Show
Published in Journal
Year: Mar, 2019 देश ही नहीं, बल्कि आज पूरे विश्व में योग को सराहा और अपनाया जा रहा है। कई वैज्ञानिक शोध में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि विभिन्न प्रकार के योगासनों के अभ्यास से कई शारीरिक समस्याओं में राहत पाई जा सकती है (1)। खैर यह तो है सामान्य बात, लेकिन अगर पूछें कि योग का आधार क्या है, तो इस बारे में कम ही लोग जानते होंगे। ऐसे में योग के आधार को गहराई से समझने के लिए अष्टांग योग उत्तम विकल्प हो सकता है। यही वजह है कि स्टाइलक्रेज के इस लेख में हमने अष्टांग योग करने के फायदे के साथ इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझाने की कोशिश की है। साथ ही पाठक इस बात का भी ध्यान रखें कि नियमित योग वैकल्पिक रूप से शारीरिक समस्याओं से बचाव और उनके लक्षणों को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकता है। किसी भी समस्या के पूर्ण इलाज के लिए डॉक्टरी परामर्श अत्यंत आवश्यक है। नीचे भी पढ़ें लेख में हम अष्टांग योग के विषय में विस्तार बताएंगे। आइए, उससे पहले संक्षेप में जान लें कि यह है क्या। विषय सूची
अष्टांग योग अन्य योगों से भिन्न है। वजह यह है कि यह एक शारीरिक योग नहीं, बल्कि एक तरह की कर्म साधना है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस साधना को सिद्ध कर ले, वह जीवन के असल सार को समझ लेता है। यही वजह है कि योग को समझाने के लिए योग पिता महर्षि पतंजलि ने करीब 200 ईसा पूर्व अष्टांग योग सूत्र की रचना की थी। सूत्र इसलिए, क्योंकि जिस प्रकार गणित के सूत्रों के आधार पर बड़े से बड़े सवाल को हल किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार यह अष्टांग योग सूत्र जीवन के संपूर्ण सार को समझने में मदद करता है। इस सूत्र को ही मुख्य आठ अंग यानी चरणों में विभाजित किया गया है, जिनसे जुड़ी जानकारी लेख में आगे विस्तार से मिलेगी (2)। पढ़ना जारी रखें आइए, लेख के अगले भाग में हम अष्टांग योग के अंग के विषय में थोड़ी जानकारी हासिल कर लेते हैं। अष्टांग योग के अंग – Limbs of Ashtanga Yoga in Hindiअष्टांग योग में शामिल आठ अंग कुछ इस प्रकार हैं ।
महर्षि पतंजलि के अनुसार, अष्टांग योग के अंग कर्म योग से समाधि पाने का मार्ग हैं। इन आठ अंगों में शामिल यम, नियंत्रण से जुड़ा है। वहीं, नियम, जीवन के उन नियमों से जुड़ा है, जो सांसारिक जीवन के मोह से मुक्त करने में मदद करते हैं। वहीं, इसमें शामिल आसन, शरीर की मुद्रा से जुड़ा है। वहीं, प्राणायाम, सांसों को नियंत्रित करने से जुड़ा है। इसके अलावा, प्रत्याहार का मतलब है ध्यान को बाधित करने
वाली आवाज, गंध, स्पर्श आदि के प्रति ध्यान को हटाना। वहीं, अष्टांग योग में शामिल इन अंगों को कुछ उप अंगों में बांटा गया, जो साधक को संयम, पालन, शारीरिक अनुशासन, सांस नियम, इंद्रिय अंगों पर संयम, चिंतन व मनन को जीवन में शामिल कर समाधि को प्राप्त करने की प्रक्रिया को समझाते हैं। आसान भाषा में इसे अष्टांग योग को करने का तरीका भी कहा जा सकता है, जिसके बारे में हम लेख के आगे के भाग में विस्तार से बताएंगे। स्क्रॉल कर पढ़ें आगे हम अष्टांग योग करने का तरीका भी बताएंगे, लेकिन उससे पहले अष्टांग योग करने के फायदे जान लेते हैं। अष्टांग योग करने के फायदे – Benefits of Ashtanga Yoga in hindiअष्टांग योग के लाभ शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में हासिल किए जा सकते हैं। इन फायदों के बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है : 1. शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखेअष्टांग योग के सभी चरणों का पालन कर शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रहने में मदद मिल सकती है। विषय से जुड़े एक शोध में माना गया कि अष्टांग योग में शामिल योगाभ्यास मांसपेशियों की मजबूती, शरीर में लचीलापन, श्वसन क्रिया में सुधार, हृदय कार्य क्षमता को बढ़ावा और नींद की समस्या में सुधार कर सकते हैं। साथ ही जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का काम भी कर सकते हैं (1)। इस आधार पर यह माना जा सकता है कि अष्टांग योग के लाभ शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मददगार साबित हो सकते हैं। 2. डायबिटीज को नियंत्रित करने में मददगारडायबिटीज की समस्या में भी अष्टांग योग के लाभ पाए जा सकते हैं। जर्नल ऑफ डायबिटीज रिसर्च द्वारा किए गए एक शोध में माना गया कि योग के विभिन्न आसनों के प्रयोग से ब्लड ग्लूकोज के स्तर को कम किया जा सकता है। इससे डायबिटीज की समस्या के जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है। वहीं, हम ऊपर बता चुके हैं कि अष्टांग योग में आसन को भी अंग के रूप में शामिल किया गया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि अन्य शारीरिक आसनों के साथ ही अष्टांग योग भी डायबिटीज की समस्या से राहत दिलाने में मददगार साबित हो सकता है (3)। 3. मानसिक विकारों को करे दूरअष्टांग योग में शामिल आसन और प्राणायाम की प्रक्रिया मन को शांत रखने में मदद कर सकती हैं। साथ ही ये चिंता, अवसाद और तनाव को दूर करने में मदद कर सकता है। मन की ये तीनों स्थितियां व्यक्ति के मस्तिष्क से संबंधित है, इसलिए यह माना जा सकता है कि इन तीनों स्थितियों को नियंत्रित कर मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में अष्टांग योग के लाभ पाए जा सकते हैं (1)। नीचे मुख्य जानकारी है अष्टांग योग करने के फायदे जानने के बाद अब हम इसे करने की प्रक्रिया समझाने जा रहे हैं। अष्टांग योग करने का तरीका – Steps to do Ashtanga Yoga in Hindiअष्टांग योग करने के लिए इसके अंगों के साथ-साथ उनमें शामिल उप अंगों को समझना बहुत जरूरी है, तभी संपूर्ण अष्टांग योग को जीवन में समाहित किया जा सकता है। आइए, अष्टांग योग सूत्र में शामिल सभी अंगों और उप अंगों के माध्यम से इसके प्रत्येक चरण को बारीकी से समझते हैं। 1. यम :यम के पांच उप अंग हैं, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। इन पांच उप अंगों को स्वयं के
जीवन में समाहित करना ही अष्टांग योग का पहला चरण है। आइए, इन्हें जीवन में कैसे शामिल करना है, इसे थोड़ा विस्तार से समझ लेते हैं :
इसका अर्थ यह हुआ कि जो यम के इन पांच उप अंगों को अपने जीवन में समाहित कर पाएगा, वहीं अष्टांग योग के पहले चरण यानी यम अंग को पार कर पाएगा। 2. नियम :यम को साधने के बाद बारी आती है, नियम की। इसके भी पांच उप अंग हैं, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान। इन नियमों को जीवन में समाहित कर अष्टांग योग के दूसरे चरण को पार किया जा सकता है। आइए, इनका भी विस्तृत अर्थ समझ लेते हैं।
इस तरह यम और नियम का पालन कर एक साधक अष्टांग योग के दूसरे चरण को पार कर पाएगा। 3. आसन :वैसे तो शारीरिक विकारों को दूर करने के लिए कई योग है, लेकिन अष्टांग योग में आसन का अर्थ है बिना हिले-डुले एक स्थिति में आराम से बैठना। इसे स्थिर सुखमय आसन भी कहा जाता है। नियमित रूप से कुछ देर इस आसन में बैठने से मन तो शांत होता ही हैं, साथ ही शरीर में ऊर्जा भी संचित रहती है। वहीं, यह आसन अष्टांग योग के दूसरे अंग नियम में शामिल स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को गहराई से समझने की शक्ति पैदा करता है। 4. प्राणायाम :प्राणायाम का अर्थ होता है, प्राण ऊर्जा यानी सांस लेने की प्रक्रिया को विस्तार देना। अष्टांग योग के इस अंग में साधक अपनी प्राण ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए ऐसे योगाभ्यास करता है, जिसमें सांस लेने की प्रक्रिया पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया जाता है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम और कपालभाति प्राणायाम कुछ ऐसी ही योग क्रियाएं हैं। इनका नियमित अभ्यास करने से साधक में प्राण ऊर्जा को नियंत्रित करने की क्षमता विकसित हो सकती है। 5. प्रत्याहार :प्रत्याहार का अर्थ है रोकना या वापस लेना। अष्टांग योग में इन्द्रियों के कारण खर्च होने वाली अनावश्यक ऊर्जा के नियंत्रण पर जोर दिया गया है। अर्थ यह हुआ कि बोलना, सुनना, खाना, देखना और महसूस करना जैसी क्रियाएं संतुलित अवस्था में रहें। इन क्रियाओं के माध्यम से शरीर की अनावश्यक ऊर्जा नष्ट न हो। 6. धारणा :प्रत्याहार के बाद बात आती है धारणा की। अगर कोई साधक अष्टांग योग के पांच अंगों को साध लेता है, तो उसमें ऊर्जा एकत्रित करने का तो गुण पैदा हो जाता है। अब इस ऊर्जा को खर्च कैसे करना है, यह धारणा पर ही निर्भर करता है। इसलिए, जरूरी है कि मनुष्य हमेशा वर्तमान में जिए और संतुष्ट रहे। साथ ही ईश्वर पर विश्वास रखे कि अगर वह सही है, तो उसके साथ कुछ गलत नहीं हो सकता। यही धारणा एक साधक को अपनी ऊर्जा को संचित रखने और उसे कैसे खर्च करना है, इस पर विचार करने की क्षमता देगी। 7. ध्यान :जैसा कि हमने ऊपर बताया कि प्रत्याहार के माध्यम से ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सकता है। वहीं, धारणा में बदलाव कर इस ऊर्जा को शरीर में एकत्रित करने का बल मिलता है। ऐसे में जब अष्टांग योग के ये दोनों अंग एक व्यक्ति साध लेता है, तो ध्यान की स्थिति स्वयं ही आ जाती है। जिस प्रकार नींद आती है, लाई नहीं जा सकती। ठीक वैसे ही प्रत्याहार और धारणा को साधने के बाद ध्यान स्वयं ही लग जाता है। फलस्वरूप, मन, मस्तिष्क और व्यक्तित्व के सारे विकार दूर हो जाते हैं, कुछ भी बाकी नहीं रह जाता। 8. समाधि :अंत में है समाधि यानी शून्य। जब एक साधक ध्यान को साध लेता है, तो फिर कुछ भी बाकी नहीं रह जाता है। बस एक ही भाव मन में रहता है कि सभी मनुष्य उस एक ईश्वर की संतान हैं, जिसे लोग भगवान, अल्लाह व गॉड आदि कहकर पुकारते हैं। लेख अंत तक पढ़ें चलिए, लेख के अगले भाग में हम अष्टांग योग से जुड़ी सावधानियों के बारे में जानकारी हासिल करेंगे। अष्टांग योग के लिए कुछ सावधानियां – Precautions for Ashtanga Yoga In Hindiजैसा कि हम लेख में पहले ही बता चुके हैं कि अष्टांग योग कोई योगासन नहीं, बल्कि योग का एक आधार है, जिसमें कर्म योग के माध्यम से ज्ञान योग जागृत होता है। फलस्वरूप, अंत में समाधि की प्राप्ति होती है, इसलिए अष्टांग योग साधना एक दिन का कार्य नहीं है। इसके सभी चरणों को साधने में कई महीने या वर्ष लग सकते हैं। इसलिए, अष्टांग योग करने से पूर्व इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
दोस्तों, योग कई प्रकार के होते हैं, जिसके माध्यम से न सिर्फ स्वस्थ रहा जा सकता है, बल्कि इससे असीम शांति की प्राप्ति भी की जा सकती है। ऐसे में लेख को अच्छे से पढ़ने के बाद यह तो समझ ही गए होंगे कि अष्टांग योग कोई योगासन नहीं, बल्कि एक योग सूत्र है। इस सूत्र में शामिल आठ अंगों का चरणबद्ध तरीके से पालन करना ही इसे करने की प्रक्रिया है। हालांकि, अन्य योगासनों की तरह अष्टांग योग को साधना आसान नहीं। फिर भी अगर दृढ़ निश्चय कर लिया जाए, तो कोई भी व्यक्ति अष्टांग योग को साध सकता है। इससे अष्टांग योग के लाभ तो हासिल होंगे ही, साथ ही व्यक्तित्व भी निखरेगा। अब हम अष्टांग योग से जुड़े कुछ सवालों के जवाब देने जा रहे हैं। अक्सर पूछे जाने वाले सवाल :अष्टांग योग किसके लिए अच्छा है? मानसिक और शारीरिक समस्या (मधुमेह, हृदय रोग या श्वसन संबधी समस्या) से जूझ रहे व्यक्ति के लिए अष्टांग योग अच्छा हो सकता है (1)। वहीं, गंभीर शारीरिक समस्या से जूझ रहे लोग डॉक्टरी परामर्श और योग गुरु के देखरेख में ही इसे करें। मुझे अष्टांग योग कब करना चाहिए? योग गुरु की देखरेख में रोजाना सुबह अष्टांग योग का अभ्यास किया जा सकता है। क्या अष्टांग योग खतरनाक है? जी नहीं, इसे सावधानी के साथ किया जाए, तो इससे कोई खतरा नहीं होता है। फिर भी सावधानी के लिए किसी योग गुरु की देखरेख में ही इसे करें। वहीं, अगर आप किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, तो इसे करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर करें। क्या अष्टांग सबसे कठिन योग है? जी हां, अष्टांग योग एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें धैर्य और विश्वास की जरूरत होती है। हड़बड़ी में इस योग के लाभ नहीं उठाए जा सकते हैं। SourcesArticles on StyleCraze are backed by verified information from peer-reviewed and academic research papers, reputed organizations, research institutions, and medical associations to ensure accuracy and relevance. Read our editorial policy to learn more.
Was this article helpful? The following two tabs change content below.
अनुज जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से मास कम्युनिकेशन में एमए किया है। अनुज को प्रिंट... more अष्टांग योग क्या है इसका वर्णन करें?अष्टांग योग के अंतर्गत प्रथम पांच अंग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार) 'बहिरंग' और शेष तीन अंग (धारणा, ध्यान, समाधि) 'अंतरंग' नाम से प्रसिद्ध हैं। बहिरंग साधना यथार्थ रूप से अनुष्ठित होने पर ही साधक को अंतरंग साधना का अधिकार प्राप्त होता है। 'यम' और 'नियम' वस्तुतः शील और तपस्या के द्योतक हैं।
अष्टांग योग कौन कौन से हैं नाम लिखिए?यम, 2. नियम, 3. आसन, 4. प्राणायाम, 5. प्रत्याहार, 6. धारणा, 7. ध्यान तथा 8. समाधि- ये योग के आठ अंग हैं। इन सब योगांगों का पालन किये बिना कोई भी व्यक्ति योगी नहीं हो सकता। ... . अष्टांग योग का विस्तार से वर्णन कीजिए यह हमारे जीवन के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?अष्टांग योग के द्वारा सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक व आत्मिक, आनंद की अनुभूति हो सकती है। यम, नियम ,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि अष्टांग योग के आठ अंगों का पालन किए बिना कोई व्यक्ति योगी नहीं हो सकता । अष्टांग योग योगियों के लिए ही नहीं है संसार के ।
महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के कितने अंग बताए हैं?इन 8 अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं. वर्तमान में योग के 3 ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान. महर्षि पतंजलि के जन्म के बारे में एक धार्मिक कहानी भी बताई जाती है.
|