एक बार की बात है रावण विजय अभियान से लौट रहा था। रावण के पुष्पक विमान पर अनेक अपहृत सुंदरियां सवार थीं जो सभी विलाप कर रही थीं। उनका विलाप सुन कर रावण प्रसन्न हो रहा था। परम साध्वी एक ऋषि पत्नी ने
Ramayan: एक बार की बात है रावण विजय अभियान से लौट रहा था। रावण के पुष्पक विमान पर अनेक अपहृत सुंदरियां सवार थीं जो सभी विलाप कर रही थीं। उनका विलाप सुन कर रावण प्रसन्न हो रहा था। परम साध्वी एक ऋषि पत्नी ने उसे शाप देते हुए कहा, ‘‘यह पापी दुराचार के पथ पर चल कर भी स्वयं को नहीं धिक्कारता। स्त्रियों के हरण का पराक्रम इसकी वीरता के सर्वथा प्रतिकूल है। पर-स्त्रियों के साथ बलपूर्वक दुराचार करने का दोषी रावण भला किस प्रकार पांडित्य का अधिकारी हो सकता है? मैं इसे शाप देती हूं कि पर-स्त्री का अपहरण ही इसके वध का कारण बने।’’
रावण की शक्ति उसी समय से कम होने लगी। वह निस्तेज होने लगा। ऐसी ही स्थिति में रावण ने लंका में प्रवेश किया। वहां और भी दुर्भाग्यजनक समाचार उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे जो आगे जाकर उसके नाश का कारण बने।
उनमें से एक कारण शूर्पणखा और लक्ष्मण के मध्य हुई घटना, दूसरा विभीषण द्वारा रावण की निंदा करना और यह कहना, ‘‘राक्षसराज! आप पुलस्त्य ऋषि की संतान हैं। पर-स्त्री का अपहरण आपके लिए उचित नहीं। इधर आप पर-स्त्री अपहरण में व्यस्त हैं और उधर बहन कुंभीनसी का अचानक अपहरण हो गया है।’’
यह सूचना पाकर रावण अति क्रोधित हुआ। आप यह स्मरण रखें कुंभीनसी रावण के नाना सुमाली के ज्येष्ठ भ्राता माल्यवान की पुत्री अनला की पुत्री थी। वह लंका में ही निवास करती थी।
इस प्रकार रावण भीतर से भयभीत था। फलस्वरूप वह सीता जी के साथ बलपूर्वक व्यवहार नहीं कर सका। रावण की सबसे बड़ी विवशता ऋषि-पत्नियों का शाप था। इसलिए अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष के नीचे सीता जी सुरक्षित रहीं।
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हैरान कर देंगे देवी सीता से जुड़े ये तथ्य
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन सीता माता का प्राकट्य हुआ था। इस बार यह तिथि 21 मई यानी कि शुक्रवार को है। इस मौके पर हम आपको माता सीता से जुड़े ऐसे तथ्यों से रूबरू करवा रहे हैं, जिनके बारे में वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस में जिक्र तो मिलता है। लेकिन अलग-अलग और हैरान कर देने वाला। तो आइए जान लेते हैं…
मां सीता से जुड़े अलग-अलग तथ्य
तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरित मानस में माता सीता का वर्णन कुल 147 बार किया गया है। इसके अलावा देवी सीता के स्वयंवर का भी उल्लेख मिलता है। वहीं वाल्मीकि रामायण की बात करें तो इसमें माता सीता के स्वयंवर के बारे में नहीं बताया गया है। वहीं बाबा तुलसीदास ने लिखा है कि मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्रीराम और सीता माता का विवाह हुआ था। लेकिन वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता माता के स्वयंवर के बजाए विवाह के बारे में जिक्र मिलता है। इसके अनुसार उनका विवाह बाल्यावस्था में मात्र 6 वर्ष की उम्र में ही हो गया था।
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विवाह बाद नहीं गईं माता सीता अपने मायके
जानकारी के अनुसार माता जानकी मात्र 18 वर्ष की उम्र में श्रीराम के साथ वनवास चली गयी थीं। विवाह के बाद माता सीता कभी भी अपने मायके जनकपुर नहीं गई थीं। हालांकि वनवास जाने से पहले पिता जनक ने सीता माता को जनकपुर चलने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने अपने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए जाने से मना कर दिया।
हरण के रथ को लेकर भी अलग हैं मत
माता सीता के हरण को लेकर भी वाल्मीकि और रामचरित मानस में अलग-अलग मत मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण ने माता सीता का हरण अपने ही दिव्य रथ जो कि सोने का बना हुआ था। उसी से किया था। लेकिन बाबा तुलसीदास ने लिखा है कि रावण सीता माता के हरण के पश्चात उन्हें अपने पुष्पक विमान से लंका ले गया था।
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माता सीता का असली रूप था इनके पास
जानकारी के अनुसार रावण जब सीता माता का हरण करके उन्हें लंका ले गया। तो उसके बाद जानकी को कुल 435 दिन लंका में रहना पड़ा था। जब माता सीता लंका से लौटीं तो उनकी उम्र 33 साल थी। बता दें कि रावण के पास माता सीता नहीं बल्कि उनकी प्रतिछाया थी। जानकारी के अनुसार जब तक माता सीता लंका में रहीं तब तक उनका असली रूप अग्नि देव के पास रहा।
देवी सीता ने ग्रहण की थी यह विशेष चीज
वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता के हरण के पश्चात देवराज इंद्र ने ऐसी खीर बनाकर माता सीता को खिलाई। जिससे खाने से भूख-प्यास नहीं लगती थी। यही वजह थी कि जब तक सीता माता लंका में रहीं। उन्हें भूख-प्यास नहीं लगी। हालांकि बाबा तुलसीदास ने इस बारे में कोई वर्णन नही किया है।
लव-कुश के जन्म से जुड़ा यह भी है तथ्य
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख किया गया है कि जब माता सीता ने लव और कुश को वाल्मीकि आश्रम में जन्म दिया। तो उस समय उनके सबसे छोटे देवर शत्रुघ्न भी उसी आश्रम में मौजूद थे। इसके अलावा यह भी जानकारी मिलती है कि श्रीराम ने जल समाधि लेकर देह का त्याग किया था। लेकिन माता सीता जब धरती की गोद में समाई तो वह सशरीर ही अपने धाम को लौट गईं।
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