उच्च प्राथमिक और वरिष्ठ माध्यमिक स्तर पर पाठ्यपुस्तकों की आलोचनात्मक समीक्षा या विश्लेषण - uchch praathamik aur varishth maadhyamik star par paathyapustakon kee aalochanaatmak sameeksha ya vishleshan

पाठ्यपुस्तक विश्लेषण बी.एस.टी.सी ( d.El.Ed )

संकेतिका

क्र.सं.

प्रकरण का शीर्षक एवं उपशीर्षक

पृष्ठ संख्या

1.

पाठ्यक्रम के अनुसार 

1-2

2.

विद्यार्थी की आयु के अनुसार

3

3.

विषय की सरलता व स्पष्टता

4

4.

विषय वस्तु की रोचकता

5-6

5.

विषय वस्तु की प्रासंगिकता

6-7

6.

स्थानीय परिवेश व अनुभवों का समावेश

7-8

7.

विविधता का उपयोग 

8-9

8.

चित्रों का समावेश व स्पष्टता

9-10

9.

गतिविधियों का समावेश

10-11

10.

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन

11-12

11.

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नों की उपयुक्तता

13

उच्च प्राथमिक और वरिष्ठ माध्यमिक स्तर पर पाठ्यपुस्तकों की आलोचनात्मक समीक्षा या विश्लेषण - uchch praathamik aur varishth maadhyamik star par paathyapustakon kee aalochanaatmak sameeksha ya vishleshan

पाठ्य पुस्तक का नाम - गणित शिक्षण

कक्षा - 5 वी

विषय - गणित

  • कक्षा 5वी की गणित की पाठ्यपुस्तक का विश्लेषण निम्न बिंदुओं के आधार पर किया जा रहा है ।

1. पाठ्यक्रम के अनुसार :-

विद्यार्थियों के गणित की पाठ्यपुस्तक विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम के अनुसार ही है ।

➤ कक्षा पांचवी की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में सभी इकाइयां सही क्रम में सुव्यवस्थित तरीके से विभाजित की गई है , जिसमें बालक को पाठ्यक्रम को समझने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है ।

➤ कुछ स्थानों पर परेशानियां संभव हो सकती है परंतु शिक्षकों की मदद से वे आसानी से हल हो जाती हैं ।

➤ पाठ्यक्रम के अनुसार कक्षा 5 का गणित विषय अत्यंत ही रोचक और प्रभावी है ।

➤ कक्षा 5 की गणित की पाठ्यपुस्तक में सभी प्रश्नावली को सही क्रम से व्यवस्थित किया गया है । प्रश्नावली को व्यवस्थित करते समय सरल से कठिन की ओर शिक्षण बिंदु का उपयोग किया गया है , जैसा कि सभी जानते हैं कि गणित विषय कई विषयों का समूह है जो संख्याओं , मात्राओं , परिणामों , रूपों और आदि को एक दूसरे में समाहित करके उनका अध्ययन करती है और गणित का यह गुण कक्षा - 5 की पाठ्यपुस्तक में बेहतर ढंग से दर्शाया गया है ।

पाठ्य पुस्तक में इकाइयों को निम्न क्रम से दर्शाया गया है ।

  1. संख्याओं की समझ

  2. संख्याओं के रिश्ते

  3.  पूर्ण संख्याएं 

  4. क्षणात्मक संरचनाऐं एवं पूर्णांक 

  5. भिन्न

  6. दशमलव संख्याएं 

  7. वैदिक गणित 

  8. आधारभूत ज्यामितीय अवधारणाएं एवं सरंचनाएं 

  9. सरल द्विविमीय आकृति 

  10. त्रिविमीय आकृति 

  11. सममिति 

  12. बीजगणित 

  13. अनुपात और समानुपात 

  14. परिणाम व क्षेत्रफल 

  15. आंकड़ों का प्रबंधन 

✮ उत्तरमाला 

✮ परिशिष्ट

इस प्रकार पाठ्यक्रम को दर्शाया गया है ।

2. विद्यार्थियों की आयु व स्तर के अनुसार :-

कक्षा - 5 के विद्यार्थियों के लिए गणित की पाठ्यपुस्तक डिजाइन करते समय विद्यार्थियों की आयु व उनके शैक्षिक स्तर का पूरा ध्यान रखा गया है , पाठ्यक्रम का निर्माण सरल से कठिन की ओर के शिक्षण सूत्र का उपयोग किया गया है ।

➤ कक्षा 5 की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में रचनात्मक चित्र व गणितीय पहेलियों का उपयोग किया गया है जिससे पाठ्यक्रम गणित के प्रति विद्यार्थियों में रुचि उत्पन्न हो जाती है ।

उदाहरण के तौर पर जैसे :- 

भिन्न को जोड़ना , वृत्त का क्षेत्रफल ज्ञात करना , आकृतियों में कोणों की समस्या आदि प्रकार की गणितीय संक्रियाएं बालक पूर्ण रुचि के साथ हल कर सके इस बात को ध्यान में रखते हुए उनसे संबंधित विधियों को चित्र सहित बताया गया है ।

➤ पाठ्य पुस्तक में गणित से संबंधित खेलों व पहेलियों का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग किया गया है जिससे बालकों की गणित विषय में रुचि कम नहीं होती वे उत्साह के साथ गणित का अध्ययन करते हैं ।

➤ बालक की आयु व योग्यता को ध्यान में रखकर ही इस पाठ्यपुस्तक का निर्माण किया गया है जिससे बालक को गणित विषय को समझने में परेशानी नहीं होती है और वह इसके सवालों को पूर्ण रूचि से हल कर सकता है ।

➤ कक्षा - 5 का बालक औसतन 10 से 11 वर्ष की आयु का होता है तथा गणित विषय के पाठ्यक्रम का स्तर भी उसकी इस आयु के लिए उपयुक्त है ।

अतः हम कह सकते हैं कि गणित विषय की पाठ्यपुस्तक विद्यार्थियों की आयु वह स्तर के अनुसार सही है ।

3. भाषा की सरलता व अस्पष्टता :- 

पाठ्यपुस्तक की भाषा जितनी सरल व स्पष्ट होगी बालक को उतनी ही शीघ्रता से समझ में आया है और बालक की उस पाठ्यपुस्तक में रुचि बनी रहती है , यदि भाषा कठिन व अस्पष्ट हो तो बालकों को अध्ययन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है जिसके कारण उनको मानसिक कष्ट भी सहना पड़ता है जिससे उनमें अध्ययन के प्रति निराशा उत्पन्न होती है वे उस विषय से दूर भागने लगते हैं ।

सरल सुंदर व स्पष्ट भाषा बालक को अपनी और आकर्षित करती है तथा बालक को अपनी पाठ्यपुस्तक आसानी से समझ में आ जाती है वह उसे पढ़ने के प्रति रुचि दिखाता है , अतः भाषा प्रत्येक विषय की सरल व स्पष्ट होनी चाहिए ।

            कक्षा 5 की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक भी इसी बात को ध्यान में रखकर बनाई गई है जिससे जिसके कारण इस पाठ्यपुस्तक की भाषा बहुत ही सरल व स्पष्ट है इस पाठ्य पुस्तक को बालकों को समझने में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता है ।

           पाठ्य पुस्तक में प्रत्येक इकाई को सरल व स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है कक्षा - 5 वी के गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में सभी अध्याय जैसे - परिमेय संख्या , घन व घनमूल ,  घात व घातांक आदि को सही क्रम से सरल व स्पष्ट रूप से बताया गया ।

अतः कक्षा पांचवी की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक सरल व स्पष्ट है ।

4. विषय वस्तु की रोचकता :-

कक्षा - 5 वी की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में आए हुए सभी अध्याय की रचना छात्रों के बौद्धिक स्तर तथा भाषा की उपलब्धि को ध्यान में रखते हुए की गई है ।

आरंभ में अध्याय सरल है तथा क्रमश कठिन होते जाते हैं । परंतु विविध गतिविधियों के कारण बच्चों में विषय के प्रति रोचकता बनी रहती है ।

➤ विविध विधाओं में विभिन्न अध्यायों द्वारा पुस्तक में सजीवता , उत्सुकता व रोचकता लाने की चेष्टा की गई है । 

➤ प्रत्येक अध्याय में प्रश्नों को हल करने से पूर्व उदाहरण को समझना होता है और उदाहरणों की सहायता से प्रश्नों को आसानी से हल किया जाता है ।

➤ प्रत्येक अध्याय अलग-अलग होने के कारण बच्चों में पाठ्यपुस्तक के प्रति रोचकता बनी रहती है , एक ही विषय वस्तु को पढ़ते-पढ़ते बालक में रोचकता कम होने लगती हैं । 

अतः गणित की पाठ्यपुस्तक में सभी अध्यायों को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है कि बालक में रोचकता का विकास होता रहता है बालक का मन पाठ्यपुस्तक के प्रति रोचक व उत्सुक का भाव लिए रहता है ।

5. विषय वस्तु की प्रासंगिकता :- 

विषय वस्तु की प्रासंगिकता ही बालक को उस विषय के प्रति रुचि बनाए रखती हैं , यदि पाठ्यपुस्तक में प्रासंगिकता का भाव नहीं हो तो बालक का मन पाठ्यपुस्तक के प्रति हटने लगता है बालक की उस पाठ्य पुस्तक को पढ़ने के प्रति रुचि कम हो जाती है ।

    परंतु यदि पाठ्य पुस्तक में प्रासंगिकता बनी रहती है तो बालक उस विषय को रुचि पूर्ण तरीके से पढ़ता है ,  बालक का उस विषय के प्रति लगाव बना रहता है अतः पाठ्य पुस्तक में प्रासंगिकता का भाव जितना अधिक होगा बालक की उस विषय के प्रति रुचि व जिज्ञासा भी उतनी ही अधिक बनी रहती हैं ।

कक्षा - 5 की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक इस मामले में बेहतर व अनोखे ढंग से तैयार की गई है ।

➤ प्रासंगिकता का अर्थ यह है कि कोई सूचना क्रिया या घटना का वास्तविकता से कितना संबंध है ।

उदाहरण के लिए मुकदमों में बहस के दौरान साक्ष्य के लिए प्रासंगिकता को बहुत महत्व दिया जाता है ।

इसी प्रकार गणित विषय में भी प्रत्येक प्रश्न का हल सटीक व सही तरीके से किया गया है ।

अतः हम कह सकते हैं कि कक्षा 5 की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक पूर्ण रूप से प्रासंगिक है , यह पाठ्य पुस्तक कक्षा पांचवी के स्तर के बालक को उनके स्तर के अनुसार उन्हें शिक्षा देने में समर्थ है ।

6. स्थानीय परिवेश व अनुभवों को स्थान :- 

कक्षा - 5 वी की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में स्थानीय परिवेश व अनुभव को स्थान दिया जाता है और प्रत्येक पाठ्यपुस्तक बालक के परिवेश व अनुभवों से जुड़ी हो तो वह बालक के लिए भविष्य में बहुत उपयोगी सिद्ध होती हैं ।

       प्रत्येक पाठ्यपुस्तक बालक के व्यवहार से जुड़ी होनी चाहिए ।

 यदि बालक के परिवेश व अनुभवों से जुड़ी हुई ना हो तो बालक उस विषय को समझ नहीं पाता है और भविष्य में भी वह उस बालक के लिए किसी भी प्रकार से उपयोगी सिद्ध नहीं होती हैं ।

कक्षा - 5 वी की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में स्थानीय परिवेश व अनुभवों को स्थान दिया गया है ।

इस पाठ्यपुस्तक में ऐसे प्रश्नों का समावेश किया गया है जो बालक के व्यवहार व परिवेश से जुड़े होते हैं ।

इससे बालक को समझने में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती हैं और बालक अति शीघ्र ही उस विषय में अच्छी पकड़ बना लेता है ।

अतः हम कह सकते हैं कि कक्षा - 5 वी की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में स्थानीय परिवेश के अनुभवों को स्थान दिया गया है और यह बालक के लिए अत्यधिक उपयोगी है ।

7. विविधता का उपयोग :-

प्रत्येक अध्याय में बालक को कुछ नया सीखने को मिले 

एक ही प्रकार के विषय वस्तु को पढ़ते-पढ़ते बालक का मन अध्ययन से उड़ने लगता है इसलिए प्रत्येक अध्याय में कुछ नया कुछ नई विषय वस्तु शामिल की जानी चाहिए जिससे उसे विविधता बनी रहे और बालक रूचि व उत्साह के साथ अध्ययन करता रहे ।

कक्षा - 5 की गणित विषय की पाठ्य पुस्तक का निर्माण करते समय विविधता के गुण का ध्यान रखा गया है , इसमें प्रत्येक अध्याय एक दूसरे से जुड़ा हुआ होते हुए भी उनमें पर्याप्त विविधताएं हैं इसके प्रत्येक अध्याय में बालक को कुछ नया सीखने को मिलता है जो उन्हें अध्ययन करने प्रेरित करता है । विविधता का गुण बालक के शैक्षिक स्तर को बढ़ाने के लिए उपयोगी है ।

➤ इसके अलग-अलग अध्याय निम्न प्रकार से है -

अध्याय 1. संख्याएँ

अध्याय 2. जोड़ - घटाव

अध्याय 3. गुणा भाग

अध्याय 4. वैदिक गणित

अध्याय 5. गुणनखंड

अध्याय 6. भिन्न की समझ

अध्याय 7. तुल्य भिन्न

अध्याय 8. पैटर्न

अध्याय 9. आँकड़े

अध्याय 10. मुद्रा 

अध्याय 11. समय 

अध्याय 12. भार

अध्याय 13. मापन ( लंबाई )

अध्याय 14. परिमाप एवं क्षेत्रफल

अध्याय 15. धारिता

अध्याय 16. ज्यामिति

अध्याय 17. मन गणित

अध्याय 18. उत्तरमाला

ऊपर दिए गए अध्याय श्रेणी बंद तरीके से एक दूसरे से जुड़े हुए होते हुए भी उनमें विविधताएं हैं जैसे-जैसे बालक प्रथम अध्याय से अंतिम अध्याय की तरफ बढ़ता है इस प्रकार बालक के सीखने का स्तर बढ़ता जाता है उसे हर अध्याय में कुछ नया सीखने को मिलता है इसलिए हम कह सकते हैं कि कक्षा 5 की गणित की पाठ्यपुस्तक में व्यवस्थाओं का प्रयोग किया गया है ।

8. चित्रों का समावेश व स्पष्टता :-

बालक का ध्यान हमेशा चित्र की ओर अधिक आकर्षित रहता है तथा वह चित्र के माध्यम से किसी अध्ययन सामग्री को सरलता से ग्रहण कर सकता है ।

जिस पाठ्य पुस्तक में जितने अधिक चित्र होते हैं बालक उतना ही उतनी ही सरलता से सीखता है ।

पाठ्य पुस्तक में चित्र जितने आवश्यक हो उतने ही होने चाहिए तथा चित्र विषय वस्तु से संबंधित होने चाहिए अनावश्यक चित्रों का समावेश कदापि नहीं करना चाहिए ।

चित्र के समावेश से बालक विषय वस्तु का रुचिपूर्ण तरीके से अध्ययन करता है और बालक साधारण अक्षरों की अपेक्षा चित्र को अधिक जल्दी ग्रहण करता हैं । इसलिए कक्षा - 5 की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक के प्रत्येक अध्याय में आवश्यक रंगीन चित्रों का समावेश है तथा यह चित्र बालक को गणित विषय की विभिन्न संक्रियाओं को समझने में मदद करते हैं ।

अतः हम कह सकते हैं कि गणित विषय की इस पाठ्यपुस्तक में चित्रों को सही तरीके से संजोया गया है ।

9. गतिविधियों का समावेश :-

कक्षा 5 की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में गतिविधियों का समावेश किया गया है । प्रत्येक अध्याय में अलग-अलग प्रकार की गतिविधियां दर्शाई गई है , जैसे कहीं गणितीय पहेलियां व कहीं पर गणित से संबंधित खेल और पाठ के अंत में पाठ से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रश्न भी संकलित किए गए हैं । 

इसी प्रकार वैदिक गणित को भी पाठ्यपुस्तक में सही ढंग से व्यवस्थित रूप से दर्शाया गया है ।

गतिविधियों के समावेश से अलग-अलग अध्याय को अलग-अलग तरीकों से सीखा जा सकता है शिक्षक कक्षा शिक्षण में अलग-अलग शिक्षण विधियों का प्रयोग कर सकता है जिससे बालक की उस विषय में रुचि बनी रहती है और वह बालक गतिविधियों में भाग लेने के कारण उस विषय को अधिक मन से पढ़ने लगता है ।

अतः हम कह सकते हैं कि कक्षा 5 की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में गतिविधियों का समावेश है ।

10. सतत एवं व्यापक मूल्यांकन सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ छात्रों के विद्यालय पर आधारित छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली जिसमें छात्र छात्रा के छात्र छात्रा की प्रगति का निरंतर मूल्यांकन किया जाता है जिससे उसमें अपेक्षित सुधार किया जा सके जिसमें इसमें दोहरी उद्देश्य पर बल दिया जाता है यह देश व्यापक आधारित अधिगम और दूसरी और व्यवहार का परिमाप ओं के मूल्यांकन का निर्धारण की सत्ता में है इस योजना से शब्द शब्द योजना में सतत का अर्थ है निरंतर दूसरे शब्दों में व्यापक का अर्थ है पूर्ण रूप से छात्रों की वृद्धि और विकास के साथ-साथ शैक्षिक व सह शैक्षिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है उनकी क्षमताएं मनोवृति हवा भी रुचियां अपने आप को विचित्र

11. पाठ्यपुस्तक के प्रश्नों की उपयोगिता :-

पाठ्यपुस्तक में पूछे गए प्रश्न सरल व बालकों की आयु के स्तर के अनुसार होने आवश्यक है । प्रश्न की भाषा सरल व सहज होनी चाहिए और बालक को प्रश्न करने का उद्देश्य समझ में आना चाहिए । बालक को पता चलना चाहिए कि शिक्षक उससे किस उत्तर की अपेक्षा कर रहा है ? 

प्रश्न अध्याय से संबंधित होने चाहिए तभी बालक उस प्रश्न को समझ कर उसका उत्तर दे सकता है , प्रश्न सरल से कठिन की ओर क्रमबद्ध होने चाहिए ।

उदाहरण के लिए भिन्न का प्रश्न पूछा गया है -

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यदि बालक ने भिन्न का अध्ययन किया है तो वह इस प्रश्न को समझ कर उसका हल इस प्रकार से देने की कोशिश करेगा -

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यदि बालक को भिन्न का ज्ञान नहीं है तो इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ रहेगा । अतः प्रश्न सदैव पाठ्यपुस्तक के अध्याय से संबंधित होने चाहिए ।

कक्षा 5 की गणित विषय की पाठ्यपुस्तक में प्रश्नों का समावेश बहुत सटीक व सरल ढंग से किया गया है उसमें बालक के आयु स्तर और उसकी रुचि का ध्यान रखा गया है।

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पाठ्यपुस्तक विश्लेषण की आवश्यकता और महत्व :-

पाठ्यपुस्तक विश्लेषण की आवश्यकता हमें शिक्षण प्रशिक्षण डिप्लोमा करने के दौरान पड़ती है , जब जब हमें इंटर्नशिप दौरान कॉलेज की तरफ से पाठ्यपुस्तक विश्लेषण डायरी दी जाती है , हमें इसमें प्राथमिक और उच्च प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों में से किसी एक पुस्तक का विश्लेषण करके अपनी डायरी  लिखना होता है। 

पाठ्यपुस्तक विश्लेषण क्या होता है?

पाठ्यक्रम में वर्णित उद्देश्यों व विषय की प्रकृति व कौशल के अनुसार पाठ्यपुस्तक विभिन्न अध्यायों में ज्ञान को संयोजित कर सरल शैली में सीखने का अवसर प्रदान करने का एक माध्यम है।

पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा आप कैसे करेंगे?

यह इकाई किस बारे में है उनमें छात्रों के लिए विविध प्रकार के पाठ होते हैं, जिनमें भारत और अन्य देशों के कई लेखकों द्वारा लिखे गए गद्य, नाटक और पद्य के अंश शामिल हैं। इन पाठ्यपुस्तकों से छात्र भाषा के उपयोग और शब्दावली की दृष्टि से कई बातें सीख सकते हैं, और वे आपकी शिक्षण प्रक्रिया के लिए एक बड़े संसाधन बन सकते हैं।

पाठ्यपुस्तक कितने प्रकार के होते हैं?

पाठ्यपुस्तक कितने प्रकार की होती है?.
सामान्य पाठ्य-पुस्तकें.
पाठ्यक्रम पर आधारित पाठ्य-पुस्तके.
संदर्भ-पुस्तकें.
प्रचलित पाठ्य-पुस्तकें.
ज्ञानात्मक पाठ्य-पुस्तकें.
अनुभव आधारित पाठ्य-पुस्तकें.
तात्कालिक आवश्यकता के अनुसार प्रचलित पुस्तकें.
अनुदेश्नात्मक पाठ्य-पुस्तकें.

संदर्भ को समझना क्यों आवश्यक है?

लाइब्रेरी की पुस्तक पढ़ना और दस कहानियों को पढ़ना, पाठ्यपुस्तक पढ़ने से बहुत अलग होता था। कक्षा दस और ग्यारह में जब हम विषयों के बारे में पुस्तकें ढूँढ़ते थे और अलग-अलग पुस्तकालयों में जाते थे तो भी वह कार्य स्कूल द्वारा निर्धारित पुस्तक पढ़ने से बहुत अलग होता था । स्वयं पढ़ने में स्वतंत्रता का अहसास था ।