कवि परिचय जीवन परिचय-कविवर हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर सन 1907 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा 1942-1952 ई० तक यहीं पर प्राध्यापक रहे। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड से पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। अंग्रेजी कवि कीट्स पर उनका शोधकार्य बहुत चर्चित रहा। वे आकाशवाणी के
साहित्यिक कार्यक्रमों से संबंद्ध रहे और फिर विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे। उन्हें राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया। 1976 ई० में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया गया। ‘दो चट्टानें’ नामक रचना पर उन्हें साहित्य अकादमी ने भी पुरस्कृत किया। उनका निधन 2003 ई० में मुंबई में हुआ। रचनाएँ-हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं- काव्यगत विशेषताएँ-बच्चन हालावाद के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं। दोनों महायुद्धों के बीच मध्यवर्ग के विक्षुब्ध विकल मन को बच्चन ने वाणी दी। उन्होंने छायावाद की लाक्षणिक
वक्रता की बजाय सीधी-सादी जीवंत भाषा और संवेदना से युक्त गेय शैली में अपनी बात कही। उन्होंने व्यक्तिगत जीवन में घटी घटनाओं की सहजअनुभूति की ईमानदार अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से की है। यही विशेषता हिंदी काव्य-संसार में उनकी प्रसिद्ध का मूलाधार है। भाषा-शैली-कवि ने अपनी अनुभूतियाँ सहज स्वाभाविक ढंग से कही हैं। इनकी भाषा आम व्यक्ति के निकट है। बच्चन का कवि-रूप सबसे विख्यात है उन्होंने कहानी, नाटक, डायरी आदि के साथ बेहतरीन आत्मकथा भी लिखी है। इनकी रचनाएँ ईमानदार आत्मस्वीकृति और
प्रांजल शैली के कारण आज भी पठनीय हैं। Get here NCERT Solutions for 12, 11, 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4 for Maths, Science, Hindi, English and all other Subjects. कविताओं का प्रतिपादय एवं सार प्रतिपादय-कवि का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं।
दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता। क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है। कवि अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्रविधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सृामंजस्य है- उन्मादों में अवसाद, रोदन में राग, शीतल वाणी में आग, विरुद्धों का
विरोधाभासमूलक सामंजस्य साधते-साधते ही वह बेखुदी, वह मस्ती, वह दीवानगी व्यक्तित्व में उत्तर आई है कि दुनिया का तलबगार नहीं हूँ। बाजार से गुजरा हूँ, खरीदार नहीं हूँ-जैसा कुछ कहने का ठस्सा पैदा हुआ है। यह ठस्सा ही छायावादोत्तर गीतिकाव्य का प्राण है। किसी असंभव आदर्श की तलाश में सारी दुनियादारी ठुकराकर उस भाव से कि जैसे दुनिया से इन्हें कोई वास्ता ही नहीं है। सार-कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं
से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला व्यक्ति है। वह निरर्थक कल्पनाओं में विश्वास नहीं रखता क्योंकि यह संसार कभी भी किसी की इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर पाया है। कवि सुख-दुख, यश-अपयश, हानि-लाभ आदि द्वंद्वात्मक परिस्थितियों में एक जैसा रहता है। यह संसार मिथ्या है, अत: यहाँ स्थायी वस्तु की कामना करना व्यर्थ है। कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये
अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना मानता है। संसार उसे कवि कहता है, परंतु वह स्वयं को नया दीवाना मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है। एक गीत प्रतिपादय-निशा-निमंत्रण से उद्धृत इस गीत में कवि प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणी-वर्ग के धड़कते हृदय को सुनने की काव्यात्मक
कोशिश व्यक्त करता है। किसी प्रिय आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के पगों की गति में चंचल तेजी भर सकता है-अन्यथा हम शिथिलता और फिर जड़ता को प्राप्त होने के अभिशिप्त हो जाते हैं। यह गीत इस बड़े सत्य के साथ समय के गुजरते जाने के एहसास में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी लिए हुए है। सार-कवि कहता है कि साँझ घिरते ही पथिक लक्ष्य की ओर तेजी से कदम बढ़ाने लगता है। उसे रास्ते में रात होने का भय होता है। जीवन-पथ पर चलते हुए व्यक्ति जब
अपने लक्ष्य के निकट होता है तो उसकी उत्सुकता और बढ़ जाती है। पक्षी भी बच्चों की चिंता करके तेजी से पंख फड़फड़ाने लगते हैं। अपनी संतान से मिलने की चाह में हर प्राणी आतुर हो जाता है। आशा व्यक्ति के जीवन में नई चेतना भर देती है। जिनके जीवन में कोई आशा नहीं होती, वे शिथिल हो जाते हैं। उनका जीवन नीरस हो जाता है। उनके भीतर उत्साह समाप्त हो जाता है। अत: रात जीवन में निराशा नहीं, अपितु आशा का संचार भी करती है। व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न निम्नलिखित काव्यांशों
को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (क) आत्मपरिचय 1. मैं जग – जीवन का मार लिए फिरता हूँ, मैं स्नेह-सुरा का पान किया कस्ता हूँ, शब्दार्थ-जग-जीवन-सांसारिक गतिविधि। द्वकृत-तारों को बजाकर स्वर निकालना। सुरा-शराब। स्नेह-प्रेम। यान-पीना। ध्यान करना-परवाह करना। गाते-प्रशंसा करते। विशेष- प्रश्न
(क) जगजीवन का भार लिए फिरने से कवि का क्या आशय हैं? ऐसे में भी वह क्या कर लेता है? उत्तर – (क) ‘जगजीवन का भार लिए फिरने’ से कवि का आशय है-सांसारिक रिश्ते-नातों और
दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी, जिन्हें न चाहते हुए भी कवि को निभाना पड़ रहा है। ऐसे में भी उसका जीवन प्रेम से भरा-पूरा है और वह सबसे प्रेम करना चाहता है। 2. मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ शब्दार्थ-उदगार-दिल के भाव। उपहार-भेंट। भाता-अच्छा लगता। स्वप्नों का संसार-कल्पनाओं की दुनिया। दहा-जला। भव-सागर-संसार रूपी सागर। मौज-लहरों। वह कहता है कि मैं अपने हृदय में आग जलाकर उसमें जलता हूँ अर्थात मैं प्रेम की जलन को स्वयं ही सहन करता हूँ। प्रेम की दीवानगी में मस्त होकर जीवन के जो सुख-दुख आते हैं, उनमें मस्त रहता हूँ। यह संसार आपदाओं
का सागर है। लोग इसे पार करने के लिए कर्म रूपी नाव बनाते हैं, परंतु कवि संसार रूपी सागर की लहरों पर मस्त होकर बहता है। उसे संसार की कोई चिंता नहीं है। विशेष- प्रश्न
(क) कवि के ह्रदय में कौन-सी अग्नि जल रही हैं? वह व्यक्ति क्यों है? उत्तर – (क) कवि के हृदय में एक विशेष आग (प्रेमाग्नि) जल रही है। वह प्रेम की वियोगावस्था में होने के कारण
व्यथित है। 3. मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ, कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना? शब्दार्थ-यौवन-जवानी। उन्माद-पागलपन। अवसाद-उदासी, खेद। यत्न-प्रयास। नादान-नासमझ, अनाड़ी। दाना-चतुर,
ज्ञानी। मूढ़-मूर्ख। जग-संसार। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध पदकक्रियबनाई इसाकवता मेंकोजीनकजनेक शैलो बताता है साथहदुनयासे।अनेट्वंद्वान्कसंबंक उजागर करता ह । कवि कहता है कि इस संसार में लोगों ने जीवन-सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु कोई भी सत्य नहीं जान पाया। इस कारण हर व्यक्ति नादानी करता दिखाई देता है। ये मूर्ख (नादान) भी वहीं होते हैं जहाँ समझदार एवं चतुर होते हैं। हर व्यक्ति वैभव, समृद्ध, भोग-सामग्री की तरफ भाग रहा है। हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए भाग रहा है। वे इतना सत्य भी नहीं सीख सके। कवि कहता है कि मैं सीखे हुए ज्ञान को भूलकर नई बातें सीख रहा हूँ अर्थात सांसारिक ज्ञान की बातों को भूलकर मैं अपने मन के कहे अनुसार चलना सीख रहा हूँ। विशेष-
प्रश्न (क) ‘यौवन का उन्माद’ का तात्यय बताइए। उत्तर – (क) कवि प्रेम का दीवाना है। उस पर प्रेम
का नशा छाया हुआ है, परंतु उसकी प्रिया उसके पास नहीं है, अत: वह निराश भी है। 4. मैं और, और जग और, कहाँ का नाता, मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ, शब्दार्थ-नाता-संबंध। वैभव-समृद्ध। पग-पैर। रोदन-रोना। राग-प्रेम। आग-जोश। भूय-राजा। प्रासाद-महल। निछावर-कुर्बान। खडहर-टूटा हुआ भवन। भाग-हिस्सा। कवि कहता है कि वह अपने रोदन में भी प्रेम लिए फिरता है। उसकी शीतल वाणी में भी आग समाई हुई है अर्थात उसमें असंतोष झलकता है। उसका जीवन प्रेम में निराशा के कारण खंडहर-सा है, फिर भी उस पर राजाओं के महल न्योछावर होते हैं। ऐसे खंडहर का वह एक हिस्सा लिए घूमता है जिसे महल पर न्योछावर कर सके। विशेष-
प्रश्न (क) कवि और संसार के बीच क्या संबंध हैं? उत्तर –
(क) कवि और संसार के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं है। संसार में संग्रह वृत्ति है, कवि में नहीं है। वह अपनी मजी के संसार बनाता व मिटाता है। 5. मैं रोया, इसको तुम कहाते हो गाना, मैं बीवानों का वेश लिए फिरता
हूँ शब्दार्थ-फूट पड़ा-जोर से रोया। दीवाना-पागल। मादकता-मस्ती। नि:शेष-संपूर्ण। समाज उसे दीवाना क्यों नहीं स्वीकार करता। वह दीवानों का रूप धारण करके संसार में घूमता रहता है। उसके जीवन में जो मस्ती शेष रह गई है, उसे लिए वह घूमता रहता है। इस मस्ती को सुनकर सारा संसार झूम उठता है। कवि के गीतों की मस्ती सुनकर लोग प्रेम में झुक जाते हैं तथा आनंद से झूमने लगते हैं। मस्ती के संदेश को लेकर कवि संसार में घूमता है जिसे लोग गीत समझने की भूल कर बैठते हैं। 砂。 विशेष-
प्रश्न (क) कवि की किस बात को ससार क्या समझता हैं? उत्तर – (क) कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार उसे गाना समझता है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद बनाना समझा जाता है। (ख) एक गीत 1. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! यह सोच थक7 दिन का पथी भी जल्दी-जल्दी चलता हैं! शब्दार्थ-ढलता-समाप्त होता। यथ-रास्ता। मजिल-लक्ष्य। यथ-यात्री। विशेष-
प्रश्न (क) ‘हो जाए न पथ में’- यहाँ किस पथ की ओर कवि ने सकेत किया हैं? उत्तर – (क) ‘हो जाए न पथ
में”-के माध्यम से कवि अपने जीवन-पथ की ओर संकेत कर रहा है, जिस पर वह अकेले चल रहा है। 2. बच्चे प्रत्याशा में होंगे, यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है ! शब्दार्थ-प्रत्याशा-आशा। नीड़-घोंसला। पर-पंख। चचलता-अस्थिरता। व्याख्या-कवि प्रकृति के माध्यम से उदाहरण देता है कि चिड़ियाँ भी दिन ढलने पर चंचल हो उठती हैं। वे शीघ्रातिशीघ्र अपने घोंसलों में पहुँचना चाहती हैं। उन्हें ध्यान आता है कि उनके बच्चे भोजन आदि की आशा में घोंसलों से बाहर झाँक रहे होंगे। यह ध्यान आते ही उनके पंखों में तेजी आ जाती है और वे जल्दी-जल्दी अपने घोंसलों में पहुँच जाना चाहती हैं। विशेष-
प्रश्न (क) बच्चे किसका इंतजार कर रहे होंगे तथा क्यों? उत्तर – (क) बच्चे अपने माता-पिता के आने का इंतजार कर रहे होंगे क्योंकि चिड़िया (माँ) के पहुँचने पर ही उनके भोजन इत्यादि की पूर्ति होगी। 3. मुझसे मिलने को कौन विकल? यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विहवलता हैं! शब्दार्थ-विकल-व्याकुल। हित-लिए, वास्ते। चंचल-क्रियाशील। शिथिल-ढीला। यद-पैर। उर-हृदय। विह्वलता-बेचैनी, भाव आतुरता। विशेष-
प्रश्न (क) कवि के मन में कौन-से प्रश्न उठते हैं? उत्तर – (क) कवि के मन में निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं- काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (क) आत्मपरिचय 1. मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, प्रश्न (क) ‘फिर भी’ और ‘किसी ने’ का प्रयोग-वैशिष्ट बताइए। उत्तर – (क) ‘फिर भी’ पद का अर्थ यह है कि संसार में बहुत परेशानियाँ हैं। ‘किसी ने’ पद का अर्थ है-पत्नी, प्रियजन या गुरु। 2. में जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ, जय भव-सागर तरने की नाव बनाए, प्रश्न (क) काव्याशा का भाव–संदर्य स्पष्ट कीजिए । उत्तर – (क) इस काव्यांश में कवि ने प्रेम की दीवानगी को व्यक्त किया है। वह हर स्थिति में मस्त रहने की बात कहता है। वह संसार के कष्टों में ही मस्ती-भरा जीवन जीता है। (ख)
(ग)
3. मैं और, और जग और, कहाँ का नाता, मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ, प्रश्न (क) ‘और जग और ‘ का भाव स्पष्ट कीजिए। उत्तर – (क) ‘और जग और’ का अर्थ यह है कि संसार कवि की भावनाओं को नहीं समझता। कवि प्रेम की दुनिया में खोया रहता है, जबकि संसार संग्रहवृत्ति में विश्वास रखता है। अत: दोनों में कोई संबंध नहीं है, एकरूपता नहीं है।
(ख) एक गीत 1. दिन
जल्दी-जल्दी ढलता हैं! प्रश्न (क) काव्यांश की भाषागत दो विशेषताओं का उल्लेख
कीजिए। उत्तर – (क) इस काव्यांश की भाषा सरल, संगीतमयी व प्रवाहमयी है। इसमें दृश्य बिंब है।’जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्च कविता के साथ प्रश्न 1: प्रश्न 2: प्रश्न 3: प्रश्न 4: अयवा ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’-इस कथन से कवि का क्या आशय है? अयवा ‘आत्मपरिचय’ में कवि के कथन- ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हुँ’ – का विरोधाभास स्पष्ट र्काजिए। उत्तर – प्रश्न
5: प्रश्न
6: कविता के आस-पास
उत्तर – अन्य हल प्रश्न लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1:
प्रश्न 2: प्रश्न
3: प्रश्न 4: प्रश्न 5: प्रश्न
6: प्रश्न 7: प्रश्न 8: मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ. (क) कवि ने ‘स्नेह’ को ‘सुरा’ क्यों कहा है? ससार के प्रति उसके नकारात्मक दृष्टिकोण का क्या कारण है? है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता उत्तर – (क) कवि ने ‘स्नेह’ को ‘सुरा’ इसलिए कहा है क्योंकि वह प्रेम की मादकता में डूब जाता है। इस मादकता के कारण उसे सांसारिक कष्टों की परवाह नहीं रह जाती। प्रश्न 9: मुझसे मिलने को कौन विकल? उत्तर – भावसौंदर्य– शाम निकट जानकर प्राणी अपने-अपने घर आने को
उद्धृत हैं, क्योंकि उनके घर पर कोई-न-कोई उनकीप्रतीक्षा कर रहा होता है। पर कवि के आने के इंतजार में कोई प्रतीक्षारत नहीं है, इसलिए उसके कदम शिथिल हैं।
प्रश्न 10: स्वयं करें
(क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। बच्चे प्रत्याशा में होंगे (क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए । More Resources for CBSE Class 12:
NCERT SolutionsHindiEnglishMathsHumanitiesCommerceScience आत्मपरिचय कविता में कवि का क्या संदेश है?कवि ने 'आत्मपरिचय' कविता में संदेश दिया है कि मनुष्य को अपने सभी सांसारिक कर्तव्य निभाते हुए प्रेम और मस्ती से जीवन बिताना चाहिए।
आत्म परिचय कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?आत्म-परिचय' कविता हमें अपने मन के अनुकूल जीवन जीने की प्रेरणा देती है। हमें सांसारिक जीवन की समस्याओं से जूझते हुए भी सभी से स्नेह करना चाहिए। जीवन के सुख-दुःख को समभाव से सहन करना चाहिए। परछिद्रान्वेषण तथा चाटुकारिता से दूर रहना चाहिए।
आत्मपरिचय कविता का उद्देश्य क्या है?1 Answer. 'आत्मपरिचय' कविता का प्रतिपाद्य संसार से प्रेम करना, उसके हित की चिन्ता करना, स्वयं कष्टों में रहकर भी संसार के प्रति अपना कर्त्तव्य पूरा करना, किसी भी निन्दा-स्तुति से अप्रभावित रहकर सभी के साथ समान रूप से प्रेम का व्यवहार करना तथा अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देना है।
आत्मपरिचय कविता में कवि ने किसका परिचय दिया है?उत्तर – 'आत्मपरिचय' कविता में कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता, क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं।
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