दुनिया की सभी भाषाओं का विकास मानव, पशु-पक्षियों द्वारा शुरुआत में बोले गए ध्वनि संकेतों के आधार पर हुआ अर्थात लोगों ने भाषाओं का विकास किया और उसे अपने देश और धर्म की भाषा बनाया। लेकिन संस्कृत किसी देश या धर्म की भाषा नहीं यह अपौरूष भाषा है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति और विकास ब्रह्मांड की ध्वनियों को सुन-जानकर हुआ। यह आम लोगों द्वारा बोली गई ध्वनियां नहीं हैं। Show
धरती और ब्रह्मांड में गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। देवों और ऋषियों ने उक्त ध्वनियों और शब्दों को पकड़कर उसे लिपि में बांधा और उसके महत्व और प्रभाव को समझा।
संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गईं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित हैं।
ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी माना है।
कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंत:स्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है। [क्या कभी संस्कृत सम्पूर्ण उत्तर भारत में आम लोगों की बोलचाल की भाषा थी ? हाल में इस विषय पर काफ़ी बातें पढ़ने सुनने में आयी थीं. यद्यपि यह एक वृहद विषय है जिस पर तरुण भटनागर ने कुछ ज़रूरी बातें की हैं।] सम्राट अशोक और संस्कृतअशोक प्राचीन काल का इकलौता ऐसा शासक है जो आम जनों और अपने राज्य के नागरिकों को सीधे सम्बोधित करते हुए काफ़ी प्रचुर मात्रा में शिलालेख, स्तंभलेख आदि लिखवाता है. रोचक बात यह है कि वह अपने राज्य के नागरिकों को जिस भाषा में सम्बोधित कर रहा है वह संस्कृत भाषा नहीं है.
दरअसल प्राचीन भारत में भाषाओं का विकास इतिहास का एक ऐसा हिस्सा है जिसके कई आयाम हैं. यह अब भी debatable है कि कब और कहाँ से हम उस दौर की एक प्रमुख भाषा जिसे प्राकृत भाषा कहते हैं, जिसका प्रयोग अशोक अपने शिलालेखों में कर रहा है , उसके विकास को देखें. प्राकृतसर्वस्व, जैन व्याकरणविद हेमचंद्र सूरी के अध्ययन, प्राकृतचंद्रिका, प्राकृतशब्दप्रदीपिका, दशरूपकावलोक तथा मार्कण्डेय जैसे प्राकृत के व्याकरणविदों के साथ-साथ प्राकृत भाषा पर लिखे और प्राकृत भाषा में लिखे तमाम ग्रंथों के अध्ययन के आधार पर पिशेल रिचर्ड का एक काम है जो इस बात को बताता है कि प्राचीन भारत की यह भाषा भले संस्कृत से अलग एक भाषा है पर इसकी उत्पत्ति के तमाम भाषा अध्ययन स्त्रोत स्पष्ट कर ही देते हैं कि इस भाषा की उत्पत्ति में संस्कृत की अहम भूमिका है और कुछ स्थानीय बोलियों के साथ मिलकर यह भाषा विकसित हुई.
वैदिक काल की भाषा क्या थी?एक तथ्य इस बात से भी उपजता है कि वैदिक काल को वैदिक साहित्य से समझने की महती आवश्यकता ने उन संस्कृतियों को नज़रंदाज़ किया जो वैदिक काल से विकसित होती दिखती हैं.
प्राकृत भाषा के विकास को ऋग्वेद के काल से विकसित होता हुआ मानने वाले कुछ अध्ययन हैं, जिनमें भाषा शास्त्र और इतिहास के कुछ साक्ष्यों के आधार पर इस भाषा के विकास की बात की गयी है. निश्चय ही यह भाषा अशोक के काल तक इतनी प्रचलित और व्याप्त रही होगी कि मगध साम्राज्य का आम नागरिक बोलचाल में संस्कृत के बनिस्बत प्राकृत भाषा का प्रयोग करता रहा होगा, जिसके कारण अशोक अपने अभिलेख प्राकृत में लिखवाता है न कि संस्कृत में. पर वहीं यह भी तो है कि मौर्यकाल वह काल भी है जब कौटिल्य का अर्थशास्त्र लिखा गया जो कि संस्कृत में है और कुछ अन्य महत्वपूर्ण संस्कृत की रचनाएँ अस्तित्व में आयीं.
गुप्तकाल के पहले संस्कृत को राजकीय भाषा की मान्यता नहीं मिली थी
परम्परा में आम लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के जो उपक्रम हुए उनमें जैन परम्परा के प्रयास बेहद महत्वपूर्ण हैं. जैन साधुओं के भ्रमण और लोगों से संवाद से लेकर गणों की स्थापना और वणिकों, श्रेष्ठियों और सार्थवाहों से लेकर तमाम क़िस्म के कर्मकारों और शिल्पियों तक जैन परम्परा के प्रेषण के तमाम उदाहरण मिलते हैं. जैन ग्रंथ संस्कृत में नहीं लिखे गएएक वशिष्ट बात यह है कि जैन ग्रंथों के मूल ग्रंथ जिन्हें ‘आगम’ कहा जाता है वे प्राकृत में लिखे गए हैं और मागधि और अर्ध-मागधि प्राकृत के प्रयोग इसमें मिलते हैं. जैन ग्रंथों की रचना आगम ग्रंथों से हुई यह बात है ही. याने विचार और परम्परा के प्रसार के लिए न सिर्फ़ अशोक को बल्कि जैन विद्वानों को भी प्राकृत भाषा सही लगती रही है. किसी एकल भाषा को किसी विचार के प्रसार के लिए अपनी विशिष्टता से युक्त होना चाहिए और यही वह बात है जिससे जैन ग्रंथों में प्रयुक्त प्राकृत को कुछ मामलों में आम प्राकृत से अलग और विशिष्ट बताया गया है.
यह भी है कि दोनों भाषाओं में यानी संस्कृत और प्राकृत में प्रचुरमात्रा में ग्रंथों का लिखा जाना इन दोनों भाषाओं को पढ़ने और जानने वाले लोगों की समाज में उपस्थिति का प्रमाण भी है. हमें यह न भूलना चाहिए कि न सिर्फ़ प्राचीन भारत में संस्कृत में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य लिखे गए बल्कि संस्कृत में तमाम ग्रंथ लिखे गए और उन्हें गाने और उनके नाट्य रूपों के मंचन के प्रमाण हैं ही.
राजकीय संरक्षण भले किसी भाषा को आम लोगों की भाषा बना पाने में मददगार न हो पर वह समाज के ताकतवर, अभिजात्य और सम्पन्न लोगों में भाषा के प्रति एक उत्साहवर्धक माहौल बनाता है. पर यह यहीं तक है, आम जीवन में भाषा के प्रसार में यह कोई महत्वपूर्ण कारक नहीं होता है. जिस तरह मध्यकाल में राजकीय भाषा होने के बावजूद तुर्क और फ़ारसी आम लोगों के बीच से हिंदी या उर्दू को हटाकर खुद को स्थापित नहीं कर पायी वैसा ही संस्कृत को मिले राजकीय प्रश्रय के साथ भी हुआ होगा कि वह राजकीय आज्ञाओं और प्रशस्तियों की भाषा होने के बावजूद भी प्राकृत भाषा के व्यापक प्रसार के लिए चुनौती न हो पायी.यहाँ यह भी है ही कि संस्कृत में लिखा गया बहुत सारा साहित्य राजकीय प्रश्रय में लिखा गया. कालिदास,क्षेमेन्द्र,राजशेखर, विशाखदत्त, बाणभट्ट आदि के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण रचनाएँ इसी तरह से आती हैं. एक रोचक बात यह है कि संस्कृत के इस साहित्य में भी कई जगहों पर आम लोगों को ऐसी भाषा बोलते हुए बताया गया है जो संस्कृत से भिन्न है और एक तरह से इस भाषा को बोलने के कारण उनका मजाक बनाया गया है एक चर्चित प्रसंग मृच्छकटिकम में शकार का है.
कई बेहद रोचक अध्ययन सातवीं सदी से इन दोनों भाषाओं के धीरे धीरे सीमित होते जाने का है और इसी के साथ हिंदी के विकसित होने को हम देखते हैं और जब एक बेहद चर्चित मानी जाने वाली ऐतिहासिक घटना के रूप में अमीर खुसरो ने इसे पहचान था, दरअसल तब तक यह पर्याप्त प्रसार पा चुकी थी. संस्कृत भाषा का पहले पहल प्रयोग कहाँ पर मिलता है?कई विद्वान इस बात पर एकमत हैं कि सँसार में संस्कृत भाषा का पहला प्रमाण सीरिया से है न कि भारतीय उपमहाद्वीप से जो इस भाषा के इतिहास को और भी प्राचीन बना देता है और इसे ऋग्वेद से प्रारम्भ करने से कहीं बहुत पहले इसके बहुत पुराने अतीत का प्रमाण भी प्रस्तुत करता है, इसके साथ विकसित इसकी दूसरी सहोदरी भाषाओं के विकास को भी.
संस्कृत की उत्पत्ति कहाँ से हुई?वर्तमान समय में प्राप्त सबसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ वेद है जो कम से कम ढाई हजार ईसापूर्व की रचना है। ऋग्वेद veda विश्व के सबसे पुराने तथा प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है। संस्कृत को पहले गीर्वाण भाषा नाम तथा भारती नाम से पुकारा या जाना जाता था। कही जगा पे गीर्वाण भारती भी बोलते थे।
संस्कृत भाषा के पहले कौन सी भाषा है?संस्कृत भाषा का मूल तमिल को माना गया है। ये ईसा से 3000 साल पहले से बोली जाती है। संस्कृत आज भी भारत की राजभाषा है।
संस्कृत भाषा की उत्पत्ति कब हुई?3500 ई. पूर्व से 500 ई. पूर्व का समय तो वैदिक संस्कृत काल के लिए और बाद का लौकिक संस्कृत काल के लिए निर्धारित करते हैं।
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