आवां उपन्यास का केंद्रीय पात्र कौन है? - aavaan upanyaas ka kendreey paatr kaun hai?

मेरा सारा लेखन छत्तीसगढ़ पर केन्द्रित है । मेरी हिन्दी की कहानियों के अतिरिक्त महंत अस्मिता पुरस्कार प्राप्त उपन्यास प्रस्थान की पृष्ठभूमि भी छत्तीसगढ़ी है । आवा छत्तीसगढ़ी का मेरा पहला उपन्यास है ।

     अपराजेय अक्षर पुरूष स्व. हरि ठाकुर जी के आदेश पर मैंने इस उपन्यास का लेखन हाथ में लिया था । अग्रज श्री नन्दकिशोर तिवारी जी छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर में इससे पूर्व मेरी कहानी पुरस्कृत कर चुके थे । आवा को उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर में न केवल महत्व के साथ स्थान दिया अपितु मुझे लगातार प्रोत्साहित भी किया ।

     श्रद्धेय श्री हरि ठाकुर के संपर्क में लगभग बीस वर्षो से लगातार रहकर मैंने महसूस किया कि वे अपने आवे में समकालीन रचनाकर्मियों को बहुत सार सम्हाल के साथ रखते और पकाते थे । उन्हें छत्तीसगढ़ महतारी के वैभव का गायन सिखाते थे और इस तरह एक प्रभावी वाद्यवृंद उन मिट्टी की पक्की आकृतियों से ही वे तैयार कर लेते          थे । साहित्य के उस तपस्वी कुशल कुम्हार का आवा सदैव प्रक्रिया में रहा और रहेगा इसी आशा और विश्वास के तहत मैंने उपन्यास का नाम आवा दिया ।

     मैं आभारी हूं कि लोकाक्षर प्रकाशन ने इस उपन्यास को आगे बढ़कर पहले पहल सहर्ष प्रकाशित किया । आवा को निरंतर पढ़ते हुए श्रद्धेय श्री केयूर भूषण जी अपने कृपालु स्वभाव के अनुरूप उपन्यास की प्रशंसा में कलमतोड़ खत लिखकर मुझे सतत् प्रोत्साहित करते रहे । मैं ह्रदय से उनके प्रति आभारी हूँ ।

     आदरणीया डॉ. सत्यभामा आड़िल ने एम.ए. पूर्व के पाठ्यक्रम के लिए प्रकाशित  पुस्तक में इस उपन्यास को भी सम्मिलित किया । विगत छ: वर्षो से यह उपन्यास पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के हिन्दी एम.ए. पूर्व के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है । कई महाविद्यालयों में मुझे इस उपन्यास पर व्याख्यान देने हेतु छात्रों के बीच बुलाया भी  गया । जिनमें कल्याण महाविद्यालय भिलाई एवं तामस्कर स्मृति शासकीय  कन्या महाविद्यालय दुर्ग प्रमुख है । अक्सर इस उपन्यास को मित्रगण और शोध करने वाले छात्र मांग बैठते हैं । छत्तीसगढ़ी के इस उपन्यास की लोकप्रियता को देखकर इसे पुन: अगासदिया प्रकाशन से नई सज्जा के साथ प्रकाशित किया जा रहा है ।


-परदेशीराम वर्मा

श्री परदेशीराम वर्मा प्रदेश के साहित्यकारों में एक जाना-पहचाना नाम है । वे हिन्दी तथा छत्तीसगढ़ी के प्रख्यात लेखक हैं । छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य और लोक कला में उनकी गहरी रूचि है । उनकी गणना साक्षरता अभियान के पुरोधाआें में होती है । छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन में उनके लेखन ने वैचारिक धरातल के निर्माण में बड़ा सहयोग प्रदान किया है । बिना वैचारिक और सैद्धांतिक धरातल के कोई भी आन्दोलन जन-आन्दोलन नहीं बन सकता ।

     श्री परदेशी राम वर्मा मूलत: कथाकार हैं । किन्तु, निबंध लेखन में भी उनका ऊँचा स्थान है । जीवनी तथा संस्मरण साहित्य सृजन की दिशा में उन्होने स्तुत्य प्रयास किया है । पंथी नृत्य की पहचान को विश्वस्तर पर स्थापित करने वाले मूर्धन्य कलाकार श्री देवदास बंजारे के जीवन परिचय को उन्होने अपने ग्रंथ आरूग फूल में जिस आत्मीय और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है, वह इस तथ्य का प्रमाण है ।

     अपने लोग श्रृंखला की उनकी किताबें बेहद महत्वपूर्ण हंै । छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान और पौरूष को जागृत करने के लिये जरूरी है कि हम अपनी लेखनी से यह सिद्ध कर दिखायें कि छत्तीसगढ़  के साहित्य, संस्कृति और कला के क्षेत्र में जो अपना जीवन बना रहे हैं, उनका रचनात्मक योगदान देश में किसी से कम नहीं है ।

     लेखक ने मर्मस्पर्शी चित्रण १दाई२ का किया है । छत्तीसगढ़ की असली बेटी जब दाई बनती है, तब ऐसी ही दाई बनती है । ऐसी दाई नहीं बनती तो परदेसी राम भी पैदा नहीं होते । माँ केवल मां नहीं होती । वह प्रथम गुरू होती है । वह केवल जीवन ही नहीं देती, जीवन का आदर्श भी देती है, संस्कार भी देती है, जीवन-दर्शन भी देती है । छत्तीसगढ़ की इन नारियों में करूणा, ममता, उदारता के साथ-साथ अदम्य पौरूष के भी दर्शन होते हैं । परदेशी राम की दाई में लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती तीनों रूपों के दर्शन होते हंै ।

     श्री परदेसी राम वर्मा की भाषा को लेकर मैं अत्यन्त उल्लसित और उत्साहित  हँू । भाषा के प्रति उनका जो छत्तीसगढ़ीपन है, वह मुझे उछाल देता है । भाषा को पढ़कर पाठक को लगना चाहिये कि लेखक और कोई नहीं, छत्तीसगढ़ का माटी पुत्र है । जो सुगंध छत्तीसगढ़ की माटी में है, वह लेखक की भाषा में भी हो तो पढ़ने में बड़ा सुख मिलता है । परदेसीराम की यह शैलीगत विशेषता है जिसके लिये वे बधाई के पात्र हैं ।

     आज का साहित्य आने वाले कल का इतिहास है । अत: लेखकों पर दोहरा दायित्व है । मुझे प्रसन्नता है कि श्री वर्मा यह दायित्व बखूबी निभा रहे हैं । मैं उनके यशस्वी भविष्य की कामना करता  हँू ।

     

गांधी उद्गरे हे । ओकर लाम- लाम हाथ झूलत हे, माड़ी-माड़ी ले । कनिहा म पटकू उघरा बदन, चेंदुवा मंूड़, नानचुन घड़ी के झूलेना । हाथ म धरे हे लउठी । रेंगथे त रेंगते जाथे । जेती ओ रेंगथे जम्मो मनखे उही कोती रेंग देथें । ललमुंहा अंगरेज बक्क खा जथे । धरे सकय न टोके सकय । अंधौर अस उठे हे, गांधी उद्गरे हे ।

     बिसाहू के बात ल सुनके लीमतुलसी गांव के बड़े दाऊ  बिसनू अकबकागे।  पूछिस - का बिसाहू, सदा दिन के तंय हमर संगी । तोर बात ल हम कभू नई काटन । बतावत हस तउन ह गजब बड़ बात ये फेर हम बिसवास कइसे करन ।

     बिसाहू मंडल किहिस - दाउ बिन मरे सरग नई मिलय । गांव म बइठे बइठे गांधी बबा के परछो नई पाय सकव । हम देख के आवथन । गे रेहेन वर्धा । उहां धनीराम दाऊ पढ़ाथे । बरबंदा वाला धनीराम । ओकर परसादे गे रेहेन उहां । गांधी बबा काहत लागय । बोकरी के दूध पीथे । पेनखजूर हा ओकर खाजी ये । अपन काम ल खुदे  करथे । पैखाना तक ल खुदे उठाथे । दाऊ  धन्न हे गांधी महातमा । अपन  तो उठाबे करथे हमर कस्तूरबा दाई सो घलो बुता कराथे गा । इहां दतवन मुखारी तक ल हम टूरा के दाई सो मांगथन । अढ़ो-अढ़ो के हलाकान कर देथन । उहां गांधी बबा के देखौ कारबार त तरूआ सुखा जथे । इहां हमन अपन ल तोपै दूसर ल उघारै वाला हिसाब जमाथन, फेर वाह रे गांधी महातमा । हमर तुंहार अंग ल कपड़ा म ढांके बर खुदे उघरा होगे जी। कहिस मोर ददा भइया मन उघरा हें । गरीब हें । त मैं जादा पहिर के का करहँू । चरखा म सूत बनाथे अऊ  उही सूत के बने मोटहा झोटहा कपड़ा के बने पटकू म बपुरा ह इज्जत ल ढांकथे ।

     दाऊ  सन्ना गे । यहा का बात सब सुनब मा आवथे भाई । दाऊ पूछिस - का बिसाहू, अंगरेज कांही नई करय गा ? दाऊ  के बात ल


बिसाहू लमइस । बात अइसन ये दाऊ -आगी खाही ते ह अंगरा हगबे करही । अंगरेज तो मटिया मेट करना चाहत हें, खन के गड़िया देतिस गांधी ल । फेर जनता जनार्दन के गांधी ल कोन हाथ लगाय सकही दाऊ  । जब तक ये देस ल अजादी नई मिलही, गांधी ल काल घलो नई छुवे सकय । उद्गरे हे गांधी हमला अजाद करे बर । भगवान ताय । अजादी के लीला देखाही अउ अपन लोक जाही ।

     मंडल के बात ल सुनके कन्नेखी देखिस दाऊ  हा अउ किहिस तोरे अस गुन्निक बर केहे गे हे मंडल आजे मूड मुड़इस, अउ आजे महंत बनगे ।

     कइसे दाऊ ? मंडल तिखारिस

     बात अइसे ये बिसाहू - दाऊ  लमइस अपन बात - किथे नहीं कहां गे कहंू नही, का लानेे कुछू नहीं तऊ न हाल तोर हे । अरे भई जब तैं वर्धा गेस अऊ  गांधी जी से मिलेस त कुछू सीखे के नहीं ?

     का सिखतेंव दाऊ  । मैं तो धनीराम जी के परेम म जा परेंव । वो किहिस, आजा रे भाई, महातमा जी के आसरम देखाहूं । त जा परेंव । सीखेंव कुछू नहीं दाऊ ।

     दाऊ  थपड़ी पीट के हांसिस अउ किहिस - मंडल, चल अब सीख ले गांधी जी नारा दे हे - करव या मरव जाने नही । मतलब ये कि करना हे या मरना हे । माने के करके मरना हे । देखे जाही हवा अगर टेढ़ी चले तो रस्सी से बंधवा दूंगा हा..हा..हा..हा.... ।

     बिसाहू संग अउ दू चार झन सकलाय मनखे मन हांसिन । हांसे के कारन ये रिहिस के दाऊ  बिसनू लीमतुलसी वाला बनय साल साल दसराहा के दिन रावन । अउ बोलय डैलाग - हवा अगर टेढ़ी चले तो रस्सी से बंधवा दूंगा । गांधी महातमा के बात म घलो कूद परिस रावन बन के बिसनू दाऊ  । रघौत्तम महाराज किहिस - वाह दाऊ , रहि गेसन रावन के रावन । गांधी जी काहत हे एक गाल ल कोनो मारय त दुसर गाल ल दे      दव । अउ तैं कहत हस-हवा अगर टेढ़ी चले तो रस्सी से बंधवा दूंगा ।


सदा दिन बंधवाय मरवाय ल तो जानेव । अऊ  का करहू । अंगरेज घलो गत मारत हे तुहूं उही काम करत हव । वो हा गोरिया अंगरेज ये तुम करिया अंगरेज ।

     दाऊ  पंडित रघोत्तम के बात ल सुनके किहिस - पालागी ग महराज । बने  आसिरवाद देथव पंडित जी । अरे हमंू गांधी बबा के पाल्टी म मेम्बर बनगेहन महराज । करबो अऊ  मरबो । बिसाहू मंडल हा सुनइस किस्सा लंबा चौड़ा त महूं कहि परेंव भई । लेकिन काली बिहनिया हम सबला गांव के पीपर चौरा म सकलाना हे । अऊ  बिदेसी कपड़ा के होली जलाना हे ।

     महराज रघोत्तम किहिस - काल करंते आज कर आज करंते अब । पल में परलय होयगा, तब होली जलेगा कब । कबित्त ल सुनके सब हांसत - गोठियावत निकलिन कपड़ा मांगे बर ।

     घर-घर दल बनाके सब जांय अऊ  काहंय - छेरिक छेरा, घर के बिदेसी कपड़ा ल हेरी क हेरा । घर के अंगना बटोरत रहय बिंदाबाई । हाथ के काम ल छोर के आगे दम्म ले । किहिस - अई, छेरछेरा पुन्नी तो कब के नाहक गे बाबू हो, ये का नवा उदिम करत हव ? ठट्ठा करथव का ?

     रघोत्तम महराज सब बात ल बतइस । तव बिंदा बाई लानिस एक लुगरा अऊ  एक ठन अंगरखा । मांगत जांचत गांव भर म किंजर के सब झन जुरियाइन अउ पीपर के पेड़  के तरी म सकलाके किहिन - बोलो, महातमा गांधी के जय । बोलो भारत माता के जय । जय-जयकार थमिस त बिसाहू मंडल रोसियागे । लगाय लगिस नारा -

बोलव वीर नारायण सिंग के जय

बोलो सुन्दर लाल महराज के जय

बोलो ठाकुर प्यारेलाल के जय

बोलो रविसंकर सुकुल के जय

बैरिस्टर छेदीलाल के जय

बोलो डॉक्टर खूबचंद बघेल के जय


जयकारा सुनके बड़े दाऊ  बिसनू किहिस - वाह मंडल कतेकझन सियानमन के नांव तंय जानत हस । धन्न हे हमर गांव लीमतुलसी जिहां बिसाहू मंडल हे । गांधी बबा के चेला ।

     बिसाहू मंडल किहिस - अइसन नोहय दाऊ , मैं आंव गाड़ी वान, असल गांधीवादी हमर मितान मंडल कहाथे भई । सिरतोन आय । सदा दिन गांधी बबा के सब कारबार म जात- आवत रथे । बिसाहू बतइस के मंडल ह रइपुर निकलगे । उहां नेता मन अवइया हें । ओकर संग महूं आत जात रथंव । जादा तो नहीं रे भाई हो, जा परेंव महूं दू चार जगा । तब परछो पायेंव । कंडेल गांव गेन । आवत जात सबो किस्सा ल सुनंेव । बैला गाड़ी मैं हांकथंव, घनाराम मंडल किस्सा फटकारथे । मोर सांही मुरुख मन्से घलो गंगा नहा लेथे संगी संगवारी के परताप ले ।

     सुन्दर लाल महराज, छेदीलाल जी बैरिस्टर, ठाकुर प्यारेलाल सिंग, डॉ. खूबचंद बघेल, रविसंकर महराज सब के नांव ल सुनेंव त जय बोला पारेंव भई । सब झन बिसाहू के बात सुनके संहरइन । बिसाहू हे तो छोट कुन किसान फेर सपना गजब बड़ देखथे । देस के अजादी के           सपना । वो हा सोचथे, देस अजाद होही त गरीब किसान के बेटा साहेब सुभा बनहीं । राज चलांही अपन देस म अपन राज रिही । गांव के भाग जागही । छाती तान के चलबो ।

     सब झन अपन घर जाय ल धरिन । महराजी पटेल किहिस- एक ठन गीत महूं सुना पारतेंव ग ।

     बिसाहू किहिस - सुना न जी रट्ठा के सुना

     महराजी खंजेरी बजा बजा के गइस -

     जय हो गांधी जय हो तोर,

     जग म होवय तोरे सोर । जय गंगान ।

     धन्न धन्न भारत के भाग

     अवतारे गांधी भगवान । जय गंगान ।

     गीत सुन के सब झन किहिन तभे बिसाहू मंडल किहिस जी


गांधी उद्गरे हे। मनुख तन लेके भगवान आय हे । रघोत्तम महराज घर डाहर जात जात किहिस - बाबू रे, गीता म भगवान दे हे बचन-यदा यदा ही धर्मस्य ..... माने के जब जब धरम उपर अपजस आय अस करही, गरीब गुरबा, गौ अउ बाम्हन के ऊ पर आही संकट तब मै आहूं धरती म । परगट होहूं । गांधी के रूप म आये हे भगवान हा ।

     अंकलहा ल महराज के सबो बात हा नीक लागिस फेर बाम्हन उपर संकट बाला बात नई सुहइस । किहिस के बाम्हने मन मनखे ये, हमन नोहन ? भगवान हमरो बर मया करत होही महराज ?

     रघोत्तम महराज बताइस - बात अइसे ये अंकलहा, गरंथ लिखइया कोन? बाम्हन । त अंधरा बांटे रेवड़ी, आप आप ल देय ताय जी । गरंथ म हे तेला केहेंव । पुरान उपनिसद हमर पुरख मन लिखिन जी हम तो भइया - मनखे मनखे ला मान, सगा भाई के समान, गुरू बाबा घासीदास के ये दे बात ल गुनथन । जात पात सब बेकार।  इही सब जात-पात के बिसकुटक के मारे तो हमर ताकत कम होवत गीस ।  बात तंय बने करथस              अंकलहा । रात होगे हे । घर जा बाबू । बिहनिया झटकुन उठहू । जागत जागत सुतहू ।

     भरूआ काट के बसे रिहिन हमर पुरखा मन लीमतुलसी गांव म अंकलहा किहिस बिसाहू ल । भला बिसाहू काबर चुप रितिस । उहू फटकारिस, बात अइसन ये अंकलहा, ये हमर छत्तीसगढ़ महतारी के महत्तम गजब हे । किथे नहीं, बइठन दे त पिसन दे तौन हाल ताय । बैइठ पइन तौन पिसे ल धर लिन । कोनो आगू अइन कोनो पीछू । हमरो पुरखा मन अइसने अइन होहीं अंकलहा । भरूआ काट के सबो बसे हे । अंकलहा      असकटागे । बिसाहू संग बात म भला अंकलहा कइसे जीतय । बात ल बिगड़त देख के अंकलहा किहिस, - बिसाहू मंडल, काली जऊ न चेंदरी मन के होली जलायेव तेकर का मतलब हे, गम नई पायेंव ।

     बिसाहू किहिस - घनाराम मंडल आगे हे रइपुर ले । ले चल फेर उहें चली उही बताही भई ।



दूनों झन ल आवत देखिस त घनाराम मंडल अपन बहू ल हंूत करा के किहिस - बहू, चाहा मड़ा दे । तीन गिलास उतारबे ।

     बिसाहू सुन पारिस । किहिस - मंडल, तै गांधी बबा के चेला, तहूं चाहा झड़कथस ग । अंगरेज मन के चाह ल ।

     घनाराम मंडल किहिस - बइठव जी । तंुहला बताई चाह के किस्सा । बात अइसन के बिसाहू, चाहा ल हम नई धरेन । हमला चाहा ह धर लिस । दुकान वाला मन आवंय गांव म केटली केटली बनावंय चाह अऊ  फोकट म पियावंय । हफता पन्दरही फोकट में पी पारेन । तहां का पूछना हे । चस्का लग गे ।

कबी चाहा बर कबित्त बनायहे जी, सुनव,

डुबुक डुबुक डबकत हे, चाहा के पानी ।

गजब बाटुर हें, धोरूक अऊ डार दे पानी,

सक्कर न दूध दिखय लाल लाल पानी ।

होठ हर भसकत हे फूट कस चानी ।

कविताला सुनके अंकलहा किहिस - नाचा म

जोक्कड़ मन नवा बात किथें -


चाह भवानी दाहिनी, सम्मुख माड़े पलेट

तीन देव रच्छा करंय, पान बिड़ी सिगरेट ।


     दोहा सुन के घनाराम मंडल गजब हांसिस । किहिस - का करबे बिन चाहा के रहे न जाय । मूड़ पिराथे । हाथ गोड़ अल्लर पर जथे । घर भर के पहली उठते साठ चहा पीथन त काम बूता धरथन । मंडलिन हा चाहा पिये बिना नाती ल सेंकय नहीं । चाहा बिना परेम धलो नई होवय । ठठ्ठा बात ल सुनके मंडलिन देखऊटी घुस्सा करके किहिस - एकाध झन मनखे मन बुढ़ा जथें फेर गोठियाय के ढंग नई राहय ।

     मंडल मंडलिन के बात ल सुनके अऊ मंगन होगे । किहिस ।


देखना हे सवाद चाहा के चस्का ताय । बात के चस्का ते चाह के चस्का । चाह पीना माने अब सान के बात बनगे जी । घर म मनखे आही अऊ चाह नई पियाबो त किही दिली-ओहा चाहो बर नई पूछिस जी । याहा तरा दिन आय हे ।

     मंडल के बात, - बिसाहू किहिस - तंय तो मातबर मंडल अस, चार नागर के जोतनदार । फेर जिकर इहां मुसुवा डंड पेलत हे उहू मन झपागे चाहा म । पोट-पोट भूख मरही फेर चाहा झड़काही । खसू बर तेल नहीं, घोड़सार बर दिया । यहा तरा होवत हे हाल हा । मंडल किहिस - सिरतोन ताय जी । ले चाहा पुरान छोड़व । बतावव कइसे पधारेव दूनो देवता ।

     अंकलहा किहिस - मंडल, तै गांधी बबा के चेला । काली हमन मिलके चेंदरी, पोलखा, लुगरा, अंगरखा, जऊ न मिल ग तेला फंंू क देन । गांधी बबा के हुकूम हावय । फेर कोनो बतइन नहीं के भभकत आगी म पानी डरइया गांधी बबा के यहा हुकूम काय ये भई । एक गाल ल कोनो मारही त दूसर ल दे दव, कहइया ह आगी काबर लगाय बर किथे ।

     बिसाहू मंडल अंकलहा के बात सुनके थपड़ीपीट के हांसिस । अंकलहा किहिस - मंडल का बात ये भई, कांही अनीत कर पारंेव का ?

     हांस पारेंव , अंकहला मंडल किहिस । बात अइसन ये के पहली तंय गांधी बबा के नाव नइ जानत रेहे । फेर ओकर जय बोलाय बर सीखेस, अब गांधी महातमा के सिद्धांत, बिचार, पुरूगिराम, सब ल जाने के उदिम करत हस । तोर अस बर कहे गेहे पहिली जोंधरी चोर फेर सेंधफोर । फेर सुने जाने बर चाही सब बात ल । गांधी बबा बतइस जी हमन ल । आज के बात नोहय । अब तो देस सुतंत्र होय चाहत हे । करो या मरो, ओकर आगू कंडेल नहर के कांड, सब कथा लम्बा हे । गांधी बबा के किसिम किसिम के हुकूम होइस ।

     छत्तीसगढ़ मा गांधी बबा  पहली अइस त कं डेल कांड म । धमतरी तीर हे गांव कंडेल । उहां पंडित सुन्दर लाल अउ ऊं कर संगवारी मन नहर


पानी बर अंडियागें। राख पत त रखा पत । किसान के लाल आँखी देख के देवता थर्रा जथे । अंगरेजन मूत मारिन । गांधी बबा के आय के पहली होगे राजीनामा । फेर गांधी बबा अऊ दीन आसीरबाद । हमर छत्तीसगढ़ म पंडित सुन्दर लाल ल घलो गांधी केहे जाथे । काबर? के वो हा गांधी जी के र ा म चले के रंग ढंग ल सिखाईस रे भई । सतनामी भाई मन ल जनेऊ  दीस । मंदिर म उनला परवेस करवइस ।

     अभी बात ह चलते रिहिस, ओती ले आगे जेठू अउ महराजी । दूनोंझन घनाराम मंडल ला पांय, पैलगी करिन अउ कलेचुप बइठगें ।

     अंकलहा किहिस - मंडल का बोलन । का बतावन एक मनखे तंुहला देखथन । एक बोलिया । सच के मनइया । सब झन के देखइया । एक झन बिसून दाऊ  हे । बिहनिया गांधी जी के जय बोलाथे, सांझ कन पुलुस सिपाही मन संग बइठके डल्ला उड़ाथे । अउ एक बात जरूरी हे मंडल ददा । तंुहर ले जादा बिसुन दाऊ  के कदर हे गांव म । किथे नहीं,

     सती बिचारी भूख मरे, लड़वा खाय छिनार

     धन्न रे दुनिया ।

     मंडल किहिस - का बात ये अंकलहा ? गजब जोर के धक्का खाय हस तईसे लागत हे ।

     खाय हंव मंडल । मै घासीदास बबा के जस गवइया            अंकलहा । पंथी दल बना पारेव मंडल । मंदरहा मिलगे, टूरा मन ल सिखोवत हंव । तंंुहला नाच के देखाहूंू । अभी जादा नई सीखे पायन । बिसनू दाऊ  के सौंजिया के मदहरा टूरा बुधारू हे । दाऊ भड़कावत हे वोला । काहत हे अंकलहा के चक्कर म झन पड़ रे बाबू । मादरे के पुरती हो जाबे । अंगरेज मन सब देखते हें । घासीदास के वचन ल झन गावव । अंगरेज धर लीही । तुमन गाहू ....

मनखे मनखे ल जान,

सगा भाई के समान ।

     त अंगरेज ह छोड़य नहीं । अरे मुरूख हो, गोरिया - करिया,


नीच - ऊं च, धनी गरीब सब भगवान बनाये हे । तेला तुम मेट दुहू । मनखे मनखे कइसे एक हो जाही । फेर गाथव तुम मंदिरवा म का करे जइबो, अपन घट ही के देव ल मनइबो । इही सब गाना ये । मंदिर म नई जाये सकेव त घर के देव ल मनाथव । सुन्दरलाल महराज ह दू चार झन सतनामी ल एक दिन मंदिर में खुसेर दिस त का होगे । बाम्हन चलाकी चल दिस । न एती के होयेव न ओती के । बाबू रे, पंथी गाना बंद करो । यहा तरा हमला डेरवावत हे मंडल  । अंकलहा के बात ल सुन के मंडल ल गजब रीस लागिस । मंडल किहिस - दू ठन डोंगा म पांव धरही, तौन बोहाबे करही अंकलहा । दाऊ  बिसनू के चाल हम जानत हन । तंय झन कर फिकीर । नाच अउ नचवा । गीत ल सब गा । अउ एक ठन गीत अऊ  गा ।

     का गीत मंडल ? अंकलहा पूछिस । मंडल किहिस - ये दे गीत ल जी ।

भैया पांचो पा५डव कहिए जिनको नाम सुनाऊं

लाखे वामन राव हमारे धर्मराज को है अवतार

भीमसेन अवतारी जानो, लक्ष्मीनारायन जिनका नाम

डागा सह देव नाम से जाहिर,

रऊ फ नकुल को है अवतार

ठाकुर अर्जुन के अवतारी योद्धा प्यारेलाल सरदार ।

     ये सब हम रइपुर जाथन आथन त सुनथन जी । छत्तीसगढ़ महतारी के पांडव ये येमन । गीत गावव । बाजा बजावव । बिसनू सही बेईमान मन के बात ल कान झन दव । समझाय बुझाय के बाद घनाराम मंडल अपने बेटा ल हुंत करइस । सोरा बछर के सामलाल आके खड़ा होगे । मंडल किहिस सामलाल अंकलहा कका, महराजी कका मन के पांव छू के आसिर बाद ले बाबू ।

     सामलाल दूनो झन के पांव परिस । अंकलहा किहिस - मंडल, हमर पांव परवाके तै अनीत करथस गा । हमला कोनो पांव नई परंय । जात-पात माड़े हे मंडल ।



     मंडल किहिस - अंकलहा, तंय मोर भाई आस के नहीं ? भाई आस त समेलाल के का, लाग होय ?

     कका तान भई अंकलहा किहिस

     त कका के पांव भतीज नई परही जी । अच्छा बताय तहूं ह ।

     अभी मंडल कुछू अउ कहे पातिस तैइसने चाहा आगे ।

     सबो मन चाहा भड़किन । कप सासर ल अभी भुइयां म मड़ाय नई पाय रिहिन तइसने पहुंचगे बिसनू दाऊ । घनाराम किहिस - ले, कथे नहीं, नाचत रिहिन जोगी तेमा कूद परिन सन्यासी । अरे भाई, बिसनू दाऊ  घलो आगे । लानव रे चाहा।

     बिसनू दाऊ  नता म मंडल ल मानय भांटो । किहिस - भांटो, बुढ़ा गेस फेर ठठाय बर नई छोड़े ।

     घनाराम भला कहां चुप रहइया ये, उहूं तगड़ा जवाब दिस - अइसे ये बाबू  रे, ठठाही किके तो बहिनी देहच । अब काबर                 करलाथे ।

     अपन अस मंुह लेके रहिगे बिसनू दाऊ  । सामलाल फे र चाह  लेके अइस। बिसनू दाऊ  किहिस - पांय लागी भांचा । कब हबरे ग ।

     सामलाल लजागे । चाहा देत खानी बिसनू दाऊ  के नजर परगे सामलाल के जेवनी हाथ म । चाहा पिये बर छोड़  दिस बिसनू । किहिस -भांचा, यहा का लोर उपटे हे हाथ म भाई, हाथ, करियागेहे ।

     सामलाल कुछू नई किहिस । घर भीतर चल दिस । मंडल किहिस तै तो आस कंस ममा । इहां दिन भर गांधी बबा के गुन गाथस अउ रात कुन डल्ला उड़ाथस। जिंकर संग डल्ला उड़ाथस बाबू रे उही सिपाही मन मारे हे सामलाल ल ।

     का किथस भांटो ? बिसकुटक झन सुनाय कर । फरी फरा बता । बिसनु किहिस ।

     सब्बो बइठया मन अकबकागंे । घनाराम मंडल तब बतइस - सामलाल के ममा रिथे दुरूग में । उहां वो गुरूजी हे । सामलाल ओकरे हाई स्कूल म पढ़ेबर दुरूग गे हे । नवमीं पढत हे ग । का करबे , हमर तीर


तखार म तो हाई स्कूल नइये । भेजेंव रे भाई । बड़े बेटा चुन्नीलाल ह तो चौथी पढ़के घर के खेतीबारी देखत हे । तिपोय बर बहू आगे । ये दे छोटू ल पढा परतेंव कहिके भेज देंव दुरूग । उहां लइका ह सुराजी मन के संगत म देस के काम करे धर लिस । पर्चा बांटय, पोस्ट आफिस के लाल डब्बा म तेजाब डारय । लइका दल के दू टूरा पकड़ा गे । सामलाल ल पकड़ के लेगिन अउ किहिन - हाथ ल खोल बेटा पा ईनाम गांधी के सिपाही बने  के । सुराजी बनत हे साला ह । लइका ल तीन बेंत के सजा दे गीस । पहली एक सिपाही हाथ ल कोहनी मेर ले धरिस, दूसर ह सिलकन के कपड़ा ल पानी म बोर के हाथ में मड़इस, तीसर ह, कांख के मारिस सट ले । मोर बेटा, फू ल के झेला एके बेंत म बिहूस होगे । अऊ  मारिन । सजा ताय । ओकरे सेती करिया गे बिसनू ।

     बतावत बतावत आंखी म आंसू आगे मंडल के । अंकलहा किहिस - फेर का करबे, हमी मन ग ार हन ?

     बिसनूदाऊ  ला लागिस जइसे अंकलहा हा ओकर मुंह म खखार के सब के आगू म थूक दिस ।

     घनाराम अंखियाइस अंकलहा ल ।

     अंकलहा चुप होगे । महराजी किहिस - मंडल, तोर बेटा ये । सुराजी तो बनवे करही । करेजा चाही सुराजी बने बर । घर म बला के हइतारा मन संग डल्ला उड़ाना सरल हे अउ बेंत खाके गांधी बबा के काम करना अऊ  जहल जाना गजब कठिन ।

     जेखर राहय लोहा के दांत, तऊ न खाय ससुरार के भात ...... फोकट नई केहे गेहे । तैं तो जस के तस हस मंडल, फेर सामलाल निकलही सुराजी । हमन तो मर-खप जाबो । सामलाल देखही देस के आजादी अउ चमक ल ।


            घनाराम मंडल महराजी के बात सुनके उठ बइठिस । किहिस - महराजी, राज करंते राजा नई रहि जाय, रूप करंते रानी । रहि जइहंय ग नाव निसानी । ले चलव भइया, हो । उठव रेंगव गजब दुरिहा जाना हे ।

घनाराम मंडल जब ले रइपुर ले आय हे छटपट छैंया करत हे । रात दिन लगे हे । गांव म सब कमजोरहा तांय । एक लांघन एक फरहार । दुवे चार घर के पोटहर हंे । तेमा सबले बड़े मालगुजार बिसनू दाऊ  । बिसनू दाऊ  के का पूछना हे । चारो मुड़ा ले धन आवत हे । सौ अक्कड़  के एके पलाट । सौ अक्कड़  धनहा हे पचास अक्कड़ भर्री । चना, गहूंू, राहेर, तिवरा, मसरी, बटुरा सब तो बिसनू दाऊ  के खार म होथे । फेर बिसनू दाऊ  हे छतरंग चाल वाला । बिहनियां किही जय राम जी अउ संझौती कही जरयराम जी ।

     घनाराम के भरोसा हे बिसाहू अंकलहा अऊ  महराजी उपर । बिसनु दाऊ  ह भलई करही तउनो म कुछु गड़बड़ी रथे । बिसाहू मंडल, महराजी, अंकलहा कुछु अनीत कर पारहीं उहू म गांव के भलई दिखथे । किथे नहीं ......

     ठुठवा मारै ठूस ले तब गदबद हांसी आवै

     राजा मारै फूल म तरतर रोवासी आवै ।

     तऊ न हाल हे गांव म । फेर का करबे मिल जुल के चलना हे । धन तो बिसनू दाऊ करा हे । गुन हे रोजी मजूरी करइया मन करा । चना हे तिहां दांत नहीं, दांत हे तिहां चना नहीं ।

     घनाराम मंडल रामलीला ल नवा परदा देवा के फेर खड़ा करना चाहिस । जगवारी के रिहिस बिचार । लीला के लीला अउ जन जागरन के जन-जागरन । पकड़ाय के डर नइये अउ काम घलो चल जाही ।

     बइठक रखे गीस । कोतवाल हांका पार दिस - लिल्ला चौरा म सब छोटे बडे नचइया, कुदईया, जोक्कड़ परी, राम-रावन के बनईया सकलावव, हो । यहा का हांका ये रे बिसून दाऊ  पूछिस उमेंदी कोतवाल ल । उमेंदी किहिस- दाऊ  घनाराम मंडल के हुकुम हे । आज सबला सकलाना है ।



     चंदा रात । जड़काला के दिन । घनाराम अऊ  बिसाहू बियारी करके निकलिन लीला चौंरा कोती । बिसाहू किहिस - मंडल, आज आप मन लिल्ला के तियारी करहू । चलव जोड़ा नरियर बड़े तरिया के बजरंग बली म चढ़ा अइन ।

     घनाराम जनम के पुजेरी । धरिस जोड़ा नरियर अउ चल दिस बड़े तरिया । नहर पार के जटाजूटधारी बर पेड़ ह चंदा रात में अइसे दिखत रहय जाना-माना गुरू बाबा घासीदास ह सतपुरूष के धियान म बइठे होय । न पत्ता डोलत राहय न पाना । चिरइ चिरगुन चुप । सब जाड़ के महिमा । गांव म तो सोआ परे अस धर लिस ।

     बिसाहू अऊ  घनाराम पहुचिन मंदिर तीर । बड़ेे तरिया के पानी में हाथ गोड़ धोइन । झलमल झलमल काजर अस पानी । फेंक दे भोड़ंकू पइसा माड़ी भर पानी म अऊ  उठा ले खब्ब ले । चंदा हमर गांव के बड़े तरिया म उतर गे तइसे दिखत हे मंडल, बिसाहू नजर भर पानी ल देख के किहिस ।

     मंडल जुवाब दिस - बिसाहू, चंदा उतरही हमर भारत भुइयां म जब सुराज आही, जब हम जागबो तब, ले चल फेर देवता ल पहली मना लन फेर करबो उदिम ।

     नरियर चढ़ा के दसों अंगरी के विनय करिस मंडल ह - हे बजरंगबली, जइसे तैं लंका ल जरो के राम काज संवारे, ओइसन येे हमर गांधी बबा ह विदेसी कपड़ा जरोवत हे । हमर आजादी के छितामाई ल अंगरेज रूपी रावन ह हर के ले गेहे महराज । किरपा करहूं । आहू लिल्ला चौरा कोती । तंहुला भार भरोसा लागय । तुंहरे परसादे हमू कुछू कर            लेबो । ये जुग के राम रावन जुद्ध चलत हे । अब हमू ल दव सहारा । हे बजरंग बली, बड़े-बड़े भगत ल देव गदा के सहारा, हमला तो अपन लंगूर के हवा म तार दव । हम छोटकुन मनखे जादा का मांगन ।

     बिसाहू सदा दिन के घनाराम के संगी । जान डारिस के लिल्ला म अब का नवा खेल होही । घनाराम गजब गुन्निक । जरूर जमाही कुछु नवा


हिसाब ।

     सब सकला गे राहंय ।

     गांव भर के नचैया कुदइय्या जुरियाय राहंय लिल्ला चौरा म । जय जोहार होइस । रघोत्तम महराज, बिसनू दाऊ  बीच म बोरा दसा के बइठे राहंय । उही बोरा के तीर म जाके बइठिन दुनो झन ।

     सब सकलागें त रिखीराम पुछिस, काबर बलाय हव ग । हमू मन जान पारतेन भई ।

     गांव के बइठका के सुरू मे अइसन परस्न पूछे के रेवाज हे । एक झन कोनों ल पूछे बर परथे । तब आथे जुवाब अउ सुरू हो जाथे मुहाचाही । मंडल खड़ा होइस । अउ पहिली जय बोलइस.......

     बोल रजारामचंद्र की जय

     लखन लाल की जय

     पवन सुत हनुमान की जय

     महात्मा गांधी की जय

     भारत माता की जय

     जय बोलाय के बाद मंडल किहिस - भाई हो, गजब बड़ कारज बर हम जुरियाय हन ग । धन्न हमर भाग के अइसन समे म जनमे हन । आजादी के चलत हे लड़ई । गांधी बबा के सियानी म । का बड़े का छोटे, सब अंगरेज मन ल भगवाय बर जुर-मिल के लगावत हें जोर ।  हमू कुछ उजोग करी ।

     बिसनू दाऊ  उठ खड़ा होइस । किहिस - आयं करत बांय झन होय जी मंडल । आंजत आंजत कानी हो जथे । लीला नाचा के सब कलाकार सकलाय हें, येमा गांधी महातमा के बाद कहां ले आगे । फरिया जरो देन, होगे, गांधी के कारज ।

     दाऊ  के बात ल सुनके अंकलहा खड़ा होगे । किहिस - बड़का बड़का मन के बात म नइ परतेंव भई, फेर हमू मन ल कुछ काहन देहू ते बात ल महूंू ढिल पारतेंव ।  धनाराम मंडल किहिस - तोरो बात


अंकलहा । कोनों मरय लाज के मारे कोनों कहे डेरात हे  । अरे बात ताय       जी । काहब म का कमी करना । जउन कहना हे कहो । खुल्ला अउ सप्फा-सफी ।

     अंकलहा किहिस - मंडल, हमू पढ़े हन तीसरी हिन्दी तक । जानत सुनत हन सब ल । अब हमरो देस अजाद होही । जादा दिन नई चलय खेल ह अंगरेज के । फेर एक बात हे । बिसनू दाऊ  ह अतेक डर्रात हे त काबर आय हे मोला ये पूछना हे....

     अंकलहा के बात सुनके बिसनू दाऊ  भड़क गे । ओला चुप कराय बर मंडल किहिस- देख दाऊ , भड़क के सड़क झन धर । काहन     दे । सदा दिन तुम केहेव अउ दूसर सूनिन अब समे बदलत हे । सुने के आदत डारव ।

     दाऊ  किहिस - हमर गांव लीमतुलसी काहत लागय । हमन अतियाचार नई करन । अंकलहा संग बइठ के केरा, संतरा खा देन । गांधी बबा के हुकुम मान के एक हो गेन । जात पात नई मानेन ।  छुवाछुत नई मानेन । त आज अंकलहा मूड़ म मूते चाहत हे । हमर बबा के जमाना म गली म इही मन अड़िया के रेंगे नई सकत रिहिन । आज पटन्तर देत हें । अरे सरई कतको खताही तभो एक पाचर के बांचही । हमला अतेक झन दबाव । आंखी देखाहू त ठीक नई होही ।

     अंकलहा बीच म उठ के केहे लागिस दाऊ  जादा गुन झन जना । तोर बबा मोर बबा छोड़ । बात तो मोर तोर चलत हे । तोर बबा दू डौकी राखे रिहिस ते मोरो बबा तीन झन गनिस ।

     मंडल उठ के किहिस - बबा पुरान छोड़व न जी । अपन कनिहा ल टमड़व । बबा के बात गय । तइहा के बात बइहा लेगे । अब बताव का करहू ।

     अंकलहा किहिस - का करबो मंडल, कोदो रोहर के का संग । बिसनू दाऊ  सब भुला जथे झट कुन । हमी मन बाढ़ी देवन कतको दाऊ  मन ल । किथे नहीं खाय गहूं के गादा बिसरगेे के दाई ददा । हमला सिखोवत 


हे । अभी दस बछर पहली हमरो चार नागर के रिहिस खेती । चकबंदी का होइस, सब बने खेत ल माल पटवारी संग मिल के दाऊ  मन पोगरा      लीन । माल पटवारी बइमान ह सब येती के ओती कर दीस । भल ल भल जानेन । आज पोठ किसान नंगरा होगे । दाऊ  मन हरिया गें । का तपनी नई तपे हें ।

     मंडल किहिस - देख अंकलहा, ये मौका ह नोहय वो बात ल केहे के ।

     किबो कइसे नही जी, अंकलहा तनियइस, हमर बबा पुरखा के गांव लीमतुलसी । गौंटी हमर रिहिस । दाऊ  के बबा चार अच्छर पढ़े रिहिस त अंगरेज मन सों मिलके सइता नास कर दिस । ये मन खुदे अंगरेज यें । हमला लील दीन ठाड़ । उल्टा बोहावत हे खरखरा ह । खाट मेहरिया भुंइ भतार । हमर पुरखा के गांव अउ हमी ल बात सुनावत हे । मंडल उठ के खड़ा होत रिहिस तइसने बिसाहू खखार के उठ गे - किहिस लड़ना हे त लड़व । हमला घर जान दव ।

     अंकलहा किहिस - बिसाहू भाई, तहूं अब हमर बात ल नई सुनत अस गा । बिसाहू किहिस - गुर खाय गंगू मार खाय टुकना । अरे भई , दाऊ  बर रिसा फेर हमला घाल झन । बिहनिया के मरे ल संझा तक कतेक रोबे अंकलहा । हमरो बाप मर गे । दाई ह टुकना म नून बेच के हमला पोसिस, सबो जानत हे । हमर करा रिहिस बीस अक्कड़  भुइयां । दाऊ  के बबा के राहय मालगुजारी । तीन बछर ले भरना झोंकत जाय परचा म भरय नहीं । आखरी में नागर धरके दतगे हमर खेत म । दाई -कछोरा भिर के खड़ा होगे । मंदिर मे लेगिस दाऊ  के बबा ल । तब बांचिस हमर खेत । तभो ले आधा ल चपक दिस दाऊ  ह । यहा तरा चले हे      गौंटी । त कतेक ल आजे गोठियाहू अंकलहा । हमन गरीब हन । जादा मजा म हन - गाय न घोरी सुख सोवय कोरी ।

     घनाराम मंडल मुच मुच हांसत राहय । बिसनु दाऊ के हालत खराब । अपन तीर म बइठे मेहत्तर तेली ल दाऊ  किहिस - आज काय


डिरामा होत हे सारे ह । तुक  तुक के मारत हें सब । मेहत्तर राहय दाऊ  के पक्का हितवा । किहिस - दाऊ  सब खेल घनाराम के ये । तंय देखत जा ।

     दाऊ  फुसुर -फुसुर किहिस - मेहत्तर घनाराम अउ बिसाहू दूनों एक्कें ये । गुह के भाई पाद ।

     बिसाहू के कान म परगे बात । ललकार दिस - देख दाऊ बात करव ते खुल्लम - खुल्ला । तोर बिसवास नई ये । गांधी बबा के कारज बर जुरियाय हन । तै घर के भेदी लंका छेदी कस झन करे कर । जोर से सब जय बोलइन । अब महराज किहिस - त ले मंडल सियानी गोठ ल       गोठिया ।

     किथे नहीं रात भर गाड़ा चलायेंव कुकदा के कुकदा । घंटा भर होगे बस तोरी-मोरी म । बंद करव जी सब । जहं राम रमायन तहं कुकुर कटायन । सुन्दर लीला प्रसंग म आय हव । चलव जय बोला दव - बोलो रजाराम चंद्र की जय ।

     मंडल उठिस । किहिस - देखव रे भाई, मैं रघोत्तम महराज के राहत ले का बोलंव । मोला महराज ह सियानी देथे । किथे नहीं गोंड़ गांव म गांड़ा सियान । तऊ ने  बात हे रे भई । मय जानव कुछु नहीं । अंकलहा अपन जगा म बइठे किहिस - घरे म नेवरा, घरे म बिलइया, मंडल तंय बात ल बता ग । समसिया बड़े ह, फेर डिमाग तोर ओकरोले हे बड़े ।

     घनाराम किहिस - भाई हो देखव गांधी बबा संग कई मेल के मनखे हें । घर-दुवार छोड़ के चल दिन देस बर उहू मन हें अऊ  खोर म पांव परथें घर म गरियाथें तउनो मन हें । सब ल लेके चलत हे बबाजी ह । तइसने हमर गांव लीमतुलसी म सबो मेल के मनखे हें । सबला लेके चलबो । सबके जरूरत हे । हमन जनम के सिधवा । लड़े मरे बर चाही करेजा । फांसी म झुलेबर चाही जबर छाती । कतको झुलगें के नहीं  चंद्रसेखर आजाद, सुभाषचंद्रबोस, भगत सिंह नाव सुनत हव । कोनो फौज बनावत हे । कोनो चलावत हे गोली, कोनो फोरिन बम । ये मन भारत माता के बहादुर बेटा  यें । इंकरे सांही बहादुर बेटा ये महात्मा



गांधी । गजब बड़ करेजा हे डोकरा के । हमन ओकर भगत तान । हमला लड़े बर नइ आवय । हम तो अइसे काम करी के जइसे भगवान राम के सेत बंध के कारज ल देख के चिटरा करिस । करिस अइसे के अपन पूछी ल पानी म बुड़ो लय अउ कुधरा म घो५डइया देके फेर समुन्दर म कुधरा ल छोड़य । भगवान ह किहिस धन्न हें रे चिटरा तोरो करतब ह । ओला हाथ में लेके मया करिस । आज ले चिटरा के पीठ म भगवान के अंगरी के निसान दिखथय ग । तइसने हमू मन लीमतुलसी गांव के सबो मनखे जुर मिल के गांधी बबा के कारज मा चिटरा सांही देबो सहजोग । अतके बात ल बताय बर इहां सकलाय हन । अंकलहा किहिस - बने बात ये  मंडल । फेर का करना हे तेला बता भई ।

     मंडल हा अंकलहा के बात ल सुनके किहिस - अंकलहा भाई, केहे गेहे पूस बरी, कीरा परी । एक तो पूस के महिना, ओमा होगे      अधरतिया । अब यहा आधा रात के कुछु संकलप नई लेना चाही । आधा रात के संकलप लेबो त हमर लीमतुलसी गांव बर सुरूज नरायन रिसा जाही । आज अतके बात । फेर सकलाबो तब बताबो । ले चलव फेर सब अपन अपन घर । उठत उठत अंकलहा थोरूक दाऊ ल सुनाती कहि दिस - तीन बेर आगे खबरिया बांड़ा ले । गौटिनिन के बुलौवा सुन के बिसनू दाऊ  छटपिट छटपिट करत बइठे रिहिस ।

     ओकर बात ल सुनके बिसाहू अपन घर डाहर जात खानी किहिस - दाऊ  असन बर के हे गेहे मरे बाघ के मेछा उखानय । घर म हथजोरी पंवपरी करथे । हमला देखाथे लाल आंखी । फेर सबके दिन बहुरथे । हमरो बहुरही ।

     बियारा म धान अइस तहां हरमुनिया, ढोलक, मंजीरा, खंझेरी सब आ जथे पैरावट धरे के परसार म । घनाराम मंडल के बड़का जनिक बियारा ओमा बने हे पेरा धरे बर बड़े परसार । बिसनू दाऊ  के बियारा म चलथे मछरी बोकरा के रंधई अउ मउहा के पास डरई । लीमतुलसी ले ढाप भर दुरिहा हे बिसनू दाऊ  के ममा गांव नंदौरी ह । उहां के बड़े गौटिया


के बेटी नंदोरहिन के बेटा ये बिसनू दाऊ  ह । दूनों गांव के मालिक । नंदोरहिन गौटनिन के भाई न बहिनी । अकलमंुडी ताय । कोनो कोनो झगरा रीस म नंदोरहिन ल अकलमुंडी कहिके नाव बढ़ाथे । फेर मउहारी के छ: कोरी मउहा के पेड़ हे । तेमा ले टपके फूल बोरा बोरा भरा के आथे लीमतुलसी गांव म । ममागांव के परसादे दाऊ  बिसनू ह साल भर माते  रिथे ।

     येती अंगरेज मन ल भगाय के जोम लगाथें गांधी बबा के चेला मन । दारू बंद करवाय बर दम लगाथें । तरा-तरा के पिचकाट करथें । धरना देथें । बिसनू दाऊ अपने खॉद मे अलफी डारे मेछा अंइठन पिकेटिंग म जाथे । दारू  दुकान बंद करवाय बर जवइया मन के आगू रथे बिसनू दाऊ  अउ गरज के किथे -

गांधी चलावय चरखी ल,

फोरव दारू के मरकी ल ।

रामराज ल लाना हे,

पीना हे न पिलाना हे

सुनव सुते उंघाय जन मन,

दारू सबले बड़े दुसमन ।

     यहा  तरा नारा गाथे दाऊ  बिसनू अउ संझौती बियारा म बइठके मेहत्तर के उतारे मउहा के रस म डुबकैया खेलथे ।

     संझौती बेरा अंकलहा ल घनाराम मंडल भेजिस बिसनू दाऊ  ल बलाय बर। अंकलहा पहंुचगे बियारा म उदुप ले । ओकर तरूवा सुखागे ऊंहा के सब गड़बड़ घोटाला ल देख के । दाऊ  बिसनू तखत म ग ा तकिया लगाय बइठे राहय । दाऊ  झुमरत झामत उठिस अंकलहा ल देख के । किहिस - किया बात हे जी सत के नामी। आओ बइठो सरकार । अब तो तुंहरे राज चलहीजी । गांधी बबा तो तंुहर सेवादार येे ।

     अंकलहा जुवाब नई दिस । लहुटे लागिस । दौड़ के बिसनू दाऊ  ओला छेंकिस । किहिस - अंकलहा तंय अऊ  हम एके किलास म पढ़ेेन


लिखेन । चौथी हिन्दी तक तो तहंंू  पढ़ेे हस अंकलहा । सतनामी अस तब ले मैं तोला भाई बरोबर मानथंव । मानना हे तेला सानना नई चाही । तैं कांही किथस फेर मोर कान म पोनी बोज लेथंव । भाई के बात म का रिसाना । फेर तंय झटकुन रिसा जथस । तांय-फांय झन करे कर । जादा गुन्निक मनखे ल नई मिलय सुख । बइठ अऊ सुख ले । पी दू गिलास असली रस ल ।

     अंकलहा किहिस - देख दाऊ , तंय खेलाड़ी अस । पढ़त रेहे तब के बदमास आस । टुरी टनकी मन संग लिटलिट-लिटलिट करे म तोला जादा मजा आवय, पढ़ई के नाम म तोला रोना आवय । तौन टुरा बिसनू हमर संगवारी अब होगे गांव के मालगुजार । तब भइया माफी दे सरकार । अउ अपन रद्दा म रेंगन दे । न कंड़रा घर जाना न कटारी के मार खाना । मंडल ह भेज देथे त आना परथे । नई त कालिया दाह म कोन ह कुदही जान बूझ के ।

     बिसनू दूनो हाथ म थपड़ी पीट के हांसिस अउ किहिस - वाह अंकलहा, वाह । हमर बियारा कालिया नांग । हम कालिया नाग । अउ घनाराम मंडल के बियारा गोकुल धाम । ओहा नंद बाबा ये । अउ तैं ओकर किसन कन्हैया । मुचमुच करत जुवाब दिस अंकलहा ह - दाऊ  किसन कन्हैया तो का होबोे भई । हां, घनाराम मंडल के चेला जरूर बने हन । अउ तहूंू  बन जा । सही चेला । पार लग जाबे बाबू । निते धारे धार बोहाबे । गियान के मारग म चले बर करेजा चाही । केहे हे संत मन - दे दे, देवा दे । अउ रद्दा बता दे । हम तो भई रद्दा भर बतावत हन, चलना तोला हे ।

     बिसनू किहिस, अंकलहा, मैं नई चल संकव मोर भाई । मोर हाथ ले गिलास नई छुटय बंधवा । मैं पापी तांव । संत मन कहे हे - ज्ञान पंथ किरपान कै धारा। सच केहे हें । कृपान के धार में घनाराम चल          सकथे । तैं रेंग सकथस । मोर सांही पापी ल माफी दव । काहत काहत उलंड गे बिसनू ।


     अंकलहा लहुट के आगे घनाराम के बियारा म । उहां गाना बजना सुरू होगे राहय, घनाराम मंडल फटकार के गावत राहय........

     अजामिल गिद्ध अऊ  गणिका,

     सभी को तुमने तारे हैं

     उसी में बिन्दु सा पापी

     मिला लोगे तो क्या होगा,

     दया करके मेरे भगवन्

     मेरी बिगड़ी बना लोगे तो क्या होगा ।

     अंकलहा गाना सुनके किहिस - बिगड़ी नई बनय मंडल । अजामिल, गिद्ध गणिका सब सुधरगे फिर बिसनू दाऊ  नई सुधरय । तुलसीदास महाराज के बात झूठ होय चाहत हे । सठ सुधरहिंं सत संगत पाई किथे फेर तोर संगत म रहिके नईच तो सुधरिस बिसनू हा । दस महीना ले लोहा के पोंगरी म डार के राख ले फेर कुकु र के पूछी रिही टेड़गा के टेड़गाच ।

     गाना बजना होगे बंद । अंकलहा के बात ल सुनके सब सन्न  परगें । घनाराम पूछिस - का होगे अंकलहा । कांही झगरा झंझट करिस का जी । एक सुर्री ताय बिसनु के सुभाव ह ।

     अकंलहा किहिस मंडल - ओरवांती के पानी बरेंडी नई चढ़य । बिसनू दाऊ  दिन भर तो हमर संग दारू बंदी के नारा लगइस अउ जा देख पी के ढलगे हे बियारा म । अतेक सिखोय पढ़ोय । तोपे ढांके नौ हाथ के लुगरा पहिराय तभो ले गोड़ उघरा । धन्न रे मनुख जात ।

     घनाराम किहिस - अंकलहा, होथे ग सब किसिम के चरित्तर रथे । रिसाय म नई बनय । सोचे बर परही । सिखोय बर परही ।

     का सिखोबे मंडल - खंझेरी ल मड़ा के महराजी किहिस - अपन जाय जजमानों ल ले जाय किथे तइसन ताय येे तमासा हा । छोड़व भाई बिसनू - पुरान ल । अउ सुरू करव सब बइठका के बात ल ।

     घनाराम किहिस - एक ले अक्काइस होथे । चार ठन बरतन रिथे


तिहां ठिक्की लागबे करथे । रिसावव झन । पहली बिसनू के नसा उतरन दव तब बइठका करबो बिहनिया ।

     अंकलहा किहिस - बिहनिया सकलाना ठीक हे । बिसनू दाऊ  के नसा उतर जाही ।

     रतीराम किहिस - दारू के नसा उतरथे त गांधी बबा के नसा चढ़थे । गांधी बबा के नसा उतरथे तहां फेर संझौती दारू के नसा सुरू हो जथे । धन्न हे रे दाऊ  मन के चरित्तर । करनी म सख नहीं थूके थूक म चुरोवत हे बरा ।

     घनाराम मंडल किहिस - कोनो ल कांही के नसा, कोनो ल कुछू के । बिसनू दाऊ  ल करन दव मद मउहा के नसा । हम करबो राम-चरचा ।

महराज अब कहिस ....

एक घड़ी या दो घड़ी पुनि आधो के आध,

तुलसी चर्चा राम के, कटै कोटि अपराध

सब झन थपड़ी पीटिन ।

     घनाराम मंडल किहिस -बात अइसन ये जी के अब गांधी बबा के सेना म तरा तरा के सिपाही जुरियावत हें । जेकर सो जऊ न बन             सकय ।

     घनाराम मंडल किहिस - मंडल, गोठ बात तो चलबे करथे । एकाद ठन गीद होय चाही भई । आप मन अउ तू मन तो सबो जगा जाथव, एकाध नवा गीत सुनावव फेर बात तो चलबे करही ।

     घनाराम महराजी ल तीर म बला के किहिस - महराजी, लान खंझेरी धर । अब मैं सुनावत हंव एक ठन गीत नवा । तेमा गांधी बबा के सेना के बात हे ....

चलो सबो झन मिल के रंहटा ल कातबो,

गांधी महातमा बनाई सेना ।

आती-जाती, दिन रात हम सूते ल कातबों,


भइया हो पनिका बुलाई सेना ।

नरजी म तौल के गये बेचारा हा

लुगड़ा के अच्छा बनाई सेना,

रौंद खौंद बच्छर दिन पहिने,

तभो ले अब्बड़ खटाई सेना ।

     गीत खतम होइस त घनाराम मंडल बताइस - देखव जी गांधी बबा गजब दुरिहा के बात सोचत हे । हमर ढाका म कइसे मलमल बनय के मुंदरी भीतरी ले लुगरा निकर जाय । फेर अंगरेजन अइन अउ हमर उजोग धंधा ल चौपट कर दिन । मिल लगा दिन सइतानास होगे । हमर रोजी रोजगार ल पहिली मेटिन तहां हम मेटा गेन । त गांधी बबा काहत हे चरखा कातव, मोटहा कपड़ा पहिरव । लुगरा कोसटउहां साल भर चलही रौंद - खौंद के पहिरव, चलही बच्छर भर । तियागन बिदेसी कपड़ा । बनव       देसी । देसी जिनिस, देसी दवा, देसी खान-पान, देसी बोली-बिचार तब होही देस सुतंत्र ।

     मंडल किहिस - अउ का जी, हमर देस म अइसन लड़ई हर जुग के राम लड़े हे । त्रेता के राम ह रावन संग लड़िस के नही ? अऊ कोन म ल संग लेके लड़िस । बंेदरा भलुवा मन ल लेके । बाली ल संगवारी बना लेतिस तक देखते देखत लंका समुन्दर में बुड़ जातिस । चाहतिस त भरत के सेना ह चतवार देतिस लंका ल । फेर नहीं हमरो गांधी लड़त हे ग अपन ढंग ले । सुभाष बाबू के अपन ढंग हे । उहू ह माता सेवा के गीत अपन तर्ज म गावत हे । फेर गांधी बबा रामराज के सपना देखत हे । धर्मनीति म चलके । सांति के मारग म रेंग के जीते चाहत हे जुद्ध । तभे तो हमर सांह ी बेंदरा भलुवा मन ल संग म लेके लड़त हे जी । गांधी ह कलजुग के राम     ये । जुद्ध राम अउ रावन के हे । जीतना राम ल हे फेर ....

     अतके केहे पाय रिहिस तइसने आगे आंखी रमजत बिसनू दाऊ  अइस अऊ  किहिस - देर हे अंधेर नई ये ।

     घनाराम मंडल किहिस ६


सूर कवन रावन सरिस, स्वकर काटि जेहि सीस,

हुने अनल अति हरष बहु, बार साखि गौरीस ।

     बिसनु दाऊ  किहिस - रावन काह चाहे विभीषण । भांटो के आंव मंय सारा । देले गारी फेर खिसिया झन ।

     उतरगे का गौटिया - अंकलहा पूछिस

     घनाराम अंखियाइस अंकलहा ल । अंकलहा चुप रहिगे ।

     तब घनाराम किहिस - ले रावन गौटिया आ गे । जनक, दसरथ, हनुमान, छीता माई, सुग्रीव अउ त अउ सुखेन बैद्य तक आगे । राम कहां हे ग ।

     तब खियाल अइस । राम तो बनथे सामलाल ह । ओेला बलाय नई पइन । आज पाठ बांटना हे ।

     अंकलहा दउड़िस घर डाहर । सामलाल अऊ  दानी ल बालय बर । दानी याने दानेस्वर । रघोत्तम महराज के बाबू । गोरिया दानी ह बनथे लछिमन अउ सामलाल बनथे राम ।

     रघोत्तम महराज के लीला मंडली दस बछर पहली बने हे लीमतुलसी म । लीमतुलसी लीला मंडली के गजब नाव हे । पहिली इही बिसनू बनय राम । फेर देखते देखत बाढ़ गे, मेछा आगे । अऊ  राम ह बने ल धरलिस रावन । फबहिस घलो बिसनू दाऊ  ल । मटुक खाप के जब गरजथे......  

कुंभ करन अस बंधु मम, सुत प्रसिद्ध सक्रारि,

मोर पराक्रम नहि सुनेहि, जितेंऊ  चराचर झारि ।

     तब अइसे लागथे जाना माना रावने ह उतरगे हे का । फेर रघोत्तम महराज गजब तपसिया करिस तब लइन म अइन लीमतुलसी के टुरामन । बनिहार भुतिहार तक ल महराज ह बना दिस कलाकार । निपट गंवार मन डैलाग सीख गें । चलत हे बियासी के नागर अऊ  सपरिहा संग अधुवा फटकारत हे दोहा ....

     तव प्रताव उर राखि प्रभु जइहंव नाथ तुरंत



कभू कभू तो गली खोर म रेंगते रंंेगते नंगरिहा मन फटकार दंय ...

ये बालक मंडली हमारी जी,

गूजरेगी रात सारी जी,

सुनो सब सज्जन सीला,

आज सभा के बीच में होही,

सीता हरन के लीला

     अइसन तरीका ले महराज के चेला मन सीखे रिहिन लीला ल । जउन सब अनभो आज रामकरज म कतेक काम आय चाहत हे ।

     रघोत्तम महराज किहिस - देखव जी, सब सुनव । हिम्मत बड़े चीज ये । हम कोन आन । तुंहर पंडित । तुम हमला पांव परथव त हम हो जथन आसीरबाद देके लइक । तुहीं हमला बड़े बनाय हव । मनखे मनखे सब बरोबर ये । फेर काम काज चलाय बर बड़े छोटे के मरजाद बनाय गे      हे । येमा घमंड के या फेर रिसाय के बात नोहय । हमला लाने रिहिन बिसनू दाऊ के बड़े बाप ह । भागवत पढ़े बर नई लाने रिहिन । लाने रिहिन बरन बइठे बर । इलाहाबाद ले आय रिहिस भागवत बचइया पि५डत बिसनू दाऊ  के बांड़ा म । तब गांव में टिकली चटकाय बर बाम्हन नई रिहिस । हमला लानिस हमर गांव के दाऊ  हा । किहिस - महाराज इलाहाबाद ले भागवत बचइया आथे । हमर छत्तीसगढ़ ल का होगे ? तुमन नोहव का बाम्हन      पूत । त तुम धियान लगा के सुनव अऊ  सीखव भागवत बांचना । बरन के बरन अउ टिरेनिंग के टिरेनिंग ।

     सब सीख गंेन । एक घांव सीखेन तहा ं चलिस दनादन । बड़े गौंटिया के सिखोय हम अउ हमर सिखोय हमर भतीजा राम सनेही । देखे नहीं कइसे फटकारथें भागवत गीता ।

     त हमर उपर कर्जा हे तंुहर । हमला रिथे खियाल । घर दुवार, दस अक्कड़ खेत, मंदिर म चढ़े हे तौन सब तो देव जी हमला । तभे तो खियाल रिथे तुंहर । बिसनू दाऊ  ल येकरे सेती हम जादा नई काहन भाई । जेकर खायेन तेकर ल गायेन घलो । बड़े दाऊ  के गजब नांव बढ़ायेन । हमू छूट


देन । फेर हां एक बात हे भाई । जान लव हम भृगु महराज के बंसज आन भई । मारबो लात त बिसनू दाऊ  के छाती म छप्पा परिच जाही । तुंहरे खाबो फेर तुंहर गलती तुंही ल बताबो । कहिके जोर से हांसिस महराज ह ।

     बिसनू उठिस अउ रघोत्तम महराज के पांव ल धर के किहिस - कका, माफी देबे । मंय सब समझत हंव ग । निसाचर हो गंेव । तुंहर कोरा ले झन उतारव ... काहत काहत बिसनू दाऊ  रोय लागिस ।

     तब तक अंकलहा आगे, दानी अऊ सामलाल ल लेके ।

     घनाराम मंडल किहिस - देखव जी, हम लीला के कुछू प्रसंग ल तियार करबो । खेलबो अउ जन जागरण करबो । अब येला झन पुछव के कइसे ? का ? वो सब ला मैं अउ रघोत्तम महराज सम्हालबो । तुम पाठ के करव चिंता ।

     अंकलहा किहिस - रावन ल बलदव । पहली राम बनय बिसनू दाऊ  त कतेक सिधवा राहय । जबले रावन बनिस तबले मंद मउहा के चक्कर मे पड़गे । मनराखन मरार बनय रावन के दरबारी । अतका सुनिस त मनराखन हा उठके बोले ल धरिस डायलाग ...

     लीख  जंुवा चिलवान के पड़े मसाला दूना ... ।

     अरे, राहव त जी - रघोत्तम महराज किहिस - लीख जंुवा चिलवान के रस पीके तो बिगड़ गेव । थोरूक दम धरव ।           

     रघोत्तम महराज किहिस - रावन के पाठ करके नई बिगड़े ये दाऊ  जी ह । बिगड़गे तब रावन के पाठ करिस ... । ओकर बात ल सुनके सब हांसिन । बिसनू दाऊ  के ठहाका सबले जबर रिहिस ।

     पाठ बंटागे ।

     जब सब के पाठ बंटागे तब रघोत्तम महराज किहिस - सब पाठ ल तुमन बाट लेव । मोर बर बचायेव ग ?

     सब सन्नागें महाराज के बात ल सुनके । महराजे ह फेर किहिस - बइहा हो व्यास गद्दी काखर ये ग । व्यास माने गुरू । मैं गुरू अॅव बाबू


हो । तुमन निसफिकिर राहव । गुरू तो होथे गुर अऊ चेला बन जाथे    सक्कर । गुरू राम कृष्ण परमहंस ले आगू निकर गे विवेकानंद । तइसने मोर ले आगू बाढ़व  तुम सब । सब सुखी राहव भइया हो आगू  बाढ़व । महराज के आसीरवाद चलते रिहिस । सब उठ उठ के परे लागिन पांव ।

     रघोत्तम महराज अपन अंगौछी के छोर म आंखी ल पोंछत पोंछत देत जाय आसिरबाद ...

     लीमतुलसी के जस ल बढ़ावव भइया हो । राम काज म हाथ बटावव । भर्राय गला ल सम्हारत महाराज किहिस - बोल रजारामचंद्र के जय, सब झन जय बोलइन । इही जयकार के संगे संग घनाराम तान के जय बोला दिस - बोलो महात्मा गांधी की जय ।

     रमायन मंडली लीमतुलती रामलीला मंडली दूनों के सूत्रधार गुरू अउ व्यास रघोत्तम महराज ह संस्कृत के पाठसाला अपन परछी म      चलावय । बड़े तरिया के मंदिर म पूजा के भार महाराज उप्पर । बड़े फजर उठके महराजी, अंकलहा, घनाराम अउ रघोत्तम महराज प्रभात फेरी निकालंय । गीत गांवय । अलख जगावंय ।

ईश्वर अल्ला तेरो नाम,

सबको सन्मति दे भगवान ।

     गावत गावत निकलंय अउ सुरू हो जाय भजन भाव । जऊ न ल जऊ न आवय ओही उही गीत ल विधुन होके गावय । संगवारी मन पद ल उठा लंय । येती तेती होय त रघोत्तम महाराज तो सम्हारे बर रहिबे करय । घनाराम मंडल के राहत ले बात बिगड़बे नई करय । एक पन्दरही होइस तहां बिसनू दाऊ संघर गे ।

     पहली दिन मेंछा अइंठत जब बिसनू दाऊ अइस खांद म अलफी डारे अंटियावत तब महाराजजी थोरूक जोरलगहा येदे दोहा ल सुना पारिस ...

एक कहत मोहि सकुच अति रहा बालि की कांख,

इन्ह मंह रावन तैं कवन, सत्य बदसि तजि माख ।


     रघोत्तम महराज अंखियइस महराजी ल । बिसनू दाऊ  किहिस - टिमाली लगावन दे महराज । अरे ये मन टिमाली नई लगाही त इंकर पेट के पानी नई पचय ।

     बिसनू के बात ल सुनके सब हॉसिन ।

     वो दिन के बाद परभात फेरी दल में बिसनू दाऊ  सामिल होगे । परभात फेरी दल के रामलाल किहिस - अइसे करतेन सब कहू ल जंचतिस त भई । रोज खोंची-खोंची मांगतेन घलाक । गावत जातेन अउ डलिया धरे रतेन जेला देके मन लागतिस तऊ न देतिन, नई देवइया झन देतिन ।

     बिसनू दाऊ  किहिस - त दे दे, गांधी बबा के नाम म दे दे कहिके हमला मांगे बर परही रामलाल ।

     रामलाल किहिस - दाऊ  तोला झटकुन रिस चढ़ जथे । अरे भाई हम मांगबो थोरे जी । परभात फेरी दल जब निकरथे तब भिनसरहा दाई मन घर बाहरत, लीपत, छरा देवत भेटाथें, के नहीं ? जान परही त खुदे दिहीं ।

     बिसनाथ किहिस - रामलाल, बरार के अउ मांग जांच के चांउर धान सकेल के का उदिम करबो भाई ।

     रामलाल बताइस, अइसन ये मोर भाई । देखव सितला माता के नानचुन खदर के कुरिया हे । कुरो काठा मिलत जाही तेमा हमू मिलाबो अऊ  गांव म सितला मंदिर बनवा लेबो । तुम देखत तो जाव जी । गांधी बबा के परताप ल । खाली देस ल आजाद कराय के बात नोहय । अपन तरक्की, अपन बढ़वार, अपन देसी चीज, अपन रखवारी, अपन देवी-देवता सबके बात होना चाही । इही संदेस देवत हे गांधी बबा हा । हम अपन गांव ल सुधारी, देस तो सुधरबे करही ।

     रघोत्तम महराज, घनाराम मंडल सब सहरइन रामलाल के बात ल अउ परभात फेरी दल ल उही दिन ले मिले ल धर लिस चाऊं र । कोनो एक पोहई कोनो एक कुरो, कोनो काठा भर दंय ।

     बिसनू दाऊ  लेगिस अपन बांड़ा म अउ कुबरी मउहा चाऊं र एक


खांड़ी मड़ा दिस रघोत्तम महराज के आगू म ।

     रामलाल अउ संगवारी मन जय बोला दीन - बोलो सितला माई के जय ।

     घनाराम मंडल किहिस - बोलो गांधी बबा की जय ।

     रघोत्तम महराज कहां चुकने वाला ये । उहू जय बोलइस - बोलो रामचंद्रजी की जय ।

     कोनो सोचे नई रिहिन के देखते देखत कइसे काठा कुरो सकेलत खांड़ी अउ गाड़ा भर अनाज सकला जाही । एक दिन बइठका सकेल के सब झिन अन्नपूर्णा भंडार समिति बनाइन । रघोत्तम महराज ल बनइन येकर अध्यक्ष । समिति म सब झन सियान मन रहिगें ।

     बिसनू दाऊ  ह अपन सतनामी पारा वाला परसार ल अन्नपूर्णा भंडार बर सदा सदा बर दे दिस । लिखा पढ़ी होगे । बिसनू दाऊ  के जय-जय कार करिन सब । अंकलहा बनिस सचिव । अन्नपूर्णा भंडार वाला बांड़ा ओकरे घर के पिछोत म राहय । संगे संग उहें कलाकार मन के बैठक होय लागिस । नाटक के तियारी चल परिस ।

     लिल्ला म दू तीन परसंग जादा जमाय गिस । एक तो रावण अंगद संवाद । दूसर छीतामाई के हरण । तीसर लंका दहन । रावन अंगद संवाद म तो देखनी हो जाय रघोत्तम महराज जहां दोहा उठातिस ...

     जथा मत्तगज जूथ महू पंचानन चलि जाई,

     राम प्रतापु सुमिरी मन, बैठ सभा सिरू नाई ।

     तहां अंगद के पाठ करइया सतरोहन दम्म ले परकट हो जाय अउ सुरू हो जाये फेर महराज के चौपाई ...

     ये हां..., कह दशकंठ कौन तैं बंदर रामा सियारामा,

     रामा मैं रघुवीर दूत दसकंदर रामा सियारामा,

     रामा ...

     चौपाई जहां बंद होइस के संवाद सुरू । रावण अउ अंगद के संवाद जब चलय त एक झन जोक्कर आ जय । जोक्कर काहय अरे अंगद


के पांव हे गांधी बबा कस पांव । तोर ददा नई उठा सकय ।                             रावण फेर संवाद फेंकय ... 

तुम्हरे कटकु माझ सुनु अंगद,

मोसन भिरहि कवन जोधाबद ।

     रावन के परस्न सुन के अंगद खिसिया जय, काहय - अरे पापी रावन, तोर संग लड़े बर हमी काफी हन । तभे जोकर आके कितिस- जादा झन तप, गांधी, नेहरू, सुभाष, एक से एक जोधा हें । एके झन के पुरती नई होबे ...

     अइसन तड़ीका के लइका खियाल नौटंकी जमावंय महराज हा । धीरे-धीरे नाटक के धूम मच गे । गांव-गांव खेले गीस । पाटन वाला उदेराम बरमा सुनिस त उहू अइस । देखिस नाटक ल, कठल गे । पांच रूपया ईनाम म दीस । कलाकार मन ल, अउ किहिस, बाबू रे, हमरो गांव म खेले बर आहू ग । पाल परदा मैं अउ बनवा के देहूं ।

     घनाराम मंडल जनम के लुकलुकहा । नाटक खेले के नेवता दीन झेंझरी पथरिया वाला मन । एक पन्दरही बांचे राहय तभे ले घनाराम रात दिन कलाकार मन ल लगिस सधोय । संझा लागय न बिहनिया, बस कोचकई चलव न रे, करव तियारी । अच्छा रेसल करव । जमना चाही पुरोगिराम । दसराहा के बिहान भर झेंझरी जाना रिहिस । लीमतुलसी मं घलो रावन मारना जरूरी राहय । दसराहा के दिन पुरोगिराम खतम          होइस । रावन मार के सब घर अइन अउ घनाराम मंडल लगिस तियारी करे बर ।

     अधरतिया गाड़ा फांद दिस । सब कलाकार दफड़ा दमऊ , मोंहरी, सिंगबाजा, हरमुनिया, ढोलक, मंजीरा, खंजेरी, पाल परदा, दरी जोर जंगार के निकलिन । मंुधरहा पहुचगंे - झेंझरी पथरिया । सिवनाथ नदी तीर के गांव । जाम के बगीचा म अटाटूट जाम फरे राहय । बारी मन म भाटा पताल के ठिकाना नई राहय । मरार मन के गांव । लीमतुलसी वाला मनराखन मरार के समधी गांव ।


     नदिया मं नहइन धोइन फेर पहंुचिन गांव म । उहां गांव वाला मन परघईन...

संत मिलन को जाइए,

तज माया अभिमान हो,

ज्यों ज्यों पग आगे बढ़े

कोटिन यज्ञ सामान हो । भजन बोलो ...

     तिरथाहा मन ल जइसे बिदा करे जाथे अउ गांव म परघाय जाथे, तइसन किसिम ले लीला म५डली के मानदान करिन । पानी पसिया पी के कलाकार मन बिसराम करिन । पटैल के बाड़ा म लीला म५डली के कलाकार मन जेवन बनइन । गांव वाला मन चांउर, दार, घीव, साग सब्जी सब दे दीन । रघोत्तम महराज किहिस - सब संग मोरो जेवन बनही जी । कलाकार-कलाकार एक बरोबर । गांधी महात्मा सब ल एक करे चाहत हे, त हम अलग अदरा रच के काबर जेवन बनाबो । उही आगी, उही पानी, उही चाऊ र दार । त - तितम्मा फोकट काबर लगाना । कलाकार मन तो महाराज के सुभाव ल जानय फेर झेंझरी पथरिया वाला मन बक्खागंे । गांव भर म सोर उड़गे । महराज हा अनजतिया के रांधे ल खाही धन्न रे लीला । महराज जब जेवन करे बर बइठिस त देखे बर गांव भरके अइन । सब संग बइठ के खाइस महराज ह। बांचे भात साग ल परसाद सांही गांव बाला मन बांट के खइन । एक झन सियान किहिस - इही महराज सांही देवता मन दुनिया ल रहे के लइक बनाये राखे हें । धन्न हे रघोत्तम महराज ।

     लिल्ला चलिस एक पन्दरही । गांव वाला मन आने न दंय । गाड़ी फांदे के जोम करंय त सुमेला ल लुका दंय । कलाकार सब कमिया      पहाटिया । गजब हाथ पांव जोरिन त एक पन्दरही राख के विदा करिन । आखरी दिन धान, चांउर, दार, काठा कुरो सब घर ले चढ़इन । रूपिया पैसा चढ़इन । पटेल ह चढ़ा दिस दू अक्कड़ खेत । महाराज अकबकागे । महराज किहिस - जमीन तोरे ये पटेल, हमला साल-साल सुरता भर कर लेबे । अउ गांधी महात्मा के बात ल सुन के नदिया तीर के गांव म अलख


जगाबे । हमला संकलप के चढ़ोतरी चाही । धन दोगानी के का करना हे । जब देस अजाद हो जाही त सब धन धान्य से भारत माता के पूतो मन अघा जांही । ये समे ह जागे के समे ये । बंगाल म सुभाष बाबू ललकारत हे, पंजाब म ललकार दिस भगत सिंह  ह । महाराष्ट्र म तिलक महराज गरजत हे । गुजरात के तो गांधी महात्मा खुदे ये अउ संग म हे बल्लभ भाई पटेल । त हमर ये छत्तीसगढ़  घलो कम नई ये । गांधी जी जेला गुरू कस मान दिस तउन सुन्दर लाल महराज, अउ संग म सबो सियान मन के चलत हे नाव । ये नाव के महिमा बढ़ाना हे । नहीं ते देस जब आजाद होही त हम का मुंह देखाबो । काकर बल म गरजबो । का कहिके गोहराबो । अभी दे के समे हे । जउन बोही तउन काटही आज नई बोहू त आजाद भारत म रहि जाहू हाथ रमजत । ये समे बार-बार नइ आवय ।

     रघोत्तम महराज के गोठ ल सुनके गांव भर के मनखे गदगद        होगे । सिवनाथ नदी के ओ पार जब गाड़ा चल दिस तब सब झन लहुटिन गांव कोती ।

     लीमतुलसी के लिल्ला म५डली का गिस, झेंझरी पथरिया गांव सुन्ना परगे।

झेंझरी पथरिया के चढ़ोत्तरी म मिलइस अपन कोती ले छ: कोरी रूपिया बिसनू हा । किहिस - लीमतुलसी नाचा दल बने चाही । नाच, नाटक, लीला सब हमर गांव म रिहि तभे हम नांव कमाबो ।  रघोत्तम महराज किहिस - ररूहा सपनावय दार भात तइसन हाल मोर हे । अरे बाबू हो, लोककला के बढ़वार होही त छत्तीसगढ़ के नांव होही जी । एक ले एक्कइस होथे । लीला ले नाटक, नाटक ले नाचा । हम तो किथन भरथरी, चंदैनी, बांसगीत सब ल साधव । बनावन दल जोरदार डंका बजे चाही लीमतुलसी के ।

     छत्तर बनिस नाचा दल के परमुख । नंदराम नाटक दल के मुखिया बनिस । अउ सब के सियान रघोत्तम महराज । बिसनू दाऊ  ल बनाय गीस छाहित करइया । माने के संरक्षक । रोज रेसल होय लागिस । इही बीच मं


गया मंडल के बड़े बाबू के बिहाव मांड़ गे । गया मंडल बलइस छत्तर, नंदराम ल किहिस - बाबू हो, तुमन राग-पाग ल जानथव जी । अइसे करतेव, रइपुर जाके जोड़दार गंड़वा बाजा लगातेव । समधी बने हे गाड़ा-मोर वाला मंडल ह । नाक ऊं च राखना हे ।

     छत्तर किहिस - मंडल गांव के जोगी जोगड़ा, आन गांव के       सिद्ध । अरे भई, हम जानथन बजगरी । मोहरी हम बजाथन, सींग बाजा हम घटकाथन, दफड़ा, दमऊ , टिमटिमी, का नई बजा सकी हम । हमर राहत ले रइपुर ले लानबो जी गड़वा बाजा । अइसे करो, रूपिया लागही बारा कोरी । हम लेबो । अउ ओकर लानबो समान । तोर बेटा के बिहाव म नाचबो । रात कन करबो नाचा अउ समान हमर दल के हो जाही । अंकलहा किहिस - बाह छत्तर भाई, चूक जतेन जी हम तो । डार के चूके बेंदरा अउ असाड़ के चूके किसान । मंडल ल तो लगाना हे बाजा ।

     मंडल किहिस - अइसे बात ये जी, तंुहला हम दे देबो पइसा । ले आनहू सब साज बाज । फेर भई समधी बने हे बेनूराम मंडल गाड़ामोर वाला । दधनिंग-दधनिंग चलना चाही ।

बाजा लगे कुबाजा भइया,

मोरे मन नई आये रे

अइसे पार बजा दे भइया

के बिहाव पार लग जाये रे ।

     दोहा पार दिस छत्तर हा । अउ होगे फैसला । झोकलीन बियाना । दूसर दिन जाके रइपुर के गोल बाजार ले बिसा लीन सब बाजा । संझौती बेरा जब बाजिस सींग बाजा, ते देखनी होगे ।

     दूसर दिन होइस चूलमाटी । गीत गवइया माइ लोगन मन संग छत्तर के दल म चलिन बाजदार मन । गीत होगे सुरू ।

तोला माटी कोड़े ल नई आवय मीर, धीरे धीरे

     धीरे धीरे तोर बहिनी के कनिहा ल तीर । धीरे...धीरे...

     टूरा मन भन्नाटी चलइन । मंडल हा एक टीपा माटी तेल मड़ा


दीस । लइका मन फरिया ल गुरमेट के बनाइन भन्नाटी । चलावत-चलावत गीन चुलमाटी ।

     तेलमाटी के दिन गजब गीत गइन... एक तेल चढ़गे ... ले जो सुरू करिन ते घंटा भर गीत चलिस ।

     छत्तर के बाजा दल के डंका बाज गे । मंडल ल सब संहरइन । छकड़ा गाडी म निकरिस बरात । ओती बरात निकरिस ये ती कपाट बंेस लग गे मंडल के घर म । माई लोगिन करे लगिन नकटी नाच ।

     बडे मंडलिन के ननद हा पागा बांध के बनगे बड़े मंडल । धर लिस कोकानी अउ पति पतनी के खेल जमाय लगिस । मंडलिन किहिस - तैं कइसे जाने अपन भइया के चाल ल रे बेसरम । मंडलिन के नंनद हांस के ओकर मरूआ ल धरिस अउ जुवाब दिस - बजेड़ंव का रे । गजब बुकबुकात हस । घुसंेड दुहूं गड़मस्ती ।

     सब गजब थपड़ी पीट के हाँसिन । घुसेड़ दुहूं गड़मस्ती मंडल के ठेही  राहय ।

     रात भर लीमतुलसी गांव के बड़े मंडल घर होइस हंसी ठट्ठा । येती मंडल के बरात म घुंघरू-घांघरा म सजे धजे बइला मन के गाड़ी-गाड़ा चल परिस गाडामोर बर । बराती बाजा दल गाड़ा म चलिस । खंघारपाट ले जो बाजदार मन बाजा घटकइन गाड़ामोर तक बिधुन होगे नाचत गावत गीन ।

     गाड़ामोर माई अखाड़ची गांव । परघवनी म अखाड़ा के खेल सुरू होगे । लीमतुलसी वाला मन कहां पीछू हटतिन । होय लागिस मुकाबला । मोगदर, फरी, पटा, चरखी चले लगिस । चलते चलावत लीमतुलसी वाला मन के लौठी लाग गे  गाड़ामोर के खेलाड़ी ल । अब दे दनादन । परे लगिस मार बराती घराती मन ल । मंडल किहिस- आंय करत बांय होगे रे । रोकव बुजरी मन ल ।

     बड़ मुस्किल म बेनूराम मंडल के हथजोरी पंवपरी करे म थमिस लड़ई ह । तब फेर समधी भंेट करिन । रात कन होइस नाचा । जब दुखितराम


ह गीत सुरू करिस...

     लहर लहर लहरावत होही गंगा मइया,                          लहर लहर लहरावत होही न । तब चिहुर उड़ गे ।

     एक झन गाड़ामोरिहा टुरा ह रूपिया देखा दीस । रूपिया के मोजरा पाके दुखित गइस -

ये गांव के रहइया नोहय,

संडी ओकर गांव ये गा

बला के मोला चांदी के रूपिया दीसे,

दुलेस ओकर नाव ये गा ।

     फेर का पूछना हे । मोजरा धरइया सब ठेस मा आगें । लीमतुलसी नाचा दल के नांव होगे ।

     तिसरइया दिन होइस बिदा ।

     मंुधरहा बिदा होइस । छत्तर के बाजा दल फेर होगे सुरू । गांव के गीतकाहरिन  बाई मन विदई के गीत गाय लागिन ।

     धरमिन दाई सौंपत हे मऊ र गीत सुरू होगे । गीत लाम होगे मऊ र सौंपे के बेर -

पहिरव काकी, पहिरब काकी,

तुम सोने कर लुगरा,

तुम सोने कर लुगरा,

सौंपव काकी तुम माथे के मऊ र

     जो गीत सुरू होइस ते घंटा भर चलिस । बिदा होत मंडल के टुरेलही बहू रोय लागिस । ओला रोवत देख के मंडल के बेटा पचकौड़ के आंसू गिरे लागिस ।

     मंडल किहिस- बाजा ल बंद कर दव जी । गजब बजायेव । अब चलव लीमतुलसी गजब धुरिहा हे । बेरा फुलफुलावत बरात पहुंचिस गोढ़ी गांव म । उहां मंडल ह बासी मांगे रिहिस ।

     बासी पेज खा के सब आमा पेड़ के छांव म सुस्ताय लगिन । बेरा


आछत फेर  गाड़ा गाड़ी फांदिन । संझौती अइन लीमतुलसी के भांठा म ।

     डोला परिछन के बाद फेर बाजा घटकिस त नचइया टूरा मन विधुन होगे। मंडल हा गांव भर ल झारा-झारा नेवता दिस ।

     घनाराम मंडल ह नेवताहर ल किहिस - थोरूक मंडल ल भेज देते जी । चिटिकुन गोठ करना रिहिस ।

     मंडल अइस । घनाराम मंडल किहिस - मंडल, अइसे करतेन । एक -एक झन खवा देतेन । बाचतीस तउन पइसा ल गांधी महात्मा ला भेज देतेन । हम देस के बेटा अन ग । अपन बेटा बर तोला कतेक मया लागत हे । ओइसने भारत माता ह हमला पोसिस, कोरा म खेलाइस । तब हम बाढ़ेन । भारत माता के जेठ बेटा ये महात्मा गांधी ह । रूपिया पइसा सब कांगरेस कमेटी म जमा होथे । भेजे जाथे ओला तब चलत हे जी लड़ाई के कारबार ।

     मंडल मानगे ।

     लीमतुलसी गांव म नवा रीत चलगे । विहाव म एक मांदी         खाना । एक मांदी के पांच कोरी रूपिया कांगरेस कमेटी म भेजना ।

     गजब नाव होगे लीमतुलसी गांव के ।                                              नंदराम के नाटक दल हा अपन डाहर ले मोरध्वज दानी के नाटक खेलिस। मंच म मंडल ल बला के पहिरइन हार । अउ रघोत्तम महराज किहिस - हमर छत्तीसगढ़ ह बबरूवाहन, मोरध्वज दानी के धरती ये । आज हमर मंडल दान करिस एक मांदी के पइसा ल । पेट भर खा के हम का पातेन । फेर एक-एक पइसा अमोल हे ।

     आज दानी मोरध्वज के नाटक होही । तभे सुधू कें वट कुद परिस मंच म अउ किहिस - सुनो सब सज्जन साटक आज, सभा के बीच म होही, मोरध्वज दानी के नाटक । लइका मन थपड़ी पीटिन ।

     घनाराम मंडल के बेटा समेलाल बने राहय ताम्रध्वज । दोहा उठाइस...मत मात पिता रोे रो दृगनीर बहाओकैसे आया मम काल, हाल बतलाओ,


     माता बने रहय महराजी ह । रो रो के किहिस - बेटा, तोर मूड़ मा आरी चलाबो ग । आज परीच्छा हे । सरत हे आरी चलय फेर कखरो आंखी ले आंसू झन गिरय ।

     कृष्ण अउ अर्जुन बने रहंय सुरीतदास अऊ  बिसनू गौंटिया । गजब जमिस नाटक ह ।

     रघोत्तम महराज नाटक खतम होय के बाद किहिस - हमर छत्तीसगढ़ सदा के दानी । हम दे बर जानथन । ठग्गू मन ल घलो देथन ।

     धनी धरमदास, गुरू बाबा घासीदास के छत्तीसगढ़  । दानी छत्तीसगढ़ । रघोत्तम महराज के बात अभी पूरे नई रिहिस तइसनहे घनाराम मंडल लगा दिस नारा ।

जय छत्तीसगढ़, जय जय छत्तीसगढ़

     प्रभात फेरी दल के सलाना बइठका लकठियागे । रघोत्तम महराज गांव भर के सबो जात के मनखे मन ला बलवइस । किहिस- देखो जी, हम सब एक संग बइठके मंडल बगैचा म भोजन पावो । बड़े तरिया के पार म बनही भोजन अउ मंडल बगइचा म सब झन बइठ के भोजन पाबो ।

     कब महराज ? अंकलहा पूछिस ।  सरस पुन्नी के रात के जी । उहें खेल हो ही नवा । नवा ? बिसाहू सन्नागे !

     हव नवा - महराज किहिस - देखव जी, गांधी जी १९”“ में हरिजन उद्धार के पुरोगिराम म रइपुर जिला म अइस । सप्रे हाई स्कूल म किहिस - छुआछूत जीयत रही त हिन्दू धरम सिरा जाही ।

     हिन्दू धरम ल जिन्दा राखना हे त छूवाछूत मेटे बर परही ।

     बिसनू किहिस - मेटावत तो हे महराज, तहूं ह आैंहा - घौंहा चलाथस । अरे मेल होही धीरे-धीरे अंकलहा अउ हमर बीच का भेद हे तेमा ।

     महराज किहिस - एक बात बता गौटिया । तोर नाऊ  ह अंकलहा के डाढ़ी बनाथे ? तोर उजीर ह अंकलहा के ओढ़ना चुरोथे बता ?


     बिसनू किहिस - सनातन नियम हे महराज । पुरखा चला दीन । हम का करी । अरे आगू जमाना म हरिजन मोहल्ला म जांय त आके नहावंय । अब देखव तो कइसे जांघ जोर के बइठथे अंकलहा हा । मंूड़ म तो मुतवावत हन । अउ का करना चाहत हस महराज ।

     अंकलहा हाथ जोड़ के खड़ा होगे । किहिस - महराज, हम तंुहला बाप बरोबर मानथन । गजब किरपा हे गुरू । फेर ये बिसनू के गौंटी अउ घमंड सहे नई जाय । हम गरीब अन तभो गांधी महात्मा के रद्दा म रेंग के ढाप भर बता देंन । येहा परछी ले नई उतरत हे । तभो ले जब पाथे तब अलकरहा गोठियाथे ।

     बिसाहू किहिस - अंकलहा, बेंदरा जब गिरही डारा धर के । गौंटी करे हे । अटियाही मरत ले और मरत-मरत घलो अटियाही ।

     बिसनू दाऊ  रखमखागे - किहिस - अंटियातेंव ते तुंहर संग बजनी बाजतेंव । मुंधरहा उठ के भीख नई मांगतेंव । बात ल सुनना नहीं अउ अरथ के अनरथ करना हे ।

     रघोत्तम महराज किहिस - देखो जी, तंुही मन हाना किथव - गांव बिगाड़े बम्हना अऊ  खेत बिगाड़े सोमना । त हम बाम्हन होके गांव बनाये चाहत हन अउ तुम बिगाड़े चाहत हव । परभात फेरी दल के नाव झन मेंटव ।

     अंकलहा  किहिस - देख महराज, जब बांध लीस झोरी त का बाम्हन का कोरी । जब गांधी बबा के दल म हम आ गेंन त जात-पात लंद फंद के बात करना पाप हे । फेर हम किबो त तुम बड़का मन किहू गांव के कुकुर गांव डाहर भूंकथे । गजब दया करत हौ । हमला संग म बइठार के भोजन कर लिहू त बड़ा हमर पेट भर जाही । अरे जात तो दुये ठन हे, बड़े अऊ  छोटे । गरीब अउ पोटहर । बिसनू दाऊ के कोन नाता रिस्ता ममा फूफा गरीब हे । गरीब ह गरीब के सगा । बड़हर ह बड़हर के । फोक्कट के रार झन मचावव निपोर चांट के रेंग  दुहू ।

     रघोत्तम महराज उठगे । किहिस - अंकलहा तोर मंुह फरकत नई


रिहिस । जतर-कतर मंय बोलत हस । मंय भइया हो, गजब बड़ गलती कर पारेंव । मोर ददा हो, रघोत्तम महराज भर आंव । गांधी महत्मा नोहंव ग । नई सम्हाले संकव तुंहला । तंुहर  लात गुरदा खात-खात अधमरा होगेंव । सुन्दरलाल महराज बड़े बिदवान ये । लेगिस सतनामी मन ल मंदिर म । उन ल जनेव दे दीस । ऊं कर सांही मनखे जेला गांधी महत्मा गुरू कहि दिस । तेला तो हमर छत्तीसगढिहा ऊं चहा समाज ह गारी देथे । हांसथे । किथे वो हा, बाम्हन नोहय सतनामी बाम्हन ये कथें गा । त मैं का अंव रे भाई । का अंधरी के जागे, का भइरी के सूते । बड़े-बड़े ल तो सब गारी देथे त मैं कोन खेत के मुरई अंव । मोला छुट्टी दव । तुम सब अनंद करव । कुर्मी अउ कुरमिया जव, तेली अउ तेलिया जव राऊ त अउ लउठी म घीव लगावव केंवटा ढिमरा मन अपने बर बना लव फांदा अउ सतनामी मन....

     आगू कुछू अउ महराज लमातिस तइसने बिसाहू मंडल दोहा पार दिस - गांधी बबा के छेरी भइया, मेरेर मेरेर नरियाय रे,                    ओला पीके बड़े महराज ह, सब बर गजब खिसियाय रे ।

     दोहा ल सुन के सब कठल गंे । रघोत्तम महराज किहिस - बिसाहू, हे बेलबेलहा, मैं जानत रहेंव तैं मोर चितभंग करबे । मोला घलो रिस लागथे जी बिसाहू । तंुहर टंटा ल धरव । मैं अब चलेंव ।

     महराज ल उठ के जात देखिस त सब होगें सुकुड़ दुम्म । घनाराम मंडल अब उठिस अउ जाके डंडा-सरन गिरगे महराज के गोड़ म । महराज अकबकागे । ओला उठा के किहिस - का मंडल, पाप लगावत हस । तोर सांही सच्चा मनखे पांव म गिरय अउ उहू दूसर कारन ।

     अतका सुनना रिहिस के अंकलहा, बिसाहू, बिसनू दाऊ  सबो भर भरा के उठिन अऊ  महराज के पांव परे लागिन । बिसनू किहिस - महराज, तुहीं मन तो सिखोथव...                                                                      जो लरिका कछु अचिगरी करही,

गुरू पितु मातु मोद मन भरही ।

     तुम गुरू अव अउ पिता घलो अव हमर । त हमर गलती छिमा


कोन करही महराज ।

     अब महराज हार गे । बिसाहू जानत रिहिस के महराज सब सहि जाही फेर ये बात ल नई सम्हारे सकय । महराज सिरतोन मं रो डारिस । आंसू थमिस त किहिस- का जी, तंुहरे बसाय राखे हम मनखे, तंुही हमला देवता बनायेव । तुंही हंसाथव, तुंही रोवाथव । ये बात अच्छा नोहय भई ।

     घनाराम किहिस - तोला थपड़ियाय बर परही बिसनू तइसे     लागथे । महराज ल तंय दोहा सुनाबे । गुरू गुर रहिगे चेला सक्कर ।

     बाते बात म फेर बइठका मांड़ गे । गोठ बात सुरू होय के पहली रघोत्तम महराज किहिस - देखो जी, चेला बनव सक्कर । हमला खुसी  हे । द्रोणाचार्य ले बड़े धनुरधारी बनगे अर्जुन, रामकृष्ण ले जादा नाव हे विवेकानंद के । खुसी के बात ये । गोखले जी ले जादा नाव होवत हे गांधी बबा के । तिलक जी के नाव के कम नइये सुभाष बाबू के नाव । फेर बात अइसे ये के जुवाब ल सुनेबर परही ।

बिसनू दाऊ  किहिस -                                                     

जो लरिका कछु अचगरि करही,

गुरू पितु मात मोद मन भरही ।

     बने किहिस मोला मोर करतब, धरम ल बतइस । मैं छिमा        करेंव । फेर एक बात हे रे भाई । एक ठन दोहा महूंू ढिलहूं, तंुहर अस लइका मन बर ... । परनाम बान के जुवाब आसीरबाद मान तुंहला झोके बर परही । 

रे खल द५ड करंव नही तोरा

होहि भ्रष्ट श्रुत मारग मोरा ।

     कहिके जो ठठा के हांसिस रघोत्तम महराज के बइठका भर के मनखे कठल गें ।

     बिसनू उठिस अउ किहिस - खल तो मही आंव महराज । दव भई द५ड । मंूड़ मोर पनही आप मन के ।


     महराज किहिस - देख बिसनू गौंटिया,ये रमायन के पुन परताप  ये । रमायन मडली खोलेन त चौपाई दोहा म जवाब लेत हन देत हन । धन्न हे हमर बबा तुलसीदास । जइसे गांधी बबा लेत हे लोहा अंगरेजन से तइसने तुलसी बबा डट के मुकाबला करिन । भेट्ठा मन ल पाठ पढ़ा     दिन । धरम बांचे हे अइसने संत मन के तपसिया ले। देस बांचे हे इंकर आसिरवाद ले ।

     फेर बाबू रे, जो खल द५ड करंव नहि तोरा, होंहि भ्रष्ट श्रुत मारग मोरा । त तंय कांगरेस के सिपाही होके तीन तेरा करथस तेकर सेती तोला द५ड परही । बता मानबे के नई मानबे । बिसनू किहिस - मानहूं देवता, मानहूं ।

     महराज किहिस - दाऊ  जात पात के बात करे तेकर सेती जउन हम भोज राखत हन तेकर बर एक बोरा दुबराज चांऊ र के दंड तोर बर हम भाख देन ।

     बिसून किहिस - महराज, एक बोरा दुबराज अउ पांच काठा राहेर के दार मोर कोती ले अउ । दाढ़ी वाला बोकरा गय, त एक मूठा नूनो जाय ।

     ओकर बात सुनके सब हांसिन । हांसी थमिस त महराज किहिस - बाढ़ जजमान, गांधी बबा तोर करय उद्धार ।

     अब खड़ा होगे अंकलहा किहिस - महराज, पाप तो महंू कर पारेंव । तंुहर आगू अटियायेंव, रोसियायेंव । एक गाल ल मारथे तेला दे दव दूसर गाल ल, ये पाठ के मरम ल नई जानेंव । डांड़ तो महूं देहूं           महराज । फेर एक बात हे महराज, ये बिसनू कुरमट ह दाबे म रस देथे, मैं सतनामी अंव महराज, अपन होके दुहूं । कहावत सच हे महराज ...

तेली कुर्मी बनिया अऊ  नीबू कुसियार,

दाबे म रस देत हैं, ये पांचों हुंसियार ।

     रघोत्तम महराज किहिस - देख अंकलहा, तंय बिसनू के दोस, वो ह तोर संगवारी । तुम अकेल्ला म भइया कांही केहे करव । गुंंड़ी बइठका


म झन टिमाली लगाय करव जी ।

     अंकलहा किहिस - महराज हाना फोकट नई बने ये । हमर गांव म नाहर आज देखते हव । बबा के जमाना राहय । बिसनू के बबा नाहर ल अपने चक डाहर लेगे चाहत रिहिस । जब उमड़िस सतनामी पारा तब हमरो डाहर कुलापा बनिस । कुर्मी मन ल संग दंय तेली मन । त इही कहावत बनिस महराज के कुरमी तेली बनिया, लींबू अउ कुसियार, दाबे म रस देत हैं ये पांचों हुंसियार । रघोत्तम महराज किहिस - बाबू रे, बने बिसे उठा लेस । आज मंय इही बिसे उपर कुछू बात केहे चाहत रहेंव । तुमन चोर ले मोटरा उतियायिल कस करथव ग । जात-पांत ऊं च-नीच के भेद ल मेटाना हे तभे हमर कैलान होही । सरस पुन्नी के दिन के जोखा होगे । बिसनू दाऊ  के चांऊ र दार अंकलहा के लकड़ी अउ बडे कुआं के पानी सब तो जमगे। भगवान सब जोखा मड़ा देथे ग । हम खोंची कुरो मांगबो सोचेन । त यहां जोरदार जमगे कहे गे हे ...    

धन हे राम धन धन हे राम, तंय गरीब के साथी,

जऊ न ल पनही नई मिलय, तेला चढ़ाथस हाथी ।

     बिसाहू किहिस - महराज खाबो मिलजूर के त खाली खवई के काम हे के कुछु अउ बूता हे ग ?

     महराज किहिस - देखो जी, कुछ राम चर्चा करबोन । अउ फेर नाटक होही डॉ. खूबचंद बघेल के ऊं च-नीच माने के डबरा डिपरा सब करो बरोबर । बडे छोटे चलव मिलके । जात पात छोड़व । मिलव-संघरव । डॉ. साहेब खुदे नई आवंय । ऊं कर नाटक ल हम करबो । मैं सिखोहूं पाठ दुहंू ।

     ऊं च-नीच नाटक के होय लगिस तियारी । पथरी जाके महराज नाटक के सब बात ल समझिस । डाक्टर साहब तो दूसर बूता म बिपटाय राहय । गजब संहरइस अउ किहिस - महूं आतेंव ग । फेर का करबे, हरिजन सेवा समिति के काम म लगे  हंव ।

महराज लीमतुलसी आके पाठ बांट दिस ।


लल्लू बनिस        -           रमेसर                                                               स्वामी जी          -           खुद महराज बनिस                                  ज्ञानप्रकाश         -           घनाराम मंडल के बेटा रामलाल ल बनइन              कुबरी बनिस       -           परसराम ढीमर ह                                                 लक्ष्मी बनिस      -           महराजी पटैल                                                    हरिदास                         -           भंगीराम                                                                        शांता                 -           रेसमलाल                                                          समेदास                         -           बिसाहू                                                               पोंगवा               -           अंकलहा                                                            सरला                -           दुखित                                                               चपरासी                        -           मनराखन कुर्मी

     ये तरा ले सब पाठ बटागे । रेसल होय लगिस । ये नाटक के बिसे अच्छा जमीस । रमायन मोरध्वज नाटक तो चलबे करथे । नवां नाटक येहर ये ऊं च-नीच।  सबला गजब उछाव  देख के बिसाहू अउ अंकलहा सुकुड़दुम्म । महराज करा गिन। किहिन - महराज येमा फेर जात-पांत के बात आवत हे । चालीस बछर पहली हमर गांव लीमतुलसी म जाते पात के सेती तो अगड़ाही लाग गे रिहिस ।

     महराज किहिस - मैं तो नेवरिया अंव जी । थोरूक फरी फरा बताहूं तव गम पाहंू । ऊं च नीच नाटक म बताय गे हे के ...

मनखे मनखे ल जान,

सगा भाई के समान

     इही संदेस हे गुरू गोंसाई बाबा घासीदास के । इही संदेस हमर डाक्टर खूबचंद के । ऐमा का डर हे ।

     बिसाहू किहिस - डर हे महराज । घाव ल कोचके म जउन पीरा होथे तउन पीरा बिसनू दाऊ  ल हो जाही । ऊं च-नीच म घलो भागा उड़ी के बात हे । बिसनू दाऊ  के फूफू राहय ग । धार मुंह के फकफक ले गोरी । दुहरी देह के । खंघारपाट गे रिहिस हे । घर वाला दाऊ  हा राहय पातर दुबर ।


सरोतिल । कोदो  सांवर । मन नई माड़िस । साल भर नई बिताइस मोंगरा बाई हा । आगे लीमतुलसी । तीजा म अइस ते गेबे नई करिस । तीन महिना होय रिहिस आय ।

     सतनामी पारा म राहय बिसनू दाऊ  के परसार । ओकर बबा ह गौंटी करय । जगा सकेलय । सकेलते सकेलत बारी बखरी सकेल लीस । अतेक सकेलिस के ओकर टूरी सकलागे । टूरी हा भाजी टोरेबर सतनामी बखरी जाय अउ जात पात के बंधना टोरके, पइठू खुसरे के उजोग           करय । जहां सांप के मांड़ा तिहां बाबू के झुलेना । बखरी सतनामी पारा मा राहय । होगे कयलान । अंकलहा के बड़ा बर खुसरगे । तब झकना के उठिन कुरमी पारा के मन । मन मतंग मानय नहीं, जब लगि धक्का न  खाय ।

     टूरी कुरमी, टूरा सतनामी । चिहुर उड़गे । गांव भर सकलइन । जे ठन मुंह ते ठन बात । कोनो काहय बखरी मा टोरत रिहिस भांजी मोटियारी मोंगरा हा अउ टप्प के उठालिस सतनामी हा । कोनों काहय, गजब रोकिस सतनामी पारा के मन फेर मोंगरा साफ कहि दीस, खुसरहूं पैठू मरद जान के । जवानी ल जात बर नई बनाय  ये । जांगर म जोर नई रिहिस खंगारपाट वाला के त काबर बिहाव करिस होही । मय पा लेंव अपन लइक मरद ।

     सुनब म छाती फाटे अस लागय । कुर्मी तेली राउत मन के । हिन्दू पारा के टुरी ल सतनामी खुसेरय रे । बगिया गॅय कुरमी मन । एक झन राहय बइहा । परभू नाव राहय ते हा कहि दीस

     दूसर-दूसर के घर अउ पारा म, तंुहर पुरखा मन करिन तउन हा गय । दिन ताय । अब सतनामी के पारी हे ।

     मजा करे के ठेका तुम ले ले रेहेव । अब कइसे लागिस जब घरबुड़ी होगे । ओला गजब ठठइन । मार तक डारतिन । बइहा जान के छोड़ दिन । फेर चैन कहां ?

     कोनो ककरो ले कम न रहय । जन  म धन म न बल म । डरो लागय । लाठी चलाय म सतनामी बाजे राहंय मुड़चटकावंय । अंकलहा


के बड़ा सुरित सतनामी के घर आगी लगाना हे । भंुज देना हे, साले ल । हमर बेटी बहू धरय रे । कुरमी सब किहिन ।

     मोर बाप राहय सदा के सतनामी मन के दोस । उठके किहिस- मोंगरा बाई ल बलावव । अपन मन के खुसरे होही तब तो हमर हाथ चपका गे अउ कहूं तीर के लेगे होही सुरित ह त आगी लगाबो ।

     गौंटिया पारा के सबों झन रखमखागंे । किहिन - मंडल, तोर हमर जात एक । तंय सतनामी के सरौटा झन तीर ।

     मोर बाप किहिस - डौकी ह अपन मरजी से कहूं  खुसर जाय बाबू रे त पुलुस घलो कुछू नई करे सके । परेम म आगी काबर लगाबो जी । मंडल न गौंटिया, सतनामी न कुरमी, दुवे ठन तो जात हे डौका अउ        डौकी । दुनो राजी, त तुम का करहूं ।

     अतका कहना रिहिस  मोर बाप के त गौंटिया पारा के सब उठ गें लौठी ले के । किहिन - या तो चल ओकर घर हमर संग आगी लगाय बर नइ तो गांव छोड़के जाय बर परही ।

     मोर बाप किहिस - गांव छोड़ दुहंू, परेम म आगी नई लगावंव ।                 तऊ न दिन ले जउन मोर बाप छोड़िस लीमतुलसी, त सीधा गीस गुंड़रदई के राजा घर । लाम-लाहकर राहय । उहां काम मिलगे । उहें रिहिस अउ उहें मरिस । हमर दाई ह हमला इहां कुटिया पिसिया करके पोस लीस महराज । तौन ऊं च-नीच के कथा फेर होही त बिसनू गौटिया तरमरा जाही ग । बिसाहू के मुह ले सब बात ला सुनके महराज  किहिस - घोड़वा के राग बेंदरूआ मेर जाय चाहत हे बिसाहू ।

     बिसाहू किहिस - महराज, अउ बने सोच ले । बिसनू दाऊ  ल घलो पाठ देहव । ओकर बर तो दुब्बर बर दू असाढ़ हो जाही ।

     महराज किहिस - बिसाहू दुब्बर बर दू असाढ़ नोहय । येहर आय जेखर देखे छाती फाटय, तेकर जाय बरात ।

     बिसाहू हांस पारिस । अंकलहा किहिस - बात हांसी के नोहय जी । महराज सो हम दसों अंगरी के बिनती करत हन । अउ पढव ऊं च-


नीच ल । अउ सोच समझ के फेर निरने लेव ।

     बिसाहू किहिस - महराज, बने काहत हे अंकलहा हा ।                    महराज पूछिस - बिसाहू, बिसनू दाऊ  ल पूछ लेते त नई        बनतिस ।

     बिसाहू हाथ जोरके किहिस - महराज, जेकर बेंदरा तेकरे सो नाचय । मोला छिमा करव देवता । मोर बाप ह  बरजे रिहिस । मैं जाहूं  त नई जमें ... अलकर के घाव, अऊ कुरा ससुर बइद कस दसा हो जाही । तंुहर चेला - तुंही सम्हारव गुरू ।

     महराज किहिस - अब ये कथा के आखिरी ल बता त फेर कुछू सोचहूं बिसाहू ।

     बिसाहू किहिस - महराज, का होना है । अंकलहा के बाप मांेगरा ल लेके रातों रात निकल गे अपन ममा गांव । फेर नई अइस             लीमतुलसी । सत्तर अक्कड़  जमीन  ल बिगाड़  दिस । आन गांव म मर खप गे । अंकलहा के बड़ा ल मार डरिन ग । मरत ले ठठाइन मर गे बिचारा ह । घर बियारा मे आगी लगा दिन । डिह म दिया बारे बर बांचगे अंकलहा ह ।

     बिचारा अंकलहा ल ओकर दाई पोसिस पालिस । आज अंकलहा गजब सोच समझ के चलथे ।

     महराज किहिस - ये बात ये बिसाहू । तोर दुख अंकलहा के दुख एक बरोबर । तभे मितानी माड़े हे ।

     मितानी काबर नई माड़ही । हमर पुरखा सत के मारग म          चलइया । गांव छोड़ दिस फेर सत ले डिगिस नही । अंकलहा के पुरखा परेम के मारग म चलइया त परेम अउ सत के रद्दा म चलइया मन मितान त होबे करही । बिसाहू किहिस ।

     एक ठन अउ कारन हे बाबू रे । तुम दुनों गांधी बबा के रद्दा म संगे चलत हव ।  महराज किहिस ।

     बिसाहू किहिस - महराज अउ ऊं च-नीच नाटक म घलो एक


संग पाठ करबो फेर हुकु म आपके होही त ।

     महाराज एक दिन के समे मांगिस सोच बिचार करेबर ।

     दूनो मितान महराज के पांव ल परके उठ गें । फेर जाय के बेरा दुनो झन पांव परिन त महराज किहिस - महराज, आसिरबाद के खांड़ा अउ गियान के फरी, दूनो ल पाके चेला नाचय लीम अऊ  तुलसी तरी ।

     महराज गजब हांसिस । चेला मन के गियान ल देखके गुरू के छाती चाकर हो जाथे । महराज हा पाठ बांटत बांटत डॉ. खूबचंद बघेल के नाटक के दोहा ल बता भर दीस ...

आन के खांड़ा, आन के फरी

लल्लू नाचय बोइर तरी ।

तेला बिसाहू ह झट्टे कइसे रट के सुन्दर जमा दिस

फोकट नई बाजे ये ग लीमतुलसी गांव हा

     अंकलहा अउ बिसाहू के खेत एके तीर । सोहरी चक म दुनों मितान के खेत । खेत मन के अलग - अलग नाव । जेकर सो बिसइन तिकरे नाव । ककरों बइरसन सांही । कोनो खेत के नाव बइगा चक । कोनों के नाव कुछू  कोनो कुछू । ककरो गाड़ा रेंगान त ककरो डोकरी चक । अंकलहा अपन महराज सांही खेत ल नींदत राहय अउ धड़काय राहय ददरिया ...

आमा ल टोरंव, खाहंुच कहिके,

मोला दगा म तंय डारे, आहंुच कहिके ।

बिसाहू अपन बइरसन सांही खेत ले जवाब दिस ...

बन मे गरजय बनस्पती,

भिंभोरा म गरजय नांग ।

बड़हर घर म कुबरी गरजय,

बाजा म गरजय चांग ।

     अतका सुनना रिहिस के खेत ले रटपटा के निकर अइस        अंकलहा । लकर-धकर गीस बिसाहू के खेत म अउ किहिस- कस


मंडल, तंय पाठ ल सब घोख डारे हस का । ये दोहा ह तो ऊं च-नीच नाटक म हे । जब महराज ह बताहूं तब याद करहूं कहे हे तव तंय कइसे करत हस । महराज कांही कहि दे हे का ?   

     हव बिसाहू किहिस - का केहे हे ? पूछिस अंकलहा ।

     बिसाहू बताइस - देख अंकलहा, बात अइसन ये । ऊं च नीच नाटक म बात हे बढ़िया । मेल मिलाप के । देस म एकता करेके । डर्राय म नई बनय । बिसनू दाऊ  रिसाही त रिसा जय । घाव म पस भर जथे  त चीर के इलाज करे बर परथे । हमर समाज ऊं च-नीच, छोटे बड़े म बटाय चाहत हे । जात पात म गजब बिगड़गे हम देस ह । ऊं च-नीच नाटक ल खेलवो । महराज साफ बतइस । किहिस - बढिया नाटक हे।  तइहा के बात ल लेगे बइहा । अरे बिसनू दाऊ  के परवार म कभू होइस लफंदर । अब होगे त होगे । बीते ताहि बिसार दे आगे के सुध ले । नवा समें नवा नाटक बाबू रे, संजीवन बूटी कस काम करथे ।

     अच्छा, कइसे भइया ? थोरूक लमा के बता ।

     बिसाहू किहिस - देख अंकलहा, जादा झन चेंध । चल चली महराज सो। उही बताही ।

     दूनो मितान बड़े तरिया के पानी म धोइन पांव । करिन  मुखारी । तऊ रिन तरिया म । अउ पहुंच गें दूनों । पांव परिन अउ बइठत रहंय । महराज किहिस- तुमन जानत रहेव का जी ? अंगाकार रोटी बनही      कहिके ।

     दूनों झन महराज के बात ल सुनके हांसिन । घर डाहर महराज हंुत करा के बता दिस के तीनों झन बर लाय जाय रोटी । बड़े बाई ह खुदे तीन ठन थरकुलिया मा रोटी लेके अइस ।

     बिसाहू अउ अंकलहा दुरिहा ले परिन पांव । महराज देख परिस किहिस - कस जी, मोर तो गोड़ ल चोचम डारथव अउ बाई के पांव ल डर्राय अस दुरिहा ले परथव । का बात ये भाई । आंय । दूनो              सुकुड़दुम्म । उन ल चुप देखिस ता बाई महराज ल खुदे अंखिया के भीतर


डाहर बला लीस । कुरिया म बला के किहिस - जादा नौटंकी झन करे करव । बिचारा मन मरजाद ल जानथें । तंुहर केहे ले जात-पात नई सिरा जाही । मैं पोतिया पहिर के राघथंव गढथंव । बिन नहाय रंधनी म जांव  नहीं । ककरो अड़हा जात सो पांव नई परवावंव । सब जानथें । बिसाहू कूर्मि ये परथे पांव छूके । फेर अंकलहा बिचारा नई पर सकय पांव छूके । त ओकर देखा देखी बिसाहू घलो दूरिहा ले पांव परिस । तुंहला डिरामा सूझत हे । तुंहर नईये धरम - करम । बिगड़ गेव । बाम्हन होके चौरंगा चाल चलथव । सब संग बइठथव - उठथव । खाथव-पीथव । मंय असल बाप के बेटी पाटन वाला सावर्णी परिवार काहत लागय । मंय अपन धरम       निभाहूं । तुम अपन रंग-रंग के खेल करव । मोला झन बिगाड़व ।

     अंगाकार रोटी माढ़े के माढे रहिगे । सन्नागे महराज । आंय काहत बांय होगे । घोड़वा के रोग बेंदरूआ म आगे साले ह । काहत महराज कुरिया ले निकलिस अउ किहिस - १झन खाव जी रोटी ल२ । तीनों माली के रोटी उठावव अउ जाव गाय ल खबा दव । नानकुन मंुह अउ बड़े-बड़े बात । हम काहत हन के मनखे मनखे ल जान सगा भाई के  समान । अउ हमरे घर म कुबरी खुसरे हे । ऊं च-नीच नाटक म जइसे कुबरी सइता नास करथे तइसन हमर बाई रार मचाय चाहत हे ।

     अतका ल सुनिस ते घर के परछी म आगे बड़े बाई सावनीं वाली कलप-कलप के रोय लागिस -                                                     मंय का करि डारेंव भइया हो,

मोर दूनों लोक बिगड गे ग ... ।

     बाई के रोना ल सुनिन त बिसाहू अउ अंकलहा उठ के खड़ा      होगें । किहिन-देख महराज, दीदी ल रोवा के बने नई करे । ये ला गांव भर के हमर उमर के लइका मन बहिनी मानथन । तेकर सेती तो तुंहर गारी गुप्तार ल अपन कान के बारी जानथन । फेर याहा का बात ये जी । जइसने पाथस तइसने कहि देथस । कहां के कुबरी अउ कहां के हमर दीदी ।

     महराज किहिस - देखव जी, सुधार घर ले होथे ।  आंखी म देख


के मांछी नई खाय जाय । तुम अपन बहिनी ल दुरिहा ले चमके आस पांव परके काम चला लेथव । मय जानत नई रहेंव । आज देख पारेंव । पांच परगट । जगजग ले । अपन आंखी म । त भई अतेक अंधेर नई चल        सकय । भाई हा बहनी के पांव परही त बहिनी छुवा जही जी । हमला भैया हो अइसन भाई बहिनी के चरित्तर बने नइ लागय । हम तो आज ले येकर हाथ के न खान न पीयन । अरे, हमर सारा मन के पांव परे म जऊ न बाई छुवाही तेहा हमला का पाही ।

     बाई ये बात ल सुनके अउ सुसक सुसक के रोय लगिस । बिसाहू किहिस- दीदीतंय नई जानस ओ । महराज के रंग ढंग ल । जादा झन  रो । नि ते यूहू हा रोय लागही । चुप राह । बड़े बाई किहिस - भइया हो, गलती मोर ये । भाई-बहिनी के नाता सिरतोन ये ग । चेथी के आंखी आगू डाहर आज आगे । मोर महराज दुनियां म गियान बांटथे भागवत, रमायन किथे । मैं चढ़ोत्तरी धरे बर अउ पइसा सकेले बर जानंेव । गियान ल तो तुंहर अस चेला मन धरेव भइया । अइसे काहत अउ रोवत रोवत गिस महराज तीर अउ पांव परके किहिस - आज तक कांही नासमझी करेंव । आज मोरो आंखी खुलगे । माफी देवव ।

     महराज किहिस - देख सिबितरी, जात पात हम बनायेन । गजब राज कर डारेन बनाके । अब सरम करे चाही हमला । हमरो लहू लाल, इंकरो लहू लाल । इहू खाथें अनाज, हमू खाथन अनाज । उही रद्दा ले हम जनमेन उही ढंग ले इहू मन । मर गे कहि कहि के कबीर अस संत मन -

जो तू बाम्हन बम्हनी जाया,

आन दुवारा काहे नहिं आया ।

ज्यों तू तुरूक तुरूकनी जाया,

भीतर खतना क्यों न कराया ।

     अभी महराज कुछू अउ लमातिस के पहुंच गे घनाराम मंडल खखारत । किहिस - बाह रे कबीर । का बात ये जी । बाम्हन अस चाहे तुरूक, बिसाहू अस चाहें अंकलहा सब एक हे । पा-लागी ग महराज


काहत ओकर पाछू बिसनू दाऊ  घलो पहंुच गे । महराज किहिस - तुहूं मन अंगाकर रोटी के गम पा ले रेहेव का जी?

     महराज के बात पूरे नई पइस, बड़े बाई दू ठन माली म रोटी धर के अउ आगे ।

     घनाराम किहिस - कस महराज, बाई ह कइसे रोय अस करथे  ग । झगरा होय हव का जी ।

     महराज ले आगू सिबितरी बाई किहिस - अइसन बात ये मंडल भैया, मोला छाय रिहिस हे अंधरौटी । आज तंुहर महराज ह कर दिस अलकरहा इलाज । आंखी बरगे जग्ग ले । तेकर सेती ताय ।

     महराज किहिस - अच्छा अपन भाई भतीज मन ल जुरियाय देखत हस त गरजे चाहत हस ।

     महराज के बात ल सुनके सिबितरी बाई अउ सबो झन हांस      पारिन । रोटी ल हाथ म लेके बिसाहू ह घिव मा गोदइया रिहिस तइसने महराज किहिस - साले हो, बात अभी चलते हे अउ तंुहर हाथ चल दिस रोटी म ।

     बिसाहू पूछिस - अउ का बांचगे महराज । हो तो गे ।

     महराज किहिस - बइरी अउ बंधना म कमजारी ठीक नई होय । तंुहर दीदी खड़ेे हे सऊं हत । चलव बे ओला छुवव । छुवाही के नहीं देखहूं  में हा ।      

     सिवतरी बाई किहिस - बोले बताय के हऊ स घलो नई राहय एकात झन मनखे मन ल । छुवव किथे । अरे छूके पैलगी करव कहना  चाही ।

     महराज किहिस - उही ताय । भाव चाहिए सांच । छुये के मतलब हे तोर सब पुराना जउन बिमारी हे ऊं चनीच के सब अभी होही खतम । चलो जी ।

     अतका सुनना रिहिस के उठ-उठ के सब लगिन पांव परे दूनो झन के । महराज किहिस - मूल संग बियाज घलो लेहू का बे । बहिनी भर म


काम नई चलत ये । भांटो के घलो चाही । साले हो । बड़ बदमास ग लीमतुलसी के उतिअइल टुरा मन ...... ।

     महराज ल टोकिस बाई, किहिस - गजब गारी खइन मोर भाई मन । अंगाकार रोटी भर खा के अतेक गारी नई सम्हलय । मंय बनावत हंव चीला सब खा लिहू तब जाहू ।

     बाई भीतर चल दीस । बिसाहू महराज तीर जा के किहिस- महराज, अब हम जान डरेन दीदी के सुभाव ल । कांही रोटी पीठा खाना होही त आ जबो । आप तो पके हव नौटंकी म । गारी गुफ्तार सुरू कर दे करव गुरू । हमर संग तुहंरो कलयान हो जाही खाय बर मिलही ।

     बिसाहू के टिमाली ल सुनके महराज एकमुटका जमइस अउ किहिस - देखव जी, तुंहर उपकार हम नई भुलाय सकन । ये घर, दस अक्कड़ खेत । सब कोन देवइस । हमर ससुर । बिसाहू के बाप । गुजरगे मंडल ह । हम नई भुलाय चाहन । घनहिन तेलिन के आय सब । रिहिस निरबंसी । बिसाहू के बाप मंडल कका ओला घेरिस । गजब समझाइस । किहिस- घनहिन दे दे । चढ़ा दे मंदिर म । महराज मंदिर के करही पूजा । गांव ल जगाही । जनम भर तोर नाव चलही । पूत भतीज खांही अउ लड़ही । जनम भर अटिअइन । दे दीस बिचारी हा । हम गजब गुन मानथन मंडल कका के । बस गेन लीमतुलसी म । दस अक्कड़ मोर न नाव चढा दिस । फेर महूं एक संकलप ले हंव । पांच अक्कड़ ल बेच के भइया बीच गांव म बनवाहूं - घनहिन लिल्ला चौरा अउ घनहिन अन्न कोठी । गजब दिन होगे । बिसाहू के बाड़ा म हे हमर गांव भर के मंगनी के धान ह । अब हम बीच गांव म बनवाबो । अन्नकोठी अउ मंच । मोर करजा कम होही    ग ।

     बिसनू किहिस - महराज, तोला जमीन बिगाड़े के नइये        जरूरत । हमर करा तंंुहर आसीरबाद से सब हे । सतनामी पारा के परसार ल बेच दुहूं । उही म मिला के मैं बनवा दुहूंू परसार । मंच घलो बन      जाही । अपन खेत के अनाज ल बेच के सालो साल आप तरिया म पचरी


बनवाथव । मंदिर देवाला बनवा देव । गांव म कुंवा कोड़वाय हव । दस अक्कड़ म होथे का महराज तंुहर । कांही नई होय ।

बाम्हन करथे जा खेती,

कुरमी तेली करथे आ खेती ।

     त जा खेती म कतेक नफा हे महराज हम जानत हन । फेर आप के उछाह । बिगाड़व झन गुरू । बनही । हम बनाबो । घनाराम मंडल बिसनू दाऊ  के बात ल सुनके किहिस -

दिये बिना संताप किसी को,

झुके बिना यदि खल के आगे,

संतों का कर संकू अनुसरण,

तो थोड़े में सब कुछ जागे ।

     ये कबित्त ल सुना के घनाराम मंडल बात के धारा मोड़ दिस । कबित्त ह राहय ऊं च नीच नाटक के कवित्त । महराज किहिस - वाह मंडल, बढ़िया याद करथव जी पाठ ल । किया बात हे । माली म तो चिला अउ चटनी हे महराज भात नइये बिसाहू ठट्ठा करिस ।

     बाई ह सब बर लानिस चीला अउ भिड़गे सब खाय म । खात जांय अउ अपन अपन पाठ ल ऊं मचावत जांय । महराज गदगद होगे । किहिस - आज रात के पहला बइठका होही जी । जल्दी आहू । ऊं च-नीच नाटक के सबो संगवारी मन ल आरो कर दिहू ।

     संझके रहे बियारी करके गुड़ी म सब सकलइन । महराज कहिस - सब अपन अपन पाठ के नमूना बताहू । बस । जादा कुछू नइये । रेसल अठोरिया के बाद होही । घोर लव । बने याद कर लव । सब झन हव महराज कहिके उठत रिहिन तइसने ऊ मंेदी आगे दम्म ले । किहिस - महराज गोंड़ पारा में एक ठन अनीत होगे । अभीच्चे चल के कर दव नियाव ।

     का होगे ऊ मेंदी ? महराज पूछिस ।

     बात अइसे ये महराज । बल्दू गोंड नई रिहिस । दू बछर पहली


गुजरगे धुकी म । ओकरे बेवा ह गरबबास म हे । गोंड़पारा के मन ओला बला के पूछत हें । काकर आय कहिके ? नई बतावत ये । तुम चलतेव गुरू सब हड़बड़ागे सबोझन । उठिन अउ गीन गोंड़पारा ।

     भुखिन बाई बीच म मूंड़ नवाय बइठे राहय । सब गोंड़ पारा भर के मनखे मन ठुरियाय राहय । महराज ल देखके पांव पैलगी करिन । नई बतइस फेर नई बतइस । भुखिन किहिस - महराज, पेट म लइका मोर ये महीं अब येकर बाप मही येकर महतारी । तुंहरे भागवत, मोभारत म सुनथंव, कोन्ती के बेटा करन के किस्सा । दुनिया जान डारिस के सुरूज नरायन के बेटा राहय करन ह । तभो ले तो कोन्ती ओला बोहवा दिस । पानी के धार म लइका ल का बोहवइस जिनगी भर लइका ह बोहाते     गय । मरद जात डरपोंकना । इही बस्ती म बइठे हे ओहा । तुंहरे बीच म । फेर डौकी ले गय बीते हे । हाथ धरे के बेर तो बजरंगा बनिस । किहिस - बघवा के पीला अंव।  जिनगी भर हाथ नई छोड़ंव । कोलिहा ले गे बीते मन बघवा बनथें । मैं अपन करन ल पोसहूं । बड़ेे करहूं अउ किंहू बेटा तंय खुदे बन सुरूज नरायण । जग ल अंजोर कर । बाप ल छोड़व । महतारी मय आंव । करव नियाव ।

     महराज के आंखी म आंसू आगे । किहिस धन्न हे माता । धन्न  हे । देखव जी, अब ये टूरी के बाप मंय हो गेंव । मोर बेटी ये । बने काहत हे । बाते -बात म बरा नई चुरय । कुछू करे बर परथे । हिम्मत देखव । कमाथे अउ खाथे । भीख नई मांगय । एक बेटा हे पहली के । दस बरिस  के । अब ये दे पेट म हे तऊ न जग म आही । डांड़व  झन येला सनमान देके राखव । गांव के नाम बढ़ाही । जस बढ़ाही ।

     गोंड़पारा के कातिक उठ के किहिस - महराज, बिन बाप के बेटा ल कहां समाज हा मानही । डाड़े बिना नई बनय ।

     महराज किहिस - देखव जी, जब युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन ल सम्मान मिलगे त भुखिन के बेटा ल काबर नई मिलही । पुरूषारथ चाही । फेर हम काला नई पूजन । जौन ह धर्म के रद्दा म चलिस तौन ल पूजेन ।


ददा दाई के नांव म झन  उलझव ।

     तुलसी बबा ह रमायन म लिखे हे । दसरथ काहत हे - चौथे पन पायेंव सुतचारी काहत हे । जन्मायेंव, पैदा करेव नई काहत हे । पइस । जग रच के पइस । भुखिन ह घलो पा लीस । बाप कोन ये झन पूछव । महतारी भुखिन बाई आय । अउ जबर करेजा वाली महतारी । सब ल मिलय भुखिन दाई अस महतारी ।

     महराज अपन बात ल सकेलिस । किहिस - जऊ न पापी हा करनी करके  लुका गे हे तौन अपन पाप के भार म मरही । भुखिन सदा सुखी  रइही । इही तो हम गलती करत आय हन जी । बंगाल म हाफिन खवा के बारा बरस के विधवा छोकरी मन ला डोकरा संग चिता म हुरस दंय । तब राजा राम मोहन राय जनमिस । भगवान बरोबर परगट होइस । अउ अतियाचार के करिस विरोध । वाह रे पुरूष समाज । बड़ा मरद कहावत हे । करनी कर के दूसर ल हांसी म डारने वाला पुरूष समाज बर कहे हे ग ...

करनी करैया बांच गे,

फरिका उघरैया के नांव ।

     भंगी मंडल किहिस - महराज, तंय हमर आंखी खोल देस ग । हम गजब बड़ बात ल आज जानेन सुनेन । भुखिन ह गांव म बहू बनके अइस ।  तीन ल जानय, न तेरा ल । सदा दिन के एक-बोलिया गोड़िन । सबो ल अपने सांही भल जनइया । फेर एक ठन बात के मैं दावा करत हंव महराज । दसों अंगरी के बिनय करत हंव । माफी देहू ते एक बात जाने चाहत हंव ।

     महराज किहिस - काह न मंडल । गांव के सभा ताय भाई । सब घरे-घर के हन । बता भाई ।

     भंगी मंडल किहिस - महराज, भुखिन अइस गांव म बहू बनके गोंड़पारा म । सदा दिन हमर गांव म एक पन्दरही पहली फूल कुचरा जथे गौरा चौरा म । चारों मुड़ा के गांव ले बढ़के सुरहुत्ती के दिन हमर गांव म बाजा घटकथे ।     


एक पतरी रैनी झैनी,

राय रतन दुरगा देवी सीतल छांव ।

     ये दे गीत ल जब भुखिन अपन संगवारी मन संग गाथे त खुदे दुरगा देवी अस लागथे । का भोजली, का जंवारा, का सुवा गीत । सरसती बइठे हे भुखिन के कंठ म । हमर गांव भर म सबले गुन्निक बहु आज कुछू नई कर सकत ये । एक झन पापी के नाव नई टिपे सकत ये । मैं पूछना नई चाहंव । सदा दिन ऊं चा जात के मनखे मन गोंड़, गहिरा, सतनामी ल नचाथन । सेवा करवाथन । ओमन हमर बर भगवान से बिनती बिनोथे के घर कोठी भंडार भरे, अउ जीवंय लाख बरीसे यहा तरा आसीरवाद हमला इन देथें । अउ हम राज करथन । इन ला लूट के । इन ल डरूवा के । इन ल बिचेत करके । बस अतके मोर दावा हे कि गोड़िन भुखिन के पेट म जऊ न पापी के बिंद हे । जऊ न अधरम करके लुका गे हे वो हा गोड़ नोहय । छल करैया, ओ मनखे ह ऊं चहा जात के  होही । तभे ठगे हे गोड़िन ल । सदा दिन ठगिन । बस मूड़ हला दय भुखिन हा ।

     महराज किहिस - वाह, वाह भंगी मंडल, सांप ल धरना त मुस्किल हे फेर ओकर बिला तिर ओधेे चाहत हस । वाह रे डिमाग ।  जाने चाहत हस के ढोड़िया ये, घोड़ा करैत ये, पिटपिटी ये, अजगर ये, मुड़हेरी सांप ये के डोमी ये । वाह, चलो भाई अतके जान लन । भुखिन जेकर अंस तोर पेट म हे तउन पापी हा गोंड़, गहिरा, सतनामी, रोहिदास, गांड़ा, धोबी, नाऊ  उजिर जात के आय के नहीं ? भुखिन किहिस - नोहय महराज । त बांचिन का एक जात के नांव नई लंव । अब बड़का धन वाला जात हर छत्तीसगढ़ के लीमतुलसी अस गांव म कोन हे । तेली, कुर्मी, कोष्टा, पटेल, लोधी, रसपूत, बनिया, बाम्हन, ये जात में ककरो आय का नोनी ।

भुखिन हव कहिके मुड़ ल हला दिस ।

सब सन्ना गें

भंगी किहिस - बस महराज, होगे मोर काम ।



महराज किहिस - दखो जी, तेली- कुरमी, कोष्टा कोनो ऊं चहा जात नोहय । पिछड़ा माने जाथे दूसर परदेस म । फेर कहे गे हे रमायन म - जो प्रतिपालय सोई नरेसू । जऊ न पालथे तौन राजा । धन अउ धान ह बनाथे जात ल । इहां कोष्टा पटैल, लोधी, कुरमी, तेली मालगुजारी करेव । धन वाला हव त तुंही मन ऊं चहा हो गेव । तेकरे सेती चार पांच पोटहर जात ल मिझार के पूछेवं । रसपूत अउ बाम्हन गांव-गांव नइये । हमर लीमतुलसी म तो टिकली चटकाय बर रसपूत नइए । बाम्हन मैं । तभो ले परोसी गांव म रसपूत हें, बाम्हन हें तेकर सेती मिंझार के जमायेंव रे भाई हो ।

     बने सियानी करे महराज । भंगी मंडल किहिस- फेर बात अइसे ये के जौन तपही तौन खपही । कोनो होय । बाम्हन - रसपूत होय । अरे पानी म गोबर करही ते हा एक दिन उफलाबे करही ।

     सरस पुन्नी लकठियागे । खेत म गोबर छर्रा छटके लगिस धान । कोनो-कोनो हरहुना धान के खेत म माथ नवगे । दुबराज, बुढ़िया बांको, तुलसीमाला, बिसनू दाऊ  के खार भर । सफरी और बड़े गुरमटिया किसान मन के खेत म । बेचे बर रंग रंग के जादा कूत देने वाला धान बोवय दाऊ  बिसनू । खाय बर महमहाती । घर में भात चुरय त गांव भर महर महर       करय ।

     रेसल होय लगिस । ऊं च - नीच नाटक के रेसल । महराज बड़ खुस । अपन चेला मन के गुन देखके महराज के छाती चाकर हो जाय । सबे किसिम के चेला रांहय । महराज ल तेजराम गौटिया दमाद मानय । गांव भर ले बड़े मंझला गौंटिया । गजब ठट्ठा करइया । रेसल चलिस । तेजराम गौंटिया आगे दम्म ले । किहिस - महराज तोर कका-बाप मन नौटंकी नई करत होही । सिबितरी के कका मन करथन ग । हमू ल पाठ दे देते भई । सेर-सीधा, दक्षिणा के मंगइया तुम अउ गियान, पाठ के दक्षिना के मंगइया हम ।

     तेजराम गौंटिया के गोठ ल सुनके सब मुच-मुच हांसे लगिन । महराज किहिस - बैइठव भई । धन भाग जऊ न आप खुदे पाठ मांगव


देखव, एकाद झन हरिजन के रूप धर के अइसे करतेव, पंथी दल म खुसर जतेव । हम येमा पंथी घलो देखाबो ।                                                                       सब झन फेर हांसिन ।

     तेजराम गौंटिया किहिस - ठट्ठा म काहत हस महराज फेर सच ल कहि पारे । मैं मांदर बजाय म वस्ताज हंव ग । पंथी दल म बजाहूं मैं  मांदर । बस होगे । मोर काम । अब करहूं तियारी । सबों जात के मनखे ल मिलाके बनाहूं लीमतुलसी पंथी दल । देवता धामी, गुरू गोसांई कोनों जात के नोहंय गुरू बबा घासीदास के जस ल सबो गाबो ।

     रेसल ऊ पर रेसल, रेसल ऊ पर रेसल चलिस । खबरिया भेजिन पथरी गांव । डाक्टर खूबचंद बघेल के संदेसा आगे । आहूं कहि दीस । गांव भर के मनखे सुनिन ते बक्खागे । अतेक बड़ मनखे हमर गांव म आवत हे । फेर खभर अइस के सेठ अनंतराम बर्छिहा घलो आवत हे । गजब तियारी चलिस । मंडल बगैचा म पाना पतई सब गांव भर के      सकेलिन । बड़ेे जन बगैचा ल छोल छांल के सफई करिन । गांव के लिल्ला मंडली के पाल परदा लगाके नाटक बर चौरा बनइन और रांधे पकाय बर चूल कोड़िन । गांव भर के मनखे मन बर खीर बनिस । तीर तखार के गांव के परमुख मन ल भेजिन नेवता ।

     सरसपुन्नी के दिन संझौती अइन पहुना मन । डाक्टर खूबचंद बघेल सादा धोती-कु रता पहिरे मुंड़ म टोपी । रूपरंग ल देख के भंगी मंडल बिसाहू ल कोहनिया के किहिस - अरे जतका गांधी बबा के चेला चांटी सब जवाहर लाल अस दिखथें एकमई होगे हे । भंगी मंडल किहिस - तोला तो बस ठट्ठा सूझही निपोरवा नही तो ।

     तब तक सब झन बड़ेे तरिया तीर आगंे । तरिया ले मंडल बगइचा के रद्दा भर मनखे । तेजराम गौंटिया घेंच म मांदर बांधे अपन पंथी दल के संगवारी संग परघाय बर खड़ा होगे । जोर से सब जय बोलइन -

     बोलो गुरू घासीदास की जय अउ गाना सुरू होगे ।

सत्यनाम, सत्यनाम, सत्यनाम सार,


गुरू महिमा अपार,

अमरित धार बोहाई दे,

हो जाही बेड़ा पार, सतगुरू महिमा बतई दे ।

मेला अस लग गे ।

     डाक्टर खूबचंद बघेल ल परघा के लेगिन । बर्छिहा जी ला      परघइन । डाक्टर बघेल दीस भासन । भाई बहिनी हो । धन हे ये गांव लीमतुलसी जिहां अतेक संुदर जग रचाय हे । मेल मिलाप के जग । गांधी जी हमर सुन्दरलाल महराज ल अपन गुरू किहिस । काबर के सुन्दर लाल महराज ह सतनामी मन ल भाई मान के जनेंव दीस अउ मंदिर लेगिस । हमर छत्तीसगढ़ गजब महान । गांव-गांव बनही लीमतुलसी । ये बइठे हे बर्छिहा जी । गांधी बबा के चेला । इंकर ऊ पर दुख अइस । पौनी पसारी बंद कर दीन गांव वाला मन । काबर ? सतनामी पारा म जाके उंकर डाढ़ी बनइस  येहा । ऊंकर चुरोना चुरोइस । सेवा करिस । बगियागंे सब जात वाला      मन । छोड़ दिन । तब मैं लिखेंव नाटक ऊं च-नीच । मैं नाटक लिखैया लेखक नोहंव रे भाई । साधारण मनखे अंव । लेखक तो बड़ा विद्वान होथे । मैं तो छत्तीसगढ़ महतारी के जस गवइया बेटा बन अंव, भारत माता के जस गवइया बेटा बन जंव , इही उदिम म लगे रथंव । तंुहर गजब किरपा जउन इहां मोला बलायेव । दया मया धरे रिहू । अनंतराम बर्छिहा जी जादा नई बोलिस । किहिस -हमला एक होना हे । जइसे लीमतुलसी वाला मन एक हे । तेजराम गौंटिया ल बलावव मंच म । मैं सनमान करहूं । बलावव महराज ल जऊन ये गांव म अलख जगावत हे ।

     दूनों मंच म गीन हाथ जोर के । महराज किहिस - डाक्टर साहब, देस के बड़े नेता मन के रद्दा म चलत हन । हमर ऊ पर छाहित राहंय । हमर सांस अतके चलथे के हम लीमतुलसी ले पथरी तक जा पाथन । दिल्ली, इलाहाबाद, कलकत्ता के नांव सुनथन ते डर लागथे । हम छोटे-छोटे मनखे हमर काम नान-नान । फेर हमला आप सांही बड़े  विद्वान के रद्दा म रेंगे के मौका मिलिस । धन्न हमर भाग ।


     महराज के बात ल सुनके डाक्टर साहब उठ के सबके आगू म पांव परिस । महराज हडबड़ागे । किहिस - का अंधेर करथव डाक्टर साहेब । हम तंुहर ले छोटे अन भाई । पाप झन चढ़ावव ।

     डाक्टर साहब किहिस - बड़े ओ जऊ न दूसर ल बड़े बनाथे । खुद बड़े बनब म का हे । दूसर ल बनाही तेकर बड़ौना दुनिया करही । महराज, आप इही काम करत हव । धन्य हे हमर भाग के आप संग भेंट होगे ।

     पांव पैलगी के बाद नाटक सुरू होइस । सब बइठ गें । डाक्टर साहब देखिस नाटक ससन भर । नाटक के तियारी देख के गदगद होगे । किहिस - एक बेर ये नाटक ल रइपुर, पथरी अउ फेर पहली बार जहां मैं येला लिखे के बारे म सोचेंव तेन चंदखुरी गांव म खेलवाय हंव । बड़ सुन्दर बना डरेव भई नाच, गाना पंथी, रीलो, भरथरी, गोपीचंदा, सब ल जोड़े हव जी । वाह वाह । अउ देखव भई गोपीचंदा म जऊ न गीत गइस तऊ न ल जरूर देहू । का गीत हे ?

तंय सन्यासी बने रे बेटा,

काकर बर गोपी तय सन्यासी बने ।

     भारत माता काहत हे गांधी बबा ल तंय बेटा बालिस्टर, बड़ेे घर म जनमें सुख म रेहे । मोर दुख ल देख के सन्यासी होगे बेटा । भारत माता काहत हे । वाह रे गीत तुमन तो ऊं च नीच म रंग भर देव । ढांचा मंय बनायेंव आत्मा तुम डारेव । जिव पार देव ।

     महराज हा पहली कटोरी खीर अपन हाथ म लेके डाक्टर साहब तीर  अइस । सब ल बंटागे रहय । सब जांघ जोर के लइन म बइठे रहंय । डाक्टर साहब उठ गे । सब संग मिलिस । पूछत गिस । नांव अउ जात सुनके दंग रहिगे । सब जात सांझर मिझंर । भेद भाव एक्को नहीं । बिसाहू के तीर म अंकलहा बइठे राहय । चिन डरिस डाक्टर हा । किहिस - पाठो संग म करथव अउ खीर संग म बइठ के खाथव जी ।

     दूनो उठ के पांव परिन ।



     डाक्टर साहब किहिस - पांव एक झन के परना चाहि महराज      के । जउन ये गांव ल बना दीस ।

     सब ल संग म बइठ के खवइन डाक्टर साहब मन अउ खुद मझोंत म बइठ के परसाद पइन । आधा रात होगे ।

     मंडल बगैचा के तीर म खार लगे रहय । खेत म धान उछरे परय । डाक्टर साहब किहिस - देखव जी, छत्तीसगढ़ के माटी के परताप लक्ष्मी बिराजथे सौंहत । एक ठन कविता सुना के जाहूं भई । मंच के कवि               नोहंव ।

आंवा उपन्यास का केंद्रीय पात्र कौन है?

उत्तर - 'आवा' उपन्यास का केंद्रीय पात्र रघोत्तम महाराज है।

आवा उपन्यास के रचनाकार कौन है?

चित्रा मुद्गल

परदेसी वर्मा द्वारा रचित छत्तीसगढ़ी उपन्यास क्या है?

परदेसी लाल वर्मा हिंदी के साहित्यकार हैं, जो हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा दोनों में समान रूप से लिखते हैं। उनका छत्तीसगढ़ी उपन्यास आवा हिंदी के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। ये उपन्यास छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखा गया है। इस उपन्यास का मुख्य उद्देश्य एक सामाजिक आदर्श को स्थापित करना है।