पूंजीवादी औद्योगिक अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता औद्योगिक संघर्ष है। इसका तात्पर्य मालिकों और श्रमिकों के मध्य होने वाले मतभेदों से है जिनका परिणाम हड़ताल, तालाबंदी, काम की धीमी गति, घेराव तथा इस प्रकार की अन्य समस्याओं के रूप में सामने आता है। अत: औद्योगिक संघर्ष वह मतभेद है जो रोजगार देने या न देने अथवा रोजगार की शर्तों या श्रम की दशाओं के सम्बन्ध में विभिन्न मालिकानों के मध्य या विभिन्न श्रमिकों के मध्य या श्रमिकों और मालिकानों के मध्य होता है। Show
दूसरे शब्दों में श्रमिकों व नियोक्ताओं के मध्य श्रमिकों को रोजगार या उनकी बेरोजगारी की दशाओं से संबंधित असहमति को निर्देशित करता है। अधिकांश रूप से उत्पन्न होने वाले संघर्ष, मंहगाई भत्ता, बोनस, श्रमिकों की पदच्युति अथवा सेवामुक्ति, अवकाश एवं छुट्टियों, सेवानिवृत्ति लाभों और मकान किराया एवं अन्य भत्तों से संबद्ध हो सकते हैं। संघर्ष प्रबंधन की विशेषताएँ
संघर्ष के प्रकारजब संघर्ष व्यापक रूप धारण कर लेता है तब इसकी परिणिति हड़ताल प्रदर्शन, धरना आदि के रूप में सामने आती हैं। इसी प्रकार उपर्युक्त सभी अवधारणा, औद्योगिक संघर्ष के अंग हैं। आइये अध्ययन की सुविधा हेतु इनका क्रमवार अध्ययन करें :- वस्तुत: हड़ताल में श्रमिकों द्वारा अस्थाई रूप से कार्य करना बंद कर दिया जाता है। इसका उद्देश्य अपने परिवादों का प्रकट करना अथवा अपनी किन्हीं मांगों को मनवाने के लिए दबाव डालना ही प्रमुख होता है। संघर्ष से लाभ तथा हानि - एक विमर्शऔद्योगिक संघर्ष के परिणाम के सम्बन्ध में दो प्रकार के मत हैं।कुछ विद्वानों का ऐसा मत है कि इसके परिणाम अच्छे होते हैं, इससे श्रमिकों की कार्यदशाओं में सुधार होता है। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का कहना है कि औद्योगिक विवादों के कारण उत्पादन मात्रा में कमी आ जाती है और इससे लाभों में हानि होती है। औद्योगिक संघर्ष के सम्बन्ध में दोनों प्रकार के विचारकों के मत एकांगी है। इससे लाभ भी होता है और हानियॉं भी होती हैं। यहॉं हम औद्योगिक संघर्ष से होने वाले लाभ और हानि दोनों मतों के सम्बन्ध में क्रमश: विमर्श करेंगे :- प्रथम विमर्श से हम औद्योगिक संघर्ष से होने वाले लाभों के सम्बन्ध में चर्चा करेंगे - औद्योगिक श्रमिक जिन कारखानों में कार्य करते है उनकी दशाएं अत्यन्त खराब होती हैं और इनसे श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।वहॉं अत्यन्त गन्दगी, रोशनी और प्रकाश की समुचित व्यवस्था का अभाव, खाद्य पदार्थों का अभाव और अस्वाथ्यकार खाद्यपदार्थ, विश्रामगृह की बुरी हालत, मूत्रालय और शौचालय आदि की अव्यवस्था रहती है। हड़तालों की सहायता से इन बुरी अवस्थाओं में सुधार लाया जाता है। और श्रमिकों के लिए काम करने की स्वास्थ दशाओं का सृजन किया जाता है।औद्योगिक संघर्षों के कारण श्रमिकों को आर्थिक लाभ होता है। इससे उनकी मजदूरी तथा मॅंहगाई भत्ते में वृद्धि होती है और बोनस की उपयुक्त सुविधा प्रदान की जाती है। औद्योगिक संघर्षों के कारण श्रमिकों के जीवन शैली में परिवर्तन आता है, अद्धिाक मजदूरी मिलती है, आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। इसका परिणाम यह होता है कि श्रमिकों के रहन सहन के स्तर में उन्नति होती है। औद्योगिक क्षेत्रों में होने वाले संघर्षों के पूर्व श्रमिकों को उद्योग में अधिक घण्टों तक काम करना पड़ता था। इसके द्वारा श्रमिक को अपने काम के घण्टों में कमी करने में मदद मिलती है। साथ ही काम के मध्य में अवकाश आदि की उचित व्यवस्था करने में भी मदद मिलती है। औद्योगिक संघर्षों के कारण औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के कार्य की दशाओं में सुधार आता है। उनको आर्थिक लाभ होता है, उनका जीवन-स्तर उन्नत होता है तथा काम के घण्टों में कमी होती है। इस सब का परिणाम यह होता है कि श्रमिकों की कुशलता और कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। औद्योगिक संघर्षों का सबसे अच्छा परिणाम यह होता है कि इससे श्रमिकों में पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास होता है। जिससे इनमें एकता की भावना का विकास होता है। इस एकता का परिचय वे श्रम संघ के माध्यम से देते हैं।इससे श्रम सघ आंदोलन को भी प्रोत्साहन मिलता है। साथ ही, श्रमिक संघों में अधिक दृढ़ता का विकास होता है। इसके कारण श्रमिकों के प्रतिनिधियों को उद्योगों के प्रबन्ध में भागीदार का अधिकार मिल जाता है। इससे श्रमिकों को सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि वे प्रबन्ध् ा में होने के कारण अपनी समस्याओं को स्वयं ही सुलझा लेते है।। इसमें इनके शोषण का अन्त तो नहीं होता किन्तु श्रमिकों के शोषण में कमी आ जाती है। इन्हें अनेक प्रकार की सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं तथा इसका सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि उद्योगों के प्रबन्धकों में जागरूकता का विकास हुआ है। आज वे श्रमिकों के साथ दुव्र्यवहार और उनका अनावश्यक शोषण नहीं कर सकते। वे श्रमिकों की समस्याओं को उपेक्षा और उदासीनता की दृष्टि से नहीं देख सकते हैं। जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार जहॉं एक ओर लाभ है तो दूसरी ओर हानि। औद्योगिक संघर्षों के कारण प्रमुख रूप से जो हानियॉ हैं वे अग्रलिखित हैं - औद्योगिक संघर्षों के कारण हड़ताल और तालाबन्दी होती है इससे श्रमिकों को गम्भीर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संघर्ष के कारण मजदूरों तथा उनके परिवार को निम्न हानियॉं उठानी पड़ सकती हैं।
संघर्षों के कारण श्रमिक और उद्योगपति को ही हानि नहीं होती अपितु इससे सर्व समाज को हानि उठानी पड़ती है। इस प्रकार संघर्ष के परिणामस्वरूप समाज को निम्न हानि उठानी पड़ती है।
इस प्रकार जब किसी उद्योग में पूंजी और साधन पूर्णरूप से हड़ताल या तालाबन्दी से निष्क्रिय कर दिये जाते हैं तब इसका प्रभाव राष्ट्रीय लाभांश पर पड़ता है। जिससे अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचाती है और देश का विकास रूक जाता है। संघर्ष के रोकथाम हेतु सुझावइस सम्बन्ध में निम्न सुझावों की सहायता से संघर्षों को कम करने में मदद सहायता मिल सकती है :- 1. श्रम संघों की स्थापनाकुशल एवं प्रभावी श्रम संघों की स्थापना के द्वारा औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले संघर्षों को कह करके शान्ति की स्थापना का प्रयास किया जा सकता है। इससे सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि पारस्परिक सम्बन्ध् ाों की स्थापना होगी। परिणामस्वरूप इन दोनों के बीच पाए जाने वाले पारस्परिक मतभेदों को समाप्त किया जा सकता है। यद्यपि श्रम संघों में अनेक दोष हैं, फिर भी इन दोषों को समाप्त करके शक्तिशाली श्रमसंघों की स्थापना की जा सकती है। इससे औद्योगिक अशान्ति में कमी आएगी। उ़द्योगपति तो शक्तिशाली है ही साथ ही श्रम संघों की स्थापना से श्रमिकों में शक्ति का संचार हो जायेगा। इस शक्ति सन्तुलन के परिणामस्वरूप मालिकों और श्रमिकों के बीच में समझौता होगा और भविष्य में यदि किसी भी प्रकार का मतभेद होगा तो श्रम संघ और उद्योगपति मिलकर समस्याओं का समाधान कर लेंगे। इससे भविष्य में किसी प्रकार के संघर्ष की गुंजाइश नहीं रहेगी। इस प्रकार शक्तिशाली श्रम संघों की सहायता से संघर्ष को निपटाने में मदद मिलेगी। 2. कार्य समितियॉंइसे मालिक-मज़दूर समितियों के नाम से भी जाना जाता है। संघर्ष को सुलझाने में ये समितियों महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करती हैं। शाही श्रम आयोग के अनुसार औद्योगिक विवादों को समाप्त करने में इन समितियों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इस प्रकार की संस्थाएं विश्व के अन्य देशों डेनमार्क, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका, इटली, हंगरी, पोलैण्ड, नार्वे, चेकोस्लोवाकिया में भी हैं। इन संस्थाओं का निर्माण मुख्यरूप से निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया गया है-
इस प्रकार मालिक-मज़दूर समितियॉं, औद्योगिक विवादों के सुलझाने में जो प्रमुख कार्य करेंगे, वे इस प्रकार हैं -
3. संयुक्त औद्योगिक परिषदेंसयुंक्त औद्योगिक परिषदो की स्थापना द्वारा भी औद्योगिक संघर्षों को कम किया जा सकता है। ये परिषदें निम्न प्रकार की हो सकती हैं -
इन परिषदों में श्रमिक और मालिक दोनों के ही समान प्रतिनिधि होंगे। इनके माध्यम से श्रमिकों और मालिकों के बीच ऐसा वातावरण तैयार किया जाता है जिससे औद्योगिक विकास में दोनों बराबर सहयोग दें। इन परिषदों के माध्यम से मालिक और श्रमिक दोनों के हितों की रक्षा का प्रयास किया जाता है। इन समितियों के समक्ष जिन विषयों पर विचार विमर्श किया जा सकता है, वे अग्रलिखित हो सकते हैं -
4. मजदूरी परिषदेंमजदूरी परिषदो की स्थापना के माध्यम से भी आद्यैागिक संघर्ष को सुलझाया जा सकता है। यह परिषद मजदूरी से सम्बन्धित समस्याओं के विभिन्न पहलुओं पर विचार करेगी। साथ ही इसका काम न्यूनतम मजदूरी की दर का निर्धारण और काम करने की दशाओं में सुधार से सम्बन्धित होता है । इसमें मालिक और मजदूर समान प्रतिनिधि होते हैं, तथा कम से कम 3 व्यक्ति बाहर से लिये जाते हैं जो इस विषय के विशेषज्ञ होते हैं। 5. श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधारअतिमहत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि श्रमिक हड़ताल क्यों करते हैं? यदि गंभीरता से इस प्रश्न का उत्तर ढूॅंढने का प्रयास करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि श्रमिक की आर्थिक दशा इसके मूल में है। यदि श्रमिकों को उनके काम का उचित पुरस्कार दिया जाय, उनको कार्य के समय और कार्य सेवा- मुक्त होने पर आर्थिक सुरक्षा की गारन्टी दी जाय, आवास की व्यवस्था में उचित सुधार किये जायें, काम करने के घण्टों में कमी की जाय, अवकाश और सवैतनिक छुट्टियों की व्यवस्था की जाय, उनके तथा उनके परिवार के लिए शिक्षा तथा अन्य कल्याण कार्यों की व्यवस्था की जाये, उन्हें उचित आदर और सम्मान दिया जाय तो ऐसी कोई बात नहीं है कि श्रमिक संघर्ष करने पर उतारू हों, संघर्ष को सुलझाने के लिए यह आवश्यक है कि श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया जाय। 6. स्थायी आदेशस्थायी आदेश वे हैं जो श्रमिकों और महिलाओं के सम्बन्धों पर नियंत्रण रखने से सम्बन्धित होते हैं। दिन प्रतिदिन श्रमिकों की समस्याओं में वृद्धि होती जा रही है। यदि मालिकों पर इन समस्याओं को छोड़ दिया जायगा तो इन समस्याओं का सुलझाना तो दूर रहा ये और भी उलझ जायेगी। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि सरकार श्रमिकों से सम्बन्धित नियमों का निर्माण करें। साथ ही, इन नियमों को संरक्षण प्रदान करें। स्थायी आदेशों के कारण श्रमिकों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान हो जाता है। साथ ही, मालिक भी जान जाते हैं कि उन्हें कौन सी शर्तो का पालन करना है। संघर्ष प्रबंधन क्या?इसे समस्या से संघर्ष या समस्या समाधान के रूप में भी जाना जाता है। इसमें अन्य दूसरे लोगों के साथ मिलकर या सहयोग से समस्या के समाधान के लिए विन-विन की स्थिति को ढूँढ़ा जाता है और साथ मिलकर दोनों पक्षों की समस्याओं को एक-दूसरे की संतुष्टि के साथ दूर करते हैं ।
संघर्ष शब्द से आप क्या समझते हैं?संघर्ष या द्वन्द्व (Conflict) से तात्पर्य दो या अधिक समूहों के बीच मतभेद, प्रतिरोध, विरोध आदि से है। एक ही समूह के अन्दर भी द्वन्द्व हो सकता है। इस स्थिति में अन्तःसमूह द्वन्द्व (intragroup conflict) कहते हैं। संघर्ष अपने स्वप्नों को प्राप्त करने का भी हो सकता है।
संघर्ष से आप क्या समझते हैं संघर्ष के प्रकारों का विस्तार से वर्णन कीजिये?परस्पर विरोधी लक्ष्यों को लेकर घृणा, द्वेष, क्रोध, शत्रुता आदि के कारण इस प्रकार का संघर्ष हो सकता है। वैयक्तिक संघर्ष आंतरिक व बाह्य दोनों प्रकार के हो सकते हैं। जब व्यक्ति का संघर्ष स्वयं से होता है तो वह आंतरिक संघर्ष का रूप है व जब व्यक्ति का संघर्ष किसी अन्य व्यक्ति या समूह से होता है तो वह बाह्य संघर्ष का रूप है।
संघर्ष कितने प्रकार के होते हैं?यह मित्रों, पारिवारिक सदस्यों, पड़ोसियों, परिचितों तथा अपरिचितों के साथ अन्तर- व्यक्तिगत संबंधों में सहयोग प्रतिस्पर्धा तथा संघर्ष के रूप में विभिन्न स्वरूपों या प्रकारों में अभिव्यक्त होता है। सामाजिक प्रक्रिया का एक विस्तृत आशय होता है।
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