आत्मकथ्य एक कहानी यह भी में पिताजी ने रसोई को भटियार खाना क्यों कहा है? - aatmakathy ek kahaanee yah bhee mein pitaajee ne rasoee ko bhatiyaar khaana kyon kaha hai?

लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए?


लेखिका के अपने पिता के साथ अक्सर वैचारिक टकराहट हुआ करती थी –
(1) लेखिका के पिता यद्यपि स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी नहीं थे परन्तु वे स्त्रियों का दायरा चार दीवारी के अंदर ही सीमित रखना चाहते थे। परन्तु लेखिका खुले विचारों की महिला थी।
(2) लेखिका के पिता लड़की की शादी जल्दी करने के पक्ष में थे। लेकिन लेखिका जीवन की आकाँक्षाओं को पूर्ण करना चाहती थी।
(3) लेखिका का स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भाषण देना उनके पिता को पसंद नहीं था।
(4) पिताजी का लेखिका की माँ के साथ अच्छा व्यवहार नहीं था। स्त्री के प्रति ऐसे व्यवहार को लेखिका अनुचित समझती थी।
(5) बचपन के दिनों में लेखिका के काले रंग रुप को लेकर उनके पिता का मन उनकी तरफ़ से उदासीन रहा करता था।

282 Views


इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?


लेखिका के पिता का मानना था, कि रसोई के काम में लग जाने के कारण लड़कियों की क्षमता और प्रतिभा नष्ट हो जाती है। वे पकाने – खाने तक ही सीमित रह जाती हैं और अपनी सही प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पातीं। इस प्रकार प्रतिभा को भट्टी में झोंकने वाली जगह होने के कारण ही वे रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर संबोधित करते थे।

372 Views


इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए?


सन् 1946-47 ई. में समूचे देश में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पूरे उफ़ान पर था। हर तरफ़ हड़तालें , प्रभात – फ़ेरियाँ, ज़ुलूस और नारेबाज़ी हो रही थी। घर में पिता और उनके साथियों के साथ होनेवाली गोष्ठियों और गतिविधियों ने लेखिका को भी जागरूक कर दिया था। प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका को स्वतंत्रता – आंदोलन में सक्रिय रूप से जोड़ दिया। जब देश में नियम – कानून और मर्यादाएँ टूटने लगीं, तब पिता की नाराज़गी के बाद भी वे पूरे उत्साह के साथ आंदोलन में कूद पड़ीं। उनका उत्साह , संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीक़ा देखते ही बनता था। वे चौराहों पर बेझिझक भाषण, नारेबाज़ी और हड़तालें करने लगीं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भी सक्रिय भूमिका थी।

206 Views


 वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?


जब पहली बार लेखिका के कॉलेज से उनके पिता के पास शिकायत आई तो लेखिका बहुत डरी हुई थी। उनका अनुमान था कि उनके पिता गुस्से में उनका बुरा हाल करेंगे। लेकिन ठीक इसके उलट उनके पिता ने उन्हें शाबाशी दी। यह सुनकर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हुआ और न अपने कानों पर।

252 Views


लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?


लेखिका के जीवन पर दो लोगों का विशेष प्रभाव पड़ा:
पिता का प्रभाव – लेखिका के जीवन पर पिताजी का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे हीन भावना से ग्रसित हो गई। इसी के परिणामस्वरुप उनमें आत्मविश्वास की भी कमी हो गई थी। पिता के द्वारा ही उनमें देश प्रेम की भावना का भी निर्माण हुआ था।
शिक्षिका शीला अग्रवाल का प्रभाव- शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने एक ओर लेखिका के खोए आत्मविश्वास को पुन: लौटाया तो दूसरी ओर देशप्रेम की अंकुरित भावना को उचित माहौल प्रदान किया। जिसके फलस्वरूप लेखिका खुलकर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने लगी।

646 Views


एक कहानी यह भी आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसाई को भटियारखाना कहकर क्यों संबोधित किया है?

लेखिका के पिता का मानना था, कि रसोई के काम में लग जाने के कारण लड़कियों की क्षमता और प्रतिभा नष्ट हो जाती है। वे पकाने – खाने तक ही सीमित रह जाती हैं और अपनी सही प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पातीं। इस प्रकार प्रतिभा को भट्टी में झोंकने वाली जगह होने के कारण ही वे रसोई को 'भटियारखाना' कहकर संबोधित करते थे।

पिताजी ने रसोई को भटियारखाना क्यों कहा है?

पिता जी रसोई घर को भटियारखाना कहते थे। क्योंकि उनके हिसाब से वहाँ रहना अपनी क्षमता और प्रतिभा को भट्टी में झोंकना था।

एक कहानी यह भी पाठ की लेखिका के पिता क्या नहीं चाहते थे?

उत्तरः लेखिका बचपन में कमजोर थी, उनका रंग भी काला था जिस कारण उनके पिताजी उनकी गोरे रंग की खूबसूरत बहन को चाहते थे और लेखिका की उपेक्षा करते थे

एक कहानी यह भी का मूल उद्देश्य क्या है?

यह आत्मस्मरण मन्नूजी की जीवन-स्थितियों के साथ-साथ उनके दौर की कई साहित्यिक-सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर भी रोशनी डालता है और नई कहानी दौर की रचनात्मक बेकली और तत्कालीन लेखकों की ऊँचाइयों-नीचाइयों से भी परिचित करता है। साथ ही उन परिवेशगत स्थितियों को भी पाठक के सामने रखता है जिन्होंने उनकी संवेदना को झकझोरा।