रामायण का एक दृश्य - फोटो : file photo Show रामायण में प्रभु श्रीराम का जीवन समस्त प्राणी मात्र के लिए एक आदर्श है। उनका जीवन हम सबके लिए एक प्रेरणास्रोत है, जो हमें यह सिखाता है व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए। ऐसा ही एक कर्तव्य है 'राजधर्म'। राजधर्म शब्द का प्रयोग वर्तमान राजनीति में भी खूब होता है। राजधर्म का अर्थ है एक सत्ता या राजा का धर्म। रामायण में राजधर्म की व्याख्या बड़े ही सुंदर ढंग से की गई है। जो इस प्रकार है- अयोध्या में भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक होने वाला था। राज्याभिषेक के एक दिन पहले राजा दशरथ ने भगवान श्रीराम को राजधर्म का पाठ पढ़ाया था। राजा दशरथ ने श्रीराम से कहा, पुत्र राम, कल आपका राज्याभिषेक है। आपको राजमुकुट पहनाया जाएगा, परंतु यह याद रखना, जो राजमुकुट पहनता है वह स्वयं को अपने राज्य और अपनी प्रजा को सौंप देता है। एक राजा होने का अर्थ है सन्यासी हो जाना। अयोध्या नरेश ने आगे राजधर्म को समझाते हुए कहा, एक राजा का अपना कुछ नहीं होता है। सबकुछ राज्य का हो जाता है। बल्कि आवश्यकता पड़ने पर यदि राजा को अपने राज्य और प्रजा के हित के लिए अपनी स्त्री, संतान, मित्र यहां तक की प्राण भी त्यागने पड़े तो उसे संकोच नहीं करना चाहिए। क्योंकि राज्य ही उसका मित्र है और राज्य ही उसका परिवार है। जो राज्य की प्रजा के लिए अपना सबकुछ नहीं त्याग सकता उसे राजा बनकर अपनी प्रजा से कर लेने का भी कोई अधिकार नहीं है। राजा को अपने हर एक निर्णय से एक आदर्श और मर्यादा को स्थापित करना पड़ता है। क्योंकि जैसा राजा होता है प्रजा भी अपने राजा को देखकर उसका आचरण करती है। एक राजा की मूल शक्ति दंड नहीं है बल्कि न्याय है। न्याय जो पक्षपात से रहित हो। राजा को राज्य का भगवान कहा गया है। क्योंकि राज्यवासियों का समस्त सुख-दुख और जीवन मरण उनके राजा के हाथों में होता है। इसलिए एक राजा के अंदर दया, क्षमा, उदारता एवं करुणा का भाव अवश्य होना चाहिए। वहीं युद्ध के समय राजा को अपनी सेना का नेतृत्व कर सबसे पहली पंक्ति में खड़ा होना चाहिए। क्योंकि जो राजा वीर नहीं होता, उसकी सेना भी उसका आदर नहीं करती है। एक राजा को ऋषियों, विचारकों और कवियों के आगे सदा नतमस्तक होना चाहिए। क्योंकि वे ही उसके सच्चे पद प्रदर्शक होते हैं। एक राजा को अपने आलोचकों को भी संरक्षण देना चाहिए, ताकि वे उसकी कमियों को उसे बता सकें। राजा को अपने गुप्तचरों के माध्यम से अपने राज्य की पूर्ण खबर होनी चाहिए। अंत में राजा दशरथ ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम से कहा कि पुत्र राम मैं जानता हूं कि आप राजनीति के पूर्ण ज्ञाता हैं। परंतु एक जाने वाले राजा का ये कर्तव्य है कि वह आने वाले राजा को अपने अनुभवों को बताए। इस प्रकार राजा दशरथ ने भगवान श्रीराम को राजधर्म का पाठ पढ़ाया। Home
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श्रीराम ने बताए थे वो गुण जो किसी को भी अच्छा शासक बना सकते हैं श्रीराम ने बताए थे वो गुण जो किसी को भी अच्छा शासक बना सकते हैंTamanna, Jun 16, 2017, 12:04 IST 79K आध्यात्मिक डायरी में जोड़ें। 1/10 1 भगवान रामभगवान राम का जन्म धरती से राक्षसों और असुरों का संहार करने के लिए हुआ था। धरती रावण रूपी बुराई के आतंक से त्रस्त थी, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था....धरती को पाप मुक्त बनाने के लिए विष्णु जी ने देवी कौशल्या की गर्भ से श्रीराम के रूप में जन्म लिया था। 2/10 2 भगवान राम का चरित्रपौराणिक कथाओं में भगवान राम के चरित्र की व्याख्या बड़ी ही खूबसूरती के साथ की गई है। वे मर्यादा पुरुषोतम तो थे ही साथ ही वे एक आदर्श पुत्र भी और प्रिय भाई भी थे। एक ऐसे राजा थे जिन्होंने अपनी प्रजा की देखभाल अपनी संतान की भांति, वे अपनी प्रजा के दुख को अपना ही दुख समझते थे। 3/10 3 राम का वनवासयही करण है कि जब भगवान राम को वनवास जाना पड़ा तब पूरी अयोध्या ही शोक में डूब गई थी और जब वे 13 साल के वनवास के बाद लौटे तो उनकी प्रजा ने उस दिन को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाकर उनके प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन किया। 4/10 4 रामायण ग्रंथरामायण ग्रंथ, भगवान राम के जीवन पर आधारित एक ऐसी रचना है जिसे पढ़ने के बाद ना सिर्फ आनंद की, बल्कि ओज और उत्साह की भी अनुभूति होती है। रामायण, भगवान राम के जीवन का दर्शन है और साथ ही इस महान ग्रंथ में कुछ ऐसी बातें भी उल्लिखित है जो मानव जीवन के बहिय काम आ सकती है। 5/10 5 प्राचीन ग्रंथ और पुराणरामायण के अलावा, ऐसे कई प्राचीन ग्रंथ और पुराण हैं जिनमें भगवान राम द्वारा कही गई बातों का जिक्र है, जिनमें से एक है अग्नि पुराण। अग्नि पुराण के एक विस्तृत अध्याय के अंतर्गत श्रीराम और उनके भ्राता लक्ष्मण के बीच वार्तालाप का उल्लेख है। जिसका आधार था “कैसा व्यक्ति एक बेहतरीन राजा या नेता बन सकता है”। 6/10 6 भगवान रामभगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण को बताया था कि एक व्यक्ति तभी अच्छा राजा या नेता बन सकता है जब वह चार दिशाओं में कार्य करे। सबसे पहले वो ये जानता हो कि धन कैसे अर्जित किया जाता है, दूसरा अर्जित धन को बढ़ाया कैसे जाता है, तीसरा वह ये जानता हो कि उस धन की रक्षा किस तरह की जाती है और चौथा, किस तरह उस धन का प्रयोग अपनी प्रजा के सुखद भविष्य के लिए किया जाए। 7/10 7 प्रजा से प्रेमभगवान श्रीराम के अनुसार राजा को ना सिर्फ उन लोगों के साथ हमेशा विनम्र और शांत रहना चाहिए जो उसके लिए काम करते हैं वल्कि उन लोगों के साथ भी नम्र व्यवहार करना चाहिए जो उसके साथ कार्य नहीं करते। ऐसा राजा जो बात-बात पर क्रोधित होता है या फिर अधिकांश स्थितियों में अपना धैर्य खो देता है, वह कभी भी अपनी प्रजा से प्रेम या आदर प्राप्त नहीं कर पाता। 8/10 8 गलती को मांफ़ करनागलती को मांफ़ करना और अहिंसा के मार्ग पर चलना... जो व्यक्ति इन गुणों को अपने बेहेतर संजो कर रखता है वह एक अच्छा राजा बन सकता है। खासकर तब जब ये बातें उसके राज्य की खुशियों की बात हो। वह एक अच्छा मार्गदर्शक होना चाहिए, जो सभी की मदद करने के लिए तत्पर रहे और साथ ही साथ अपनी प्रजा की रक्षा करनी भी जानता हो। 9/10 9 शिकायतें सुनने का समयएक अच्छे राजा को कभी भी अपनी प्रजा या दरबार में आए किसी भी व्यक्ति को नाउम्मीद नहीं छोड़ना चाहिए। उसके पास हमेशा अपने लोगों के दुख और शिकायतें सुनने का समय होना चाहिए, ताकि वह उन्हें सुलझा पाए। साथ ही जो लोग उससे खुश नहीं है, उन्हें भी संतुष्ट करने की कोशिश होनी चाहिए। 10/10 10 अच्छे वचनएक नेता या शासक को हमेशा अच्छे वचन ही बोलने चाहिए, फिर चाहे हो अपने दोस्त के लिए प्रयोग कर रहा हो या फिर दुश्मन के लिए।
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