1971 में बने महागठबंधन का ध्येय क्या था - 1971 mein bane mahaagathabandhan ka dhyey kya tha

1971 में बने महागठबंधन का ध्येय क्या था - 1971 mein bane mahaagathabandhan ka dhyey kya tha

इंदिरा गांधी अपने एक नारे 'गरीबी हटाओ' की बदौलत फिर से सत्ता में आ गई।

1971 सिर्फ पांचवें लोकसभा चुनाव के लिए ही नहीं बल्कि भारत-पाकिस्तान युद्ध के लिए भी जाना जाता है। यह साल इंदिरा गांधी के लिए बेहद अहम था। इस वक्त तक कांग्रेस के दो फाड़ हो चुके थे। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सारे पुराने दोस्त उनकी बेटी इंदिरा के खिलाफ थे। इंदिरा को कांग्रेस के भीतर से ही चुनौती मिल रही थी। मोरारजी देसाई और कामराज फिर से मैदान में थे। 1967 के आम चुनाव में इंदिरा जहां सिंडिकेट का सूपड़ा साफ करके सत्ता पर काबिज हुई थी वहीं, फिर से कांग्रेस (ओ) के तौर पर उनके सामने पुराने दुश्मन खड़े थे। चुनावी मैदान में एक तरफ इंदिरा की नई कांग्रेस और दूसरी तरफ पुराने बुजुर्ग कांग्रेसी नेताओं की कांग्रेस (ओ) थी। दरअसल, 12 नवंबर 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा गया गया था। उनपर पार्टी ने अनुशासन के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था। इस कदम से बौखलाईं इंदिरा गांधी ने नई पार्टी कांग्रेस (आर) बनाई। सिंडिकेट ने कांग्रेस (ओ) का नेतृत्व किया। 

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फिर से सत्ता पर काबिज होने में सफल हुई इंदिरा
इंदिरा गांधी अपने एक नारे 'गरीबी हटाओ' की बदौलत फिर से सत्ता में आ गईं। उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस नेे लोकसभा की 545 सीटों में से 352 सीटें जीतीं। जबकि कांग्रेस (ओ) के खाते में  सिर्फ 16 सीटें ही आई। भारतीय जनसंघ ने चुनाव में 22 सीटें जीतीं। सीपीआई ने चुनाव में 23 सीटें जीतीं। जबकि सीपीआईएम के खाते में 25 सीटें आईं। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 2 सीटें जीतीं जबकि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के खाते में 3 सीटें आईं। स्वतंत्र पार्टी के खाते में सिर्फ 8 सीटें आई। यह चुनाव 27 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में संपन्न हुआ। 518 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस ने इससे पहले के लोकसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटें जीतीं। 1967 के चौथे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 283 सीटें मिली थीं। 1967 का लोकसभा चुनाव जहां भारतीय राजनीति में इंदिरा के 'आगाज' का गवाह था तो यह उनकी 'शक्ति' का।

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