भारत के पास वीटो पावर क्यों नहीं है - bhaarat ke paas veeto paavar kyon nahin hai

भारत के पास वीटो पावर क्यों नहीं है - bhaarat ke paas veeto paavar kyon nahin hai

पुतिन के देश रूस से पहले लीबिया को भी UNHRC से सस्पेंड किया जा चुका है. (फोटो साभार सोशल मीडिया)

Russia UNHRC suspension: रूस पहला देश नहीं है, जो संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से सस्पेंड हुआ हो. 2011 में लीबिया को भी बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है. ये भी पहली बार नहीं है, जब रूस को UNHRC की सदस्यता से वंचित रहना पड़ा हो. 2016 में भी उसका पुनर्निर्वाचन रोक दिया गया था.

अधिक पढ़ें ...

  • News18Hindi
  • Last Updated : April 08, 2022, 14:18 IST

नई दिल्ली. यूक्रेन पर हमला करके कत्लेआम मचाने वाले रूस को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) से निलंबित कर दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में गुरुवार को वोटिंग के बाद बहुमत से ये फैसला लिया गया. रूस पर आरोप है कि उसके सैनिकों ने राजधानी कीव के पास बूचा से लौटते समय 300 से ज्यादा आम नागरिकों का नरसंहार कर डाला. कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि रूस को तो यूएन में वीटो पावर हासिल है. इसके जरिए वह किसी भी प्रस्ताव को खारिज करवा सकता है. फरवरी में रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने खिलाफ लाए गए निंदा प्रस्ताव को वीटो करके खारिज करवा दिया था. लेकिन क्या हुआ कि UNHRC से सस्पेंड करने के प्रस्ताव पर रूस अपनी वीटो पावर इस्तेमाल नहीं कर सका. इस सवाल का जवाब जानेंगे, साथ ही ये भी कि वीटो पावर क्या होती है, किस देश ने कितनी बार इसका इस्तेमाल किया है और UNHRC में रूस पर क्या पहले भी कभी गाज गिरी है?

वीटो पावर होती क्या है, किसे मिलती है?
वीटो मतलब किसी बात को खारिज करने का अधिकार. संयुक्त राष्ट्र की सबसे ताकतवर संस्था सुरक्षा परिषद (UNSC) के 5 स्थायी सदस्यों के पास ये अधिकार है कि वो किसी प्रस्ताव को वीटो कर सकते हैं. ये देश हैं- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन और फ्रांस. UNSC के 5 स्थायी और भारत जैसे 10 अस्थायी देशों के बीच यही सबसे बड़ा अंतर है. यूएन के स्थायी देश अपनी विदेश नीति और मौजूदा हालात को देखते हुए इसका प्रयोग करते हैं. चीन भी कई बार भारत से जुड़े मसलों पर वीटो पावर यूज कर चुका है.

वीटो का इस्तेमाल कहां किया जा सकता है?
वीटो पावर रखने वाले देश इसका इस्तेमाल सुरक्षा परिषद में करते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा के इमरजेंसी स्पेशल सत्र में भी वीटो का प्रयोग नहीं किया जा सकता. गुरुवार को महासभा के जिस सत्र में रूस को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से बाहर करने का प्रस्ताव पास हुआ था, उसे अमेरिका, यूके समेत 7 देशों के ग्रुप ने पेश किया था. इस पर 93 देशों ने हां में वोट दिया, जबकि चीन समेत 24 देशों ने इसके खिलाफ में मतदान किया. भारत, ब्राजील, मेक्सिको समेत 58 देश वोटिंग के दौरान गैरहाजिर रहे.

किसने कितनी बार वीटो का इस्तेमाल किया?
सुरक्षा परिषद में पहली बार 1946 में वीटो पावर का इस्तेमाल किया गया था. तब से लेकर अब तक परिषद में लगभग 293 बार विभिन्न प्रस्तावों को वीटो किया जा चुका है. इनमें सबसे ज्यादा 143 बार इसका प्रयोग रूस (पूर्व सोवियत संघ) ने किया है. उसके बाद अमेरिका (83) और यूके (32) का नंबर आता है. पांचों देशों में सबसे कम चीन ने सिर्फ 16 बार वीटो पावर का रौब दिखाया है.

UNHRC क्या काम करती है?
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद यूएन की एक अंतर सरकारी संस्था है. स्विट्जरलैंड के जिनीवा में इसका मुख्यालय है. 47 देश इसके सदस्य हैं. इसका काम विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देने के लिए कदम उठाना है. अगर कहीं पर मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तो ये संस्था दखल दे सकती है. इसके सदस्य तीन साल के लिए चुने जाते हैं. रूस की फिर से सदस्यता 2021 में शुरू हुई थी. लेकिन UNHRC की सबसे बड़ी कमी यही है कि यह सिर्फ सिफारिश कर सकती है, इसके फैसले किसी देश पर बाध्यकारी नहीं होते.

क्या रूस से पहले कोई UNHRC से सस्पेंड हुआ?
रूस पहला देश नहीं है, जिसे 2006 में गठित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से सस्पेंड किया गया है. उससे पहले 2011 में लीबिया को भी बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है. तब लीबिया में बड़े पैमाने पर लोगों को मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं सामने आई थी. उसके बाद यूएन महासभा में बहुमत से प्रस्ताव पास करके लीबिया की UNHRC सदस्यता रद्द कर दी गई थी.

क्या UNHRC में रूस पर पहले कभी एक्शन हुआ?
ये भी पहली बार नहीं है, जब रूस को UNHRC की सदस्यता से वंचित रहना पड़ा हो. 2016 में जब रूस ने सीरिया के अलेप्पो में बर्बरता से बमबारी की थी, तब भी यूएन के सदस्य देशों ने चौंकाते हुए UNHRC में रूस का पुनर्निर्वाचन रोक दिया था. लेकिन कुछ ही समय बाद रूस फिर से इसका सदस्य बन गया. देखना होगा कि इस बार उसका निलंबन कब तक कायम रहता है.

ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|

Tags: Russia ukraine war, UNHRC, United nations, Vladimir Putin

FIRST PUBLISHED : April 08, 2022, 13:10 IST

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) के बाद अब विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की वकालत की है. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि हमने कभी ये नहीं सोचा कि ये आसान प्रक्रिया है, लेकिन हमारा मानना है कि सुधार की जरूरत को हमेशा के लिए नहीं नकारा जा सकता.

कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए बाइडेन ने भी कहा था कि अब समय आ गया है कि सुरक्षा परिषद में ऐसे सुधार किए जाएं जो आज की जरूरत को बेहतर तरीके से पूरा कर सकें. 

बाइडेन ने कहा था कि अमेरिका सुरक्षा परिषद में स्थायी और अस्थायी, दोनों सदस्यों को बढ़ाने का समर्थन करता है. इनमें वो देश भी शामिल हैं, जिनकी स्थायी सदस्यता की मांग का समर्थन हम लंबे समय से करते आ रहे हैं.

सम्बंधित ख़बरें

बुधवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि मेरा मानना है कि राष्ट्रपति (जो बाइडेन) ने कहा, वो सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए अमेरिकी समर्थन को दिखाता है. उन्होंने कहा कि ये किसी एक देश की जिम्मेदारी नहीं है, ये हम सभी और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों पर निर्भर करता है.

पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद है क्या? वीटो पावर को लेकर क्या है लड़ाई? स्थायी सदस्यता के लिए भारत के अलावा और कौन-कौन से दावेदार हैं? जानते हैं...

क्या है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद?

- दूसरे विश्व युद्ध के बाद एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय मंच की जरूरत पड़ी जो सभी देशों को साथ लेकर चल सके. इसलिए 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ. इसका हेडक्वार्टर न्यूयॉर्क में है. मौजूदा समय में 193 देश इसके सदस्य हैं.

- संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंग- जनरल असेंबली, सिक्योरिटी काउंसिल, इकोनॉमिक एंड सोशल काउंसिल, ट्रस्टीशिप काउंसिल और सेक्रेटेरिएट और इंटरनेशनल कोर्ट है. इंटरनेशनल कोर्ट नीदरलैंड के हेग में स्थित है. बाकी सभी न्यूयॉर्क में है.

- संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद यानी सिक्योरिटी काउंसिल पर है. सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं. इनमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य हैं.

- स्थायी सदस्यों में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस हैं. अस्थायी सदस्यों में भारत के अलावा अल्बानिया, ब्राजील, गेबन, घाना, आयरलैंड, केन्या, मैक्सिको, नॉर्वे और यूएई हैं. अस्थायी सदस्य दो साल के लिए क्षेत्रीय आधार पर चुने जाते हैं.

भारत की क्या है मांग?

- भारत लंबे समय से सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता देने की मांग करता रहा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गठन के बाद से अब तक कई बार भारत अस्थायी सदस्य बन चुका है.

- भारत पहली बार 1950-51 में अस्थायी सदस्य बना था. उसके बाद 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12 में दो साल के लिए सदस्य बना था. अभी भारत की अस्थायी सदस्यता इस साल दिसंबर में खत्म हो रही है.

- सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता देने का समर्थन कई देश करते भी हैं, लेकिन अब तक कुछ खास हुआ नहीं है. 

- हाल ही में महासभा को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत बड़ी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि अपने कार्यकाल में भारत ने कई गंभीर मुद्दों को सुलझाने के लिए ब्रिज की तरह काम किया है. हमने समुद्री सुरक्षा, शांति स्थापना और आतंकवाद का मुकाबला करने जैसी चिंताओं पर भी ध्यान केंद्रित किया है.

वीटो पावर की क्या है लड़ाई?

- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर सिर्फ पांच स्थायी देशों के पास ही हैं. वीटो पावर स्थायी सदस्यों को सुरक्षा परिषद के किसी भी प्रस्ताव को वीटो (अस्वीकार) करने का अधिकार देता है.

- वीटो पावर को लेकर अक्सर लड़ाई होती रहती है. इसे अलोकतांत्रिक भी माना जाता है, क्योंकि स्थायी सदस्यों के पास बिना किसी शर्त के वीटो पावर है.

- लेकिन यहां सुधार भी नहीं हो सकता. क्योंकि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 108 और 109 के तहत पांच स्थायी सदस्यों को चार्टर में किसी भी संशोधन पर वीटो पावर दिया गया है. अगर वीटो पावर में कोई संशोधन करना भी है तो इन पांचों स्थायी सदस्य देशों की अनुमति लेनी होगी.

- संयुक्त राष्ट्र की स्थापना, शांति और सुरक्षा बनाए रखने में इन पांच सदस्य देशों की भूमिका को अहम माना जाता है, इसलिए इन्हें वीटो पावर दिया गया है. 

- वीटो पावर के साथ एक चिंता की बात ये भी है कि अगर पांच में से एक सदस्य देश भी इसका इस्तेमाल करता है, तो वो प्रस्ताव खारिज हो जाता है. यही वजह है कि अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग उठ रही है.

भारत के अलावा और कौन-कौन दावेदार?

भारत के अलावा ब्राजील, साउथ अफ्रीका, जापान और जर्मनी भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता पर दावेदारी करते हैं. भारत की मांग का समर्थन चीन को छोड़कर बाकी चारों स्थायी सदस्य करते भी हैं. लेकिन चीन के अड़ंगे की वजह से भारत इसका स्थायी सदस्य नहीं बन पा रहा है.

भारत को वीटो पावर क्यों नहीं मिलती?

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब भारत स्वतंत्र हुआ तब भारत की औद्योगिक,राजनीतिक, आर्थिक तथा सैन्य शक्ति के विकास को देखते हुए भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट यानि ''वीटो पॉवर'' देने की पेशकश की गई थी परन्तु नेहरू जी ने तब चीन के लोगों के गणतंत्र का हवाला देते हुए वीटो पॉवर लेने से इनकार कर दिया था.

वीटो पावर कब मिलता है?

उच्च सदन को वीटो का इस्तेमाल का अधिकार है। हालांकि, एक लिबरल सरकार द्वारा पहले इसमें सुधार किया गया और इसके बाद लेबर सरकार ने देखा कि उनके अधिकार सीमित हो गए हैं। 1911 और 1949 के संसदीय अधिनियमों ने देखा कानून में संशोधन और उसे स्थगित करने की क्षमता के उनके अधिकार को कम कर दिया गया।

भारत को वीटो पावर कब तक मिल जाएगा?

केवल पांच देशों को है वीटो का अधिकार भारत वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दो साल के कार्यकाल के लिए अस्थायी सदस्य के रूप में है। इसका कार्यकाल इस साल दिसंबर को समाप्त होगा।

वीटो पावर कौन कौन से देश को मिला है?

चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका यूनाइटेड नेशन्स के पांच स्थायी सदस्य हैं जो वीटो का इस्तेमाल किसी भी प्रस्ताव को पारित करने के लिए करते हैं।.
पांच स्थायी सदस्यों को प्राप्त है वीटो पावर।.
किसी भी प्रस्ताव को पारित करने के लिए इस्तेमाल होता है वीटो।.
एक सदस्य की अनुपस्थिति प्रस्ताव को नहीं रोकता।.

रूस ने कितनी बार वीटो का प्रयोग किया है?

किसने कितनी बार वीटो का इस्तेमाल किया? सुरक्षा परिषद में पहली बार 1946 में वीटो पावर का इस्तेमाल किया गया था. तब से लेकर अब तक परिषद में लगभग 293 बार विभिन्न प्रस्तावों को वीटो किया जा चुका है. इनमें सबसे ज्यादा 143 बार इसका प्रयोग रूस (पूर्व सोवियत संघ) ने किया है.