प्रदोष व्रत तिथि, महत्व, कथा, उद्यापन पूजा विधि ( Pradosh vrat Dates, udyapan puja Vidhi, Katha and Puja Timings in hindi) Show
हिन्दू धर्म के अनुसार हर व्रत का अपना अलग ही महत्व है, हर एक व्रत के पीछें अपनी एक कथा और उसका सार है. लोग अपनी मान्यता या श्रध्दा के अनुसार व्रत को करते है. उन सब में से एक है प्रदोष व्रत. प्रदोष व्रत भगवान शिव के कई व्रतो मे से एक है जो कि, बहुत फलदायक माना जाता है. इस व्रत को कोई भी स्त्री जो अपनी मनोकामना पूरी करना चाहती है कर सकती है.
प्रदोष व्रत क्या है? (What is Pradosh vrat )प्रदोष व्रत या प्रदोषमप्रदोष काल में किया जाता है. इसका अर्थ है, सूर्यास्त के बाद तथा रात्रि का सबसे पहला पहर, जिसे सायंकाल कहा जाता है . उस सायंकाल या तीसरे पहर के समय को ही प्रदोष काल कहा जाता है. इस व्रत को कोई भी स्त्री जो अपनी मनोकामना पूरी करना चाहती है भगवान शिव की आराधना कर कर सकती है. प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosh Vrat significance)कई जगह मान्यता व श्रध्दा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों यह व्रत करते है. कहा जाता है इस व्रत से, कई दोष की मुक्ति तथा संकटों का निवारण होता है. यह व्रत साप्ताहिक महत्व भी रखता है .
अर्थात् जिस वार पर भी यह तिथि आती है उस के अनुसार यह व्रत होता है. प्रदोष व्रत की पूजा विधि (Pradosh Vrat Puja Vidhi )प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है. यह व्रत निर्जल अर्थात् बिना पानी के किया जाता है . त्रयोदशी के दिन, पूरे दिन व्रत करके प्रदोष काल मे स्नान आदि कर साफ़ सफेद रंग के वस्त्र पहन कर पूर्व दिशा में मुह कर भगवान की पूजा की जाती है.
प्रदोष व्रत की कथा तथा फल (Pradosh Vrat puja Katha and Story)प्राचीन काल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था. उस पुजारी की मृत्यु के बाद, उसकी विधवा पत्नी अपने पुत्र को लेकर भरण-पोषण के लिए भीख मांगते हुए, शाम तक घर वापस आती थी. एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था. उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नही गई, वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी. एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई . वहा उसने ऋषि से शिव जी के इस प्रदोष व्रत की कथा व विधी सुनी , घर जाकर अब वह प्रदोष व्रत करने लगी . दोनों बालक वन में घूम रहे थे, उसमे से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, परन्तु राजकुमार वन में ही रहा . उस राजकुमार ने गन्धर्व कन्याओ को क्रीडा करते हुए देख, उनसे बात करने लगा . उस कन्या का नाम अंशुमती था . उस दिन वह राजकुमार घर भी देरी से लोटा. दुसरे दिन फिर से राजकुमार उसी जगह पंहुचा, जहा अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी. तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा की आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है. अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिव जी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है , क्या आप इस विवाह के लिए तैयार है? राजकुमार ने अपनी स्वीक्रति दी और उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ. बाद में राजकुमार ने गन्धर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ राज्य करने लगे. वहा उस महल में वह उस पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ ले जाकर रखने लगे . उनके सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और सुख से जीवन व्यतीत करने लगे. एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातो के पीछे का रहस्य पूछा . तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात और प्रदोष व्रत का महत्व और प्रदोष व्रत से प्राप्त फल से अवगत कराया. उसी दिन से समाज में प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया तथा मान्यतानुसार लोग यह व्रत करने लगे. प्रदोष व्रत उद्ध्यापन की पूजा विधी (Pradosh Vrat udyapan puja vidhi)
कब मनाई जाती हैं ? “ प्रदोष व्रत प्रत्येक पक्ष (कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष) की त्रयोदशी को किया जाता है. ” प्रदोष व्रत 2022 के अनुसार तिथि व पूजा का समय (Pradosh vrat 2022 date and time)–
प्रदोष व्रत के उद्यापन में क्या क्या लगता है?– उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. – प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाता है. – 'ऊँ उमा सहित शिवाय नम:' मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है.
प्रदोष व्रत का उद्यापन कौन से महीने में करना चाहिए?मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत रखता है उसे सौ गौ दान करने का फल प्राप्त होता है। जो लोग भी इस व्रत को करते हैं उन्हें या तो 11 त्रयोदशी या पूरा साल की त्रयोदशी को पूरा कर उद्यापन करना चाहिए।
उद्यापन में क्या क्या लगता है?व्रत उद्यापन में शिव-पार्वती जी की पूजा के साथ चंद्रमा की भी पूजा करने का विधान है. उद्यापन पूरे विधि विधान से किया जाना जरूरी है.. शिव व पार्वती जी की प्रतिमा. चंद्रदेव की मूर्ति या चित्र.. चौकी या लकड़ी का पटरा.. अक्षत.. पान (डंडी सहित).. सुपारी.. ऋतुफल.. यज्ञोपवीत (हल्दी से रंगा हुआ).. प्रदोष व्रत में क्या क्या सामग्री चाहिए?आज प्रदोष व्रत, जानिए पूजन सामग्री की सूची.... सफेद फूलों की माला आंकड़े का फूल सफेद मिठाइयां सफेद चंदन. जल से भरा हुआ कलश बेलपत्र धतूरा भांग आरती के लिए थाली. कपूर धूप दीप शुद्ध घी (गाय का हो तो अतिउत्तम). |