संचार के माध्यम कौन कौन से हैं? - sanchaar ke maadhyam kaun kaun se hain?

जनसंचार के माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग कोई नई बात नहीं है, परन्तु स्वतन्त्रता के बाद हिन्दी भाषा का प्रयोग राजभाषा तथा प्रयोजनमूलक हिन्दी के रूप में निरन्तर विकासमान है। जनसामान्य को उपयोगी सूचनाएं एवं खबरेें देने के लिए सदियों से सरकार एवं व्यापारी वर्ग इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। आधुनिक जनसंचार के प्रमुख माध्यम आकाशवाणी, दूरदर्शन, फिल्में, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं एवं इंटरनेट हैं। संचार के सभी माध्यमों में हिन्दी ने मजबूत पकड़ बना ली है। चाहे वह हिन्दी के समाचार पत्र हो, रेडियो हो, दूरदर्शन हो, हिन्दी सिनेमा हो, विज्ञापन हो या ओटीटी हो - सर्वत्र हिन्दी छायी हुई है।[1][2], वर्तमान समय में हिन्दी को वैश्विक संदर्भ प्रदान करने में उसके बोलने वालों की संख्या, हिदी फिल्में, पत्र पत्रिकाएँ, विभिन्न हिन्दी चैनल, विज्ञापन एजेंसियाँ, हिन्दी का विश्वस्तरीय साहित्य तथा साहित्यकार आदि का विशेष योगदान है। इसके अतिरिक्त हिन्दी को विश्वभाषा बनाने में इंटरनेट की भूमिका भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सन १९९१ में हुए उदारीकरण के बाद हिन्दी प्रेस और अन्य हिन्दी माध्यम पूरे देश में छाने लगे।[3] आज हिंदी अभिव्यक्ति का सब से सशक्त माध्यम बन गई है। हिंदी चैनलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। बाजार की स्पर्धा के कारण ही सही, अंग्रेजी चैनलों का हिंदी में रूपांतरण हो रहा है। इस समय हिंदी में भी एक लाख से ज्यादा ब्लॉग सक्रिय हैं। अब सैकड़ों पत्र-पत्रिकाएं इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।

हिंदी के वैश्विक स्वरूप को संचार माध्यमों में भी देखा जा सकता है। संचार माध्यमों ने हिंदी के वैश्विक रूप को गढ़ने में पर्याप्त योगदान दिया है।[4] भाषाएं संस्कृति की वाहक होती हैं और संचार माध्यमों पर प्रसारित कार्यक्रमों से समाज के बदलते सच को हिंदी के बहाने ही उजागर किया गया।

हिन्दी आज देशभर में आम बोलचाल की भाषा है। आज अधिकतर लोग हिंदी का प्रयोग कर रहे हैं। हिंदी आज एक ऐसी भाषा है जो दुनिया में इतने बड़े स्तर पर बोली व समझी जाती है। यह तथ्य आज सभी स्वीकार करते हैं कि हिंदी अब व्यावहारिक तौर पर इस देश की संपर्क भाषा बन चुकी है। अब तो भारत के साथ सम्पर्क रखने के लिए हिंदी की अनिवार्यता विदेशी सरकारें भी महसूस कर रही हैं। इसलिए अमेरिका, चीन, यूरोप तथा अन्य प्रमुख देशों में हिन्दी के अध्ययन की व्यवस्था की जाने लगी है। विदेशों से बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं केंद्रीय हिंदी संस्थान, विभिन्न विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थाओं में हिंदी पढने के लिए आते हैं। इसके अलावा विभिन्न विश्वविद्यालयों हिंदी विषय को लेकर बीए-एमए, करने वाले बच्चों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की पहल हिंदी भाषी नेताओं ने नहीं बल्कि महात्मा गांधी, रवीन्द्र नाथ टैगोर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और सुभाषचन्द्र बोस जैसे अहिंदी भाषी लोगों की ओर से की गई। महात्मा गांधी देशभर में अपने भाषण हिंदी या हिंदुस्तानी में ही दिया करते थे। सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की तो विभिन्न राज्यों के सैनिकों को जोड़ने का काम हिंदी के माध्यम से ही किया। गांधीजी ने आज़ादी से पहले ही विभिन्न अहिंदी भाषी राज्यों, विशेषकर दक्षिण भारत में हिंदी प्रचारिणी सभाएं बनाईं। इन सभाओं के माध्यम से हजारों हिंदीसेवी तैयार हुए जो देशभक्ति की भावना से हिंदी का प्रचार-प्रसार और शिक्षण करते थे।

हिंदी मीडिया के निम्न घटक हैं -

  1. हिंदी फ़िल्में
  2. हिंदी रेडियो
  3. हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ
  4. हिंदी टेलीविज़न
  5. हिंदी सायबर मीडिया

पत्र-पत्रिकाएँ[संपादित करें]

हिन्दी पत्रकारिता तथा भारतीय पाठक सर्वेक्षण (Indian Readership Survey) भी देखें।

भारत की स्वतंत्रता के समय बड़े या तथाकथित राष्ट्रीय समाचार पत्र अंग्रेजी मे ही छपते थे। किन्तु शिक्षा और साक्षरता के प्रसार की दिशा मे किए गए प्रयासों के फलस्वरूप यह अवधारणा बदलने लगी तथा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के अखबार पढ़ने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि होने लगी। यह प्रक्रिया दुतरफा चली। एक ओर जहां साक्षरता दर बढ़ने से हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने के इच्छुक लोगों की संख्या में वृद्धि हुई, वहीं हिन्दी अखबारों की प्रसार संख्या बढ़ने से हिन्दी के बोलचाल और प्रयोग में बढ़ोतरी हुई। हिंदी अखबारों ने नये-नये प्रयोग किए और समाचार औपचारिकता के घेरे से निकालकर उसे स्थानीय रंगत तथा रोचकता प्रदान की। जिला स्तर के विशेष संस्करण निकलने से अखबार पढ़ना केवल उच्च शिक्षित वर्ग ही नहीं बल्कि मामूली पढ़-लिखे लोगों का भी शौक बन गया। आज हालत यह है कि आमलोगों के एकत्र होने के किसी भी स्थान पर अंग्रेजी अखबार गायब हो गए हैं और ऐसे हर स्थान या केन्द्र पर हिन्दी अखबार ही पढ़ने को मिलते हैं। यही बात पत्रिकाओं के बारे में भी कही जा सकती है।

सिनेमा[संपादित करें]

हिन्दी की लोकप्रियता का पैमाना हिन्दी फिल्मों से बड़ा नहीं हो सकता जिसने देश के हर कोने में बसे लोगों के दिलों पर ही राज नहीं कर रखा है बल्कि दुनिया भर में अपना परचम फहराया है।

आकाशवाणी और रेडियो[संपादित करें]

राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को सर्वस्वीकार्य बनाने में रेडियो की उल्लेखनीय भूमिका रही है। आकाशवाणी ने समाचार, विचार, शिक्षा, समाजिक सरोकारों, संगीत, मनोरंजन आदि सभी स्तरों पर अपने प्रसारण के माध्यम से हिंदी को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है। इसमें हिंदी फिल्में और फ़िल्मी गीतों का विशेष स्थान रहा है। हिंदी फ़िल्मी गीतों की लोकप्रियता भारत की सीमाओं को पार कर रुस, चीन और यूरोप तक जा पहुंची। आकाशवाणी की विविध भारती सेवा तथा अन्य कार्यक्रमों के अन्तर्गत प्रसारित फ़िल्मी गानों नें हिंदी को देशभर के लोगों की ज़बान पर ला दिया। हिंदी को देशव्यापी मान्यता दिलाने में फिल्मों की भी महती भूमिका रही है किन्तु फिल्मों से अधिक लोकप्रिय उनके गीत रहे हैं जिन्हें जन-जन तक पहुंचाने का काम आकाशवाणी ने किया। अब वही काम निज़ी एफएम चैनल कर रहे हैं। एफएम चैनल हल्के-फुल्के कार्यक्रमों, वाद-संवाद और हास्य-प्रहसन के माध्यम से का प्रसार कर रहे हैं। इस समय आकाशवाणी के अधिकतर चैनल हिंदी में कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। रेडियो प्रसारण में हिंदी के महत्व को इसी प्रकरण से समझा जा सकता है कि जब मुम्बई में एफएम स्टेशनों के लाइसेंस दिए गए तो पहले आधे स्टेशन अंग्रेजी प्रसारण के लिए निर्धारित थे किंतु कुछ ही महीनों में वे भी हिंदी में प्रसारण करने लगे क्योंकि अंग्रजी श्रोता बहुत कम थे। मनोरंजन के अलावा आकाशवाणी के समाचार, खेल कार्यक्रम, प्रमुख खेल प्रतियोगिताओं का आंखों देखा हाल तथा किसानों, मजदूरों और बाल व महिला कार्यक्रमों ने हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ाने में बहुत बड़ा योग दिया है और आज भी दे रहे हैं।

टेलीविजन[संपादित करें]

मीडिया का सबसे मुखर, प्रभावशाली और आकर्षक माध्यम टेलीविजन माना जाता है। टेलीविजन श्रव्य के साथ-साथ दृश्य भी दिखाता है, इसलिए यह अधिक रोचक है। भारत में अपने आरंभ से लगभग ३० वर्ष तक टेलीविजन की प्रगति धीमी रही किन्तु वर्ष १९८० और १९९० के दशक में दूरदर्शन ने राष्ट्रीय कार्यक्रम और समाचारों के प्रसारण के ज़रिये हिंदी को जनप्रिय बनाने में काफी योगदान किया। वर्ष १९९० के दशक में मनोरंजन और समाचार के निज़ी उपग्रह चैनलों के पदार्पण के उपरांत यह प्रक्रिया और तेज हो गई। रेडियो की तरह टेलीविज़न ने भी मनोरंजन कार्यक्रमों में फिल्मों का भरपूर उपयोग किया और फ़ीचर फिल्मों, वृत्तचित्रों तथा फिल्मों गीतों के प्रसारण से हिंदी भाषा को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के सिलसिले को आगे बढ़ाया। टेलीविजन पर प्रसारित धारावाहिक ने दर्शकों में अपना विशेष स्थान बना लिया। सामाजिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, पारिवारिक तथा धार्मिक विषयों को लेकर बनाए गए हिंदी धारावाहिक घर-घर में देखे जाने लगे। रामायण, महाभारत हमलोग, भारत एक खोज जैसे धारावाहिक न केवल हिंदी प्रसार के वाहक बने बल्कि राष्ट्रीय एकता के सूत्र बन गए। देखते-ही-देखते टीवी कार्यक्रमों के जुड़े लोग फ़िल्मी सितारों की तरह चर्चित और विख्यात हो गए। समूचे देश में टेलीविज़न कार्यक्रमों की लोकप्रियता की बदौलत देश के अहिंदी भाषी लोग हिन्दी समझने और बोलने लगे।

‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसे कार्यक्रमों ने लगभग पूरे देश को बांधे रखा। हिन्दी में प्रसारित ऐसे कार्यक्रमों में पूर्वोत्तर राज्यो, जम्मू-कश्मीर, और दक्षिणी राज्यों के प्रतियोगियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इस तथ्य को दृढ़ता से उजागर किया कि हिंदी की पहुंच समूचे देश में है। विभिन्न चैनलों ने अलग-अलग आयु वर्गों के लोगों के लिए आयोजित प्रतियोगिताओं के सीधे प्रसारणों से भी अनेक अहिन्दीभाषी राज्यों के प्रतियोगियो ने हिन्दी में गीत गाकर प्रथम और द्वित्तीय स्थान प्राप्त किए। इन कार्यक्रमों में पुरस्कार के चयन में श्रोताओं द्रारा मतदान करने के नियम ने इनकी पहुँच को और विस्तृत कर दिया। टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित किए जा रहे तरह-तरह के लाइव-शो में भाग लेने वाले लोगों को देखकर लगता ही नहीं कि हिंदी कुछ विशेष प्रदेशों की भाषा है। हिंदी फिल्मों की तरह टेलीविजन के हिन्दी कार्यक्रमों ने भी भौगोलिक, भाषाई तथा सांस्कृतिक सीमाएँ तोड़ दी हैं।

हिन्दी समाचार भी सबसे अधिक दर्शकों द्वारा देखे-सुने जाते हैं। टीआरपी के मामले में वे अंग्रेजी चैनलों से कहीं आगे हैं। हिंदी के समाचार चैनलों की संख्या लागातार बढ़ती जा रही है। इस सन्दर्भ में यह जानना रोचक है कि स्टार, सोनी और ज़ी जैसे विदेशों से अपलिंक होने वाले चैनलों ने जब भारत में प्रसारण प्रारम्भ किया तो उनकी योजना अंग्रेजी कार्यक्रम प्रसारित करने की थी, किन्तु बहुत जल्दी उन्होने महसूस किया कि वे हिन्दी कार्यक्रमों के जरिये ही इस देश में टिक सकते हैं और वे हिंदी चैनलों में परिवर्तित होते गए। इतना ही नहीं, अंग्रेजी के कई चैनल अब लोगों को अपनी ओर अकृष्ट करने के लिये हिन्दी का प्रयोग बड़े पैमाने पर करने लगे हैं।

इन्टरनेट[संपादित करें]

जब इन्टरनेट का भारत में प्रसार शुरू हुआ तो यह आशंका व्यक्त की गई थी कि कंप्यूटर के कारण देश में फिर से अंग्रेजी का बोलबाला हो जाएगा। किन्तु यह धारणा निर्मूल साबित हुई है और आज हिंदी वेबसाइट तथा ब्लॉग न केवल धड़ल्ले से चले रहे हैं बल्कि देश के साथ-साथ विदेशों के लोग भी इन पर सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा चैटिंग कर रहे हैं। इस प्रकार इंटरनेट भी हिंदी के प्रसार में सहायक होने लगा है।

सच तो यह है कि हिंदी इस समय स्वीकार्यता के राजमार्ग पर सरपट दौड़ रही है और हिंदी अश्वमेध के घोड़ों को रोक पाना किसी के बस में नहीं है। मीडिया इस दौड़ को और गतिशील बना रहा है। आज का सच यह है कि जिस तरह हिंदी को अपने प्रसार के लिए मीडिया की ज्ज़रत है उसी तरह मीडिया को अपने विस्तार के लिए हिंदी की आवश्यकता है।

सोशल मिडिया[संपादित करें]

मीडिया ने हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सोशल मीडिया ने सार्वजनिक अभिव्यक्ति और एक बड़े समुदाय तक निडर और बिना रोक-टोक और नियंत्रण के अपनी बात, अपनी सोच और अनुभव पहुंचाना संभव बनाकर करोड़ों लोगों को एक नई ताकत, छोटी बड़ी बहसों में भागीदारी का नया स्वाद और हिम्मत दी है। दुनियाभर में आज भारतीय फिल्में व टेलीविजन कार्यक्रम देखे जाते हैं। इससे भी दुनिया में हिंदी का प्रचार-प्रसार हुआ है। सोशल मीडिया, इंटरनेट व मोबाइल के कारण आज युवा पीढ़ी इस भाषा का सबसे अधिक प्रयोग कर रही है।

विज्ञापन[संपादित करें]

हिन्दी का व्यापक प्रयोग, जनसंचार-माध्यमों की आज अनिवार्य आवश्यकता बन गई है। हिन्दी के बिना हिन्दुस्तान में जन-जन तक पहुँचना सम्भव नहीं है। शब्द-भण्डार, व्याकरण और साहित्य सभी दृष्टियों से अत्यन्त समृद्ध हिन्दी का आज के इस अर्थप्रधान युग में महत्वपूर्ण स्थान है। उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में, जहाँ भारतीय भाषाओं के प्रयोग की पूर्ण उपेक्षा की जाती थी, अब हिंदी सम्मानजनक स्थान प्राप्त करती जा रही है। रेडियो, टीवी तथा पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी में विज्ञापन देने की होड़ लगी रहती है। आकाशवाणी पर मौखिक विज्ञापन वाणी पर आश्रित होते हैं, जिसमें स्वरों का आरोह-अवरोह, शब्दों की विभिन्न भंगिमाएं, भाषा का लचीला गठन आवश्यक उपकरण हैं। यहाँ भी हिन्दी की व्यापकता, सरलता ने विज्ञापन-व्यवसाय को नई-नई ऊँचाइयाँ प्रदान की है।

हिन्दी भाषा का विज्ञापन के क्षेत्र में एक नये सिरे से प्रयोग हो रहा है, इससे हिन्दी के शब्दों की सामर्थ्य बढ़ी है। विज्ञापन ने उन्हें अपूर्व आयाम भी दिये हैं। साहित्यिक प्रयोगों से विज्ञापन में एक नवीनता, एक आकर्षक समावेश हो रहा है। हिन्दी अब साहित्य के दायरे से निकलकर व्यवहार-मूलक क्षेत्रों में भी अपनी विजय पताका फहरा रही है।

आजकल हिन्दी विज्ञापन-जगत् पर छाई हुई है तथा सभी व्यावसायिक कम्पनियाँ अपने उत्पदों का विज्ञापन हिन्दी में देने को आतुर हैं। हिन्दी में विज्ञापन रचनात्मक एवं शैली प्रधान होते हैं। विज्ञापन की भाषा सुगम, सरल एवं पठनीय होती है। वाक्य छोटे एवं बोलचाल की भाषा में आमतौर पर प्रचलित होते हैं। भाषा के पद तुकान्त, चुस्त, संक्षिप्त होते हैं। शब्दों के उच्चारण द्वारा नाटकीयता उभारी जाती है। इसके द्वारा थोड़े से शब्दों में श्रोता, पाठक तक अपना सन्देश पहुंचाया जाता है। विज्ञापनों में हिन्दी का प्रयोग, हिन्दी समाचार-पत्रों की स्थापना के समय से होने लगा था, अत: अब इनकी भाषा में स्थिरीकरण, शुद्धता एवं निखार आता गया है। विज्ञापनों की हिन्दी में प्रायः लोकप्रिय उपमाओं, अंलकारों, मुहावरों, कहावतों, तुकबन्दियों का पर्याप्त प्रयोग कर आकर्षक बनाया जाता है।

विज्ञापनों की भाषा में संवादात्मकता, नाटकीयता आदि का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होने लगा है। पद्यात्मक तुकान्त एवं लयात्मक भाषा से विज्ञापन आकर्षक लगते हैं। उपभोक्ता को तरह-तरह के प्रलोभनों द्वारा आकर्षित किया जाता है। अब ये विज्ञापन हिन्दी का पश्चिमी जगत् से परिचय करा रहे हैं। विज्ञापन की भाषा आकर्षक, प्रभावोत्पादक एवं जीवन्त होती है, इसलिए इससे उपभोक्ता आकृष्ट होता है। इसमें स्मरणयोग्य वाक्यांश, पद-बन्ध, सूत्र-निबद्ध वाक्य के कारण हिन्दी का व्यापक प्रचार-प्रसार व विकास किया जा रहा है, इससे हिन्दी की सम्प्रेषणीयता बढ़ती जा रही है।[5]

विविध माध्यम[संपादित करें]

भारतीय संसद में बोलने और तर्कवितर्क करने के लिये हिन्दी का प्रयोग पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ गया है। राजनितिक दलों की प्रेस वार्ताएँ तथा सार्वजनिक मंचों पर नेताओं के विचार अब अंग्रेजी के बजाय हिन्दी में आने लगे हैं। इसमें अहिन्दीभाषी क्षेत्रों के नेता और पार्टियाँ भी शामिल हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने एक बार कहा था कि वे प्रधानमंत्री शायद इसलिए नहीं बन पाए क्योंकि वे अच्छी हिन्दी नहीं बोल पाते थे। इसलिए अधिकांश अहिन्दीभाषी राजनेता भी राष्ट्रीय छवि बनाने के लिए हिन्दी में भाषण देने लगते हैं। आजकल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी खूब हिन्दी बोलने लगी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों ही गैर-हिन्दी भाषी प्रदेश गुजरात से आते हैं, लेकिन उनकी हिन्दी में भाषण देने की कला उनके देश भर में लोकप्रिय होने का मुख्य कारण है।

विदेशों में तथा संयुक्त राष्ट्र संघ आदि के सर्वजनिक मंचों पर अब भारत के राजनैतिक नेता एवं भारतीय प्रतिनिधि अधिक हिन्दी का प्रयोग करने लगे हैं। इसी सन्दर्भ में उल्लेखनीय है कि जनवरी २०२२ में विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर यूनेस्को ने अपनी वेबसाइट पर भारत के विश्व धरोहर स्थलों का विवरण हिंदी में जारी करने का निर्णय किया है। [6] १९१४ में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारतीय रेलवे का चरित्र अखिल भारतीय होने के कारण इसने भी हिन्दी के प्रसार में महती भूमिका निभायी है। [7]

हिन्दी को लेकर तमिलनाडु में यह धीरे-धीरे बदलाव हुआ है। १९८० के दशक में निजी स्कूलों में हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर पढ़ाया जाने लगा। उनका कहना था कि जो लोग हिन्दी नहीं जानते हैं और तमिलनाडु से बाहर रहते हैं तो उनका बने रहना बहुत मुश्किल होगा। कुछ समय पूर्व तमिलनाडु में एक जनमत सर्वेक्षण किया गया कि हिन्दी सीखने की क्या जरूरत है? अधिकांश छात्रों ने तमिल और अंग्रेजी के बाद हिन्दी को तीसरी भाषा के तौर पर सीखने में रुचि दिखाई। ऐसे सर्वेक्षणों के आधार पर तमिल छात्रों ने माना कि आजकल हिन्दी भाषा जानना बहुत महत्वपूर्ण है।[8]

आंकड़े[संपादित करें]

डिजिटल दुनिया में हिंदी की मांग अंग्रेजी की तुलना में पांच गुना ज्यादा तेज है। अंग्रेजी की तुलना में हिंदी 5 गुना तेजी से बढ़ रही है। भारत में हर पांचवा इंटरनेट प्रयोगकर्ता हिंदी का उपयोग करता है। देश में जहाँ हिंदी सामग्री की डिजिटल मीडिया में खपत 94 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, वहीं अंग्रेजी सामग्री की खपत केवल 19 प्रतिशत की दर से ही बढ़ी है।

आज स्मार्टफोन के रूप में हर हाथ में एक तकनीकी डिवाइस मौजूद है और उसमें हिंदी। सभी आपरेटिंग सिस्टमों में हिंदी में संदेश भेजना, हिंदी की सामग्री को पढ़ना, सुनना या देखना लगभग उतना ही आसान है जितना अंग्रेजी की सामग्री को। हालांकि कंप्यूटरों पर भी हिंदी का व्यापक प्रयोग हो रहा है और इंटरनेट पर भी, लेकिन मोबाइल ने हिंदी के प्रयोग को अचानक जो गति दे दी है उसकी कल्पना अभी पांच साल पहले तक किसी ने नहीं की थी। इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं की सामग्री की वृद्धि दर प्रभावशाली है। अंग्रेजी के 19 प्रतिशत वार्षिक के मुकाबले भारतीय भाषाओं की सामग्री 90 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है।

दूसरी ओर भारतीयों में हिंदी के प्रति रुझान बढ़ा है। भारत में 50 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं। जबकि करीब 21 प्रतिशत भारतीय हिंदी में इंटरनेट का प्रयोग करना चाहते हैं। भारतीय युवाओं के स्मार्टफोन में औसतन 32 एप होते हैं, जिसमें 8-9 हिंदी के होते हैं। भारतीय युवा यूट्यूब पर 93 फीसद हिंदी वीडियो देखते हैं। सितम्बर २०२१ में आयी एक रपट के अनुसार कू (Koo) हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ माइक्रोब्लॉगिंग साइट बन गया है। [9]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. The rise and rise of Hindi: How India’s most spoken language is finding new takers
  2. More paid subscribers, increase in Hindi content: Inside India’s OTT market
  3. Looking back: How liberalisation shaped the Hindi press
  4. Hindi might not be the national language – but it is growing rapidly across India
  5. विज्ञापनों में हिन्दी (विश्वबन्धु)
  6. https://navbharattimes.indiatimes.com/india/unesco-has-decided-to-release-the-hindi-description-of-indian-world-heritage-sites-on-the-website/articleshow/88838273.cms यूनेस्को ने भारतीय विश्व धरोहर स्थलों का हिन्दी विवरण वेबसाइट पर जारी करने का निर्णय लिया]
  7. भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार में रेलवे की भूमिका
  8. दक्षिण में भी हो रहा है हिन्दी का विस्तार
  9. Koo बन रहा नम्बर 1 हिंदी माइक्रोब्लॉगिंग प्लैटफॉर्म, कुल 1 करोड़ यूजर्स में से आधे कर रहे हिंदी में बात

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • हिन्दी पत्रकारिता
  • हिन्दी सिनेमा
  • भारतीय मीडिया
  • भारतीय पाठक सर्वेक्षण (Indian Readership Survey)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • हिन्दी पत्रकारिता (गूगल पुस्तक ; लेखक - कृष्णबिहारी मिश्र)
  • हिंदी भाषा के विकास में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान (प्रो.ऋषभदेव शर्मा)
  • Politics after Vernacularisation: Hindi Media and Indian Democracy
  • मीडिया और हिन्दी की बदलती प्रवृत्तियाँ (रवीन्द्र जाधव और केशव मोरे)
  • Hindi's meteoric rise
  • Localization is the key to success for tech and media players in India

संचार माध्यम कौन कौन से हैं?

जी, अखबार, रेडियों, टेलीविजन, फोन, इंटरनेट आदि को मीडिया की श्रेणी में रखा जाता है। मीडिया का अर्थ होता है संचार माध्यम

संचार का सबसे प्रमुख प्रकार कौन सा है?

इस संचार में हम जो कुछ भी कहते हैं, वह किसी एक या दो व्यक्ति के लिए न होकर पूरे समूह के लिए होता है। समूह संचार का उपयोग समाज और देश के सामने उपस्थित समस्याओं को बातचीत और बहुतमुबाहिसे के ज़रिये हल करने के लिए होता है। संचार का सबसे महत्त्वपूर्ण और आखिरी प्रकार है-जनसंचार (मास कम्युनिकेशन)।

चार संचार माध्यम के नाम क्या है?

हिंदी फ़िल्में.
हिंदी रेडियो.
हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ.
हिंदी टेलीविज़न.
हिंदी सायबर मीडिया.

जनसंचार के प्रमुख माध्यम कितने हैं?

जनसंचार के दो माध्यम है , परंपगत माध्यम और आधुनिक माध्यम