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आप सभी आँकड़ा शब्द सुने होंगे. जैसे जनगणना के आंकड़े, देश की जनसँख्या के आंकड़े, गरीबी का आंकड़ा आदि अन्य. आँकड़े अपने आप में ‘सूचना’ नहीं होते, उनका प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) करके उनसे सूचना निकाली जाती है. तो आज मैं आपसे इसी के बारे में बात करेंगे कि आंकड़े किसे कहते हैं? आंकड़े कितने प्रकार के होते हैं? आंकड़े किसे कहते हैं?एक निश्चित उद्देश्य से एकत्रित किए गए तथ्यों व अंकों को, जो संख्यात्मक या अन्य रूप में हो सकते हैं, वे आंकड़े कहलाते हैं. आंकड़े को अंग्रेजी भाषा में डाटा (Data) कहते है. आँकड़े मापे जाते हैं, एकत्र किये जाते हैं और रिपोर्ट किये जाते हैं. और आंकड़ों का विशेषण भी किया जा सकता है. विश्लेषण के पश्चात आंकड़ों को ग्राफ या छवि (इमेज) के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है. आँकड़े अपने आप में ‘सूचना’ नहीं होते, उनका प्रसंस्करण करके, उनसे सूचना निकाली जाती है. आंकड़े कितने प्रकार के होते हैं?आंकड़े दो प्रकार के होते हैं,
प्राथमिक आंकड़े किसे कहते हैं?प्राथमिक आंकड़े वे आंकड़े होते हैं, जिन्हें अनुसंधानकर्ता स्वयं एकत्र करते हैं या अनुसंधानकर्ता द्वारा नियुक्त प्रगणक स्वयं एकत्र करते हैं. यह आंकड़े किसी व्यक्ति से प्राप्त पहली जानकारी होती है, जो किसी प्रकार का संशोधित नहीं होता है. ये आंकड़े मौलिक (Original) होते हैं, किसी की कॉपी की नहीं. टेलीफोन साक्षात्कार, वैयक्तिक साक्षात्कार, स्थानीय संवाददाताओं से प्राप्त सूचना के द्वारा प्राथमिक आंकड़े प्राप्त किये जा सकते हैं. द्वितीयक/ गौण आंकड़े किसे कहते हैं?जो आंकड़े अनुसंधानकर्ता द्वारा स्वयं एकत्र न करके, किसी संस्था या व्यक्ति की सहायता या अन्य स्रोत्र से एकत्र किये जाते हैं, उन आंकड़ों को द्वितीय या गौण आंकड़े कहते हैं. जैसे, सरकारी विभाग से प्राप्त आंकड़े, समाचार पत्र से प्राप्त आंकड़े, अनुसन्धान संस्थान से प्राप्त आंकड़े, आयोग एवं कार्यालय की फाइल से प्राप्त आंकड़े, सोशल मीडिया से प्राप्त आंकड़े आदि. ये आंकड़े मौलिक नहीं होते हैं. प्राथमिक और द्वितीयक आंकड़े में अंतर
इसे भी पढ़ें: मल्टीमीडिया क्या है? मल्टीमीडिया के उपयोग error: Content is protected !! Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े Textbook Exercise Questions, and Answers. PSEB 11th Class Economics प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े Textbook Questions and AnswersI. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions) प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18.
II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions) प्रश्न 1. 2. धन, समय व परिश्रम में अन्तर (Difference in cost, time and labour)-प्राथमिक समंकों के संकलन में धन, समय, परिश्रम व बुद्धि का प्रयोग अधिक करना पड़ता है, क्योंकि नए सिरे से योजना को प्रारम्भ करना पड़ता है। द्वितीयक समंक तो पहले से ही एकत्रित होते हैं। प्रश्न 2. प्रश्न 3.
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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions) प्रश्न 1. 2. द्वितीयक समंक (Secondary Data)-द्वितीयक समंक वे समंक हैं जिनका संकलन पहले से हो चुका होता है और अनुसन्धानकर्ता उन्हें अपने प्रयोग में लाता हैं। यहां वह स्वयं संग्रहण नहीं करता। किसी अन्य उद्देश्य के लिए संकलित समंक को प्रयोग में लाता है। इस प्रकार के समंक अपने मौलिक रूप में नहीं होते हैं बल्कि सारणी प्रतिशत आदि में व्यक्त होते हैं। ब्लेयर (Blair) के शब्दों में, “द्वितीयक समंक वे हैं जो पहले से ही अस्तित्व में हैं और जो वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं बल्कि किसी दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्र किए गए हैं।” प्रश्न 2. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान (Indirect Oral Investigation)-अनुसन्धान का क्षेत्र विस्तृत होने पर अनुसन्धानकर्ता के लिए यह सम्भव नहीं हो पाता कि वह प्रत्यक्ष रूप से सबसे सम्पर्क स्थापित करे और आंकड़े एकत्र करे। ऐसी दशा में वह किसी ऐसे व्यक्ति से सूचनाएं प्राप्त करता है जिसे उस विषय में जानकारी है। इस नीति में अनुसन्धानकर्ता अप्रत्यक्ष एवं मौखिक रूप से सम्बन्धित व्यक्तियों के बारे में अन्य जानकार व्यक्ति से सूचना प्राप्त करता है। उदाहरण के तौर पर कक्षा के विद्यार्थियों के बारे में कोई सूचना कक्षा के मानीटर या अध्यापक से प्राप्त करनाको सूचकों की साक्षी (Witness) कहते हैं। इस विधि से तभी सफलता मिल सकती है जब प्रश्नकर्ता चतुर तथा लगनशील हो। प्रश्न 3.
द्वितीयक आंकड़ों के दोष –
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions) प्रश्न 1. 1. अनुसन्धान का उद्देश्य एवं क्षेत्र (Purpose of Investigation)-किसी समस्या को समझ लेने के पश्चात् अनुसन्धान के उद्देश्य की जानकारी भी आवश्यक होती है। अनुसन्धान करने के लिए सांख्यिकी आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है। हम जानते हैं कि सांख्यिकी विधियों का उद्देश्य सिर्फ आंकड़ों को एकत्रित करना ही नहीं, बल्कि इसमें वर्गीकरण, प्रस्तुतीकरण, सारणियां, विश्लेषण तथा व्याख्या इत्यादि की क्रियाएं की जाती हैं। इससे प्राप्त किए आंकड़ों द्वारा उचित परिणाम निकाले जा सकते हैं। इसलिए बिना उद्देश्य से एकत्रित किए आंकड़े व्यर्थ होते हैं, जिस द्वारा कोई लाभदायक परिणाम प्राप्त नहीं किया जा सकता। 2. सूचना के साधन (Sources of Information)-जब हम आंकड़ों का उद्देश्य निर्धारित कर लेते हैं तो इसके पश्चात् आंकड़ों को एकत्र करने के लिए विभिन्न साधनों का प्रयोग किया जाता है। आंकड़ा एकत्र करने के दो स्रोत होते हैं। (i) आन्तरिक तथा बाहरी स्त्रोत (Internal and External Sources)-जब आंकड़ों को किसी एक व्यक्ति अथवा संस्था से प्राप्त किया जाता है तथा यह आंकड़े एक स्थान पर ही प्राप्त किए जा सकते हैं तो इनको आन्तरिक साधन कहा जाता है। आन्तरिक आंकड़े निरन्तर तौर पर (Regularly) अथवा विशेष तौर पर (Adhoc) आधार पर एकत्रित किए जा सकते हैं। बाहरी आंकड़े वे आंकड़े होते हैं जोकि एक संस्था से बिना अन्य साधनों द्वारा भी आंकड़ों को प्राप्त किया जाता है। उदाहरणस्वरूप किसी एक फ़र्म द्वारा किए गए उत्पादन, बिक्री, लाभ तथा हानि के आंकड़ों को आन्तरिक आंकड़े कहा जाता है, जबकि एक देश में कारें बनाने वाली बहुत-सी फ़र्मों के उत्पादन बिक्री, लाभ तथा हानि के आंकड़ों को बाहरी आंकड़े कहा जाता है। (ii) प्राथमिक तथा द्वितीयक स्त्रोत (Primary and Secondary Sources)-प्राथमिक स्रोत का अर्थ उन साधनों से होता है जिनमें एक अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वयं आंकड़े एकत्रित करता है। यह आंकड़े मौलिक होते हैं। द्वितीयक साधन वह साधन है, जिनमें आंकड़े किसी अन्य मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। इन आंकड़ों को अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयोग करता है। 3. सांख्यिकी इकाइयां तथा उनकी परिभाषा (Statistical Units and their Definitions)-सांख्यिकी इकाइयों का अर्थ ऐसे माप से होता है, जिस रूप में हम आंकड़ों को एकत्र करके विश्लेषण तथा व्याख्या करते है, जैसे कि आय को रुपयों में, अनाज को क्विटलों में, दूध-पेट्रोल को लिटरों में स्पष्ट किया जाता है। यह सांख्यिकी इकाइयां उचित होनी चाहिए, जिनकी जानकारी से विशेष परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, जैसे कि प्रो० किंग ने कहा है, “सिर्फ अनिवार्य ही नहीं, बल्कि अति आवश्यक होता है कि सांख्यिकी इकाइयों को स्पष्ट रूप में परिभाषित किया जाए।” जब हम सांख्यिकी इकाइयों को ठीक रूप में परिभाषित करते हैं तो इससे प्राप्त किए परिणाम शुद्ध तथा उचित होते हैं। 4. शुद्धता की मात्रा (Degree of Accuracy)—एकत्रित किए गए आंकड़ों में जहां तक सम्भव हों, शुद्धता का होना आवश्यक होता है, यदि एकत्रित किए गए आंकड़े शुद्ध नहीं होते तो ऐसे आंकड़ों से उचित परिणाम नहीं निकाले जा सकते। इसमें कोई शक नहीं कि आंकड़ों में 100% शुद्धता नहीं पाई जा सकती। इसका मुख्य कारण यह होता है कि आंकड़ों को एकत्र करते समय कई बार अनुमान का सहारा लेना पड़ता है। कई बार अनुसन्धान पक्षपात न भी करना चाहता हो परन्तु सूचना देने वाला व्यक्ति ठीक आंकड़े प्रदान न करें तो भी शुद्धता के स्तर को प्राप्त नहीं किया जा सकता। प्रश्न 2. प्रो० वैसल के शब्दों में, “अनुसन्धान की प्रक्रिया में जो समंक मौलिक रूप में एकत्रित किए जाते हैं, इनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।” (“Data originally collected in the process of investigation are known as primary data.”-Wessel) द्वितीयक आंकड़े (Secondary Data) द्वितीयक आंकड़ों को दूसरे दर्जे के आंकड़े भी कहा जा सकता है। यह आंकड़े पहले ही किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। परन्तु अनुसन्धान इन आंकड़ों का प्रयोग अपनी जांच-पड़ताल में कर लेता है। इन आंकड़ों को वह खुद एकत्रित नहीं करता, बल्कि अख़बारों, रसालों, पुस्तकों में छपे हुए आंकड़ों का प्रयोग अपने उद्देश्य के लिए कर लेता है तो ऐसे आंकड़ों को द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है। प्रो० एम० एम० बलेयर के शब्दों में, “द्वितीयक आंकड़े वह हैं जो कि पहले ही अस्तित्व में होते हैं, जोकि वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं, बल्कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं। प्रो० वैसल अनुसार, “समंक जो दूसरे व्यक्तियों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।” (“Data Collected by other persons are called secondary data.” –Wessel) द्वितीयक आंकड़े (Secondary Data) द्वितीयक आंकड़ों को दूसरे दर्जे के आंकड़े भी कहा जा सकता है। यह आंकड़े पहले ही किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। परन्तु अनुसन्धान इन आंकड़ों का प्रयोग अपनी जांच-पड़ताल में कर लेता है। इन आंकड़ों को वह खुद एकत्रित नहीं करता, बल्कि अख़बारों, रसालों, पुस्तकों में छपे हुए आंकड़ों का प्रयोग अपने उद्देश्य के लिए कर लेता है तो ऐसे आंकड़ों को द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है। प्रो० एम० एम० बलेयर के शब्दों में, “द्वितीयक आंकड़े वह हैं जो कि पहले ही अस्तित्व में होते हैं, जोकि वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं, बल्कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं। प्रो० वैसल अनुसार, “समंक जो दूसरे व्यक्तियों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।” (“Data Collected by other persons are called secondary data.” –Wessel) प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में अन्तर (Difference between Primary and Secondary Data) प्रो० सीकरिस्ट के अनुसार, “प्राथमिक आंकड़े तथा द्वितीयक आंकड़ों में संकेत दर्जे का अन्तर होता है, प्रकार का कोई अन्तर नहीं होता अर्थात् ये आंकड़े जो कि किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए गए हैं। उस मनुष्य अथवा संस्था के लिए ये आंकड़े प्राथमिक आंकड़े होते हैं, परन्तु ये आंकड़े जब किसी अन्य मनुष्य अथवा संस्था द्वारा प्रयोग किए जाते हैं तो ये द्वितीयक आंकड़े बन जाते हैं। इसलिए इन आंकड़ों में केवल दर्जे का ही अन्तर है प्रकार का कोई अन्तर नहीं।” प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation)-प्राथमिक आंकड़ों को एकत्र करने के लिए प्रथम विधि प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान विधि है। इस विधि में अनुसन्धानकर्ता आय स्वयं सूचना देने वालों के पास जाता है तथा आंकड़े एकत्रित करता है। इस विधि द्वारा विश्वसनीय आंकड़े एकत्रित किए जा सकते हैं, यदि अनुसन्धानकर्ता मेहनती, धैर्य वाला तथा निरपक्ष स्वभाव वाला होता है। उदाहरणस्वरूप गुरु नानक देव युनिवर्सिटी अमृतसर में काम करने वाले कर्मचारियों सम्बन्धी कोई जांच-पड़ताल करनी है तो जांचकर्ता युनिवर्सिटी में जाकर कर्मचारियों से बात करता है। इस प्रकार जो आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं, उनको प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है। विधि का क्षेत्र (Scope of the method)-यह विधि ऐसे अनुसन्धान के लिए उचित होती है जहां जांच-पड़ताल का क्षेत्र सीमित हो। जहां अनुसन्धान में मौलिक आंकड़ों की आवश्यकता होती है तथा आंकड़ों को गुप्त रखना हो। आंकड़े शुद्ध तथा जटिल हों तो अनुसन्धानकर्ता स्वयं ही ऐसे आंकड़े एकत्र कर सकता है। गुण (Merits)-इस विधि के मुख्य गुण निम्नलिखित अनुसार हैं
दोष (Demerits)—
प्रश्न 4. विधि का क्षेत्र (Scope of the Method) यह विधि विशाल क्षेत्र में लागू की जा सकती है। जब सूचना देने वाले अज्ञानी होते हैं तथा उनकी संख्या इतनी अधिक हो कि सम्पर्क करना सम्भव न हो तो ऐसी स्थिति में अप्रत्यक्ष अनुसन्धान की विधि अधिक उचित होती है। गुण (Merits) इस विधि के गुण निम्नलिखित हैं –
दोष (Demerits)-इस विधि में निम्नलिखित दोष भी हैं-
प्रश्न 5. विधि का क्षेत्र (Scope of the Method) यह विधि साधारण तौर पर रसालों, अख़बारों, टेलीविज़न तथा रेडियो द्वारा अपनाई जाती है। स्थानिक संवाददाता दिन-प्रतिदिन की घटनाओं के बारे ताजा जानकारी प्रदान करते हैं। गुण (Merits) इस विधि के मुख्य गुण इस प्रकार हैं
दोष (Demerits)-इस विधि के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं
प्रश्न 6. विधि का क्षेत्र (Scope of Method) डाक के माध्यम द्वारा सूचना एकत्र करने की इस विधि को उस समय लागू किया जाता है जब जांच-पड़ताल का क्षेत्र विशाल होता है तथा सूचना देने वाले व्यक्ति शिक्षित होते हैं। गुण (Merits) इस विधि द्वारा आंकड़े एकत्र करने के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं –
दोष (Demerits) – इस विधि के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं
प्रश्न 7. 2. प्रश्नों की कम संख्या–प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या कम-से-कम होनी चाहिए। प्रश्न केवल अनुसन्धान से सम्बन्धित होने चाहिए तो ही सूचना देने वाला प्रश्नावली को सरलता से भर सकता है। 3. प्रश्नों का उचित क्रम-प्रश्नावली में दिए गए प्रश्न उचित तथा तर्कपूर्वक क्रम में होने चाहिए। 4. प्रश्नावली की सरलता-प्रश्नावली में सरलता का गुण होना चाहिए अर्थात् प्रश्न इस तरह के होने चाहिए कि सूचना देने वाले की समझ में सरलता से आ सकें तथा सूचना देने वाला उचित सूचना सरल ढंग से तथा स्पष्ट कर सके। 5. निजी प्रश्न-सूचना देने वालों को निजी प्रकार के प्रश्न नहीं पूछने चाहिए अर्थात् प्रश्नावली के प्रश्न लोगों की धार्मिक, सामाजिक, भावनाओं को चोट पहुँचाने वाले नहीं होने चाहिए। 6. सूचना का विश्वास-प्रश्नावली का महत्त्वपूर्ण गुण यह होना चाहिए है कि सूचना देने वाला बिना किसी डर से सूचना प्रदान कर सकें। इसलिए सूचना देने वाले बिना डर के उचित सूचना प्रदान करते हैं। 7. पक्षपात का अभाव-प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न नहीं होने चाहिए जोकि पक्षपात को स्पष्ट करते हों। प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए, जो बिना पक्षपात तथा मतभेद अनुसार बनाए गए हों। ऐसी स्थिति में प्रश्नावली द्वारा उचित सूचना प्राप्त नहीं होगी, यदि प्रश्नावली पक्षपात रहित नहीं होती। 8. संख्या सम्बन्धी प्रश्न-इस बात का ध्यान रखना चाहिए है कि प्रश्न ऐसे न हों, जिनमें सूचना देने वाले को हिसाब-किताब लगाना पड़े, जैसे कि लोग अपनी आय में से कितने प्रतिशत हिस्सा फल तथा सब्जियों पर खर्च करते हैं। इसलिए प्रश्न बनाते समय अनुसन्धानकर्ता को गणना का स्वयं काम करना चाहिए तथा प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए जिनमें अनिवार्य सूचना अनुसन्धानकर्ता स्वयं प्राप्त करें। 9. पूर्व निरीक्षण-प्रश्नावली को अन्तिम रूप देने से पहले इसकी जांच-पड़ताल कर लेनी चाहिए अर्थात् स्थानिक तौर पर कुछ मनुष्यों को प्रश्नावलियों में विभाजित कर सूचना भरवा लेनी चाहिए। इस प्रकार प्रश्नावली के मार्ग में आने वाली मुश्किलों के अनुसार इसको परिवर्तित कर देना चाहिए। इसलिए पूर्व निरीक्षण का कार्य अच्छी प्रश्नावली के लिए उचित माना जाता है। 10. सच्चाई की परख-सूचना एकत्रित करने वाले को ऐसे प्रश्न भी पूछने चाहिए, जिनसे सच्चाई की परख की जा सके। इस उद्देश्य के लिए प्रश्नावली में सच्चाई की परख की सम्भावना होनी चाहिए। 11. प्रश्नावली का मनमोहक होना-प्रश्नावली मनमोहक तथा प्रभाव पाने वाली होनी चाहिए। प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनमें सूचना देने वाले की रुचि में वृद्धि हो। उत्तर देने के लिए उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए। 12. निर्देश-प्रश्नावली को भरने के लिए स्पष्ट तथा उचित निर्देश देने चाहिए जिससे प्रश्नावली भरते समय किसी प्रकार की मुश्किल का सामना न करना पड़े। 13. सूचना देने वाली की सुविधा-प्रश्नावली भेजते समय सूचना देने वाले की सुविधा को ध्यान में रखना चाहिए। प्रश्न सीधे तथा सम्बन्धित होने चाहिए जिनका उत्तर बहुत कम समय में दिया जा सके। अनिवार्य डाक टिकट लिफाफे समेत अपना पूरा पता लिखकर भेजनी चाहिए। इस प्रकार सूचना देने वाले की सुविधा में ध्यान रखना चाहिए। प्रश्नावली को भरकर वापस भेजने की विनती की जानी चाहिए। सूचना देने वाले को यह विश्वास दिलवाना अनिवार्य होता है कि एकत्रित की गई सूचना अनुसन्धान के लिए ही प्रयोग की जाएगी तथा पूर्ण तौर पर गुप्त रखी जाएगी। इस प्रकार की प्रश्नावली द्वारा कम समय में अधिक-से-अधिक सूचना प्राप्त की जा सकती है। प्रश्न 8. 2. सरकारी प्रशासन-प्रत्येक देश की सरकार देश में विभिन्न प्रकार के आंकड़े प्रकाशित करती है जैसे कि भारत में केन्द्रीय तथा राज्य सरकारें, विभिन्न विभागों से सम्बन्धित आंकड़े प्रकाशित करती हैं। ये आंकड़े सांख्यिकी विशेषज्ञों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इस उद्देश्य के लिए सूचना मन्त्रालय स्थापित किए होते हैं। 3. अर्द्ध सरकारी प्रकाशन-अर्द्ध सरकारी संस्थाएं जैसे कि पंचायतें, नगरपालिकाएं, नगर-निगम, जिला परिषद् इत्यादि को विभिन्न प्रकार के आंकड़ों का रिकॉर्ड रखते हैं, जैसे कि जन्म, मृत्यु, सेहत, चुंगी द्वारा आय इत्यादि से सम्बन्धित आंकड़े प्रकाशित करती रहती है। ये आंकड़े भी अनुसन्धानकर्ता के लिए लाभदायक होते हैं। 4. आयोगों तथा कमेटियों की रिपोर्ट (Reports of Committees and Commissions) सरकार द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए आयोगों तथा कमेटियों की स्थापना की जाती है। इन आयोगों तथा कमेटियों द्वारा रिपोर्ट पेश की जाती हैं। जिनमें लाभदायक आंकड़े प्रदान किए जाते हैं, जैसे कि वित्त आयोग की रिपोर्ट, इजारेदार आयोग की रिपोर्ट, योजना कमीशन की रिपोर्ट इत्यादि द्वारा भी आंकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं। 5. अनुसन्धान संस्थाओं के प्रकाशन (Publication of Research Institute) बहुत-सी अनुसन्धान संस्थाएं अनुसन्धान करने के पश्चात् विभिन्न प्रकार के आंकड़े प्रदान करती हैं जैसे कि विश्वविद्यालय तथा अनुसन्धान संस्थाएं जैसे कि भारतीय सांख्यिकी संस्था, राज्य सरकारों की सांख्यिकी संस्थाएं, अनुसन्धान करने के पश्चात् अनुसन्धान पत्र तथा पत्रिकाएं प्रकाशित करती हैं। द्वितीयक आंकड़ों को प्राप्त करने का यह एक महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है। 6. समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं द्वारा प्रकाशन (Papers and Journal Publications)-प्रत्येक देश में समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में भी आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं जैसे कि आंकड़ों से सम्बन्धित समाचार-पत्र (Economics Times) तथा पत्रिकाएं। जैसे कि कामर्स योजना इत्यादि में भी आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं। यह पत्र तथा पत्रिकाएं भी द्वितीयक आंकड़ों का स्रोत बन सकती हैं। B. अप्रकाशित स्रोत (Unpublished Sources)-द्वितीयक अथवा दूसरे दर्जा के आंकड़ों का अप्रकाशित साधनों द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है। बहुत-से उद्योग अपने पूंजी निर्माण, उत्पादन, बिक्री, मज़दूरों की संख्या का रिकार्ड अपने पास रखते हैं। इस रिकॉर्ड को प्रकाशित नहीं किया जाता। परन्तु अनुसन्धानकर्ता ऐसे अप्रकाशित साधनों से सूचना प्राप्त कर सकता है। इसी तरह किसी व्यक्ति के पास हाथ देखने ऐतिहासिक पुस्तकों के आंकड़े सम्भाल कर रखे होते हैं अथवा पुराने बुजुर्गों को भूतकाल की दिलचस्प घटनाओं का पता होता है। इस प्रकार ऐसे आंकड़े जिनको प्रकाशित नहीं करवाया जाता, उन साधनों द्वारा भी सूचना प्राप्त की जा सकती है जो कि अनुसन्धान के लिए आंकड़ों का महत्त्वपूर्ण आधार बन सकते हैं। प्रश्न 9. 2. अनुसन्धान एजेन्सी की योग्यता (Ability to Collecting Agency) – द्वितीयक आंकड़े किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए गए हैं। यदि अनुसन्धानकर्ता ईमानदार, तजुर्बेकार कुशल तथा निरपक्ष है तो एकत्रित किए आंकड़े विश्वसनीय होते हैं। 3. आंकड़ों का उद्देश्य तथा क्षेत्र (Motive and Scope of Data) – यदि द्वितीयक आंकड़े एकत्रित किए गए थे तो उन आंकड़ों के उद्देश्य तथा क्षेत्र को ध्यान में रखना चाहिए है। यदि अनुसन्धानकर्ता का उद्देश्य तथा क्षेत्र भी द्वितीयक आंकड़ों के अनुकूल है तो ऐसे आंकड़ों का प्रयोग सरलता से किया जा सकता है। इसलिए द्वितीयक आंकड़े अनुसन्धान के अनुकूल होने चाहिए। 4. आंकड़े एकत्र करने की विधि (Methods of Data Collections)-द्वितीयक आंकड़े किस विधि द्वारा एकत्रित किए गए हैं। इस सम्बन्धी भी अनुसन्धानकर्ता को ज्ञान होना चाहिए है। यदि आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए अपनाई गई विधि विश्वसनीय है तो ऐसे आंकड़ों को सरलता से वर्तमान अनुसन्धान के लिए प्रयोग किया जा सकता है। 5. आंकड़े एकत्रित करने का समय (Time of Collection)—जो आंकड़े हम प्राप्त करना चाहते हैं, उनकी जांच-पड़ताल के समय को भी ध्यान में रखना चाहिए अर्थात् कौन-कौन सी स्थितियों में ये आंकड़े एकत्रित किए गए थे। यदि जांच-पड़ताल कुछ विशेष स्थितियों लड़ाई, बाढ़, भूचाल के समय की गई थी तो ऐसे आंकड़ों से वर्तमान अनुसन्धान लाभदायक नहीं होगा। शान्ति समय स्थितियां असाधारण समय से भिन्न होती हैं। 6. शुद्धता का स्तर (Degree of Accuracy)-जो आंकड़े द्वितीयक आंकड़ों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं, उनकी शुद्धता की जांच कर लेनी चाहिए। यदि शुद्धता का स्तर ऊंचा हो तो इन आंकड़ों को विश्वास से प्रयोग किया जा सकता है तथा लाभदायक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। 7. सांख्यिकी इकाइयों का प्रयोग (Statistical Units) एकत्रित किए द्वितीयक आंकड़ों में प्रयोग की इकाइयों को भी ध्यान में रखना चाहिए। यदि वर्तमान अनुसन्धान में से उसी प्रकार की इकाइयों को शामिल किया गया है, जिनका प्रयोग पहले की तरह अनुसन्धान में किया गया था तो ऐसे आंकड़े विश्वसनीय परिणाम प्रदान करने में सहायक होते हैं। परन्तु यदि सांख्यिकी इकाइयों में भिन्नता पाई जाती है तो ऐसा आंकड़ों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि अनुसन्धान के लिए ऐसे आंकड़े कम लाभदायक सिद्ध होते हैं। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि द्वितीयक आंकड़े जैसे दिखाई देते हैं, उसी रूप में ही उनको स्वीकार करना नहीं चाहिए। द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करते समय इनका सम्पादन करके वर्तमान अनुसन्धान के अनुकूल बना लेना चाहिए। इस तरह विश्वसनीय परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। प्रश्न 10. भारत में रजिस्ट्रार जनरल की नियुक्ति की गई है जो जनगणना के आंकड़े एकत्रित करने तथा पेश करने के लिए ज़िम्मेदार होता है। प्रत्येक दस वर्ष में जनसंख्या के आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। प्रत्येक दहाके के प्रथम वर्ष जनसंख्या के आंकड़ों को एकत्रित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नई दिल्ली में रजिस्ट्रार जनरल का दफ़्तर है। सभी राज्यों, केन्द्र प्रशासन राज्यों (Union Territories) में आंकड़ा विभाग बनाए हुए हैं। प्रत्येक सूबे के जिला स्तर पर आंकड़ा अफसर नियुक्त किया गया है जोकि जनगणना का कार्य करता है, जो आंकड़े जिला स्तर पर एकत्रित किए जाते हैं वे सूबे की राजधानी भेजे जाते हैं। प्रत्येक सूबे में आंकड़ों को एकत्रित करके रजिस्ट्रार जनरल के पास नई दिल्ली भेजे जाते हैं, जोकि इन आंकड़ों को प्रकाशित करता है। जनगणना का कार्य जिले के प्रत्येक गांव, कस्बे तथा शहर में संख्या के आधार पर किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए जनसंख्या से सम्बन्धित आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। प्रत्येक गांव का क्षेत्रफल, रिहायशी मकानों की संख्या का विवरण एकत्रित किया जाता है। जनसंख्या में पुरुषों तथा स्त्रियों की संख्या आयु के आधार पर की जाती है। जनजातियों तथा पिछड़ी जातियों का विवरण भी एकत्रित किया जाता है। देश में शिक्षित तथा अनपढ़ लोगों की संख्या का ध्यान भी रखा जाता है। इसके अतिरिक्त पुरुष/स्त्री का पेशा भी पूछकर दर्ज किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए श्रमिकों को 9 भागों में विभाजित किया जाता है। (i) काश्तकार
(vi) उसारी इस प्रकार की सूचना प्रत्येक वार्ड, गांव, कस्बे, शहरी तथा यूनियन टैरीटरी से प्राप्त की जाती है। इस सम्बन्ध में जनगणना संगठन ने कुछ धारणाओं की परिभाषा इस प्रकार दी है-
इस प्रकार जनगणना संगठन द्वारा जिला आंकड़ा विभाग, सूबा आंकड़ा विभाग के सहयोग से जनसंख्या सम्बन्धी आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं तथा इस उद्देश्य के लिए प्राथमिक आंकड़ों (Primary Data) का प्रयोग किया जाता है। प्रश्न 11. यह संगठन आंकड़े एकत्रित करने के लिए तालिका तैयार करता है। एकत्रित किए आंकड़ों को संगठित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए संगठन का हैड-आफिस कलकत्ता में स्थित है। संगठन का फील्ड उपरेशन डिवीज़न दिल्ली तथा फरीदाबाद में स्थित है। यहां अलग-अलग क्षेत्रों में से आंकड़े एकत्रित करने के आदेश दिए जाते हैं। संगठन के 48 क्षेत्रीय दफ़्तर हैं तथा 117 सब-क्षेत्रीय दफ्तर हैं जोकि देश भर में फैले हुए हैं। आंकड़ों को संगठित करके प्रस्तुतीकरण का कार्य कोलकाता के हैड-आफिस में किया जाता है परन्तु इस उद्देश्य के लिए आंकड़ों के क्रमबद्ध करने के लिए दिल्ली, गिरधी, नागपुर, बंगलौर, अहमदाबाद तथा कोलकाता केन्द्र स्थापित किए गए हैं जहां कि सामाजिक तथा आर्थिक आंकड़ों को एकत्रित करके तालिका तथा तरतीब देने का कार्य किया जाता है। प्राथमिक आंकड़े क्या है उदाहरण देकर समझाइए?प्रत्यक्ष रूप से पर्यवेक्षण द्वारा एकत्रित आंकड़े जो अपने मौलिक रूप में होते हैं। जैसे जनसंख्या, उत्पादन की मात्रा, कुल लाभ, कुल लागत आदि। प्राथमिक आंकड़े से गणना द्वारा द्वितीयक आंकड़े प्राप्त किए जाते हैं।
आंकड़े क्या है प्राथमिक एवं द्वितीयक आंकड़ों को समझाइए?प्राथमिक आंकड़े मौलिक होते हैं क्योंकि अनुसंधानकर्ता ने इन्हें स्वयं एकत्रित किया है। परंतु द्वितीयक आंकड़े किसी अन्य व्यक्ति या संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। प्राथमिक आंकड़ों का प्रयोग कच्चे माल की तरह किया जाता है। जबकि द्वितीयक आंकड़े पहले से ही तैयार होते हैं इसलिए यह एक प्रकार की तैयार सामग्री होते हैं।
Data प्राथमिक आंकड़े क्या हैं प्राथमिक आंकड़े एकत्रित करने की विभिन्न विधियों का वर्णन करें?प्राइमरी डाटा या प्राथमिक आंकड़े पहली बार अन्वेषकों अथवा गणनाकारों द्वारा संग्रह किए जाते हैं। प्रत्यक्ष रूप से पर्यवेक्षण द्वारा एकत्रित आंकड़े जो अपने मौलिक रूप में होते हैं जैसे जनसंख्या, उत्पादन की मात्रा, आदि। क्षेत्र अन्वेषण द्वारा अधिकांशतः प्राथमिक आंकड़े एकत्र किए जाते हैं।
प्राथमिक आंकड़े कितने प्रकार के होते हैं?Answer: आकड़े दो प्रकार के होते हैं – प्राथमिक आंकड़े (प्राइमरी डाटा) और द्वितीय आंकड़े (सेकेंडरी डाटा)।
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