हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
पाताल संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. पुरुणानुसार पुथ्वी के नीचे के सात लोकों में से सातवाँ ।
२. पृथ्वी से नीचे के लोक । अधोलोक । नागलोक । उपस्थान । विशेष— पाताल सात माने गए हैं । पहला अतल, दूसरा वितल, तीसरा सुतल, चौथा तलातल, पाँचवाँ महातल, छठा रसातल और सातवाँ पाताल । पुरुणों में लिखा है कि प्रत्येक पाताल की लंबाई चौडा़ई १० । १० हजार योजन है । सभी पाता ल धन, सुख और शोभा से परिपूर्ण हैं । इन विषयों में ये स्वर्ग से भी बढकर हैं । सूर्य और चंद्रमा यहाँ प्रकाश मात्र देते हैं, गरमी तथा सरदी नहीं देने पाते । पृथ्वी या भूलोक के बाद ही जो पाताल पड़ता है उसका नाम अतल है । यहाँ की भूमि का रंग काला है । यहाँ मय दानव का पुत्र 'वल' रहता है जिसने ९६ प्रकार की माया की सृष्टि कर रखी है । दूसरा पाताल वितल है । इसकी भूमि सफेद है । यहाँ भगवान् शंकर पार्षदों और पार्वती जी के साथ निवास करते हैं । उनके वीर्य से हाटकी नाम की नदी निकली है जिससे हाटक नाम का सोना निकलता है । दैत्यों की स्त्रियाँ इस सोने को बडे यत्न से धारण करती है । तीसरा अधोलक सुतल है । इसकी भूमि लाल है । यहाँ प्रह्लाद के पौत्र बलि राज करते हैं जिनके दरवाजे पर स्वयं भगवान् विष्णु आठ पहर चक्र लेकर पहरा देते हैं । यह अन्य पातालों से अधिक समृद्ध, सुखपूर्ण और श्रेष्ठ है । तलातल चौथा पाताल है । दालवेंद्र मय यहाँ का अधिपति है । इसकी भूमि पीले रंग की है । यह मायाविदों का आचार्य और विदिध मायाओं में निपुण है । पाँचावाँ पाताल महातल कहाता है । यहाँ की मिट्टी खाँड मिली हुई है । यहाँ कद्रु के महाक्रोधी पुत्र सर्प निवास करते हैं जिनमें से सभी कई कई सिरवाले हें । कुहक, तक्षक, सुषेन और कालिय इनमें प्रधान हैं । छठा पाताल रसातल है । इसकी भूभि पथरीली है । इनमें दैत्य, दानव और पाणि (पाणि) नाम के अमुर इंद्र के भय से निवास करते हैं । सातवाँ पाताल पाताल नाम से ही प्रसिद्ध है । यहाँ की भूमि स्वर्णमय है । यहाँ का अधिपति वासुकि नामक प्रसिद्ध सर्प है । शंख, शंखचूड़, कूलिक, धनंजय आदि कितने ही विशाल- काय सर्प यहाँ निवास करते हैं । इसके नीचे तीस सहस्र योजन के अंतर पर अनंत या शेष भगवान का स्थान है ।
३. विवर । गुफा । बिल ।
४. बड़वानल । ५बालक के लग्न से चौथा स्थान ।
६. छंद:शास्त्र में वह चंद्र (चक्र) जिसके द्वारा मात्रिक छंद की संख्या, लघु, गुरु, कला आदि का ज्ञान होता है ।
७. पातालयंत्र । वि॰ दे॰ 'पातालयंत्र' ।
पाताल तुंबी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पातालतुम्बी ] एक प्रकार की लता जो प्राय: खेतों में होती है । पातालतोबी । विशेष—इसमें पीले रंग के बिच्छू के डंक के से काँटे होते हैं । वैद्यक में इसे चरपरी, कड़वी, विषदोषविनाशक, तथा प्रसूतकालीन अतिसार, दाँतों की जड़ता और सूजन; पसीना तथा प्रलापवाले ज्वर को दूर करनेवाली माना है । पर्या॰—गर्तालंबु । भूतुंबी । देवी । वल्मीकसंभवा । दिव्यतुंबी । नागुंबी । शक्रचापसमुद्रुवा । पंडित संत राम मिश्रा
पाताल लोक (source: Pixabay) | तस्वीर साभार: Representative Image
मुख्य बातें
- ब्रह्मांड में भूलोक और स्वर्गलोक के जैसे ही पाताल लोक का भी अस्तित्व है
- हिंदू महाग्रंथों और पुराणों के मुताबिक ब्रह्मांड में तीन लोक हैं जिसे त्रैलोक्य कहा जाता है
- पृथ्वी के नीचे सात लोक हैं और सबसे अंतिम लोक पाताल लोक है
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक जिस तरह भू लोक और स्वर्गलोक का ब्रह्मांड में अस्तित्व है उसी तरह से पाताल लोक का भी अस्तित्व है। आज हम इसी पाताल लोक के बारे में जानने की कोशिश करेंगे कि ये आखिर में कहां पर है और कैसा दिखता है। हिंदू महाग्रंथों और पुराणों के मुताबिक ब्रह्मांड में तीन लोक हैं जिसे त्रैलोक्य कहा जाता है। इसे कृतक त्रैलोक्य, महर्लोक और अकृतक त्रैलोक्य कहा जाता है।
कृतक त्रैलोक्य को त्रिभुवन भी कहा जाता है इसके तीन भेद हैं- भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक। जितनी दूर तक सूर्य, चंद्रमा आदि का प्रकाश जाता है भूलोक कहलाता है। इसके अलावा पृथ्वी और सूर्य के बीच के लोक को भुवर्लोक कहते हैं यह सभी ग्रहों और नक्षत्रों का क्षेत्र है। तीसरा स्वर्लोक इसे स्वर्गलोक भी कहा जाता है। यह सूर्य और ध्रुव के बीच का भाग है जिनके बीच चौदह लाख योजन की दूरी का अंतर है। इसी में स्पतर्षि मंडल आता है।
क्या है पाताल लोक
पुराणों में पाताल लोक से जुड़ी कई कहानियों का वर्णन मिलता है। पुराणों के अनुसार भूलोक यानि पृथ्वी के नीचे सात लोग स्थित है जिनमें सबसे निचला हिस्सा पाताल लोक कहलाता है। कहा जाता है कि इक बार देवी पार्वती की कान की बाली गलती से पाताल लोक में गिर गई थी उन्होंने काफी इसे ढूंढ़ने की कोशिश की लेकिन उन्हें इसका पता नहीं चला। भूलोक के नीचे रहने वाले शेषनाग को जब इसका पता लगा
तो उन्होंने क्रोधित होकर पाताल लोक से ही जोर की फुफकार मारी और पृथ्वी के अंदर से गर्म जल की फुहार निकल पड़ी और इसी जल के साथ मणि (कान की बाली) भी बाहर आ गई।
पृथ्वी के नीचे के सातों लोगों के नाम हैं क्रमश: अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल। विष्णु पुरान के मुताबिक पूरे भूलोक का क्षेत्रफल 0 करोड़ योजन है और इसकी उंचाई 70 सहस्त्र योजन है। और इसी के नीचे ये सातों लोक बसे हैं।
ये हैं पाताल लोक के निवासी
ऐसा माना जाता है कि पाताल लोक के सबसे मध्य भाग
में शेषनाग विराजमान हैं। पाताल लोग के निवासियों में दैत्य, दानव, मत्स्य कन्याओं की जातियां, नागों इत्यादि पाए जाते हैं। इसके अलावा यहां पर हिमालय के समान ही एक पर्वत भी है जिसे अरुणनयन भी कहा जाता है।
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