संघर्ष प्रबंधन से आप क्या समझते हैं - sangharsh prabandhan se aap kya samajhate hain

पूंजीवादी औद्योगिक अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता औद्योगिक संघर्ष है। इसका तात्पर्य मालिकों और श्रमिकों के मध्य होने वाले मतभेदों से है जिनका परिणाम हड़ताल, तालाबंदी, काम की धीमी गति, घेराव तथा इस प्रकार की अन्य समस्याओं के रूप में सामने आता है। अत: औद्योगिक संघर्ष वह मतभेद है जो रोजगार देने या न देने अथवा रोजगार की शर्तों या श्रम की दशाओं के सम्बन्ध में विभिन्न मालिकानों के मध्य या विभिन्न श्रमिकों के मध्य या श्रमिकों और मालिकानों के मध्य होता है।

दूसरे शब्दों में श्रमिकों व नियोक्ताओं के मध्य श्रमिकों को रोजगार या उनकी बेरोजगारी की दशाओं से संबंधित असहमति को निर्देशित करता है। अधिकांश रूप से उत्पन्न होने वाले संघर्ष, मंहगाई भत्ता, बोनस, श्रमिकों की पदच्युति अथवा सेवामुक्ति, अवकाश एवं छुट्टियों, सेवानिवृत्ति लाभों और मकान किराया एवं अन्य भत्तों से संबद्ध हो सकते हैं।

संघर्ष प्रबंधन की विशेषताएँ

  1. औद्योगिक संघर्ष में विभिन्न पक्षकारों के बीच होते हैं : जैसे - मालिकों के मध्य मालिकों एवं श्रमिकों के मध्य, श्रमिकों एवं श्रमिकों के मध्य 
  2. इन विभिन्न पक्षकारों के मध्य उत्पन्न संघर्ष तब औद्योगिक संघर्ष कहलाता है। जबकि संघर्ष का संबंध निम्न में से किसी विषय में होता है। : (अ) किसी कर्मचारी की नियुक्ति या सेवामुक्ति से सम्बन्धित हो, (ब) किसी कर्मचारी की सेवा शर्तों से सम्बन्धित हों, (स) किसी कर्मचारी की कर्य दशाओं से सम्बिन्ध् ात हो। 
  3. औद्योगिक संघर्ष को लिखित रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होती। 
  4. जिन पक्षकारों के द्वारा संघर्ष की दशायें पैदा की जाती है, उनका संघर्ष में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हित जुड़ा होता है। 
  5. संघर्ष की पक्षकारों के मध्य वास्तविक रूप से होना आवश्यक होता है। 
  6. औद्योगिक संघर्ष के अंतर्गत संघर्ष एवं उनके पक्षकार स्पष्ट होने आवश्यक हैं। 
  7. औद्योगिक संघर्ष को भूतपूर्व श्रमिक द्वारा भी प्रस्तुत किया जा सकता है। 
  8. औद्योगिक संघर्ष उद्योग में अव्यवस्था के कारण उत्पन्न होते हैं। 

संघर्ष के प्रकार

जब संघर्ष व्यापक रूप धारण कर लेता है तब इसकी परिणिति हड़ताल प्रदर्शन, धरना आदि के रूप में सामने आती हैं। इसी प्रकार उपर्युक्त सभी अवधारणा, औद्योगिक संघर्ष के अंग हैं। आइये अध्ययन की सुविधा हेतु इनका क्रमवार अध्ययन करें :-

वस्तुत: हड़ताल में श्रमिकों द्वारा अस्थाई रूप से कार्य करना बंद कर दिया जाता है। इसका उद्देश्य अपने परिवादों का प्रकट करना अथवा अपनी किन्हीं मांगों को मनवाने के लिए दबाव डालना ही प्रमुख होता है। 

    संघर्ष से लाभ तथा हानि - एक विमर्श

    औद्योगिक संघर्ष के परिणाम के सम्बन्ध में दो प्रकार के मत हैं।कुछ विद्वानों का ऐसा मत है कि इसके परिणाम अच्छे होते हैं, इससे श्रमिकों की कार्यदशाओं में सुधार होता है। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का कहना है कि औद्योगिक विवादों के कारण उत्पादन मात्रा में कमी आ जाती है और इससे लाभों में हानि होती है। औद्योगिक संघर्ष के सम्बन्ध में दोनों प्रकार के विचारकों के मत एकांगी है। इससे लाभ भी होता है और हानियॉं भी होती हैं। यहॉं हम औद्योगिक संघर्ष से होने वाले लाभ और हानि दोनों मतों के सम्बन्ध में क्रमश: विमर्श करेंगे :-

    प्रथम विमर्श से हम औद्योगिक संघर्ष से होने वाले लाभों के सम्बन्ध में चर्चा करेंगे -

    औद्योगिक श्रमिक जिन कारखानों में कार्य करते है उनकी दशाएं अत्यन्त खराब होती हैं और इनसे श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।वहॉं अत्यन्त गन्दगी, रोशनी और प्रकाश की समुचित व्यवस्था का अभाव, खाद्य पदार्थों का अभाव और अस्वाथ्यकार खाद्यपदार्थ, विश्रामगृह की बुरी हालत, मूत्रालय और शौचालय आदि की अव्यवस्था रहती है। हड़तालों की सहायता से इन बुरी अवस्थाओं में सुधार लाया जाता है। और श्रमिकों के लिए काम करने की स्वास्थ दशाओं का सृजन किया जाता है।औद्योगिक संघर्षों के कारण श्रमिकों को आर्थिक लाभ होता है। इससे उनकी मजदूरी तथा मॅंहगाई भत्ते में वृद्धि होती है और बोनस की उपयुक्त सुविधा प्रदान की जाती है।

    औद्योगिक संघर्षों के कारण श्रमिकों के जीवन शैली में परिवर्तन आता है, अद्धिाक मजदूरी मिलती है, आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। इसका परिणाम यह होता है कि श्रमिकों के रहन सहन के स्तर में उन्नति होती है। औद्योगिक क्षेत्रों में होने वाले संघर्षों के पूर्व श्रमिकों को उद्योग में अधिक घण्टों तक काम करना पड़ता था। इसके द्वारा श्रमिक को अपने काम के घण्टों में कमी करने में मदद मिलती है। साथ ही काम के मध्य में अवकाश आदि की उचित व्यवस्था करने में भी मदद मिलती है।

    औद्योगिक संघर्षों के कारण औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के कार्य की दशाओं में सुधार आता है। उनको आर्थिक लाभ होता है, उनका जीवन-स्तर उन्नत होता है तथा काम के घण्टों में कमी होती है। इस सब का परिणाम यह होता है कि श्रमिकों की कुशलता और कार्य क्षमता में वृद्धि होती है।

    औद्योगिक संघर्षों का सबसे अच्छा परिणाम यह होता है कि इससे श्रमिकों में पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास होता है। जिससे इनमें एकता की भावना का विकास होता है। इस एकता का परिचय वे श्रम संघ के माध्यम से देते हैं।इससे श्रम सघ आंदोलन को भी प्रोत्साहन मिलता है। साथ ही, श्रमिक संघों में अधिक दृढ़ता का विकास होता है। इसके कारण श्रमिकों के प्रतिनिधियों को उद्योगों के प्रबन्ध में भागीदार का अधिकार मिल जाता है। इससे श्रमिकों को सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि वे प्रबन्ध् ा में होने के कारण अपनी समस्याओं को स्वयं ही सुलझा लेते है।। इसमें इनके शोषण का अन्त तो नहीं होता किन्तु श्रमिकों के शोषण में कमी आ जाती है। इन्हें अनेक प्रकार की सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं तथा इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि उद्योगों के प्रबन्धकों में जागरूकता का विकास हुआ है। आज वे श्रमिकों के साथ दुव्र्यवहार और उनका अनावश्यक शोषण नहीं कर सकते। वे श्रमिकों की समस्याओं को उपेक्षा और उदासीनता की दृष्टि से नहीं देख सकते हैं।

    जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार जहॉं एक ओर लाभ है तो दूसरी ओर हानि। औद्योगिक संघर्षों के कारण प्रमुख रूप से जो हानियॉ हैं वे अग्रलिखित हैं -

    औद्योगिक संघर्षों के कारण हड़ताल और तालाबन्दी होती है इससे श्रमिकों को गम्भीर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संघर्ष के कारण मजदूरों तथा उनके परिवार को निम्न हानियॉं उठानी पड़ सकती हैं।

    1. इसके परिणाम स्वरूप श्रमिकों की आय में कमी आती है, जिसके कारण उसका पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है वह अपने को आर्थिक संकट से घिरा हुआ पाता है। इससे उसके जीवन यापन के स्तर में गिरावट तो आती ही है साथ ही उसका और पूरे परिवार का स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित होता है।
    2. हड़ताल के समय का पारिश्रमिक व्यर्थ में ही चला जाता है। जिस समय में श्रमिक हड़ताल करता है वहसमय दुबारा लौटकर नहीं आता। बेकार बैठे रहने से श्रमिकों की कार्यक्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 
    3. हड़ताल और मांगों के प्रदर्शन में श्रमिकों को लाठी और गोली खानी पड़ती है तथा कभी कभी उन्हें अपनी बलि भी चढ़ानी पड़ती है। 
    4. हड़ताल के कारण श्रमिक को णग्रस्तता का भी शिकार होना पड़ता है क्योंकि हड़ताल के समय मजदूरी नहीं मिलती इसलिए अपने स्वयं के और परिवार के भरण पोषण के लिए उसे उधार लेना पड़ता है। 
    5. पारिवारिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है । भोजन के अभाव में परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है और वे बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। 
    6. अनेक हड़तालें असफल हो जाती हैं हड़तालों की इस असफलता से श्रमिकों का नैतिक पतन होता है। साथ ही उनमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। 
    7. श्रमिक श्रम संघों के प्रति अपना विश्वास समाप्त कर देते हैं। 
    8. श्रमिकों में एकता की भावना में कमी आती है, श्रमिकों की छॅटनी हो जाती है तथा इससे बेकारी की समस्या और भी उग्र हो जाती है। 
    9. संघर्षों के कारण सबसे ज्यादा हानि उद्योगपतियों को चुकानी पड़ती है। उद्योगपतियों को जो कीमत चुकानी पड़ती है उसमें उत्पादन में कमी, बिक्री में कमी, बिक्री कम हो जाने से बाजार छिन्न भिन्न हो जाना, इस प्रकार श्रम संघों के प्रति जनता विश्वास व्यक्त करती है और उत्पादकों के प्रति विश्वास में कमी आती है। 
    10. अत: मालिकों के नैतिक प्रतिष्ठा में कमी हो जाती है। औद्योगिक अशान्ति का जन्म होता है, जिससे सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। 
    11. हड़ताल और तालाबन्दी के परिणामस्वरूप अनुशासनहीनता में वृद्धि होती है, और श्रम तथा पूंजी के बीच घृणा का वातावरण पैदा हो जाता है जिससे वर्ग संघषो को प्रोत्साहन मिलता है। 

    संघर्षों के कारण श्रमिक और उद्योगपति को ही हानि नहीं होती अपितु इससे सर्व समाज को हानि उठानी पड़ती है। इस प्रकार संघर्ष के परिणामस्वरूप समाज को निम्न हानि उठानी पड़ती है।

    1. इससे समाज में विद्वेष और विषमता का वातावरण उत्पन्न होता है। 
    2. समाज में अनिश्चितता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है। 
    3. प्राथमिक सुविधाएं जैसे - परिवहन, जल, बिजली, आदि में हड़ताल होने से जनता को अनेक प्रकार की कठिनाइयॉं होती हैं। 
    4. हड़ताल के कारण समाज में वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हो जाती है जिससे समाज को हानि उठानी पड़ती है। 
    5. हड़ताल के कारण उत्पादन कम हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि राष्ट्रीय आय की हानि होती है।

    इस प्रकार जब किसी उद्योग में पूंजी और साधन पूर्णरूप से हड़ताल या तालाबन्दी से निष्क्रिय कर दिये जाते हैं तब इसका प्रभाव राष्ट्रीय लाभांश पर पड़ता है। जिससे अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाती है और देश का विकास रूक जाता है।

    संघर्ष के रोकथाम हेतु सुझाव

    इस सम्बन्ध में निम्न सुझावों की सहायता से संघर्षों को कम करने में मदद सहायता मिल सकती है :-

    1. श्रम संघों की स्थापना 

    कुशल एवं प्रभावी श्रम संघों की स्थापना के द्वारा औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले संघर्षों को कह करके शान्ति की स्थापना का प्रयास किया जा सकता है। इससे सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि पारस्परिक सम्बन्ध् ाों की स्थापना होगी। परिणामस्वरूप इन दोनों के बीच पाए जाने वाले पारस्परिक मतभेदों को समाप्त किया जा सकता है। यद्यपि श्रम संघों में अनेक दोष हैं, फिर भी इन दोषों को समाप्त करके शक्तिशाली श्रमसंघों की स्थापना की जा सकती है। इससे औद्योगिक अशान्ति में कमी आएगी।

    उ़द्योगपति तो शक्तिशाली है ही साथ ही श्रम संघों की स्थापना से श्रमिकों में शक्ति का संचार हो जायेगा। इस शक्ति सन्तुलन के परिणामस्वरूप मालिकों और श्रमिकों के बीच में समझौता होगा और भविष्य में यदि किसी भी प्रकार का मतभेद होगा तो श्रम संघ और उद्योगपति मिलकर समस्याओं का समाधान कर लेंगे। इससे भविष्य में किसी प्रकार के संघर्ष की गुंजाइश नहीं रहेगी। इस प्रकार शक्तिशाली श्रम संघों की सहायता से संघर्ष को निपटाने में मदद मिलेगी।

    2. कार्य समितियॉं

    इसे मालिक-मज़दूर समितियों के नाम से भी जाना जाता है। संघर्ष को सुलझाने में ये समितियों महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करती हैं। शाही श्रम आयोग के अनुसार औद्योगिक विवादों को समाप्त करने में इन समितियों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इस प्रकार की संस्थाएं विश्व के अन्य देशों डेनमार्क, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, इटली, हंगरी, पोलैण्ड, नार्वे, चेकोस्लोवाकिया में भी हैं। इन संस्थाओं का निर्माण मुख्यरूप से निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया गया है-

    1. औद्योगिक विवादों और संघर्ष को समाप्त करना। 
    2. श्रमिकों और पूंजीपतियों के बीच असहयोगात्मक वातावरण समाप्त करना, और 
    3. उद्योगों में नियमों का पालन करना। 

    इस प्रकार मालिक-मज़दूर समितियॉं, औद्योगिक विवादों के सुलझाने में जो प्रमुख कार्य करेंगे, वे इस प्रकार हैं -

    1. मान्यता प्राप्त मालिकों के संघ और श्रमिकों के संघ के बीच समझौते की शर्तों को लागू करना। 
    2. श्रमिकों और मालिकों के बीच जो गलतफहमियों हो जाती है, उन्हें दूर करना। 
    3. श्रमिकों में उनकी दशाओं और कार्य के प्रति रूचि तथा उत्तरदायित्व की भावना का प्रसार करना। 
    4. मालिकों और श्रमिकों के बीच पारस्परिक सहयोग को बनाए रखना साथ ही दिन प्रतिदिन जो समस्याएं आये उन पर विचार विनिमय करना। 
    5. श्रमिकों और मालिकों के बीच अनुशासन और उचित व्यवहार बनाए रखना। 
    6. श्रमिकों के जीवन स्तर को उन्नतिशील बनाना। 
    7. श्रमिकों को विचार विनिमय करना - काम करने की दशाएॅं, रहन सहन की दशाएॅं, कल्याण की दशाएॅं, मजदूरी भत्ता और बोनस, छुट्टियॉं और अवकाश आदि। 
    8. श्रमिकों की कार्यक्षमता को बनाए रखना और कार्य क्षमता को घटाने वाले कारकों का विश्लेषण करना। 
    9. औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि के प्रयास करना। 
    10. हड़ताल और तालाबन्दी की घटनाओं को न होने देना और यदि हो जाती है तो शीघ्र ही इनको समाप्त करने सम्बन्धी प्रयास करना। 
    11. श्रमिकों की इन समस्याओं की जानकारी उद्योगपतियों को देना और समस्याओं के समाधान का प्रयास करना। 
    12. ऐसी व्यवस्था करना जिससे कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की गारन्टी दी जा सके। 
    13. मिल में सामाजिक जीवन का विकास करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम को अपनाना। 
    14. श्रम न्यायालय के निर्णय, सरकारी आदेश, विज्ञप्ति आदि के विषय में प्रबन्धकों से विचार विमर्श करना। 
    15. यदि कोई कर्मचारी कारखाने के दैनिक जीवन और सुख सुविधाओं के सम्बन्ध में अपने सुझाव दे तो उन सुझावों पर विचार विनिमय करना। 
    16. प्रबन्धकों अथवा श्रमिकों द्वारा प्रस्तुत किसी भी मामले पर विचार विमर्श करना। वस्तुत: यदि उनको उचित स्थान प्रदान किया जाता है और भूतकाल की गलतियों को दूर करने दिया जाता है जो मालिक मजदूर समितियां औद्योगिक प्रणाली में बहुत प्रभावी व उपयोगी कार्य कर सकती है। 

    3. संयुक्त औद्योगिक परिषदें

    सयुंक्त औद्योगिक परिषदो की स्थापना द्वारा भी औद्योगिक संघर्षों को कम किया जा सकता है। ये परिषदें निम्न प्रकार की हो सकती हैं -

    1. राष्ट्रीय स्तर पर
    2. राज्य स्तर पर
    3. भिन्न भिन्न उद्योगों की भिन्न भिन्न परिषदें, और
    4. एक ही उद्योग में विभिन्न विभागों के लिए अलग अलग परिषदें।

    इन परिषदों में श्रमिक और मालिक दोनों के ही समान प्रतिनिधि होंगे। इनके माध्यम से श्रमिकों और मालिकों के बीच ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है जिससे औद्योगिक विकास में दोनों बराबर सहयोग दें। इन परिषदों के माध्यम से मालिक और श्रमिक दोनों के हितों की रक्षा का प्रयास किया जाता है। इन समितियों के समक्ष जिन विषयों पर विचार विमर्श किया जा सकता है, वे अग्रलिखित हो सकते हैं -

    1. नित्य प्रति काम करने की दशाएं और श्रमिकों की मजदूरी
    2. उद्योगों से सम्बन्धित उत्पादन
    3. श्रम की कुशलता
    4. ऑकड़े इकट्ठे करना।
    5. औद्योगिक अनुसंधान को प्रोत्साहन, और
    6. प्रबन्ध सम्बन्धी समस्याओं पर विचार करना, आदि।

    4. मजदूरी परिषदें 

    मजदूरी परिषदो की स्थापना के माध्यम से भी आद्यैागिक संघर्ष को सुलझाया जा सकता है। यह परिषद मजदूरी से सम्बन्धित समस्याओं के विभिन्न पहलुओं पर विचार करेगी। साथ ही इसका काम न्यूनतम मजदूरी की दर का निर्धारण और काम करने की दशाओं में सुधार से सम्बन्धित होता है । इसमें मालिक और मजदूर समान प्रतिनिधि होते हैं, तथा कम से कम 3 व्यक्ति बाहर से लिये जाते हैं जो इस विषय के विशेषज्ञ होते हैं।

    5. श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार

    अतिमहत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि श्रमिक हड़ताल क्यों करते हैं? यदि गंभीरता से इस प्रश्न का उत्तर ढूॅंढने का प्रयास करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि श्रमिक की आर्थिक दशा इसके मूल में है। यदि श्रमिकों को उनके काम का उचित पुरस्कार दिया जाय, उनको कार्य के समय और कार्य सेवा- मुक्त होने पर आर्थिक सुरक्षा की गारन्टी दी जाय, आवास की व्यवस्था में उचित सुधार किये जायें, काम करने के घण्टों में कमी की जाय, अवकाश और सवैतनिक छुट्टियों की व्यवस्था की जाय, उनके तथा उनके परिवार के लिए शिक्षा तथा अन्य कल्याण कार्यों की व्यवस्था की जाये, उन्हें उचित आदर और सम्मान दिया जाय तो ऐसी कोई बात नहीं है कि श्रमिक संघर्ष करने पर उतारू हों, संघर्ष को सुलझाने के लिए यह आवश्यक है कि श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया जाय।

    6. स्थायी आदेश 

    स्थायी आदेश वे हैं जो श्रमिकों और महिलाओं के सम्बन्धों पर नियंत्रण रखने से सम्बन्धित होते हैं। दिन प्रतिदिन श्रमिकों की समस्याओं में वृद्धि होती जा रही है। यदि मालिकों पर इन समस्याओं को छोड़ दिया जायगा तो इन समस्याओं का सुलझाना तो दूर रहा ये और भी उलझ जायेगी। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि सरकार श्रमिकों से सम्बन्धित नियमों का निर्माण करें। साथ ही, इन नियमों को संरक्षण प्रदान करें। स्थायी आदेशों के कारण श्रमिकों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान हो जाता है। साथ ही, मालिक भी जान जाते हैं कि उन्हें कौन सी शर्तो का पालन करना है। 

    संघर्ष प्रबंधन क्या?

    इसे समस्या से संघर्ष या समस्या समाधान के रूप में भी जाना जाता है। इसमें अन्य दूसरे लोगों के साथ मिलकर या सहयोग से समस्या के समाधान के लिए विन-विन की स्थिति को ढूँढ़ा जाता है और साथ मिलकर दोनों पक्षों की समस्याओं को एक-दूसरे की संतुष्टि के साथ दूर करते हैं ।

    संघर्ष शब्द से आप क्या समझते हैं?

    संघर्ष या द्वन्द्व (Conflict) से तात्पर्य दो या अधिक समूहों के बीच मतभेद, प्रतिरोध, विरोध आदि से है। एक ही समूह के अन्दर भी द्वन्द्व हो सकता है। इस स्थिति में अन्तःसमूह द्वन्द्व (intragroup conflict) कहते हैंसंघर्ष अपने स्वप्नों को प्राप्त करने का भी हो सकता है।

    संघर्ष से आप क्या समझते हैं संघर्ष के प्रकारों का विस्तार से वर्णन कीजिये?

    परस्पर विरोधी लक्ष्यों को लेकर घृणा, द्वेष, क्रोध, शत्रुता आदि के कारण इस प्रकार का संघर्ष हो सकता है। वैयक्तिक संघर्ष आंतरिक व बाह्य दोनों प्रकार के हो सकते हैं। जब व्यक्ति का संघर्ष स्वयं से होता है तो वह आंतरिक संघर्ष का रूप है व जब व्यक्ति का संघर्ष किसी अन्य व्यक्ति या समूह से होता है तो वह बाह्य संघर्ष का रूप है।

    संघर्ष कितने प्रकार के होते हैं?

    यह मित्रों, पारिवारिक सदस्यों, पड़ोसियों, परिचितों तथा अपरिचितों के साथ अन्तर- व्यक्तिगत संबंधों में सहयोग प्रतिस्पर्धा तथा संघर्ष के रूप में विभिन्न स्वरूपों या प्रकारों में अभिव्यक्त होता है। सामाजिक प्रक्रिया का एक विस्तृत आशय होता है।