सबरीमाला मंदिर में किसकी पूजा होती है? - sabareemaala mandir mein kisakee pooja hotee hai?

sabarimala temple

भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है विश्‍व प्रसिद्ध सबरीमाला का मंदिर। यहां हर दिन लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है। करीब 800 साल पुराने इस मंदिर में ये मान्यता पिछले काफी समय से चल रही थी कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश ना करने दिया जाए। इसके कुछ कारण बताए गए थे। आओ जानते हैं इस मंदिर के इतिहास और स्थिति के बारे में।


कौन थे अयप्पा?

1.भगवान अयप्पा के पिता शिव और माता मोहिनी हैं। विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था। उनके वीर्य को पारद कहा गया और उनके वीर्य से ही बाद में सस्तव नामक पुत्र का जन्म का हुआ जिन्हें दक्षिण भारत में अयप्पा कहा गया। शिव और विष्णु से उत्पन होने के कारण उनको 'हरिहरपुत्र' कहा जाता है। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।

धार्मिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान भोलेनाथ भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए थे और इसी के प्रभाव से एक बच्चे का जन्म हुआ जिसे उन्होंने पंपा नदी के तट पर छोड़ दिया। इस दौरान राजा राजशेखरा ने उन्हें 12 सालों तक पाला। बाद में अपनी माता के लिए शेरनी का दूध लाने जंगल गए अयप्पा ने राक्षसी महिषि का भी वध किया।

2.अय्यप्पा के बारे में किंवदंति है कि उनके माता-पिता ने उनकी गर्दन के चारों ओर एक घंटी बांधकर उन्हें छोड़ दिया था। पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में पाला। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और उन्हें वैराग्य प्राप्त हुआ तो वे महल छोड़कर चले गए। कुछ पुराणों में अयप्पा स्वामी को शास्ता का अवतार माना जाता है।

अयप्पा स्वामी का चमत्कारिक मंदिर :

भारतीय राज्य केरल में शबरीमाला में अयप्पा स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां विश्‍वभर से लोग शिव के इस पुत्र के मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह-रहकर यहां एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं। सबरीमाला का नाम शबरी के नाम पर पड़ा है। वही शबरी जिसने भगवान राम को जूठे फल खिलाए थे और राम ने उसे नवधा-भक्ति का उपदेश दिया था।

बताया जाता है कि जब-जब ये रोशनी दिखती है इसके साथ शोर भी सुनाई देता है। भक्त मानते हैं कि ये देव ज्योति है और भगवान इसे जलाते हैं। मंदिर प्रबंधन के पुजारियों के मुताबिक मकर माह के पहले दिन आकाश में दिखने वाले एक खास तारा मकर ज्योति है। कहते हैं कि अयप्पा ने शैव और वैष्णवों के बीच एकता कायम की। उन्होंने अपने लक्ष्य को पूरा किया था और सबरीमाल में उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

यह मंदिर पश्चिमी घाटी में पहाड़ियों की श्रृंखला सह्याद्रि के बीच में स्थित है। घने जंगलों, ऊंची पहाड़ियों और तरह-तरह के जानवरों को पार करके यहां पहुंचना होता है इसीलिए यहां अधिक दिनों तक कोई ठहरता नहीं है। यहां आने का एक खास मौसम और समय होता है। जो लोग यहां तीर्थयात्रा के उद्देश्य से आते हैं उन्हें इकतालीस दिनों का कठिन वृहताम का पालन करना होता है। तीर्थयात्रा में श्रद्धालुओं को ऑक्सीजन से लेकर प्रसाद के प्रीपेड कूपन तक उपलब्ध कराए जाते हैं। दरअसल, मंदिर नौ सौ चौदह मीटर की ऊंचाई पर है और केवल पैदल ही वहां पहुंचा जा सकता है।

एक अन्य कथा के अनुसार पंडालम के राजा राजशेखर ने अय्यप्पा को पुत्र के रूप में गोद लिया। लेकिन भगवान अय्यप्पा को ये सब अच्छा नहीं लगा और वो महल छोड़कर चले गए। आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर पंडालम राजमहल से अय्यप्पा के आभूषणों को संदूकों में रखकर एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जो नब्बे किलोमीटर की यात्रा तय करके तीन दिन में सबरीमाला पहुंचती है। कहा जाता है इसी दिन यहां एक निराली घटना होती है। पहाड़ी की कांतामाला चोटी पर असाधारण चमक वाली ज्योति दिखलाई देती है।

पंद्रह नवंबर का मंडलम और चौदह जनवरी की मकर विलक्कू, ये सबरीमाला के प्रमुख उत्सव हैं। मलयालम पंचांग के पहले पांच दिनों और विशु माह यानी अप्रैल में ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं। इस मंदिर में सभी जाति के लोग जा सकते हैं, लेकिन दस साल से पचास साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर मनाही है। सबरीमाला में स्थित इस मंदिर प्रबंधन का कार्य इस समय त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड देखती है।

18 पावन सीढ़ियां

चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियों को पार करना पड़ता है, जिनके अलग-अलग अर्थ भी बताए गए हैं। पहली पांच सीढ़ियों को मनुष्य की पांच इन्द्रियों से जोड़ा जाता है। इसके बाद वाली 8 सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाता है। अगली तीन सीढ़ियों को मानवीय गुण और आखिर दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है।

इसके अलावा यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीजें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

कैसे पहुंचें मंदिर?

*तिरुअनंतपुरम से सबरीमाला के पंपा तक बस या निजी वाहन से पहुंचा जा सकता है।

*पंपा से पैदल जंगल के रास्ते पांच किलोमीटर पैदल चलकर 1535 फीट ऊंची पहाड़ियों पर चढ़कर सबरिमला मंदिर में अय्यप्प के दर्शन प्राप्त होते हैं।

*रेल से आने वाले यात्रियों के लिए कोट्टयम या चेंगन्नूर रेलवे स्टेशन नज़दीक है। यहां से पंपा तक गाड़ियों से सफर किया जा सकता है।

*यहां से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट तिरुअनंतपुरम है, जो सबरीमला से कुछ किलोमीटर दूर है।

सबरीमाला मंदिर में कौन से भगवान है?

सबरीमला में भगवान अयप्पन का मंदिर है। शबरी पर्वत पर घने वन हैं। इस मंदिर में आने के पहले भक्तों को ४१ दिनों का कठिन व्रत का अनुष्ठान करना पड़ता है जिसे ४१ दिन का 'मण्डलम्' कहते हैं

सबरीमाला में महिलाओं का प्रवेश वर्जित क्यों है?

सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने उच्चतम न्यायालय को बताया था कि 10 से 50 वर्ष की आयु तक की महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं. बता दें कि इस प्राचीन मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल तक की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है.

भगवान अयप्पा कौन है?

भगवान अयप्पा जगपालनकर्ता भगवान विष्णु और शिवजी के पुत्र हैं। दरअसल, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु जब प्रकट हुए, तब शिवजी उनपर मोहित हो गए और उनका वीर्यपात हो गया। इससे भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। भगवान अयप्पा की पूजा सबसे अधिक दक्षिण भारत में होती है।

सबरीमाला मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

ऐसा माना जाता है कि भगवान अयप्पा का जन्म भगवान शिव और विष्णु (मोहिनी अवतार) के मिलन से हुआ था, और उन्हें हरिहरपुत्र के नाम से भी जाना जाता है। सबरीमाला मंदिर को भगवान अयप्पा का विनम्र निवास माना जाता है , यही कारण है कि इसे दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।