‘पादप ऊतक संवर्धन’ का कार्य किसने आरंभ किया
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Questins Staff asked 2 years ago
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Question Tags: Biology
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Rohit Verma Staff answered 2 years ago
जर्मन वनस्पतिशास्त्री जी. हैबरलैंडिट ने 1902 में विभिन्न पादपों से पृथक् किए हुए पादप कोशिकाओं के मध्य संवर्धित भेद स्पष्ट किया। यह पादप कोशिका और ऊतक संवर्धन की शुरुआत की दिशा में पहला कदम था। बाद में कोशिका सिद्धांत ने इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें स्वीकार किया गया कि कोशिका पूर्णशक्तता दर्शाने में समर्थ है।
टिशू कल्चर (Tissue Culture) एक कृत्रिम वातावरण में पौधों को स्थानांतरित करके नए पौधे के ऊतकों को विकसित करने की एक तकनीक है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते है कि टिशू कल्चर तकनीक कैसे काम करती है, इसको कैसे किया जाता है, इसका क्या महत्व और फायदे हैं आदि.
What is Tissue culture in plants?
जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पौधों में आनुवंशिक सुधार, उसके निष्पादन से सुधार आदि में टिशू कल्चर (Tissue Culture) या ऊतक संवर्धन एक अहम भूमिका निभाता हैं. इस तकनीक के उपयोग से पर्यावरण की अनेक ज्वलंत समस्याओं के निराकरण में मदद मिली हैं. पौधों में टिशू कल्चर एक ऐसी तकनीक है जिसमें किसी भी पादप ऊतक जैसे जड़, तना, पुष्प आदि को निर्जर्मित परिस्तिथियों में पोषक माध्यम पर उगाया जाता है. यह पूर्ण शक्तता के सिद्धांत पर आधारित हैं. इस सिद्धांत के अनुसार पौधे की प्रत्येक कोशिका एक पूर्ण पौधे का निर्माण करने में सक्षम हैं. 1902 में हैबरलांट ने कोशिका की पूर्ण शक्तता की संकल्पना दी थी इसलिए इन्हे पौधों के टिशू कल्चर का जनक कहां जाता है.
इस प्रक्रिया में संवृद्धि मीडियम (growth medium) या संवर्धन घोल (culture solution) महत्वपूर्ण है, इसका उपयोग पौधों के ऊतकों को बढ़ाने के लिए किया जाता है क्योंकि इसमें 'जेली' (Jelly) के रूप में विभिन्न पौधों के पोषक तत्व शामिल होते हैं जो कि पौधों के विकास के लिए जरूरी है.
टिशू कल्चर की प्रक्रिया कैसे होती है
1. पौधे के ऊतकों का एक छोटा सा टुकड़ा उसके बढ़ते हुए उपरी भाग से लिया जाता है और एक जेली (Jelly) में रखा जाता है जिसमें पोषक तत्व और प्लांट हार्मोन होते हैं. ये हार्मोन पौधे के ऊतकों में कोशिकाओं को तेजी से विभाजित करते हैं जो कई कोशिकाओं का निर्माण करते हैं और एक जगह एकत्रित कर देते हैं जिसे “कैलस” (callus) कहां जाता है.
2. फिर इस “कैलस” (callus) को एक अन्य जेली (Jelly) में स्थानांतरित किया जाता है जिसमें उपयुक्त प्लांट हार्मोन होते हैं जी कि “कैलस” (callus) को जड़ों में विकसित करने के लिए उत्तेजित करते हैं.
3. विकसित जड़ों के साथ “कैलस” (callus) को एक और जेली (Jelly) में स्थानांतरित किया जाता है जिसमें विभिन्न हार्मोन होते हैं जो कि पौधें के तने के विकास को प्रोत्साहित करते हैं.
4. अब इस “कैलस” (callus) को जिसमें जड़ें और तना है को एक छोटे प्लांटलेट के रूप में अलग कर दिया जाता है. इस तरह से, कई छोटे-छोटे पौधे केवल कुछ मूल पौधे कोशिकाओं या ऊतक से उत्पन्न हो सकते हैं.
5. इस प्रकार उत्पादित प्लांटलेट को बर्तन या मिट्टी में प्रत्यारोपित किया जाता है जहां वे परिपक्व पौधों के निर्माण के लिए विकसित हो सकते हैं.
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पौधों में क्लोन क्या है?
हम जानते हैं कि पौधों के यौन प्रजनन के कारण बीज पैदा होते हैं और प्रत्येक बीजों की अपनी आनुवांशिक सामग्री होती है जो कि अन्य बीज और मूल पौधों से भी अद्वितीय है. आमतौर पर, टिशू कल्चर पौधे एक सूक्ष्म फैलावयुक्त कलम (micro propagated cuttings) या उनका एक क्लोन हैं जो कि आनुवंशिक रूप से अपने पैरेंट प्लांट के समान है. इसमें विशेष रूप से अच्छे फूल, फल उत्पादन, या अन्य वांछनीय लक्षण के पौधों के क्लोन का उत्पादन किया जाता है.
टिशू कल्चर तकनीक का प्रयोग
टिशू कल्चर तकनीक का उपयोग ऑर्किड (orchids), डाहलिया फूल, कार्नेशन (carnation), गुलदाउदी के फूल (chrysanthemum) आदि जैसे सजावटी पौधों के उत्पादन के लिए किया जा रहा है. टिशू कल्चर की विधि द्वारा पौधों का उत्पादन भी सूक्ष्मप्रवर्धन (micropropagation) के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसमें पौधों के छोटे से हिस्से का प्रयोग किया जाता है. ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि एकल कोशिका से पूरे पौधे का निर्माण किया जा सकता है.
टिशू कल्चर के लाभ
1. टिशू कल्चर एक ऐसी तकनीक है जो बहुत तेज़ी से काम करती है. इस तकनीक के माध्यम से पौधे के ऊतकों के एक छोटे से हिस्से को लेकर कुछ ही हफ्तों के समय में हजारों प्लांटलेट का उत्पादन किया जा सकता है.
2. टिशू कल्चर द्वारा उत्पादित नए पौधे रोग मुक्त होते हैं. इस तकनीक द्वारा रोग,प्रतिरोधी कीट रोधी तथा सूखा प्रतिरोधी किस्मो को उत्पादित किया जा सकता है.
3. टिशू कल्चर के माध्यम से पूरे वर्ष पौधों को विकसित किया जा सकता है, इस पर किसी भी मौसम का कोई असर नहीं होता है.
4. टिशू कल्चर द्वारा नए पौधों के विकास के लिए बहुत कम स्थान की आवश्यकता होती है.
5. यह बाजार में नई किस्मों के उत्पादन को गति देने में मदद करता है.
6. आलू उद्योग के मामले में, यह तकनीक वायरस मुक्त स्टॉक बनाए रखने और स्थापित करने में सहायता करती है.
यानी टिशू कल्चर तकनीक इस बात पर निर्भर करती है कि पौधों की कोशिकाओं में सम्पूर्ण पौधों को पुनरुत्पादित करने की क्षमता होती है इसे पूर्णशक्तता (totipotency) तथा कोशिका को पूर्णशक्त कोशिका कहते है.
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