अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है इस कथन की आलोचना समीक्षा कीजिए - arthashaastr dhan ka vigyaan hai is kathan kee aalochana sameeksha keejie

प्रश्न 6. अर्थशास्त्र की विभिन्न परिभाषाएं दीजिए।

उत्तर- अर्थशास्त्र की परिभाषा के संबंध में अर्थशास्त्रियों में काफी मतभेद हैं। इस संबंध में प्रो केंज ने कहा है, "राज्य अर्थव्यवस्था ने परिभाषाओं से अपना गला घोंट लिया है।”

कठिनाइयों से बचने हेतु हम अर्थशास्त्र की परिभाषाओं को निम्न वर्गों में बांट सकते हैं-

(A) धन संबंधी परिभाषा

(B) कल्याण संबंधी परिभाषा

(C) दुर्लभता संबंधी परिभाषा

(D) इच्छाओं के लोप संबंधी परिभाषा।

(A) धन संबंधी परिभाषा

इस वर्ग की परिभाषाओं में धन को प्रधानता दी गयी है। इस मत के समर्थकों के अनुसार अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है । इस वर्ग की कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं

एडम स्मिथ के शब्दों में, “अर्थशास्त्रं धन संबंधी विज्ञान है।”

वॉकर के शब्दों में, “अर्थशास्त्र ज्ञान का वह संग्रह है, जो धन से संबंधित है।”

जे.बी.से. के अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो धनाध्ययन करता है।”

उपरोक्त सभी परिभाषाओं में अर्थशास्त्र को धन का केन्द्र बिन्दु माना गया है।

धन संबंधी परिभाषाओं की आलोचना

(i) धन संग्रह को प्रधानता- इन परिभाषाओं में सिर्फ धन के संग्रह को ही महत्व दिया गया है, मानव कल्याण को बिल्कुल भी नहीं।

(ii) सिर्फ आर्थिक मनुष्य की कल्पना- इन परिभाषाओं में यह कहा गया है कि मनुष्य हर कार्य अपने हितों से प्रेरित होकर करता है, जो पूर्णतः गलत है। आजकल व्यक्ति के कार्यों में देशप्रेम, दया, विश्व बंधुत्व जैसी भावनाएं भी छिपी रहती हैं।

(iii) अर्थशास्त्र का क्षेत्र सीमित करना- इन परिभाषाओं से अर्थशास्त्र एक भौतिकवादी विज्ञान बन गया है, जिसमें धन को ही प्रधानता दी गयी हमारे जीवन में जितना महत्वं एक व्यापारी की सेवाओं का है, उतना ही एक अध्यापक, वकील तथा डॉक्टर की सेवाओं का ।

(B) कल्याण संबंधी परिभाषाएं

इस वर्ग की परिभाषाओं में धन की बजाय मानव कल्याण को ज्यादा महत्व दिया गया है। कल्याण संबंधी परिभाषा के समर्थक प्रोमार्शल हैं। प्रो.मार्शल के अनुसार, “धन मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धन के लिए। उनके अनुसार धन साध्य नहीं है, वरन् साधन मात्र है।”

विशेषताएं -

1. आर्थिक मनुष्य की अपेक्षा साधारण मनुष्य का अध्ययन- मार्शल ने जिस मनुष्य की कल्पना की, वह सिर्फ स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य नहीं करता, वरन् साधारण मनुष्य होता है ।

2. कल्याण की प्रधानता- मार्शल ने अर्थशास्त्र की परिभाषा में कल्याण शब्द पर अधिक जोर दिया है।

3. धन की बजाय व्यक्ति को ज्यादा महत्व- इस परिभाषा में धन की बजाय व्यक्ति को ज्यादा महत्व दिया गया है।

मार्शल की परिभाषा की आलोचनाएं

1. अर्थशास्त्र के नियम समाज के बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर भी लागू होते हैं- मार्शल ने अपनी परिभाषा में यह कहा है कि समाज में रहने वाले व्यक्तियों का ही अध्ययन अर्थशास्त्र में होता है । रॉबिन्स ने इस संबंध में लिखा है कि अर्थशास्त्र के नियम तथा सिद्धांत समाज में रहने वाले दोनों तरह के व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं।

2. अर्थशास्त्र में भौतिक कल्याण संबंधी कार्यों का भी अध्ययन होता है- मार्शल ने अपनी परिभाषा का संबंध भौतिक कल्याण संबंधी कार्यों से जोड़ा है, जबकि आलोचकों का कहना है कि अर्थशास्त्र में अकेले भौतिक कल्याण संबंधी कार्यों का ही अध्ययन नहीं होता, वरन् कई अभौतिक कल्याण संबंधी कार्यों का भी अध्ययन होता है।

3. क्रियाओं को साधारण तथा असाधारण भागों में बांटना गलत है- मार्शल ने अपनी परिभाषा में साधारण व्यापार संबंधी कार्य वाक्यांश का प्रयोग किया है । आलोचकों का इस संबंध में कहना है कि मनुष्य के कार्यों को साधारण एवं असाधारण दो भागों में बांटना एक कठिन कार्य है।

(C) दुर्लभता संबंधी परिभाषा

दुर्लभता संबंधी दृष्टिकोण के प्रवर्तक प्रो.रॉबिन्स हैं। रॉबिन्स के अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो लक्ष्यों एवं उनके सीमित तथा वैकल्पिक उपयोगों वाले साधनों के परस्पर संबंधों के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है।”

परिभाषा की व्याख्या

प्रो. रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में निम्न चार तत्वों पर विशेष जोर दिया है

(i) आवश्यकताओं की तुलना में साधनों की सीमितता- परिभाषा में यह भी कहा है। कि आवश्यकताओं की तुलना में मनुष्य के साधन सीमित रहते हैं तथा इसी कारण साधनों एवं आवश्यकताओं के बीच संघर्ष छिड़ा रहता है ।

(ii) साधनों के वैकल्पिक उपयोग- प्रो.रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में यह भी कहा है। कि साधनों का वैकल्पिक उपयोग भी किया जा सकता है।

(a) चूंकि साधनों के वैकल्पिक उपयोग हो सकते हैं, इसी कारण चुनाव की समस्या पैदा होती है।

(b) मनुष्य की आवश्यकताएं ज्यादा होती हैं तथा उसके साधन सीमित होते हैं, इसी कारण व्यक्ति के सामने चुनाव की समस्या पैदा होती है। इसी कारण हर व्यक्ति अपने साधनों को अपनी अनंत आवश्यकताओं पर इस तरह व्यय करता है कि उसकी अधिक से अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

(c) क्योंकि आवश्यकताएं समान महत्व की नहीं होती, इसी कारण यह समस्या पैदा होती है, किस आवश्यकता की पूर्ति पहले की जाए तथा किसकी बाद में।

(iii) आवश्यकताओं का अनंत होना- रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में स्पष्ट किया है। कि मनुष्य की आवश्यकताओं का कोई अंत नहीं होता, उसकी आवश्यकताएं सदैव उसके साधनों से ज्यादा होती हैं।

(iv) आवश्यकताओं के महत्व में अंतर- प्रो. रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में यह भी कहा है कि मनुष्य की आवश्यकताएं समान महत्व की नहीं होतीं अर्थात् उनकी तीव्रता में अंतर" होता है। जो आवश्यकताएं ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं, मनुष्य उनकी पूर्ति सबसे पहले करता है।

उपरोक्त सभी कारणों से चुनाव की समस्या पैदा होती है। इस संबंध में प्रो रॉबिन्स ने लिखा है कि “जब आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु समय तथा साधन सीमित होते हैं एवं उनके वैकल्पिक उपयोग हो सकते हैं और महत्व के आधार पर विभिन्न तरह की जरूरतों में अंतर किया जा सकता है तब मानव व्यवहार निर्णय का रूप धारण कर लेता है, अर्थात् उसका आर्थिक पहलू पैदा हो जाता है।”

वास्तव में रॉबिन्स निष्कर्ष रूप में यह कहना चाहते हैं कि अर्थशास्त्र चुनाव का विज्ञान है। उसके अनुसार समाज में हर स्तर के व्यक्ति एवं सभी अर्थव्यवस्थाओं में चुनाव की समस्या पैदा होती है।

रॉबिन्स के विचारों की आलोचनाएं

1. साधन तथा साध्यों के मध्य अंतर स्पष्ट न होना- कुछ आलोचकों का यह मत है। कि प्रो. रॉबिन्स ने साधन व साध्य के बीच जो अंतर किया है, वह स्पष्ट नहीं है वास्तव में इन दोनों के मध्य अंतर नहीं हो सकता है, क्योंकि आज जो उद्देश्य है, वही कल सधन हो सकता, केवल प्राकृतिक विज्ञान के मजबकि प्राकृतिक विज्ञान यमों के समान समझना

2. अर्थशास्त्र के नियमों को प्राकृतिक विज्ञान के नियमों के समान समझना गलत है- अर्थशास्त्र के नियम लचीले होते हैं, जबकि प्राकृतिक विज्ञान के नहीं। अतः अर्थशास्त्र के नियमों की तुलना प्राकृतिक विज्ञान के नियमों के साथ नहीं की जा सकती। रॉबिन्स ने इन दोनों विज्ञानों के नियमों को एक समान माना है।

3. अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान मानना गलत है- रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान माना, जबकि आलोचकों ने कहा यह आर्थिक समस्याओं को हल करने वाला शास्त्र है।

4. मनुष्य को अत्यधिक विवेकशील मानना गलत है- आलोचकों का कहना है कि व्यक्ति उतना विवेकशील प्राणी नहीं है, जितना कि प्रो.रॉबिन्स समझते हैं।

(D) इच्छाओं का लोप संबंधी परिभाषा

इस मत के समर्थक भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. जे.के. मेहता हैं। उनके अनुसार जीवन का वास्तविक सुख इच्छाओं के दमन में है। उन्होंने अर्थशास्त्र की परिभाषा इस तरह की है, अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय आचरण का इच्छा रहित अवस्था में पहुंचने के एक साधन के रूप में अध्ययन करता है।"

(E) आधुनिक परिभाषा या विकास संबंधी परिभाषा

आज अर्थशास्त्र की एक ऐसी परिभाषा की जरूरत है, जो कि सीमित साधनों के वितरण व आर्थिक विकास इन दोनों ही बातों पर प्रकाश डाल सके। ऐसी परिभाषा को विकास केन्द्रित परिभाषा कहा जा सकता है। प्रो.सैम्युलसन की परिभाषा इसी तरह की परिभाषा है। उनके अनुसार, अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि व्यक्ति तथा समाज कई प्रयोगों में लाए जाने वाले उत्पादन के सीमित साधनों को एक समयावधि में विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने एवं उनको समाज के विभिन्न व्यक्तियों तथा समूहों में उपभोग हेतु वर्तमान तथा भविष्य। के बीच बॉटने हेतु किस प्रकार चुनते हैं, ऐसा वे चाहे मुद्रा का प्रयोग करके करें या इसके बिना करें।” वास्तव में प्रो. सैम्युलसन ने अपनी परिभाषा में प्रो.रॉबिन्स की परिभाषा के दोषों को दूर करने का प्रयास किया है। उनकी परिभाषा निर्णय करने की समस्या को मान्यता देती है।

अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है यह कथन किसका है?

एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तक "राष्ट्रों के धन के स्वरूप तथा कारणों की खोज' (An enquiry into the Nature and causes of wealth of Nations) में अर्थशास्त्र की परिभाषा निम्न दी " अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है ।"

क्या अर्थशास्त्र कल्याण का विज्ञान है इस कथन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए?

Answer: उत्तर: प्रो. एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित पुस्तक “An enquiry into the nature and causes of wealth” में अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान माना है। संस्थापनवादी सभी अर्थशास्त्री यह मानते थे कि मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य धन अर्जित करना है।

अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान क्यों कहा जाता है?

'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। अर्थशास्त्र का शाब्दिक अर्थ है धन का शास्त्र अर्थात धन के अध्ययन के शास्त्र को अर्थशास्त्र कहते हैं।

अर्थशास्त्र की धन संबंधी परिभाषा क्या है?

(1) अर्थशास्त्र के अंतर्गत ऐसे आर्थिक मनुष्य की कल्पना की गयी है जो सदैव स्वहित की भावना से प्रेरित होकर धन कमाने के लिए अपनी सभी क्रियाओं को संपादित करता है। (2) अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है। अर्थात अर्थशास्त्र के अध्ययन का केंद्र बिंदु केवल धन को माना गया है। (3) धन को मनुष्य से भी ऊँचा स्थान दिया गया है।