उन्होंने 9 साल की उम्र से उन्होंने बोलना शुरू किया। उनके पहली बार बोलने का किस्सा भी काफी दिलचस्प है। उन्हें खाना खाते समय सूप गर्म लगा तो उन्होंने बोला कि सूप बहुत गर्म है यह सुनकर उनके मां-बाप बेहद खुश हुए और पूछा कि अब तक वे बोलते क्यों नहीं थे तो आइंस्टीन का जवाब था अब तक तो सब कुछ सही था,
इसलिए नहीं बोला। बचपन से थे विज्ञान में होशियार
अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को तत्कालीन जर्मन साम्राज्य के उल्म शहर में रहने वाले एक यहूदी परिवार में हुआ था। उल्म आज जर्मनी के जिस बाडेन राज्य में पड़ता है, वह उस समय जर्मन साम्राज्य की व्यूर्टेमबेर्ग राजशाही का शहर हुआ करता था, लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन का बचपन उल्म के बदले बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में बीता। उनका परिवार उनके जन्म के एक ही वर्ष बाद म्यूनिख में रहने लगा था। आइंस्टीन बचपन से शर्मीले बच्चों में शामिल
हो गए थे। बहुत बड़ी उम्र तक वे बोलते भी नहीं थे, उनके मां-बाप उनके न बोलने से बहुत परेशान थे, 4 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार बोलना सीखा लेकिन तब भी बहुत साफ नहीं बोलते थे।
इसे भी पढ़ें:Explained: ट्रेन की पटरियों पर इसलिए होते हैं पत्थर, जानें रोचक तथ्य
आइंस्टीन बचन से ही भाषाएं छोड़ कर हर विषय में, विशेषकर
विज्ञान में बहुत तेज़ थे। विज्ञान की किताबें पढ़-पढ़ कर स्कूली दिनों में ही आइंस्टीन सामान्य विज्ञान के अच्छे-ख़ासे ज्ञाता बन गए थे। जर्मनी के अलावा वे उसके पड़ोसी देशों स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया में भी वहां के नागरिक बन कर रहे। 1914 से 1932 तक बर्लिन में रहने के दौरान हिटलर की यहूदियों के प्रति घृणा को समय रहते भांप कर अल्बर्ट आइंस्टीन अमेरिका चले गये। वहीं, 18 अप्रैल 1955 के दिन उन्होंने प्रिन्स्टन के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली।
आइंस्टीन का सापेक्षता
सिद्धांत
आइंस्टीन को जिस चीज़ ने अमर बना दिया, वह था उनका सापेक्षता सिद्धांत। उन्होंने गति के स्वरूप का अध्ययन किया और कहा कि गति एक सापेक्ष अवस्था है। आइंस्टीन के मुताबिक ब्रह्मांड में ऐसा कोई स्थिर प्रमाण नहीं है, जिसके द्वारा मनुष्य पृथ्वी की निरपेक्ष गति या किसी प्रणाली का निश्चय कर सके, गति का अनुमान हमेशा किसी दूसरी वस्तु को संदर्भ बना कर उसकी अपेक्षा स्थिति-परिवर्तन की मात्रा के आधार पर ही लगाया जा सकता है। 1907 में प्रतिपादित उनके इस सिद्धांत को सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत
कहा जाने लगा।
इसे भी पढ़ें:Neeraj Chopra: बचपन में बनता था मजाक, जानें नीरज चोपड़ा की पढ़ाई से लेकर आर्मी और ओलिंपिक तक की कहानी
आइंस्टीन के दिमाग के किए 200 टुकड़े
आइंस्टीन के
मरने के बाद बिना उनके परिवार की सहमति के पैथोलोजिस्ट डॉ. थॉमस स्टोल्ट्ज हार्वे ने उनका दिमाग उनकी खोपड़ी से अलग निकाल लिया और हॉस्पिटल के लाख मनाने के बावजूद इसे नहीं लौटाया। करीब 20 सालों तक इसे ऐसे ही रखा, 20 सालों बाद आइंस्टीन के बेटे हैंस अल्बर्ट की अनुमति के बाद उन्होंने उस पर अध्ययन करना शुरू किया। जानकर हैरानी होगी लेकिन आइंस्टीन के दिमाग के 200 टुकड़े कर थॉमस ने उसे अलग-अलग वैज्ञानिकों को भेजा गया था। उन्हें इसके लिए हॉस्पिटल से निकाल भी दिया गया था लेकिन इसी अध्ययन में पता चला कि साधारण
लोगों के दिमाग की तुलना में आइंस्टीन के दिमाग में एक असाधारण सेल संरचना थी।
इसी कारण आइंस्टीन का दिमाग बहुत असाधारण सोचता था, आइंस्टीन की आंखें तक एक बॉक में सुरक्षित रखी गई हैं।
Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप
लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें