पथ प्रदर्शन: भारतीय संविधान > भाग 3 : मूल अधिकार > स्वातंत्र्य अधिकार > अनुच्छेद 19 Show
वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार का स्थान मूल अधिकारों में सर्वोच्च माना जाता है। किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है कि “स्वतन्त्रता ही जीवन है”, क्योंकि इस अधिकार के अभाव में मनुष्य के लिए अपने व्यक्तित्व का विकास करना संभव नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक में भारत के नागरिकों को स्वतंत्रता सम्बन्धी विभिन्न अधिकार प्रदान किये गये हैं। ये चारों अनुच्छेद दैहिक स्वतन्त्रता के अधिकार पत्र-स्वरूप हैं। उपर्युक्त स्वतंत्रता मूल अधिकारों की आधार-स्तम्भ हैं। इनमें छह मूलभूत स्वतन्त्रताओं का स्थान सर्वप्रमुख है। अनुच्छेद 19 भारत के सभी नागरिकों को निम्नलिखित छह स्वतन्त्रताएँ प्रदान करता है 19(1): सभी नागरिकों को- (क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का, (ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का, (ग) संगम या संघ 1या सहकारी सोसाइटी बनाने का, (घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का, (ड) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, 2और (च)3 ——नाबूद (संपति का अधिकार) (छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का, अधिकार होगा। 19(2):4 खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 5भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। 19(3): उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। 19(4): उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 5भारत की प्रभुता और अखंडता या लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। 19(5): उक्त खंड के 6उपखंड (घ) और उपखंड (ङ) की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके परिवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। 19(6): उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निर्धारित नहीं करेगी और विशिष्टतया 7उक्त उपखंड की कोई बात (i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने के लिए आवश्यक वृतिक या तकनीकी अर्हताओं से, या (ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारोबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से, जहां तक कोई विद्यमान विधि संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी। संशोधन
-संविधान के शब्द अनुच्छेद 19 का स्पष्टीकरण‘स्वतंत्रता ही जीवन है’, मनुष्य के लिए अपने व्यक्तित्व का विकास करने स्वतंत्रता का अधिकार होना अति आवश्यक है। इसीलिए वैयक्तिक स्वतन्त्रता के अधिकार का स्थान मूल अधिकारों में सर्वोच्च माना जाता है। अनुच्छेद 19(1) भारत के नागरिकों को छह स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है, और अनुच्छेद 19(2) से 19(6) तक इन अधिकारों पर योग्य पाबंधी या सीमा का प्रावधान है अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकार केवल ‘नागरिकों को ही प्राप्त हैं- अनुच्छेद 19 सिर्फ भारत के नागरिकों ही स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है इस अनुच्छेद में ‘नागरिक’ शब्द का प्रयोग करके यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इसमें प्रदानकी हुई स्वतन्त्रताएँ केवल भारत के नागरिकों को ही उपलब्ध हैं, किसी विदेशी को नहीं। ध्यान दे: अनुच्छेद 19 में ‘नागरिक’ शब्द से केवल मनुष्य मात्र का बोध होता है, कृत्रिम व्यक्ति का नहीं, इस वजह से कोई संस्था, या कंपनी नागरिक नहीं है अतएव वह इन अधिकारों का दावा नहीं कर सकती। छह स्वतंत्रताएँ (Six Freedoms Rights)
उचित प्रतिबन्ध (Reasonable Restrictions)इस अनुच्छेद में स्वतंत्रता के साथ उचित प्रतिबन्ध का प्रावधान करके संविधान निर्माताने बहुत ही अच्छा संतुलन बनाया है जैसा विदित है कि, उपर्युक्त सभी स्वतन्त्रताएँ आत्यन्तिक (absolute) नहीं हैं। किसी भी देश में नागरिकों के अधिकार असीमित नहीं हो सकते हैं। एक व्यवस्थित समाज में ही अधिकारों का अस्तित्व हो सकता है। नागरिकों को ऐसे अधिकार नहीं प्रदान किये जा सकते जो समस्त समुदाय के लिये अहितकर हों। यदि व्यक्तियों के अधिकारों पर समाज अंकुश न लगाये तो उसका परिणाम विनाशकारी होगा। स्वतन्त्रता का अस्तित्व तभी सम्भव है जब वह विधि द्वारा कुछ सीमा तय की हो। अपने अधिकारों के प्रयोग में हम दूसरों के अधिकारों पर आघात नहीं पहुँचा सकते हैं। ए० के० गोपालन के मामले में न्यायाधिपति श्री पतंजलि शास्त्री ने यह अवलोकन किया है कि
यहा पर सबसे बड़ा सवाल उठा की युक्तियुक्त(उचित) प्रतिबंध किसको माना आये? युक्तियुक्त प्रतिबंधो की कसौटी (What Is Reasonable Restriction)‘युक्तियुक्त’ निर्बंन्धन क्या है, एक कठिन प्रश्न है। प्रतिबंधो की उचितता को जाँचने के लिए कोई निश्चित कसौटी संविधान में या, न्यायलय द्वारा बनायी नहीं गई है। इस बात का निर्णय प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर ही किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट कुछ सामान्य नियम स्थापित किये हैं, जिनके आधार पर निर्बन्धनों की युक्तियुक्तता की जाँच की जाती है। वे इस प्रकार हैं (1) कोई निर्बन्धन युक्तियुक्त है या नहीं, इस प्रश्न का अन्तिम निर्णय देने की शक्ति न्यायालयों को है, विधानमण्डल को नहीं
(2) नागरिकों के अधिकारों पर लगाये गये निर्बन्धन अन्यायपूर्ण या सामान्य जनता के हितों में अपेक्षित हैं, उससे अधिक नहीं होना चाहिये। (3) उचितता का कोई सामान्य मापदंड नही होगा, वह प्रत्येक केस को सुनने के बाद तय किया जाएगा (4) राज्य की नीति के निदेशक-तत्वों(DPSP) में निहित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लगाये गये प्रतिबन्ध युक्तियुक्त माने जा सकते हैं -मेनें 4 निर्देश लिखे है, ऐसे और भी निर्देश है जिसको दुसरे लेख में देखेंगे वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता- अनुच्छेद 19(1)(क) & 19(2)The Right To Freedom of Speech And Expression अनुच्छेद 19(1)(क) में वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान है और अनुच्छेद 19(2) में उसके उपर लगे प्रतिबंधो की यादी है वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रजातान्त्रिक शासन-व्यवस्था की आधारशिला है। प्रत्येक प्रजातान्त्रिक सरकार इस स्वतंत्रता को बड़ा महत्व देती है। वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ क्या है? शब्दों, लेखों, मुद्रणों (printing), चिन्ह्रों या किसी अन्य प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त करना। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हें संप्रेषित कर सके। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता क्यों जरुरी है?इण्डियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि ‘अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता’ चार विशेष उद्देश्यों की पूर्ति करती है
व्युत्पन्न अधिकार (Derivative Rights)वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मे सम्मिलित अधिकार
बन्ध, प्रदर्शन या धरना, और हड़ताल के अधिकारबन्द का आह्वान एवं आयोजन असंवैधानिकबन्द का आयोजन करना असंवैधानिक(Unconstitutional) और अवैध(Illegal) है। (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) बनाम भरत कुमार और अन्य’) इस केस में केरल उच्च न्यायालय ने ‘बन्द’ और ‘हड़ताल’ में भेद नागरिकों के मूल अधिकारों पर इनके द्वारा पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर किया था। उच्च न्यायालय के अनुसार ‘बन्द’ से नागरिकों के मूल अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और वे उनके प्रयोग करने से वंचित हो जाते हैं जबकि हड़ताल का ऐसा प्रभाव नहीं पड़ता है। केरल उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि बन्द के आह्वान में नागरिकों को अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से यह धमकी दी जाती है कि वे अपनी सभी कार्यकलापों, और पेशों को रोक दें और घर से बाहर न जाएं अन्यथा उसका परिणाम भयानक होगा। यदि शारीरिक हिंसा न भी हो तो भी नागरिकों में मनोवैज्ञानिक भय व्याप्त हो जाता है जिसके कारण वे अपने मूल अधिकारों का प्रयोग करने से वंचित हो जाते हैं। जब किसी नागरिक को बलपूर्वक काम पर जाने या अपने कारोबार या पेशे को करने से रोका जाता है तो उसके मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है। संक्षेप्त में: बन्द का आह्वाहन करना, उसमे भाग लेना, सभी गैर क़ानूनी है और देश के विकास में अवरोध पैदा करती है हड़ताल का अधिकारहड़ताल करने का अधिकार अनुच्छेद 19(1) (क) के अन्तर्गत कोई मूल अधिकार नहीं है, अतएव किसी भी व्यक्ति को हड़ताल करने से रोका जा सकता है। प्रदर्शन जब हड़ताल का रूप धारण कर लेता है तो वह विचारों की अभिव्यक्ति नहीं रहता है क्योकि हड़ताल में भी सामान्य नागरिक और देश को नुकशान जेलना पड़ता है जैसे:- बस ड्राईवर की हड़ताल, डॉक्टर की हड़ताल, बैंक कर्मचारी की हड़ताल प्रदर्शन या धरनाप्रदर्शन करना या धरना देना (Demonstration or picketing) भी मनुष्य की अभिव्यक्ति में समाविष्ट हैं। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उसी प्रदर्शन और धरने को मिलेगी जो अहिंसक है और बिन उपद्रवी होंगे, जैसे ही प्रदर्शन हिंसक होते है उसकी स्वतंत्रता का अधिकार चला जाता है, और हिंसक प्रदर्शनकारी पर पुलिस दमन नीति अपना सकती है जैसे:- जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रदर्शन, बलत्कार के अपराधी को सजा देनी की मांग के लिए प्रदर्शन, सरकार की नीति के खिलाफ धरना आसान शब्दों में समझे तो, मांग मंगवाने के लिए गंभीरता के आधार पर बन्ध का आह्वाहन > हड़ताल > प्रदर्शन या धरना क्रमानुसार है प्रतिबंध के आधार अनुच्छेद 19(2)अनुच्छेद 19(2) में निम्नलिखित आधारों का उल्लेख है जिनके आधार पर नागरिकों की वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं
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नमस्ते! मैं मेहुल जोशी हूँ। मैंने इस ब्लॉग को संवैधानिक प्रावधानों और भारतीय कानूनों को बहुत आसान बनाने की दृष्टि से बनाया है ताकि आम लोग भी कानून आसानी से समझ सकें। आर्टिकल 19 में क्या लिखा है?अनुच्छेद 19 सिर्फ भारत के नागरिकों ही स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। इस अनुच्छेद में 'नागरिक' शब्द का प्रयोग करके यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इसमें प्रदानकी हुई स्वतन्त्रताएँ केवल भारत के नागरिकों को ही उपलब्ध हैं, किसी विदेशी को नहीं।
आर्टिकल 19 1 g क्या है?सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत एक शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इस तरह के अधिकार पर उचित प्रतिबंध केवल एक कानून द्वारा लगाया जा सकता है और एक कार्यकारी निर्देश द्वारा नहीं।
आर्टिकल 20 में क्या है?सही उत्तर अपराधों के लिए सजा के संबंध में संरक्षण है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए सजा के संबंध में संरक्षण से संबंधित है। अनुच्छेद 20 एक आरोपी व्यक्ति, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी, को मनमानी और अत्यधिक सजा के खिलाफ तीन प्रकार की सुरक्षा प्रदान करता है।
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