आधुनिक राजनीति शास्त्र क्या है इसके क्षेत्र का वर्णन कीजिए? - aadhunik raajaneeti shaastr kya hai isake kshetr ka varnan keejie?

प्रश्न; राजनीति विज्ञान की परिभाषा देते हुए राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र का वर्णन कीजिए। 

अथवा" राजनीति विज्ञान की आधुनिक परिभाषाएं दीजिए। यह परंपरागत परिभाषाओं से किस प्रकार भिन्न हैं? 

अथवा" परंपरागत राजनीतिशास्त्र की विशेषताएं बताइए।

अथवा" आधुनिक राजनीति विज्ञान की विज्ञान की विशेषताएं बताइए।

अथवा" परम्परागत और आधुनिक राजनीति विज्ञान में अंतर बताइए।

अथवा" राजनीति विज्ञान से आप क्या समझते हैं? इसके क्षेत्र की व्याख्या कीजिए। 

अथवा" राजनीति विज्ञान का अर्थ बताइए तथा उसके क्षेत्र के संबंध में परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोणों की विवेचना कीजिए। 

अथवा" "राजनीति विज्ञान का आरंभ और अंत राज्य हैं।' व्याख्या कीजिए। 

अथवा" राजनीति विज्ञान की परम्परावादी व आधुनिक परिभाषाओं की विवेचना कीजिए। 

अथवा" राजनीति विज्ञान के परम्परावादी दृष्टिकोण का उल्लेख कीजिए। 

अथवा" राजनीति विज्ञान क्या हैं? इसकी परिभाषायें कीजिए। विभिन्न दी गई परिभाषाओं में कौन-सी उपयुक्त और श्रेष्ठ हैं? उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर राजनीति-शास्त्र क्या हैं? समझाइए।

उत्तर-- 

rajniti vigyan arth paribhasha kshetra;भारत के प्राचीन चिन्तकों ने विद्याओं को चार भागों में विभक्त किया था। त्रयी, वार्ता, आन्वीक्षिकी और दण्डनीति। मानव समाज में व्यवस्था और शान्ति स्थापित करने को दण्ड नाम दिया जाता था। 'दण्ड' का शास्त्रीय अभिप्राय समाज की व्यवस्था से है। सुव्यवस्थित जन समाज को ही राज्य कहते हैं। जिस जन समुदाय में व्यवस्था या दण्ड स्थापित हो, शासन की सत्ता के कारण मनुष्यों में शासक और शासित का भेद विद्यमान हो, वही राज्य कहलाता है। जो विद्या इस राज्य का और शासन या 'दण्ड' का प्रतिपादन करती है, वह राजनीति शास्त्र कही जाती है।

अरस्तु के के अनुसार," मनुष्य स्वभाव से ही एक राजनैतिक प्राणी है और वह, जो राज्य के बिना रहता है, या तो "देवता है अथवा पशु।" 

राजनीति विज्ञान का अर्थ (rajniti vigyan kya hai) 

राजनीति विज्ञान या राजनीतिशास्त्र सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है। यह मानव जीवन के राजनीतिक पक्ष का अध्ययन करता है। अंग्रेजी भाषा मे राजनीति विज्ञान को 'political science' कहते है। इसके अन्तर्गत सामाजिक जीवन के राजनैतिक सम्बन्ध एवं संगठनों का अध्ययन आता है।

राजनीति का अंग्रेजी समानार्थक शब्द "पाॅलिटिक्स" यूनानी भाषा के शब्द से बना है। इसका अर्थ है-- "नगर राज्य" प्राचीन यूनान मे छोटे-छोटे "नगर राज्य" होते थे। अरस्तु के समय मे यूनान मे एथेन्स, स्पार्टा आदि अनेक नगर राज्य थे। ये नगर राज्य अपने आप मे एक स्वतंत्र संगठित इकाई होते थे। "पाॅलिटिक्स" शब्द से इन्ही नगर राज्यों की शासन व्यवस्था का बोध होता था। धीरे-धीरे समय बीतता गया। मानव समाज मे व्यापक राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक परिवर्तन हुए। फलतः अब नगर राज्यों का स्थान राष्ट्रीय राज्यों ने ले लिया। राज्य के आकार को बढ़ाने मे पहले धर्म, फिर विज्ञान का बहुत बड़ा हाथ रहा। राज्य के आकार के बढ़ने के साथ-साथ राजनीति का क्षेत्र भी व्यापक होता गया। आधुनिक काल मे जीवन के सभी अंगों का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से होने लगा है। अतः राज्य से सम्बंधित मानव के कार्य-कलापों का अध्ययन भी व्यवस्थित रूप से वैज्ञानिक ढंग से किया जाने लगा। राज्य-विषयक यह अध्ययन ही राजनीतिक-विज्ञान कहलाता है।

राजनीति विज्ञान की प्राचीनता एक सर्वमान्य तथ्य है, जिसने प्राचीन काल में प्लेटो व अरस्तू से लेकर वर्तमान युग तक उल्लेखनीय प्रगति की है। यूनानियों को इसके जनक होने का श्रेय जाता है क्योंकि यूनानियों ने ही सबसे पहले राजनीतिक प्रश्नों को आलोचनात्मक और तर्क सम्मत चिन्तन की दृष्टि से देखा।

आधुनिक युग उसी प्रकार राजनीति का युग हैं, जिस प्रकार कि सभ्य समाज में प्राचीन काल में अध्यात्म और धर्म का युग था। वर्तमान में हम राजनीति से इतने अधिक प्रभावित हैं कि राजनीति हमारे जीवन क्षेत्र के प्रत्येक पहलू को कदम-कदम पर प्रभावित कर रही हैं। यह कहा जाये तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी कि राजनीति में भाग लिये बिना हमारा जीवन ही संभव नहीं हैं।

राजनीति विज्ञान का एक लम्बा इतिहास रहा है एक परम्परा रही है। यूनानियों को इसका जनक माना जाता है। क्योंकि उनका इस विषय में विशेष योगदान रहा है। अतीत में इसको स्वतंत्र विषय के रूप में मान्यता नहीं मिली हुई थी। अर्थात् इस विषय को दर्शनशास्त्र, अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, इतिहास, विधिशास्त्र के आधार पर अध्ययन करने की परम्परा थी। आधुनिक युग में इसकी स्वतंत्र अवधारणा को स्वीकार कर लिया गया है तथा राजनीतिशास्त्र विषय का पर्याप्त विकास भी हुआ है। प्लेटो का आदर्शवाद व अरस्तू की वैज्ञानिक क्रमबद्धता राजनीतिशास्त्र के अध्ययेताओं को प्रेरित करती रही है। राजनीतिविज्ञान विषय के विकास का परिणाम यह हुआ है कि इसका अध्ययन परम्परागत और आधुनिक दृष्टिकोण के रूप में किया जाता है। परम्परागत रूप से अध्ययन करने राजनीतिशास्त्री राजनीतिक दार्शनिक लगता है, जबकि आधुनिक राजनीतिविज्ञान मुख्य रूप से व्यवहारवादी व अनुभवाश्रित (Empirical) है। इसलिये इसको मानने वाला अध्ययनकर्त्ता राजनीतिक वैज्ञानिक लगता हैं लेकिन इनको बिल्कुल अलग करके अध्ययन करना मुश्किल हैं। क्योंकि दोनो के लक्षण एक दूसरे में व्याप्त रहते हैं। परम्परागत दृष्टिकोण के अन्तर्गत इसकी विशेषतायें परिभाषा क्षेत्र, नामविभेद एवं प्रकृति अध्ययन किया जाता है।

कुछ विद्वान राजनीति विज्ञान को राजनीति दर्शन मानते हैं उनका आंकलन है कि राजनीति दर्शन राजनीति विज्ञान का प्रधान अंग है। राजनीति दर्शन शास्त्र का एक भाग है, दर्शन शास्त्र सम्पूर्ण विश्व का आंकलन करता है और राजनीति विज्ञान विश्व के एक अंग राज्य का राजनीति दर्शन राज्य, नागरिकता कर्तव्य तथा राजनीति आदर्शों का विवेचन करता है। व्यवहारवादी लेखक राजनीति दर्शन को राजनीति विज्ञान का अंग नहीं मानते हैं। 

प्राचीन एवं आधुनिक अनेक राजनीति शास्त्रियों ने राजनीति विज्ञान को राज्य का पर्याय मानते हैं। इनका मानना है कि राजनीति का प्रधान विषय राज्य है। अतः राजनीति विज्ञान को राज्य का सिद्धान्त मानना उचित होगा क्योंकि राजनीति में राज्य, उसका उदभव, अतीत में राज्य कैसा था वर्तमान में कैसा है तथा भविष्य मे कैसा होगा का अध्ययन किया जाता हैं।

किसी शास्त्र अथवा विद्या की परिभाषा करना बहुत कठिन है। हर विद्या के इतने विभिन्न पहलू होते है कि उन सबकी एक परिभाषा के अन्तर्गत रखना लगभग असंभव होता है। राजनीति विज्ञान के सम्बन्ध में तो यह कथन और भी अधिक सत्य है म, यही कारण है कि विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से इसकी विभिन्न परिभाषा की हैं। हर विद्वान ने इस विज्ञान के किसी न किसी विशेष पहलू पर जोर दिया है। इसी प्रकार से राजनीति का स्थान मानवीय विचारों की आधारशिला का नवीन आया है। समाज द्वारा संस्कृत मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठाम होता है। परन्तु जब वह बिना कानून तथा न्याय के जीवन व्यतीत करता हैं, तब वह सबसे अधिक भयंकर होता है। यदि कोई मनुष्य ऐसा हो, जो समाज में न रह सकता हो अथवा जो यह कहता हो कि केवल मुझे अपने साधनों की आवश्यकता है, तो उसे मानव समाज का सदस्य मत समझों, वह या तो जंगली जानवर है अथवा देवता। मनुष्य स्वभावतः एक समाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने के कारण वह समाज में ही रहकर अपने योगक्षेम की साधना करता। उसकी व्यक्तिगत उन्नति सामाजिक जीवन पर ही आश्रित होती है। समाज के बिना मुनष्य का वह महत्त्व नहीं होता जो उसका समाज के एक अंग के रूप में होता है। अतः मनुष्य से सम्बन्धित जितने भी शास्त्र अथवा विज्ञान है, उनका प्रतिपाद्य विषय व्यक्ति रूप में मनुष्य न होकर समाज होता है। मनुष्य के पारस्परिक सम्बन्ध विभिन्न प्रकार के होते हैं उन्हीं के आधार पर अनेक सामाजिक शास्त्रों एवं विज्ञानों का विकास हुआ है। उदाहरणार्थ, मनुष्य के आर्थिक सम्बन्धों को लेकर अर्थशास्त्र अथवा उनके नैतिक सम्बन्धों को लेकर नीत-शास्त्र का विकास हुआ है। इसी प्रकार समाज में रहते हुए मनुष्य के राजनीतिक सम्बन्ध होते हैं और उनके ऐसे सम्बन्धों को लेकर जिस विज्ञान का विकास हुआ है, उसे राजनीति विज्ञान कहते हैं। मनुष्य के राजनीतिक सम्बन्ध चूँकि राज्य नामक मानव संगठन में ही सुचारू रूप से संचालित होते हैं, अतः राज्य राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय बन जाता है।

राजनीतिक विज्ञान की परिभाषा (rajniti vigyan ki paribhasha)

राजनितिक विज्ञान की परिभाषा देते हुए विद्वानों ने उसके अलग-अलग पहलुओं को देखा है। राजनीतिक विज्ञान की परिभाषा के निम्न दो दृष्टिकोण से है--

(अ) परम्परावादी दृष्टिकोण 

(ब) आधुनिक दृष्टिकोण 

(अ) परम्परागत दृष्टिकोण 

राजनीति विज्ञान एक गतिशील विज्ञान हैं, अतः इसे समय-समय पर परिभाषित किया गया हैं। परम्परागत तरीके से राजनीति विज्ञान की विषय-वस्तु को परिभाषित करने का क्रम यूनान के समय से लेकर 19वीं शताब्दी तक प्रचलित रहा। इसे परम्परावादी दृष्टिकोण (Traditional Approch) अथवा संस्थागत दृष्टिकोण (Instituonal Approch) भी कहा जाता हैं। इस दृष्टिकोण से संबंधित विद्वानों द्वारा राजनीति विज्ञान को राज्य, सरकार अथवा दोनों का अध्ययन करने वाले विषय के रूप में परिभाषित किया गया। सरकार के बिना कोई राज्य संभव ही नही हैं, क्योंकि एक बाध्यकारी समुदाय (Coercive Association) के रूप के अंदर आने वाली भूमि का तब तक कोई अर्थ नही हैं जब तक कि राज्य की ओर से नियमों का निर्धारण करने वाले और उसका अनुपालन सुनिश्चित करने वाले कुछ व्यक्ति न हों। इन्हीं व्यक्तियों के संगठित रूप को सरकार कहते हैं। इस प्रकार राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाओं को सामान्यतः तीन श्रेणियों में रखा गया हैं-- 

1. राजनीतिक विज्ञान राज्य का अध्ययन है

2. राजनीति विज्ञान सरकार का अध्ययन है

3. राजनीति विज्ञान सरकार और राज्य दोनों का अध्ययन हैं

1. राजनीति विज्ञान राज्य का अध्ययन हैं 

कुछ विद्वान राजनीति विज्ञान को राज्य का अध्ययन मानते हैं। इनके विचार में राज्य के अध्ययन में सरकार का भी अध्ययन सम्मिलित हैं। इस श्रेणी के कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-- 

गार्नर के अनुसार," राजनीति विज्ञान के अध्ययन का आरंभ और अंत राज्य हैं।" 

ब्लंश्ली के अनुसार," राजनीति विज्ञान वह विज्ञान हैं जिसका संबंध राज्य से है और जो यह समझने का प्रयत्न करता है कि राज्य के आधारभूत तत्व क्या हैं, इसका तात्विक रूप क्या हैं, इसकी अभिव्यक्ति किन विविध रूपों में होती है तथा इसका विकास कैसे हुआ हैं।" 

गैरिस के अनुसार," राजनीति विज्ञान राज्य के उद्भव, विकास, उद्देश्य तथा समस्त राजनीय समस्याओं का उल्लंघन करता हैं।" 

जकारिया के अनुसार," राजनीति विज्ञान व्यवस्थित रूप से उन आधारभूत सिद्धांतो को प्रस्तुत करता है जिनके अनुसार एक समष्टि के रूप में राज्य को संगठित किया जाता हैं तथा संप्रभुता को क्रियान्वित किया जाता हैं।" 

उपर्युक्त परिभाषाएँ मूलतः राज्य के यूनानी दृष्टिकोण पर आधारित हैं जिसके अंतर्गत राज्य को समाज के पर्यायवाची के रूप में सर्वश्रेष्ठ समुदाय माना जाता था। इन विद्वानों ने सरकार या मनुष्य के अध्ययन को राज्य के अध्ययन में ही सम्मिलित किया हैं। 

2. राजनीति विज्ञान सरकार का अध्ययन हैं

दूसरे वर्ग के विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को सरकार का अध्ययन करने वाले विषय के रूप में परिभाषित किया है। इसके पीछे एक सामान्य धारणा यह है कि राज्य एक अमूर्त अवधारणा (Abstract Concept) हैं, जिसे किसी भी प्रकार की सार्थकता प्रदान करने के लिए सरकार अपरिहार्य हैं। सरकार के कार्य राज्य के होने का आभास कराते हैं अतः इस विचार को केन्द्र में रखकर राजनीति विज्ञान की भी परिभाषा की गई हैं। इस श्रेणी की कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-- 

लीकाॅक के अनुसार," राजनीति विज्ञान सरकार से संबंधित हैं, शासन जो वृहत अर्थ मे सत्ता के मूलभूत विचार पर आधारित होता हैं।" 

सीले के अनुसार," राजनीति विज्ञान के अंतर्गत शासन व्यवस्था का उसी प्रकार अनुशीलन किया जाता है जिस प्रकार अर्थशास्त्र में धन का, प्राणि शास्त्र में जीवन का, बीजगणित में अंकों का एवं रेखागणित में स्थान का तथा दूरी का।" 

विलियम राॅब्सन के अनुसार," राजनीति विज्ञान का उद्देश्य राजनीतिक विचारों तथा राजनीतिक कार्यों पर प्रकाश डालना हैं, ताकि सरकार का समुन्नयन किया जा सके।" 

उपर्युक्त परिभाषाएँ एक इकाई के रूप में राज्य के सैद्धांतिक पक्ष की तुलना में इसके व्यावहारिक पक्ष अर्थात् सरकार को महत्व प्रदान करती हैं। ये परिभाषाएँ इस अवधारणा पर आधारित हैं कि एक सुसंगठित समाज के रूप में राज्य का परिचालन व्यवहार में उन लोगों की समष्टि पर ही आधारित हैं जिनके द्वारा कानूनों का निर्माण और क्रियान्वयन किया जाता है। 

3. राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन है 

परम्परागत दृष्टिकोण की तीसरी कोटि में वे परिभाषाएं आती हैं जो राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय राज्य और सरकार दोनों को मानती हैं, क्योंकि राज्य के अभाव में सरकार की कल्पना नही की जा सकती और सरकार के अभाव में राज्य एक सैद्धांतिक और अमूर्त अवधारणा मात्रा है। इस श्रेणी की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-- 

विलोबी के अनुसार," साधारणतया राजनीति विज्ञान तीन प्रमुख विषयों से संबंधित हैं-- राज्य, सरकार तथा कानून।"

पाॅल जेनेट के अनुसार," राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह भाग हैं जो राज्य के आधारों और सरकार के सिद्धांतों पर विचार करता हैं।" 

गिलक्राइस्ट के अनुसार," राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन करता हैं।"

डिमाॅक के अनुसार," राजनीति विज्ञान का संबंध राज्य और इसके साधन सरकार से हैं। 

राजनीति विज्ञान की परिभाषा विषयक परम्परावादी दृष्टिकोण की तीसरी श्रेणी पहली (जो राजनीति विज्ञान को राज्य का अध्ययन मानती हैं) तथा दूसरी (जो राजनीति विज्ञान को सरकार का अध्ययन मानती हैं) श्रेणियों की तुलना में अधिक विस्तृत और स्पष्ट मानी जा सकती हैं, क्योंकि इस श्रेणी की परिभाषाएँ राज्य के मूर्त (Abstract) तथा अमूर्त (Concrete) दोनों पक्षों को अपने में समाहित करती हैं। 

राजनीति विज्ञान की परिभाषा के परम्परावादी दृष्टिकोण को इस रूप में अपूर्ण माना जाता हैं कि यह कमोवेश रूप से औपचारिक संस्थाओं या संरचनाओं के अध्ययन को ही राजनीति विज्ञान के केंद्र में मानता हैं। इस श्रेणी के विद्वान इस बात पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नही समझते कि राज्य और इसकी संस्थाएँ व्यक्ति की आवश्यकताओं और उसके कल्याण की किस सीमा तक पूर्ति करती हैं? दूसरे शब्दों में, यह दृष्टिकोण सीमित अर्थों में ही राज्य तथा अन्य संस्थाओं का अध्ययन करता हैं। 

(ब) राजनीतिक विज्ञान की आधुनिक दृष्टिकोण पर आधारित परिभाषाएं 

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में आए व्यापक परिवर्तन के कारण राजनीति विज्ञान की विषयवस्तु एवं परिभाषाओं के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन आया हैं। सामान्यतः इस परिवर्तन को बौद्धिक क्रांति (Intellectual Revoluton) अथवा व्यवहारवादी क्रांति (Behavioural Revolution) के रूप में जाना जाता हैं। इस क्रांति ने परम्परावादी दृष्टिकोण को 'संकुचित' (Parochial) और 'औपचारिक' (Formal) कहकर आलोचना की हैं। व्यवहारवादियों द्वारा यह तर्क दिया गया है कि पारम्परिक दृष्टिकोण मूल रूप से औपचारिक संस्थाओं और उनके वैधानिक प्रतिमानों (Legal Norns), नियमों तथा विचारों पर केन्द्रित रहा है न कि उन संस्थाओं के व्यवहार (Behavior), कार्य (Performance) तथा अन्तःक्रिया पर। कैप्लान, जाॅर्ज, कैटलिन, एफ.एम. वाटकिन्स, बर्ट्रेण्ड रसेल, बर्ट्रेण्ड जावेनल, ज्याँ ब्लाण्डेल, डिविट एप्टर आदि विचारक इसी श्रेणी में आते हैं। मोटेतौर पर इन विचारकों ने राजनीति विज्ञान को सत्ता का अध्ययन माना हैं। इसके अंतर्गत वे सभी गतिविधियाँ आ जाती हैं जिनका या तो 'सत्ता के लिए संघर्ष' से संबंध होता हैं अथवा जो इस संघर्ष को प्रभावित करती हैं। आधुनिक या व्यवहारवादियों ने राजनीति विज्ञान की परिभाषा इस प्रकार की हैं-- 

बर्ट्रेण्ड डी. जोवेनल के अनुसार," राजनीति का अभिप्राय उस संघर्ष से है जो निर्णय के पूर्व होता है और उस नीति से है जिसे लागू किया जाता हैं। 

डेविड ईस्टन के अनुसार," राजनीति मूल्यों के प्राधिकृत विनिधान से संबंधित हैं।" 

लासवेल और कैप्लान के अनुसार," एक आनुभविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और बँटवारे का अध्ययन हैं।" 

हसजार एवं स्टीवेंसन के अनुसार," राजनीति विज्ञान अध्ययन का वह क्षेत्र है जो मुख्य रूप से शक्ति संबंधों का अध्ययन करता हैं।" 

वस्तुतः आधुनिक या व्यवहारवादी दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान को राज्य या सरकार जैसी औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन मात्र न मानकर, इसे वृहत आयाम प्रदान करने का प्रयास मानता हैं। व्यवहारवाद हर उस गतिविधि को राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय मान लेता है जिसका संबंध समाज में सत्ता या शक्ति-प्राप्ति से हैं।

उपयुक्त परिभाषा

उपरोक्त सभी परिभाषाओं के अध्ययन के आधार पर राजनीतिक शास्त्र की एक ही उपयुक्त परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है कि राजनीतिशास्त्र समाज विज्ञान का वह अंग है, जिसके अन्तर्गत राज्य तथा शासन के अध्ययन के साथ-साथ मनुष्य के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक कार्यकलापों तथा उनकी प्रकियाओं का अध्ययन भी किया जाता है। संक्षेप मे, राजनीतिशास्त्र को सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन कहा जा सकता है।

राजनीति विज्ञान का क्षेत्र (rajniti vigyan ka kshetra) 

राजनीति के अध्ययन का क्षेत्र बहुत व्यापक है और इसका निर्धारण भी बहुत कठिन है क्योंकि व्यक्ति और समाज का ऐसा शायद ही कोई पक्ष हो जो राजनीतिक इकाई से न जुड़ा हो।
राजनीतिक विज्ञान की परिभाषा की भाँति ही राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र के संदर्भ मे भी मूलतः दो प्रकार के दृष्टिकोण पाए जाते है--
(अ) परम्परागत दृष्टिकोण ( Traditional approach) तथा
(ब)आधुनिक या व्यवहारवादी दृष्टिकोण (Modern or behavioural approach)।
परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत गार्नर, गेटिल, गिलक्राइस्ट, ब्लंश्ली आदि के दृष्टिकोण को सम्मिलित किया जा सकता है। ये सभी विद्वान राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र के अंतर्गत राज्य, सरकार तथा इसी प्रकार की अन्य राजनीतिक संस्थाओं के औपचारिक अध्ययन को रखते है।
गिलक्राइस्ट और फ्रेडरिक पोलक ने राजनीतिक विज्ञान के दो विभाजन किए है-- सैद्धांतिक और व्यावहारिक।
गिलक्राइस्ट का विचार है कि सैद्धांतिक राजनीतिक के अंतर्गत राज्य की आधारभूत समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत इस बात का अध्ययन सम्मिलित नही है कि कोई राज्य अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किन साधनों का प्रयोग करता है।
इसके विपरीत व्यावहारिक राजनीति के अंतर्गत सरकार के वास्तविक कार्य संचालन तथा राजनीतिक जीवन की विभिन्न संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।
सर फ्रेडरिक पोलक के अनुसार सैद्धान्तिक राजनीतिक के अंतर्गत राज्य, सरकार, विधि-निर्माण तथा राज्य का अध्ययन किया जाता है, जबकि व्यावहारिक राजनीति के अंतर्गत सरकारों के विभिन्न रूप अथवा प्रकार, सरकारों के संचालन तथा प्रशासन, कूटनीति, युद्ध, शांति तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार एवं समस्याओं आदि का अध्ययन किया जाता है।"
व्यवहारवादी दृष्टिकोण राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र को राज्य और सरकार के अध्ययन तक सीमित नही मानता वरन् मनुष्य के व्यवहार का समग्रता मे अध्ययन करता है। व्यवहारवादियों का मत है कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार तक सीमित नही है वह व्यापक है क्योंकि मनुष्य के राजनीतिक क्रिया-कलाप, उसके जीवन के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक आदि सभी क्रिया-कलापों से प्रभावित होते हैं और उन्हें प्रभावित भी करते है। राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र के अध्ययन में निम्नलिखित अध्ययन सम्मिलित हैं--

1. मनुष्य का अध्ययन
राजनीति विज्ञान मूलतः मनुष्य के अध्ययन से सम्बंधित है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह राज्य से किंचित मात्र भी अपने को पृथक नही रख सकता। इसी कारण अरस्तु की यह मान्यता है कि राज्य या समाज मे ही रहकर मनुष्य आत्मनिर्भर हो सकता है। मनुष्य राज्य की गतिशीलता का आधार है। राज्य की समस्त गतिविधियां मनुष्य के इर्द-गिर्द केन्द्रीत होती है। मानव के विकास की प्रत्येक आवश्यकता राज्य पूरी करता है, उसे अधिकार देता है तथा उसे स्वतंत्रता का सुख प्रदान करता है। परम्परागत दृष्टिकोण मनुष्य के राजनीतिक जीवन को राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र मे रखता है, जबकि व्यावहारवादी दृष्टिकोण मनुष्य के समग्र जीवन को इसमें सम्मिलित करता है।
2. राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन
राज्य राजनीतिक विज्ञान का केन्द्रीय विषय है, सरकार इसको मूर्तरूप देती है। राज्य की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि इसके माध्यम से ही जीवन की आवश्यकताएं पूरी की जा सकती है। परन्तु राजनीतिक जीवन का उद्देश्य मात्र दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति नही है। जैसा कि अरस्तु ने लिखा है " राज्य का जन्म दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होता है, परन्तु इसका अस्तित्व एक अच्छे जीवन के लिए कायम रहता है।" इस रूप मे राज्य मानव के लिए अपरिहार्य संस्था है।

राजनीति विज्ञान के क्षेत्र का वर्णन करते हुए गैटिल ने लिखा है," राजनीति विज्ञान राज्य के भूतकालीन स्वरूप की ऐतिहासिक गवेषणा, उसके वर्तमान स्वरूप की विश्लेषणात्मक व्याख्या तथा उसके आदर्श स्वरूप की राजनीतिक विवेचना है।" 
राजनीतिक विज्ञान मे सर्वप्रथम राज्य के अतीत का अध्ययन किया जाता है। इससे हमें राज्य एवं उसकी विभिन्न संस्थाओं के वर्तमान स्वरूप को समझने तथा भविष्य मे उनके सुधार एवं विकास का आधार निर्मित कर सकने मे सहायता मिलती है।
राजनीतिक विज्ञान राज्य के वर्तमान स्वरूप का भी अध्ययन करता है। राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र का यह अंग सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति राज्य से अनिवार्यतः जुड़ा हुआ है। वर्तमान के संदर्भ मे राज्य के अध्ययन के अंतर्गत हम राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करते है, उसी रूप मे जिस रूप मे वे क्रियाशील है। हम व्यावहारिक निष्कर्षों के आधार पर राज्य के कार्यों एवं उसकी प्रकृति का अध्ययन करते है। इसके अतिरिक्त हम राजनीतिक दलों एवं हित-समूहों, स्वतंत्रता एवं समानता की अवधारणाओं एवं इनके मध्य सम्बन्धों सत्ता तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के एक सदस्य के रूप मे राज्य के विकास आदि का भी अध्ययन करते है। इतना ही नही राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र मे हम यह भी अध्ययन करते है कि राज्य आने वाले समय मे कैसा हो सकता है अथवा अपने आदर्श रूप मे उसे कैसा होना चाहिए।

3. सरकार का अध्ययन 

परम्परागत राजनीति विज्ञान में सरकार का अध्ययन किया जाता है  सरकार राज्य का अभिन्न अंग है राज्य एक अमूर्त संस्था है जबकि सरकार उसका मूर्त रूप है। 

क्रॉसे के अनुसार," सरकार ही राज्य है और सरकार में ही राज्य पूर्णता प्राप्त कर सकता है, वस्तुतः सरकार के बिना राज्य का अध्ययन अपूर्ण है।" 

सरकार राज्य की प्रभुसत्ता का प्रयोग करती है। सरकार ही राज्य की इच्छाओं और आकांक्षाओं को व्यावहारिक रूप प्रदान रकती है। सरकार के विभिन्न रूपों का अध्ययन राजनीतिशास्त्र में किया जाता है। 

सरकार के विभिन्न अंगों (व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) का अध्ययन भी इसमें किया जाता है। लीकॉक ने तो स्पष्टतया राजनीतिशास्त्र को सरकार का अध्ययन कहा जाता है।।

4. शासन प्रबन्ध का अध्ययन

लोक प्रशासन राजनीति विज्ञान का एक भाग होते हुए भी आज पृथक विषय बन गया है परन्तु उसकी मूल बातों का अध्ययन राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत आज भी किया जाता है। असैनिक कर्मचारियों की भर्ती, प्रशिक्षण, उन्नति, उनका जनता के प्रतिनिधियों से सम्बन्ध तथा प्रशासन को अति कुशल और लोकहितकारी तथा उत्तरदायी बनाने के बारे में अध्ययन राजनीति विज्ञान में किया जाता है। 

5. राजनीति सिद्धांतों का अध्ययन
इसके अन्तर्गत राज्य की उत्पत्ति, विकास, संगठन, स्वभाव, उद्देश्य एवं कार्य आदि का अध्ययन सम्मिलित है। इस प्रकार राजनीतिक विज्ञान का सम्बन्ध मुख्यतः राजनीतिक दल के लक्ष्य संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं से होता है। इसके आधार पर सामान्य नियम निर्धारित करने का प्रयत्न किया जाता है।
6. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध का अध्ययन 
वर्तमान युग मे अन्तर्राष्ट्रीय विकास की बढ़ती हुई गति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि समस्त संसार एक होता जा रहा है फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का महत्व बढ़ता जा रहा है। विज्ञान ने दूरी और समय पर विजय प्राप्त करके संसार के राष्ट्रों मे सम्बन्धों को स्थापित करने की प्रेरणा दी है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठन आदि का अध्ययन अब राजनीतिक विज्ञान के विषय क्षेत्र बन गये है।

7. राजनीतिक दलों तथा दबाव गुटों का अध्ययन

राजनीतिक दल और दबाव गुट वे संस्थाएँ हैं जिनके द्वारा राजनीतिक जीवन को गति दी जाती है। आजकल तो राजनीतिक दलों और दबाव गुटों के अध्ययन का महत्व संविधान और शासन के औपचारिक संगठन के अध्ययन से अधिक है। इस प्रकार का अध्ययन राजनीतिक जीवन को वास्तविकता से सम्बन्धित करता है।

उपरोक्त विवेचन से सिद्ध होता है कि राजनीति-विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। इसमे राज्य के साथ मनुष्य के उन सम्पूर्ण क्रियाकलापों का अध्ययन किया जाता है, जिसका सम्बन्ध राज्य अथवा सरकार से होता है। इस प्रकार राजनीति-विज्ञान मनुष्य और मनुष्य के तथा मनुष्य और राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों पर विचार करता है। सरकार के विभिन्न अंगों, उनके संगठन, उनमे शासन सत्ता का विभाजन तथा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का भी अध्ययन करता है।

परंपरागत राजनीतिशास्त्र की विशेषताएं 

आमतौर पर व्यवहारवादी क्रांति अथवा द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के पूर्व के राजनैतिक सिद्धांतों एवं दृष्टिकोणों को परंपरागत कहा जाता है। शास्त्रीय युग के सभी विद्वान जैसे प्लेटो, हॉब्स, रूसो, ग्रीन आदि इसी क्रम में आते हैं। परम्परागत राजनीतिशास्त्र की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--

1. संस्थात्मक दृष्टिकोण

यह राज्य एवं उसकी संरचनाओं इकाइयों आदि संस्थात्मक दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। उसकी जाँच के मुख्य विषय राज्य सरकार, राजनीतिक संस्थाएँ, राज्य के लक्ष्य (न्याय, सुरक्षा, स्वतंत्रता, समानता, नैतिकता आदि) रहे हैं। 

2. विचार की व्यक्तित्व एवं दृष्टिकोण का प्रभाव 

परंपरागत राजनीति विज्ञान की यह विशेषता रही है कि उसके सिद्धांत अपने प्रतिपादक के व्यक्तित्व एवं दृष्टिकोण से प्रभावित रहे हैं जो तत्कालीन राजनीतिक समस्याओं का स्थाई समाधान खोजने की कोशिश करते हैं। अधिकांश विचारक आचारशास्त्र या दर्शनशास्त्र से प्रभावित रहे हैं। उन्होंने मानव जीवन और समाज के लक्ष्यों और मूल्यों की ओर ध्यान दिया है। यूनानी विचारकों द्वारा नैतिक जीवन की उपलब्धि का विचार, मध्ययुग के क्रिश्चियन राजनीतिज्ञों का ईश्वरीय राज्य स्थापित करने का विचार और आदर्शवादियों के विवेक से साक्षात्कार का विचार इसके प्रमाण हैं। उनकी विचारधाराओं को परानुभववादी माना गया है। उनके विचार व्यक्तिपरक और चिंतन-प्रणाली निगमनात्मक है। वे वैज्ञानिक पद्धति को नहीं अपनाते हैं। उनके विचारों का आधार व्यक्तिगत दृष्टिकोण और चिंतन कल्पना एवं अध्यात्मवाद है।

3. अधि-अनुशासनात्मक 

परंपरागत राजनीतिशास्त्र की एक विशेषता यह है कि इसके विचारों का चिंतन-क्षेत्र अधि-अनुशासनात्मक था; अर्थात् उनके विचारों का संबंध कई सामाजिक शास्त्रों से संबंधित रहता था। केवल राजनीति से नहीं। इसलिए, प्लेटो , अरस्तु, रूसो, मार्क्स आदि विचारक लगभग सभी सामाजिक शास्त्रों में महत्त्वपूर्ण स्थान ग्रहण किए हुए हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि राजनीतिशास्त्र के विषय क्षेत्र में काफी अस्पष्टता बनी रही।

4. बौद्धिक 

परंपरागत राजनीति सिद्धांत प्राय: बौद्धिक है और यथार्थ एवं व्यवहार से परे है।

5. तर्क पर आधारित 

परंपरावादियों के निष्कर्ष तर्क पर आधारित हैं न कि आधुनिक राजनीतिशास्त्र की भाँति गणितीय परिणाम तथ्य-संग्रह और सर्वेक्षण जैसी वैज्ञानिक पद्धतियों पर।

6. कानूनी दृष्टिकोण 

परंपरावादियों के बीच कुछ अनुभववादी विचारक भी देखने को मिलते हैं, लेकिन उनका अनुभववाद या यथार्थवाद राजनीतिक संस्थाओं के संबंध में अकारगर कानूनी और संस्थागत रहा है। इस दृष्टि से वे राजनीति को न्यायशास्त्रीय या कानूनी पहलुओं से देख पाए हैं। 

7. विधियाँ 

परंपरावादियों के अनुसंधान तथा विश्लेषण की प्रमुख विधियाँ ऐतिहासिक एवं विवरणात्मक रही हैं। इसका अधिकांश साहित्य राजनीति के खुले बाजार के बजाय पुस्तकालयों में बैठकर लिखा गया है। 

8. समरूपता का अभाव

आधुनिक राजनीति शास्त्रियों के विपरीत परंपरावादी विचारक सामान्य राजनीतिक सिद्धांत ढूँढ़ने की चेष्टा नहीं करते हैं। चूँकि उनके विचार व्यक्तिपरक और भावात्मक होते हैं। इसलिए उनके विचारों में समरूपता नहीं पाई जाती है।

9. अंतर अनुशासनिक नहीं  

परंपरावादियों में अन्य अनुशासनों तथा विषयों के विशेषतः विकसित सामाजिक शास्त्रों से अध्ययन की तकनीकी और निष्कर्षों को ग्रहण करने का झुकाव नहीं पाया जाता है। इसलिए परंपरागत राजनीतिशास्त्र अंतर अनुशासनिक नहीं बन पाया है।

आधुनिक राजनीति विज्ञान की विशेषताएं 

आधुनिक राजनीतिशास्त्र जिसे नवीन राजनीतिशास्त्र भी कहते हैं, का उदय मुख्यतः व्यवहारवादी क्रांति के साथ द्वितीय महायुद्ध के बाद हुआ परंपरागत राजनीतिशास्त्र से इसकी भिन्नता को बतलाने के पहले हम इसकी विशेषताओं को जानेंगे। आधुनिक राजनीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है-- 

1. व्यवहारवादी  

परंपरागत राजनीतिशास्त्र संस्थावादी था जबकि आधुनिक राजनीतिशास्त्र व्यवहारवादी है। यह शासन के ढाँचे और उसकी संस्थाओं से भिन्न मानव के समस्त राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करता है। फलत: आज राजनीतिशास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय राज्य के बदले मनुष्य का व्यवहार हो गया है यह राज्य से परे की राजनीति पर जोर देता है। 

2. वैज्ञानिकता 

आधुनिक राजनीतिशास्त्र अपने विषय को वैज्ञानिक और सटीक बनाना चाहते हैं। वे राजनीति घटनाओं एवं तथ्यों को वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसकर उनकी जाँच और विश्लेषण करते हैं। इसके लिए वे प्राकृतिक विज्ञानों तथा सामाजिक शास्त्र से अध्ययन की नई नई तकनीक को लेकर राजनीति विज्ञान में उनका प्रयोग करते हैं। 

3. भविष्य कथन

आधुनिक राजनीतिशास्त्री अपने विषय को अधिक से अधिक भविष्यवाणी करने के योग्य बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं। विषय को उपयोगी और संगत बनाने के दृष्टिकोण से ऐसा किया जा रहा है। 

4. सिद्धांत निर्माण का लक्ष्य 

आधुनिक राजनीतिशास्त्र का उद्देश्य राजनीति के सैद्धांतिक संचारों को विकसित करना है। इसके आधार पर वे राजनीति घटनाओं एवं तथ्यों की खोज करते हैं और उनका विश्लेषण करते हैं। इस विश्लेषण के द्वारा सामान्यीकरण करते हैं और सामान्यीकरण के आधार पर अंत में सिद्धांत का निर्माण करते हैं। थोड़े शब्दों में आधुनिक राजनीतिशास्त्र का अंतिम लक्ष्य सिद्धांत निर्माण है।

5. मूल्यविहीन

आधुनिक राजनीतिशास्त्र को लगभग मूल्यविहीन बताया जाता है। चूँकि इसका जोर एक वैज्ञानिक और सटीक विषय पर है इसलिए राजनीतिक विश्लेषण में यह मानवीय मूल्यों जैसे नैतिकता, स्वतंत्रता आदि को अपने अध्ययन का विषय बनाता है, जिन्हें देखा गया है या देखा जा सकता है।

6. सत्यापन

आधुनिक राजनीतिशास्त्री राजनीति की सैद्धांतिक बातों को आँख बंद कर स्वीकार नहीं करते हैं, वे उनका अधिक सटीक विश्लेषण तथा तथ्यात्मक प्रमाणों द्वारा सत्यापित करने पर बल देते हैं। थोड़े शब्दों में वे केवल उन्हीं राजनीतिक सिद्धांतों एवं निष्कर्षों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, जिन्हें ठीक-ठीक सत्यापित किया जा सके।

6. वस्तुनिष्ठता 

वस्तुनिष्ठता आधुनिक राजनीतिशास्त्र की सबसे बड़ी कसौटी है आज के राजनीतिशास्त्री अपने विषय को कल्पना और चिंतन से हटाकर वास्तविकता का रूप देना चाहते हैं। वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति के लिए वे प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान में प्रयुक्त तरह-तरह की तकनीकों के प्रयोग पर जोर देते हैं। 

7. अंतर अनुशासनिक 

आधुनिक राजनीतिशास्त्र अंतर अनुशासनिक है। यह मानव जीवन एवं क्रियाओं को संपूर्ण रूप से देखता है। जिसका राजनीतिक जीवन एक पक्ष मात्र है। राजनीतिक जीवन और व्यवहार पर मानव जीवन के अन्य पक्षों, क्रियाओं और व्यवहारों का प्रभाव पड़ता है। फलतः आधुनिक राजनीतिशास्त्री अन्य सामाजिक शास्त्री से घनिष्ट संबंध स्थापित करते हैं और उनके विषयों, अध्ययन की प्रणालियों और तकनीक का बड़ी मात्रा में इस्तेमाल करते हैं।

परंपरागत और आधुनिक राजनीति विज्ञान में अंतर 

आधुनिक राजनीति विज्ञान परम्परावाद के खिलाफ एक क्रांति और आंदोलन हैं। परम्परावादी राजनीति विज्ञान में कई गल्लियाँ थी। डाॅ. वर्मा के शब्दों में," राजनीति विज्ञान का व्यवहारवादी दृष्टिकोण परम्परावादी दृष्टिकोण से प्रकृति में, उद्देश्य में, पद्धतियों में और सैद्धांतिक संरचना में भिन्न हैं।"

परम्परावादी और आधुनिक राजनीति विज्ञान में निम्नलिखित अंतर हैं-- 

1. विषय-वस्तु में अंतर 

राजनीति विज्ञान की विषय-वस्तु तथा परिभाषा के संबंध में परम्परागत और आधुनिक राजनीति विज्ञान में पर्याप्त अंतर हैं। परम्परावादी दृष्टिकोण राज्य तथा सरकार या अन्य राजनीतिक संस्थाओं को राजनीति विज्ञान की विषय-वस्तु मानता हैं, किन्तु आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिकों का कहना हैं कि राजनीति विज्ञान की विषय-वस्तु राज्य न होकर मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार तथा शक्ति व उसका प्रभाव है। 

2. क्षेत्र में अंतर 

राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के संबंध में भी परम्परावादी तथा आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। दोनों के दृष्टिकोणों में पर्याप्त अंतर हैं। परम्परावादी राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य, उसकी उत्पत्ति और विकास का अध्ययन किया जाता हैं अर्थात् वह राज्य के भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों का अध्ययन करता हैं। परम्परागत राजनीति विज्ञान शासन, उसके संगठन, उसके स्वभाव, उसके अंग, शासन के रूप तथा उसके कार्यों का अर्थात् सरकार की संस्थाओं के रूप में अध्ययन करता हैं, जबकि आधुनिक राजनीति विज्ञान में प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, संस्थाओं का नहीं। इसी तरह आधुनिक राजनीतिक विचारक परम्परावादियों की तरह राज्य का अध्ययन करने की उपेक्षा मनुष्य और उसके व्यवहारों के अध्ययन पर बल देते है। आधुनिक राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत यथार्थ राजनीति का अध्ययन किया जाता हैं, अतः उसके क्षेत्र में दबाव-समूह, राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक विकास, राजनीतिक खेल, सम्भ्रांत-वर्ग आदि का अध्ययन भी सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त वह शक्ति, सत्ता और प्रभाव का विश्लेषण भी करता हैं। 

3. अध्ययन पद्धित में अंतर

परम्परागत राजनीति विज्ञान मे अध्ययन की पुरानी पद्धतियों का सहारा लिया जाता हैं, जैसे-- दार्शनिक पद्धित, ऐतिहासिक पद्धित, तुलनात्मक पद्धित इत्यादि। किन्तु आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिक इसे स्वीकार नहीं करते, क्योंकि वे यह मानते हैं कि ये पद्धतियाँ अपूर्ण तथा एकांगी हैं। उनका आग्रह वैज्ञानिक उनकरणों के माध्यम से राजनीति का अध्ययन करने के लिए हैं। आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिकों का विश्वास हैं कि सर्वेक्षण, प्रतिमानों, पर्यवेक्षणों, विश्लेषण तथा आँकड़ों के माध्यम से ही राजनीतिक कार्यों और वस्तुस्थिति का सही-सही अध्ययन किया जाकर निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता हैं। 

4. प्रकृति में अंतर 

राजनीति विज्ञान की प्रकृति के संबंध में भी परम्परावादियों और व्यवहारवादियों में मतभेद हैं। परम्परावादी विचारक राजनीति विज्ञान को विज्ञान नहीं मानते और थोड़े-से परम्परावादी इसे विज्ञान मानते हैं, वे भी यह अनुभव करते हैं कि यह केवल शिष्टावश ही एक विज्ञान हैं। परम्परागत राजनीति विज्ञान कल्पना, अनुमान और संभावना पर आधारित हैं, अतः इसमें प्रामाणिकता तथा सुनिश्चितता का अभाव रहता हैं और इसके निष्कर्ष भी सही नहीं होते। इसके विपरीत आधुनिक राजनीति वैज्ञानिक राजनीति विज्ञान को शुद्ध विज्ञान बनाने पर जोर देते हैं। वे चाहते है कि राजनीति विज्ञान में भी अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की तरह एकदम सही सिद्धांत प्रतिपादित होने चाहिए तथा एकदम सही निष्कर्ष निकाले जाने चाहिए, जिससे सही भविष्यवाणी की जा सके। 

5. मूल्यों में अंतर 

परम्परावादी तथा आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिक मूल्य के महत्व के संबंध में भी सहमत नहीं हैं। परम्परावादी राजनीतिक वैज्ञानिकों का मूल्यों में अथाह विश्वास हैं। वह राजनीति में आदर्श, नैतिकता तथा श्रेष्ठता को विशेष महत्व देते हैं। इस संबंध में मिल का कहना हैं," एक संतुष्ट सूअर की अपेक्षा असंतुष्ट सुकरात होना अच्छा हैं।" इसका आधार नैतिक मूल्य ही हैं, अतः यह व्यक्तिनिष्ठ दृष्टिकोण से प्रभावित हैं। किन्तु दूसरी ओर आधुनिक राजनीति वैज्ञानिक मूल्य निरपेक्षता पर बल देते हैं और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण अपनाते हैं।

परम्परागत और आधुनिक राजनीति विज्ञान का अध्ययन करने पर प्रतीत होता है कि मानों दोनों मे बहुत अंतर हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों मे विरोध नही किन्तु दोनों परस्पर पूरक हैं। इस विज्ञान के विकास में यदि परम्परावादी प्रथम चरण हैं तो व्यवहारवादी दूसरा चरण और उत्तर व्यवहारवाद तृतीय चरण, आधुनिक राजनीति विज्ञान गतिशील विज्ञान हैं।

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