आर्यभट्ट का जीवन परिचय हिंदी में PDF - aaryabhatt ka jeevan parichay hindee mein pdf

आर्यभट्ट का जीवन परिचय हिंदी में PDF - aaryabhatt ka jeevan parichay hindee mein pdf


जन्म:
476 ई. कुसुमपुर पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना, बिहार)
मृत्यु: 550 ई.
कार्य: गणितज्ञ, खगोलशास्त्री


आर्यभट्ट (Aryabhata) का जन्म 476 ई. में बिहार के मगध, (आधुनिक पटना) के पाटलिपुत्र में हुआ था। वह भारतीय गणितज्ञ और भारतीय खगोल विज्ञान के शास्त्रीय युग के महान गणितज्ञ-खगोलशास्त्री थे। उन्होंने हिंदू और बौद्ध परंपरा दोनों का अध्ययन किया। आर्यभट्ट अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में आए थे। उस समय नालंदा शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था। जब उनकी पुस्तक 'आर्यभटीय' (गणित की पुस्तक) को एक उत्कृष्ट रचना मान लिया गया तो तत्कालीन गुप्त शासक बुद्धगुप्त ने उन्हें विश्वविद्यालय का प्रधान बना दिया। आर्यभट्ट ने बिहार के तारेगना में सूर्य मंदिर में एक वेधशाला भी स्थापित की।

आर्यभट्ट के कार्यों की जानकारी उनके द्वारा रचित ग्रंथों से मिलती है। जिसके अनुसार आर्यभट्ट प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि पृथ्वी गोल है और वह अपनी धुरी पर घूमती है जिससे दिन और रात उत्पन्न होते हैं। उन्होंने घोषणा की कि चाँद पर अंधेरा है और वह सूर्य के प्रकाश के कारण चमकता है। सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण के बारे में उनका विश्वास था कि यह राहु के सूर्य या चंद्र को हड़पने से नहीं होता जैसा कि हिंदू पौराणिक कथाओं में आता है, बल्कि पृथ्वी और चाँद की छायाओं के कारण होता है। वह ब्रह्मांड की भूकेंद्रीय अवधारणा में विश्वास करते थे कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है। ग्रहों की अनिश्चित या अनियमित गति को समझाने के लिए उन्होंने यूनानी राजा टॉलमी की तरह अधिचक्र (ऐपी साइकल) का उपयोग किया। लेकिन इनका तरीका टॉलमी से अधिक अच्छा था।

गणित में भी आर्यभट्ट का योगदान समान महत्व रखता है। उन्होंने गणित के क्षेत्र में महान आर्किमिडीज़ से भी अधिक सटीक ‘पाई’ का मान 3.1416 बताया और पहली बार कहा कि यह सन्निकटमान है। और वही पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने ज्या सारणी (Table of Sines) दी। उनकी अनिर्धारित समीकरण (इनडिटरमीनेट इक्वेशन) की हल पद्धति जैसे ए एक्स-बी वाई-सी आज पूरी दूनिया के गणित के छात्र और ज्ञाता जानते हैं। उन्होंने बड़ी संख्याओं जैसे 100,000,000,000 को शब्दों में लिखने का नयी तरीका उत्पन्न किया था। वह बड़ी बड़ी संख्याओं को कविता की भाषा में व्यक्त करते थे।

Read in English: Aryabhatta Great Mathematician Short Biography

आर्यभट्ट कि गणना के अनुसार पृथ्वी की परिधि 39,968.0582 किलोमीटर है, जो इसके वास्तविक मान 40,075.0167 किलोमीटर से केवल 0.2% कम है। अपने ग्रंथ आर्यभटीय में उन्होंने गणित तथा खगोल शास्त्र की गणना के दूसरे पहलुओं पर भी जैसे रेखा गणित, विस्तार कलन (मैन्सूरेशन), वर्गमूल (स्क्वायर रूट), घनमूल (क्यूब रूट), श्रेणी (प्रोग्रेशन) और खगोलीय आकृतियों पर भी प्रकाश डाला। आर्यभटीय में कुल 108 छंद है, साथ ही परिचयात्मक 13 अतिरिक्त हैं। यह चार पदों अथवा अध्यायों में विभाजित है–

1. गीतिकपाद
2. गणितपाद
3. कालक्रियापाद
4. गोलपाद
5. आर्य-सिद्धांत

अपनी वृद्धावस्था में आर्यभट्ट ने एक और पुस्तक 'आर्यभट्ट सिद्धात' के नाम से लिखी। यह दैनिक खगोलीय गणना और अनुष्ठानों के लिए शुभ मुहूर्त निश्चित करने के काम आती थी। आज भी पंचांग बनाने के लिए आर्यभट्ट की खगोलीय गणनाओं का उपयोग किया जाता है। गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्रों में उनके योगदान की स्मृति में ही भारत के पहले उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया है।

आर्यभट्ट का निधन 550 ई.पू. में 74 वर्ष की आयु में हुआ। लेकिन उनके जीवन की अंतिम अवधि और ठिकाने के सटीक स्थान अभी भी दुनिया के लिए अज्ञात हैं।


Aryabhatta biography in Hindi: आर्यभट्ट भारत के पहले महान गणितज्ञ तथा खगोल विज्ञानी थे। उनका जन्म आज से लगभग 1600 वर्ष पहले हुआ था। उस समय में भारत एक स्वतंत्र देश नहीं था। तब राजाओं का शासन हुआ करता था। आर्यभट्ट ने अपनी मेहनत से गणित और खगोल विज्ञान के कई सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। 

वे राजाओं के शासन के उथल-पुथल, युद्ध, व अनिश्चित शासन से प्रभावित नहीं हुए तथा अपने कार्य को जारी रखा। प्राचीन भारत में उनके जैसा महान वैज्ञानिक कोई नहीं हुआ था। 12 वीं शताब्दी में जन्मे भास्कराचार्य ने अपनी बुद्धिमता से आर्यभट्ट के समान खोज कार्य किए जिसकी वजह से उनका भी नाम महान वैज्ञानिकों में प्रसिद्ध हुआ।

तो आइए दोस्तों जानते हैं आर्यभट्ट के जीवन परिचय (Aryabhatta Biography) के बारे में। 

  • आर्यभट्ट का परिचय (Introduction to Aryabhatta)
  • आर्यभट्ट की रचनाएं (Aryabhatta’s Creations)
    • आर्यभट्ट का ग्रंथ (Aryabhatta’s Grantha)
    • गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट के योगदान (Aryabhatta’s Work in Math)
      • शून्य की उत्पत्ति
      • पाई का मान
      • बीजगणित व समीकरणें
    • खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट के योगदान (Aryabhatta’s Work in Astrology)
      • ग्रहों की गति
      • सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण
      • दिन-रात व वर्ष का होना 
  • आर्यभट्ट की मृत्यु (Death of Aryabhatta)
  • आर्यभट्ट की प्रतिष्ठा में किए गए कार्य (Works for the Prestige of Aryabhatta)
  • बार-बार पूछे गए प्रश्न (FAQS)

आर्यभट्ट का परिचय (Introduction to Aryabhatta)

नाम आर्यभट्ट
जन्म 476 ईस्वी, पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, भारत)
माता अज्ञात
पिता अज्ञात
रचनाएं आर्यभटीय, आर्य-सिद्धांत
खोज कार्य शून्य, पाई का मान, ग्रहों की गति व ग्रहण, बीजगणित, अनिश्चित समीकरणों के हल, अंकगणित व अन्य
कार्य क्षेत्र गणित और खगोल विज्ञान
काल गुप्त काल
उम्र 74 वर्ष
मृत्यु 550 ईस्वी, प्राचीन भारत

आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी को पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) में हुआ था। उन्होंने आर्यभटीय किताब की रचना की थी जिसमें उन्होंने बताया है कि वे पाटलिपुत्र के निवासी हैं। तथा जब वह 23 साल के थे तब कलयुग के 3600 साल निकल चुके थे, जिससे पता चलता है कि वह समय 449 ईस्वी था जब उन्होंने उस किताब की रचना की थी। 23 साल पहले यानी 476 ईस्वी को उनका जन्म हुआ था।

ऐसा माना जाता है कि आर्यभट्ट की शिक्षा पाटलिपुत्र में हुई थी तथा वे वहीं पर रहते थे। बाद में वे पाटलिपुत्र के एक शिक्षण संस्थान के मुख्य अध्यक्ष भी रहे थे। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के भी अध्यक्ष रहे थे।

उन्होंने तारेगना (वर्तमान पटना के पास) के एक मंदिर में वेधशाला भी स्थापित की जिससे वह ग्रहों व खगोलीय नक्षत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करते थे।

आर्यभट्ट का जीवन परिचय हिंदी में PDF - aaryabhatt ka jeevan parichay hindee mein pdf
महान गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री आर्यभट्ट
(Source: Wikipedia)

आर्यभट्ट की रचनाएं (Aryabhatta’s Creations)

आर्यभट्ट ने मुख्यतः गणित और खगोल विज्ञान में कार्य किया था। उनके कुछ खोज कार्य खत्म हो गए परंतु ज्यादातर खोज कार्य वर्तमान समय में भी जीवंत है। उनके ग्रंथ का नाम आर्यभटीय है जिसमें उनके सभी खोज कार्य उपलब्ध हैं।

आर्यभट्ट की मुख्य खोज कार्य/रचनाएँ –

  • आर्यभटीय, भाग – गीतिकापद, गणितपद, कलाक्रियापद, गोला पद।
  • पाई का मान
  • शून्य की उत्पत्ति
  • अनिश्चित समीकरणों के हल
  • बीजगणितीय सूत्रों का प्रतिपादन
  • त्रिकोणमिति व ज्या-कोज्या का प्रतिपादन
  • ग्रहों की गति के सिद्धांत
  • चंद्र ग्रहण व सूर्य ग्रहण का ज्ञान
  • नक्षत्र काल
  • अंकगणित
  • आर्य सिद्धांत

आर्यभट्ट का ग्रंथ (Aryabhatta’s Grantha)

आर्यभट्ट ने आर्यभटीय  ग्रंथ की रचना की जिसमें उनके खोज कार्यों का वर्णन किया गया है। हालांकि, इस ग्रंथ का नाम उनके शिष्यों व अन्य लोगों ने आर्यभटीय रखा था। उन्होंने खुद ने इस ग्रंथ का नाम कहीं उल्लेखित नहीं किया है।

ग्रंथ को छंद/पद्य तरीके में लिखा गया है जो इसे पढ़ने में थोड़ा-सा कठिन बनाता है। इसमें कुल 108 छंद/पद्य हैं तथा 13 अन्य परिचयात्मक छंद है।

शुरुआती 13 छंदों में आर्यभट्ट ने अपने जीवन (Aryabhatta Biography) तथा ग्रंथ के बारे में बताया है। ग्रंथ में कुल चार अध्याय हैं जिन्हें पद कहा गया है। इन अध्यायों को हमने एक सारणी के माध्यम से समझाने की कोशिश की है जो आप नीचे देख सकते हैं –

अध्याय का नाम छंद की संख्या अध्याय सामग्री
गीतिकापद 13 समय के मापन की इकाइयां – कल्प, मनवंत्र, युग, ज्या की सारणी।
गणितपद 33 मापन, अंकगणित, ज्यामिति, शंकु छाया, साधारण, द्विघाती तथा अनिश्चित समीकरणों के हल।
कलाक्रियापद 25 ग्रहों की स्थिति, मापन व उनकी इकाइयां, क्षया तिथि, 7 दिनों का सप्ताह तथा सप्ताह के 7 दिन इत्यादि।
गोलापद 50 त्रिकोणमिति, गोला, पृथ्वी की आकृति, भूमध्य रेखा, दिन रात होने का कारण, ग्रहण व नक्षत्र।

आर्यभट्ट ने गति की सापेक्षता के बारे में बताया था कि एक चलती हुई नाव में बैठे हुए व्यक्ति को पेड़ पौधे व स्थिर चीजें चलती हुई दिखाई देती है, उसी तरह स्थिर तारे भी पृथ्वी के लोगों को पश्चिम की ओर चलते हुए दिखाई देते हैं।

यह भी पढ़ें – स्कंदगुप्त का जीवन परिचय

गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट के योगदान (Aryabhatta’s Work in Math)

शून्य की उत्पत्ति

आर्यभट्ट ने संख्याओं को आगे बढ़ाने तथा एक पूर्ण गणना करने के लिए दशमलव का उपयोग किया। इसी दशमलव को उन्होंने शून्य कहा। 

अन्य संख्याओं के बराबर आकार देने के लिए उन्होंने इसकी आकृति बदलकर एक वृत्त की तरह बना दिया। वर्तमान समय का शून्य आर्यभट्ट की ही देन है जो उनके समय से ही चलता हुआ आ रहा है।

पाई का मान

आर्यभट्ट ने आर्यभटीय के दूसरे अध्याय के दसवें छंद में पाई का मान बताया है। उन्होंने इसके लिए सबसे पहले एक वृत्त के व्यास का निश्चित मान रखा। यह व्यास उन्होंने 20,000 रखा था। 

इसमें बताया गया है कि 100 में चार जोड़कर उसे 8 से गुणा कर दीजिए तथा प्राप्त हुए परिणाम में एक बार फिर 62,000 जोड़ दीजिए। जो अंतिम परिणाम आया है उसे वृत्त के व्यास से विभाजित कर दीजिए। 

आपके पास प्राप्त हुआ परिणाम ही पाई का मान है और यह मान 3.1416 आता है जो वर्तमान समय की पाई के मान के 3 दशमलव तक सत्य है।

उन्होंने इसकी गणना भी अपने ग्रंथ में करके दिखाई है।

कुछ गणितज्ञ मानते हैं कि उन्होंने पाई को अपरिमेय संख्या बताया था। परंतु उन्हें इस तथ्य का श्रेय नहीं मिला क्योंकि उनके ग्रंथ में इसका कहीं भी सबूत नहीं है। 1761 में लैंबर्ट ने पाई को अपरिमेय संख्या बताया था जिसकी वजह से उसे इस तथ्य का श्रेय मिला।

आज से हजार-बारह सौ वर्ष पहले उनके ग्रंथ को अन्य भाषाओं में अनुवादित किया गया। तो अनुवादित पुस्तकों में पाई को अपरिमेय संख्या लिखा गया जिससे पता चलता है कि संभवतः आर्यभट्ट ने पाई को अपरिमेय संख्या लिखा था।

बीजगणित व समीकरणें

आर्यभट्ट ने संख्याओं के वर्ग व घन की श्रेणी के लिए भी सूत्रों का प्रतिपादन किया। 

प्राचीन भारत के गणितज्ञ हमेशा ही समीकरणों के अनिश्चित चरों का मान निकालने में बहुत ही रुचिकर रहे हैं। आर्यभट्ट ने चरों वाली साधारण समीकरणों का हल निकालने के लिए कुटुक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। यह सिद्धांत बाद में मानक सिद्धांत बन गया।

उस समय में उन्होंने इस कुटुक सिद्धांत से ax+by=c जैसी समीकरणों का हल प्राप्त किया। 

आर्यभट्ट ने ही सर्वप्रथम त्रिकोणमिति के ज्या (sine) तथा कोज्या (cosine) फलनों की रचना की थी। जब उनके ग्रंथ का अरब भाषा में अनुवाद किया गया था तब अनुवादक ने इन शब्दों को जैया (Jaiya) तथा कौज्या (Kojaiya) बदल दिया। और जब उन्हीं अरब किताबों को लेटिन भाषा में अनुवादित किया गया तो इनको स्थानिक शब्दों साइन व कोसाइन से प्रदर्शित किया। जिसे पता चलता है कि साइन व कोसाइन की रचना आर्यभट्ट ने ही की थी।

खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट के योगदान (Aryabhatta’s Work in Astrology)

ग्रहों की गति

आर्यभट्ट ने यह परिकल्पना की कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है और वह हमेशा ही इसी बात पर अड़े रहे। उन्होंने समझाया कि जिस तरह एक चलती हुई नाव में बैठे हुए व्यक्ति को लगता है कि पेड़ पौधे व स्थिर चीजें उसकी गति की विपरीत दिशा यानी किनारे की ओर जा रही हैं उसी तरह पृथ्वी के लोगों को तारे चलते हुए दिखाई देते हैं। 

परंतु तारे स्थिर हैं तथा पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है  जिसकी वजह से तारे पश्चिम की ओर जाते हुए दिखाई देते हैं।

उन्होंने बताया कि सूर्य, चंद्रमा सभी पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। यह दो ग्रहचक्कर में गति करते हैं जिसे मंद और तेज कहा गया था। उन्होंने सभी ग्रहों को पृथ्वी से दूरी के आधार पर व्यवस्थित किया, जिसका क्रम यह है – चंद्रमा, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शनि व तारे।

सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण

सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने ही सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के बारे में बताया था। 

जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ने लगती है जिसे सूर्यग्रहण कहते हैं।

इसी तरह जब सूर्य व चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है तब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने लगती है जिसे चंद्रग्रहण कहते हैं। 

उन्होंने इन सिद्धांतों को राहु-केतु की मदद से समझाया। उन्होंने पृथ्वी के आकार की गणना करके ग्रहण के वक्त बनी छाया का मापन भी किया जिससे पता चलता है कि वह बहुत ही बुद्धिमान इंसान थे।

दिन-रात व वर्ष का होना 

आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती है जिसमें उसे 23 घंटे 56 मिनट 4.1 सेकंड का समय लगता है। वर्तमान वैज्ञानिकों के अनुसार यह समय 23 घंटे 56 मिनट 4.09 एक सेकंड है जिससे पता चलता है कि आर्यभट्ट की गणना में मात्र 0.01 सेकेंड का अंतर था।

 उन्होंने यह भी बताया कि पृथ्वी को एक चक्कर तारों के चारों तरफ पूरा करने में 365 दिन 6 घंटे 12 मिनट तथा 30 सेकंड लगते हैं। वर्तमान वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार इस समय में मात्र 3 मिनट की ही त्रुटि है तथा यह मात्र 3 मिनट ही ज्यादा है।

आर्यभट्ट की मृत्यु (Death of Aryabhatta)

आर्यभट्ट की मृत्यु 550 ईस्वी को हुई थी। उनका मृत्यु स्थान संभवतः पाटलिपुत्र ही था जहां पर उन्होंने शिक्षा ग्रहण की तथा अन्य खोज कार्य किए थे। 

उनके गणित व खगोल विज्ञान में अभूतपूर्व तथा अद्वितीय खोज ने उन्हें बहुत प्रसिद्ध वैज्ञानिक बना दिया। वो आज भी भारतीय युवाओं व वैज्ञानिकों में आदर्शवादी गणितज्ञ तथा वैज्ञानिक है।

आर्यभट्ट की प्रतिष्ठा में किए गए कार्य (Works for the Prestige of Aryabhatta)

भारत सरकार ने आर्यभट्ट की प्रतिष्ठा में अपनी पहली सेटेलाइट का नाम आर्यभट्ट रखा था जो 1975 में लांच की गई थी।  उनकी प्रतिष्ठा में बिहार सरकार ने आर्यभट्टा नॉलेज यूनिवर्सिटी की भी स्थापना की जो वहीं पटना से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। चांद की पूर्वी दिशा की ओर उपस्थित गड्डों को आर्यभट्ट का नाम दिया गया। 

भारत सरकार ने ₹2 के नोट के पीछे आर्यभट्ट सेटेलाइट की फोटो लगाई है।

यह भी पढ़ें – समुद्रगुप्त का जीवन परिचय

बार-बार पूछे गए प्रश्न (FAQS)

प्रश्न : आर्यभट्ट का जन्म कब हुआ था?

उत्तर- आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी को पाटलिपुत्र में हुआ था। पाटलिपुत्र शहर वर्तमान पटना (बिहार) की जगह पर था। यहीं पर ही आर्यभट्ट ने शिक्षा ग्रहण की तथा अपने खोज कार्य संपन्न किए।

प्रश्न : आर्यभट्ट कौन थे?

उत्तर- आर्यभट्ट एक महान प्राचीन भारतीय गणितज्ञ तथा खगोल विज्ञानी थे जिन्होंने शून्य, ज्या-कोज्या, साधारण समीकरणों के हल, बीजगणित के सूत्र, त्रिकोणमिति व इसके फलन, ग्रहों की गति, नक्षत्र, ग्रहण, दिन रात होने में लगा समय, सप्ताह के 7 दिन, 1 वर्ष होने में लगा समय, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन करना, इत्यादि की खोज की थी।

प्रश्न : आर्यभट्ट ने किसकी खोज की थी?

उत्तर- आर्यभट्ट ने शून्य, ज्या-कोज्या, साधारण समीकरणों के हल, बीजगणित के सूत्र, त्रिकोणमिति व इसके फलन, ग्रहों की गति, नक्षत्र, ग्रहण, दिन रात होने में लगा समय, सप्ताह के 7 दिन, 1 वर्ष होने में लगा समय, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन करना, इत्यादि की खोज की थी।

प्रश्न : आर्यभट्ट की मुख्य रचनाएं क्या थी?

उत्तर- आर्यभट्ट ने एक ग्रंथ की रचना की थी जिसका नाम आर्यभटीय था। इस ग्रंथ में उन्होंने गणित खगोल विज्ञान का ज्ञान दिया है। उन्होंने आर्य सिद्धांत की भी रचना की थी जो खो गए हैं तथा वर्तमान समय में जीवंत नहीं है।

मुझे उम्मीद है दोस्तों आपको यह आर्यभट्ट का जीवन परिचय (Aryabhatta Biography) पसंद आया होगा तथा आप उनके जीवन (Aryabhatta Biography) से बहुत ज्यादा प्रेरित हुए होंगे। आपका कोई भी प्रश्न या सुझाव है तो कमेंट करके मुझे जरूर बताना और यहां तक पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

यह भी पढ़ें – सम्राट हर्षवर्धन का जीवन परिचय

आर्यभट्ट का जीवन परिचय कैसे लिखें?

आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी को पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) में हुआ था। उन्होंने आर्यभटीय किताब की रचना की थी जिसमें उन्होंने बताया है कि वे पाटलिपुत्र के निवासी हैं। तथा जब वह 23 साल के थे तब कलयुग के 3600 साल निकल चुके थे, जिससे पता चलता है कि वह समय 449 ईस्वी था जब उन्होंने उस किताब की रचना की थी।

आर्यभट्ट का गणित में क्या योगदान था?

उन्होंने सबसे पहले 'पाई' (p) की कीमत निश्चित की और उन्होंने ही सबसे पहले 'साइन' (SINE) के 'कोष्टक' दिए। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्ध्ति का आविष्कार किया।

आर्यभट कहाँ के निवासी थे?

पाटलिपुत्रआर्यभट / जन्म की जगहnull

आर्यभट्ट के बारे में आप क्या जानते हैं?

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है।