कौन थे देश के पहले प्रो-टेम स्पीकरजब पहली लोकसभा का चुनाव हुआ तो गणेश वासुदेव मालवंकर ने प्रो-टेम स्पीकर की भूमिका निभाई थी. वो देश के पहले प्रो-टेम स्पीकर थे. संविधान में प्रो-टेम स्पीकर की भूमिका स्पष्ट तौर पर दी हुई है. वो स्पीकर बनने से पहले सदन संबंधी विधाई कामों को करता है. मालवंकर जब प्रो टेम स्पीकर बने तो उन्होंने क्या किया
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1/ 8 सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस सरकार के शक्ति परीक्षण के आदेश के बाद अब नजरें प्रो-टेम स्पीकर पर ठहर गई हैं. ये वो शख्स होगा जो महाराष्ट्र विधान सदन में बहुमत की सारी प्रक्रिया पर नजर रखेगा और फिर फैसला देगा. सदन में प्रो टेम स्पीकर की भूमिका तब अहम हो जाती है जबकि सदन में स्पीकर का चुनाव नहीं हो सका हो. क्या आपको मालूम है कि देश में पहला प्रो-टेम स्पीकर कौन था. 2/ 8 देशभर में जब भी नए सदन के लिए सदस्यों का चुनाव होता है तो स्पीकर चुनने से पहले प्रो-टेम स्पीकर ही उसके दायित्वों को निभाता है. जब आजादी के बाद देश में लोकसभा का गठन हुआ तो गणेश वासुदेव मालवंकर ने प्रो-टेम स्पीकर की भूमिका निभाई थी. बाद में वो लोकसभा के पहले स्पीकर भी बने थे. मालवंकर को आज भी देश में महान स्पीकर के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने इस पद पर एक उदाहरण पेश किया. 3/ 8 मालवंकर एक मराठी परिवार से थे. हालांकि मालवंकर का परिवार रत्नागिरी से ताल्लुक रखता था लेकिन उच्च शिक्षा के लिए वो अहमदाबाद आ गए. अहमदाबाद के गुजरात कॉलेज में उन्होंने साइंस में स्नातक परीक्षा पास की. फिर मुंबई में कानून की पढाई शुरू की. 4/ 8 उन्होंने 1912 में कानून की परीक्षा फर्स्ट क्लास पास की. फिर वो वकालत करने लगे. जल्दी ही वो महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल के संपर्क में आ गए. 1916 में वो गुजरात सभा के सचिव बने. पहली बार वो अहमदाबाद नगरपालिका के लिए 1919 में चुने गए. 5/ 8 मालवंकर आजादी की लड़ाई में कूदे. 1921-22 में वो गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव बनाए गए. उन्होंने 1920 में कुछ समय के लिए स्वराज पार्टी ज्वाइन की. लेकिन जब गांधीजी ने 1930 में नमक सत्याग्रह शुरू किया तो वो वापस गांधीजी के साथ आ गए. 6/ 8 1937 में वो बांबे प्रांतीय संविधान सभा के स्पीकर बने. वो 1946 तक इसी पद पर रहे. इसके बाद 1946 में वो केंद्रीय संविधान सभा में चुने गए. जब देश आजाद हुआ तो वो संविधान सभा में स्पीकर चुने गये. 17 नवंबर 1947 को वो स्पीकर बने. जब 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को स्वीकार किया गया तो संविधान सभा अस्थायी पार्लियामेंट में बदल गई. उस समय मालवंकर अस्थाई संसद के स्पीकर थे. इस पद पर वो तब तक रहे जब तक कि 1952 में पहली लोकसभा का गठन नहीं हो गया. 7/ 8 1952 में वो अहमदाबाद से लोकसभा के लिए चुने गए. तब उन्होंने प्रोटेम स्पीकर के तौर नए सदस्यों को शपथ ग्रहण कराया और आवश्यक लोकसभा की कार्यवाहियां शुरू की. चूंकि संविधान स्वीकार होने के बाद वो पहली बार प्रो-टेम स्पीकर की भूमिका निभा रहे थे इसलिए वो देश के पहले प्रो-टेम स्पीकर भी कहे जाते हैं. हालांकि इसके बाद लोकसभा ने 55 की तुलना में 394 वोटों से उन्हें स्पीकर चुना. 8/ 8 जनवरी 1956 में उन्हें दिल का दौरा पड़ा. उन्होंने अपने से इस्तीफा दे दिया. 27 फरवरी 1956 को कार्डिक अरेस्ट के बाद उनका निधन हो गया. तब उनकी उम्र 67 साल थी. First published: November 26, 2019, 12:34 IST प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति कौन करता है?प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति गवर्नर करता है. आमतौर पर इसकी नियुक्ति तब तक के लिए होती है, जब तक स्थायी विधानसभा अध्यक्ष ना चुन लिया जाए. प्रोटेम स्पीकर ही नवनिर्वाचित विधायकों का शपथ दिलाता है.
भारत का पहला प्रोटेम स्पीकर कौन था?पदाधिकारियों की सूची. स्पीकर का काम क्या होता है?एक लाउडस्पीकर (या "स्पीकर") एक विद्युत-ध्वनिक ऊर्जा परिवर्तित्र है, जो वैद्युत संकेतों को ध्वनि में परिवर्तित करता है। स्पीकर वैद्युत संकेतों के परिवर्तनों के अनुसार चलता है तथा वायु या जल के माध्यम से ध्वनि तरंगों का संचार करवाता है।
लोक सभा के अध्यक्ष को कैसे हटाया जा सकता है?Solution : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 94 के अनुसार, लोक सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को लोक सभा में उस समय उपस्थित सभी सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा अपने पद से हटाया जा सकता है।
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