- होम
- वीडियो
- सर्च
- वेब स्टोरीज
- ई-पेपर
- होम
- वीडियो
- सर्च
- वेब स्टोरीज
- ई-पेपर
- Hindi News
- National
- ध्वनि प्रदूषण से होती है जानलेवा बीमारियां वाहन चालक बेवजह बजा रहे प्रेशर हाॅर्न
ध्वनि प्रदूषण से होती है जानलेवा बीमारियां वाहन चालक बेवजह बजा रहे प्रेशर हाॅर्न
अगर आप ध्वनि प्रदूषण को नजरअंदाज कर रहे हैं तो सावधान हो जाइये इससे न केवल आप बहरे हो सकते हैं बल्कि याददाश्त एवं एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद जैसी बीमारियों के अलावा नपुंसकता और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में भी आ सकते हैं। ध्वनि प्रदूषण वो प्रदूषण है जो उच्च और असुरक्षित स्तर तक ध्वनि के कारण पर्यावरण में लोगों में बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का, पशुओं, पक्षियों और पेड़ों आदि की असुरक्षा का कारण बनता है।
ये हो सकती है बीमारियां
ध्वनि प्रदूषण से चिंता, बेचैनी, बातचीत करने में समस्या, बोलने में व्यवधान, सुनने में समस्या, उत्पादकता में कमी, सोने के समय व्यवधान, थकान, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, घबराहट, कमजोरी, ध्वनि की संवेदन शीलता में कमी जिसे हमारे शरीर की लय बनाए रखने के लिये हमारे कान महसूस करते हैं, आदि। यह लंबी समयावधि में धीरे-धीरे सुनने की क्षमता को कम करता है। ऊंची आवाज में लगातार ढोल की आवाज सुनने से कानों को स्थायी रुप से नुकसान पहुंचता है। सड़क पर चलते बाइक, ऑटो सहित अन्य बेवजह हार्न बजाते रहते हैं। कुछ की अंगुली हार्न पर ही लगातार रहती है। इसकी आवाज से न सिर्फ कान का मर्ज बढ़ता दिख रहा है बल्कि लगातार शोर में रहने पर मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन बोलने में व्यवधान बेचैनी नींद की कमी आदि समस्या उत्पन्न हो रही है।
रात के दस बजे से सुबह के छह बजे तक प्रतिबंध
नियम के मुताबिक, रात के दस बजे से सुबह के छह बजे तक खुली जगह में किसी तरह का ध्वनि प्रदूषण डीजे, लाउडस्पीकर, बैंड बाजा, स्कूटर कार बस का हॉर्न, धर्म के नाम पर वाद्ययंत्र का इस्तेमाल या संगीत बजाने फैलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध है। इन नियमों का उल्लंघन करने वाले दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 290 और 291 के अलावा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत एक लाख रुपए का जुर्माना अथवा पांच साल तक की जेल या फिर दोनों सजा एक साथ हो सकती है।
परेशाानी होने पर शिकायत करें लोगपीएमआरए के प्रधान गुरमेल सिंह व रोहित जुनेजा ने बताया, अदालतों और न्यायालय के आदेशों को लागू करना कानून प्रवर्तन एजेंसियों का काम है और इसके लिए पुलिस में शिकायत की जानी चाहिए। रात भर लोग जागरण करते हैं लेकिन अगर लोग ठान लें और पुलिस में शिकायत करें तो ऐसा नहीं होगा और लोग ध्वनि प्रदूषण से होने वाली समस्याओं से बच सकेंगे।
गुरमेल सिंह।
रोहित जुनेजा।
कम करें फोन का इस्तेमाल : डॉ. गुरदेवडाॅ. गुरदेव सिंह कहते हैं कि स्वास्थ्य के लिहाज से ध्वनि प्रदूषण काफी हानिकारक है। इससे व्यक्ति बहरेपन से लेकर कई तरह की गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकता है। ऐसे में ध्वनि प्रदूषण और फोन का कम इस्तेमाल करना चाहिए और जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण का बढ़ता खतरा - फोटो : Istock पर्यावरण दिवस विशेष: प्रकृति-सेहत दोनों के लिए विनाशकारी है ध्वनि प्रदूषण, बीमारियों के साथ जन्म लेने को मजबूर 'देश का भविष्य"
5 जून को 'विश्व पर्यावरण दिवस' मनाया जाता है। पर्यावरण को हो रहे नुकसान के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को सचेत करने और पर्यावरण क्षरण को रोकने के लिए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से संकल्पित एक खास दिन। पर कितना अपवाद है न कि एक तरफ हम औद्योगीकरण और शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए स्वयं 'हर पल' पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं और लोगों से उम्मीद करते हैं कि संरक्षण का सारा जिम्मा वह ही अपने कंधों पर लें। यह उसी तरह की बात हुई कि सभी चाहते हैं कि बच्चे भगत सिंह जैसे पराक्रमी और जांबाज हों, पर खुद के बच्चे को भगत सिंह बनाने से डरते हैं।
खैर, पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, यह हमारे स्वास्थ्य और भविष्य के लिए बड़ी चुनौतियों का कारण है, ये करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए, ऐसी किताबी बातें हम सभी बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। बचपन से सुनते आने का एक मतलब यह भी है कि अगर आप औसत 30 साल के हैं तो आपकी याददाश्त में करीब 25 साल पहले से पर्यावरण को हो रहे नुकसान की बात तो होगी ही।
मसलन पर्यावरण को हो रहा नुकसान वर्षों से चला आ रहा है, जिस पर किसी खास दिन चर्चा करके, मामले को अगले साल तक के लिए फिर से टाल दिया जाता है, पर असलियत यही है कि इसपर सख्ती से कदम कभी उठाए ही नहीं गए।
जब भी बात पर्यावरण के दोहन की आती है, तो स्वाभाविक रूप से हमारा ध्यान सिर्फ प्रदूषित वायु तक ही पहुंच पाता है। पर क्या पर्यावरण का नुकसान सिर्फ वायु प्रदूषण तक ही सीमित है? नहीं, वायु प्रदूषण गंभीर विषय जरूर है, पर इसके पैरलल मृदा, जल और ध्वनि का बढ़ता प्रदूषण भी काफी चिंताजनक है।
चलिए मान लिया कि मृदा, जल के प्रदूषण से पर्यावरण को नुकसान होता है, पर ध्वनि? आखिर यह कैसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है? हमारी सेहत के लिए ध्वनि प्रदूषण कितना खतरनाक है? विश्व पर्यावरण दिवस पर इस लेख का केंद्र बिंदु यही विषय है। संभवत: वह विषय जो है तो काफी गंभीर, पर इसपर शायद ही कभी गंभीरता से चर्चा की गई हो?
वायुमंडलीय प्रदूषण एकमात्र प्रदूषण नहीं है जो पृथ्वी पर जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंचा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार बढ़ता ध्वनि प्रदूषण भी स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक पर्यावरणीय खतरों में से एक है।
यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण के कारण अकेले यूरोप में हर साल 16,600 से अधिक लोगों की समय से पहले मृत्यु हो जाती है और 72,000 से अधिक को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है।
आखिर ध्वनि प्रदूषण इतना खतरनाक कैसे है? यह जानलेवा कैसे हो सकता है? आइए इस संबंध
में हर छोटी से बड़ी आवश्यक बातों को समझते हैं।
पहले समझिए ध्वनि प्रदूषण क्या है?
शादी ब्याह, धार्मिक आयोजनों, रैलियों आदि में कान फाड़ती लाउड स्पीकर्स-साउंड की आवाज से होने वाला प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण है। वैसे यह परिभाषा 5वीं कक्षा में पढ़ रहा बच्चा भी जानता है, पर यहां जरूरत सिर्फ जानने की नहीं इसके दुष्प्रभावों को समझने की भी है। आमतौर पर लगातार तीव्र आवाज के संपर्क में रहना शरीर को ध्वनि प्रदूषण से होने वाले नुकसान को संदर्भित करता है। तो क्या हर लाउडस्पीकर ध्वनि प्रदूषण कर रहा है?
इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अध्ययनों के आधार पर एक मानक निर्धारित किया है, जिससे अधिक की आवाज स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक मानी जाती है।
डब्ल्यूएचओ कहता है 70 डेसिबल (डीबी, यह ध्वनि का मानक है) की आवाज हमारे लिए सहनीय है, इसके संपर्क में भले ही कितनी देर तक रहते हैं, इससे नुकसान नहीं होता है। 70 डेसिबल की आवाज वाशिंग मशीन, कूलर जैसे उपकरणों की होती है। हालांकि 85 डीबी से अधिक के शोर में 8 घंटे से अधिक का एक्सपोजर खतरनाक हो सकता है। यह मिक्सर या यातायात की आवाज के बराबर है। वहीं यदि यह मानक लगातार 90-100 के बीच बना हुआ है तो इसे गंभीर माना जाता है। शादियों में बजने वाले डीजे की आवाज 100 डीबी से भी अधिक होती है।
ध्वनि की प्रबलता उसके दबाव के स्तर से निर्धारित होती है। यह जितना ऊंचा होता है, आवाज उतनी ही तेज होती है। ध्वनि दाब का स्तर डेसीबल (dB) में मापा जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि हमारे कान सामान्य तौर पर 70-80 डीबी के लिए ही सहनशील हैं।
फॉलो करें और पाएं ताजा अपडेट्स
लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फॉलो करें