वानर बड़े-बड़े पहाड़ ला-लाकर देते हैं और नल-नील उन्हें गेंद की तरह ले लेते हैं। सेतु की अत्यंत सुंदर रचना देखकर कृपासिन्धु श्री रामजी हँसकर वचन बोले॥1॥
यह (यहाँ की) भूमि परम रमणीय और उत्तम है। इसकी असीम महिमा वर्णन नहीं की जा सकती। मैं यहाँ शिवजी की स्थापना करूँगा। मेरे हृदय में यह महान् संकल्प है॥2॥
श्री रामजी के वचन सुनकर वानरराज सुग्रीव ने बहुत से दूत भेजे, जो सब श्रेष्ठ मुनियों को बुलाकर ले आए। शिवलिंग की स्थापना करके विधिपूर्वक उसका पूजन किया (फिर भगवान बोले-) शिवजी के समान मुझको दूसरा कोई प्रिय नहीं है॥3॥
जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। शंकरजी से विमुख होकर (विरोध करके) जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है॥4॥
जिनको शंकरजी प्रिय हैं, परन्तु जो मेरे द्रोही हैं एवं जो शिवजी के द्रोही हैं और मेरे दास (बनना चाहते) हैं, वे मनुष्य कल्पभर घोर नरक में निवास करते हैं ॥2॥
Granth Ramcharitmanas GranthLanka Kand GranthTulsidas Ji Rachit Granth
अगर आपको यह ग्रंथ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!इस ग्रंथ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें।
'भगवान शिव' राम के इष्ट एवं 'राम' शिव के इष्ट हैं। ऐसा संयोग इतिहास में नहीं मिलता कि उपास्य और उपासक में परस्पर इष्ट भाव हो इसी स्थिति को संतजन 'परस्पर देवोभव' का नाम देते हैं।
श्रावण मास में शिव का प्रिय मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' एवं 'श्रीराम जय राम जय जय राम' मंत्र का उच्चारण कर शिव को जल चढ़ाने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
भगवान राम ने स्वयं कहा है
'शिव द्रोही मम दास कहावा सो नर मोहि सपनेहु नहि पावा।'
- अर्थात् जो शिव का द्रोह कर के मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। इसीलिए श्रावण मास में शिव आराधना के साथ श्रीरामचरितमानस पाठ का बहुत महत्व होता है। > मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम 14 वर्ष के वनवास काल के दौरान जब जाबालि ऋषि से मिलने गुप्त प्रवास पर नर्मदा तट पर आए। उस समय यह पर्वतों से घिरा था। रास्ते में भगवान शंकर भी उनसे मिलने को आतुर थे, लेकिन भगवान और भक्त के बीच वे नहीं आ रहे थे। भगवान राम के पैरों को कंकर न चुभें इसीलिए शंकरजी ने छोटे-छोटे कंकरों को गोलाकार कर दिया। इसलिए कंकर-कंकर में शंकर बोला जाता है। > जब प्रभु श्रीराम रेवा तट पर पहुंचे तो गुफा से नर्मदा जल बह रहा था। श्रीराम यहीं रुके और बालू एकत्र कर एक माह तक उस बालू का नर्मदा जल से अभिषेक करने लगे। आखिरी दिन शंकरजी वहां स्वयं विराजित हो गए और भगवान राम-शंकर का मिलन हुआ।
जैसा की पंक्तियों से स्पष्ट है भगवान राम को शंकर भगवान बहुत प्रिय हैं और हम सब यह भी जानते हैं कि शंकर भगवान् भी भगवान राम को अपना आराध्य देव, मानते हैं. इसी आधार पर देवी उमा (पार्वती) द्वारा सीता का रूप धारण कर भगवन राम की परीक्षा लेने मात्र से, उन्होंने(भगवान् शंकर ने) देवी पार्वती को त्याग भी दिया था. फलस्वरूप पार्वती द्वारा अपने पिता के ही यज्ञं कुण्ड में कूदकर जान देने की घटना हुई थी. (वहाँ भी देवी पार्वती को, अपने पति को अपने ही पिता द्वारा यथोचित सम्मान देने का धर्म न निभाने के लिए कुर्बानी, पत्नी यानी पार्वती जी को ही देनी पड़ी थी.)खैर, यह सब ऊंचे ज्ञान की बातें हैं, जो हम जैसे अल्पज्ञानी(मूरख जन) को समझ में नहीं आता है.
**************
हमारे शिक्षक बतलाते थे, जैसे हमारे यहाँ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका है. उसी प्रकार हमारे शास्त्रों-पुराणों में वर्णित ब्रह्मा जी विधायिका का काम करते हैं, बिष्णु भगवान् कार्यपालिका और शंकर भगवान न्यायपालिका का कार्यभार सम्हालते हैं.
रामचरितमानस में भी यह बतलाया गया है …साथ ही ऊपर की पंक्तियों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका में अन्योन्याश्रय का सम्बन्ध है. अगर आप कार्यपालिका का अनादर करते हैं, तो न्यायपालिका दंड देगी. जैसे ममता दीदी टाटा के साथ के मुक़दमे को हार गयीं और मायावती आय से अधिक संपत्ति का मुक़दमा जीत गयीं ! …उनके पास कहाँ से अकूत सम्पदा(पचास गुना ज्यादा) आयी, न्यायपालिका को नहीं पता … प्रभु मेरे, अवगुण चित न धरो!…. सूरदास भी तो यही प्रार्थना करते हैं (यहाँ मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि मैं सर्वोच्च न्यायालय का दिल से सम्मान करता हूँ और भगवन आशुतोष शंकर भगवान् का भी प्रिय भक्त हूँ – वह भी सावन के महीने में!)
इधर ममता जी को कानून की सही जानकारी नहीं थी, तभी तो टाटा से और सोनिया जी से एक साथ पंगा ले बैठीं….
मुलायम भाई तो मुलायम हैं ही. समय समय पर किश्तों में लाभ उठाते रहते हैं … पहले बहू को निर्विरोध सांसद बनाकर! … अब यु. पी. के लिए विशेष पैकेज भी तो लेना है…. तो सोनिया जी की कुछ बातें तो माननी पड़ेगी न! प्रणव दा पहले राष्ट्रपति बन जाएँ, फिर किसकी मजाल, जो उन्हें ‘सी बी आइ’ की आँखों का भी सामना करना पड़े!
अब थोड़ा प्रमुख समाचारों पर नजरें डालें— सुप्रीम कोर्ट ने बीएसपी प्रमुख मायावती के ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति के मामले की सीबीआई जाँच को ख़ारिज कर दिया है.
इससे जुड़ी ख़बरें- मायावती: सपा राज में दलितों पर निशाना! मायावती के शीर्ष अधिकारी के खिलाफ…मायावती ने स्मारकों पर खर्च किए – 6000 करोड़!
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चूंकि अदालत ने सीबीआई को आय से अधिक संपत्ति की जाँच करने के आदेश नहीं दिए थे, इसलिए उसे ये मामला दर्ज ही नहीं करना था.
अदालत ने कहा, “इस इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि वर्ष 1995 से 2003 के बीच हमने मायावती की कथित असंगत संपत्ति की जाँच के कोई निर्देश नहीं दिए थे.”
सीबीआई दावा करती रही है कि उसके पास मायावती की आय से अधिक संपत्ति के सबूत मौजूद हैं.
मायावती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई की जाँच को चुनौती दी थी और कहा था कि सीबीआई ‘राजनीतिक साज़िश’ के तहत काम कर रही है.
जाँच खारिज! सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसके आदेश को ठीक तरह से समझे बिना ही सीबीआई ने जाँच शुरु कर दी. सी बी आई भी तिल का तार करती है!
जस्टिस पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाले पीठ ने कहा है, “ताज कॉरिडोर घोटाले के अलावा कोई और मामला अदालत के सामने था ही नहीं. मायावती की आय से अधिक संपत्ति के मामले में न कोई सूचना है और न कोई रिपोर्ट पेश की गई है.”
मायावती को मिलने वाले कथित उपहार ख़बरों में भी रहे हैं
मायावती ने मई, 2008 में एजेंसी की ओर से दर्ज किए गए आय से अधिक संपत्ति मामले में आपराधिक प्रक्रिया के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी.
अपनी याचिका में मायावती ने यह गुजारिश भी की थी कि सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को निर्देश दे कि वह आयकर ट्राइब्यूनल की ओर से संपत्ति को जायज ठहराने संबंधी आदेश पर गौर करे.
इस आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा है.
सीबीआई का कहना है कि उसके पास मायावती के ख़िलाफ़ पर्याप्त सुबूत हैं जिससे यह साबित होता है कि उन्होंने अपने आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की है.
मायावती का दावा करती रही हैं कि उन्हें यह रकम पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से दान के रूप में मिली है. और दान की तो कोई सीमा नहीं होती – हमारे धर्म शास्त्र में अनेकों उदाहरण मौजूद हैं. राजा बलि से लेकर दधिची तक! दानवीर कर्ण से लेकर सत्य हरिश्चंद्र तक.
मगर एजेंसी का कहना है कि मायावती के पास 2003 में घोषित संपत्ति एक करोड़ रुपये की थी जो 2007 में 50 करोड़ तक पहुंच गई.
चार साल में मात्र पचास गुना!
सीबीआई का कहना है कि उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री की नगद राशि, चल व अचल संपत्तियों और उपहारों के बारे में एजेंसी ने पुख्ता सबूत जुटाए हैं.
बहुजन समाज पार्टी के नेता एस सी मिश्रा ने इस फ़ैसले पर ख़ुशी ज़ाहिर की है! लेकिन कहा है कि इसे राष्ट्रपति चुनाव में बहुजन समाज ���������ार्टी के समर्थन से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए.( हम यह कभी नहीं कहेंगे – चोर की दाढ़ी में…… महा प्रभु माफ़ करना … गलती हो गई!)
कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कोलकाता कोर्ट से एक बड़ा झटका लगा है। कोर्ट नें सिंगूर एक्ट 2011 को निरस्त कर दिया है। टाटा मोटर्स के पक्ष में फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट मे अपील करने के लिए ममता सरकार को दो माह का समय दिया है। कोर्ट ने सिंगूर भूमि पुनर्वास विधेयक को असंवैधानिक करार दिया है।
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का पद संभालते ही यह विधेयक पारित किया था। आपको बता दे कि टाटा मोटर्स को पूर्ववर्ती लेफ्ट सरकार द्वारा हुगली जिले के सिंगूर में 997 एकड़ भूमि आवंटित की गयी थी। टाटा को यह जमीन नैनो कार प्लांट के प्रोजेक्ट के लिए आवंटित की गयी थी। ममता द्वारा पारित किये गये विधेयक के अनुसार टाटा के समझौते को रद्द करते हुए किसानों की जमीन वापस दी जानी थी।
इसके विरोध में टाटा ने कोलकाता हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी, जिसने पिछले साल इस विधेयक को सही ठहराया था, लेकिन आज हाईकोर्ट के फैसले ने ममता सरकार को तगड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट के इस फैसले के विरोध में ममता बनर्जी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है( अगर उन्हें कुछ गलत लगता है तो!)। पश्चिम बंगाल में होते इस विरोध को देखते हुए टाटा अपना प्रोजेक्ट लेकर गुजरात चली गयी थी और मोदी को दिल्ली तक पहुँचाने के लिए सस्ती कार दे ही रही है!
जिस समय टाटा मोटर्स के प्रोजेक्ट के लिए जमीन का आंवटन किया गया था उस समय तृणमूल कांग्रेस विपक्ष में बैठी हुई थी। तृणमूल कांग्रेस ने तत्कालीन सरकार से 400 एकड़ जमीन किसानों की वापस देने की मांग की थी। उसके बाद बढ़ते विवाद को देखते हुए टाटा मोटर्स अपना प्रोजेक्ट गुजरात लेकर चली गयी थी। जिस समय भूमि आवंटित की गयी थी उस समय टाटा को, लोगों को भारी विरोध भी झेलना पडा था।