21वीं सदी में रूस को सत्ता का नया केंद्र कैसे माना जा सकता है? - 21veen sadee mein roos ko satta ka naya kendr kaise maana ja sakata hai?

खरी और दो टूक बात कहने वाले, स्टेट्समैन की छवि रखने वाले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन USSR (Union soviet socialist republic of Russia) को लेकर अपनी नॉस्टेलजिया कभी नहीं छिपाते हैं. USSR का विघटन उनकी स्मृतियों में बसा अतीत का एक ऐसा विषाद है जिसे वो पलटकर रख देना चाहते हैं. पुतिन इसे बड़ी साफगोई और यकीन से कहते हैं. बिना छुपाये, बिना लजाये. 2018 में पुतिन पत्रकारों से सवाल ले रहे थे. इस दौरान एक पत्रकार ने उनसे पूछा, "आप अपने देश के इतिहास में किस घटनाक्रम को पलट देना पसंद करेंगे." व्लादिमीर पुतिन मानो इस सवाल के लिए पहले से तैयार थे. उन्होंने फौरन 6 शब्दों से एक लाइन में कहा-  The collapse of the Soviet Union. पुतिन कई मौकों पर कह चुके हैं कि अगर वह कर सकते तो USSR (सोवियत संघ) के विघटन की कहानी को उलट कर रख देते. तो क्या यूक्रेन का वर्तमान जिओ-पॉलिटिक्स पुतिन के इसी Conviction का नतीजा है?

दुनिया के चौधरियों के बीच रहा है USSR का उठना-बैठना

1922 में अस्तित्व में आया USSR 20वीं सदी का शक्तिशाली साम्राज्यवादी ताकत था. विज्ञान, इतिहास, अर्थव्यवस्था में सोवियत संघ अव्वल था. इस देश ने 1957 में मनुष्य द्वारा बनाया पहला उपग्रह (स्पूतनिक-1) अंतरिक्ष में भेजा. इसने ही दुनिया के पहले व्यक्ति (यूरी गागरिन) को स्पेस में भेजा. सोवियत रूस ने ही पुतिन के गृह नगर लेनिनग्राद की लड़ाई में हिटलर की सेनाओं को शिकस्त दी और दूसरे विश्व युद्ध के नतीजे पर मुहर लगा दी. इसी देश ने अमेरिका के साथ कोल्ड वार की रेस लगाई और विश्व में शक्ति संतुलन को दो धुव्रीय बनाया. परमाणु जखीरों की जब बात होती है तो रूस का Numero uno पॉजिशन अब भी कायम है. US अभी भी दूसरे नंबर पर है. रूस की क्रांति से पहले साम्राज्यवादी विस्तार के दौर में भी रूसी जार शासकों ने लगातार ब्रिटेन की पेशानियों पर बल बनाये रखा. कहने का मतलब यह है कि दुनिया के चौधरियों के बीच सोवियत संघ का उठना-बैठना दशकों से रहा है. 

जब बिखरा USSR

1922 से लकर 1991 यानी लगभग 70 सालों तक सोवियत संघ का दबदबा दुनिया में कायम रहा. इस देश ने पूंजीवादी विश्व व्यवस्था के बरक्स साम्यवादी वर्ल्ड ऑर्डर का नेतृत्व किया.  लेकिन 25 दिसंबर 1991 को क्रिससम की रात इस महाशक्ति का पतन हो गया. ये एक औसत रूसी के लिए बेहद ही भावुक क्षण था. विश्व के इस सबसे बड़े देश का विभाजन हो गया. इस पीड़ा की गहराई आप महसूस करना चाहते हैं तो 1947 में भारत के बंटवारे का दृश्य याद कर लीजिए.

अक्टूबर 1952 में जन्मे पुतिन तब 39 साल संवेदनशील और राजनीतिक रूप से चैतन्य और परिपक्व युवा थे. उन्होंने सोवियत संघ को 15 देशों में बंटते देखा. 25 दिसंबर, 1991 को सोवियत संघ के आखिरी नेता मिखाइल गोर्बाचोव देश को आखिरी बार संबोधित कर रहे थे और अमेरिका समेत दुनिया इस अविश्वसनीय उदघोषणा को सुन रही थी.  गोर्बाचोव ने कहा, "सोवियत संघ के राष्ट्रपति के तौर पर मैं अपना काम बंद कर रहा हूं."

क्रेमलिन से उतरा हंसिया-हथौड़ा वाला कम्युनिस्ट वर्चस्व का परचम

इस संबोधन के साथ ही USSR की कहानी अतीत के पन्नों में दर्ज हो गई दुनिया के मानचित्र पर 15 नए देश वजूद में आए. ये देश थे- आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज़्बेकिस्तान. 25 दिसंबर 1991 की शाम 7:32 मिनट पर क्रेमलिन (रूसी राष्ट्रपति का निवास स्थान) से कम्युनिस्ट वर्चस्व का परचम हंसिया-हथौड़ा वाला लाल झंडा उतार दिया गया और इसकी जगह रूसी संघ का झंडा लहरा दिया गया. 

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क्रेमलिन से उतार दिया गया USSR का ध्वज (फाइल फोटो)

एजेंट पुतिन इस विघटन के मूक गवाह थे.  जी हां, पुतिन तब अपने देश के लिए विदेशों में बतौर जासूस के तौर पर काम कर रहे थे. USSR खत्म होने के बाद पुतिन को रूस लौटना पड़ा. रूस अस्थिरता और अव्यवस्था के मुहाने पर खड़ा था. मिखाइल गोर्बाचोव इससे पहले अपनी दो नीतियों पेरेस्त्रोइका (Reconstruction) और ग्लासनोस्त (Political transparency and openness) को लेकर आ चुके थे.  इसके चक्रीय प्रभाव से रूस में महंगाई बेकाबू थी. रूसी युवाओं के सामने एक बिखरती महाशक्ति थी और इसी के साथ बिखर रही थी उनकी महात्वाकांक्षाएं, उनके सपने. कल तक विश्व का सबसे ताकतवर देश का युवा आज अपने भविष्य को लेकर डंवाडोल था. विश्व मंच पर उसकी जगह संकरी हो गई थी.

जब खर्च चलाने के लिए कैब ड्राइवर बने पुतिन

ये बीसवीं सदी का आखिरी दशक था. दुनिया नई सदी, नई उम्मीदों का इंतजार कर रही थी लेकिन आज जिस शख्स को तीसरे विश्व युद्ध की आहट से जोड़ा जा रहा है उस व्यक्ति को 1991 में अपना खर्च चलाने के लिए कैब ड्राइवर बनना पड़ा था. यहां किरदार एक बार फिर से पुतिन का ही है. मात्र दो महीने पहले पुतिन ने एक डॉक्यूमेंट्री में उदासी और बेकारी के उन दिनों का याद किया था. उन्होंने कहा था, "कई बार मुझे ज्यादा पैसा कमाना होता था. मेरा मतलब है कि एक कैब ड्राइवर के रूप में मुझे टैक्सी चलानी पड़ती थी. हालांकि इसके बारे में बात करना सुखद नहीं है, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा था." इस दौर के रूस में टैक्सी मालिक बनना दुर्लभ बात थी और कई लोग कमाई के लिए किराए पर अनजान लोगों को अपनी कार देते थे.

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राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (फाइल फोटो-GETTY)

इस डॉक्यूमेंट्री में सोवियत विघटन प्लान पर पुतिन ने खुल कर अपनी नाराजगी जाहिर की है. पुतिन ने कहा था कि यह सोवियत संघ के नाम पर 'ऐतिहासिक रूस' का विघटन था हम एक पूरी तरह से अलग देश में बदल गए और 1,000 वर्षों में जो बनाया गया था वह काफी हद तक खो गया था. पुतिन की पीड़ा इन शब्दों में झलकती है. 1991 में USSR का क्षेत्रफल 2 करोड़ 20 लाख वर्ग किलोमीटर था. विभाजन के बाद रूस ने अपनी लगभग 50 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन गंवा दी. तुलनात्मक अध्ययन के लिए बता दें भारत का क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किलोमीटर है. रूस के हिस्से में 1 करोड़ 71 वर्ग किलोमीटर जमीन आया. USSR की आधिकारिक भाषा तो रूसी थी, लेकिन यहां 200 से अधिक भाषाएं और बोलियां बोली जाती थीं, यह भूभाग 290 मिलियन से अधिक लोगों का घर था. 

USSR पर 2005 में पुतिन बोले मन की बात

राष्ट्रपति पुतिन ने वर्ष 2005 में USSR पर अपने मन की बात कही थी. उन्होंने इस परिघटना को 20वीं सदी की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक त्रासदी करार दिया था. पुतिन ने कहा था, "सोवियत संघ का विघटन 20वीं सदी की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक त्रासदी थी." याद रखें 20वीं सदी ही वो कालखंड था जब दुनिया में दो विश्व युद्ध हुए, हिटलर का उदय और अंत हुआ, मुनुष्य ने पहली बार परमाणु बम से मानवता का संहार देखा.  ब्रिटेन का साम्राज्यवादी सूरज अस्त हुआ. रूस में भी घोर उथल-पुथल हुआ. 1917 में बोल्शेविक क्रांति हुई इसके नतीजे में 1922 में USSR बना. लेकिन पुतिन की चेतना में 1991 में सोवियत संघ का पतन 20वीं सदी की सबसे बड़ी घटना हैं.  इससे पता चलता है कि इस मुद्दे ने उनकी राजनीतिक चेतना को कितने गहरे स्तर तक प्रभावित किया है. बतौर राष्ट्रपति पुतिन के फैसलों में 'USSR विघटन की त्रासदी' की झलक देखने को मिलती है. वे इस इतिहास को पलटना चाहते हैं.

साल 2000 से क्या कर रहे हैं पुतिन

साल 2000 से लेकर अबतक पुतिन किसी न किसी रूप में रूस की सत्ता में रहे हैं. इस दौरान पुतिन हमेशा मास्को केंद्रित वर्ल्ड ऑर्डर के निर्माण पर काम करने में जुटे रहे. उनकी नजरें उन रिपब्लिक की ओर गई जो 1991 से पहले सोवियत रूस का हिस्सा हुआ करती थीं. 

चेचन्या

रूसी संघ की विस्तारवादी नीति का पहला निशाना चेचन्या था. चेचन्या पूर्वी यूरोप के कॉकस क्षेत्र के उत्तरी भाग में स्थित है. चेचन्या आज रसियन फेडरेशन का हिस्सा है, लेकिन 1991 में  USSR के विघटन से पहले ही चेचन्या ने अपनी आजादी की मुनादी करवा दी थी. तब बोरिस येल्तसिन ने इसे स्वीकार नहीं किया. 1994 में रूस और चेचन्या के बीच पहली लड़ाई हुई और 1996 में ये लड़ाई चेचन्या की जीत के साथ खत्म हुई. रूस ने तब चेचन्या को आजाद मुल्क की मान्यता दे दी. लेकिन तभी सीन में आते हैं व्लादिमीर पुतिन. 

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बता दें कि रूस के पॉवर कॉरिडोर में पुतिन की एंट्री 1998 में पूर्व राष्ट्रपति और मिखाइल गोर्बाचोव के उत्तराधिकारी बोरिस येल्तसिन ने करवाई थी. बुजुर्ग बोरिस को अपने लिए एक काबिल उत्तराधिकारी की तलाश थी, पुतिन के किस्मत के सितारे 1998 में ही उनकी एंट्री क्रेमलिन में करवा चुके थे. 1999 में वे रूस के प्रधानमंत्री बन गए. 

1999 में रूस ने चेचन्या पर निर्णायक हमला शुरू कर दिया. पुतिन इस हमले के रणनीतिकार थे. उनके नेतृत्व में रूस ने चेचन्या को शिकस्त दी और 17 हजार 300 वर्ग किलोमीटर वाले मुस्लिम बहुल इस छोटे से देश को रूस में मिला लिया.

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सैन्य लिबास में राष्ट्रपति पुतिन (फोटो-एएफपी)

 31 दिसंबर 1999 को येल्तसिन ने अचानक अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी. दुनिया 21वीं सदी में आई इसके साथ ही रूस की राजनीति में एक नए युग में प्रवेश कर चुकी थी. चेचन्या में जीत के बाद पुतिन रूस के लोकप्रिय नेता बन गए. सालों बाद उन्हें एक ऐसा चेहरा मिला जो 1991 के बाद दबी कुचली उनकी राष्ट्रवादी भावना भरपूर उभार दे रहा था. मार्च 2000 में पुतिन 53 प्रतिशत वोटों के साथ अपना पहला राष्ट्रपति चुनाव बंपर वोटों से जीते.  पुतिन अब महात्वाकांक्षाओं से लैस थे. वे आक्रामक और विस्तारवादी विदेश नीति पर चल रहे थे.

जॉर्जिया

3 साल बाद ही पुतिन की नजरें USSR का हिस्सा रहे जॉर्जिया पर गई.  जॉर्जिया रूस के दक्षिण-पश्चिम बॉर्डर पर स्थित है. 2003 में जॉर्जिया में विरोध प्रदर्शन का दौर चल पड़ा इसे Rose revolution का नाम दिया गया. 2004 में यहां अमेरिका समर्थित Mikheil saakashivili राष्ट्रपति बन गए. अपने बगलगीर देश अमेरिकी दादागिरी रूस को कतई बर्दाश्त नहीं था. रूस ने वहां असंतुष्टों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया. 2008 में जॉर्जिया की केंद्रीय सरकार और वहां के दो प्रांतों Abkhazia और South ossetia के बीच झगड़े की शुरुआत हो गई. कुछ ही दिन के बाद रूस ने मौके का फायदा उठाकर यहां दखल दिया और इन दोनों प्रातों को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दे दिया. 

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बेलारूस के ऊपर चक्कर लगाता रूसी जेट (फोटो- पीटीआई)

रूस ने यहां अपना मुकम्मल इंतजाम कर लिया है. इन दोनों राज्यों के साथ रूस ने सैन्य समझौता कर इनके क्षेत्र में अपना सैन्य अड्डा स्थापित कर लिया है और उसने यहां 4000 सैनिकों की तैनाती कर रखी है. यहां के जरिये रूस पूरे क्षेत्र में नजर रखता है.

 यूक्रेन

कूटनीतिक हलकों में अक्सर ये कहा जाता है कि आखिर पुतिन यूक्रेन को लेकर इतने जुनूनी (obsessed) क्यों हैं? 1991 में जब USSR का विखंडन हुआ तो रूस इसका सबसे ताकतवर गणराज्य था, लेकिन दूसरे ही नंबर पर यूक्रेन था, जिसका क्षेत्रफल 6.03 लाख वर्ग किलोमीटर है. 44 मिलियन की आबादी वाले इस देश की जीडीपी 155.6 बिलियन डॉलर है. बंटवारे के बाद यूक्रेन के हिस्से में बड़े पैमाने पर न्यूक्लियर हथियार, इंटर कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल आए. लेकिन पश्चिमी कूटनीतिज्ञों ने समझौता कराया और इन हथियारों को फिर से रूस को दिलवा दिया. इसके एवज में मास्को ने वादा किया था वो कीव (यूक्रेन की राजधानी) की संप्रभुता का सम्मान करेगा और उसकी सुरक्षा भी करेगा. 

East या West यूक्रेन किसके करीब 

आज यूक्रेन दो हिस्सा में बंटा दिखता है. पूरब और पश्चिम. पूरब के लोग अपने आप को रूस के करीबी समझते हैं जबकि पश्चिम के लोग खुद को यूरोप से नजदीक मानते हैं. इस देश में इसी प्रभुत्व की लड़ाई है. यूक्रेन का पूर्वी हिस्सा रूस से सटा है और यहां लोग रसियन बोलते हैं जबिक पश्चिम में ठीक इसके विपरित है. यहां लोगों की भावनाओं में रूसी नेतृत्व खलनायक है. 

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बता दें कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के जिन दो प्रदेशों लुहान्सक और दोनेत्स्क को स्वतंत्र देश की मान्यता दी है वे राज्य यूक्रेन के इसी पूर्वी इलाके में स्थित हैं. यहां अलगाववादी ताकतवर हैं और सत्ता भी उन्हीं की है. रूस इन्हें शह देता रहता है. पुतिन इतिहास और भूगोल का हवाला देते हुए यूक्रेन को रूस के ऐतिहासिक गणराज्य का हिस्सा बताते हैं. लेकिन दरअसल वे यूक्रेन को अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के साथ मोल तोल का केंद्र बिन्दू बनाना चाहते हैं. पुतिन यूक्रेन को किसी भी कीमत पर NATO की सदस्य बनते हुए नहीं देखना चाहते हैं. क्योंकि यूक्रेन में NATO जैसे सैन्य संगठन के कदम पड़ने का अर्थ है कि रूस के आंगन में अमेरिका के कदम. 1991 में अपना पतन देख चुका रूस अमेरिका के साथ शक्ति संतुलन में इतना नकारात्मक झुकाव सहन नहीं करना चाहता है.  दरअसल इसलिए पुतिन यूक्रेन को लेकर इसलिए इतने जुनूनी हैं.  

क्रीमिया

यूक्रेन को ही सबक सिखाने के लिए रूस ने 2014 में क्रीमिया को निशाना बनाया. क्रीमिया काला सागर में स्थित एक क्षेत्र है. यह यूक्रेन और रूस दोनों के करीब है. 1954 में सोवियत संघ के तत्कालीन नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को एक तोहफे के तौर पर क्रीमिया को दे दिया था. तब दोनों ही USSR का हिस्सा थे. इसलिए इसका ज्यादा मतलब नहीं था.  पर1991 में जब सोवियत संघ टूटा और यूक्रेन और रूस अलग-अलग हुए तो सवाल खड़ा हुआ. आखिर क्रीमिया पर कब्जा किसका हो? फिलहाल क्रीमिया यूक्रेन के पास ही रहा. लेकिन इससे रूस खुश नहीं था. 

अब आते हैं साल 2010. फरवरी 2010 में यूक्रेन में आम चुनाव हुए. इस चुनाव में विक्टर यानुकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति बने, वे रूस के समर्थक थे. नवंबर 2013 में यानुकोविच यूरोपियन यूनियन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने से पीछे हट गए. इस समझौते से यूक्रेन को 15 अरब डॉलर का आर्थिक पैकेज मिलने वाला था. दरअसल रूस नहीं चाहता था कि यूक्रेन इस पैकेज को लेकर पश्चिमी देशों के क्लच में चला जाए. यानुकोविच ने रूस से ही बेलआउट पैकेज लिया. पुतिन पर्दे के पीछे यानुकोविच के साथ काम कर रहे थे. 

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इस फैसले का व्यापक विरोध हुआ. इस प्रदर्शन Euromaidan नाम दिया गया.   Euromaidan इसलिए क्योंकि ये यूरो के समर्थन में थे और ये प्रदर्शन कीव के एक मैदान में हो रहा था. रूस यानुकोविच का समर्थन कर रहा था जबकि पश्चिमी देश प्रदर्शनकारियों के साथ थे. फरवरी 2014 में यानुकोविच की सरकार गिर गई.  उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा, शरण मिली रूस में.  इसके साथ ही Oleksandr Turchynov यूक्रेन के राष्ट्रपति बने. 

रूस क्रीमिया को लेकर अपनी मंशा पहले ही जाहिर कर चुका था. रूस से हमदर्दी रखने वाले सांसदों ने इस सरकार को मानने से इनकार कर दिया और सर्गेई अक्सियोनोव को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. 

क्रीमिया का Liberation या annexation

6 मार्च 2014 को क्रीमिया की संसद ने यूक्रेन से अलग होने और रूसी संघ में शामिल होने के लिए मतदान किया, इस मामले पर 16 मार्च, 2014 को एक सार्वजनिक जनमत संग्रह होना था. उम्मीद के मुताबिक इस कदम की रूस ने सराहना की जबकि पश्चिमी देशों में इसकी व्यापक रूप से निंदा की गई. 

अनिश्चितताओं के बादल, हिंसा की आशंका के बीच 16 मार्च को जनमत संग्रह हुआ. इसके नतीजे आश्चर्यजनक रूप से चौकानें वाले रहे. लोगों ने रूस में शामिल होने के लिए 97 फीसदी बहुमत दिया था. हालांकि ये जनमत कितना वैध और पारदर्शी था इसका जवाब इस पर निर्भर करता है कि ये सवाल आप यूक्रेनियों से पूछते हैं या रूसियों से.

18 मार्च 2014 को पुतिन ने अक्सियोनोव से मुलाकात की और एक संधि पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत क्रीमिया रूस का हिस्सा बना. पुतिन इसे क्रीमिया का Liberation बताते हैं जबकि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से इसे क्रीमिया का annexation कहते हैं. 

कजाकिस्तान

1991 से पहले कजाकिस्तान USSR का ही एक रिपब्लिक था. ये देश अभी भी रूस के प्रभाव क्षेत्र में आता है. लिहाजा यहां रूस की संस्कृति, भाषा का व्यापक प्रभाव है. इसी साल जनवरी में कजाकिस्तान में गैस की बढ़ती कीमतों को लेकर प्रदर्शन शुरू हुआ और यहां हिंसा भड़क उठी. देखते ही देखते आगजनी-रक्तपात शुरू हो गया. ये हंगामा पश्चिमी मांगिस्ताउ से शुरू हुआ था फिर राजधानी तक पहुंच गया. अल्माटी में आगजनी हुई. दंगाइयों ने सरकारी इमारतें फूंक दी. हालत बिगड़ते देख राष्ट्रपति कासिम जोमार्त तोकायेव ने आपातकाल लागू कर दिया. इसके बाद राष्ट्रपति तोकायेव ने सीधे रूस से मदद मांगी. 

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कजाकिस्तान में रूस की सेना की तैनाती की गई थी (फोटो- पीटीआई)

रूस को मानो इसी मौके का इंतजार था. पुतिन ने सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (Collective security treaty organisation)के प्रावधानों के अनुसार अपनी सेना वहां भेज दी.  बता दें कि कजाखस्तान की उत्तरी सीमा रूस से तो पूर्वी सीमा चीन से लगती है. रूस कजाकिस्तान की अशांति को विदेशी ताकतों की करतूत बताता है. दरअसल इस क्षेत्र में रूस अपना प्रभुत्व हर हाल में बनाए रखना चाहता है. बता दें कि कजाकिस्तान में 1991 के बाद एक पार्टी की सरकार है और राष्ट्रपति तोकायेव रूस समर्थक माने जाते हैं. दरअसल यहां नूर सुल्तान 1991 से 2019 तक सत्ता में रहे, इसके बाद उन्होंने तोकोयेव को राष्ट्रपति पद सौंप दिया.  रूस कजाकिस्तान के एलीट्स को समर्थन करता है और इस देश के जरिए सेंट्रल एशिया में अपना रुतबा कायम रखना चाहता है. 

 इस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया

रूस के प्रभुत्व का असर USSR के सदस्य रहे तीन छोटे-छोटे राष्ट्रों पर भी दिखता है. ये देश हैं बाल्टिक क्षेत्र में स्थित इस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया. बाल्टिक क्षेत्र पूर्वी यूरोप में स्थित है. दिसंबर 2021 में इस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया के रक्षा मंत्री ने एक बयान जारी कर कहा है कि इस क्षेत्र में रूस और बेलारूस की दादागिरी से निपटने के लिए संयुक्त प्रयासों की जरूरत है. बता दें कि ये दिनों छोटे देश रूस के लिए रणनीतिक महत्व रखते हैं क्योंकि इसके जरिये रूस यूरोप में अपना प्रभाव कायम रख सकता है. इन बाल्टिक देशों में रूसी बोलने वाली जनसंख्या भी अच्छी खासी तादाद में मौजूद है. इसलिए रूसी संभ्रांत इन इलाकों में रूसी कब्जे को जायज ठहराते हैं. 

बेलारूस

रूस के पश्चिम और लिथुआनिया के नीचे स्थित बेलारूस से रूस के दोस्ताना संबंध हैं. इसकी वजह ये है कि बेलारूस के अलेक्जेंडर लुकाशेंको को रूस का समर्थक माना जाता है. पिछले साल बेलारूस में सरकार विरोधी प्रदर्शन बड़े पैमाने पर हो रहे थे तब पुतिन न सिर्फ अलेक्जेंडर लुकाशेंको के साथ मजबूती के साथ खड़े रहे बल्कि उन्हें  50 करोड़ डॉलर का लोन भी दिया. राष्ट्रपति लुकाशेंको को यूरोप का लास्ट डिक्टेटर भी कहा जाता है. वह पिछले 27 सालों से सत्ता में हैं. लुकाशेंको की बदौलत पुतिन ने रूस का दबदबा यहां कायम रखा है. 

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