध होती है। एक 18 किलोग्राम भार वाले 4 से 6 वर्ष के बच्चे को प्रतिदिन अपने भोजन में 1350 ग्राम कैलोरी, 20 ग्राम प्रोटीन और 25 ग्राम वसा की आवश्यकता होती है। बढ़ती उम्र  के साथ बच्चों के पोषण की आवश्यकताएं भी बढ़ती हैं।

बाल्यावस्था के प्रारंभिक वर्षों में अल्प पोषण के फलस्वरूप बच्चों के विकास में गंभीर बाधाएँ आती है तथा यह प्रक्रिया जीवन की आगामी अवस्था में भी जारी रहती है। उदहारण के लिए समय से पूरे जन्मी और जन्म के समय कम वजन की बालिका का विकास निरंतर धीमी गति से होता है तथा वह एक कुपोषित बालिका हो जाती है, जिसका किशोरावस्था में वजन अत्यंत कम होता है। फिर 18 वर्ष से पूर्व की आयु में उसका विवाह होने पर वह कम आयु की कमजोर कद – काठी वाली गर्भवती स्त्री बन जाती है। इसके उपरांत, कुपोषण और खराब शारीरिक विकास का एक अगला चक्र उसके द्वारा जन्म दिए जाने वाले बच्चे, चाहे वह लड़का हो या लड़की के साथ पुन: आरंभ हो जाता है।

अल्प पोषण स्थिति उत्पन्न होने के कुछ अन्य कारण हैं – निर्धनता, निम्न आय बाद और अकाल, नवजात शिशुओं तथा छोटे बच्चों को माता द्वारा अपना दूध न पिलाना अथवा कम दूध पिलाना और कभी – कभी संस्कृतिक प्रथाएँ जैसे कुछ अवसरों पर शिशुओं को आहार न देना, उन्हें केवल सीमित आहार ही देना, आदि।

अल्प पोषण का निवारण करने के लिए प्रमुख योजनाएँ

इसके लिए कुछ मुख्य कायर्क्रम हैं – समेकित बाल विकास कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान के तहत मध्याहन भोजन कार्यक्रम और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत विभिन्न योजनाएँ। कुछ मुख्य कार्यक्रमों और योजनाओं से उपलब्ध करवाए जाने वाले लाभ नीची तालिका में दिए गए हैं ताकि बच्चों में पोषण को बेहतर बनाया जा सके।

योजना/कार्यक्रम के नाम

लक्षित समूह

प्रदान किए जाने वाले लाभ

समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस)

गर्भवती और दूध पिलाने वाली माताएं और 6 साल तक की आयु के बच्चे

1. आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां

2. घर ले जाने वाला राशन

3. स्वास्थय और पोषण शिक्षा

इंदिरा गाँधी मातृत्व सहयोग योजना (आईजीएमएसवाई)

भुगतान सहित मातृत्व अवकाश प्राप्त करने वाली महिलाओं को छोड़कर 19 साल या उससे अधिक उम्र ही गर्भवती महिलाएँ

बच्चे के प्रसव के दौरान वेतन – नुकसान के लिए आंशिक मुअवाजे के तौर पर पहले दो जीवित जन्मों और बच्चे की देखभाल और सुरक्षित प्रसव और अच्छा पोषण और आहार प्रथाओं के लिए उचित स्थितियां प्रदान करने के लिए 3000 रूपये की नकद सहायता।

जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके)

सार्वजनिक स्वास्थय संस्थानों में प्रसव के लिए आने वाले गर्भवती महिलाने और एक वर्ष तक की आयु के बीमार शिशु

1. नि: शुल्क और शून्य खर्च उपचार

2. नि: शुल्क दवाएँ, निदान एवं आहार

3. रक्त का नि: शुल्क प्रावधान

4. स्वास्थय संस्थानों के लिए घर से नि:शुल्क परिवहन और उपयोगकर्ता को सभी प्रकार के शुल्कों से छूट

सर्व शिक्षा अभियान के तहत मध्याहन भोजन (एसएसए)

स्कूल जाने वाले बच्चे (6-14 वर्ष)

1. निर्धारित मानदंडों के अनुसार मध्याहन भोजन

2. स्कूलों में आयरन और फोलिक एसिड तथा कृमि नाशक गोलियां

किशोरी शक्ति  योजना

किशोरियां

आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां तथा कृमि नाशक गोलियों

पोषाहार पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) और कुपोषण उपचार केंद्र (एम्टीसी)

गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे

1. 14 दिनों के लिए आहार चिकित्सा के साथ रोगी का इलाज

2. भोजन और देखभाल प्रथाओं पर माताओं को परामर्श

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)

‘अंत्योदय और प्राथमिकता’ वाले परिवार

क्रम रियायती दरों में राशन जैसे चीनी, चावल, और अनाज

  • सभी सरकारी अनुदान प्राप्त प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों, मदरसों, मक्ताबों और अन्य सभी शिक्षा केन्द्रों में मध्याहन भोजन उपलब्ध करवाया जाता है, जो सर्व शिक्षा अभियान या राष्ट्रीय बाल श्रम प्रोजेक्ट के तहत चलाए जा रहे हों।
  • अनुपूरक पोषण प्रदान करने के लिए हरी सब्जियाँ उगाने के लिए आंगनबाड़ी केंद्र में अथवा विद्यालयों में माता – पिताओं और शिक्षकों अथवा विद्यालय के ‘इको क्लबों’ की सहायता से सब्जी के बगीचे लगाए जा सकते हैं।
  • बच्चों के उचित शारीरिक और मानसिक विकास के लिए खेल – कूद और शारीरिक व्यायाम बहुत महत्वपूर्ण हैं जैसे कि हम तीसरे अध्याय में पढ़ा है, आंगनबाड़ी में खेल के मैदानों की व्यवस्था होनी चाहिए। आगे अध्याय 7 में हम खेल के मैदान की व्यवस्थाओं के बारे में जानेंगे।

पूछने के लिए प्रमुख प्रश्न

  • क्या अपने ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों में अल्प – पोषण की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए आंगनबाड़ी केंद्र के रजिस्टरों की समीक्षा की है?
  • क्या अपने आंगनबाड़ी में सब्जी का बगीचा तैयार करने की योजना बनाई है?

प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा

बच्चे के विद्यालय जाने से पूर्व ही उनकी शिक्षा आरंभ हो जाती है। व्यापक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का उद्देश्य जन्म से छह वर्ष की आयु तक के बच्चों की समग्र रूप से वृद्धि, विकास और उनके शिक्षण को प्रोत्साहित करना है।

  • “देखभाल” का अर्थ है बच्चों के लिए एक देखरेख पूर्ण और सुरक्षित परिवेश उपलब्ध कराते हुए उसके स्वास्थय, साफ – सफाई और पोषण पर ध्यान देना।
  • प्रांरभिक बाल्यास्था के वर्षों में ‘शिक्षा’ के अर्थ ने केवल विद्यालय-पूर्व शिक्षा है बल्कि इसमें नाटक, कथा कहानियों और संगीत आदि के माध्यम से बच्चों को सिखाना भी शामिल हैं। 3-6 वर्ष की आयु में बच्चे सबसे अच्छी तरह से खिलौनों, कहानियों, गीतों, नृत्यों आदि से ही सीखते हैं।

अच्छी प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा बच्चों को विद्यालय के परिवेश में स्वयं को ढालने ने सहायता करती हैं व उनके द्वारा विद्यालय में बेहतर शिक्षा अर्जित करना सुनिश्चित करती है

भारत सरकार की प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा नीति के अनुसार आंगनबाड़ी को एक ‘सक्रिय बाल – हितैषी प्रारंभिक बाल्यावस्था विकास केंद्र’ की भूमिका निभानी चाहिए। अध्याय 3 में हमने आंगनबाड़ी की इस भूमिका के बारे में जाना है। इसे विशेष रूप से गरीब व साधनहीन परिवारों के बच्चों और लड़कियों के नामांकन पर बल देना चाहिए। साथ ही सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपनी शिक्षा पूरी करें। आंगनबाड़ी को प्रत्येक माह एक नियत दिन पर प्रारंभिक  बाल्यावस्था और देखभाल दिवस मनाना चाहिए जिसमें समुदाय के सदस्यों और अभिभावकों को भी शामिल किया जाना चाहिए।

प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा उपलब्ध करवाने वाले कुछ अन्य कार्यक्रम हैं  - प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा उपलब्ध करवाने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं को सहायता, सरकारी अनुदान से स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे बालवाडी , डे – केयर सेंटर, सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे प्राथमिक विद्यालय।

बच्चों को फुलवारियों में देखभाल और बाल्यावस्था देख - रेख प्राप्त होती हैं।

निर्धन परिवारों की माताएं अपने परिवार की अल्प आय में योगदान देने में समर्थ नहीं हो पाती क्योंकि उनमें से अनके को अपने छोटे बच्चों की घर पर रहकर देखभाल करनी होती है। यदि माता काम पर चली जाती है, तो छोटे बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई – बहनों पर आ जाती है जिसके कारण वे विद्यालय को छोड़ने पर विवश हो जाते हैं। इस मुद्दे का समाधान करने की लिए जन स्वास्थ्य सहयोग नामक गैर - सरकारी संस्था ने छत्तीसगढ़ और झारखण्ड राज्यों में शिशु सदन (फुलवारी) की सुविधाएँ आरंभ की। इन शिशु सदनों में, 6 माह से लेकर 3 वर्ष तक की आयु वाले शिशुओं और बच्चों के लिए सुरक्षित परिवेश उपलब्ध कराया गया है। ये बच्चों को पोषणयुक्त खाद्य – पदार्थ उपलब्ध कराने के माध्यम से उन्हें स्वस्थ्य और चुस्त-दुरूस्त बने रहने में मदद करते हैं। ये शिशु सदन एक दिन में 6-8 घंटे तक चलते हैं जिससे बचों की माताएं काम पर तथा उनके बड़े भाई – बहन विद्यालय जा पाते हैं। इन सभी शिशु सदनों का संचालन स्थानीय समुदाय की महिला कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाता है। बच्चों को प्रतिदिन नाश्ता और दो बार पोषक भोजन कराया जाता है। शिशु सदन में बच्चों को खिलौने भी दिए जाते हैं तथा बच्चों के लिए शिक्षा के क्रियाकलाप संचालित करने के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इससे बच्चे प्रसन्नचित रहते हैं तथा फूलवारी जाने वाले बच्चों में बीमारियाँ भी कम हुई है।

प्रारंभिक शिक्षा

प्रारंभिक शिक्षा का अर्थ है विद्यालय में कक्षा 1 से 8 तक दी जाने वाली शिक्षा।

किसी भी बच्चे का विकास उसके द्वारा प्राप्त की गई प्रारंभिक शिक्षा से काफी हद तक जुडा रहता है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 6 – 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है अर्थात समस्त बालक और बालिकाओं का नामांकन विद्यालय में किया जाना चाहिए तथा उन्हें नियमित रूप से विद्यालय जाना चाहिए।

विद्यालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षा पाने योग्य सभी बच्चे उनकी आयु के अनुरूप कक्षा में बिठाना चाहिए और अध्यापकों यह ध्यान देना चाहिए कि बच्चे को इससे पहले की शिक्षा भी दी जाए।

प्राय: लड़कियाँ अथवा निर्धन और पिछड़े परिवारों के बच्चे या तो विद्यालय में भर्ती ही नहीं कराए जाते हैं अथवा वे शिक्षा बीच में ही छोड़ देते हैं। बालिकाओं को विद्यालय भेजने के लिए उनके अभिभावकों को प्रोत्साहित किए जाने तथा साथ ही उन्हें आवश्यक सहायता भी प्रदान किए जाने की आवश्यकता है, ताकि वे विद्यालय कि शिक्षा पूरी कर लें।

विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे (सीडब्ल्यूएसएन)

कुछ शारीरिक अथवा मानसिक असामन्यता रखने वाले अथवा शिक्षण संबंधी असमर्थता वाले बच्चों की अपने विकास के लिए विशेष आवश्यताएँ होती हैं। ऐसे बच्चों में वे आते हैं जो दृष्टिहीन हैं, बाधिर हैं, शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से विकलांग हैं अथवा जिनकी शिक्षा  संबंधी असमर्थतायें हैं। प्राय: ऐसे बच्चों को परिवार द्वारा छोड़ दिया जाता है।

प्राय: विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों को परिवार और समाज के उपयोगी या मूल्यवान सदस्य नहीं माना जाता। अन्य बच्चे उनके साथ खेलना पसंद नहीं करते। यहाँ तक कि वे इन बच्चों का मजाक उड़ाते हैं और प्राय: विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को उनके परिवारों द्वारा परित्यक्त किए जाते हैं। विशेष आवश्यकता वले बच्चों के प्रति संवेदनशीलता रखने तथा एक बेहतर जीवन जीने में उनकी सहायता करने की आवश्यकता है।

सरकार के अनेक कार्यक्रम विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सहायता प्रदान करते हैं:

  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थय कार्क्रम के अंतर्गत, सुविधा केंद्र स्तर पर तथा समुदाय स्तर पर आशा/एएनएम द्वारा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की पहचान की जा सकती है।
  • सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को उनकी आवश्यकतानुसार शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रति वर्ष 3000 रूपये तक की सहायता का प्रावधन है जिससे बच्चों की पहचान, सही  शिक्षा प्रबंधन उचित उपकरणों आदि की व्यस्था की जा सके। इस कार्यक्रम का मुख्य केंद्र विशेष आवश्यकताओं वाली बालिकाएँ हैं।
  • राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अंतर्गत इन्क्लूसिव एजूकेशन फॉर डिसेबल्ड ऐट सेकेंडरी स्टेज स्कीम में चिकित्सीय व शैक्षणिक मूल्यांकन, किताबें और स्टेशनरी, यूनिफार्म, लड़कियों के लिए छात्रवृति और सहायक उपकरणों इत्यादि की व्यवस्था है। यह प्रावधान एक या अधिक विकलांगता से प्रभावित 14-18 वर्ष के बच्चों के लिए है जो सरकारी स्थानीय या सहायता प्राप्त स्कूलों में 9 से 12 कक्षा में पढ़ते हैं। राज्य सरकार द्वारा 600 रू. प्रति वर्ष एक बच्चे के लिए अतिरिक्त छात्रवृति की भी व्यवस्था है।

यह अति महत्वपूर्ण है विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को उनकी शिक्षा संबंधी आवश्यकताओं वाले बच्चों को उनकी शिक्षा संबंधी आवश्यकताओं और उनकी स्थिति के अनुरूप शिक्षा मिले। यह शिक्षा उन्हें नियमित या विशेष विद्यालयों में, या फिर घर पर भी दी जा सकती है।

किशोरावस्था

किशोरावस्था बाल्यावस्था के बाद तथा वयस्कता से पहले की अवधि है तथा सामान्यत: यह 10 से 18/19 वर्ष तक आयु की होती है। किशोरावस्था के दौरान, शरीर का तेजी से विकास होता है तथा बच्चों में अनेक समाजिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आते हैं जिनमें यौन परिपक्वता और चिंतन योग्यता भी शामिल होती है।

किशोर को न तो बच्चा समझा जाता है और न ही वयस्क। प्राय: उनमें अपने शारीरिक विकास तथा आयु से जुड़ी आवश्यकताओं से संबंधित महत्वपूर्ण पहलुओं, विशेष रूप से यौन और प्रजनन संबंधी पहलुओं के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती। किशोरों के सामने पेश आने जाने वाले चुनौतियों में शामिल हैं – विद्यालय छोड़ देना, बाल विवाह, आवंछित गर्भधारण, कुपोषण, निर्धनता, परिवार का दबाव, नशे की लत, किशोरों के प्रति अपराध जैसे उनका अवैध व्यापार, नशीले पदार्थों की लत, असुरक्षित यौन – संबंध आदि।

भारत में लड़कों की तुलना में लड़कियों की शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है। शीघ्र विवाह तथा बच्चे हो जाने से उनकी भूमिकाओं में परिवर्तन आ जाता है तथा उनके घरेलू हिंसा का शिकार बनने की संभावनाएँ आधिक होती हैं।

किशोरियों की महत्वपूर्ण आवश्यकताओं के बारे में चर्चा न करने संबंधी सामाजिक कुरीतियाँ उन्हें सही जानकारी और उचित मार्गदर्शन प्राप्त करने से वंचित करती हैं। उदहारण के लिए, मासिक-धर्म संबंधी साफ - सफाई की जानकारी के अभाव में किशोर युवतियों के लिए अनेक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

किशोरों के लिए सरकार के कार्यक्रम :

सबला, सक्षम, आदर्श, किशोर स्वास्थ्य हितैषी केंद्र आदि किशोरों के लिए कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रम हैं।

किशोर युवतियों के लिए अनेक कार्यक्रम हैं, जैसे राजीव गाँधी किशोर बालिका सशक्तिकरण स्कीम के अंतर्गत सबला, किशोरी शक्ति योजना (केएसवाई)।

  • सबला के अंतर्गत, 11-14 तथा 14-18 वर्ष के आयु वर्ग की किशोरियों शिक्षा तथा जीवन कौशल मुद्दों पर चर्चा करने के लिए समय – समय पर तैयार की गई कार्यक्रम तालिका के अनुसार आंगनबाड़ी द्वारा की एकत्र होती हैं। 15-25 बालिकाओं के समूह में से एक नेता का चयन किया जाता है, जिसे सखी कहा जाता है तथा उसकी सहायता दो बालिकाओं द्वारा की जाती है जिन्हें सहेलियां कहा जाता है। सखी और सहेलियाँ समूह के क्रियाकलापों की निगरानी करने के लिए उत्तरदायी होती हैं तथा वे सेवा प्रदाताओं और समूह के सदस्यों के बीच संपर्क - सूत्र का कार्य करती हैं।
  • किशोर शक्ति योजना कार्यक्रम का उद्देश्य किशोर बालिकाओं की पोषण – संबंधी, स्वास्थय – संबंधी और विकास – संबंधी स्थिति में सुधार लाना है तथा उन्हें समुचित जानकारी प्रदान करना है। इस स्कीम में जीवन कौशलों के प्रावधान शामिल होते हैं और इस प्रकार ये पढाई छोड़ चुकी बालिकाओं को पुन: विद्यालय जाने में सहायता करती है।

सबला का क्रियान्वयन आंगनबाड़ी केंद्र द्वार किया है। किशोरियों को अपने बुनियादी विवरणों को दर्ज करने के लिए किशोरी कार्ड भी प्रदान किए जाते हैं। तीन माह में एक बार किशोरी दिवस भी आयोजित किए जाते हैं। समूह सदस्यों को एक- दुसरे को सहायता करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

सबल योजना के अंतर्गत दी जाने वाली सेवाएँ दी जाने वाली सेवाएँ हैं – आयरन – फोलिक एसिड अनुपूरक गोलियां, स्वास्थय जाँच और रोगियों को आगे बड़े अस्पतालों को भेजा जाना, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, पोषण और स्वास्थय शिक्षा, 16 वर्ष अरु उससे ऊपर के बच्चों को व्यवसायिक प्रशिक्षण और कैरियर – परामर्श, जीवन शैली/सौम्य कौशल/ नैतिक शिक्षा तथा सरकार सेवा संस्थानों के अनुभवजन्य दौरे।

किशोर – हितैषी स्वास्थय क्लीनिकों (एएफएचसी) का संचालन राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) के अंतर्गत  प्राथमिक, समुदाय और जिला स्तर पर किया जाता है। प्राथमिक स्वास्थय केंद्र स्तर पर किशोर – हितैषी स्वास्थ्य क्लीनिकों में एएनएम द्वारा परामर्श सेवाएँ प्रदान की जाती हैं तथा चिकित्सा अधिकारीयों द्वारा सामान्य स्वास्थय – संबंधी समस्याओं का निराकरण किया जाता है और आवश्यकता होने पर रोगियों को  अस्पतालों में भेजा जाता है। ये क्लिनिक किशोरों की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों का विकास सुनिश्चित करने में ग्राम पंचायत की भूमिका :

ग्राम पंचायत को एक निर्णायक भूमिका का निर्वहन करना होगा ताकि ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों को उनके विकास के लिए समस्त अवसर प्राप्त हो सकें। इस दिशा में जागरूकता सृजन पहला कदम है। जैसा कि हमने पूर्व के अध्यायों में पढ़ा है, विकास संबंधी मुद्दों पर चर्चा करने तथा बच्चों के लिए विकासात्मक अवसरों के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए ग्राम सभा अथवा विशेष ग्राम सभा, महिला सभा, बाल ग्राम सभा जैसे मंचों का प्रयोग  किया जा सकता है। ऐसी बैठकों में आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पेयजल, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शिक्षा, मध्याहन – भोजन, कृषि बागवानी, डेयरी और मत्सियकी आदि विभागों के पदाधिकारियों को आमंत्रित किया जाना चाहिए। इन बैठकों में हुए विचार – विमर्श पर गंभीरता के साथ कार्रवाई की जानी चाहिए।

ग्राम स्वास्थय और पोषण समिति एएनएम, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा, आदि को शामिल करते हुए, गांवों का सर्वेक्षण करवा सकती है तथा तदनुसार ग्राम स्वास्थ्य योजना तैयार कर सकती है। ग्राम स्वास्थय एवं पोषण दिवसों का प्रयोग पोषण – संबंधी कमियों द्वारा पैदा हुए रोगों की ओर ध्यान आकर्षित करने के यह तथा यह बताने के लिए किया जा सकता है कि इनसे कैसे बचा जा सकता है। साथ ही स्वस्थ आहार- संबंधी आदतों को भी प्रोत्साहित किया जा सकता है।

ग्राम पंचायत को यह कड़ाई से सुनिश्चित करना चाहिए कि सहायता और सेवाओं के वितरण में गरीबों, भिन्न रूप से असमर्थ, बीमार अथवा अन्य पिछड़े वर्गों के बच्चों के विरूद्ध कोई भेदभाव न किया जाए।

बच्चों के विकास की आयु में स्वास्थय और पोषण में सुधार करने के लिए ग्राम पंचायत द्वारा निम्नलिखित विशिष्ट कार्यवाहियां की जा सकती हैं।

  • जैसा कि हमने अध्याय 3 में पढ़ा, वीएचएसएनसी तथा आंगनबाड़ी स्तरीय और सहायता समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महिलाओं तथा बच्चों को आंगनबाड़ी में पर्याप्त पोषण प्राप्त हो। आंगनबाड़ियों में साप्ताहिक आयरन एंड फॉलिक सप्लीमेंटेशन के वितरण को भी आशा/सुदृढ़ किया जाना चाहिए। ग्राम पंचायत वीएचएसएनसी और एएलएमएससी आदि जैसी कार्यात्मक समितियाँ गठित करने के लिए पहल कर सकती है।
  • ग्राम पंचायत यह सुनिश्चित करने के लिए विद्यालय प्रंबधन समिति (एसएमसी) और अभिभावक – शिक्षक संघ (पीटीए) की सहायता भी प्राप्त कर सकती है कि साप्ताहिक आयरन और फोलिक एसिड को नियमित आधार पर कार्यन्वित किया जाए। ग्राम पंचायत द्वारा साप्ताहिक आयरन और फोलिक एसिड स्टॉक रजिस्टरों की भी नियमित रूप से जाँच करनी चाहिए।
  • ग्राम पंचायत सदस्य, जो स्कूल प्रबंधन समिति के भी सदस्य हैं, उन्हें मध्याहन भोजन के माप व उसकी गुणवत्ता की जाँच करनी चाहिए और आवश्यक मुद्दों को स्कूल प्रबंधन समिति, ग्राम सभा और ग्राम पंचायत की बैठकों में भी उठाना चाहिए। सूखे या आपदाओं के समय ग्राम पंचायत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मध्याहन भोजन, बिना किसी अवकाश के प्रतिदिन बच्चों से दिया जाए। यदि हो सके ग्राम पंचायत इसके लिए आवश्यक सहायता भी प्रदान करे।

अध्यापकों और ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों में सन्तुलित कार्य – संबंधी सुनिश्चित करने के लिए ग्राम पंचायतों में शिक्षा नामक पुस्तक में इन दोनों  के लिए डूज एंड डॉनज की सूची जा रही है)

  • ग्राम पंचायत दोपहर के भोजन के लिए आंगनबाड़ियों और पंचायत विद्यालयों में सब्जी का बगीचा तैयार करने तथा पंचायत क्षेत्र में बच्चों की पोषण – संबंधी स्थिति में वृद्धि करने के लिए प्रोत्सहित तथा सहायता प्रदान कर सकती है।
  • बच्चों में कुपोषण की जल्द पहचान तथा कुपोषित बच्चों को पीएचसी में पोश्नीय पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में भेजने से बीमारी तथा मृत्यु की घटनाओं को कम किया जा सकता है। ग्राम पंचायत ऐसे कुपोषित बच्चों की पहचान करने तथा उन्हें इलाज हेतु अस्पतालों में भेजने के लिए एएनएम, आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तथा अन्य चिकित्सा कार्मिकों को प्रोत्साहित कर सकती है।

विशेष आवश्यकता वाले बच्चों सहित सब बच्चों की प्रारंभिक बाल्यावस्था देख रेख और शिक्षा में सुधार करने में ग्राम पंचायत की भूमिका निम्न हो सकती है।

  • ग्राम पंचायत यह सुनिश्चित करे कि से 3-6 वर्ष के आयु – वर्ग के सभी बच्चों का नामांकन आंगनबाड़ी केंद्र में अता क्षेत्र के अन्य विद्यालय शिक्षा पूर्व केन्द्रों में किया गया है। ग्राम पंचायत को गरीब पिछड़े परिवारों से यह पता लगाना चाहिए कि क्या आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा और एएनएम इन क्षेत्रों का दौरा करती हैं  और इन क्षेत्रों के बच्चों को नियमित रूप से सेवाएँ प्रदान करती है।
  • आवश्यकता पड़ने पर ग्राम पंचायत तीन वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए विभिन्न सेवाएँ आरंभ कर सकती हैं, जैसे ग्राम आधारित समुदाय – संचालित शिशु सदन (दिन के समय) इससे शिशुओं के संज्ञानात्मक और सामाजिक विकास में सुधार होगा तथा उनकी माताओं की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आएगा जिसके फलस्वरूप उन परिवारों का कल्याण होगा।
  • ऐसे ग्राम जहाँ उनके वसावट में छह वर्ष से कम आयु के कम – से – कम 40 बच्चे हैं तथा वर्तमान में उस वसावट में कोई आंगनबाड़ी नहीं हैं, आंगनबाड़ी की मांग करने पर तीन माह के भीतर आंगनबाड़ी के स्थान के पात्र हैं। ग्राम पंचायत सूदूरवर्ती बस्तियों में नये आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थापना करने के लिए इस प्रावधान का लाभ उठा सकती हैं (आवेदन प्रपत्र अनुबंध – I  के रूप में संलग्न हैं) ग्राम पंचायत को दुर्गम क्षेत्रों जैसे जनजातीय बस्तियों में ईसीसई आरंभ करने के लिए भी पहल करनी चाहिए। इसके लिए ग्राम पंचायत को सर्वशिक्षा अभियान का खंड संसाधन केंद्र के कार्यक्रम अधिकारी से संपर्क करना चाहिए।
  • ग्राम पंचायत को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के परिवारों को प्रेरित करना चाहिए कि वे अपने बच्चों को प्रांरभिक आंकलन और तत्पश्चात पुन: मूल्यांकन के लिए लेकर आएं तथा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि पढ़ाई छोड़ चुके तथा बिद्यालय से बाहर हो गए विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को उपयुक्त शिक्षण कार्यक्रम में शामिल किया जाए।

ग्राम  पंचायत किशोरों के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन अनेक प्रकार से कर सकती है।

  • ग्राम पंचायत को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा, विद्यालय के शिक्षकों तथा एएनएम की सहायता से ग्राम पंचायत क्षेत्र में सभी किशोरों के आयुवार आंकड़े संग्रहित करने चाहिए। यह आंकड़े किशोर – किशोरी की संख्या तथा उनके बारे में अन्य जानकारी को समझने में सहायता देंगे। हमने इसके बारे में अध्याय – 2 में चर्चा की है।
  • ग्राम पंचायत यह सुनिश्चित करने की दिशा में अगुवाई कर सकती हैं कि किशोरों को सेवाएँ और सहायता प्राप्त हो रही है। इसे यह देखना चाहिए की ग्राम पंचायत क्षेत्र किशोर बालक  क्लब (सक्षम) और किशोर बालिका क्लब (सबला) गठित किए गए हैं। तथा विद्यालय को छोड़ने वाले सभी किशोर इन क्लबों का हिस्सा हैं और वे इनके सत्रों में नियमित रूप से भाग लेते हैं। ग्राम पंचायत, ग्राम पंचायत क्षेत्र में एएफएचसी की स्थापना के लिए भी कार्य कर सकती है तथा यह देख सकती है। रोगी कल्याण समिति की सहायता से, ग्राम पंचायत यह सुनिश्चित कर सकती है कि एएफएचसी निर्धारित समय पर खुलता है तथा किशोरों को गुणवत्तापूर्व सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं। एएलएमएससी के अध्यक्ष होने के नाते सरपंच एएफएचसी को भेजे गए किशोरों की संख्या की जाँच कर सकते हैं तथा यह देख सकते हैं और उन कार्डों में आवश्यक विवरणों को भरा गया है।
  • गम पंचायत समस्त निर्वाचित प्रतिनिधियों तथा आंगनबाड़ी, विद्यालय के कर्मचारियों, ग्राम स्वास्थय व पोषण समिति, स्कूल प्रबंधन समिति, स्वयं सहायता समूह और एसएमसी के सदस्यों के प्रशिक्षण के लिए आशा तथा पीएचसी को प्रोत्साहित कर सकती है। ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों/किशोरों के साथ कार्य करने वले गैर – सरकारी संगठनों के साथ संपर्क भी स्थापित कर सकती है तथा किशोरों को ग्राम पंचायत क्षेत्र में उपलब्ध गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में भी सूचित कर सकती है।

हमने क्या सीखा ?

ü  स्वास्थ्य और पोषण प्रांरभिक बाल्यावस्था के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग हैं तथा प्रांरभिक बाल्यावस्था में कुपोषण के फलस्वरूप गंभीर विकास संबंधी बाधाएँ उत्पन्न हो  जाती हैं जो जीवन की आगामी अवस्थाओं में भी जारी रहती है।

ü  विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे ऐसे बच्चे हैं जिन्हें देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता है तथा उन्हें उनकी जरूरत के अनुसार नियमित अथव विशेष विद्यालयों में दाखिल कराया जाना चाहिए।

ü  किशोरावस्था बाल्यावस्था में वयस्कता की ओर रूपांतरण है। किशोर बालकों और बालिकाओं के ऐसे अनेक पहलू होते हैं जिनका संवेदनशील तरीके से निपटान किए जाने की आवश्यकता होती है। तथा उन्हें एक सन्तुलित व्यक्तित्व में विकसित करने में सहायता देने के लिए उचित मार्गदर्शन और मदद की आवश्यकता पड़ती है।

ü  सबला और सक्षम जैसे कार्यक्रमों का क्रियान्वयन आंगनबाड़ी के माध्यम से, किशोरों के मुद्दों का समाधान करने के लिए किया जाता है।

ü  ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों का उचित विकास सुनिश्चित करने के लिए ग्राम पंचायतें एक निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

स्रोत: भारत सरकार, पंचायती राज मंत्रालय

प्रारंभिक बाल शिक्षा में क्या भूमिका है?

व्यापक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का उद्देश्य जन्म से छह वर्ष की आयु तक के बच्चों की समग्र रूप से वृद्धि, विकास और उनके शिक्षण को प्रोत्साहित करना है। “देखभाल” का अर्थ है बच्चों के लिए एक देखरेख पूर्ण और सुरक्षित परिवेश उपलब्ध कराते हुए उसके स्वास्थय, साफ – सफाई और पोषण पर ध्यान देना।

प्रारंभिक बचपन की शिक्षा के उद्देश्य क्या है?

प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा के दो प्रमुख उद्देश्य होते हैं- (i) आयु विकास की दृष्टि से, खेल आधारित गतिविधियों के उचित कार्यक्रम, पारस्परिक क्रियाओं तथा अनुभवों (जो जीवनपर्यन्त सीखने और विकास के लिए ठोस आधार प्रदान करेंगे) के माध्यम से बच्चों के सर्वांगीण विकास को बढ़ावा देना, तथा (ii) ऐसी विशेष प्रकार की अवधारणाओं ...

प्रारंभिक बाल्यावस्था का क्या अर्थ है?

जन्म से लेकर आठ वर्ष की आयु तक की अवस्था को प्रारंभिक बाल्यावस्था माना जाता है । ( a ) जन्म से लेकर 1 वर्ष तक ( b ) 3 से लेकर 8 वर्ष तक । शैशवास्था जन्म से लेकर एक वर्ष की आयु तक की अवधि को शैशवास्था कहते है, हालांकि कुछ विशेषज्ञ शैशवावस्था को 2 वर्ष तक मानते है ।

प्रारंभिक बाल्यावस्था से आप क्या समझते हैं इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें?

सामान्यत: बाल्यावस्था मानव जीवन के लगभग 6 से 12 वर्ष की आयु का वह काल है जिसमें बालक के जीवन में स्थायित्व आने लगता है और वह आगे आने वाले जीवन की तैयारी करता है। बाल्यावस्था की यह आयु शिक्षा आरम्भ करने के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। बाल्यावस्था में जिज्ञासा की प्रवृत्ति बहुत तीव्र हो जाती है।

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