- तनों पत्तियों एवं बालियों पर बहुत सारे अण्डाकार स्लेटी धब्बे दिखाई देते है जो बाद में भूरे हो जाते है।
- धब्बे मिलकर बड़े धब्बे बन जाते है।
- पौधा उकठकर मर जाते है।
- बालियों का विकास रूक जाता है।
- बालियों में दाने नहीं बनते है।
- फसल की किसी भी अवस्था में यह रोग हो सकता है।
- दाने की गुणवत्ता कम हो जाती है।
- थाईरम 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित करें या कार्बेंडाजिम 1.5 ग्रा./ कि.ग्रा. बीज से उपचारित करें।
- मेनेकोजेब 0.25 प्रतिशत की दर से 10 से 15 दिन के अंतराल में लक्षण दिखते ही छिड़काव करें।
- प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।
- स्वच्छ खेती करें।
- फसल चक्र अपनाए।
- रोपण की तिथि में बदलाव करें।
- उचित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करें।
- उपयुक्त जल प्रबंधन करें।
- पोटाश की कमी की पूर्ति के लिए पोटाश युक्त उर्वरकों का उपयोग करें।
- उष्नकटी बन्धी क्षेत्र में टंग्रो वायरस सबसे मुख्य धान का रोग है।
- प्रभावित पौधे छोटे रह जाते है और कल्ले की संख्या में कमी हो जाती है।
- पत्तियां छोटी हो जाती है।
- पुरानी पत्तियों के किनारे से पत्तियों का रंग हरे से हल्का पीला,हल्का पीला से नांरगी पीला एवं नांरगी पीला से भूरा पीला हो जाता है।
- सामान्यत:प्रभावित पौधे पकने तक जीवित रहते है।
- बालियों नहीं बनती है।
- जितना छोटा पौधा रहता है उतना ही अधिक संक्रमण होता है।
- नर्सरी :कार्बोफ्यूरान के दाने 1 कि.ग्रा. ( सक्रिय तत्व) प्रति हेक्टेयर का भुरकाव करें।
- कल्ले बनने के पहले और कल्ले आने के मध्य : कार्बोफ्यूरान के दाने 1 कि.ग्रा. ( सक्रिय तत्व) प्रति हेक्टेयर का भुरकाव करें। या मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव 0.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व /हे करें।
- रोपणी से पहले प्रभावित पौधों को अलग कर दे।
- प्रभावित पौधों को अलग कर नष्ट कर दे और अतिरिक्त नत्रजन भरवाई के लिए डाले।
- रोग फूल आने के बाद में दिखता है।
- इस रोग में बालियों में दाने हरे काले हो जाते है।
- संक्रमित दाने छिद्र युक्त चुर्ण से ढके रहते है।
- हवा से उड़कर यह स्वस्थ फूलों को भी संक्रमित कर देते है।
- अधिक संक्रमण होने पर सारे दाने खराब हो जाते है।
- प्रोपेकोनोज़ोल ( टिल्ट) 1 मि.ली. प्रति लीटर या क्लोरोथोलोनिल 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से फूल निकलने समय छिड़काव करें।
- दूसरा छिड़काव फूल पूरी तरह से आने के बाद करें।
- पोटाश उर्वरकों को डाले।
- दो से तीन साल के लिए फसल चक्र अपनाए।
- गहरी जुताई से भूमि में गिरे स्केलोरेशिया नष्ट हो जाते है।
- संक्रमित दाने एवं पौधों को नष्ट करें।
- संक्रमित पौधों से बीज न इकटठा करें।
- बाढ़ आने पर इस रोग की संभावना होती है।
- इस रोग में पत्तियों पर पानीदार धब्बे बनते है।
- धब्बों के आसपास चिपचिपी बूंदे जमा होती है।
- इनकी पत्तियां पीला से नांरगी भूरी हो जाती है।
- छोटे धब्बे मिलकर पत्तियों की सतह पर बड़े धब्बे बन जाते है।
- रोग के लक्षण दो भागों में दिखाई देते है। क्रेसिक फेस ब्लाइट फेस
- क्रेसिक भाग पौधे की प्रांरभिक अवस्था में मुरझााकर सुख जाते है।
- बाद की अवस्था में ब्लाइट फेस के लक्षण दिखते है जो पत्ती के ऊपर और किनारे में दिखाई पड़ते है।
- धीरे धीरे बढ़कर बड़े एवं लम्बे धब्बे बन जाते है।
- जल्दी ही धब्बे पीले से सफेद हो जाते है।
- 5 ग्राम स्ट्रेपटोसाइक्लीन 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से रोग की शुरूवात में छिड़काव करें।
- बाद में 09-12 दिन के अंतराल से छिड़काव करें।
- रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें।
- बाढ़ आने पर इस रोग की संभावना होती है।
- इस रोग में पत्तियों पर पानीदार धब्बे बनते है।
- धब्बों के आसपास चिपचिपी बूंदे जमा होती है।
- इनकी पत्तियां पीला से नांरगी भूरी हो जाती है।
- छोटे धब्बे मिलकर पत्तियों की सतह पर बड़े धब्बे बन जाते है।
- रोग के लक्षण दो भागों में दिखाई देते है। क्रेसिक फेस ब्लाइट फेस
- क्रेसिक भाग पौधे की प्रांरभिक अवस्था में मुरझााकर सुख जाते है।
- बाद की अवस्था में ब्लाइट फेस के लक्षण दिखते है जो पत्ती के ऊपर और किनारे में दिखाई पड़ते है।
- धीरे धीरे बढ़कर बड़े एवं लम्बे धब्बे बन जाते है।
- जल्दी ही धब्बे पीले से सफेद हो जाते है।
- 15 ग्राम स्ट्रेपटोसाइक्लीन 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से रोग की शुरूवात में छिड़काव करें।
- बाद में 09-12 दिन के अंतराल से छिड़काव करें।
- मध्यम प्रतिरोधक एवं सहनशील किस्में जैसे गोविंद, पंत धान-4, पंत धान-10, पंत धान-12, आई.आर.-8,आई.आर.-20ए बाला,रत्ना, जया इत्यादि।
- रोग मुक्त फसल से बीज लें।
- मिट्टी परीक्षण के बाद नत्रजन की संतुलित मात्रा विभाजित करके दें।
- यह रोग जस्ते की कमी से होता है।
- नर्सरी में पौधे पीले पड़ते है।
- पत्तों के बीच वाली शिरा के पास पीलापन दिखाई देता है।
- पौधों की बढ़वार रूक जाती है।
- पत्ते सूख जाते है।
- बीज को बोने से पहले रात भर जिंक सल्फेट के 0.4 प्रतिशत घोल में भिगाए। या जिंक सल्फेट 5 कि.ग्रा. और चूना 2.5 कि.ग्रा. का छिड़काव करें।
- पहला छिड़काव नर्सरी में बोने के 10 दिन बाद करें।
- दूसरा छिड़काव बोनी के 20 दिन बाद करे और
- तीसरा छिड़काव रोपणी के 15 से 30 दिन बाद करें।
- रोपण के पहले 2 प्रतिशत जिंक ऑक्साइड के घोल में रोपा को डुबाये।
- रोपा को बोने से पहले 1 से 2 मिनट तक जिंक सल्फेट के 0.2 प्रतिशत घोल में भिगाए।
- यह रोग कल्ले बनते से बालियां आने तक हो सकता है।
- इससे तने चटकते है।
- पत्तियों पर सफेद अनिश्चित गहरे भूरे पत्ते के सिरे हो जाते है।
- पत्तियां नोक से अन्दर की ओर सूखने लगती है।
- बालियों में दानों का विकास नहीे होता।
- लक्षण दिखते ही प्रोपोकेनोजॉल ( टिल्ट) 1 लीटर /हे या कॉनटाज 2 लीटर/हे की दर से 15 दिन के अंतराल से छिड़काव करें।
- सुडोमोनास फलोरीसेन्स 10 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें एवं 100 ग्राम 6 लीटर पानी में मिलाकर रोपणी को 24 घंटे डुबाकर रखें।
- थाईरम 75 प्रतिशत से बीज उपचार करें।
- रोपाई से पहले भूमि का उपचार 25 कि.ग्रा./हे की दर से थाईरम से करें।
- प्रतिरोधक किस्मों को बोये।
- नत्रजन की मात्रा और पौधों का अंतराल घटाये।
- कटाई के बाद प्रभावित पौधों के अवशेषों को जलाए।
- खेत को खरपतवार से मुक्त रखे।
- खेत की मेढ़ों को साफ रखें।
- उर्वरकों की संतुलित मात्रा का उपयोग करें। पोटेशियम की अतिरिक्त मात्रा डाले।
सबसे छोटे वायरस का नाम क्या है?
1. क्या आप जानते हैं कि सबसे छोटा वायरस टोबैको नेक्रोसिस वायरस (Tobacco necrosis virus) है जिसका परिमाण लगभग 17 nm होता है.
सबसे बड़ा विषाणु कौन सा है?
Solution : पॉक्स विषाणु सबसे बड़ा विषाणु है, जो चेचक फैलाता है।
सबसे छोटा बैक्टीरिया कौन सा है?
सही उत्तर माइकोप्लाज्मा है। सबसे छोटा ज्ञात प्रोकैरियोटिक जीव माइकोप्लाज्मा है। माइकोप्लाज्मा सबसे छोटे मुक्त जीव हैं और बैक्टीरिया के सबसे सरल माने जाते हैं। वे जीवाणु वर्ग मोलिक्यूट्स से संबंधित हैं, जिनके सदस्य कोशिका भित्ति की कमी और उनके प्लाज्मा जैसे रूप से प्रतिष्ठित हैं।
विषाणु की खोज कब हुई थी?
विषाणु का अंग्रेजी शब्द वाइरस का शाब्दिक अर्थ विष होता है। सर्वप्रथम सन 1716 में डाक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि चेचक, विषाणु के कारण होता है।