पिताजी ने बचपन में लेखिका को कौन सा उपन्यास पढ़ने के लिए दिया था? - pitaajee ne bachapan mein lekhika ko kaun sa upanyaas padhane ke lie diya tha?

गद्यांशों पर आधारित अतिलघु/लघु-उत्तरीय प्रश्न 

निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

1. इसने उन्हें यश और प्रतिष्ठा तो बहुत दी, पर अर्थ नहीं और शायद गिरती आर्थिक स्थिति ने ही उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलुओं को निचोड़ना शुरू कर दिया। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अंह उन्हें इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताओं का भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें, अधूरी महत्त्वाकांक्षाएँ, हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकते चले जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कँपाती-थरथराती रहती थीं। अपनों के हाथों विश्वासघात की जाने केसी गहरी चोटें होंगी वे जिन्होंने आँख मूँदकर सबका विश्वास करने वाले पिता को बाद के दिनों में इतना शक्की बना दिया था कि जब-तब हम लोग भी उसकी चपेट में आते ही रहते।

प्रश्न (क)-मन्नू के पिता का स्वभाव शक्की क्यों हो गया था?
प्रश्न (ख)-पहले इन्दौर में उनकी आर्थिक स्थिति कैसी रही होगी? 
प्रश्न (ग)-मन्नू भंडारी के पिता की गिरती आर्थिक स्थिति का उन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तरः (क) अपनों के हाथों विश्वासघात के कारण।
(ख) आर्थिक विवशताओं के कारण।
(ग) अधूरी महत्वाकांक्षाओं के कारण। 

व्याख्यात्मक हल:
लेखिका के पिता के शक्की हो जाने का कारण अपनों के हाथों मिला विश्वासघात आर्थिक विवशताएँ और अधूरी महत्त्वकाक्षाएँ थी।

उत्तरः (ख) 

  • अच्छी आर्थिक स्थिति।
  • नवाबी ठाठ-बाट।
  • समाज में प्रतिष्ठित। 

व्याख्यात्मक हल:
इन्दौर में लेखिका के पिता के आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी और नवाबी ठाठ-बाट थे। वे समाज के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।

उत्तरः (ग) 

  • व्यक्तित्व के सकारात्मक गुण समाप्त होने लगे।
  • चिड़चिड़े हो गए थे।
  • स्वभाव शक्की बन गया।
  • क्रोधी स्वभाव। 

व्याख्यात्मक हल:
गिरती आर्थिक स्थिति के कारण मन्नू भंडारी के पिता बहुत चिड़चिडे़ हो गए थे। उनके व्यक्तित्व के सकारात्मक गुण समाप्त हो गए, जिसके कारण वह बहुत शक्की और क्रोधी स्वभाव के हो गए।

2. पर यह पितृ-गाथा मैं इसलिए नहीं गा रही कि मुझे उनका गौरव-गान करना है, बल्कि मैं तो यह देखना चाहती हूँ कि उनके व्यक्तित्व की कौन-सी खूबी और खामियाँ मेरे व्यक्तित्व के ताने-बाने में गुँथी हुई हैं या कि अनजाने-अनचाहे किए उनके व्यवहार ने मेरे भीतर किन ग्रंथियों को जन्म दे दिया। मैं काली हूँ। बचपन में दुबली और मरियल भी थी। गोरा रंग पिताजी की कमजोरी थी सो बचपन में मुझसे दो साल बड़ी खूब गोरी, स्वस्थ और हँसमुख बहिन सुशीला से हर बात में तुलना और उनकी प्रशंसा ने ही, क्या मेरे भीतर ऐसे गहरे हीन-भाव की ग्रंथि पैदा नहीं कर दी कि नाम, सम्मान और प्रतिष्ठा पाने के बावजूद आज तक मैं उससे उबर नहीं पाई ? आज भी परिचय करवाते समय जब कोई कुछ विशेषता लगाकर मेरी लेखकीय उपलब्धियों का जिक्र करने लगता है तो मैं संकोच से सिमट ही नहीं जाती बल्कि गड़ने को हो आती हूँ।

प्रश्न (क)-‘उपलब्धि’ का समानार्थक शब्द है।
उत्तरः ‘प्राप्ति’ समानार्थक शब्द है।

प्रश्न (ख)-लेखिका की हीन-भावना का कारण क्या था ?
उत्तरः 
लेखिका बचपन में कमजोर थी, उनका रंग भी काला था जिस कारण उनके पिताजी उनकी गोरे रंग की खूबसूरत बहन को चाहते थे और लेखिका की उपेक्षा करते थे।

प्रश्न (ग)-लेखिका द्वारा अपने पिता के व्यक्तित्व के विषय में लिखने का क्या उद्देश्य है ?
उत्तरः 
लेखिका यह बताना चाह रही है कि पिता के कौन-कौन से गुण और दोष उसके अन्दर समाए और कौन-सी ऐसी बातें थीं जिन्होंने उनके अन्दर हीनता की ग्रंथि को उत्पन्न किया।

3. अपनी जिंदगी खुद जीने के इस आधुनिक दबाव ने महानगरों के फ्लैट में रहने वालों को हमारे इस परंपरागत ‘पड़ोस-कल्चर’ से विच्छिन्न करके हमें कितना संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है। मेरी कम-से-कम एक दर्जन आरंभिक कहानियों के पात्र इसी मोहल्ले के हैं जहाँ मैंने अपनी किशोरावस्था गुजार अपनी युवावस्था का आरंभ किया था। एक-दो को छोड़कर उनमें से कोई भी पात्र मेरे परिवार का नहीं है। बस इनको देखते-सुनते, इनके बीच ही मैं बड़ी हुई थी लेकिन इनकी छाप मेरे मन पर इतनी गहरी थी, इस बात का अहसास तो मुझे कहानियाँ लिखते समय हुआ। इतने वर्षों के अंतराल ने भी उनकी भाव-भंगिमा, भाषा, किसी को भी धुंधला नहीं किया था और बिना किसी विशेष प्रयास के बड़े सहज भाव से वे उतरते चले गए थे।

प्रश्न (क)-बिना किसी विशेष प्रयास के बड़े सहज भाव से वे उतरते चले गए थे। इस पंक्ति का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
जब वे कहानियाँ-उपन्यास लिखने लगीं तो उनकी स्मृतियों के झरोखे से बचपन के साथी उनके लेखन में स्थान पाने लगे।

प्रश्न (ख)-मन्नू भंडारी अपने मोहल्ले से केसे प्रभावित हुईं?
उत्तरः बचपन में उनके मोहल्ले के लोगों का प्रभाव उनके मन पर इतना गहरा था कि सहज ही कहानी के पात्रों के रूप में उतर आए।

प्रश्न (ग)-परंपरागत पड़ोस कल्चर की कोई एक अच्छाई और कोई एक बुराई लिखिए। 

उत्तरः अच्छाई - एक दूसरे के आड़े वक्त काम आना तथा सुरक्षा की भावना। बुराई - कभी-कभी अपना निजत्व खत्म हो जाना।
अथवा

प्रश्न (क)-‘यातना’ का समानार्थक नहीं है। 
उत्तरःसंवेदना।

प्रश्न (ख)-लेखिका की माँ के प्रति उसके पिता के क्रोध का कारण क्या था ? 

उत्तरःनवाबी आदतों, अधूरी महत्वाकांक्षाओं के कारण पिताजी का क्रोध हमेशा आसमान पर चढ़ा रहता। उस क्रोध का प्रभाव लेखिका की माँ पर पड़ता।

प्रश्न (ग)-पिता के व्यक्तित्व में सकारात्मक पहलू न रहने के पीछे कारण क्या थे ? 
उत्तरःपिता जी की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उनके व्यक्तित्व के सारे सकारात्मक पहलू सिकुड़ते गए। सिकुड़ती आर्थिक स्थिति और फैलते हुए अहं भाव ने अपने बच्चों को आर्थिक विवशताओं का भागीदार नहीं बनाया।
अथवा

प्रश्न (क)- लेखिका का कौन सा प्रसिद्ध उपन्यास है ?
उत्तरः लेखिका ने ‘महाभोज’ नामक उपन्यास लिखा।

प्रश्न (ख)-‘उपन्यास में पात्र जीवित होने’ का अर्थ है।
उत्तरःलेखिका ने कम-से-कम एक दर्जन पात्र इसी मुहल्ले के बनाए हैं। पात्र के चरित्र को लेखिका ने साकार किया है।

प्रश्न (ग)-महानगरीय फ्लैट कल्चर ने जीवन को कैसा बना दिया है ? 

उत्तरः लेखिका को बड़ी शिद्दत के साथ यह महसूस होता है कि अपनी ज़िन्दगी खुद जीने के इस आधुनिक दबाव ने महानगरों के फ्लैट में रहने वाले को हमारे इस परंपरागत पड़ोस कल्चर से विच्छिन्न करके हमें कितना संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है।

4. उस समय तक हमारे परिवार में लड़की के विवाह के लिए अनिवार्य योग्यता थी-उम्र में सोलह वर्ष और शिक्षा में मैट्रिक। सन् 44 में सुशीला ने यह योग्यता प्राप्त की और शादी करके कोलकाता चली गई। दोनों बड़े भाई भी आगे पढ़ाई के लिए बाहर चले गए। इन लोगों की छत्र-छाया के हटते ही पहली बार मुझे नए सिरे से अपने वजूद का एहसास हुआ। पिताजी का ध्यान भी पहली बार मुझ पर केन्द्रित हुआ। लड़कियों को जिस उम्र में स्कूली शिक्षा के साथ-साथ सुघड़ गृहिणी और कुशल पाक-शास्त्री बनने के नुस्खे जुटाए जाते थे, पिताजी का आग्रह रहता था कि मैं रसोई से दूर ही रहूँ। रसोई को वे भटियारखाना कहते थे और उनके हिसाब से वहाँ रहना अपनी क्षमता और प्रतिभा को भट्टी में झोंकना था। 

प्रश्न (क)- ‘‘इन लोगों की छत्रछाया हटते ही ‘कथन में’ इन लोगों’’ से तात्पर्य है।
उत्तरः इन लोगों की छत्रछाया हटते ही, कथन में ‘इन लोगों’ से तात्पर्य बड़े ‘भाई-बहनों’ से है। बड़ी बहन की शादी हो जाने पर तथा दोनों बडे़ भाइयों के बाहर चले जाने पर लेखिका को अपने वजूद का एहसास हुआ।

प्रश्न (ख)-लेखिका की बहन की शादी कब हुई थी ?
उत्तरः लेखिका की बहन सुशीला ने जब सन् 1944 में शादी की योग्यता प्राप्त कर ली तब शादी हुई और शादी करके कोलकाता चली गई।

प्रश्न (ग)-लेखिका के अनुसार लड़की की वैवाहिक योग्यता थी ?
उत्तरःलेखिका ने बताया है कि उनके परिवार की लड़कियाँ जब सोलह वर्ष की हो जाती थीं और दसवीं पास कर लेती थीं तो उस समय शादी कर दी जाती थी।

5. आए दिन विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के जमावडे़ होते थे और जमकर बहसें होती थीं। बहस करना पिता जी का प्रिय शगल था। चाय-पानी या नाश्ता देने जाती तो पिता जी मुझे भी वहीं बैठने को कहते। वे चाहते थे कि मैं भी वहीं बैठूँ, सुनूँ और जानूँ कि देश में चारों ओर क्या कुछ हो रहा है। देश में हो भी तो कितना कुछ रहा था। सन्’ 42 के आंदोलन के बाद से तो सारा देश जैसे खौल रहा था, लेकिन विभिन्न राजनैतिक पार्टियों की नीतियाँ उनके आपसी विरोध या मतभेदों की तो मुझे दूर-दूर तक कोई समझ नहीं थी। हाँ, क्रांतिकारियों और देशभक्त शहीदों के रोमानी आकर्षण, उनकी कुर्बानियों से ज़रूर मन आक्रांत रहता था।

प्रश्न (क)-देश में उस समय क्या-कुछ हो रहा था ?
उत्तरः 
देश में उथल-पुथल मची थी। अंग्रेजी शासन का अंत निकट दिखाई दे रहा था। जगह-जगह जलसे, हड़तालें हो रही थीं और प्रभात फेरियां निकाली जा रही थीं।

प्रश्न (ख)-घर के ऐसे वातावरण का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

उत्तरः

  • उनमें देशभक्ति की भावना जागी।
  • वे राजनीति में सक्रिय भागीदारी करने लगीं। 

प्रश्न (ग)-लेखिका के पिता लेखिका को घर में होने वाली बहसों में बैठने को क्यों कहते थे ?

व्याख्यात्मक हल:
घर के ऐसे वातावरण का लेखिका पर गहरा प्रभाव पड़ा उनमें देशभक्ति की भावना जागी और वे राजनीति में सक्रिय भागीदारी करने लगीं।

उत्तरः देश में होने वाली राजनैतिक गतिविधियों और परिस्थितियों को जानने, समझने और परिचित होने के लिए।
व्याख्यात्मक हल:
लेखिका के पिता लेखिका को घर में होने वाली बहसों में बैठने के लिए इसलिए कहते थे, जिससे उन्हें देश में होने वाली राजनैतिक गतिविधियों और परिस्थितियों को जानने, समझने और परिचित होने का अवसर मिले।

6. जैसे ही दसवीं पास करके मैं ‘फस्र्ट इयर’ में आई, हिन्दी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से परिचय हुआ। सावित्री गर्ल्स हाईस्कूल-जहाँ मैंने ककहरा सीखा, एक साल पहले ही काॅलेज बना था और वे इसी साल नियुक्त हुई थी। उन्होंने बाकायदा साहित्य की दुनिया में प्रवेश करवाया। मात्र पढ़ने को, चुनाव करके पढ़ने में बदला, खुद चुन-चुनकर किताबें दीं ..... पढ़ी हुई किताबों पर बहसें की तो दो साल बीतते-न-बीतते साहित्य की दुनिया शरत चन्द्र, प्रेमचंद से बढ़कर जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा तक फैल गई और फिर तो फैलती ही चली गई। 

प्रश्न (क)-‘बाकायदा’ शब्द का यहाँ अर्थ है। 

उत्तरः ‘बाकायदा’ शब्द का अर्थ है-पूरी तरह।

प्रश्न (ख)-लेखिका के लिए साहित्य की दुनिया का विस्तार कैसे हुआ ?
उत्तरः 
लेखिका की साहित्य की दुनिया शरतचन्द्र, प्रेमचन्द से बढ़कर जैनेन्द्र, अज्ञेय, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा तक फैल गई और फिर तो फैलती ही चली गई।

प्रश्न (ग)-बाकायदा साहित्य की दुनिया में किसमें प्रवेश कराया ? 

उत्तरः ‘फस्र्ट ईयर’ में आने पर हिन्दी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से परिचय हुआ। उन्होंने ही लेखिका के मात्र पढ़ने को, चुनाव करके पढ़ने में बदला, खुद चुन-चुनकर किताबें दीं। तब उन्होंने बाकायदा साहित्य की दुनिया में प्रवेश कराया।

7. प्रभात फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस भाषण हर शहर का चरित्र था और पूरे दमखम और जोश-खरोश के साथ इन सबसे जुड़ना हर युवा का उन्माद। मैं भी युवा थी और शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने रगों में बहते खून को लावे में बदल दिया था। स्थिति यह हुई कि एक बवंडर शहर में मचा हुआ था और एक घर में। पिताजी की आजादी की सीमा यही तक थी कि उनकी उपस्थिति में घर में आए लोगों के बीच उठूँ - बैठूँ, जानूँ - समझूँ। हाथ उठा-उठाकर नारे लगाती, हड़तालें करवाती, लड़कों के साथ शहर की सड़कें नापती लड़की को अपनी सारी आधुनिकता के बावजूद बर्दाश्त करना उनके लिए मुश्किल हो रहा था तो किसी की दी हुई आजादी के दायरे में चलना मेरे लिए। जब रगों में लहू की जगह लावा बहता हो तो सारे निषेध, सारी वर्जनाएँ और सारा भय कैसे ध्वस्त हो जाता है, यह तभी जाना। 

प्रश्न (क)-शीला अग्रवाल की बातों का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तरः शीला अग्रवाल की जोशीली बातों से लेखिका नारे लगाने और हड़ताल कराने के लिए सड़कों पर उतर आई।

प्रश्न (ख)-पिताजी के लिए क्या बर्दाशत करना मुश्किल हो रहा था ?
उत्तरः पिताजी की आज़ादी की सीमा यहीं तक थी कि उनकी उपस्थिति में आए लोगों के बीच उठूँ, बैठूँ-समझू। हाथ उठा-उठाकर नारे लगवाना, लड़कों के साथ शहर की सड़कें नापना सारी आधुनिकता के बावजूद बर्दाश्त करना उनके लिए मुश्किल हो रहा था।

प्रश्न (ग)-शहर में कौन-सा बवंडर मचा हुआ था ?
उत्तरः 
देश की आज़ादी के लिए पूरे दमखम और जोश-खरोश के साथ प्रभात फेरियों, हड़तालों और जुलूस-भाषणों आदि से जुड़ना हर युवा का उन्माद था। स्थिति यह हुई कि एक बवंडर शहर में और एक लेखिका के घर में मचा हुआ था।

8. हाथ उठा-उठा कर नारे लगाती, हड़तालें करवाती, लड़कों के साथ शहर नापती लड़की को अपनी सारी आधुनिकता के बावजूद बर्दाश्त करना उनके लिए मुश्किल हो रहा था तो किसी की दी हुई आज़ादी के दायरे में रहना मेरे लिए। जब रगों में लहू की जगह लावा बहता हो तो सारे निषेध, सारी वर्जनाएँ और सारा भय कैसे ध्वस्त हो जाता है, यह तभी जाना।

प्रश्न (क)-‘रगों में लहू बहना’ का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए। 
उत्तरःलेखिका के खून में उबाल था, जोश था। इसलिए उसने पिता की वर्जनाओं की परवाह किये बिना आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

प्रश्न (ख)-लेखिका के लिए स्वयं क्या करना कठिन था? क्यों ?
उत्तरःलेखिका के लिए किसी की दी हुई आज़ादी के दायरे में रहना मुश्किल हो रहा था। इस के लिए सारे निषेध, वर्जनाएँ ध्वस्त हो चुकी थीं। बंधनों में रह पाना लेखिका के लिए मुश्किल हो रहा था। इसलिए वह आन्दोलनों में भाग लेने लगीं।

प्रश्न (ग)-‘उनके लिए’ सर्वनाम किसके लिए आया है ? उन्हें क्या कठिनाई थी ?
उत्तरः 
‘उनके लिए’ सर्वनाम पिता जी के लिए आया है। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भागीदार बनना तथा घर के बाहर चलने वाले क्रिया-कलापों को पिताजी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे।

9. यश-कामना बल्कि कहूँ कि यश-लिप्सा, पिताजी की सबसे बड़ी दुर्बलता थी और उनके जीवन की धुरी थी यह सिद्धांत कि व्यक्ति को कुछ विशिष्ट बनकर जीना चाहिए ..... कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि समाज में उसका नाम हो सम्मान हो प्रतिष्ठा हो, वर्चस्व हो। इसके चलते ही मैं दो-एक बार उनके कोप से बच गई थी। एक बार काॅलेज से प्रिंसिपल का पत्र आया कि पिताजी आकर मिलें और बताएँ कि मेरी गतिविधियों के कारण मेरे खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए ? पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला। ”यह लड़की मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रखेगी ..... पता नह° क्या-क्या सुनना पड़ेगा वहाँ जाकर। चार बच्चे पहले भी पढ़े, किसी ने ये दिन नहीं दिखाया।“ गुस्से से भन्नाते हुए ही वे गए थे। लौटकर क्या कहर बरपेगा, इसका अनुमान था, सो मैं पड़ोस की एक मित्र के यहाँ जाकर बैठ गई। माँ को कह दिया कि लौटकर बहुत कुछ गुबार निकल जाए, तब बुलाना।

प्रश्न (क)-लेखिका पड़ोस की एक मित्र के घर जाकर क्यों बैठ गई ?
उत्तरःमालूम था कि पिताजी काॅलेज से लौटकर आयेंगे, क्रोध में भरे होंगे इसलिए डर के कारण वहाँ जाकर बैठ गई।

प्रश्न (ख)-”यह लड़की मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रखेगी।“ पिताजी ने यह वाक्य क्यों कहा 
उत्तरः एक बार काॅलेज के प्रिंसिपल का पत्र लेखिका पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के सम्बन्ध में आया। पत्र पढ़ते ही पिताजी आग-बबूला हो गये। मन में सोचने लगे कि इस लड़की के कारण न जाने मुझे वहाँ जाकर क्या-क्या सुनना पडे़गा।

प्रश्न (ग)-लेखिका के पिताजी के जीवन का सिद्धन्त क्या था ?
उत्तरः 
यश-लिप्सा पिता जी की सबसे बड़ी दुर्बलता थी और उनके जीवन की यह धुरी थी कि व्यक्ति को कुछ विशिष्ट बनकर जीना चाहिए ............ कुछ ऐसे काम करने चाहिए जिससे समाज में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा का कारण हो।

10. शाम को अजमेर का पूरा विद्यार्थी-वर्ग चौपड़ (मुख्य बाजार का चैराहा) पर इकट्ठा हुआ और फिर हुई भाषणबाजी। इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी, ‘‘अरे उस मन्नू की तो मत मारी गई है पर भंडारी जी आपको क्या हुआ ? ठीक है, आपने लड़कियों को आज़ादी दी, पर देखते आप, जाने कैसे-कैसे उलटे-सीधे लड़कों के साथ हड़तालें करवाती, हुड़दंग मचाती फिर रही है वह। हमारे-आपके घरों की लड़कियों को शोभा देता है यह सब ? कोई मान-मर्यादा, इज्ज़त-आबरू का ख्याल भी रह गया है आपको या नहीं ?’’

प्रश्न (क)-लेखिका के पिताजी के मित्र कैसे विचारों वाले थे ?
उत्तरः पिताजी के मित्र दकियानूसी विचारों वाले थे।

प्रश्न (ख)-विद्यार्थी वर्ग ने भाषण के लिए कौन-सा स्थान चुना ?
उत्तरः 
आजाद-हिन्द फ़ौज के मुकद्दमे के सिलसिले में शाम को अजमेर का पूरा विद्यार्थी वर्ग चौपड़ (मुख्य बाजार का चैराहा) पर इकट्ठा हुआ और फिर हुई भाषणबाजी।

प्रश्न (ग)-घटना का सम्बन्ध किस दौर से है ? 

उत्तरःआज़ाद हिन्द फौज़ के मुकदमे का सिलसिला था। सभी काॅलेज, स्कूलों, दुकानों के लिए हड़ताल का आह्वान था। जो नहीं कर रहे थे, छात्रों का समूह वहाँ जा-जाकर करवा रहा था।

11. एक घटना और। आज़ाद हिंद फ़ौज के मुकदमे का सिलसिला था। सभी काॅलेजों, स्कूलों, दुकानों के लिए हड़ताल का आह्नान था। जो-जो नहीं कर रहे थे, छात्रों का एक बहुत बड़ा समूह वहाँ जा-जाकर हड़ताल करवा रहा था। शाम को अजमेर का पूरा विद्यार्थी - वर्ग चौपड़ (मुख्य बाज़ार का चैराहा) पर इकट्ठा हुआ और फिर हुई भाषणबाज़ी। इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी, ”अरे उस मन्नू की तो मत मारी गई है पर भंडारी जी आपको क्या हुआ ? ठीक है, आपने लड़कियों को आज़ादी दी, पर देखते आप, जाने कैसे-कैसे उल्टे-सीधे लड़कों के साथ हड़तालें करवाती, हुड़दंग मचाती फिर रही है वह। हमारे-आपके घरों की लड़कियों को शोभा देता है यह सब ? कोई मान-मर्यादा, इज़्ज़त-आबरू का खयाल भी रह गया है आपको या नहीं ?“ वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे, ”बस, अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ। बंद करो अब इस मन्नू का घर से बाहर निकलना।“ 

प्रश्न (क)-पिता जी ने क्या निर्णय लिया ? 
उत्तरः लेखिका को घर से न निकलने देने का।
व्याख्यात्मक हल:
जब लेखिका के पिता भंडारी जी के मित्र लेखिका के विरु( भड़काकर चले गये और वे सारे दिन भभकते रहे, तब पिता ने निर्णय लिया कि ‘बंद करो अब इस मन्नू का घर से बाहर निकलना’।

प्रश्न (ख)-‘मन्नू की तो मत मारी गई है पर भंडारी जी आपको क्या हुआ’ कथन से किसने कान भरे ? 
उत्तरःदकियानूसी मित्र ने।
व्याख्यात्मक हल:
आज़ाद हिन्द फौज के मुकदमे के सिलसिले में हड़ताल का आह्नान होने पर अजमेर का पूरा विद्यार्थी वर्ग चौपड़ (मुख्य बाजार का चैराहा) पर इकट्ठा हुआ, वहाँ दिए गए भाषण के खिलाफ पिताजी के किसी दकियानूसी मित्र ने उन्हें लेखिका के भाषण के विरुद्ध भड़का दिया।

प्रश्न (ग)-स्कूल-काॅलेज बंद करवाने का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तरःआज़ाद-हिंद फ़ौज का मुकदमा।
व्याख्यात्मक हल:
लेखिका ने सन् 1946-47 के उन दिनों को याद किया है जब देश में स्वाधीनता आन्दोलन जोरों पर था, जिसके कारण प्रभात फेरियाँ, जुलूस आदि निकला करते थे हड़तालें और आन्दोलन हुआ करते थे तथा अनेक लोग, युवक-युवतियाँ बहुत जोश के साथ उनमें भाग लेते थे। स्कूल-काॅलेज बंद करवाने का यही मुख्य कारण था।

12. आज पीछे मुड़कर देखती हूँ तो इतना तो समझ में आता ही है क्या तो उस समय मेरी उम्र थी और क्या मेरा भाषण रहा होगा। यह तो डाॅक्टर साहब का स्नेह था जो उनके मुँह से प्रशंसा बनकर बह रहा था यह भी हो सकता है कि आज से पचास साल पहले अजमेर जैसे शहर में चारों ओर से उमड़ती भीड़ के बीच एक लड़की का बिना किसी संकोच और झिझक के यों धुँआधार बोलते चले जाना ही उसके मूल में रहा हो। पर पिताजी! कितनी तरह के अंतर्विरोधों के बीच जीते थे वे! एक ओर ‘विशिष्ट’ बनने और बनाने की प्रबल लालसा तो दूसरी ओर अपनी सामाजिक छवि के प्रति भी उतनी ही सजगता। 

प्रश्न (क)-‘क्या तो मेरी उम्र थी और क्या मेरा भाषण रहा होगा।’ वाक्य किस का प्रकार है। 
उत्तरः संयुक्त वाक्य।

प्रश्न (ख)-लेखिका के पिताजी के अन्तर्विरोध क्या थे ?
उत्तरः पिता जी का जीवन द्वन्द्वग्रस्त था। वे सामाजिक छवि बनाए रखने के साथ-साथ समाज में अपना विशेष स्थान भी बनाए रखना चाहते थे। किन्तु पुत्री विशिष्ट बन गई थी, पर मर्यादा को ताक पर रखकर।

प्रश्न (ग)-डाक्टर साहब लेखिका के प्रशंसक क्यों थे ?
उत्तरः 
अजमेर के सम्माननीय डाॅक्टर अंबालाल जी बैठे लेखिका की तारीफ कर रहे थे। साथ ही पिताजी को बधाई देते हुए यह बता रहे थे कि उन्होंने लेखिका का भाषण न सुनकर बहुत कुछ खो दिया है।

लेखिका के पिता द्वारा कौन सा उपन्यास पढ़ने को दिया गया?

Answer: लेखिका मृदुला गर्ग को उनके पिता ने रूसी लेखक दातोस्वकी द्वारा लिखित 'ब्रदर्स कारामजोव' उपन्यास पढ़ने के लिये दिया था। 'मेरे संग की औरतें' पाठ में लेखिका मृदुला गर्ग को यह उपन्यास उनके पिता ने उनकी 9 वर्ष की आयु में पढ़ने को दिया था।

लेखिका के पिता ने 9 वर्ष की उम्र में लेखिका को कौन सा उपन्यास पढ़ने के लिए दिया?

लेखिका आज़ादी के जश्न में नहीं गई थी। उसके पिता जी ने उसे पढ़ने के लिए 'ब्रदर्स काराम जोव' का उपन्यास दिया। उस समय उसकी आयु नौ वर्ष थी।

ब्रदर्स कारामजोव नामक उपन्यास के लेखक कौन थे?

ब्रदर्स करमाज़ोव ( रूसी : ра́тья арама́зовы , Brat'ya Karamazovy , उच्चारित [ˈbratʲjə kərɐˈmazəvɨ] ), जिसे द करमाज़ोव ब्रदर्स के रूप में भी अनुवादित कियागया है, रूसी लेखक फ्योडोर दोस्तोवस्की का अंतिम उपन्यास है।

लेखिका की पांचवी बहन का क्या नाम था?

लेखिका से छोटी बहन के भी दो नाम थे। घर का गौरी और बाहर का नाम चित्रा। उससे दोनों छोटी बहनों का एक-एक ही नाम था, जो कि क्रमशः से रेणु और अचला था