शब्द जब वाक्य में प्रयोग होता है तो वह क्या कहलाता है? - shabd jab vaaky mein prayog hota hai to vah kya kahalaata hai?

जब दो या दो से अधिक व्यंजन मिलते हैं तो एक शब्द का निर्माण करते हैं लेकिन जब इसी शब्द का प्रयोग किसी वाक्य में किया जाता है तो उस शब्द को पद कहा जाता है। 

साधारण शब्दों में कहें तो शब्द को जब वाक्य में प्रयोग किया जाता है तो वह पद कहलाता है और शब्द विभक्तरहित होते हैं जबकि पद विभक्तसहित होते हैं। 

पद के साथ पदबंध का ज्ञान होना अति आवश्यक है क्यूंकि पदबंध का अर्थ जाने बिना पद का अर्थ नहीं समझा जा सकता है। 

पदबंध की परिभाषा – 

पद शब्द से पदबंध शब्द की उत्पत्ति हुई पदबंध का अर्थ होता है जब एक या उससे अधिक शब्द या पद एक ही क्रम में और एक निश्चित अर्थ में उसी पद का कार्य करते हैं तो उन्हें पदबंध कहा जाता है। 

साधारण शब्दों में कहा जाए तो – जब बहुत से पदों को मिलकर वाक्यांशों का निर्माण होता है लेकिन वह एक ही पद का कार्य करते हैं तो उन्हें पदबंध कहा जाता है। 

डॉ० हरदेव बाहरी ने पदबन्धकी परिभाषा इस प्रकार दी है – वाक्य के उस भाग को, जिसमें एक से अधिक पद परस्पर सम्बद्ध होकर अर्थ तो देते हैं, किन्तु पूरा अर्थ नहीं देते- पदबन्ध या वाक्यांश कहते हैं। 

जैसे –

1. सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा जीत गया। 

2. सबसे तेज पढ़ने वाला छात्र प्रथम आया। 

3. यह लड़की अत्यंत पढ़ाकू और परिश्रमी है। 

4. नल से पानी निकलता जा रहा है। 

5. नदी कल कल करती हुई वह रही थी। 

6. यह लड़का बहुत बदतमीज और बड़ों का अनादर करने वाला है। 

7. सबसे ज्यादा काम करने वाला व्यक्ति सबसे सफल हो गया। 

8. यह दादा जी बहुत ही दयालु और परिश्रमी है। 

9. पुलिस वाले बहुत ही अच्छे और दयालु हैं। 

10. कुर्सी अत्यंत ही मजबूत है। 

11. सबसे तेज दौड़ने वाला छात्र जीत गया। 

उपयुक्त वाक्यों में बहुत से शब्द पदबंध है। जैसे पहले वाक्य में सबसे तेज दौड़ने वाला छात्र में पांच शब्द या पद है लेकिन, यह सब पद मिलकर एक ही संज्ञा का कार्य कर रहे हैं। 

इसी प्रकार दूसरे वाक्य में भी सबसे तेज पढ़ने वाला छात्र   में भी पांच पद है किंतु यह सब मिलकर एक ही पद या संज्ञा का निर्माण कर रहे हैं। 

तीसरे वाक्य में भी अत्यंत पढ़ाकू और परिश्रमी’ में चार पद है लेकिन, यह मिलकर एक ही पद अर्थात विशेषण का कार्य कर रहे हैं। 

इसी प्रकार चौथे वाक्य में भी नल से पानी निकलता चार पद है लेकिन, यह भी एक ही पद का निर्माण कर रहे हैं। 

इसी प्रकार से अन्य वाक्यों में भी बहुत से पदों का इस्तेमाल किया गया है लेकिन, वह सब मिलकर एक ही पद अर्थात संज्ञा या विशेषण का कार्य कर रहे हैं। और इसी कारण से इन्हे पदबंध कहा जाता है।  

पदबंध का साधारण सा अर्थ है कि एक दूसरे के साथ बंधे हुए पद अर्थात शब्द और इसका उदाहरण आप ऊपर देख सकते हैं यहां पर भी बहुत से पद या शब्द एक दूसरे के साथ बंधे हुए या जुड़े हुए हैं लेकिन वह सब पद्य शब्द मिलकर एक ही संख्या अर्थात विशेषण का निर्माण कर रहे हैं पदबंध में बाद एक दूसरे के साथ जुड़े हुए होते हैं लेकिन वह एक ही संज्ञा का निर्माण करतें है। 

पदबंध की रचना की दृष्टि से इसमें तीन चीजों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है

1. पदबंध में एक से अधिक पदों का प्रयोग किया जाता है। 

2. इसमें पद इस तरह से एक दूसरे से बंधे हुए होते हैं कि उनसे एक ही इकाई बन जाती है। 

3. पदबंध किसी वाक्य का एक अंश मात्र होता है एक पदबंध से एक वाक्य का निर्माण नहीं हो सकता।

पदबंध के भेद (Pad ke bhed)

पदबंध के 4 भेद किये गये हैं

(1) संज्ञा-पदबंध

(2) विशेषण-पदबंध

(3) क्रिया पदबंध

(4) क्रिया विशेषण पदबंध

(1) संज्ञा-पदबंध – जब कोई पद समूह या पदबंध किसी वाक्य में संज्ञा का भाव  एक सही क्रम और निश्चित अर्थ के साथ प्रकट करें तो ऐसे पद समूह अथवा पदबंध को संज्ञा पदबंध कहा जाता है। 

साधारण शब्दों में कहा जाए तो जब पदबंध का अंतिम शब्द या पहला शब्द संज्ञा का रूप हो और उस वाक्य में प्रयोग किए गए अन्य सभी शब्द उस संज्ञा शब्द पर आधारित हो या आश्रित हो तो वह शब्द या पद संज्ञा पदबंध कहलाता है। 

संज्ञा पदबंध के उदाहरण – 

1. सात शक्तिशाली लोग इस गाड़ी को उठा पाए। 

2. राकेश ने शिमला के अभिषेक को मार गिराया। 

3. भारत के सैनिकों ने आतंकवादियों को मार गिराया। 

4. उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री के तीन पुत्र हैं। 

5. आसमान में उड़ता जहाज अचानक से फट गया। 

6. उसने बिहार के पहलवान को हरा दिया। 

(2) विशेषण-पदबंध – जब कोई पदबंध किसी वाक्य में संज्ञा की विशेषता को नियत कर्म के साथ उसे उसके निश्चित अर्थ में प्रकट करें तब वह पदबंध विशेषण पदबंध कहलाता है। 

इसको साधारण शब्दों में कहा जाए तो जब किसी पदबंध  का शुरुआती पद अथवा अंत का पद विशेषण हो और उस पदबंध के अन्य सभी पद उन्ही विशेषण पदों पर आश्रित या आधारित हो तो वह विशेषण पदबंध कहलाते हैं। 

दूसरे शब्दों में विशेषण पर आधारित पदों या शब्दों को विशेषण पदबंध  कहा जाता है। 

जैसे – 

  1. तेज बजने वाले होरन प्राया जल्दी फट जाते हैं। 

2. तेज चलने वाला व्यक्ति हमेशा सबसे पहले पहुंचता है। 

3. उस गली के कोने में बैठा हुआ आदमी जासूस है। 

4. उस घर के कोने में बैठा हुआ आदमी भिखारी है। 

5. उसका घर अत्यंत सुंदर और अच्छा है। 

6. बरगद और पीपल की घनी छांव से हमें सुख मिलता है। 

(3) क्रिया पदबंध – जब किसी पदबंध में मुख्य क्रिया शुरुआत में आए तथा उसके बाद अन्य क्रियाएं मिलकर एक इकाई का रूप बना लें तो वह क्रिया पदबंध कहलाती है। 

साधारण शब्दों में कहें तो पदबंध में मुख्य क्रिया जब पहले आए और अन्य सभी क्रियाएं मिलकर एक समग्र इकाई का रूप ले तो वह क्रिया पदबंध  कहलाते हैं। 

जैसे – 

1. वह लड़का तुम्हारी और आया होगा। 

2. मुझे उसकी कार छत से दिखाई दे रही है। 

3. राकेश नशे में डूब गया है। 

4. दरवाजा ठीक हो गया है और अब दरवाजा खोला जा सकता है। 

5. क्या तुम्हें राहुल छत से दिखाई दे रहा है। 

6. सुरेश नरेश को नाले में बचाते बचाते खुद ही नदी में डूब गया। 

(4) क्रिया विशेषण पदबंध – जब किसी पदबंध में किसी क्रिया का विशेषण रूप होता है लेकिन वह हमेशा क्रिया से पहले आता है इसमें क्रियाविशेषण पहले स्थान पर होता है तथा अन्य सभी शब्द या पद उसी क्रियाविशेषण पर आश्रित या आधारित होते हैं ऐसे पदों  या शब्दों को क्रियाविशेषण पदबंध कहा जाता है। 

जैसे-

1. मैंने रमा की आधी रात तक प्रतीक्षा की। 

2. उसने साँप को पीट-पीटकर मारा। 

3. छात्र मोहन की शिकायत दबी जबान से कर रहे थे। 

4. कुछ लोग सोते-सोते चलते है।

5. उसने मेरी सुबह तक प्रतीक्षा की। 

6. अध्यापक ने छात्र की घर जाकर परीक्षा ली। 

पद के भेद – हिन्दी में ‘पद’ के पाँच भेद माने जाते हैं – 

1. संज्ञा – किसी स्थान, वस्तु, व्यक्ति, प्राणी आदि के नाम का बोध करवाने वाले शब्दों को संज्ञा कहा जाता है। उदाहरण के लिए शिमला, शहर, मेज, गद्दा, हेलमेट, पुस्तक, कड़वा, नीतीश, राकेश, राहुल, सौंदर्य आदि। 

संज्ञा के भेद – संज्ञा के तीन भेद हैं (Sangya ke bhed)

1. व्यक्तिवाचक संज्ञा – जिन शब्दों से किसी व्यक्ति वस्तु आदि का बोध हो वह शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा कहलाते है। 

2. जातिवाचक संज्ञा – जिन शब्दों से किसी जाती अथवा लिंग का बोध हो उन शब्दों को जातिवाचक संज्ञा कहते है। 

3. भाववाचक संज्ञा – जिन शब्दों से किसी प्रकार के भावो का बोध हो उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते है। 

2. सर्वनाम – जिन शब्दों का प्रयोग संज्ञा में नहीं किया जाता वह शब्द सर्वनाम में प्रयोग किए जाते हैं। सर्वनाम का शाब्दिक अर्थ होता है ‘सबका नाम’ अर्थात ऐसा नाम जो सब के स्थान पर आए उसे सर्वनाम कहते हैं। जैसे – मैं , तुम, आप, यह, वह, हम, उसका, उसकी, वे, क्या, कुछ, कौन आदि।

सर्वनाम के छह भेद होते हैं (Sarvanam ke bhed)

1. पुरुषवाचक सर्वनाम

2. निश्चयवाचक सर्वनाम

3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम

4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम

5. प्रश्नवाचक सर्वनाम

6. निजवाचक सर्वनाम

3. क्रिया – जिन शब्दों के प्रयोग से किसी कार्य के होने या करने का बोध हो उन शब्दों को क्रिया कहा जाता है। जैसे राहुल पढ़ता है, इस वाक्य में ‘पढ़ना’ शब्द क्रिया है। 

बिना क्रिया के किसी भी वाक्य की रचना करना असंभव है क्योंकि जिस वाक्य में किसी प्रकार की क्रिया अथवा काम नहीं हो रहा हो तो उस वाक्य का कोई अस्तित्व भी नहीं है। 

क्रिया के भेद- अर्थ के आधार क्रिया के दो भेद होते हैं (kriya ke bhed)

1. सकर्मक क्रिया 

2. अकर्मक क्रिया

4. विशेषण – जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता, गुण, दोष, संख्या, रंग, आकार- प्रकार आदि का बोध करवाते हैं वह शब्द विशेषण कहलाते हैं। जैसे छोटा, पतला, लम्बा, ऊँचा आदि। 

विशेषण के भेद (Visheshan ke bhed)

1. गुणवाचक विशेषण 

2. परिमाणवाचक विशेषण 

3. संख्यावाचक विशेषण 

 4. संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण अथवा निर्देशवाचक विशेषण

5. व्यक्तिवाचक विशेषण।

5. अव्यय – वाक्य में जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन क्रिया, आदि के कारण भी किसी भी प्रकार का कोई विकार उत्पन्न नहीं होता तो उन्हें अव्यय कहा जाता है। 

अव्यय का शाब्दिक अर्थ है – व्यय ना होना अर्थात ऐसे अविकारी शब्द जिनका व्यय ना हो सके अर्थात जिनमें कोई विकार उत्पन्न नहीं हो पाए वह शब्द अव्यय कहलाते हैं। 

अव्यय के भेद- अव्यय या अविकारी शब्दों को मुख्यता चार भागों मेँ बांटा जाता  है (Avyay ke bhed)

1. क्रिया-विशेषण अव्यय 

2. समुच्चय बोधक अव्यय 

3. सम्बन्ध बोधक अव्यय 

4. विस्मय बोधक अव्यय।